असली पत्नी कौन | Asli Patni Kaun | Husband Wife Story | Moral Stories | Pati Patni Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ असली पत्नी कौन ” यह एक Pati Patni Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Husband Wife Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
असली पत्नी कौन | Asli Patni Kaun | Husband Wife Story | Moral Stories | Pati Patni Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

Asli Patni Kaun | Husband Wife Story | Moral Stories | Pati Patni Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories


 असली पत्नी कौन 

सेठ दुर्गादास और उनकी धर्म पत्नी आशा देवी का राम नगर में एक सभ्य परिवार था। दुर्गादास ने अपनी मेहनत से खूब धन दौलत कमाया था। 
पर दुर्गादास को एक दुख था कि उसके इकलौते बेटे मोहन को शराब और जुए की बुरी लत थी। वो रोजाना शराब पीकर बेसुध होकर देर से घर लौटता था। 

मोहन की रोजाना शराब और जुए की लत ने सेठ दुर्गादास की चिंता बढ़ा दी थी। हर समय दुर्गादास और आशा मोहन को लेकर परेशान रहने लगे। एक दिन दुर्गादास ने आशा से कहा।
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दुर्गादास,” आशा, मैं सोच रहा हूँ कि मोहन की शराब और जुए की लत बढ़ती जा रही है। मैंने किशोर भाई साहब से बात की हुई है। उन्होंने एक लड़की बताई है। 
बहुत ही अच्छे घराने की सुशील लड़की है। मैं सोच रहा हूँ मोहन की शादी कर देते हैं। शायद बहू के आने से मोहन थोड़ा सुधर जाए। “
आशा,” ये तो आप ठीक कह रहे हो। किशोर भाई साहब से बात करके हम रिश्ता पक्का कर देते हैं। “
सेठ दुर्गादास अपने मित्र किशोर से बात करके लड़की के घरवालों से बात करता है। उसी शाम मोहन जब घर आता है, सेठ दुर्गादास उसे कहता है। 
दुर्गादास,” मैंने तुम्हारे लिए लड़की पसंद की है। लड़की अच्छे घराने की पढ़ी लिखी है। “
मोहन,” मुझे कोई शादी नहीं करनी, पिताजी। “
दुर्गादास,” मोहन अगर तुमने इस शादी के लिए मना किया तो तुम्हारा खर्चा पानी, पैसे सब मिलने बंद हो जाएंगे। “
पिता की कही बातों को सुनकर मोहन डर जाता है और शादी के लिए हाँ कर देता है। कुछ दिनों बाद मोहन की शादी सुहाना नाम की लड़की से हो जाती है। 
सुहाना बहुत ही सुशील और समझदार लड़की थी। वो अपनी सास आशा और ससुर दुर्गादास का बहुत ध्यान रखती थी। 
पर मोहन उसको बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। दुर्गादास ने सोचा था कि मोहन की शादी के बाद शायद आदतें सुधर जाएगी, पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ। 
मोहन अभी भी रोजाना शराब के नशे में ही रहता था। 
दुर्गादास,” मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है। मैंने वकील साहब को बुलाया है। मैं चाहता हूँ कि मरने से पहले अपनी सारी जायदाद सुहाना बहू और उसके होने वाले बच्चों के नाम कर जाऊं। मैं नहीं चाहता कि मोहन की बुरी आदतें इस घर को तबाह कर दें। “
सारी जायदाद सुहाना और उसके होने वाले बच्चों के नाम करके सेठ दुर्गादास स्वर्ग सिधार जाते हैं। दुर्गादास के मरने के बाद सुहाना अपनी सास आशा का बहुत ख्याल रखती थी। वो आशा को कभी भी दुखी नहीं रहने देती थी।  
एक दिन,” माँ जी, ये लीजिये आपका हल्दी वाला दूध। “
आशा,” बहू, तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो ? एक मोहन है, जो सारा दिन घर से गायब रहता है। पता नहीं अभी भी कहां होगा ? “
मोहन,” माँ, ये सब क्या है ? पिताजी ने सारी जायदाद सुहाना के नाम क्यों कर दी ? जैसे मैं तो उनका बेटा ही नहीं। “
आशा,” मोहन, तुम्हारी शराब की बुरी आदतों की वजह से तुम्हारे पिताजी ने ऐसा किया है। “
मोहन,” पिताजी ने यह सब ठीक नहीं किया मां। “
मोहन गुस्से में फिर से शराब पीने के लिए घर से बाहर निकल जाता है। वो एक बार में पहुंचता है। वह देखता है सामने एक लड़की डांस कर रही है। 
मोहन लड़की को देखकर चौंक जाता है। लड़की बिल्कुल मोहन की पत्नी सुहाना की शक्ल की होती है। 
मोहन के दिमाग में सुहाना को रास्ते से हटाने की तरकीब आ जाती है। वो मैनेजर को बोलकर लड़की को अपने पास आने को कहता है। 
लड़की उसकी टेबल पर जाती है।

