हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जासूस पति ” यह एक Pati Patni Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story या Majedar Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Jasoos Pati | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales
जासूस पति
एक गांव में दयालचन्द नाम का एक आदमी रहता था। कई महीनों से उसके पास कोई काम नहीं था और इसे उस बात की कोई भी चिंता नहीं थी। वह घर में आराम से बैठकर गप्पे मारता रहता।
एक दिन…
दयालचन्द,” अरे भाग्यवान ! भूक लगी है, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। अरे ! जल्दी से कुछ खाने को दो। “
दयालचन्द की पत्नी,” कहाँ से दूं ? आप कुछ काम करो तब ना। “
दयालचन्द,” मैंने कल थोड़े से चावल देखे थे, वो बना दो। “
दयालचन्द की पत्नी,” वो मैंने खा लिए। आपको कुछ खाना है तो जाओ कमा कर लाओ। आप यूं ही निठल्ले बैठे रहते हो। “
दयालचन्द,” निठल्ला और मैं… अरे ! जब चाहूं काम मिल जाएगा। “
दयालचन्द की पत्नी,” तो करती क्यों नहीं ? अब घर में खाने को कुछ नहीं बचा। “
दयालचन्द घर से बाहर चला गया।
दयालचन्द,” अब थोड़े दिन काम तो करना पड़ेगा। चलो सामने वाली दुकान में पता करता हूँ। “
दयालचन्द,” मुझे कुछ काम मिलेगा ? “
दुकानदार ,” नहीं, दुकान में कोई काम नहीं है। “
दयालचन्द जाने लगा।
दुकानदार,” ओ भाई ! ज़रा सुनो तो। “
मतीराम उसे थोड़ा दूर ले गया।
दुकानदार,” तुमको काम चाहिए ना। मेरा एक काम करोगे ? “
दयालचन्द,” हाँ करूँगा, बताओ क्या काम है ? “
दुकानदार,” जासूसी करनी है। “
दयालचन्द,” जासूसी… किसकी जासूसी ? “
दुकानदार,” मेरी पत्नी कम्मो की। “
दयालचन्द,” पगला गए हो क्या भाई हैं ? तुमको पत्नी की जासूसी करवानी है। “
दुकानदार,” मैं तुमको सब बताता हूँ। मेरी पत्नी कम्मो रोज़ थोड़ी देर के लिए घर से गायब हो जाती है। पूछता हूँ तो गोलमोल जवाब देती है।
घर में बूढ़े माँ बाप है। इसलिए मैं चीखना चिल्लाना नहीं चाहता। तुम पता करो, वो कहाँ जाती है, क्या करती है ? कहीं कुछ गडबड तो नहीं ? “
दयालचन्द,” और जो गडबड हुई तो..? तुम्हारी गृहस्थी का सवाल है। ना ना मैं ये काम नहीं करूँगा। “
दुकानदार,” सोच लो। जितने दिन जासूसी करोगे, रोज़ के ₹10 दूंगा और तुम नहीं तो कोई और यह काम करेगा, समझे..? मुझे क्या पड़ी है ? “
दयालचन्द (मन में),” बात तो सही है। मैं नहीं करूँगा तो ये किसी और आदमी से जासूसी करवाएगा और इतने रुपये…। “
दयालचन्द,” जी, मैं करूँगा जासूसी पर एक दिन के पैसे अभी दे दो। “
दुकानदार,” तुम बस ये काम ईमानदारी से करना और मुझे सब सच सच बताया करना। बताओ ठीक है ? “
दयालचन्द ने हाँ में सिर हिलाया।
घर वापस आ जाने के बाद…
दयालचन्द,” अरे ! सुनती हो ? अरे ! ये लो। “
दयालचन्द की पत्नी,” ये क्या दे रहे हो ? “
दयालचन्द,” अरे भग्यवान ! देखो तो सही। “
दयालचन्द की पत्नी,” इतने रुपये… पकड़ो पकड़ो मुझे कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊं ? “
