बेईमान सेठ | Beimaan Seth | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बेईमान सेठ ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bed Time Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
बेईमान सेठ | Beimaan Seth | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

Beimaan Seth | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

बात आजादी के कुछ समय बाद की है। जब रैना गांव के लोग प्रकृति की गोद में बसे एक सुंदर से गांव में रहते थे और हर तरफ खुशहाली थी। 
प्रकृति से ही उस गांव का पालन पोषण चल रहा था। दूसरी तरफ उस समय बाजार व्यवस्था में मानो लहर टूट पड़ी हो। 
ज्यादा से ज्यादा जंगलों की कटाई हो रही थी ताकि लकड़ी की मांग को पूरा करा जा सके।
मजदूरों का सरदार,” सुनो… अब तुम सब काम पर लग जाओ। ये बहुत बड़ा जंगल है। अगर हम लगे रहेंगे तो ये काम जल्दी खत्म हो जाएगा। “
जग्गी,” ये क्या..? ये सारे लोग हमारे जंगलों में क्या कर रहे हैं ? ऐसा ही रहा तो हमारे सारे पेड़ तो ये काट देंगे। हमें यह बात गांव वालों को बतानी होगी। “
वो तुरंत भाग के गांव चला गया और गांव की आपातकालीन स्थिति में बजने वाली घंटी को बजाने लगा। 
यह घंटी केवल तभी बजाई जाती है जब कोई सूचना कम समय में पूरे गांव को बतानी हो। पूरा गांव पंचायत भवन के सामने इकट्ठा हो गया। लोग आपस में बातचीत करने लगे।
बूढा,” इस समय ऐसी क्या बात है जिसके लिए आपातकालीन घंटी बजानी पड़ी ? “
आदमी,” जरूर कोई जरूरी सूचना होगी। कोई मजाक थोड़े ही ना करेगा। “
आदमी,” जग्गी बेटा, क्या हुआ..? सब ठीक तो है ना ? “
जग्गी,” नहीं दादा जी, गांव के पास वाले जंगलों में कुछ लोग अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई कर रहे। “
औरत,” क्या..? कौन हैं वो लोग ? “
जग्गी,” मुझे नहीं पता भाभी लेकिन वो सब बहुत सारे हैं। हमें उन्हें रोकना चाहिए। चलो सब उन्हें मिलकर रोकें। “
जंगल पहुंचकर…
आदमी,” क्यों भाई, हमारे जंगल को क्यों काट रहे हो ? पेड़ों को काटना बंद करो। चलो जाओ वरना वो हाल करेंगे कि आज के दिन को कोसोगे पूरी जिंदगी भर। “
इसके बाद गांव वाले और वहाँ लकड़ी कटवा रहे कुछ पहलवान बदमाश दोनों आपस में लड़ने लगे। 
गांव वाले उन पहलवानों के सामने नहीं टिक पाए और वो सब छोड़कर गांव की तरफ लौट गए। फिर से आपातकालीन घंटी बजाई गई।
औरत,” आप सब ठीक तो है ना ? ये आप सबको क्या हो गया ? “
आदमी,” उन लोगों ने हमारे साथ मारपीट की। अब हम क्या करें ? उन्होंने तो कई सारे पेड़ काट दिए हैं। “
बूढा,” हमें जमींदार जी के पास जाना चाहिए, हम उनसे विनती करेंगे तो वो हमारी मदद जरूर करेंगे। “
आदमी ,” ठीक कहा चाचा जी आपने। हम सब कल उनके पास जाकर इन सब के बारे में बताएंगे। “
अगली सुबह सभी एक साथ जमींदार के पास पहुंचे।
जमींदार,” आप सब यहाँ..? “
गांव वाले,” प्रणाम जमींदार साहब। “
जमींदार,” प्रणाम ! कहो… कैसे आना हुआ ? “
बूढा,” जमींदार साहब, कुछ पहलवान हमारे गांव के जंगलों को काट रहे हैं। वो बहुत ही ताकतवर हैं। हम अकेले उनका सामना नहीं कर सकते। “

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जमींदार,” आप सब चिंता मत करिए। मैं देख लूँगा उन सबको। “
जमींदार ने कुछ लोगों से कहा।
जमींदार,” जाओ और उन लोगों को पकड़ लो जो हमारे जंगलों को काट रहे हैं। “
जमींदार,” आप सब अब बेफिक्र होकर घर जाईये। मेरे होते हुए फिक्र मत करो। “
