हैवान | Haiwan | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – हैवान। यह एक Bhutiya Kahani है। तो अगर आपको भी Darawni Kahaniya, Bhoot Ki Kahani या Scary Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

हैवान | Haiwan | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi

Haiwan | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi

 हैवान 

मैं नीलेश और ये कहानी मेरी है। मैं भी कभी आप ही लोगों की तरह एक आम आदमी हुआ करता था। पर आज दुनिया मुझे पागल कहती है। 
जो लोग आते जाते मेरा हाल पूछते थे वही लोग मुझे देखकर पत्थर मारते है, डरकर अपना रास्ता बदल देते हैं। 
ये सब कुछ मेरे एक गलत फैसले की वजह से है जिसे अब मैं चाहकर भी सुधार नहीं सकता। 
एक शाम मैं ऑफिस से घर वापस आ रहा था। अपना मनपसंद गाना गुनगुनाते हुए में रास्ते से गुजर ही रहा था कि अचानक ही रास्ते में मुझे एक साधू मिला। 
साधू,” क्या बात है बेटा…आज बड़े खुश लग रहे हो ? किस बात की इतनी खुशी है ? “
मैंने आज से पहले उस साधू को कभी नहीं देखा था। मैं उसे इग्नोर कर आगे बढ़ा ही था कि तभी उस साधू ने मुझसे कुछ ऐसा कहा जिसे सुन मेरे पैर जम से गए। 
साधू,” शहनाज़ बेहद पसंद है ना तुझे? चिंता मत कर। मेरी बात मानेगा तो वो भी तुझे पसंद करने लगेगी। “
साधू ने मुझे सुनाते हुए कहा।
नीलेश,” पर आप हैं कौन और आपको कैसे पता कि मैं शहनाज को बहुत पसंद करता हूँ ? “
ना चाहते हुए भी शहनाज़ का नाम सुन मैं साधू से बात करने को रुक गया। मुझे इस तरह परेशान देख साधु मुस्कुराते हुए बोला। 
साधू,” अरे नीलेश परेशान क्यों होता है ? मैंने कोई जादू टोना नहीं किया तुम पर बल्कि शहनाज़ के बारे में तो तुम ने ही मुझे बताया है। “
नीलेश,” नहीं नहीं, पर मैंने तो तुमसे कभी बात नहीं करी फिर ये कैसे पॉसिबल है ? “
साधू पर शक तो मुझे शुरू से ही था लेकिन जैसे जैसे वो मुझे मेरे बारे में बताये जा रहा था, मेरी दिलचस्पी उसमें और बढ़ने लगी थी। 
नीलेश,” बाबा, आप कुछ कहते क्यों नहीं ? भला मैंने आपको शहनाज़ के बारे में कब बताया ? “
इस पर साधू बोला। 
साधू,” नीलेश, मैं अक्सर इस रास्ते पर ही बैठा आते जाते लोगों को देखता रहता हूँ और रात होते ही पीछे कब्रिस्तान में जाकर सो जाता हूँ। 
यही मेरी जिंदगी है। और जब से मैंने तुमको खुद से बात करते देखा तो मुझे अच्छा लगा। तुम्हारे चेहरे से ही पता चल रहा था कि तुम किसी के प्यार में हो। 
एक दिन मैंने तुम्हारे मुँह से उस लड़की का नाम भी सुन लिया… शहनाज़। बस इसलिए तुमसे बात करने का मन हुआ क्योंकि मैं जिससे प्यार करता था, उसका नाम भी शहनाज़ ही था। “
साधू की बात सुनकर पहले तो मुझे खुशी हुई। लेकिन जब मैंने उसकी बातों को ध्यान से सुना तो चौंक गया। 
नीलेश,” था… था का क्या मतलब है ? क्या हुआ आपकी शहनाज़ को ? “
मेरे सवाल पर साधू के चेहरे पर दर्द झलकने लगा था। पर उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। बस मेरे कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए बोला। 
साधू,” नीलेश, तुम चिंता मत करो। ये लो सफेद गुलाब और कल तुम इसे अपनी शहनाज़ के बालों में लगा देना और वो तुम्हें तुरंत हाँ कर देगी। “
साधू के हाथों में सफेद गुलाब देख मुझे अजीब तो लगेगा। पर मैं भी अपने एकतरफा प्यार में अंधा हो चुका था। 
इसीलिए ज्यादा कुछ ना सोचते हुए मैंने साधू के हाथ से वो सफेद गुलाब ले लिया और अपने घर आ गया। उस रात मुझे नींद नहीं आयी। 