दयालचन्द,” ना ना… बस बस रुपये ही तो है। तुम बेहोश हो गयी तो ये ₹10 जो है, दवाई में चले जाएंगे। तुम बेहोश मत होना। “
दयालचन्द की पत्नी,” तुम्हें मुझसे ज्यादा अपने ₹10 से प्यार है ? तुम मुझसे शादी क्यों किये, रुपयों से ही कर लेते। “
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दयालचन्द,” अरे ! अभी तो कह रही थी इतने रुपए और अब..। “
दयालचन्द की पत्नी,” आपके हाथ में कभी एक पैसा नहीं देखा, सीधा ₹10 देखे तो चक्कर आ गया।
आपको किसने दिए इतने रुपये ? सुनो… मैं कह रही हूँ अगर साहूकार से ब्याज पे लाये हो ना तो वापस कर दो। क्या करना है ऐसे रुपये का जिसका दोगुना ब्याज देना पड़े ? “
दयालचन्द,” अरे ! नहीं भाग्यवान, ब्याज पर नहीं लाया हूँ ये मेरे हैं। “
दयालचन्द की पत्नी,” हाय राम ! मैं मर गयी। आपके पास आए कहाँ से ? किसकी चोरी की ? अगर किसी ने देख लिया हो तो लोग पकड़ने आते होंगे। मैं कैसे बचाऊंगी ? चलो अब जल्दी छुप जाओ। “
दयालचन्द,” अरे ! कोई क्यों पकड़ेगा ? मैंने कोई चोरी थोड़े ही की है। ये रुपये मेरी मेहनत के हैं। “
दयालचन्द की पत्नी,” ऐसी कौन सी मेहनत की जो थोड़ी देर में इतने रुपये मिल गए ? “
दयालचन्द,” जो काम मुझे मिला है उसमें रोज़ के ₹10 मिलेंगे, रोज़ के हाँ। तुम तो बस नोट गिनो। “
दयालचन्द की पत्नी,” सच्ची में रोज़ के..? विश्वास कर लूँ ? “
दयालचन्द,” तो क्या नहीं करोगी ? “
दयालचन्द की पत्नी,” आप कितने अच्छे हो, पहली कमाई पूरी की पूरी मेरे हाथ में रख दी ? भगवान करे आपका ये काम चल पड़े । “
अगले दिन दयालचन्द कम्मो के घर के बाहर साइकिल पर छिप कर बैठ गया। कम्मो बाहर आयी।
रिक्शावाला,” दीदी, कहाँ रह गयी थी ? आपका इंतजार करते करते धूप में सड़ गया। “
कम्मो,” भैया आज काम ज्यादा था। ये लो। बहुत गर्मी है और जल्दी चलो यहाँ ज्यादा बात करना ठीक नहीं। कहीं हम पर किसी को शक ना हो जाये ? “
कम्मो रिक्शे में बैठ गयी और दयालचन्द साइकिल पर उसका पीछा करने लगा। रिक्शा गांव के बाहर फूस की एक बंद झोंपड़ी के बाहर रुका। कम्मो झोपडी के अंदर चली गई।
रिक्शावाला,” दीदी जल्दी करना, मैं यही आपका इंतजार कर रहा हूँ। “
दयालचन्द अपनी साइकल पर सवार झोंपड़ी के पास जाने लगा।
रिक्शावाला,” ऐ ऐ! वहां कहां जा रहा है ? साइकल झोपड़ी में डालना है क्या ? “
दयालचन्द,” अरे ! नहीं नहीं भैया, आज साइकिल संभल नहीं रही ना, इसलिए थोड़ा टेढ़ा मेढ़ा चल रही है। “
रिक्शावाला,” संभलकर चला करो भैया। कहीं इसके चक्कर में तुम गिर ना जाओ ? “
दयालचन्द मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया। रात को दयालचन्द मतीराम की दुकान में पहुंचा।
मतीराम,” आओ आओ, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। बताओ, क्या पता चला ? “
दयालचन्द,” पता तो बहुत कुछ चला है पर पहले मेरी मजदूरी। “
मतीराम उसे ₹5 देता है।
दयालचन्द,” ये तो बस ₹5 हैं। बाकी के पांच ?”
