हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” घमंडी सेठ ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Written Stories या Bedtime Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
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घमंडी सेठ
गांव में पेड़ के नीचे कान्हा बैठा हुआ था, तभी उसके पास गांव के कुछ बच्चे आये और बोले।
बच्चे,” दादा जी, एक कहानी सुनाओ ना। “
कान्हा,” बताओ, कौन सी कहानी सुनाऊं ? “
बच्चे ,” जन्माष्टमी आ रही है, उसी पर कोई कहानी सुना दो। “
कान्हा,” ठीक है। ये उस वक्त की बात है जब हमारे गांव में दुर्जनसिंह का कहर हुआ करता था।
सभी लोग उससे बहुत डरा करते थे। वीरपुर गांव में देवा नाम का एक गरीब पंडित रहा करता था।
वो अपनी पत्नी दीपा और दो बच्चों के साथ रहता था। उसके पुत्र का नाम कान्हा और पुत्री का नाम नैना था।
देवा बहुत ही सीधा और ईमानदार ब्राह्मण था, जो गांव के ही एक मंदिर का पुजारी था। मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ी जमीन का खाली हिस्सा था जिसमें आम, सेब, अमरूद आदि के पेड़ थे जो देवा के पूर्वजों ने मंदिर को दान दे रखा था।
उसी जमीन पर गांव का दुष्ट अजगर पांडे की दृष्टि थी। लेकिन ईमानदार देवा के रहते यह संभव नहीं था। “
कहानी में…
अजगर पांडे,” अरे देवा ! कब तक ईमानदार दरिद्र ब्राह्मण बने रहोगे ? बच्चो के तो भविष्य की कम से कम चिंता करो।
तुम अगर साथ दो तो मंदिर को दान दिया हुआ जमीन मुझे बेचकर अमीर बन सकते हो। “
देवा,” तुम अपने इरादों का क्रियाक्रम कर दो क्योंकि मैं भगवान और पूर्वज से गद्दारी नहीं कर सकता… समझे ? “
अजगर पांडे,” तुम्हें ये ईमानदारी एक दिन भारी पड़ेगी। “
यह कहकर अजगर पांडे वहां से चला जाता है। अगले दिन देव का बेटा स्कूल जाता है।
मास्टर जी,” कान्हा, तुम मना करने के बावजूद आज फिर से फटी हुई ड्रेस पहनकर आये हो। जूते की जगह चप्पल नहीं चलेगा। “
कान्हा,” मैंने पिता जी से बोला था। लेकिन उन्होंने कहा कि अगले महीने नया ड्रेस ला देंगे। “
मास्टर जी उसकी एक नहीं सुनते और उसे स्कूल से बाहर निकाल देते हैं। कान्हा रोते हुए स्कूल से घर की ओर पैदल निकल जाता है। रास्ते में उसे एक लड़का मिलता है।
लड़का,” तुम क्यों रो रहे हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? “
कान्हा,” मेरा नाम कान्हा है। मेरे पास स्कूल की ड्रेस नहीं थी इसलिए गुरु जी ने स्कूल से निकाल दिया।
हम गरीब हैं ना, इसलिए हमारे पास औरों की तरह अच्छी चीजें नहीं हैं। कभी कभी लगता है कि अगर मेरे पास भी अच्छे कपड़े होते तो गुरूजी कभी मुझे स्कूल से नहीं निकालते।
पता है मेरे साथ कोई नहीं खेलता। क्या गरीब होना कोई बुरी बात है ? “
लड़का,” नहीं कान्हा, गरीब होना कोई बुरी बात नहीं। अगर कुछ बुरा है तो वो है किसी का बुरा होना।
इसलिए तुम दुखी मत हो। मैं तुम्हारे साथ खेलूँगा, समझे ? चलो अब रोना बंद करो। “
कान्हा ,” तुम्हारा नाम क्या है ? “
