जादुई कैंची | Jadui Kainchi | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई कैंची  ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
जादुई कैंची | Jadui Kainchi | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

Jadui Kainchi | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

राजा भैरव सिंह एक प्रतापी राजा थे। उनके न्याय और सत्यता की चर्चा पूरे ब्रह्मांड में होती थी। 
उनके राज्य में झूठ बोलने की सजा सिर्फ मौत थी। एक दिन महाराज शाही बगीचे में टहल रहे थे कि अचानक खड़खड़ाने की आवाज सुनाई देती है। 
महाराज,” अरे ! ये बेचारी बत्तख घायल कैसे हो गई ? जिसने किया है, उसे जरूर सजा मिलेगी। “
महाराज,” सैनिको, इस बत्तख को वैद्य के पास ले जाओ। जिसने इसे घायल किया है वो कल दरबार में हाजिर हो। “
राजकुमार,” पिताजी, देखो मुझे क्या मिला है… एक सैनिक की तलवार। मैंने अभी इससे एक बत्तख का शिकार भी किया। “
महाराज,” ओह ! तो वो तुम थे, बेटे। ये एक सैनिक की तलवार है। तुम्हारे पास कैसे आई ? “
राजकुमार,” पिताजी, मुझे ये तलवार अच्छी लगी तो मैंने ये ले ली। ये मेरा राज्य है, यहाँ का सब कुछ मेरा ही तो है। “
सैनिक,” महाराज ! मैं अपनी तलवार के खो जाने की सूचना देने आया हूँ। “
महाराज,” मेरे बेटे ने बिना तुम्हारी अनुमति के तलवार उठाई है, कल दरबार में न्याय होगा। “
एक परी वहीं बाग में अदृश्य रूप में ये सब सुन रही थी। वह राजा से बहुत प्रभावित हुई और अगले दिन रूप बदलकर राजा का न्याय देखने दरबार पहुंची। 
महाराज,” क्या तुमने सैनिक के आदेश के बिना उसकी तलवार ली और बत्तख को घायल किया ? “
राजकुमार,” जी महाराज, मैं इससे खेलना चाहता था लेकिन ये गलत था। मुझे अनुमति लेनी चाहिए थी। “
महाराज,” तुम्हारी सजा सैनिक तय करेगा क्योंकि तुमने इसकी तलवार चुराई है। ये तुमसे कुछ भी मांग सकता है। “
सैनिक,” राजकुमार हमारे देश के होने वाले महाराज हैं। मैं अपने पुत्र के लिए राजकुमार की पक्की दोस्ती चाहता हूँ। “
राजकुमार,” मैं सजा के लिए तैयार हूँ। आज से आपका पुत्र मेरे साथ राजमहल में रहेगा और मेरे गुरु से शिक्षा प्राप्त करेगा। “
महाराज,” उस बत्तख का न्याय करने के लिए तुम क्या कहना चाहते हो राजकुमार ? “
राजकुमार,” उस बत्तख की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी लेता हूँ। आज से वो बत्तक भी मेरे साथ रहेगी। “
सैनिक राजकुमार को माफ़ कर देता है और राजा की जय जयकार होने लगती है। परी परीलोक में इसकी सूचना देती है। 
परी,” माना कि राजा बहुत न्यायप्रिय है। उसने अपने बेटे को भी न्याय के लिए दरबार में बुला लिया। 
लेकिन मैं अपने सौंदर्य के जादू के आगे राजा का न्याय भुला दूंगी। मैंने सुना है पिछले दो वर्षो से उसकी पत्नी अस्वस्थ है। “
रानी परी,” महाराज एक पत्नीव्रता है, उसे तुम्हारे सौंदर्य से कोई भी फरक नहीं पड़ेगा। तुम चाहो तो परीक्षा ले सकती हो। “
परी एक सुन्दर लड़की का रूप बन राजा से मिलती है। 
परी,” महाराज, आप बहुत बड़े ज्ञानी और न्यायप्रिय राजा हैं। सुना है अस्वस्थ होने के बावजूद भी आप अपनी रानी को बहुत प्रेम करते हैं। “
