कंजूस सास | Kanjoos Saas | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Saas Bahu Ki Kahani | Saas Bahu Story

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” कंजूस सास ” यह एक Saas Bahu Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
कंजूस सास | Kanjoos Saas | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Saas Bahu Ki Kahani | Saas Bahu Story

Kanjoos Saas | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Saas Bahu Ki Kahani | Saas Bahu Story

 कंजूस सास 

बलियापुर नामक गांव में स्वर्णी नाम की औरत रहा करती थी। उनके दोनों बेटे शहर में जाकर काम करा करते थे। बड़ी बहू का नाम प्रतिभा और छोटी बहू का नाम सुनैना था। 
स्वर्णी और प्रतिभा हमेशा सुनैना को तंग किया करती थीं क्योंकि उनके छोटे बेटे ने सुनैना से शादी अपनी पसंद से की थी और सुनैना एक साधारण से परिवार से थी।
एक बार बड़ी बहू के हाथ से सास का चश्मा टूट गया है। 
प्रतिभा,” ये क्या कर दिया मैंने ? ये तो मां जी कल ही बनवाकर लाई थीं। उनको को पता चलेगा तो बहुत गुस्सा होंगी। क्या करूँ, क्या करूँ ? “
प्रतिभा बाहर काम कर रही सुनैना के पास गई और कहा। 
प्रतिभा,” सुनैना सुनो, माँ जी के कमरे से झूठे बर्तन ले आओ। “
सुनैना,” ठीक है दीदी, अभी ये लायी। “
सुनैना जैसे ही माँ जी के कमरे में गई तो उसने देखा कि चश्मा नीचे टूटा हुआ है। उसने चश्मा उठाया ही था। तब तक प्रतिभा मां जी को लेकर वहाँ पहुँच गई। 
प्रतिभा,” हे भगवान ! मां जी का चश्मा तोड़ दिया। माँ जी कल ही इसे बनवाकर लायी थीं। ये क्या किया तुने सुनैना ? कोई काम ध्यान से नहीं करती हो तुम, कितना नुकसान कर दिया। “
स्वर्णी,” ये क्या कर दिया तुने ? जब से आई है नुकसान पे नुकसान किये जा रही है। 
एक तो घर से खाली हाथ आ गयी और जो अब मेरे घर में बचा है, वो भी तोड़ना चाहती है। “
सुनैना,” मां जी, ये मैंने नहीं किया है। प्रतिभा दीदी ने मुझे बर्तन देने भेजा था तो मैंने देखा की चश्मा टूटा हुआ नीचे गिरा है। “
प्रतिभा,” तू क्या कहना चाहती कि मैंने तोड़ा है ? “
सुनैना,” नहीं दीदी, मैं तो मां जी को बता रही थी कि मैंने नहीं किया। “
यहाँ प्रतिभा रोने की एक्टिंग करके दिखाती है। 
प्रतिभा,” मेरी किस्मत… देखो ना माँ जी आपने देखा ना, आपके सामने मुझे गलत बना रही है। “
सुनैना,” नहीं दीदी, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। “
प्रतिभा,” चुप रहो तुम, एक तो नुकसान करती हो ऊपर से झूठ भी बोलती हो। “
स्वर्णी,” जाओ मेरे सामने से और दुबारा मत आना जब तक घर का सारा काम ना खत्म हो जाये। समझी..? उसके बाद तुम जंगल चली जाना, वहाँ से लकड़ियां काटकर ले आना। “
प्रतिभा,” जंगल चली जाईयो समय से। समझ गयी..? “
सुनैना,” लेकिन दीदी, इन सब कामों को करने में ही शाम हो जाएगी। इतनी जल्दी ये सब कैसे करूंगी ? “
प्रतिभा,” मुझे क्या पता ? मां जी ने बोल दिया सो बोल दिया। समझ गयी..? 
