हेलो दोस्तों ! कहानी की इस नई Series में हम लेकर आए हैं आपके लिए एक और नई कहानी। आज की कहानी का नाम है – ” कैसी ये मोहब्बतें “। यह इस कहानी का (भाग -2) है। यह एक True Love Story है। कहानी को पूरा जरूर पढ़ें। तो चलिए शुरू करते हैं…
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कैसी ये मोहब्बतें – 2
पिछले भाग में आपने पढ़ा :-
संध्या अपने रिजल्ट को लेकर काफी ज्यादा परेशान होती है। वो इसके बारे में अपनी दी, आरती को बताती है। आरती संध्या को गले लगाकर बोलती है कि सब ठीक होगा।
अब आगे :-
त्रिपाठी जी और सुशील जी साथ में स्कूल पहुंचे। अरे ! भाई तू संध्या को दिल्ली पढ़ने जाने क्यों नहीं दे रहा – (त्रिपाठी जी ने सुशील से पूछा) ?
तो फिर सुशील जी ने त्रिपाठी जी से कहा – यार तू तो जानता ही है, अपनी बेटी को कहीं अपनी आंखों से दूर नहीं भेजा है और दिल्ली तो इतनी दूर है कि कैसे भेज दूं ? मुझसे तो नहीं होगा।
त्रिपाठी जी सुशील जी के कंधे पर हाथ पर हाथ रखते हुए बोले – आज तो पढ़ने के लिए जा रही है कल तो ससुराल भी जाएगी… तब क्या तू उसे जाने नहीं देगा ?
ऐसी बात नहीं है… त्रिपाठी तू तो जानता ही है कि बेटियां होती कितनी प्यारी है,, अपने से दूर करना कितना मुश्किल है ? और मेरी तो बेटी मुझसे कभी दूर ही नहीं हुई है।
संध्या और आरती सिर्फ तेरी बेटी है मेरी कुछ नहीं… जा मैं तुझसे बात नहीं करता – (त्रिपाठी जी ने गुस्सा होते हुए कहा)।
अरे भाई मुझे माफ कर दे… मेरे कहने का वो मतलब नहीं था – (सुशील जी त्रिपाठी जी को मनाते हुए बोले)।
तो फिर जाने दे उसे क्यों रोक रहा है – (त्रिपाठी जी ने सुशील से कहा) ?
ठीक है तू कह रहा है तो अच्छा ही होगा। तू भी तो उसके बाबा जैसा ही है, बुरा थोड़े ही नहीं चाहेगा।
सुशील जी त्रिपाठी जी को गले लगाते हुए बोले – यह हुई ना बात… मेरे भाई ! अब देखो संध्या कितनी खुश होगी… यह जानकर कि तू उसे जाने दे रहा है। फिर दोनों हंसने लगे।
उधर संध्या घर से निकलते हुए मार्केट में पहुंची और साइबर कैफे में चली गई। वहां उसने अपना रिजल्ट देखा। वह पास हो गई थी 95% के साथ। और ये देखकर वो बहुत खुशी होती है और वहां से भागकर सीधे घर आती है।
अपनी दीदी को आवाज लगाती है… शोर सुनकर आरती बाहर आती है और संध्या उसे पकड़कर घूमने लगती है। उसकी बहन ने पूछा – क्या हुआ… इतनी खुश क्यों हो ?