मतीराम,” पहले बताओ तुमने क्या पता किया ? “
दयालचन्द,” कम्मो भाभी रिक्शा में बैठ के गांव के बाहर एक झोपड़ी है, उसमें गयी और एक घंटा बाद बाहर आकर रिक्शा से घर आ गयी। “
मतीराम,” हाँ, ये तो मुझे भी पता है। “
दयालचन्द,” अब मुझे थोड़े ही पता था कि तुम जानते हो। वो वहाँ किससे मिली, ये आज नहीं पता चला पर…। “
मतीराम,” पर क्या..?बताओ बताओ क्या बात है ? “
दयालचन्द,” भाभी रिक्शे वाले से कह रही थी कि यहाँ से जल्दी चलो। कहीं किसी को शक ना हो जाये ? “
मतीराम,” क्या..? उसने ऐसा कहा ? तुमने ठीक से सुना ? “
दयालचन्द ने हां में गर्दन हिलाई।
दयालचन्द,” हां भाई। “
मतीराम,” कम्मो सच में गडबड कर रही है। ये लो तुम्हारे रुपये और सुनो… मुझे सब पता करके बताओ। “
दयालचन्द,” तुम चिंता मत करो, मैं हूँ ना। “
दयालचन्द खुश होते हुए घर चला गया।
दयालचन्द,” ये लो भाग्यवान, आज की कमाई। “
दयालचन्द की पत्नी (हंसते हुए),” आज भी पूरे ₹10। सुनो जी… मैं इससे कल एक नई साड़ी ले लूं ? “
दयालचन्द,” अरे ! ये भी कोई पूछने की बात है। सब तुम्हारा है। जो मर्जी है लो बस मेरे लिए…। “
दयालचन्द की पत्नी,” मेरे लिए क्या ? “
दयालचन्द,” कल मेरे लिए कटहल की सब्जी बनाना। “
दयालचन्द की पत्नी,” कटहल के साथ हलवा भी बना दूंगी। “
अगले दिन कम्मो अपने बेटे के साथ रिक्शा पर सवार होकर निकली। दयालचन्द साइकिल पर उसका पीछा करने लगा। कम्मो झोपड़ी में गयी।
दयालचन्द ने साइकल थोड़ी दूर खड़ी करके रिक्शेवाले से छिपते हुए खिड़की से झोपड़ी में झांका। उसे केवल कम्मो दिखाई दे रही थी।
दूसरा हिस्सा नहीं दिखाई दे रहा था। कम्मो ने रोते हुए अपने बेटे को आगे किया।
दयालचन्द,” अरे ! कौन है ? दूसरी तरफ दिख नहीं रहा। “
कम्मो ने कुछ रुपए और खाने का डिब्बा आगे बढ़ाया।
दयालचन्द,” खाना और रुपए पर ये ससुरा है कौन ?
दयालचन्द ने गर्दन अंदर डालने की कोशिश की मगर असंतुलित होकर गिर गया। आवाज सुनकर रिक्शेवाला आया। दयालचन्द पत्थर से टकरा गया था।
दयालचन्द (साइकिल उठाकर गाना गाते हुए),” चलो रे बटोहिया…चलो रे बटोहिया, चलो रे। “
दयालचन्द सीधा मतीराम के पास पहुंचा।
मतीराम,” अरे ! ये क्या हाल बना रखा है ? मिट्टी से भरे हो। “
दयालचन्द,” ये हाल तुम्हारे चक्कर में हुआ भैया। सुनो… आज भाभी अपने साथ तुम्हारे बेटे को भी ले गयी थी हाँ। “
मतीराम,” कम्मो मोनू को भी साथ ले गयी ? “
दयालचन्द,” वहाँ उन्होंने खाना और रुपये भी दिए। “
मतीराम,” किसे दिए हैं ? कौन था वो ? तुम जानते हो उसे ? “
दयालचन्द,” मुझे उसका मुँह तो नहीं दिखा पर हाथ… वो हाथ जिसने रुपए लिए वो पक्का आदमी का था। रुपए उसी ने लिए थे। “
मतीराम,” ये सब क्या चल रहा है ? “
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दयालचन्द,” तुम चिंता मत करो। मैं कल और पता करता हूँ। “
दयालचन्द रुपये लेकर वहाँ से चला गया। मातीराम गुस्से में घर गया।
मातीराम,” सुनो, आज तुम फिर दोपहर में कहाँ गयी थी ? “
कम्मो,” तुम भी ना… माँ जी सो रही हैं। ऊंची आवाज में मत बोलो। “
मातीराम,” बात को टालो मत। “
कम्मो,” तुम्हारी फिजूल की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है। बाबूजी के खाने का समय हो गया है। फिर मां जी उठ जाएंगी। तुम घर की शांति भंग मत करो। “
मातीराम,” माँ पापा की वजह से ही चुप रहता हूँ वरना…। “
अगले दिन दुकान में…
मातीराम,” तुम लोग कामचोर हो गए हो। देखते नहीं कितना काम पड़ा है ? कौन करेगा ? जल्दी ग्राहकों को सामान पहुंचाओ। “
