गुमशुदा गधा | Gumshuda Gadha | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गुमशुदा गधा ” यह एक Animal Story है। अगर आपको Hindi Stories, Animal Stories For Kids या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

गुमशुदा गधा | Gumshuda Gadha | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales


Gumshuda Gadha | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales



एक गांव में मक्खीराम और उसकी पत्नी रहते थे। दोनों की उम्र हो चली थी पर अपनी कोई संतान नहीं हुई। तो दोनों ने जंबूरी (गधा) को गोद ले लिया। 

दोनों उसे बड़ा प्यार करते थे। पर एक दिन शाम को जंबूरी अचानक गायब हो गया।

मक्खीराम ने उसे बहुत ढूंढने की कोशिश की पर वो नहीं मिला।
वे दोनों पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाने पहुंचे।

मक्खीराम,” साहब, मेरी रपट लिख लो। “

हवलदार,” यहाँ सब रिपोर्ट लिखाने ही आते हैं। किस गांव के रहने वाले हो ? “

मक्खीराम,” साहब पलटा गांव। “

हवलदार,” वही पलटा गांव जहाँ सब उल्टा बोलते हैं ? “

मक्खीराम,” मैं ऐसा नहीं हूँ। “

हवलदार,” फिर सुनो… जो पूंछूं ठीक ठीक बताना, अपने गांव की तरह उलटे जवाब नहीं देना। चलो अब बोलो, क्या हुआ ? “

मक्खीराम,” साहब, मेरा बेटा कल रात से गुम है। कहीं मिल नहीं रहा। “

हवलदार,” अरे ! बेटा है या चीज़ जो मिल नहीं रहा ? “

मक्खीराम,” साहब उसे ढूंढो। मेरी पत्नी उसके बिना नहीं रह सकती। देखो, कल रात से इसका रो रोकर बुरा हाल है। “



तभी पत्नी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। 

पत्नी,” हाय… हाय ! मेरा लाल। “

हवलदार,” अरे ! ये रोना बंद करो। चलो बताओ, क्या हुआ ? कल रात को वो कहाँ गया था ? “

मक्खीराम,” साहब, वो रोज़ शाम को थोड़ी देर घर के बाहर ही खेलता था। तो कल अचानक वहाँ से गायब हो गया। हमने पूरे गांव में उसे ढूंडा पर कुछ पता नहीं चला।

पत्नी,” हाय… मेरा लाल !

हवलदार,” अरे ! ये रोना बंद करो। मैं रिपोर्ट लिख रहा हूँ। नाम क्या है ? “

मक्खीराम,” मक्खीराम। “

हवलदार,” बड़ा पुराना सा नाम है। उम्र कितनी है ? “

मक्खीराम,” 45 साल। “

हवलदार,” 50 साल के तुम लग रहे हो, बेटा 45 कैसे हो गया ? “

मक्खीराम,” साहब, मैं 50 का नहीं 45 का ही हूँ। “

हवलदार,” अरे बाप रे ! रिपोर्ट बेटे की लिखा आ रहा है तो उमर अपनी क्यों बता रहा है ? “

मक्खीराम,” साहब, आपने नाम मेरा पूछा तो मुझे लगा उम्र भी मेरी बतानी है। “

हवलदार,” अबे ! कौन सी दुनिया से आये हो ? बेटे का नाम बता। “

मक्खीराम,” जंबूरी। “

हवलदार,” बेटे की उम्र बता। “

पत्नी,” साहब, आपसे बस दो ही मुट्टी कम है। “

हवलदार,” क्या मतलब ? “

पत्नी दोनों हाथों की मुठ्ठियों को एक दूसरे पर रखकर सिपाही के मुँह के आगे कर देती है।

हवलदार,” ऐ पीछे हटो। “

पर वो और आगे आगे कर देती है।

हवलदार,” मैंने पहले ही कहा था सीधे जवाब दो, नहीं तो मैं रिपोर्ट नहीं लिखूंगा। “

मक्खीराम और पत्नी ने एक दूसरे को देखा।

पत्नी (हाथ फैलाते हुए),” इतना बड़ा था। “

हवलदार,” इसका क्या मतलब है ? तुम्हें अपने बेटे की उम्र नहीं पता ? “

पत्नी पहले ना में फिर हां में सिर हिला देती है। 

मक्खीराम,” साहब, हम दोनों की अपनी कोई औलाद नहीं है। जंबूरी को अभी छह महीने पहले ही गोद लिया है। अब वही हमारा बेटा है। “