लड़का,” मेरा नाम केशव है। तुम रोज़ यहाँ आ जाना, मैं तुम्हारे साथ खेलूँगा… ठीक है ? “
कान्हा,” तुम मुझसे दोस्ती करोगे ? “
केशव ,” क्यों नहीं ? “
कान्हा,” आज से तुम मेरे पक्के वाले दोस्त। “
केशव,” लेकिन मेरे बारे में किसी को बताना नहीं। अगर बताया तो फिर मैं नहीं आऊंगा। “
कान्हा,” ठीक है। अरे केशव ! तुम्हारे पीछे सांप है, भागो…। “
केशव सांप को पकड़कर नदी में फेंक देता है। लेकिन दुष्ट सांप फिर से कान्हा को काटने के लिए बढ़ता है। तभी केशव सांप को पकड़कर नदी में फेंक देता है।
कान्हा,” वाह ! तुम तो बड़े बहादुर हो। मैं रोज़ आकर तुम्हारे साथ खेलूँगा। “
केशव,” ये घटना किसी से मत कहना। “
मास्टर जी,” पुजारी जी, अरे ओ पुजारी जी ! रुको ज़रा। “
देवा,” अरे मास्टर साहब ! प्रणाम, कहिये कैसे हैं ? “
मास्टर जी,” मैं तो ठीक हूँ लेकिन कान्हा की तबियत ठीक नहीं है क्या ? “
देवा,” उसकी तबियत को क्या हुआ भला ? वो तो भला चंगा है। स्कूल तो रोज़ आता ही है आपके पास। “
मास्टर जी,” अरे कान्हा एक सप्ताह से स्कूल कहाँ आ रहा है ? हमने सोचा कि लगता है बीमार होगा।
नैना तो हमारे स्कूल में दूसरे बिल्डिंग में है, इसलिए आपसे पूछ लिया। “
देवा,” क्या..? माफ़ कर दीजिए मास्टर जी, मैं अभी पता करता हूँ कि क्या बात है ? “
देव वहां से सीधा घर जाता है।
देवा,” पहले ये बताओ कि तुम स्कूल क्यों नहीं जा रहे एक सप्ताह से ? “
दीपा,” क्या बोल रहे हैं जी ? मेरा बेटा तो रोज़ स्कूल जाता है। मैं रोज़ तैयार कर खुद इसे स्कूल भेजती हूँ। “
देवा,” अभी रास्ते में मास्टर साहब मिले थे, वही बता रहे थे कि कान्हा एक सप्ताह से स्कूल नहीं जा रहा है। “
कान्हा ,” स्कूल ड्रेस फट गया है। मास्टर साहब बोलते हैं कि अगर कल से नया ड्रेस और जूता नहीं लिया तो स्कूल नहीं आना और मुझे स्कूल से निकाल दिया। “
देवा,” हे भगवान ! और कितनी दरिद्रता दिखाएंगे ? अब बस कीजिये, अब सहा नहीं जाता। “
दीपा,” लेकिन तू एक सप्ताह से स्कूल के समय जाता कहाँ है ? “
कान्हा,” नदी किनारे जो टूटी हुई मंदिर है, उसके पास मेरा दोस्त केशव रहता है। उसी के साथ खेलता हूँ रोज़।
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वो भी मेरी उम्र का है। वो बहुत ही बहादुर है। अकेल एक बड़ा सांप मार डाला उसने। “
देवा,” जहां तक मुझे जानकारी है, तुम्हारी उम्र का कोई केशव नाम का बच्चा अपने गांव में नहीं रहता। “
कान्हा,” पिताजी, केशव मेरा दोस्त है। मैं आपको मिलवा भी दूंगा। मैं झूठ नहीं बोल रहा। परसों उसका जन्मदिन भी है। “
दीपा,” सुनो जी, नैना का कल जन्मदिन है। वो कल 12 साल की हो जाएगी। हमारे पास पैसे नहीं है उसका जन्मदिन मनाने के लिए। “
देवा,” क्या करूँ भाग्यवान ? ये दरिद्रता हमारा पीछा ही नहीं छोड़ रही।
मंदिर में जो चढ़ावा आता है, उसका तीन चौथाई हिस्सा डकैत दुर्जन सिंह ही ले जाता है। सिर्फ एक हिस्सा ही हमें मिलता है। “
दीपा,” आपको कई बार कहा है कि इसकी शिकायत पंच लोग से कीजिए। लेकिन आप हैं कि सुनते ही नहीं हैं। “