नौकर,” मालिक, सामान पैक हो रहा है। आप चिंता मत करो। किसी ग्राहक को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा हाँ। “
मातीराम (मन में),” अरे ! मैं यूं ही इन पर चिल्ला रहा हूँ। ये बेचारे तो अपना काम ठीक से करते हैं। इनको हंसता देखकर मैं चिड़ गया।
ऐसे नहीं चलेगा। आज मैं खुद जाकर देखता हूँ। असलियत क्या है ? आज दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। कम्मो मुझे धोखा दे रही है। “
कम्मो रिक्शे में बैठकर गयी। दयालचन्द भी उसके पीछे साइकिल लेकर निकल पड़ा। रिक्शेवाले ने पीछे मुड़कर देखा तो दयालचन्द इधर उधर देखने लगा।
रिक्शेवाला,” शायद ये आदमी हमारा पीछा कर रहा है। “
कम्मो अंदर झोपड़ी में गयी और दयालचन्द ने छिपकर खिड़की के पास साइकिल लगाई। तभी पीछे से रिक्शेवाला आया और उसे पकड़कर सड़क पर लेकर गया और मारने लगा।
बिरजू (गुजरते हुए),” अरे ! इसे क्यों मार रहे हो ? “
रिक्शेवाला,” तुम जाओ यहाँ से। इसे शर्म नहीं आती, रोज़ रोज़ कम्मो दीदी का पीछा करता है। आज मैं इसे ऐसा सबक सिखाऊंगा की किसी का पीछा करना भूल जाएगा हाँ। तुम बीच में मत पड़ो भैया। “
बिरजू वहाँ से चला गया। रिक्शेवाला और दयालचन्द दोनों लड़ने लगे।
दयालचन्द,” अरे ! तुम दोनों मिलकर जो खिचड़ी पक रहे हो, मुझे पता है। “
रिक्शेवाला,” क्या पता है तुम्हें ? “
और उसे मारने लगा। तभी वहाँ मतीराम आ गया।
मतीराम,” उसे क्यों मार रहा है ? “
रिक्शेवाला,” मारूं ना तो आरती उतारूं ऐसे आदमी की ? “
वह फिर हाथ उठाने लगा।
मतीराम,” खबरदार जो हाथ उठाया तो। “
रिक्शेवाला,” अरे ! तुम हो कौन भैया ? “
दयालचन्द,” तुम इसे नहीं जानते ? ये कम्मो का पति है। इसी ने मुझे उसके पीछे लगाया है। “
तभी कम्मो बाहर आ गयी।
रिक्शेवाला,” मतलब तुम अपनी बीवी की जासूसी करा रहे थे भैया ?”
कम्मो,” आप मेरी जासूसी करा रहे थे ? आपको क्या लगा कि मैं बदचलन हूं ? “
मतीराम,” लगने की क्या बात है ? तुम रोज़ रोज़ यहाँ किससे मिलने आती हो। आखिर हैं कौन अंदर ? “
मतीराम झोपडी के अंदर गया और बाकी सब भी। अंदर एक बूढ़ा आदमी बिस्तर पर पड़ा था।
रिक्शेवाला,” ये मेरे पिता हैं और कम्मो मेरी बहन। “
कम्मो,” मैं भी नहीं जानती थी कि मेरे पिता है। इन्होंने बचपन में मुझे गोद दे दिया था। “
बूढ़ा,” ये क्या हो रहा ? “
कम्मो,” बाबूजी, ये आपके दामाद हैं। “
बूढ़ा,” दामाद जी… दामाद जी आये हैं मुझसे मिलने। आज मेरे सब बाप धुल गए। बेटा मुझे माफ़ करना, मैंने गरीबी के कारण अपने कम्मो को अमीर धनपत को गोद दे दिया था। “
रिक्शेवाला,” बाबूजी आप आराम करो। “
सब बाहर आ गए।
कम्मो,” ये रिक्शेवाले नहीं, मेरे भैया हैं। “
रिक्शेवाला,” बाबूजी को यह बात हमेशा चुभती थी कि उन्होंने अपनी बेटी को खुद नहीं पाला। गरीबी की वजह से गोद दे दिया।
जब उनकी तबियत खराब रहने लगी तो बोले मुझे मेरी बेटी से मिला दें तो मैंने धनपत के पास जाकर कम्मो दीदी का पता लगाया।
मतीराम,” कम्मो, तुमने ये बात मुझसे क्यों छुपाई ? “
कम्मो,” आपके माँ बाबूजी ने आपका विवाह मुझे अमीर घर की लड़की समझकर किया था।
वो और समाज क्या सोचेगा कि मेरे असली पिता गरीब हैं ? भाई रिक्शा चलाता है। मैं डर गयी थी कि कहीं आप मुझे छोड़ ना दें ? “
मतीराम,” तुम भी ना… चलो घर चलो, माँ बाबूजी को मैं समझा दूंगा। अब से तुम्हारे बाबूजी और भाई हमारे साथ रहेंगे। “