पत्नी,” इतना बड़ा था। “

हवलदार,” रंग कैसा है ? “



मक्खीराम,” गेहूआं। देखने में बहुत सुंदर है। काली काली बड़ी बड़ी आंखें। “

हवलदार,” ठीक है ठीक है। ये बताओ, कल शाम को जाने से पहले क्या बोला ? “

मक्खीराम,” उसे बोलना थोड़े ही आता है। “

हवलदार,” क्यों..? गूंगा है ? “

मक्खीराम,” नहीं साहब, गूंगा तो नहीं है बस हाँ… है… है करता रहता है। “

हवलदार,” कोई फोटो वोटो है उसकी ? “

मक्खीराम,” नहीं साहब। “

हवलदार,” अरे भगवान ! देखो… अभी बड़े साहब थाने में नहीं है। जब आएँगे तो मैं ये केस उनको दिखा दूंगा। तुम लोग अभी जाओ। “

मक्खीराम,” साहब, मेरा बेटा बहुत छोटा है। “

हवलदार,” कहा ना… तुम जाओ। कुछ पता चलेगा तो हम खुद तुम्हें बुलाएंगे। “

थोड़ी देर बाद इंस्पेक्टर थाने में आता है और अपनी कुर्सी पर बैठकर टेबल पर दोनों टांगें पसार कर बोला।

इंस्पेक्टर,” एक सिर दर्द की गोली देना। आज मेरा सर दर्द से फटा जा रहा है। “

हवलदार,” सर, आपको और सर दर्द…।”

इंस्पेक्टर,” हां, आज हो रहा है। “

हवलदार (मन में),” झूठा कहीं का… काम ना करने का बहाना है। “

इंस्पेक्टर,” बस एक डंग का केस सॉल्व हो जाए तो इस बार प्रमोशन पक्का। “

हवलदार,” अच्छा तो ये सिर दर्द काम का नहीं, प्रमोशन का है। “

इंस्पेक्टर,” तुमने कुछ कहा..? “

हवलदार,” नहीं नहीं, सर कल के उस चोरी वाले केस का क्या हुआ ? उसकी फाइल कहीं मिल नहीं रही। “



इंस्पेक्टर,” मिलेगी भी नहीं। वो केस खत्म हो गया। “


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हवलदार (मन में),” राक्षस कहीं का… पूरा केस खुद डकार गया। “

हवलदार,” सर आज ये केस आया है। “

इंस्पेक्टर (केस पढ़ते हुए),” बच्चा कल शाम से गायब है, ढूंढना पड़ेगा। माँ बाप को किसी पर कोई शक है ? “

हवलदार,” सर गुम होने में शक क्यों होगा ? “

इंस्पेक्टर,” हो सकता है बच्चा गुम ना हुआ हो। अपहरण भी तो हो सकता है ? आज कल बच्चों को उठाकर ले जाते हैं। चलो तहकीकात करते हैं। “

हवलदार,” सर, तहकीकात करनी जरूरी है ? “

इंस्पेक्टर,” बच्चे का केस है, इसे हल्के में नहीं ले सकते। “

हवलदार,” सर, आप तो जानते ही हैं पलटा गांव कैसा है ? जैसा इस गांव का नाम वैसे ही इसके लोग। यहाँ के सब लोग उलटे उलटे जवाब देते। ऐसे में तहकीकात…। “

इंस्पेक्टर,” देखा जाएगा। मेरे प्रमोशन के लिए बच्चे को ढूंढकर इस केस को सॉल्व करना बहुत ज़रूरी है। “