आदमी,” आप सब अब चिंता मत करो। जमींदार जी ने कहा है ना… वो सब ठीक कर देंगे। इसलिए अब सब अपनी चिंता त्याग दो। “
उसके बाद सभी अपने कामों में लग गए। एक दिन गांव का एक आदमी जंगल के रास्ते से अपने घर आ ही रहा था कि तभी वो देखता है कि कुछ लोग पेड़ काट रहे हैं। 
वह यह बताने के लिए तेजी से गांव की तरफ भागता है और बिरजू से मिलता है।
बिरजू,” क्या हुआ किशोर भैया ? “
किशोर,” कुछ लोग जंगल को फिर से काट रहे हैं। “
बिरजू,” क्या..? लगता है फिर से जमींदार साहब को बताना होगा। ये लोग ऐसे नहीं सुधरेंगे। “
इसके बाद बिरजू जमींदार साहब के घर पहुंचा।
बिरजू,” प्रणाम जमींदार साहब ! जंगल में फिर से वो लोग पेड़ काट रहे हैं। “
जमींदार,” तुम्हें कैसे पता ? “
बिरजू,” वो आज ही किशोर जंगल के रास्ते घर आया था तब उसने देखा। उसने जैसे ही यह बात मुझे बताई, मैं आपके पास आ गया। “
जमींदार,” मतलब तुमने यह बात किसी को नहीं बताई ? “
बिरजू,” मुझे जैसे ही इन सब के बारे में पता चला, मैं तुरंत आपके पास आ गया। इसलिए किसी को बताने का वक्त ही नहीं मिला। 
आप जल्दी से उन्हें पकड़ लीजिये। मैंने उसे कह दिया है कि वो गांव वालों को ना बताये। वो लोग इस वजह से फिर से चिंता में आ जाएंगे। “
जमींदार,” बहुत अच्छा किया तुमने।
तभी जमींदार अपने एक पहलवान को बुलाता है जिसके हाथ में एक बड़ा सा लठ्ठ होता है। 
जमींदार की बात सुनकर पहलवान बिरजू के पीछे जाकर उसके सिर पर हमला करता है।
जमींदार,” मेरा काम खराब करेगा। सब के सब ध्यान से सुन लो… उस किशोर को गांव में ढूंढो और जहाँ भी मिले उसका भी काम तमाम कर दो। 
जाओ जल्दी, अगर गांव वालों को पता चल गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। अब जाओ यहाँ से। “
बिरजू की पत्नी,” कितना समय हो गया है वो अभी तक आए ही नहीं ? “
बिरजू का बेटा,” क्या हुआ माँ..? पिताजी कहाँ है ? “
बिरजू की पत्नी,” पता नहीं, बेटा। चलो तुम सो जाओ, वो आ जाएंगे। “
अगली सुबह पत्नी उठी और घर में अंदर देखने लगी। वहाँ उसे बिरजू नहीं दिखा। वो गांव के लोगों के पास पूछ्ताछ करने गयी। 
बिरजू की पत्नी,”आपने मिन्टू के पापा को देखा है क्या ? वो कल शाम से घर नहीं लौटे। “
आदमी,” आखिरी बार मैंने उसे किशोर के साथ देखा था। एक बार किशोर से पता करके देख लो। “
बिरजू की पत्नी,” दीदी, किशोर से बात हो सकती है ? “
किशोर की मां,” वो तो कल रात से नहीं लौटा है। मैं कल से उसे ढूंढ रही हूँ। पता नहीं कहाँ चला गया ? “
बिरजू की पत्नी,” दीदी, मुझे किसी ने बताया कि आखिर बार किशोर और मिंटू के पापा साथ में थे। 
मुझे तो डर लग रहा है। उन्होंने कभी भी आज तक ऐसा नहीं किया। जहाँ भी जाते थे मुझे बताके जाते थे। “
किशोर की मां,” मैं कहती हूँ… हमें गांव में सबको बता देना चाहिए। “
बिरजू की पत्नी,” हाँ, मैं अभी सबको यह बता देती हूँ। “
बिरजू की पत्नी मैं एक बार फिर से आपातकालीन घंटी बजाई।
मुखिया,” क्या हुआ बेटी ? ऐसा क्या हो गया कि तुमने हम सब को यहाँ अचानक बुला लिया ? “
बिरजू की पत्नी,” मुखिया जी, कल दिन से मेरे पति और किशोर भैया घर नहीं लौटे हैं। अब शाम होने को आयी है। 
मेरा तो मन बड़ा घबरा रहा है। आप सब उन्हें ढूँढने में मेरी मदद करिए। मुझे पता चला है कि वो आखिर बार किशोर के साथ थे और फिर चले गए लेकिन तब से किशोर और मेरे पति दोनों ही घर नहीं लौटे। “
मुखिया,” तुम चिंता मत करो। हम ढूंढ़ते हैं उन्हें। “