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मोहन,” मेरा एक काम करोगी ? बहुत पैसे मिलेंगे। साहब, पैसों के लिए तो मयूरी कुछ भी कर जाएगी। बस आप काम बताओ। “
मोहन,” एक काम करो, मुझे बार मेरी गाडी के पास मिलो। “
कुछ देर बाद मयूरी बार से बाहर आती है। मोहन मयूरी को गाड़ी में बैठने को कहता है और अपनी बात शुरू करता है। 
मोहन,” देखो मयूरी, बात ये है कि मेरी पत्नी सुहाना की शक्ल हूबहू तुमसे मिलती है। मेरे पिता ने मरने से पहले सारी जायदाद उसके और उसके होने वाले बच्चे के नाम कर दी थी। 
अब मैं अपने पिता के मरने के बाद पाई पाई को तरस रहा हूँ। मैंने जब तुम्हें देखा तो मुझे लगा कि तुम इस मुसीबत से मुझे छुटकारा दिलवा सकती हो। “
मयूरी,” तो मैं कैसे तुम्हारी मदद कर सकती हूँ, साहब ? “
मोहन,” मयूरी, मैं अपनी पत्नी को हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा कर दूंगा। उसके बाद तुम सुहाना की जगह मेरे घर में मेरी बीवी बनकर आओगी। 
तुम्हें देखकर माँ भी नहीं पहचान पायेंगी कि असली बीवी तुम नहीं हो। मैं तुम्हें एक दो दिन में लेने आऊंगा। फिर हमारा खेल शुरू होगा। 
तुम जायदाद के कागजात पर नकली साइन करके सारी जायदाद मेरे नाम कर दोगी। मैं तुम्हें तुम्हारे हिस्से के पैसे दे दूंगा। उसके बाद तुम अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते। “
मोहन मयूरी से बात करके घर चला जाता है। उसे पता था कि उसे आगे क्या करना है ?
मोहन,” सुहाना, तुम पिताजी के जाने के बाद कब से घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने में लगी हो ? मैंने सोचा हम हनीमून पर भी नहीं गए ,तो अब हो आते है। तुम पैकिंग कर लो। कल की टिकट है। “
 