हवलदार,” जी सर। “

इंस्पेक्टर,” अब चलो, तहकीकात की शुरुआत मक्खीराम से ही करते हैं। “

दोनों गांव में मक्खीराम के घर के बाहर पहुंचे।

हवलदार,” यहां तो गोबर की बदबू ही बदबू है। “

इंस्पेक्टर,” बदबू… कहां है बदबू ? प्रमोशन की बदबू भी खुशबू लगती है। “

हवलदार (मन में),” अबे ! अपने प्रमोशन के चक्कर में मुझे गोबर क्यों सुंघा रहा है ? “

इंस्पेक्टर,” तुमने कुछ कहा ? “

हवलदार,” नहीं सर। “

इंस्पेक्टर,” ये जो तुम बड़बड़ा जाते हो, कही मेरे बारे में…? “



हवलदार,” ना सर, आप तो सर है। “

इंस्पेक्टर,” मक्खीराम… ओ मक्खीराम ! तुम्हें अपने बेटे के गुम होने पर किसी पर कोई शक है ? “

मक्खीराम,” साहब, मैं कुछ समझा नहीं। “

इंस्पेक्टर,” तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी है ? हो सकता है तुम्हें परेशान और दुखी करने के लिए बच्चे को गायब कर दिया गया हो। “

मक्खीराम,” नहीं नहीं साहब, इस गांव में ऐसा कोई नहीं है। गांव वाले तो मेरा जमूरी को गोद लेने पर बहुत खुश हुए थे। कईयों ने तो हमारी बहुत मदद भी की। “

इंस्पेक्टर,” ठीक है, हम तहकीकात करते हैं। “

मक्खीराम और पत्नी (इन्स्पेक्टर की पैरों को पकड़कर),” हाय मेरा बेटा ! मेरा जंबूरी… कहाँ चला गया ? साहब, उसे ले आओ। उसके बिना हम जी नहीं पाएंगे। “

हवलदार,” अरे ! चलो उठो तुम, सर के पैर छोड़ो। हम उसे ढूंढने के लिए आये हैं। “

हवलदार रास्ते में जाते हुए दो आदमियों से पूछता है।

हवलदार,” हाँ सुनो, तुमने जंबूरी को कहीं देखा ? “

एक आदमी ने हाँ में सिर हिलाया।

इंस्पेक्टर,” कहाँ… कहाँ देखा उसे ? “

आदमी,” जंगल। “

इंस्पेक्टर,” जंगल में, क्या मतलब ? इस गांव में तो कोई जंगल नहीं है। क्या कह रहा है ये ? “

दूसरा आदमी,” साहब, ये जंगल बोल रहा है। “

हवलदार,” अबे ! ये क्या मस्खरी कर रहे हो ? सर को अगर गुस्सा आया ना तो दोनों को अंदर कर देंगे। समझे..? “

आदमी,” जंबूरी जंगल… जंबूरी जंगल, जंबूरी जंगल। “

दूसरा आदमी,” साहब इसकी बात मत सुनो, ये थोड़ा खिसका हुआ है। आप जो बोलोगे उसमें से कोई भी नाम पकड़ के जंगल जंगल ही बोलेगा। “

हवलदार,” तेरा दिमाग खराब है ? “

पहला आदमी,” तेरा दिमाग खराब, जंगल जंगल जंगल। “

दूसरा आदमी,” अरे चुप हो जाना। साहब, जंबूरी अक्सर सर्कस में भाग जाता था। आप वहा पता करो, वो वही होगा। “

इंस्पेक्टर,” चलो सर्कस चलते हैं। “



दोनों सर्कस में आते।

इंस्पेक्टर,” ऐ सुनो… इस सर्कस के मालिक को बुलाओ। “

मालिक हाथ में चाबी घुमाते हुए आया। 

हवलदार,” तुम्हीं सर्कस के मालिक हो ? “

सर्कस का मालिक,” मेरे सिवा और कौन हो सकता है ? “

इंस्पेक्टर,” अरे ओ ! ज्यादा घूमा फिराकर बात मत करना। जो पूछा जाए सीधे सीधे बताओ। कितने बच्चे हैं सर्कस में ? “