दयालचन्द,” चलो काम पूरा हो गया। पूरे ₹50 मिले हैं। इतने रुपए के सामने तो वो मार कुछ भी नहीं थी हाँ। कोई मुझे ₹50 रोज़ दे ना तो भी मैं इतनी मार हंस हंस के खा लूं हाँ। “
दयालचन्द,” भग्यवान, ओ भगवान ! कहां हो ? आज बहुत खुशी का दिन है हाँ। “
वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
दयालचन्द की पत्नी,” हे प्रभु ! ये दिन देखने से पहले मैं मर क्यों नहीं गयी ? मेरा राक्षस पति सौतन के चक्कर काट काट के खुशी मना रहा है। “
दयालचन्द,” तुमने मुझे राक्षस कहा और ये तुम्हारी सौतन… ये कहाँ से आ गयी ? “
बिरजू,” बस करो, अब इतने भोले भी मत बनो। “
बिरजू,” देखा बहन, मैं ना कह रहा था ये तुमको पागल बना रहा है। वहाँ सड़क पर ये पिट रहा था। वो आदमी बोल रहा था रोज़ रोज़ कम्मो का पीछा करता है बदचलन कहीं का…। “
दयालचन्द,” तुमको कुछ नहीं पता। चलो… चलो निकलो यहाँ से फिर दुबारा नहीं आना चलो। “
दयालचन्द की पत्नी,” उसे क्यों भगा रहे हो ? दो पैसे क्या कमाने लग गए, आपकी आवारागर्दी शुरू हो गई ?
मैं सोचती रही ये आदमी दिन भर मेहनत मजदूरी करता है पर आप पराई औरतों का पीछा करते हो। “
वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
दयालचन्द की पत्नी,” हे प्रभु ! मेरा पति नालायक निठल्ला ही अच्छा था। काम के चक्कर में मेरा घर बर्बाद हो गया। भूखी अच्छी थी पर सौतन… मुझसे ये सहन नहीं होगा। “
आसपास के लोग झांककर देखने लगे।
दयालचन्द,” ये तुम लोग ऐसे क्या देख रहे हो ? चलो चलो जाओ यहाँ से। “
बूढ़ा,” तुमने इस भोली भाली औरत के साथ ठीक नहीं किया। “
दयालचन्द,” बाबा, ज्ञान मत दो। मैं अपने आप देख लूँगा। तुम जाओ यहाँ से। “
आदमी,” मुझे समझ नहीं आ रहा इस दयालचन्द में इतनी हिम्मत आई कहाँ से ? “
दयालचन्द,” मैं कह रहा हूँ तुम जाओ। “
दयालचन्द ने दरवाजा बंद कर दिया।
दयालचन्द,” भग्यवान, तुम सुनो तो मैं कम्मो की जासूसी कर रहा था। इसी जासूसी करने के तो पैसे मिले थे। “
दयालचन्द की पत्नी,” झूठ… आप झूठ बोल रहे हो। पोल खुल गई तो जासूसी का बहाना बना रहे हो। आपको क्या पड़ी जो उस कम्मो की जासूसी करने चले ? चलो निकलो यहाँ से। “
दयालचन्द,” अरे ! मैं यहाँ से क्यों जाऊ ? “
दयालचन्द की पत्नी,” जब तक उस कम्मो का भूत सिर पर से नहीं उतरता, आप इस घर में नहीं रहोगे। “
दयालचन्द,” अरे ! सुनो तो… मैं मैं सच कह रहा हूँ। “
दयालचन्द की पत्नी,” सुना नहीं है आपने ? जा रहे हो या मैं चली जाऊं यहाँ से ? “
दयालचन्द,” ये तुम ठीक नहीं कर रही। “
दयालचन्द दरवाजे पर पहुंचा तभी मतीराम और कम्मो आ गए।
दयालचन्द,” अरे ! अच्छा हुआ तुम आ गए। तुम्हारी वजह से मेरे घर में कोहराम मच गया है। ये मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है। तुम इसे सच बताओ। “
मतीराम,” बहन, दयालचन्द बहुत अच्छा इंसान है। इसने मेरे कहने पर ही कम्मो की जासूसी की। “
कम्मो,” जो बात मैं इन्हें चाहकर भी नहीं बता पा रही थी, वो आपकी वजह से पता चल गयी और आज हम सब साथ हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। “
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मतीराम,” दयालचन्द, तुम कल से दुकान में मेरे साथ काम करना। भाई तुमने मेरा घर बचाया है वरना मैं शक के चक्कर में सब बर्बाद कर देता। “
कम्मो,” ये कपड़े तुम दोनों के लिए हमारी ओर से उपहार है। ना मत कहना। “
दयालचन्द,” तुम लोग भी खुश रहो। “
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