हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – दवाखाना। यह एक Ghost Story है। तो अगर आपको भी Darawani Kahaniya, Bhutiya Kahani या Horror Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Davakhana | Horror Story | Bhutiya Kahani | Dayan Ki Kahani | Haunted Stories in Hindi
दवाखाना
मैं,” कितनी बकवास जगह..? ना बिजली का ठिकाना और न ही ठंग के इक्वमेंट्स। कसम से पूछता रहा हूं।
मैं तो कहता हूं तुम भी इधर ही आ जाओ। काम में ना सही कम से कम तुम्हें देखकर ही अपना टाइम पास करता रहूँगा। “
मैं अपनी पत्नी शालिनी से बातें करता, शाम के सफ़र को रात की मंजिल तक पहुँचाना, यही मेरा काम था। दिन भर बैठकर मक्खियाँ मारना और रात को अपनी पत्नी से बातें करना।
मैं पेशे से सरकारी डॉक्टर हूँ और शहर से मेरा तबादला इस फालतू के गाँव में इसलिए हुआ क्यूँकि मैं सरकारी दवाइयों की चोरी करता हुआ पकड़ा गया था।
बात वैसे सच्ची थी। एक सरकारी डॉक्टर को मिलता ही कितना था। 16-16 घंटे काम और तनखा हथेली भर।
वैसे दवाइयों की चोरी में मैं अकेला गुनेहगार नहीं था। पर मेरे से ऊपर जो बड़े डॉक्टर बैठे थे, उनकी नज़र में मैं छोटा आदमी था। इसीलिए गुनेहगार सिर्फ मैं ही बना।
पर अभी केस चल रहा है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो शायद फिर से वापस मुझे कलकत्ता बुला लें। मगर मामला ठंडा होने तक मुझे से गाँव में सडना है।
हफ्ते बीत गए मगर एक मरीज यहाँ झांकने तक नहीं आया। आस पास पूछ जब खबर ली तो पता लगा कि यहां लोग आयुर्वेदिक दवाइयों को ज्यादा मानते हैं।
मेरे लिए तो सब अच्छा ही था। खामखां टेंशन कौन पाले ?
ऐसे ही एक रात मैं अपनी पत्नी शालिनी से बात करके क्लिनिक में ही सोने वाला था। कि तभी अचानक क्लीनिक का फोन बजा। फोन की आवाज़ सुन मैं चौक गया।
मैं,” क्लिनिक का फ़ोन चलता है ? अगर पहले पता होता तो मैं दिन भर अपने फोन का बिल क्यों बढ़ाता ?
खुद से कहता हूँ फ़ोन उठाने जा ही रहा था कि तभी फ़ोन कट गया।
मैं,” अच्छा हुआ कि कट गया मैं तो उठा ही था काटने के लिए। अब इतनी रात को बाहर कौन जाए ? “
खुद से बड़बड़ाता हुआ मैं वापस कुर्सी पर सोने चल दिया। तभी फोन फिर से बज उठा।
मैंने पहले ही सोच लिया था कि फ़ोन उठाते ही पहले मैं भरपेट गाली दूंगा, फिर बिना कुछ सुने फ़ोन काट दूंगा। इस बार भी मेरे फोन उठाने से पहले ही फ़ोन कट गया।
रात गहरी हो चुकी थी। इसलिए मैंने इस बीमारी का हल पहले ही ढूंढ लिया। मैंने तुरंत ही फोन की तार काट दी और वापस अपनी कुर्सी की ओर चल पड़ा।
मगर इससे पहले मैं चैन से बैठ पाता, फ़ोन फिर से बजने लगा और एक बार फ़ोन की घंटी के साथ मेरे बदन का रोम रोम सिहर उठा।
मुझे अब किसी अनहोनी का अहसास होने लगा था। मैं वापस एक बार फिर फ़ोन की ओर बढ़ा। जब मैंने फ़ोन उठाकर देखा तो तार लगी पड़ी थी।
मैं,” ये कैसे मुमकिन था ? अभी 1 मिनट पहले तो मैंने फ़ोन की तार निकाली थी और मेरे अलावा पूरे क्लीनिक पर कोई था भी नहीं। फिर ये खुद वापस कैसे जुड़ सकती है। “
इस वक्त मेरे मन को बस यही सवाल आ रहा था। इससे पहले इस बार भी फ़ोन काटता, मैंने तुरंत फोन उठा लिया।
मैं,” कौन है ? अरे ! जब बात ही नहीं करनी होती तो फ़ोन क्यूँ करते हो आप लोग ? टाइम देखा है ? सो जाओ आराम से। “
मैंने बिना सामने वाले की बात सुनकर फ़ोन वापस रख दिया। लेकिन इस बार मैं कुर्सी की तरफ नहीं गया, वहीं फ़ोन के पास खड़ा रहा।