देवा,” दुर्जन सिंह के पूर्वजों के समय से मंदिर के चढ़ावे का तीन हिस्सा उनको जाता है। कहते हैं कि दुर्जन सिंह के दादा के दादा जालिम सिंह एक बार पूरे वीरपुर को लूटने के बाद इस मंदिर की सोने की मूर्तियों को भी ले जा रहा था।
तब हमारे दादा के दादा विष्णु देव ने भगवान की दुहाई दी और वादा किया कि मंदिर के चढ़ावे का तीन हिस्सा डकैतों को जाएगा। तब से यह एक तिहाई उन्हें ही जाता है। “
नैना,” पिताजी, मेरी सहेली बबली का पिछले महीने जन्मदिन था। उसने जो फ्रॉक पहना था ना, वैसी ही फ्रॉक मुझे चाहिए। अगर मुझे वो फ्रॉक नहीं मिला तो मैं जन्मदिन नहीं मनाउंगी। “
देवा,” बेटा, ऐसा नहीं करते। देखो बेटा… बबली के पिता जी सेठ धूमलदास का शहर में सबसे बड़ा सुपर मार्केट है।
उनकी कमाई लाखों में है। हम लोग उनकी बराबरी नहीं कर सकते हैं। “
दीपा,” हाँ बेटा, जिद नहीं करते। अब की बार तेरा जन्मदिन धूमधाम से मनाएंगे। “
दूसरे दिन सुबह सुबह ही दीपा उठकर नैना को मंदिर जाने के लिए उठाती है। लेकिन नैना बोलती है कि जब तक बबली जैसा फ्रॉक नहीं मिल जाता, मैं जन्मदिन नहीं मनाउंगी।
ये सुनके दीपा को बहुत बुरा लगता है और वह कुछ देर बाद नैना का फ्रॉक और कान्हा के लिए स्कूल ड्रेस लेकर आ जाती है। नैना सभी दोस्तों को जन्मदिन की पार्टी में बुलाती है।
बबली,” अरे ! ये फ्रॉक तो बिल्कुल मेरी तरह है। बहुत ही कीमती फ्रॉक है वाउ ! “
नैना,” हाँ, मेरी माँ लेकर आई है। “
बबली,” वाह ! कितना सुंदर केक है ? क्या बात है ? “
पार्टी में सभी नैना की सुंदर फ्रॉक के बारे में चर्चा करते रहते है। कोई बोलता है कि पुजारी जी को लगता है गढ़ा खजाना मिल गया है।
नहीं तो जिनको एक दिन खाने के लिए सोचना पड़ता था, वो इतनी अच्छी पार्टी कहाँ से रखते ?
बूढ़ा आदमी,” पुजारी जी, सचमुच आपकी बेटी की जन्मदिन की पार्टी बहुत अच्छी रही। मेरी शुभकामनाएँ बिटिया के साथ हैं। फ्राक मैं बिल्कुल परी लग रही है, हाँ। “
धूमलदास,” इस ड्रेस की कीमत हजारों रुपए में है। परसो ही मैंने बबली के जन्मदिन पर उसे खरीदकर दिया था। “
तीसरा आदमी,” लगता है पुजारी जी को कोई गुप्त धन की प्राप्ति हुई है। क्यों पुजारी जी ? “
देवा,” अरे ! मुझ दरिद्र ब्राह्मण के पास कहाँ से धन आएगा ? पता नहीं दीपा ने कहां से पैसे का इंतजाम किया है ? “
बूढ़ा आदमी,” ठीक है पुजारी जी, अब चलता हूँ। रात भी ज्यादा हो गयी है। आपको भी कल जल्दी उठना होगा। कल जन्माष्टमी है ना ? “
देवा,” हाँ हाँ, कल मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनेगा। “
अगले दिन…
देवा,” हे भगवान ! अनर्थ हो गया। घोर कलयुग आ गया। अब तो भगवान भी सुरक्षित नहीं। “
अजगर पांडे,” क्या हुआ पुजारी जी ? सवेरे सवेरे मंदिर के बाहर इतनी भीड़ कैसी ? “
देवा,” मंदिर के आभूषण गायब हो गए हैं। “
मुखिया,” ऐसा कैसे हो गया ? आज तक हमारे गांव में कभी ऐसा नहीं हुआ। “
पता नहीं मुखिया जी ये सब कैसे हो गया। मैंने कल खुद मंदिर की सफाई करके ताला लगाया था। ताले की चाबी किसके पास है ?