महाराज,” बिलकुल सही सुना है आपने राजकुमारी, मैं अपनी पत्नी को अपनी जान से भी ज्यादा प्रेम करता हूँ और रही न्यायप्रिय होने की बात तो कोई भी राजा सजगता से प्रजा को प्यार करेगा तो सदैव सही न्याय करेगा। “
परी,” इच्छाशक्ति और सजगता की क्या जरूरत है महाराज ? अगर राजा को कोई जादुई शक्ति मिल जाए तो भी तो वो न्याय कर सकता है। “

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महाराज,” जादुई शक्ति…नहीं, मैं ये नहीं मानता। न्याय के लिए किसी भी राजा का प्रजा के साथ प्रेमपूर्ण संबंध होना और सच्ची इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। “
परी,” सचमुच महाराज आप अपनी बातों पर दृढ़ रहने वाले है और किसी भी बात को बिना जाने नहीं मानते। मैं आपसे बहुत प्रभावित हूँ और मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ। “
महाराज,” तुम असीम सुंदरी हो, लेकिन मैं पहले से ही विवाहित हूँ और अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करता हूँ। “
परी,” अपनी पत्नी को मृत्युदंड दे दें। आपकी महारानी पिछले कई सालों से अस्वस्थ चल रही है। 
आपको ऐसी महिला की क्या जरूरत ? मेरे जैसी अपूर्व सुन्दरी आपसे विवाह करना चाहती है। “
महाराज,” तुम्हारी जुबान कैंची की तरह चलती है, इसे संभालो वरना तुम्हें अपनी जुबान से हाथ धोना पड़ेगा।
तुम्हारी इतनी हिम्मत तुम मुझसे मेरी प्रिय पत्नी की हत्या करने को कहो। “
महाराज ,” सैनिको, पकड़ लो इसे और कैद कर दो। “
राजा की बात सुनते ही परी गायब हो जाती है। 
परी,” राजन् ! तुम मेरे रूप से तो नहीं हारे पर हाँ… तुमने मेरी जुबान को कैंची कहा है ना ? 
एक दिन मेरी कैंची से ही सही, मैं तुम्हारी अकड़ को खत्म कर दूंगी। “
कुछ दिन बाद राजा प्रजा का हाल जानने एक गांव से गुजर रहा था कि किसान की झोपड़ी में ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज आ रही थी। उसने झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया। 
महाराज,” अरे भाई ! ज़रा बाहर आओ। तुम्हारे घर से रोने चिल्लाने की आवाज क्यों आ रही है ? क्या कष्ट है ?
मैं तुम्हारे देश का राजा हूँ। ये क्या… तुम्हारे कपड़े जगह जगह से कटे हुए हैं ? “
किसान,” महाराज, मैं कल फसल पकने के बाद फसल काटने के लिए खेत में पहुंचा। मैंने सोचा की काश मुझे कोई ऐसी जादुई चीज़ मिल जाए जो मेरी फसल को तुरंत काट दे। 
अचानक ही मेरे हाथों में सुनहरे रंग की कैंची आ गई और कुछ ही मिनटों में फसल कटके खत्म हो गई। तभी वहाँ पर एक परी आई। 
फ्लैश बैक…
परी,” ये चादुई कैंची है। ये सभी का न्याय करती है और असत्य बोलने वालों के कपड़े काट देती है और कपड़ों को काटकर उन्हें नग्न कर देती है। 
ये मेरी तरफ से राजा को उपहार है। न्याय के लिए राजा को अब दर दर भटकने की प्रजा का सुख, दुख, मनोदशा जानने की जरूरत नहीं। 
कैंची की सहायता से वह न्याय कर सकता है। “
किसान,” महाराज में कैंची लेकर घर आ गया तो मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा। 