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मुझे यकीन था कि फ़ोन वापस से आएगा, लेकिन ये मेरा वहम था। लगभग आधे घंटे नींद में फ़ोन के पास ही खड़ा रहा। पर फ़ोन से चूं की आवाज भी नहीं निकली।
अब जब मुझे मेरी नींद पर काबू नहीं रहा तो मैंने टेलीफोन का तार निकाल और टेलीफोन से उसका रिसीवर भी अलग कर के वापस कुर्सी पर सोने चल दिया।
रात अब अपने उफान पर थी और मैं सपनों में अपनी पत्नी के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था कि एक बार फिर टेलीफोन बजा, जिसकी आवाज सुन मैं आग बबूला फ़ोन के पास गया तो देखा फ़ोन का रिसीवर उसके ऊपर रखा है और तार वापस जुड़ी हुई है।
सच कहूँ तो मुझे डर बहुत लग रहा था जिसे मैंने अपने गुस्से में बदला और टेलीफोन उठाकर जमीन पर जोर से पटक दिया।
जमीन पर लगते ही टेलीफोन के सौ टुकड़े हो गए थे। इस पर भी जब मेरा पेट नहीं भरा तो मैंने टेलीफोन का तार लिया और उसके भी टुकड़े टुकड़े कर दिए।
मेरी आँखें तो टेलीफ़ोन के टुकड़े ही देख रही थी पर मेरा दिल कह रहा था कि हो न हो ये फ़ोन फिर जरूर बजेगा।
मैंने टेलीफोन के टुकड़े अपनी गोद में भर बाहर आ गया और उसे पूरे जी जान से जितना दूर फेंक सकता था, फेंक दिया।
फिर वापस डरा सहमा कुर्सी पर बैठा। नींद अब मेरी आँखों से पूरी तरह से ओझल हो चुकी थी।
मैं,” अब तो वो टेलीफोन बज ही नहीं सकता। अब बजने के लिए टेलीफोन होना भी तो चाहिए। “
मन ही मन अपने किए पर खुश होता हुआ मैं वापस से नींद की गोद में जाने लगा था। पर अब मुझे सोना नहीं था।
रात काफी हो चुकी थी तो शालीनी से बात भी नहीं हो सकती थी। इसलिए मैं कोई फालतू सी गेम खेलने लगा। अभी कुछ मिनट गुजरे ही थे कि अचानक फ़ोन की डिस्प्ले और फोन मेरे हाथ में फट गया।
फ़ोन फटने की वजह से मेरे हाथ की उंगलियाँ उधड़ चुकी थीं। खून तो ऐसे बह रहा था जैसे किसी नलके से पानी बह रहा हो।
मैं तुरंत दर्द से तड़पता हुआ अन्दर कैबिन में गया और खुद ही अपना इलाज करने लगा।
मुझे इतना तेज दर्द हो रहा था कि जिसकी कोई इंतिहां नहीं थी मगर मैंने अपना इलाज अभी शुरू ही किया था कि पुरे क्लिनिक की बत्ती गुल हो गई।
चारों तरफ अंधेरा पसर गया।
मैं,” इस बत्ती को भी साला अभी जाना था ? एक मुसीबत खत्म ही होती है कि दूसरी पहले शुरू हो जाती है। पहले दूसरे हाथ का इलाज करूँ या पूरे क्लिनिक में टोर्च ढूंढूं ? “
मैं चीजों को टटोलता हुआ अंधेरे में ही टोर्च ढूंढने के काम में लग गया था। उस वक्त ऐसा लग रहा था कि मैं कल का सूरज नहीं देख पाऊँगा।
क्यूँकि मेरे हाथ से खून रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। पर मेरी जान में जान तब आई जब मुझे टोर्च मिली जिसकी रोशनी में एक बार फिर से मैं अपना इलाज शुरू करने जा रहा था।
तभी कुछ ऐसा हुआ जिसका मुझे डर था। मैं वापस अपने कैबिन में घुसा ही था कि एक बार फिर से मुझे टेलीफ़ोन के बजने की आवाज़ सुनाई दी।
टेलीफ़ोन की आवाज सुन मेरा सारा बदन ठंडा पड़ गया।
इस वक्त मेरे डर की कोई इंतिहा नहीं थी। मैंने तुरंत ही टार्च की रोशनी से क्लीनिक के कोने में देखने लगा।
मेरे हाथ काँप रहे थे। टॉर्च की रौशनी के साथ अपनी नजरें दौड़ाते जा रहा था। मैं खुद से यही सवाल कर रहा था कि क्या सच में यहां किसी भूत पिशाच या चुड़ैल का साया तो नहीं है ?
