चतुर नाई | Chatur Nai | Hindi Kahaniyan | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चतुर नाई ” यह एक Hindi Moral Story  है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
चतुर नाई | Chatur Nai | Hindi Kahaniyan | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

Chatur Nai | Hindi Kahaniyan | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

एक गांव में कनुआ नाम का एक नाई रहा करता था, जो अपने आपको गांव का सबसे ज्यादा चतुर और चालाक समझता था। एक दिन वह अपनी दुकान में गांव की मुखिया की शेव करते हुए मुखिया को बहुत गौर से देखे जा रहा था। 
मुखिया,” क्या बात है कनुआ नाई ? आज तेरा ध्यान दाढ़ी बनाने पर कम मुझे देखने पर ज्यादा है ? “
नाई,” कितनी बार कहा है आपसे मुखिया जी कि मुझे सिर्फ कनुआ कहा कीजिये ? मेरे नाम के आगे नाई मत लगाया करिये। “
मुखिया,” क्यों..? अपने नाम के आगे नाई लगाते हुए तुझे शर्म आती है ? “
नाई,” ऐसी बात नहीं है मुखिया जी। लोग अपने नाम के आगे अपनी जाति लगाते हैं, अपना पेशा नहीं। “
मुखिया,” अबे ये क्यों नहीं कहता कि तुझे अपने नाम के आगे नाई लगाते हुए शर्म आती है ? तू एक नाई है। तेरा बाप भी एक नाई था। 
यहाँ तक कि मैं तेरे दादा को भी जानता था, वो भी नाई थे। तू एक खानदानी नाई है इसलिए तेरी पहचान तेरे काम से ही होगी। अगर तुझमें कोई काबिलियत है तो छोड़ दे ये काम और कर कोई और काम। लेकिन अपने काम को लेकर कैसी शरम ? “
नाई,” अब आपको क्या बताऊँ मुखिया जी ? मुझे मेरे इसी पेशे से कितनी परेशानी उठानी पड़ रही है, मैं आपको बता नहीं। सकता ? “
मुखिया,” कैसी परेशानी ? “
नाई,” मेरी उम्र 40 वर्ष की हो चुकी है। लेकिन कोई भी लड़की मुझसे विवाह करने के लिए तैयार ही नहीं। “
मुखिया,” मुझे पता है क्योंकि तुझे लड़की सुन्दर चाहिए जबकि तूने कभी अपनी शक्ल आईने में नहीं देखी। एक बार मेरे कहने पर अपनी शक्ल आईने में गौर से जरूर देखना। “
नाई,” शक्ल का मैं इतना भी बुरा नहीं हूं मुखिया जी। “
मुखिया,” अगर इतना बुरा नहीं है तो इतना अच्छा भी नहीं है। अब सीधे सीधे बता मुझे इतनी गौर से क्यों देख रहा था ? क्या कहना चाहता है ? “
नाई,” आपको कैसे पता कि मैं आपसे कुछ बातचीत करना चाहता हूँ ? “
मुखिया,” अरे ! जब अपनी आँखें चढ़ा चढ़ाकर मेरे चेहरे को इतनी गौर से देखेगा तो मुझे यही लगेगा ना कि तू कुछ कहना चाह रहा है। लेकिन कुछ कह नहीं पा रहा। अब जल्दी बता क्या कहना चाहता है तू ? “
मुखिया की बात सुनकर कनुआ हिम्मत करके मुखिया से बोला। 
नाई,” वो… वो बात ये थी मुखिया जी। अब कैसे बोलू ? “
मुखिया,” अरे ! अपने मुँह से बोल। “
नाई,” हाँ हाँ, मुँह से ही बोलूँगा मुखिया जी। आप भी मुखिया जी… आपकी बेटी नंदिनी की अभी तक शादी नहीं हुई ना ? 