पत्नी,” क्यों जी… सुबह के गये अब लौटे हो, इतनी देर कैसे हो गयी ? “
किसान,” मैंने कड़ी मेहनत करके फसल को काटा है। इसकी वजह से मुझे देर हो गयी। “
किसान,” महाराज ! क्योंकि मैंने झूठ बोला तो कैंची ने मेरे सारे वस्त्र काट दिए। उसके बाद जब मैंने अपनी पत्नी से पूछा। “
किसान,” आज सारा दिन क्या किया, खाना खाया या नहीं खाया ? “
पत्नी,” पूरे दिन उपवास रखकर भूखी प्यासी तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। “
किसान उसके ऐसा कहते ही कैंची ने उसके कपड़ों को भी काट दिया और हम दोनों को ये समझ में आ गया कि हम दोनों ही एक दूसरे से झूट बोल रहे थे। 
इसलिए कैंची ने हमारे सत्य को बाहर निकालने के लिए हमारे वस्त्रों को काट दिया। हम चाहते हैं कि आप इस कैंची को स्वीकार करें। ये न्याय करने में आपकी मदद करेगी। “
किसान की बात सुनकर राजा ने किसान से वह जादुई कैंची ले ली और राजमहल की तरफ चल पड़ा। 
एक दिन…
महाराज,” बोलो, क्या शिकायत है ? “
आदमी,” महाराज, ये ग्वाला दूध में पानी मिलाकर देता है। “
महाराज,” सच बताओ, क्या तुमने दूध में पानी मिलाया था ? “
ग्वाला,” नहीं महाराज, मैं इतना पापी नहीं कि दूध में पानी मिलाऊं। “

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आदमी ,” ये व्यक्ति पूरी तरह से झूठ बोल रहा है। “
तभी देखते ही देखते जादुई कैंची ने उस ग्वाला के सारे कपड़े काट दिये।
ग्वाला,” मुझे माफ़ करें सरकार, मुझसे गलती हो गई। आपकी जादुई कैंची ने भरे दरबार में मेरे कपड़े काट दिए। “
अदृश्य रूप में परी यह सब देखकर मन ही मन मुस्कुराने लगी। सब लोग राजा की जय जयकार करने लगे। 
इसी प्रकार अब रोज़ तरह तरह के मुकदमे का फैसला राजा कैंची की सहायता से लेने लगा। अब वो बिना सोचे समझे विचार किये मुकदमे के फैसले के लिए कैंची का मुंह देखता। 
मंत्री,” महाराज, प्रजा का सत्य, सुख, दुख और दर्द जानने के लिए हमें भ्रमण करना चाहिए। “
महाराज,” मंत्री अब हमें इतना कष्ट करने की क्या जरूरत है ? प्रजा का सुख दुख जानने से क्या लाभ ? 
अब मेरी कैंची सबके लिए सही न्याय करती है, इसलिए सब स्वयं ही प्रसन्न होंगे। महाराज ने धीरे धीरे राज़ काज में भाग लेना बिल्कुल ही बंद कर दिया। 
अब वो अपना ज्यादा समय आराम करने में और अय्याशी में बिताने लगा। 
मंत्री,” सेनापति, हमारे महाराज को ये क्या हो गया है ? अब वो राजकाज में बिलकुल भी भाग नहीं लेते। हैं और पूरे दिन आराम करते हैं। “
सेनापति,” महामंत्री, दूसरे राजाओं को महाराज के आलस्य का पता चल गया है। वो हमारे राज्य पर युद्ध करने के लिए अपनी सेना को तैयार कर रहे हैं। हमें महाराज से बात करनी ही होगी। “
सेनापति,” महाराज, अपने सेना में नए सैनिकों की भर्ती करनी है। देश में कोई भी कर देने को तैयार नहीं है। राजकोष खाली होता जा रहा है। 
महाराज, पड़ोसी देश के राजाओं को भी हमारे देश की हालत का पता चल गया है और वो युद्ध करने के लिए तैयारी कर रहे हैं। “
महाराज,” मैं इतना बड़ा, सत्यवादी और न्यायप्रिय राजा हूँ। किसकी हिम्मत जो हम पर युद्ध करे ? 