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मुखिया,” सुनो भाई कोतवाल, पता करो दोनों लड़के कहाँ गए, किस किससे मिले… सब पता करो। “
कोतवाल,” जी, मुखिया जी। “
इसके बाद कोतवाल पूरे गांव में बिरजू और किशोर को ढूँढता है लेकिन उसे उनके बारे में कुछ पता नहीं चलता। आखिर में वो जमींदार साहब के घर जाता है।
जमींदार,” अरे कोतवाल जी ! कैसे आना हुआ ? “
कोतवाल,” जमींदार साहब, वो कल से बिरजू और किशोर की कोई खबर नहीं मिल रही। समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ ढूंढे उन्हें ? उनके परिवार वाले बहुत परेशान हैं। “
जमींदार,” हम उनकी कैसे मदद कर सकते हैं ? बताओ..? हमसे जो बन पड़ेगा हम वो करेंगे। “
कोतवाल,” मुझे बस कहना था कि अगर आपने कहीं देखा हो उन्हें तो आप हमें बताएं ताकि पता चल सके कि वो दोनों कहाँ गए हैं ? “
जमींदार,” नहीं कोतवाल जी, हमें कहाँ से उन दोनों की खबर होगी ? हम तो अपने काम में ही इतने उलझे रहते हैं कि हमें तो हमारी खबर ही नहीं रहती तो उन दोनों की खबर कहाँ से होगी भला ? पर अगर कुछ पता चला उन दोनों के बारे में तो जरूर बता देंगे तुम्हें। “
इसके बाद कई दिनों पूरा गांव दोनों को ढूंढता रहा लेकिन उन दोनों का कोई पता नहीं चला। एक दिन पता करते करते जब कोतवाल पास के गांव से उन दोनों की पूछ्ताछ करके जंगल के रास्ते लौट रहा था तभी उसे वो पेड़ों को काटने की आवाज़ सुनाई देती है। 
वह उस आवाज का पीछा करता है। वह पेड़ के पीछे से सब कुछ देखता है और शांति से वहाँ से निकलकर गांव पहुँच जाता है।
कोतवाल,” मुखिया जी, कुछ लोग फिर से जंगल को काट रहे हैं। मैं जब आसपास के गांव से पूछ्ताछ करके जंगल के रास्ते वहाँ से लौट रहा था तभी मैंने उन्हें पेड़ों को काटते देखा इसलिए आप सभी को बताने जल्दी से यहाँ आ गया। “
मुखिया,” बहुत सही काम किया तुमने। चलो अब उन सबको हमें ही वहाँ से हटाना होगा। वो जमींदार तो कभी भी किसी काम का नहीं था… लालची कहीं का। चलो सब। “
आदमी ,” हाँ चलो सब, आज तक केवल हमने इस जंगल से कुछ ना कुछ लिया ही है। आज इसे देने की बारी हमारी है और हम अपना ये कर्तव्य जरूर निभाएंगे। सुनो भाइयों, अब हम सबको एक होना होगा। “
औरत,” आपने ठीक कहा भैया, हम अपने जंगल की रक्षा करेंगे और इन जंगलों को कुछ नहीं होने देंगे। “
धीरे धीरे सबने एक साथ जंगलों को बचाने का फैसला किया और सबके सब जंगल की ओर चल पड़े। 
गांव की सभी लोग एक एक पेड़ से लिपट जाते हैं ताकि किसी भी पेड़ को काटा ना जा सके।
मजदूरों का सरदार,” तुम सब यह क्या कर रहे हो ? निकलो यहाँ से। “
आदमी ,” हम इन पेड़ों को नहीं छोड़ेंगे। “
मजदूरों का सरदार,” तुम सब ऐसे नहीं मानोगे। “
मजदूरों का सरदार,” इन सबको तब तक मारो जब तक ये सब यहाँ से भाग ना जाएं। “
सबने मिलकर उन सब को बहुत मारा। बुरी तरह मार खाने की वजह से कुछ लोगों ने अपने प्राण वही दे दिए।
मजदूरों का सरदार,” लगता है… हमने इन्हें ज्यादा ही मार दिया है। यहाँ से जल्दी चलो नहीं तो अगर किसी ने हमें यहाँ देख लिया तो मुश्किल हो जाएगी। “
पहलवान,” अब हम क्या करें ? अगर हम पकड़े गए तो..? “
मजदूरों का सरदार,” करना क्या है… घर चलो सब। रात को वैसे भी जंगली जानवर आकर इन्हें खा जाएंगे। “
उन सब के जाने के बाद वहां वनदेवी प्रकट हुईं।
वनदेवी,” उठो मेरे बच्चो। “
वनदेवी ने अपने हाथ को एक टहनी में बदला और टहनी ने अचानक से एक फूल का रस निकालकर उन सबके मुँह में थोड़ा थोड़ा डाल दिया। 
वनदेवी,” उठो मेरे बच्चो। “
सबको धीरे धीरे होश आने लगा और घाव भी ठीक होने लगे।