चाबी तो मेरे ही पास रहती है। आज जब मैं सुबह आया तो ताला लगा हुआ था। रोज़ की तरह जैसे ही ताला खोलकर अंदर घुसा तो देखा कि भगवान के सोने के आभूषण गायब है। “
अजगर पांडे,” क्यों देवा… सभी बता रहे थे कि कल रात की तुम्हारी पार्टी करोड़पति सेठ धूमलदास से भी शानदार थी। नहीं, मुझे तुम्हारी ईमानदारी पर कतई शक नहीं। लेकिन कहीं भाभी जी ने… “
देवा,” आजगर मुँह संभल कर बात करो। “
मुखिया,” लेकिन शानदार पार्टी पर गुप्त धन की बात पर तूने भी भाभी जी का ही नाम लिया था। “
देवा,” दीपा, तुम बताओ कि जो ये लोग शक कर रहे हैं, उसकी सच्चाई क्या है ? “
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दीपा,” आप भी मुझ पर शक कर रहे हो ? ठीक है, मुझे अपने कान्हा जी पर पूरा भरोसा है। अब तो वो ही इंसाफ करेंगे। “
अजगर पांडे,” एक वक्त का खाने का ठिकाना नहीं तुम लोगो का और चले गांव वालों को पार्टी देने। मूर्ख समझा है क्या हम लोगों को ? “
दीपा,” मैंने चोरी नहीं की है। आप सब मेरा यकीन करो।
मैंने पार्टी के लिए अपने सोने के कंगन बेचे थे क्योंकि मैं अपनी बेटी को उसके जन्मदिन पर दुखी नहीं करना चाहती थी। “
अजगर पांडे,” वाह जी वाह ! जिन लोगों को हर चीज़ से पहले सोचना पड़ता है। उन्होंने सोने का कंगन बेचने से पहले एक बार भी नहीं सोचा… वाह ! “
दीपा,” आप जाकर जौहरी से पूछ लीजिये, वो सब जानता है। “
अजगर पांडे,” अरे वाह ! हमें मूर्ख समझती हो ? हम सब जानते हैं। पक्का तुमने चोरी से पहले ये सब किया होगा ताकि तुम पर कोई शक ना करे और जब बात तुम पर आये तो तुम इस तरह से बच जाओ।
मुझे तो लगता है चोरी इन्हीं दोनों ने की है और अब भोले बन रहे हैं। मैं तो कहता हूँ कि इन सब के सब को गांव से निकाल दो।
हमारे गांव और हमारे मंदिर को ऐसे पुजारियों की कोई जरूरत नहीं है जिनका कोई धर्म ईमान ना हो। “
तभी गांव में पुलिस आती है और देव को गिरफ्तार करके ले जाती है। देवा की पत्नी, बच्चे सभी रोते बिलखते रह जाते हैं।
अजगर पांडे,” एक को तो पुलिस ले गई। अब तुम अपने इन बच्चों को लेकर निकल जाओ हमारे गांव से। हमारे गांव में तुम जैसे की कोई जगह नहीं। आज सूर्यास्त होने से पहले निकल जाना… समझ गए ? “
दीपा ,” लेकिन यहाँ हमारा घर है। हम अपने घर को छोड़कर कैसे जा सकते हैं ? “
अजगर पांडे,” वो सब हमें नहीं पता। जो बोल दिया सो बोल दिया। “
दीपा नैना और कान्हा के साथ गांव छोड़कर दूसरे गांव जाने लगती है। रास्ते में उसे एक मंदिर दिखाई पड़ता है।
दीपा,” ये सब क्या हो गया प्रभु ? आज तक हम जैसे भी थे लेकिन कम से कम गांव में थोड़ी इज्जत तो थी।
सोचा था कि शायद आपकी कृपा से हमें मिला है। लेकिन क्या वो इज्जत इसलिए मिली थी ताकि एक दिन वो इस तरह सबके सामने तमाशा बना दी जाए ?
हर दुख सहा प्रभु लेकिन कभी शिकायत नहीं की। आज नहीं सहा जा रहा, बहुत तकलीफ हो रही है प्रभु।
या तो सब ठीक कर दो या इतनी शक्ति दे दो कि ये सब सह सकूँ। प्रभु ! ये समझ नहीं आ रहा है कि आप तक मेरी विनतियां पहुंचती नहीं है या आप सुनना नहीं चाहते।
आपके तो दुनिया में कितने भक्त होंगे ? लेकिन मेरे लिए तो आप ही हैं ना सब कुछ ?
हर खुशी में, हर दुख में मेरे लिए सब कुछ आप ही थे। आप तो किसी के साथ गलत नहीं होने देते ना ?
तो फिर ये सब क्यों हो रहा है मेरे परिवार के साथ ? ना जाने प्रभु क्यों ऐसा लग रहा है कि ये सब आपने मुझे मेरी भक्ति का फल दिया है ?