सुनैना,” मां जी। “
स्वर्णी,” प्रतिभा ने क्या कहा, समझ नहीं आया ? “
सुनैना,” ठीक है मां जी, जाती हूं। “
बेचारी सुनैना उदास मन से वहाँ से चली जाती। है। 

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स्वर्णी,” भगवान करे, जंगल से वापस ही ना आये। मैं अपने बेटे की किसी अच्छे घर में शादी कर दूंगी और दहेज में बहुत सारे गहने और रुपये भी ले लूँगी। “
ये सब सुनैना ने सुन लिया। 
प्रतिभा,” माँ जी, मेरे लिए भी एक सोने का हार ले लेना। आखिरकार मैं इस घर की बड़ी बहू हूं। “
स्वर्णी,” ठीक है। कजाओ अब मेरे लिए कुछ बढ़िया सा खाने को ले आओ। “
प्रतिभा,” जी माँ जी, अभी लेकर आयी। “
प्रतिभा वहाँ से चली गयी। 
स्वर्णी,” अब बस इस सुनैना को इस दुनिया से मिटाना होगा। एक बार ये काम हो जाये, मैं पंडितों को जी भर के खाना खिलाऊंगी। “
सुनैना काम करते करते रोने लगी। 
सुनैना,” मैं ऐसा क्या करूँ जिससे माँ जी मेरे बारे में ये सब सोचना बंद कर दें ? हे भगवान ! मुझ पर अपनी कृपा करो। मैं ये सब बहुत ज्यादा नहीं सह पाऊंगी। “
सारा काम करने के बाद सुनैना अपने साथ खाने के लिए चार रोटी और थोड़ी सब्जी बांध के जंगल ले गई। सुनैना जंगल में लकड़ी काटने लगती है।
उसने लकड़ी का एक गठ्ठा बनाया और छांव में बैठ गई। तब उसके थैले से रोटी का डिब्बा नीचे गिर गया। 
सुनैना,” अरे ! मैं तो खाना ही भूल गई। लोग काम भूल जाते हैं और मैं आके खाना ही भूल गयी। क्या करूँ अपना..? अब बस जल्दी घर चली जाती हूँ।
इसे खाऊं या नहीं ? ऐसा करती हूँ, खा ही लेती हूँ। वैसे भी सुबह से कुछ खाया नहीं फिर रात का खाना भी तो बनाना पड़ेगा। “
सुनैना बैठकर खाना खाने ही वाली होती है कि तभी वहाँ पर एक बकरी उसके सामने आकर बैठ जाती। 
सुनैना,” तुझे भूख लगी है ? आ जा तू भी खा ले। “
वह एक रोटी बकरी को दे देती है। बकरी फिर भी नहीं जाती। इस बार वो एक और रोटी देती है और इस बार बकरी चली जाती है।
सुनैना,” लगता है इसके नसीब में रोटी खाना लिखा था। चलो इस बेज़ुबान के पेट में भी कुछ गया। “
इसके बाद वह थोड़ा पानी पीती है। तब तक जंगल से एक बूढ़ी औरत बहुत सारा सामान लेकर गुजर रही होती है। 
सुनैना,” मां जी, आप इस जंगल में ? “
बूढ़ी औरत,” मैं अपने गांव जा रही हूँ, बेटी। ये रास्ता जल्दी पहुंचा देता है इसलिए यहाँ से जा रही हूँ। “
औरत बहुत बूढ़ी थी। सुनैना को उस पर दया आ गई। 
सुनैना,” अम्मा बैठो। मेरे पास दो रोटी है, आप इन्हें खा लो। वैसे भी मुझे तो घर जाना है इसलिए इन्हें खाने का तो समय नहीं है मेरे पास। आप मुझे थकी हुई लगती हो, आप इन्हें खा लो। “
अम्मा बैठ गई और हैरानी से सुनैना की तरफ देखने लगी। 
बूढ़ी औरत,” इस जंगल में लगता है भगवान ने तुझे भेजा है मेरे लिए। ला बेटी ला, जोरों की भूख लगी है मुझे। बहुत बुरा हाल है। खुश रहे तू बेटी। “
सुनैना ने रोटी सब्जी अम्मा को दे दी और अम्मा ने बड़े चाव से रोटी सब्जी खा ली। 
बूढ़ी औरत,” बेटी, एक बात ध्यान से सुन… तेरे जीवन में कभी भी कोई मुसीबत आए तो बस अपने पूर्वजों और भगवान को सच्चे दिल से याद करना। 
उसके बाद सामने मुसीबत पर लाल कपड़ा और धूपबत्ती जलाकर हाथ जोड़ लेना, सब ठीक हो जायेगा। “
सुनैना,” धन्यवाद अम्मा ! बड़ों की कृपा से ही घर परिवार फलता फूलता है। कभी बलियापुर गांव में आना होगा तो किसी से भी पूछ लेना मेरी माँ जी का नाम। 