वो भी लगभग 35 के आसपास ही है। आप अपनी बेटी की शादी मुझसे करा दीजिये। “
कनुआ की बात सुनकर मुखिया गुस्से से आगबबूला होकर उठकर खड़ा हो गया और उसने जोरदार थप्पड़ कनुआ के गाल पर जड़ दिया। 
मुखिया,” तेरा दिमाग तो ठीक है कनुआ ? जानता भी है तू क्या बोल रहा है ? तेरा बाप मेरे पिता का खास नाई था।
सिर्फ तेरे बाप का लिहाज करके तुझे सिर्फ एक थप्पड़ मारा है। अगर तेरी जगह कोई और ये बोलने की हिम्मत करता ना… तो मैं उसकी मार मारकर हड्डी पसली एक कर देता। तेरी हिम्मत कैसे हुई ये सब सोचने की ? “
नाई,” मैंने ऐसा क्या गलत कह दिया मुखिया जी ? मैंने तो सिर्फ आपकी बेटी से शादी करने के लिए बोला है। “
मुखिया,” अबे बेवकूफ ! तू एक नाई है नाई। तेरा और मेरी बेटी का रिश्ता नहीं हो सकता। असंभव है… मेरी बेटी के बारे में सोचने से पहले एक बार अपना पेशा तो देख लेता। 
और चल एक बार को मैं तेरा पेशा भी भूल जाऊं पर क्या तुमने कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है ? किसी पुराने पेड़ का घटिया सड़ा हुआ आम दिखता है तू। “
इतना कहकर मुखिया गुस्से से बाहर चला गया। मुखिया की बात कनुआ को बिल्कुल भी पसंद नहीं आयी। 
नाई,” थू है मुझ पर। अरे ! अगर मैं नाई हूँ तो इसमें मेरी क्या गलती है ? क्या मेरे कोई अरमान नहीं हैं ? मेरे कोई सपने नहीं हैं ? ये गांव का मुखिया अपने आप को समझता क्या है ? 
नहीं रहना मुझे इस गांव में और नहीं करना मुझे अब ये नाई का धंधा। अब तो मैं किसी जमींदार की बेटी से विवाह करूँगा और अब इस गांव में कुछ बनकर ही लौटूंगा। “
अगले दिन कनुआ ने अपनी नाई की दुकान बंद कर दी और नए धंधे की तलाश में वो दूसरे गांव की ओर चल दिया। वह जंगल के रास्ते में ही था कि तभी उसके कानों में एक साधू की आवाज टकराई। 
साधू,” आगे मत जाना बेटा, आगे एक शेर बैठा हुआ है। “
नाई,” तुम्हारा दिमाग तो ठीक है साधू ?:शेर घने जंगलों में होते हैं। “
साधू,” मैं कोई मामूली साधू नहीं हूँ। यकीन नहीं आता तो कुछ देर मेरे पास बैठ जा। “
कनुआ साधू के पास बैठ गया। कुछ ही देर में एक शेर दहाड़ता हुआ आकर उन दोनों को घूरने लगा। 
नाई,” साधू जी, ये शेर तो हम दोनों को खा जायेगा। आपने तो मुझे मरवा दिया। “
साधू,” चिंता मत कर। जब तक मैं तेरे साथ हूँ, शेर तेरा कुछ नहीं करेगा। ये कुछ देर में चला जाएगा। “
शेर कुछ देर बाद जंगल की ओर चला गया। 
नाई,” आप तो वाकई बहुत पहुंचे हुए साधू हैं। “
साधू रहस्यमयी अंदाज में मुस्कुराकर बोला। 

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साधू,” मैं जानता हूँ कि तू एक नाई है और नाई का धंधा छोड़कर तू दूसरे धंधे की तलाश में दूसरे गांव जा रहा है ताकि कुछ बनकर अपने गांव लौटे। “
नाई,” आप तो अंतर्यामी भी निकले। बाबा, मेरी मदद कीजिए। “
साधू,” क्या चाहता है तू ? “
नाई,” मैं बड़ा आदमी बनना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरा विवाह किसी बड़े परिवार की कन्या से हो। लेकिन मेरे काम को देखते हुए कोई भी बड़ा परिवार अपनी बेटी का विवाह मुझसे नहीं करता। 