आप कौन हैं देवी ? “
वनदेवी,” मैं वनदेवी हूँ। इन वनों में मेरे प्राण बसते हैं और तुमने अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए मेरे प्राणों के लिए अपने प्राण तक दाव पर लगा दिए। 
अब ये लड़ाई तुम अकेले नहीं लड़ोगे। तुम्हें जब जब प्रकृति की जरूरत होगी, प्रकृति स्वयं ही तुम्हारी मदद करने आ जाएगी। “
उसके बाद वो गायब हो गई। कुछ देर बाद जमींदार और उसके आदमी वहाँ पहुंचे।
जमींदार,” तुमने उन सब को वहाँ क्यों छोड़ा ? अगर किसी को पता चल गया तो खामखां हंगामा खड़ा हो जायेगा। वहाँ पहुंचते ही सब को जलाना है। समझे..? कहाँ छोड़ा था तुमने उन्हें ? “
पहलवान,” बस थोड़ा और आगे। वो सब वहीं पड़े होंगे अगर जंगली जानवरों ने उन्हें नहीं खाया होगा तो। “
वो सभी थोड़ा और आगे चलते हैं।
पहलवान,” यही जगह थी मालिक। “
जमींदार,” कहाँ है वो सब ? “
पहलवान,” मालिक, लगता है उन सब को जंगली जानवर ले गए। वैसे भी ये जंगल काफी घना है। “
जमींदार,” तुम लोगों से कोई काम पूरा नहीं किया जाता। खैर जो भी हो… अभी इस अधूरी लकड़ी के काम को पूरा करते हैं।
जल्दी काम शुरू करो और ये काम जल्दी खत्म हो जाना चाहिए। “
पहलवान ने कुल्हाड़ी से जैसे ही पेड़ काटना शुरू किया।
वनदेवी द्वारा जीवित किए हुए सभी लोग वहां पहुंच गए।
राघव,” रुको। “
जमींदार,” तुम सब जिन्दा हो ? मार दो इन्हें। “
राघव,” हमें तो पहले ही समझ जाना चाहिए था कि इन सबके पीछे कौन हो सकता है ? तुमसे बड़ा लालची यहाँ और कौन है ? 
सब सोचते रहे कि तुम हमारी मदद करोगे लेकिन तुमने हमारे साथ ही धोखा किया। “
जमींदार,” तुम सब तो मूर्ख हो। तुम्हें क्या पता इन सबसे कितना फायदा होता है ? तुम तो गरीब केगरीब मरोगे लेकिन मैं तुम लोगों जैसा मूर्ख नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि पैसे कैसे कमाते हैं ?
समझे..? “
जमींदार,” मार दो इन्हें, कोई बच नहीं पाए। “
पहलवान ने जैसे ही कुल्हाड़ी से उन लोगों पर प्रहार किया, पेड़ की टहनियां ने आकर उसे जकड़ लिया।
जमींदार,” ये क्या हो रहा है ? मारो उसे फिर से। “
इस बार पेड़ की टहनियों ने जमींदार को भी जकड़ लिया।
जमींदार,” छोड़ो मुझे। ये क्या हो रहा है, मेरी समझ से बाहर है ? ये पेड़ भला हमें कैसे जकड़ रहे हैं ? “
राघव,” क्यों छोड़ें तुम्हें, बताओ..? तुमने छोड़ा इन जंगलों को ? तुम्हारे आदमियों ने एक बार भी नहीं सोचा इन जंगलों और हमें मारने से पहले कि घर पर हमारे माँ, बाप, पत्नी और बच्चे हमारी राह देख रहे होंगे। “
जमींदार,” अरे राघव ! मुझे बचा लो। मैं तुम्हें बहुत सारा धन दूंगा… हाँ जितना तुम कहो उतना। “
राघव,” पहले सच बताओ कि बिरजू और किशोर कहां हैं ? “
जमींदार,” अरे ! वो… वो मैंने लालच में आकर उन्हें मार दिया है। मुझे माफ़ कर दो। “
बिरजू की पत्नी,” क्या..? ऐसा नहीं हो सकता। वो तो बस वनों की रक्षा करना चाहते थे, उन्हें ऐसा दंड क्यों ? “

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राघव,” हे वनदेवी ! यही हैं आपके अपराधी। आपको जो ठीक लगे, आप वो कीजिये। “
जमींदार,” मुझे छोड़कर मत जाओ। “
राघव,” आज से आप हमेशा सुरक्षित रहेंगी, वन देवी।
हमारी आने वाली सारी पीढ़ियां आपकी सदैव सुरक्षा करेंगी। “
इसके बाद से रैनी गांव के लोग वनों की सुरक्षा के लिए हर संभव कार्य करने लगे और लोगों को जागरूक करने लगे ताकि जंगल हमेशा सुरक्षित रह सकें।
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