उनका नाम स्वर्णी देवी है, तो आपको बता देंगे मेरे घर का पता। कभी आना हो तो हमसे मिलने जरूर आना। “
बूढ़ी औरत,” जरूर बेटा, कभी मौका मिले तो जरूर आउंगी। अब बेटी तू जल्दी घर जा, ये जंगल तेरे लिए सुरक्षित नहीं है। “
सुनैना,” ठीक है अम्मा, आप भी जल्दी चले जाओ। “
बूढ़ी औरत,” और हाँ बेटी, कभी भी डर लगे तो अपने पूर्वजों को याद करना। पित्र हमेशा अपने वंशजों की रक्षा करते हैं। “
सुनैना,” जी अम्मा। “
सुनैना घर पहुंचती है। उसके बाद रात के लिए खाना बनाने लग जाती है। खाना बनाकर सबको खिलाया और उसके बाद सब सो गए। 
अचानक पूरा घर हिलने लग गया। अचानक एक कमरे से बहुत तेज आवाजें आने लगीं। सब लोग डर गए। 
कुछ देर बाद सब एकदम से शांत हो गया।
प्रतिभा,” मां जी, ये क्या था ? ये कैसी आवाज थी ? “
स्वर्णी,” रुक, मैं देखती हूँ। “
स्वर्णी,” सुनैना, जा तू देख… क्या है वहाँ ? “
सुनैना,” मां जी… मां जी, मुझे डर लग रहा है। “
स्वर्णी,” जाती है या नहीं ? “
इसके बाद सुनैना कमरे में देखने चले गयी। वहाँ कोई नहीं था। 
सुनैना,” माँ जी, यहाँ कुछ भी नहीं है। “
स्वर्णी,” ऐसा कैसे हो सकता है ? इतनी भयंकर आवाज भला किसकी हो सकती है ? “
प्रतिभा,” मुझे लगता है कोई जानवर खिड़की से घुस गया होगा। मैं कहती थी ना… वहाँ जालियां लगा लो। “
स्वर्णी,” चलो अब जाओ, सब सो जाओ। “
अगले दिन…
स्वर्णी,” सुनैना सुन, वो कपड़े रखे हैं, धो देना सारे और घर की सारी चादरें भी धोनी है और हाँ, पर्दे भी। समझ गयी..? “
सुनैना,” जी माँ जी। “
तब तक वहाँ उनकी पड़ोसी शारदा आ गई। 
शारदा,” प्रणाम अम्मा ! कैसी हो आप ? “
स्वर्णी,” आओ बेटी, तुम कैसी हो। हमारा तो जैसे तैसे वक्त निकल रहा है। “
शारदा,” मैं ठीक हूँ, माँ जी। आपसे वो शहद लेने के लिए आई हूँ। कुछ दिन पहले आपसे मंगवाया था ना। “

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स्वर्णी,” अरे ! हाँ, मैं तो भूल ही गयी। क्या करूँ बेटी, उम्र हो गयी है ? रुक लाती हूँ। “
स्वर्णी जैसे ही अंदर गईं, शारदा तुरंत सुनैना के पास जाकर बोली। 
शारदा,” सुनैना तू दुखी नहीं होती इस बुढ़िया के ऐसे बर्ताव से ? जीना मुश्किल किया हुआ है तेरा इसने। कहती हूं… तू अपने मायके वालों को बता देना। “
सुनैना,” नहीं बहन, मेरे माता पिता गरीब हैं। उन्हें मैं और पीड़ा नहीं दे सकती। मुझे परेशान देख वो और दुखी हो जाएंगे। “
शारदा,” तेरे लिए मुझे बहुत दुख होता है। तू अपना ध्यान रख। “
सुनैना,” तुम मेरी चिंता मत करो, वो जैसी भी है मेरी सास है। गुस्सा करती है पर दिल की अच्छी है। “
शारदा,” तू बहुत भोली है रे ! मैं तो तेरे लिए बस प्रार्थना ही कर सकती हूँ कि एक दिन तेरा जीवन भी सुधर जाये। तू परेशान मत हो ना हाँ। “
सुनैना,” ये सब मेरा परिवार है और परिवार में तो ये सब चलता ही रहता है। “
तब तक अचानक माँ जी आ गयी। 
स्वर्णी,” ले शारदा अपना शहद। “
शारदा,” धन्यवाद अम्मा ! अच्छा, मैं चलती हूँ। “
उसने सुनैना की तरफ देखा और चली गईं। सुनैना ने अपना सारा काम किया। पहले कपड़े, घर की सफाई, आँगन की सफाई। 
रात के समय…
स्वर्णी,” अरी ओ सुनैना ! खाना बना या नहीं ? “
सुनैना,” बन गया, मां जी। आप हाथ धो लीजिये, अभी लगाती हूँ। “