सुहाना,” पर मां जी को अकेला छोड़कर हम कैसे जा सकते हैं ? “
आशा,” बहू, मुझे पता है तुम मेरा बहुत ख्याल रखती हो। पर मोहन का भी तो तुम्हारे लिए कुछ फर्ज बनता है। 
और ये तुम्हे घूमाने ले जा रहा है तो मुझे बड़ी खुशी होगी। तुम दोनों हमेशा खुश रहो, मेरे बच्चो। “
मोहन सुहाना को गोवा ले जाता है। वह एक जहाज किराये पर लेता है और मौका देखकर…
मोहन,” सुहाना, देखो वो मछली कितनी सुन्दर है ? “
सुहाना,” कहां है, मुझे तो दिखाई नहीं दे रही ? “
मोहन,” अरे ! थोड़ा नीचे देखो। “
सुहाना,” मोहन बचाओ, में डूब जाऊँगी। “
मोहन सुहाना को समुद्र में धक्का दे देता है। 
सुहाना ” बचाओ – बचाओ ” चिल्लाती रहती है पर वो उसकी आवाज को अनसुना करके चला जाता है और गोवा से सीधा वापस रामनगर आ जाता है। फिर वह मयूरी के घर जाता है। 
मोहन,” अब तुम्हारे नाटक का वक्त आ गया है। मेरे साथ चलो। “
मोहन मयूरी को सुहाना बनाकर घर पहुंचता है सुहाना बिना आशा के पैर छुए मोहन के साथ कमरे में चली जाती है। आशा को अजीब लगता है। पर दोनों को एक साथ खुश देखकर वो कुछ नहीं बोलती। 
एक दिन…
आशा,” ये आजकल सुहाना बहू को क्या हो गया है ? जब से गोवा से आई है, कुछ बदली बदली सी है।
ना पूजा पाठ करती है, ना चाय नाश्ता बनाती है। हमेशा अपने कमरे में ही रहती है। एक बार पूछ कर आती हूँ। शायद तबियत ठीक ना हो। “
आशा,” सुहाना बहू, आजकल बड़ी देर तक सोती हो। तबियत तो ठीक है तुम्हारी ? “
मयूरी,” ए बुढ़िया ! मेरी नींद खराब मत कर। मैं बिल्कुल ठीक हूँ और जल्दी उठूं या देर तक सोऊं, तेरे बाप का क्या जाता है ? यहाँ से जा और मुझे सोने दे। “
आशा कमरे से रोती हुई बाहर आ जाती है। उसे यकीन नहीं होता कि सुहाना इतनी कैसे बदल गयी ? 
मोहन कई बार मयूरी को जायदाद के कागजात पर नकली साइन करने की बात कह रहा था पर वो बार बार टाल देती थी। 
एक दिन…
मोहन,” मयूरी, में कितने दिनों से तुम्हें बोल रहा हूँ कागजात पर साइन कर दो, पर तुम इतने दिनों से टाल रही हो। 