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मैं बस साधू के दिए सफेद गुलाब में अपनी शहनाज़ को इमेजिन कर रहा था और पूरी रात यही सोच रहा था कि कब शहनाज़ मुझे हाँ बोले और मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँ। 
इन्हीं सपनों को देखते हुए कब मेरी सुबह हुई, मुझे पता ही नहीं चला। शहनाज़ आइ लव यू और फिर वो प्यार से मुझे अपनी बांहों में भर लेगी। 
मैं बस सोच रहा हूँ। शहनाज के हाँ करने के बाद उसे खाने पर ले जाऊं या फिर उससे शॉपिंग के लिए पूछूं ? खुद से कहता हुआ जब मैं ऑफिस पहुंचा, शहनाज मुझे कहीं दिखी नहीं। 
किसी तरह बेचैनी में दिन खत्म हो गया। शाम हो गयी। ऑफिस में सब लोग जा चूके थे पर मैं अभी भी शहनाज़ का इंतजार कर रहा था। 
ऑफिस में ही बैठा था कि अचानक शहनाज़ मेरे सामने आ गई। शहनाज मेरे सामने गले में वरमाला डाले खड़ी थी। उसने मेरे बोस से ही शादी कर ली थी। 
सच कहूं तो तो दिल टूटना किसे कहते हैं, मैंने तब महसूस किया था ? उस वक्त मैं जिस मंजर से गुजर रहा था, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। 
मन तो कर रहा था कहीं भाग जाऊं। सब कुछ छोड़ दूं। कि तभी शहनाज़ ने मुझे गले लगाते हुए कहा।
शहनाज़,” नीलेश, मैं तुमको सब कुछ बताने ही वाली थी पर सब कुछ इतना जल्दी हो गया कि मुझे मौका ही नहीं मिला। “
शहराज अभी बोल ही रही थी कि उसने मेरे हाथ में साधू का दिया हुआ वो सफेद गुलाब देख लिया। 
शहनाज़,” अरे वाह ! तुम सच में मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। मेरे लिए सफेद गुलाब लाये हो ? ये मेरी फेवरेट है। लाओ इसे मुझे दो। मैं इसे अपने बालों में लगा लेती हूँ। “
शहनाज़ ने यह कहते हुए मेरे हाथों से वो गुलाब लेकर अपने बालों में लगा लिया। गुलाब लगाते ही उसकी आँखों में क्या हुआ ? 
उसकी आंखें एकदम लाल हो गई। मैं ये देखकर चौंका जरूर पर अगले ही पल अपना वहम समझकर नज़रअन्दाज़ भी कर दिया। वो गुलाब लगाते ही वो पूरी बदल सी गई। 
वो खुद को शीशे में देख हंसे जा रही थी। जैसे कि पूरानी आत्मा को कोई नया शरीर मिल गया हो। एक पल को मैंने देखा कि शहनाज़ अंधेरे में किसी से बात कर रही है। 
शहनाज़ (शीशे में देखकर),” लो मैं आ गई। क्या खूबसूरत जिस्म ढूंढा है तुमने ? इस बार कसम से दिल खुश हो गया। जल्दी तेरे पास आती हूं तुझे भी खुश करने। “
नीलेश,” ये अंधेरे में किससे बातें कर रही हो तुम ? “
मैंने शहनाज़ से कहा पर उसने मुझे ऐसे देखा जैसे वो मुझे जानती ही नहीं। वो बिना मुझसे कुछ कहे ऑफिस के बाहर चल दी। 
