घमंडी पेड़ | Proud Tree | Hindi Kahani | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ घमंडी पेड़  ” यह एक Bed Time Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Best Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
घमंडी पेड़ | Proud Tree | Hindi Kahani | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories

Ghamandi Ped|Proud Tree| Hindi Kahani| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories

 घमंडी पेड़ 

भवानीपुर गांव में एक बरगद का पेड़ था। उस गांव के लोग उस पेड़ को भूतिया पेड़ कहते थे; क्योंकि रात होते ही उस पेड़ से कभी रोने की तो कभी हंसने की आवाजें आने लगती थी। 
चंदन नाम का एक व्यक्ति उस पेड़ के पास से होकर गुजरा। तभी पेड़ से डरावनी आवाजें आने लगी। आवाज सुनकर वह पूरी तरह से डर गया और बीमार पड़ गया।
नरेश – पता है किशोर… कल शाम चंदन इस पेड़ से होकर गुजरा। डरावनी आवाजें सुनकर वह तो बीमार पड़ गया है।
किशोर – जब उसे पता है कि यह पेड़ भूतिया है तो क्यों ऐसी गलती दोबाराता है ?
नरेश – हां ! सही कहा।
किशोर यह कहकर जब अपने घर लौटता है तो उसकी पत्नी उससे कहती है कि हमारा बेटा बहुत बुरी तरह बीमार पड़ गया है। रात का वक्त होता है और उसकी पत्नी बेटे के इलाज के लिए किशोर को डॉक्टर बुलाने के लिए कहती है।
किशोर की पत्नी – सुनिए जी… हमारा बेटा बहुत बुरी तरह बीमार पड़ गया है। जल्दी से डॉक्टर को बुलाना होगा।
किशोर – समय तो देखो, बहुत रात हो चुकी है। इतने समय कौन डॉक्टर मौजूद होगा ? दवा लेने के लिए भी मुझे बहुत दूर जाना पड़ेगा।
किशोर की पत्नी – हां तो जाइए ना। अगर नहीं गए तो हमारा बेटा बहुत ही ज्यादा बीमार पड़ जाएगा।
किशोर उसी वक्त आधी रात को दवा लेने के लिए निकल जाता है। वह जिस रास्ते से होकर जाता है उस रास्ते पर बहुत सारे पेड़ गिरे पड़े होते हैं जिसकी वजह से वह रास्ता बंद रहता है। किशोर उन पेड़ों को उठाने की भी कोशिश करता है लेकिन उससे यह नहीं हो पाता है। 
फिर वह कहता है – अरे यह रास्ता तो पूरी तरह बंद है। अब मेरे लिए केवल वही भूतिया रास्ता है। हे भगवान ! मेरी रक्षा करना।

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किशोर अपने पांव उसी भूतिया रास्ते की ओर मोड़ लेता है और चलना शुरू कर देता है। जैसे ही वह भूतिया पेड़ के पास से होकर गुजरता है वैसे ही पेड़ से रोने की आवाजें आने लगती है। 
किशोर पूरी तरह डर जाता है और भागते हुए वहां से निकलता है। कुछ समय बाद किशोर दवा लेकर वापस लौटता है।
हे भगवान ! बस इस बार मुझे बचा ले। दोबारा मैं इस रास्ते पर कभी कदम नहीं रखूंगा। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर… जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
तभी पेड़ से आवाज आना शुरू हो जाती है – बचाओ… बचाओ… कोई मुझे बचाओ।
आवाज सुनकर किशोर कांपने लगता है और वहां से भागने लगता है। घर आकर जब उसकी पत्नी उसे हांफते हुए देखती है तो पूछती है – क्या हुआ जी ? इस तरह हाफ क्यों रहे हो ?
अरे ! आज तो मैं बाल-बाल बच गया।
क्यों..? ऐसा क्यों बोल रहे हो ?
अरे! वो भूतिया पेड़ मुझे मार डालता।
लेकिन तुम उस रास्ते से होकर क्यों आए ? दूसरा भी तो रास्ता है।
अरे ! उस रास्ते पर बहुत सारे पेड़ गिरे हुए थे जिससे रास्ता पूरी तरह बंद था। इसलिए मुझे भूतिया पेड़ वाले रास्ते से होकर जाना पड़ा।
इतना कहते कहते हैं किशोर बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है।
यह देख किशोर की पत्नी बहुत डर जाती है और उसे तुरंत बिस्तर पर लिटाकर उसके माथे पर भीगा हुआ कपड़ा रख देती है।
किशोर बहुत बुरी तरह डर गया था और इसीलिए बीमार हो जाता है।