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अरे दीदी मैं पास हो गई हूं… वो भी 95% के साथ – संध्या ने उसे बहुत ही खुशी से बताया; जिसे सुनकर आरती उसके गले लग जाती है और बोलती है – मुझे तो पहले ही पता था कि तुम बहुत ही अच्छे नंबरों से पास होगी।
हां दी और महादेव तो मेरे साथ हैं – संध्या ने आरती से दूर होते हुए कहा।
अच्छा रुको मैं कुछ मीठा बनाकर लाती हूं,, यह बोलकर आरती वहां से किचन में चली गई। संध्या वहीं पर खड़े होकर हाथ जोड़े महादेव को धन्यवाद बोलती है।
आरती बेसन के लड्डू लेकर आई और संध्या को खिलाते हुए कहा – ये लो तुम्हारा मनपसंद लड्डू।
संध्या बहुत खुश होकर बोली – दी ये सब आप मेरे लिए बनाई हो ना… आप दुनिया की बेस्ट दी हो। आपने तो मां की भी कमी को पूरा कर दिया…आई लव यू – संध्या भावुक होते हुए बोली।
आरती ने दोबारा से उसे गले लगा लिया और बोली – आई लव यू टू। तुम भी दुनिया की बेस्ट बहन हो। संध्या अपनी दीदी से अलग हुई और लड्डू लेकर खाट पर बैठकर खाने लगी। और बोली दी ये लड्डू बहुत अच्छे बने हैं।
(शाम का भक्त) संध्या का घर…
सुशील जी और त्रिपाठी जी दोनों घर आए और आवाज देकर संध्या और आरती को बुलाया। वह दोनों आ गई तो त्रिपाठी जी संध्या के रिजल्ट के बारे में पूछे… तो संध्या ने बहुत खुशी से बताया कि वह पास हो गई है जिसे सुनकर उन्होंने दोनों को शाबाशी दी।
और संध्या को यह भी बताया कि उसके बाबा उसे दिल्ली भेजने के लिए मान गए हैं। संध्या को तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने उन दोनों के पैर छुए। दोनों ने आशीर्वाद देते हुए कहा – अब आप खुश हो ना संध्या।
“जी चाचा जी ! बहुत खुश हूं। थैंक यू बाबा… थैंक यू चाचा जी।”
आरती वहां से किचन में चली गई। थोड़ी देर में किचन से बाहर आती हुई है। त्रिपाठी जी ने आरती के हाथों में लड्डू देखा तो खुश होते हुए बोले – अरे ! वाह क्या बात है… बेसन के लड्डू। आज तो मजा ही आ गया। क्यों सुशील,,, सही बोला ना।
संध्या भी वहां से चाय लाने चली गई किचन में। थोड़ी देर में संध्या चाय और नमकीन के साथ बाहर आई। अपने बाबा को देखकर बोली – बाबा… यह रही आपकी अदरक वाली चाय।
सुशील जी ये सुने तो खुश होते होते हुए त्रिपाठी जी से बोले – हमारी बिटिया इतनी बड़ी कब हो गई… पता ही नहीं चला ?
त्रिपाठी जी मुस्कुरा कर बोले – बेटियां होती हैं इतनी प्यारी है कि पता ही नहीं चलता कि कब बड़ी हो गई ? सुशील जी और त्रिपाठी जी दोनों भावुक हो गए।
त्रिपाठी जी ने माहौल को हल्का करते हुए कहा – संध्या… चाय सिर्फ अपने बाबा को ही दीजिएगा हमें नहीं। संध्या ने उनकी तरफ चाय बढ़ायी और बोली – ऐसा कभी नहीं हो सकता… चाचा जी।
सुशील जी और त्रिपाठी जी चाय पीकर सुशील जी के कमरे में चले गए। सुशील जी को सोचता पाकर त्रिपाठी जी ने कहा – क्या सोच रहा है भाई ? हमें भी बताओ।
त्रिपाठी जी सुशील जी से बोले – सोच रहा हूं कि अब आरती के लिए कोई अच्छा सा लड़का मिल जाए तो उसकी शादी करा दूं।
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बात तो ठीक कह रहा है। अब आरती बिटिया की शादी कर देनी चाहिए। पर अच्छा लड़का मिलेगा तब ना… जो हमारी आरती को खुश रखे – त्रिपाठी जी ने कहा।
हम्म… सुशील जी बस इतना ही कह पाए।