स्वर्णी,” रख जल्दी, भूख लगी है मुझे बहुत। “
सुनैना,” अभी रखती हूँ, मां जी। “
स्वर्णी (खाना खाते ही),” छी छी थू… कैसा खाना बनाती है तू ? ऐसा खाना तो जानवर भी ना खाये। “
सुनैना,” मां जी, मैं आगे से ध्यान रखूंगी। “
सास और प्रतिभा ने सारा खाना खा लिया और जान बूझ के बाकी रोटियां और सब्जी छुपा दी।
स्वर्णी,” और ला रोटी। “
सुनैना,” मां जी, रोटियां तो खत्म हो गई है। “
स्वर्णी,” इस घर में तो पेट भर के खाना भी नहीं मिलता। जीना दूभर हो गया है। जा बर्तन ले जा। “
स्वर्णी ने प्रतिभा को वो खाना दिया। प्रतिभा ने तुरंत वो खाना गाय को खिला दिया और वापस वहाँ बैठ गयी। 
प्रतिभा,” चलिए मां जी, कल शादी में भी जाना है सो जाते है। “
सब ने खाना खाया। किसी ने सुनैना को खाने के लिए नहीं पूछा। फिर सुनैना ने बर्तन धोये। आधी रात को अचानक आवाज आने लगी। सब बाहर आ गए। 
प्रतिभा,” माँ जी, फिर से यही आवाज़। “
स्वर्णीं,” ये आवाज तो कल से भी ज्यादा है। “
प्रतिभा,” मां जी, इस सुनैना को वहाँ भेज देते है, आप कमरा बंद कर देना। “
स्वर्णी,” अगर वहाँ कोई जानवर होगा तो इसे खा जाएगा। “
स्वर्णी,” सुनैना, जा के देख, कौन है वहाँ ? “
सुनैना,” नहीं नहीं मां जी, मुझे डर लग रहा है। “
स्वर्णी,” जाती है या मारूं ? “
सुनैना जैसे ही कमरे में गई, प्रतिभा ने दरवाजा बंद कर दिया। 
सुनैना,” मां जी, दरवाजा खोलिए। आप मेरे साथ ये सब क्यों कर रही है माँ जी ? मुझे डर लग रहा है। “
स्वर्णी,” ये सब मेरे बेटे की जिंदगी में आने से पहले सोचना चाहिए था। अब भुगत। “
दोनों हंसने लगीं। 
सुनैना,” मां जी, यहां सांप है। सांप… सांप। “
सुनैना जाकर कौने में छिप गयी। सुनैना को अचानक अम्मा की बात याद। 
सुनैना ने तुरंत अपने पूर्वजों को याद किया।
सुनैना,” हे पितृ ! मेरी रक्षा करो। कोई तो उपाय दो ताकि मैं इस मुसीबत से बच पाऊं। “
अचानक वहाँ पे लाल कपड़ा और धूपबत्ती आ गई। सुनैना को बुढ़िया माँ की बात याद आ गयी। 

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सुनैना तुरंत डरते डरते उसके पास गई और धीरे से उसके ऊपर लाल कपड़ा डाला और धूपबत्ती जलाने लग गई और भगवान का नाम जपने लगी। 
सुनैना,” हे ईश्वर ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो मेरी। “
प्रतिभा,” माँ जी, चलिए। लगता है वो मर गई, जानवरों उसे अभी तक तो खा भी चुका होगा। कल इस कमरे को खोलेंगे। “
स्वर्णी,” ठीक है। भगवान करे, इस बार ये मुसीबत टल जाए। “
अगले दिन प्रतिभा ने कमरा खोला। सुनैना एक जगह पे ही लेटी हुई थी। प्रतिभा चिल्लाई। 
स्वर्णी,” क्या हुआ, कहीं भूत देख लिया क्या ? “
स्वर्णी जैसे ही कमरे में आई, उसने देखा कि चारों तरफ सोना ही सोना बिखरा हुआ। है। 
स्वर्णी,” हमारी तो किस्मत ही खुल गई, प्रतिभा। “
प्रतिभा,” मां जी, एक साथ दो मुसीबत टल गईं। पहली वो मुसीबत और दूसरी गरीबी। आज से हम ऐशोआराम की जिंदगी जीएंगे। 
माँ जी, देखिये ना इतना सारा सोना। इससे तो हमारी कई पीढ़ियां मज़े से अपना जीवन बिता सकेंगी। “
प्रतिभा जैसे ही सोने का एक गहना उठाती है। 
प्रतिभा,” कितना सुंदर है ना, मां जी ? मेरे गले में बहुत अच्छा लगेगा। ठीक कहा ना मैंने ? “
तब तक अचानक प्रतिभा को ज़ोर से करंट लगने लगता है और माँ जी को सांप पकड़ लेता है। 