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अगर तुमने मुझे ज्यादा समझदारी दिखाई या कोई हेराफेरी की तो याद रखना। मैं तुम्हें इस घर में सुहाना बना कर ला सकता हूँ तो निकाल भी सकता हूँ। “
मयूरी,” अरे डार्लिंग पतिदेव ! वो अभी मैं नकली साइन की प्रैक्टिस कर रही हूँ। जैसे ही सीख जाऊंगी, कर दूंगी। “
मोहन गुस्से में वहाँ से चला जाता है। मयूरी के बॉयफ्रेंड सतीश का फ़ोन आ जाता है। 
सतीश,” अरे मेरी जान मयूरी ! कहां हो आज कल ? बार में भी नहीं दिखती। “
मयूरी,” बस… समझ लो एक मुर्गा फंसाया है जिसे हलाल करना बाकी है बस। “
मयूरी सतीश को सारी बात बताती है और शराब पीने के लिए घर आने को कहती है। कुछ ही देर में सतीश अपने कुछ दोस्तों के साथ मोहन के घर आ जाता है। 
मयूरी सतीश और उसके दोस्तों के साथ शराब और सिगरेट का नशा करने लगती है। इतनी देर में आशा आ जाती है और वह मयूरी से कहती है। 
आशा,” सुहाना बहू, ये सब क्या चल रहा है और ये लोग कौन हैं ? तुम इन गुंडे लोगों के साथ बैठकर शराब और सिगरेट पी रही हो। 
तुम्हें शर्म नहीं आती ? इस घर की बहू होकर तुम ये हरकत कर रही हो। आने दो मोहन को ज़रा। “
मयूरी,” बुढ़िया तू क्या बतायेगी अपने बेटे को, वो खुद ही गलत है ? और मेरे दोस्तों को तूने गुंडा बोला। तुझे तो मैं अभी बताती हूँ। “
मोहन,” मयूरी, तुमने मेरी माँ पर हाथ उठाया। मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा। निकल जा मेरे घर से। “
मयूरी ,” तुम्हें शायद कोई गलतफहमी हो रही है मिस्टर मोहन। ये घर तो कब का मेरे नाम हो चुका है यानी कि सुहाना के नाम ? निकलोगे तो अब तुम दोनों, माँ और बेटे। “
सतीश,” इन्हें जिंदा मत छोड़ो, मयूरी। इन दोनों माँ बेटे को जान से मारना ही ठीक रहेगा। जिंदा रहकर ये हमारे लिए खतरा बन सकते हैं। 
मैं इन लोगों को साथ ले जाकर दोनों माँ बेटों को खाई से नीचे फेंक देता हूँ। इनकी लाश को पुलिस के कुत्ते भी नहीं ढूंढ पाएँगे। “
मयूरी,” हाँ, ये ठीक रहेगा। इन दोनों का मारना ही सही है। “
आशा,” मोहन, ये सब क्या है ? “
मोहन,” मां, ये मयूरी है। “
आशा,” तो मेरी बहू सुहाना कहां है ? मेरी बहू सुहाना कहाँ चली गयी ? “
मयूरी,” तुम्हारी बहू सुहाना को तो तुम्हारा बेटा कब का जान से मार कर आ चूका है ? गोवा में इसने उसे समुद्र में फेंक दिया था। “
आशा,” मोहन, तुझे बेटा कहने में मुझे शर्म आती है। मैंने तुझे अपनी कोख से जन्म दिया है। तू मेरा बेटा कहलाने लायक नहीं है। “
आशा रोने लगती हैं। सतीश और उसके साथी आशा और मोहन को पकड़कर ले जाने लगते हैं। तभी पुलिस आ जाती है। 
इन्स्पेक्टर,” गिरफ्तार कर लो इन लोगों को। “
इन्स्पेक्टर,” सुहाना जी, आपको डरने की कोई जरूरत नहीं है। हम ने इस नकली बीवी को पकड़ लिया है। “
आशा,” सुहाना, मेरी बहू… तुम जिंदा हो ? ईश्वर का लाख लाख शुक्र है। “
सुहाना,” मां जी, कुछ मछुआरों ने मेरी जान बचाई और मैं जैसे तैसे यहाँ पहुंची। पर मैंने जब मयूरी को मेरी जगह यहाँ देखा तो मैं सीधा पुलिस के पास मदद के लिए गई और इन्हें सारी बात बताई। “
इन्स्पेक्टर,” मोहन जी, आपको भी हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। “
सुहाना,” नहीं इन्स्पेक्टर साहब, जहाज पर मेरा पैर खुद फिसल गया था। इसमें मोहन की कोई गलती नहीं है। आपने मेरी इतनी मदद की, उसके लिए शुक्रिया। आप इन लोगों को ले जा सकते हैं। “
पुलिस मयूरी और सतीश को गिरफ्तार कर लेती है। आशा मोहन से कहती है।
आशा ,” देखा मोहन, आज अगर सुहाना तुम्हारी मदद ना करती तो सब कुछ बर्बाद हो जाता। हमारी जान भी चली जाती। और तुमने इसे जान से मारना चाहा ? “
मोहन,” सुहाना, मुझे माफ़ कर दो। मैं अपनी बुरी आदतों के नशे में सही और गलत का फर्क भूल गया था। “
सुहाना,” नहीं नहीं, आप मुझसे माफ़ी मत मांगिए। जो होना था सो हो गया। आप दुखी मत होइए। मैं आपसे बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ। “

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सुहाना की अच्छाइयों ने सुहाना को जिंदा रखा और उसने अपने परिवार को भी बचा लिया। उस दिन से मोहन भी सुधर जाता है और काम पर जाने लगता है। ये देखकर आशा बहुत खुश होती है और सुहाना को गले से लगा लेती है। 
आज की ये ख़ास और मज़ेदार कहानी आपको कैसी लगी ? नीचे Coment में जरूर बताएं।

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