उधर संध्या की खुशी का ठिकाना ही नहीं था। आंगन में घूम घूम कर नाच रही थी और साथ में आरती को भी नचा रही थी। अरे बस कर पागल हो गई है क्या ? खुद भी नाच रही है और मुझे भी नचा रही है – आरती ने उससे अपने हाथ छुड़ाते हुए कहा।
हां दी आज मैं पागल हो गई हूं। अब मेरा सपना सच होने वाला है… दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने का – संध्या ने हंसते हुए कहा।
फिर ठीक है तू नाच मैं चली… रात का खाना बनाने – किचिन की तरफ जाते हुए आरती ने कहा।
अरे! दी रुको, मैं भी आ रही हूं – संध्या बोलकर आरती के पीछे – पीछे किचन में चली गई।
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(रात का वक्त) संध्या का घर…
आरती अपने बाबा और चाचा जी को बुलाने गई; तो देखा दोनों आपस में बात करके हंस रहे थे। पापा, चाचा जी खाना लग गया है आकर खा लीजिए – आरती ने दरवाजे के पास खड़े होकर कहा।
ठीक है बेटा,,, आ रहा हूं – सुशील जी ने कहा। आरती वहां से सीधे टेबल के पास आई और थोड़ी देर में सुशील जी और त्रिपाठी जी भी आ गए। संध्या टेबल पर खाना लगा रही थी। तभी त्रिपाठी जी देख कर बोले – क्या बात है… आज हम दोनों का मनपसंद खाना बना है।
तभी संध्या बोली – आप दोनों ने तो मेरा सपना पूरा करने में मेरी मदद की है, चाचा जी – संध्या ने खाना परोसते हुए कहा।
देखा सुशील,, बोला था ना कि संध्या बहुत खुश होगी यह जानकर कि तुम उसे जाने दे रहे हो – त्रिपाठी जी ने सुशील जी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
वैसे आप वहां रहेंगे कहां… संध्या – सुशील जी गंभीर होकर बोले ?
बाबा आप उसकी टेंशन मत लीजिए। मैं हॉस्टल में रह लूंगी – संध्या ने अपने पापा से कहा।
फिर ठीक है। कल ही फॉर्म भर देना – त्रिपाठी जी ने खाना खाते हुए कहा।
ठीक है चाचा जी… मैं कल ही हूं ऑनलाइन फॉर्म भर दूंगी – संध्या ने जवाब दिया।
सब खाना खाकर सोने चले गए। सुशील जी ने कहने पर त्रिपाठी जी वहीं रुक गए।
(सुबह का वक्त) अस्सी घाट…
संध्या महादेव को आज धन्यवाद बोलने गई थी। और आज बहुत खुश भी थी,,, उसका सपना पूरा होने वाला था। तभी पुजारी जी वहां आए, संध्या को प्रसाद दिए।
संध्या ने उनके पैर छुए। पुजारी जी ने उसे आशीर्वाद दिया। वह सीधा फिर घर के लिए रवाना हुई।
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तभी उसका फोन बजने लगा। उसने फोन निकाल कर देखा तो रुही का फोन आ रहा था। उसने फोन उठाते हुए कहा – हेलो ! और कैसी हो रुही ?
तभी रुही उधर से गुस्से लहजे में बोली – तूने तो एक बार भी फोन नहीं किया और ना ही मिलने आई। तभी संध्या बीच में बोली – रुही… बाबा मान गए हैं मुझे दिल्ली जाकर पढ़ने के लिए।
“हां सच में ” रूही खुश होते हुए बोली और कहा यह चमत्कार कैसे हुआ ? तभी संध्या बीच में बोली- मेरे चाचा जी ने मेरे बाबा को मनाया। समझी…चल मैं फोन रखती हूं। मेरे घर पर 10:00 बजे मिल, फॉर्म भरने के लिए जाना है ठीक है – उधर से रुही बोली।
रुही, संध्या की बचपन की दोस्त है।
संध्या अपने घर पहुंची और अपने बाबा – चाचा जी के पैर छुए। फिर अपने काम में लग गई। सुशील जी और त्रिपाठी जी भी नाश्ता करके स्कूल के लिए निकल गए।
थोड़ी देर में रुही आ जाती है और फिर संध्या के साथ में ही साइबर कैफे चली जाती है… फॉर्म भरने के लिए।
(रात का वक़्त) अध्याय का घर…