माँ जी चिल्लाने लगती है। चिल्लाने की वजह से ही सुनैना उठ जाती है। उसी समय अम्मा वहाँ प्रकट हो जाती है। 
बूढ़ी औरत ,” ये सब केवल सुनैना का है। इस खजाने में किसी ने भी बुरी नजर डाली तो उसे छोडूंगी नहीं मैं। “
प्रतिभा ने वो हार फेंक दिया। 
सुनैना,” अम्मा, मां जी और प्रतिभा दीदी को छोड़ दो आप। “
बूढ़ी औरत,” नहीं बेटी, ये सब तुझे जीने नहीं देंगे। मेरे होते हुए तुझे कोई तंग नहीं कर सकता। “
सुनैना,” अम्मा, आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ, कृपया छोड़ दो इन्हें। “
बूढ़ी औरत,” ठीक है। ” 
दोनों बच जाती हैं। 
सुनैना,” माँ जी, आप ठीक तो हो ना ? “
सुनैना,” प्रतिभा दीदी आप ठीक तो हो ना ? “
सुनैना,” अम्मा, मेरी बात का मान रखने के लिए धन्यवाद ! “
बूढ़ी औरत,” ये सब तेरा है, सुनैना। “
सुनैना,” अम्मा, ये सब मेरा कैसे हुआ ? मुझे आप ये सब क्यों दे रही हो ? “
बूढ़ी औरत,” बेटा, ये तेरा ही था हमेशा से। एक जमाने में तेरे पूर्वजों ने इस खजाने को छुपाया था दुश्मनों से। 
वो चाहते थे कि ये सब उनके किसी वारिश को मिले जो ईमानदार और नेक हो ताकि सबका भला हो सके। 
वो चाहते थे कि दुश्मन इसका गलत इस्तेमाल ना कर पाए इसलिए उन्होंने इस खजाने की पूजा कराई। इसके बाद ये खजाना सर्प में बदल गया और तब से वो तुम्हारे वंश के सही उत्तराधिकारी की खोज कर रहा था। 
तुमने जिस बकरी को रोटी खिलाई वो असल में सर्प था जो भेष बदलकर तुम्हारे सामने बकरी बनकर आया था, ये जानने के लिए कि तुम वही सही उत्तराधिकारी हो की नहीं ? 
बेटी, तू बहुत भोली है सब याद रखना, ये खजाना सिर्फ तुम्हारा है। ये कोई मामूली खजाना नहीं है, मंत्रों द्वारा सिद्ध किया गया खजाना है। 
याद रखना… इस खजाने की सुरक्षा स्वयं सर्प देव करते हैं इसलिए सुनैना तुम इसके खो जाने की चिंता मत करना। ये हमेशा तुम्हारे पास रहेगा। तुम्हारा कल्याण हो। “
सुनैना,” माँ जी, ये सब आपका है। इसका जो कुछ भी करना है वो आपकी मर्जी से ही होगा। “
स्वर्णी,” बेटा, मैंने हमेशा तेरे साथ बुरा किया। तू चाहती तो इतना सारा धन पाके हमें घर से बाहर निकाल सकती थी। पर तू ये सब मुझे दे रही है, क्यों सुनैना ? “
सुनैना,” माँ जी, मैं हमेशा चुप रहती थी ताकि एक दिन आप मेरे प्यार को समझ सको। 
देखो ना आज आपको मेरा इस परिवार के प्रति प्रेम समझ आ गया। इससे ज्यादा मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। “
प्रतिभा,” मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम्हें हमेशा मारना चाहा। लेकिन आज तुमने मुझे बचाकर मेरी नजरों में अपनी इज्जत और भी बढ़ा दी है। 

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आज से मैं हमेशा तुम्हारी बड़ी बहन बनके रहूंगी और तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी। 
स्वर्णी,” सुनैना, इसकी हकदार सिर्फ तू है। ये जिम्मेदारी तुझे ही संभालने होगी। तेरे पूर्वजों का भरोसा है तू इसलिए अपनी जिम्मेदारी को समझकर वहीं कर जो सही है। “
स्वर्णी,” जी मां जी, मैं आपकी बात का मान रखूंगी। “
इसके बाद सुनैना का परिवार बहुत अमीर हो गया। सुनैना दान पुण्य करने लगी और खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ रहने लगी।
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