इसीलिए मैंने अपना गांव छोड़ दिया क्योंकि वह सब मुझे नाई नाई बोलकर ही पुकार हैं। इसी वजह से मैं 36 वर्ष तक की उम्र में कुंवारा हूँ। “
साधू,” ठीक है, मैं तेरी मदद करने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मैं तुझे अपनी मायावी शक्ति से धन दौलत तो नहीं दे सकता। “
नाई,” मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझा। “
साधू,” मैं तुझे एक शक्ति दे सकता हूँ। “
नाई,” कैसी शक्ति साधू जी ? “
साधू,” तू जिस किसी भी व्यक्ति को कुछ देर तक गौर से देखेगा तो तू उस व्यक्ति का कुछ देर बाद भविष्य देख लेगा। “
नाई,” दूसरों के भविष्य देखने से मुझे क्या फायदा होगा ? “
साधू,” खुद को बहुत चतुर समझता है तू ? अपनी चतुराई से इस शक्ति का फायदा उठा ले। 
मगर याद रखना… अगर तू मेरी दी हुई शक्ति का फायदा अपनी चतुराई से उठाने में कामयाब हो जाता है तो ये कभी मत भूलना कि तेरा अतीत क्या था ? “
नाई,” क्या मतलब ? मतलब कि तू एक नाई था‌ और हाँ… मेरी दी हुई शक्ति का प्रयोग तू सिर्फ अपने जीवन में दो बार कर सकता है। “
इतना कहकर साधू मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया। कनुआ एक दूसरे गांव में चला गया। वो सुबह से लेकर शाम तक गांव वालों को देखता रहा कि तभी उसकी नजर गांव में बनी एक कोठी पर पड़ी। 
वो कोठी उस गांव के ज़मींदार (रमेश) की थी। रमेश अपनी कोठी के बाहर एक शहरी व्यक्ति से अपनी एक जमीन का सौदा कर रहा था। 
कनुआ उस जमींदार को गौर से देखने लगा। कुछ देर बाद गौर से देखने के बाद कनुआ की आँखों में चमक आ गई। वह दौड़ता हुआ जमींदार के पास चला गया। 
कनुआ,” उस सौदे को रोक दीजिए जमींदार साहब। ये सौदा आपके लिए सही नहीं है। “
जमींदार,” कौन हो तुम और ये कैसी बातें कर रहे हो ? कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए ? तुम जानते भी हो कि ये सौदा करोड़ों का है ? “
कनुआ,” मेरा नाम कनुआ है। मैं कुछ दिन पहले ही विदेश से हिंदुस्तान आया था। मगर ट्रेन में मेरा किसी ने पासपोर्ट, मेरे सारे पैसे सब चुरा लिए। तब से मैं ऐसे ही उस चोर को पकड़ने के लिए भटक रहा हूँ। 
देखिये, मैं भी एक बहुत बड़ा बिज़नेस मैन रहा हूँ और मेरी नज़र ये बता रही है कि आपके सामने ये जो व्यक्ति बैठा हुआ है, ये धोखेबाज है। “
कनुआ की बात सुनकर रमेश की आँखों में क्रोध झलकने लगा। 
जमींदार,” तो तू ये कहना चाहता है कि तू विदेश से पढ़कर आया है तो तू ज्यादा चालाक है और मैं गांव का हूँ तो मुझे कोई अक्ल नहीं है ? “
तभी रमेश की पत्नी (अनीता) अपने पति से बोली। 
अनीता,” अरे ! एक बार फ़ोन करके पता करने में क्या हर्ज़ ? हो सकता है कि इसका अंदाजा सही हो ? सोचिये अगर इसकी बात कुछ प्रतिशत भी सही निकली तो आप तो सड़क पर आ जाएंगे। “
अपनी पत्नी की बात सुनकर रमेश सोच में पड़ गया। वह तुरंत फ़ोन लगाकर किसी से बात करने लगा। अचानक रमेश के चेहरे पर गुस्सा झलकने लगा और जो व्यक्ति रमेश के सामने बैठा हुआ था, वो वहाँ से भागने लगा। 