सभी आंगन में बैठ कर बात कर रहे थे कि तभी सरला जी (त्रिपाठी जी की पत्नी) आ गई। उन्हें देखकर आरती बोली – आ गई चाची जी। आरती ने उनके पैर छुए फिर संध्या ने भी उनके पैर छुए। सरला जी ने दोनों को आशीर्वाद दिया।
प्रणाम 🙏भाई साहब – सरला जी ने हाथ जोड़ते हुए सुशील जी से कहा।
प्रणाम भाभी जी – आप आ गई। अब आपकी मां कैसी है ? – सुशील जी ने भी हाथ जोड़े कहा।
मेरी मां ठीक है भाई साहब – सरला जी सुशील जी से बोलीं।
सरला जी आंगन में सभी के साथ आकर बैठ गई। सभी बात कर रहे थे कि त्रिपाठी जी भी आ गए। सुशील जी ने त्रिपाठी जी को देखकर कहा – तेरी ही कमी है त्रिपाठी,,, आजा बैठ।
सभी बात कर रहे थे कि आरती और संध्या चाय और नमकीन लेकर आ गई। सरला जी ने आरती को देखते हुए सुशील जी से कहा – भाई साहब,,, बुरा ना माने तो एक बात बोलें।
हां भाभी जी… कहिए क्या बात है ? सुशील जी ने सरला जी की तरफ देखते हुए कहा।
मैंने आरती के लिए एक लड़का देखा है, बहुत ही अच्छे परिवार का लड़का है – सरला जी ने सुशील जी से बोला।
सरला जी त्रिपाठी जी से बोली – आपको याद है मेरी सहेली, गीता… उसी के भतीजे के लिए रिश्ता है।
त्रिपाठी जी सोचते हुए बोले – हां याद है, वो जो दिल्ली में रहती हैं।
हां सही बोले। उसने कल मुझे फोन किया था। बातों ही बातों में पता लगा, उसको अपने भतीजे के लिए संस्कारी और पढ़ी – लिखी लड़की चाहिए। तो मैंने अपनी आरती के बारे में बता दिया और उनको हमारी आरती बहुत पसंद आई है।
लड़का बहुत अच्छा है भाई साहब,,, उसका खुद का बिजनेस है। और उसकी मां बहुत प्यारी है। उसके दो बेटे और एक बेटी है। उसके पति अब इस दुनिया में नहीं है। उनका बड़ा बेटा अमर जिसके लिए मैंने आरती की बात की है, वह वहीं दिल्ली में रहता है,, अपना खुद का बिजनेस देखता है।
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और उनका छोटा बेटा, कबीर लंदन में बिजनेस करता है। और उनकी छोटी बेटी, तन्वी… वह अपनी पढ़ाई कर रही है – सरला जी ने सुशील जी को देखते हुए बोला।
सरला जी ने सुशील जी से कहा – भाई साहब ! आपको कोई दिक्कत तो नहीं हुई,, आपसे बिना पूछे आरती के लिए रिश्ते की बात करदी ?
सुशील जी खुश हुए और बोले – भाभी जी… आरती और संध्या आप ही की बेटी है। आपने सोचा है तो अच्छा ही सोचा होगा।
क्योंकि कोई भी मां अपनी बेटी का बुरा नहीं सोचते और ना ही चाहती है। आपको जो ठीक लगे, आप कीजिए – सुशील जी खुशी – खुशी से बोले।
सरला जी यह सब सुनकर रोने लगीं और बोली – धन्यवाद ! भाई साहब,,, आपने मेरी बात का सम्मान रखा।
त्रिपाठी जी बोले – यह सब ठीक है पर वैसे लड़के वाले कब आ रहे हैं ?
सरला जी उनको देखते हुए बोली – इस महीने की 25 तारीख को। क्योंकि उनका लड़का अभी इंडिया में नहीं है। बिजनेस के सिलसिले में न्यूयॉर्क गया है।
यानी कि 2 हफ्ते बाद आ रहे हैं – सुशील जी ने कहा।
जी भाई साहब… सरला जी ने उनकी बात का जवाब दिया।
अभी तक कमरे के दरवाजे के पास खड़ी आरती और संध्या सब की बात सुन रही थी। तभी संध्या ने आरती को छेड़ते हुए कहा – क्या बात है…लड़के वाले आ रहे हैं। वो भी सिर्फ 2 हफ्ते में। आरती चुपचाप कमरे में अंदर आकर बेड पर बैठ जाती है।
और इसी के साथ इस कहानी का यह अध्याय समाप्त होता है। अगर आप, इस कहानी में आगे क्या हुआ जानना चाहते हैं तो कहानी का अगला भाग जरूर पढ़ें।