मालिक ने तीन उंगलियां दिखाई।

हवलदार,” अबे ! मुँह से बोल। “

सर्कस का मालिक,” तीन, तीन बच्चे है। “

इंस्पेक्टर,” तुम्हें पता नहीं, छोटे बच्चों से काम करवाना गैरकानूनी है ? “

सर्कस का मालिक,” वो बच्चे यहाँ काम नहीं करते, उनके माँ बाप करते हैं। वो तो बस यहाँ उनके साथ रहते हैं। “

हवलदार,” सब बच्चों और उनके माँ बाप को बुलाओ। “

सर्कस का मालिक सभी बच्चों और उनकी मां-बाप को बुलाता है।

इंस्पेक्टर,” ये वाला तो उम्र में बड़ा लग रहा है। “

इंस्पेक्टर,” ऐ बेटा ! चलो तुम जाओ यहाँ से। “

इसके बाद इंस्पेक्टर उसे लड़की को एक टॉफी देता है और उसे वहां से जाने देता है।

इंस्पेक्टर,” तुम यहाँ किसके साथ रहते हो ? “

बच्ची,” माई और बाबू के साथ। “

इंस्पेक्टर,” सच्ची में यही तुम्हारे माँ बाबू हैं ? “

बच्ची,” वो मेरी माई और वो मेरे बाबू हैं। बाबू के माई बाबू दादा दादी है। माई के माई बाबू नाना नानी है और हाँ… एक कालू काका भी हैं। “

हवलदार,” बस बस रेल गाडी रोको। “

इंस्पेक्टर,” ठीक है बेटा, अब तुम जाओ। “

इंस्पेक्टर उसे एक टॉफी पकड़ा देता है और उसे वहां से जाने देता है।

तीसरा बच्चा बहुत मोटा और हंसमुख था। बच्चे को ज़ोर ज़ोर से हंसता देखकर हवलदार कहता है।

हवलदार,” तुम हंस क्यों रहे हो ? “

बच्चा,” अंकल, मुझे एक नहीं पांच टॉफी देना। “

हवलदार,” मेरे पास तो बस एक ही टॉफी बची है। “

बच्चा,” नहीं, मुझे पांच देना। “



हवलदार (मन में),” अबे मोटे ! इतनी टॉफी खाके और मोटा हो जायेगा। “

बच्चे की मां,” मेरे लकड़ी जैसे बेटे को मोटा कहा, शर्म नहीं आई तुम्हें ? “

हवलदार,” मैंने कब मोटा कहा ? “

इंस्पेक्टर,” इसने तो कुछ भी नहीं कहा। “

बच्चे की मां,” हम लोग मन की बात जान लेते हैं। इस हवलदार की जेब पूरी पांच टॉफी है और इसने मेरे लाला को मोटा भी कहा। “

हवलदार,” ये लो, तुम सब रखो। चलो अब तुम लोग जाओ। “

दोनों सर्कस से निकलकर सड़क पर बनी पान की दुकान पर चले जाते हैं।

इंस्पेक्टर,” ऐ भैया ! दो पान बनाना। “

दुकानदार,” अभी 2 मिनट में बनाता हूँ साहब। “

इंस्पेक्टर,” सुनो… मक्खीराम का बेटा जंबूरी कल शाम से गायब है, तुमने उसे कहीं देखा है ? “

दुकानदार,” साहब, जंबूरी के लिए इतना परेशान हो रहे हो। कोई काम वाम नहीं लगता आपके पास। “

हवलदार,” ऐ ! ज्यादा जुबान मत चलाओ। जो पूछा बस वो बताओ। “

दुकानदार,” नहीं साहब, देखा तो नहीं। कहां जाएगा वो बेचारा, उस गधी के पास ही होगा। “

इंस्पेक्टर,” कौन गधी..? “
दुकानदार,” उसकी माँ और कौन ? “

दुकानदार,” उसकी माँ को गधी कहते तुम्हें शर्म नहीं आती ? “

दुकानदार,” साहब, अब गधी को गधी ना कहूँ तो और क्या कहु ? पास वाले गांव के रतिनाथ के यहाँ रहती है। आप इतनी चिंता मत करो, वो जंबूरी वहीं गया होगा। “