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लगभग 1 हफ्ते बाद किशोर पहले की तरह स्वस्थ हो जाता है और गांव के लोगों को अपने साथ हुई सारी घटना बताता है। गांव के लोग यह सुनकर पहले से भी ज्यादा डर जाते हैं और उस रास्ते से आना जाना बंद कर देते हैं।
उसी गांव में देवदास नाम का एक व्यक्ति रहता था। उस गांव में वह कपड़े की दुकान करता था। आस पास के गांव में कपड़े की दुकान न होने के कारण गांव और आसपास के भी लोग उसी की दुकान पर आते थे। 
जिससे देवदास काफी व्यस्त रहता था इसलिए उसने छोटू नाम के एक लड़के को अपनी दुकान पर रख लिया जो उसके काम में हाथ बंटाता था।
सुन बे छोटू… यह सभी कपड़े जो अभी ग्राहक को दिखाए थे वह सभी पहले की तरह रख दे।
जी मालिक…।
यह कहकर छोटू अपने काम में लग जाता है और देवदास खाना खाने के लिए अपनी दुकान से घर के लिए रवाना हो जाता है।
छोटू अपने मालिक के सामने कोई भी शरारत नहीं करता था और काम में लगा रहता था। लेकिन मालिक के घर जाते ही वह अपने दो दोस्तों को उसी दुकान पर बुला लेता था और बातें करता रहता था। 
उस बीच आने वाले ग्राहकों को वह दुकान से भगा देता था और मालिक की मौजूदगी में ही आने को कहता था। जब देवदास के लौटने का समय हो जाता था तो छोटू अपने दोस्तों को घर जाने के लिए कह देता था। काफी दिनों तक ऐसे ही चलता रहा।
एक दिन देवदास दुकान से घर आ रहा था। तभी उसे रास्ते में एक जान पहचान का व्यक्ति मिलता है। देवदास उससे कहता है – क्यों भाई… आजकल दिखाई नहीं देते हो। और ना ही खरीददारी के लिए दुकान पर आते हो। क्या हुआ है ?
अरे ! कुछ नहीं भाई, गया तो था तुम्हारी दुकान पर कुछ दिन पहले लेकिन वह छोटू कुछ लड़कों के साथ दुकान पर बैठा था। और उसने कहा कि जब मालिक हो तभी दुकान पर आना। उनकी मौजूदगी में ही कपड़े बेचे जाएंगे। यह सुनकर मैं लौट आया।

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अच्छा… लेकिन मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा है। और… दुकान पर तो वह अकेला ही रहता है।
अच्छा ठीक है मैं चलता हूं।
अगले दिन देवदास दुकान से घर खाने के लिए आता है और जल्दी-जल्दी खाना पीना करके तुरंत दुकान के लिए लौट जाता है। जैसे ही वह दुकान पर पहुंचता है, उसे छोटू और उसके दोस्त हंसी मजाक करते हुए दिखाई देते हैं।
वह छोटू को डांटते हुए कहता है – क्यों बे छोटू यह दुकान है या धर्मशाला ? दोस्तों से बातें करनी है तो घर जाकर करना। निकलो मेरी दुकान से और कल से काम पर भी मत आना।
छोटू देवदास की डांट फटकार सुनकर बहुत गुस्सा होता है क्योंकि उसे उसके दोस्तों के सामने डांटा गया था।
दुकान से बाहर निकलकर छोटू अपने दोस्तों से कहता है – मालिक ने ये ठीक नहीं किया। अब मुझे इन्हें सबक सिखाना ही होगा।
सबक… कैसा सबक ?
छोटू कहता है – क्यों ना रात को मालिक को उस भूतिया पेड़ से जाकर बांध दिया जाए ? फिर जो भी होगा उससे मालिक की अकल ठिकाने आ जाएगी।
देवदास जब रात को दुकान बंद करके घर लौट रहा था तो पीछे से छोटू ने उसके आंखों पर पट्टी बांध दी जिससे देवदास को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। 
छोटू और उसके दोस्तों ने मिलकर देवदास को उस पेड़ से जाकर बांध दिया और पीछे से उसके आंखों की पट्टी खोल दी और वहां से बिना आवाज की भाग गए।
देवदास को यह पता भी नहीं था कि उसके साथ यह सब किसने किया। लेकिन जब उसे पता चला कि वह भूतिया पेड़ से ही बांधा हुआ है तो वह डरने लगा। 
लेकिन किसी तरह वह हिम्मत बनाकर अपने हाथ आगे पीछे करता रहा जिससे कुछ ही टाइम में उसके हाथ की रस्सी ढीली हो गई और उसके हाथ खुल गए। हाथों को इधर-उधर करते समय पेड़ से बंधा एक लाल धागा भी खुल गया।