नीलेश,” शहनाज़, सुनो तो… इतनी रात में कहाँ जा रही हो ? तुम्हारा पति तुम्हारा इंतजार कर रहा है शहनाज़… शहनाज़। 
मैं उसको पुकारता हुआ उसके पीछे चल रहा था। पर मेरे इतने बुलाने पर भी उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
मेरे मन को किसी अनहोनी का डर सता रहा था। और तभी मैंने देखा शहनाज़ एक कब्रिस्तान के अंदर जा रही है। 
नीलेश,” ये कब्रिस्तान… ये कब्रिस्तान तो वही कब्रिस्तान है जिसमें वो साधू रहता है। “
मैं खुद से कह ही रहा था कि तभी मुझे किसी के मंत्रोच्चारण की आवाज सुनाई दी। कब्रिस्तान उन्हीं मंत्रों की दिशा में जिंदा लाश बने चली जा रही थी। 
मैं एक कब्र के पीछे छिपा बैठा ये सब देख रहा था। इससे पहले मैं कुछ समझ पाता, मैंने देखा कि एक साधू हवन कुंड में कुछ मंत्र पढता हुआ अपने खून की आहुति दे रहा है। 
साधु मंत्र पढ़ ही रहा था कि तभी उसने अपनी एक आंख खोलकर देखा कि शहनाज़ उसके सामने खड़ी है। शहनाज़ को देख साधू के चेहरे पर मुस्कान उमड़ पड़ी थी। अब मुझे सब कुछ साफ साफ समझ में आ चुका था। 
नीलेश,” अच्छा तो इस साधु ने सफेद गुलाब पर काला जादू किया हुआ था। “
तभी शहनाज़ उसके पास आयी है। मैं खुद से कह ही रहा था कि तभी साधू ने शहनाज़ को अपने पास आने का इशारा किया। शहनाज़ भी एक सीध में साधू के पास जाने लगी। मैंने चिल्लाते हुए साधु से कहा।
 नीलेश,” तो इस साजिश के पीछे तेरा हाथ है और तूने जो कुछ भी कहा वो सब झूठ था ? “
साधू मुझे गुस्से में देख मुस्कुराने लगा और हवन कुंड में फिर से अपने खून की आहुति डालते हुए बोला। 
साधू,” इस संसार में प्यार जैसा कुछ नहीं होता। ये सब सिर्फ एक कल्पना है और कुछ नहीं। अगर इस संसार में कुछ वास्तविक है तो वो है वासना… सिर्फ और सिर्फ वासना। 
और हाँ… मैंने तेरे से जो कुछ भी कहा था वो सब झूठ था बिल्कुल तेरे एकतरफा प्यार की तरह। अभी तो मैं तेरी आँखों के सामने ही तेरे प्यार को तार तार करने वाला हूं। “
इतना कहकर साधू ने शहनाज़ को अपनी बांहों में भर लिया। ये देख मेरे पूरे बदन में आग लग गई। 
साधू ने जिस हवन कुंड में अपने खून आहूति थी उसी हवन में से दो साधू और निकले जो मुझे पकड़कर मेरा गला दबाने लगे। मैं अपनी आखिरी सांस के लिए भी साधू के बहरूपियों से लड़ रहा था। 
तभी मैंने देखा साधू शहनाज़ को अपनी गोद में बिठाकर उसके गालों को छू रहा है और उसके जिस्म को सहला रहा। ये वो पल था जब मुझे मेरे किये पर शर्मिंदगी होने लगी थी क्योंकि शहनाज के साथ जो भी कुछ हो रहा था, उसकी वजह मैं था। 