इंस्पेक्टर और हवलदार रतिनाथ के घर जाते है।

हवलदार,” हाँ भाई रतिनाथ, हमें सब पता चल गया। “

रतिनाथ,” क्या साहब ? “

हवलदार,” वो जंबूरी यहीं है। “

रतिनाथ,” मैं सच कहता हूँ, इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैंने तो जब जंबूरी को मक्खीराम को बेचा था, उसके बाद कभी मुड़कर भी उसकी ओर नहीं देखा। “

हवलदार,” अच्छा बेटा… बच्चे को गोद नहीं दिया, बेचा है। तुम ये भी करते हो ? “

इंस्पेक्टर,” तुम्हें तो अच्छे से देखूंगा। “

रतिनाथ,” साहब मुझे रुपयों की सख्त जरूरत थी वरना…। “

इंस्पेक्टर,” कहां है वो, बुला उसे ? “

रतिनाथ,” साहब, इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। वो खुद ही वहाँ से भागकर अपनी माँ के पास आ गया। “

हवलदार,” अबे सुना नहीं, साहब ने क्या कहा ? बुला उसे। “

रतिनाथ,” साहब, वो रहे दोनों, जंबूरी और उसकी माँ। “

हवलदार,” कहां है ? “

रतिनाथ,” साहब, हैं तो सामने। ” 



इंस्पेक्टर,” कहां हैं ? सामने तो बस दो गधे खड़े हैं। “

रतिनाथ,” ऐ जंबूरी ! इधर आ। “

गधी का बच्चा दौड़ते हुए आ गया।

रतिनाथ,” साहब, यही तो है जंबूरी। “

इंस्पेक्टर,” ये है मक्खीराम का बेटा ? “

रतिनाथ,” साहब, उसकी अपनी कोई औलाद नहीं है ना तो वो मेरी गधी का बच्चा ले गया। कह रहा था कि यही अब से मेरा बेटा है। “

हवलदार,” अच्छा ठीक है, ठीक है। “

इंस्पेक्टर और हवलदार वहां से चले जाते हैं। 

रास्ते में…
इंस्पेक्टर,” तूम ने मक्खीराम से पूछा क्यों नहीं कि जंबूरी कौन है ? “

हवलदार,” सर, मैंने पूछा था। उसने कहा कि जंबूरी उसका बेटा है। “

 इंस्पेक्टर,” ये क्यों नहीं पूछा कि वो इंसान का बेटा या जानवर का ? “

हवलदार,” सर, मक्खीराम तो इंसान है। तो मैंने सोचा…। “

हवलदार (मन में),” तुम्हें मैं क्या कहूं ? तुमसे ज्यादा समझदार तो वह जंबूरी है। “

थाने में पहुँचकर…
इंस्पेक्टर,” मक्खीराम को बुलाओ। “

मक्खीराम और उसकी पत्नी आते हैं। 

इंस्पेक्टर,” मक्खीराम, तुम ने हमें पहले क्यों नहीं बताया कि जंबूरी गधा है ? “

मक्खीराम,” साहब, किसी ने ये वाला सवाल पूछा ही नहीं। “

हवलदार,” तुम ही उसे ‘मेरा बेटा – मेरा बेटा’ कह रहे थे। “

मक्खीराम,” साहब, वो मेरा बेटा ही है। “

इंस्पेक्टर,” तुम्हारा बेटा रतिनाथ के घर अपनी माँ के पास है। “


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मक्खीराम,” साहब, इतनी दूर… वो वहाँ चला गया ? “

इंस्पेक्टर,” हाँ, और सुनो… तुम उसे अपनी माँ से मिलने से नहीं रोक सकते। “



मक्खीराम,” मैंने उस रतिनाथ को रूपये…। “

इंस्पेक्टर,” हमें पता है कि तुमने जंबूरी को उससे खरीदा है। तुम उसे अपने पास रख सकते हो। पर उसकी माँ से मिलने से नहीं रोक सकते। समझे..? “

मक्खीराम,” जी साहब, अब से मैं खुद ही उसे मिलवा लाया करूँगा। “

इंस्पेक्टर,” पता नहीं मेरा प्रमोशन कब होगा ? सोचा था ये केस सॉल्व होते ही प्रमोशन पक्का। कमवक्त केस… केस ही नहीं रहा। “


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