क्यूँकि मैं डॉक्टर हूँ, किसी भी चमत्कार पर यकीन करने से पहले मैं अपने इलाज पर यकीन रखता हूँ। लेकिन आज इन सब बातों पर यकीन करने का दिल नहीं करता था।
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मैं इसी सोच में डूबा हुआ था और क्लीनिक को गौर से देख ही रहा था कि अचानक से मेरे दिल की थड़कनें थम सी गईं।
मेरी आँखों के ठीक सामने टोर्च की रौशनी में वो टेलीफोन बज रहा था। बिल्कुल सही सलामत जैसे एकदम नया का नया किसी ने लगाया हो।
इस बार मैं फ़ोन उठाने उसके पास नहीं गया, बल्कि वहीं खड़ा देखता रहा। लेकिन इस बार फर्क ये था कि फ़ोन लगातार बजे जा रहा था, जिसकी आवाज सुन मेरा माथा फटने को हो गया था।
अब तो ऐसा लगने लगा जैसे वो टेलीफोन मेरे सर के ऊपर ही बज रहा है, जिस वजह से मुझे चक्कर आने लगे थे। पर इसकी एक वजह और थी, मेरे हाथ से लगातार रिस रहा खून।
मैं,” विनय, फ़ोन को रहने दे बस जल्दी से अपना इलाज कर और क्लिनिक से जिंदा निकाल। यहां जो कुछ भी हो रहा है वो तेरी समझ से बिल्कुल परे है। “
मैं इन शब्दों से खुद में हिम्मत बाँध रहा था। पर जैसे ही मैंने नजरें घुमाईं, वो टेलीफोन ठीक मेरे सामने कैबिन की टेबल पर रखा हुआ था और लगातार बजे ही जा रहा था। मैंने तुरंत ही टेलीफोन का रिसीवर उठा लिया और उठाते ही बोला।
मैं,” मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ। कौन हो तुम ? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो ? मेरा सिर फट रहा है, मैं पागल हो जाऊँगा। हेलो..! अरे ! कुछ तो बोलो। “
मेरे इतना कहने पर भी जब मुझे किसी की आवाज सुनाई नहीं दी, तो मैं तुरंत ही क्लिनिक से बाहर जाने के लिए दौड़ पड़ा। पर क्लिनिक के सारे दरवाजे बंद थे।
यहाँ तक की किसी ने खिडकियों पर भी जाली लगा दी ताकि कोई यहाँ से भाग न सके। मुझे मेरी मौत का डर सताने लगा, जिस डर से मैंने क्लिनिक से बाहर जाने का हर दरवाजा पीटा, गिड़गिड़ाया, चीखा पर मेरी मदद के लिए कोई नहीं आया।
बाहर निकलने की मेरी सारी नाकाम कोशिशों के बाद भी मैं जैसे ही पीछे मुड़ा तो देखा… जमीन पर सैकड़ों एक जैसे टेलीफोन बिछे हुए है।
अचानक सभी एक साथ बजने लगे जिसकी आवाज सुन मैं पागल सा हो गया। मैं पागलों की तरह कभी किसी टेलीफोन को लात मारता तो कभी किसी का हाथ से तार काटता मगर मेरी सारी कोशिशें नाकामयाब रही।
टेलीफोन की आवाज़ सुन मेरा दिमाग फटने को हो गया था। मेरी आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा और कब मैं हमेशा हमेशा के लिए सो गया, पता ही नहीं चला ?
अगली सुबह…
हवलदार,” एक और सुसाइड… पता ही नहीं यहां लोग मरने के लिए क्यों चले आते हैं ? “
हवलदार धनीराम ने इंस्पेक्टर दुश्यंत से पंचनामा बनाते हुए कहा था। हवलदार धनीराम की बात सुन दुश्यंत ने कहा।
दुश्यंत,” तू अब तक नहीं समझा ? कुल मिलाकर ये इस क्लिनिक का तेरहवां सुसाइड है।
जो भी यहां आता है मरने के लिए नहीं आता, बल्कि उसे मरने के लिए भेजा जाता है। जरूर इस पर भी कोई मुकदमा चल रहा होगा। “
धनीराम,” हां सर, इसने डेढ़ सौ करोड़ की सरकारी दवाइयों का घपला किया था। उसी की वजह से तो इसे या ट्रांसफर मिला। “
दुश्यंत,” हवलदार, इसने ने सुसाइड के लिए कौनसा हथियार, यूज किया है ? “
धनीराम,” हथियार मतियार छोड़ो साहब, इसने तो टेलीफोन के तार से अपना गला दबा लिया है।
और इससे पहले जो आया था उसने तो खुद का ही ऑपरेशन कर डाला और उससे पहले वाले ने तो खुद के ही टुकड़े कर डाले थे।
पता नहीं क्या है इस दवाखाने में, जो आता है खुद को मार डालता है ? “
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इस पर इंस्पेक्टर दुश्यंत ने सिगरेट का बड़ा सा गुब्बारा अपने मुंह से निकाल आसमान में लहराते हुए हवलदार से कहा।
दुश्यंत,” धनी, हमें नहीं पता लेकिन जो इनको यहाँ मरने के लिए भेजता है उसको इस दवाखाने के बारे में अच्छे से पता है।
बड़ी सफाई से वो अपना रास्ता साफ़ करता है और अगर तुझे भी जानना है तो तू भी किसी दिन दवाखाने में एक रात रुककर देख। जिंदा रहे तो मुझे भी बतइयो। “
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