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उस बेचारी को तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। मैं साधू के सामने खूब गिड़गिड़ाया।
नीलेश,” अरे ! क्या बिगाड़ा है इसने तेरा ? मैं तेरे हाथ जोड़ता हूँ। “
मैं उससे शहनाज़ की भीख मांग रहा था। पर साधू ने मेरी एक ना सुनी। 
वो साधू अब शहनाज़ के जिस्म से कपड़े नोंचने लगा था, जो मुझे किसी हाल में बर्दाश्त नहीं था। जिन साधुओं के बहरूपियों ने मुझे दबोंच रखा था, मैं उन सबको अपने साथ घसीटता हुआ हवन कुंड की ओर बढ़ने लगा। 
शहनाज़ भी उस असली साधू की बाहों में किसी जिंदा लाश की तरह पड़ी हुई थी जिसे वो साधू चूमने जा रहा था कि तभी मैं हवन कुंड के पास पहुंचा और उस हवन कुंड को एक लात मारकर उसे दूर फेंक दिया जिससे उसकी आग जमीन पर फैलकर बुझ गयी। आग के खत्म होते ही बहरूपिये हवा में लुप्त हो गए। 
साधू,” दुष्ट, ये क्या किया तुने ? तूने हवन कुंड की आग को ही फेंक दिया। तुझे पता भी है, तुने कितना बड़ा अनर्थ किया है ? “
साधू मुझ पर चिल्लाता हुआ हाथ में चाकू लिये मेरी तरफ आ ही रहा था। मैं भी साधू को अपनी तरफ आता देख तैयार हो गया। 
उसके आते ही मैंने उस पर लातों और घूसों की बरसात कर दी।उसके मुँह से खून निकलने लगा। 
मैंने उस साधू के जिस्म की कितनी हड्डियाँ तोड़ी, ये मुझे खुद नहीं मालूम। मुझे तो होश तब आया जब मेरे सामने वो गिड़गिड़ाने लगा और अपनी जान की भीख मांगने लगा।
साधू,” नीलेश, मुझे माफ़ कर दे, माफ कर दे मुझे। “
पर इतने पर भी मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ और मैं गुस्से से उसका गला दबाकर उसे जान से मारने ही वाला था कि तभी मुझे शहनाज़ की आवाज सुनाई। 
शहनाज़,” नीलेश, नीलेश…। “
शहनाज़ अपने हाथ में साधू का चाकू लिये मेरे पीछे ही खड़ी थी। हवन कुंड की अग्नि के बुझते ही सफेद गुलाब पर किया हुआ काला जादू भी खत्म हो गया और शहनाज़ भी होश में आ गई। 
उसने जब अपनी हालत देखी तो अगले ही पल से सब कुछ समझ आ गया था। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। उसकी आँखों में आंसू थे। 
शहनाज़,” नीलेश, तुमने मुझे बर्बाद कर दिया। मैं तो तुम्हें एक अच्छा दोस्त समझती थी पर तुम तो हैवान निकले। तुमने मेरा घर बसने से पहले ही उजाड़ दिया। 
नीलेश, मेरी नई नई शादी हुई थी। मैंने अपना परिवार बसाने के सपने देखे थे और तुमने सब कुछ बर्बाद कर दिया… सब बर्बाद कर दिया। तुम मेरे दोस्त नहीं दुश्मन हो दुश्मन। “
शहनाज़ की ये बात मुझे चुभ गयी थी। जिसके प्यार के लिए मैं तरस रहा था, उसी प्यार की नजरों में आज मैं एक हैवान बन चुका था। 
यह सब मेरे गलत फैसले के कारण हुआ था। मैं जान चुका था कि जो गलती मैं कर चुका हूं, उसे मैं चाहकर भी नहीं सुधार सकता। 
फिर भी मैंने कोशिश की और शहनाज़ को पूरी बात बताने के लिए उसकी तरफ बढ़ा ही था कि तभी शहनाज़ ने मुझे चाकू दिखाते हुए कहा।
शहनाज़,” रुक जा हैवान। मुझे गंदा करने के बाद भी तेरा मन नहीं भरा जो तू फिर से मेरे करीब आना चाहता है। 
खबरदार… अगर एक कदम भी मेरी तरफ बढ़ाया तो। मैं मर जाऊंगी पर तुझे खुद को छूने नहीं दूंगी। “
नीलेश,” नहीं शहनाज़, तुम गलत समझ रही हो। एक बार मेरी बात तो सुनो। “
ये मेरे आखिरी शब्द थे जो शहनाज ने सुने थे। मैं उसे समझाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि शहनाज़ ने मुझे अपनी तरफ आता देख आत्महत्या कर ली। 
अपने हाथ में लिये चाकू को उसने अपने पेट में घुसा दिया और दर्द के मारे तड़पने लगी। 
नीलेश,” शहनाज़, ये तुमने क्या किया ? क्यों मुझे इतनी बड़ी सजा दे रही हो ? शहनाज़, मेरी बात तो सुनो। “
 मैं शहनाज़ को संभालने उसकी तरफ बढ़ा ही था पर उसने मुझे खुद को छूने से भी रोक दिया था। 
शहनाज़,” नीलेश, खबरदार अगर तुमने मुझे छुआ भी। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी परछाई भी मुझ पर पड़े। तुम एक हैवान हो हैवान। मुझे शर्म आती है कि मैंने तुम्हें कभी अपना दोस्त समझा था। “
इतना कहकर शहनाज़ मेरी आँखों के सामने मर गयी। मेरे प्यार ने मेरी आँखों के सामने ही अपना दम तोड़ लिया जिसकी वजह मैं खुद था। 
शहनाज़ की वो आखरी बातें मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया और दिमागी संतुलन खो बैठा। लोग मुझे देखकर डरते हैं, दूर भागते हैं, मुझे पत्थर मारते है। 

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पर मैं इसी कब्रिस्तान में अपने प्यार, अपनी शहनाज़ की कब्र के पास पड़ा रहता हूँ। उसकी कब्र को छूता नहीं हूं। उसे अच्छा नहीं लगता। 
बस दिन रात उससे माफी मांगता रहता हूँ। इस उम्मीद में कि शायद किसी रोज़ वो मुझे माफ़ कर देगी। 
खुद को याद दिलाता हूँ कि मैं एक हैवान हूँ… सिर्फ एक हैवान जिसने अपने ही प्यार को तबाह कर दिया।
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