पता नहीं फिर कब आपसे मिलने यहाँ पाऊंगी ? मेरा आखरी प्रणाम स्वीकार करो प्रभु। “
तभी कान्हा केशव से मिलने उसके पास जाता है।
केशव,” क्यों रो रहे हो कान्हा ? “
कान्हा,” वो… वो मेरे पिताजी… पुलिस। “
केशव,” दोस्त, मुझे सब मालूम है। “
कान्हा ,” जब तुम्हें मालूम है तो तुम क्यों नहीं चोर को पकड़कर सामने लाये ? पुलिस मेरे पिताजी को पकड़कर ले गई। “
केशव,” तुम्हें बताया था ना कि आज मेरा जन्मदिन है। इसलिए थोड़ा व्यस्त था। चलो मंदिर के पास, तुम्हें तमाशा दिखाता हूँ। “
तभी वह दोनों देखते हैं कि डकैतों का एक बड़ा सा झुंड घोड़े पर सवार तेजी से मंदिर के सामने आ खड़ा होता है।
डकैत,” पुजारी जी, हमें बचा लो। एक घंटे से हमारे ही घोड़े हम लोगों को ही लात मार मारकर जान लेने पर उतारू हैं। ये रहे भगवान के आभूषण, हमें बचा लो। “
डकैत,” ऐसपी साहब, हमें जेल में डाल दो, नहीं तो ये हमें मार देंगे। “
देवा,” दुर्जन सिंह, तुझे भगवान के चढ़ावे का तीन चौथाई हिस्सा तुझे मिलता है फिर भी आभूषण चुरा लिए। “
दुर्जन सिंह,” जी वो… आभूषण चुराने का आइडिया तुम्हारे ही गांव के अजगर पांडे का था।
उसी ने मुझे आभूषण चोरी के लिए चाबी दी थी और ये कहा कि कल रात पुजारी के यहाँ शानदार पार्टी हुई है इसलिए लोगों का शक पुजारी पर जायेगा। “
कान्हा और केशव दोनों दूर खड़े यह दृश्य देख रहे होते हैं।
कान्हा,” ठीक है, अब मैं चलता हूँ। मेरे जन्मदिन पर सभी मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। “
देवा,” मुझे माफ़ कर देना, दीपा। मैंने तुम पर शक किया। मैं अच्छा पति नहीं बन पाया। “
दीपा,” कोई बात नहीं जी, परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थीं। लेकिन अब आप सब भूल जाईये। मैं बस खुश हूँ कि सब ठीक हो गया। “
दीपा,” प्रभु ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद। ज़िंदगी भर ये दीप आपकी रहेगी। “
देवा,” अजगर पांडे और दुर्जन सिंह ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। ये सब उन्होंने ही किया था। हमारे श्रीकृष्ण हमारे साथ इतना गलत भला कैसे होने देते ? “
तभी कान्हा वहां पर आ जाता है।
कान्हा,” पिताजी… पिताजी, मेरे दोस्त केशव ने सब कुछ ठीक कर दिया। “
देवा,” कौन केशव ? “
कान्हा,” मैंने आपको बताया था ना मेरे दोस्त के बारे में ? उसी ने ठीक किया ये सब। आज जब मैं रो रहा था तो उसने कहा कि रो मत, मैं सब ठीक कर दूंगा। “
देवा,” बेटा, इस दुनिया में करनेवाला वो एक ही है, हमारे आराध्य… श्री विष्णु। “
कान्हा,” लेकिन उसने कहा, वो कर देगा सब ठीक। आपको पता है एक बार उसने सांप से मेरी जान बचाई थी ? वो किसी से नहीं डरता। “
दीपा,” कान्हा मुझे मिलना है उस बच्चे से। “
कान्हा,” वो तो चला गया। उसका जन्मदिन है ना ? उसने कहा सब उसका इंतजार कर रहे होंगे। “
दीपा,” क्या नाम बताया तुमने उसका ? “
कान्हा,” केशव। “
दीपा,” जी सुनिए, हमारे आराध्य को केशव के नाम से भी तो जाना जाता है। मैं जानती हूँ वो मेरे प्रभु ही थे। वो हमारी मदद के लिए केशव बनके बाल रूप में आये थे। “
देवा,” हाँ, मैं समझ गया तुम्हारा दोस्त केशव कौन है ? चलो मंदिर में,आज तुम्हारे दोस्त का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाएंगे। “
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कहानी खत्म हुई…
कान्हा (दादा जी),” तो ये थी मेरे दोस्त केशव की कहानी, जिसने हम सभी की मदद की थी। बच्चो, ज़ोर से बोलो… हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की। “
बूढ़ा (दोस्त),” अरे कान्हा ! बच्चों को कहानी ही सुनाता रहेगा या थोड़ा मेरे साथ भी वक्त बिताएगा ? अरे कुछ दिनों बाद तो मैं चला जाऊंगा शहर फिर सुना लिए जितनी कहानी सुनानी है। “
कान्हा,” अब चलो बच्चो, अब खेलों मैं चला अब अपने सैर सपाटे पर। “
उसके बाद कान्हा और उसका दोस्त दोनों लाठी टेकते हुए घूमने निकल जाते हैं।
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