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देवदास सारी रस्सियों को खोलकर घर के लिए भागने ही वाला था कि तभी अचानक सामने एक तेज रोशनी हुई और उसमें से एक नन्हीं परी निकल कर बाहर आई।
देवदास यह देखकर हैरान हो जाता है और पूछता है – तुम कौन ?
नन्ही परी जवाब देती है – मैं एक परी हूं। और यह पेड़ कोई साधारण पेड़ नहीं है बल्कि एक जादुई पेड़ है। इस पेड़ की रक्षा के लिए मुझे एक दानव से लड़ना पड़ा। लेकिन उस दानव ने धोखे से मुझे इस पेड़ में कैद कर दिया।
मुझे नहीं पता लेकिन मैंने तो केवल अपने हाथों की रस्सी को खोला है। शायद रस्सी खोलते समय लाल धागा भी खुल गया होगा।
हां लाल धागे से ही उसने मुझे इस पेड़ के अंदर कैद कर दिया था। लेकिन अब मैं आजाद हूं।
यह कहकर नन्ही परी गायब हो जाती है और तभी जादुई पेड़ बोलने लगता है – तुमने आज नन्ही परी को ही आजाद नहीं किया बल्कि मेरी शक्तियों को भी दोबारा जिंदा किया है। बोलो… तुम्हें क्या चाहिए ?
मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस मैं इतना जानना चाहता हूं कि यह सब मेरे साथ किसने किया है ?
जादुई पेड़ कहता है – अच्छा ठीक है… अब तुम घर जाओ। सुबह होते ही जिस किसी ने भी तुम्हें सताया है वह इस पेड़ से उल्टा लटका हुआ मिलेगा।
देवदास घर चला जाता है और रात को जादुई पेड़ अपनी शक्तियों से उन तीनों को अपने पास बुलाता है और उल्टा करके पेड़ से लड़का देता है।
देवदास जब सुबह होते ही पेड़ के पास जाता है तो उसे छोटू और उसके बाकी दो दोस्त पेड़ से उल्टा लटके हुए दिखाई देते हैं। देवदास कहता है – अच्छा तो वह तुम थे। अब तुम्हें मैं सबक सिखाऊंगा।
देवदास पुलिस को बुलाता है और उन तीनों शैतान बच्चों को उनके हवाले सौंप देता है।
जादुई पेड़ से नन्ही परी आजाद हो चुकी थी इसलिए अब उस पेड़ से किसी भी तरह की रोने या हंसने की आवाज नहीं आती थी जिससे धीरे-धीरे गांव के लोग उस रास्ते से आना-जाना शुरू कर देते हैं। और रात को भी लोग बिना डरे उस रास्ते से आते जाते रहते हैं।
जादुई पेड़ अब उस गांव के लोगों की मदद करने लगा था। गांव के लोग अपनी समस्याएं लेकर उस पेड़ के पास जाते और पेड़ उनकी समस्याओं को हल कर देता था।
इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment हमें जरूर बताएं।

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