क्या तुम्हें पता नहीं लोक परलोक हर जगह हमारे राज्य के न्याय का डंका बजा हुआ है ? हमसे टकराने से तो देवता भी घबराते हैं। “
मंत्री,” राजकाज में आपके भाग ना लेने के कारण सारे राज्य में अराजकता फैल गई है। लोग चोरी चकारी कर रहे हैं। कोई किसी हुक्म कानून को नहीं मानता। “
महाराज,” तुम लोग ये कैसी बातें कर रहे हो ? मेरी कैंची प्रजाजनों के साथ सही न्याय कर रही हैं, जिसके कारण सभी लोग खुश हैं। 
राज्य प्रगति कर रहा हैं। तुम लोग भी अपने अपने घरों में बैठकर शांति का जीवन व्यतीत करो। “
ऐसे ही राजा पूरी तरीके से घमंडी और आलसी हो गया। वह रात दिन आराम करता, फिर कैंची की सहायता से अपराधियों को सजा देता। 
परी,” आज लेती हूँ इसकी परीक्षा। देखूं क्या आज भी ये सही न्याय कर पाएगा ? “
परी,” महाराज, आपकी जय हो। मैंने आपके न्याय का बड़ा बखान सुना है, कृपया मुझे न्याय दीजिए।
आपके राज्य के जंगल में इस राक्षस ने मेरे पंखों को पकड़कर तोड़ने की कोशिश की और यहाँ तक कि मेरी जादुई छड़ी भी छीन ली। “
महाराज (मन में),” मुझे न्याय से नहीं, बुद्धि से काम लेना होगा। अगर कैंची ने राक्षस के खिलाफ़ फैसला दिया तो राक्षस हमें हमारे राज्य के साथ खत्म कर सकता है। 
अभ्यास ना होने के कारण हमारे सैनिक भी आलसी हो गए हैं। “
महाराज,” देखो परी, कल महल से बाहर मैदान में सभी लोगों के बीच तुम्हारा और राक्षस का फैसला होगा। “
परी,” ठीक है राजन ! मैं कल मैदान में जरूर उपस्थित हो जाउंगी। “
परी (मन में),” आया बड़ा सत्यवादी… ये राक्षस मेरी ही माया है। अब इसकी सारी सच्चाई सबके सामने आ जाएगी। नीलम परी से टकराना आसान नहीं। “
राक्षस,” सुनो राजन, यदि चाहते हो कि तुम्हारे राज्य में सब कुछ ठीक से चलता रहे तो कल के मुकदमे में मेरी जीत होनी चाहिए। “
महाराज,” परी, राक्षस एक बड़ा ही बलवान और शक्तिशाली आदमी है। उसे भला तुम्हारे पंखों से क्या काम ? 
और वो तो हर काम अपनी शक्ति से खुद ही कर सकता है तो भला वो तुम्हारी जादुई छड़ी लेकर क्या करेगा ? “
राक्षस,” बिलकुल सही और उचित राजन। “
महाराज,” मेरा फैसला ये है कि राक्षस एक सच्चा व्यक्ति है और उसने किसी प्रकार का कोई अपराध नहीं किया। “
परी,” ये अन्याय है। तुम्हे इसका दंड जरूर मिलेगा। “
परी(मन में मुस्कुराते हुए),” मेरी कैंची तेरा न्याय कैसे करती है ? “
महाराज,” बचाओ, बचाओ सेनापति रक्षा करो हमारी। “
परी,” राजन ! ये कैंची कभी नहीं रुकेगी। तुम्हें अपने आलस और ना समझी का फल जरूर मिलेगा। 
ये कैंची मेरी ही माया है। आज के बाद आप या इस गांव का कोई भी इंसान पूरे कपड़े नहीं पहन पाएगा। “
महाराज,” मुझसे बड़ी गलती हो गई, मुझे माफ़ करो। मुझे अपनी बुद्धि से न्याय करना चाहिए था। मेरी प्रजा को बचा लो। “

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राक्षस,” महाराज, मैं भी परी माँ की ही माया हूँ। परी माँ आपके सच और शक्ति की परीक्षा लेना चाहती थी। “
परी,” ठीक है, लेकिन आज के बाद तुमने अगर कभी किसी के साथ गलत किया तो देख लेना, उसका दंड मैं स्वयं तुमको दूंगी।
परी ने अपनी जादुई छड़ी से राक्षस को राजा के राज्य में बहुत दूर भेज दिया और कैंची को लेकर हमेशा के लिए परीलोक वापस चली गयी। 
इसके बाद राजा ने कभी न्याय के लिए किसी की सहायता नहीं ली और राज्य में फिर से अमन कायम हो गया।
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