रमेश,” पकड़ो इसे, ये फ्रॉड है। “
कनुआ ने उस व्यक्ति को तुरंत पकड़ लिया। रमेश ने उस व्यक्ति को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। 
रमेश नहीं जानता था कि कनुआ ने उसका भविष्य देख लिया था कि भागने वाला व्यक्ति भविष्य में रमेश के साथ धोखा करने वाला था।
रमेश,” तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया कनुआ। आज तुम्हारी वजह से मैं बर्बाद होने से बच गया। वैसे तुम कहाँ ठहरे हुए हो ? “
कनुआ,” बस ऐसे ही आवारा फिर रहा हूँ। “
रमेश,” आज से तुम मेरे घर पर रहोगे और मेरे कारोबार में हाथ बटाओगे। मुझे तुम्हारे जैसे ईमानदार और अच्छे व्यापारी की सख्त जरूरत है। “
कनुआ उस दिन से रमेश के घर पर रहने लगा। रमेश की बेटी दिव्या को कनुआ पसंद करने लगा था। 
एक दिन रमेश अपनी बेटी के साथ कार से शहर जा रहा था कि तभी कनुआ बोला।
कनुआ,” कहां जा रहे हो अब ? “
रमेश,” अभी कुछ देर पहले बताया तो था, मुझे शहर में कुछ काम है और इसी बहाने दिव्या को कुछ शॉपिंग भी करा दूंगा। “
कनुआ,” आज मत जाइए, कल चले जाइयेगा। आज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। “
रमेश,” ये कैसी बातें कर रहे हो तुम ? मेरा शहर जाना आज बहुत ज़रूरी है। “
कनुआ,” तो अपने उस जरूरी काम को कल निपटा लीजियेगा। “
 रमेश,” कनुआ, तुम व्यापारी अच्छे हो। लेकिन अब तो तुम ऐसे बातें कर रहे हो जैसे की तुम फ्यूचर देख सकते हो और तुम्हें पहले से ही आभास हो गया है कि आज मेरे साथ कुछ सही नहीं होने वाला। “
रमेश की बात सुनकर कनुआ बुरे तरीके से घबरा गया। सच तो यही था कि कनुआ ने रमेश का भविष्य देख लिया था। वो जानता था कि कुछ देर बाद रमेश का ऐक्सिडेंट हो जाएगा। 
रमेश की पत्नी अनीता रमेश से बोली। 
अनीता,” आप कनुआ की बात मान क्यों नहीं लेते ? अपने जरूरी काम को कल कर लीजिएगा। “
रमेश,” नहीं अनीता, मेरा आज जाना बहुत जरूरी है। “
अनीता,” ठीक है, अगर आपको कनुआ की बात नहीं माननी तो आपकी मर्ज़ी। लेकिन मैं दिव्या को आज आपके साथ नहीं जाने दूंगी। “

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रमेश,” ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। “
रमेश चला गया। मगर कुछ ही देर बाद रमेश की एक रोड ऐक्सिडेंट में मौत हो गई। दिव्या और अनीता इस दुनिया में अब अकेली रह गई थी। 
इतने बड़े कारोबार को संभालने वाला कोई नहीं था। कुछ दिनों बाद अनीता कनुआ से बोली। 
कनुआ,” मेरे पति के जाने के बाद अब इतने बड़े कारोबार को कौन संभालेगा ? मैंने और मेरे पति ने सोचा था कि सारा का सारा कारोबार दिव्या के पति के हवाले कर देंगे और हम दोनों तीर्थ पर चले जाएंगे। 
लेकिन वो ये दिन देख ना सके। मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटी का विवाह तुमसे हो जाए। क्या तुम मेरी बेटी से विवाह करोगे ? “
अनीता की बात सुनकर कनुआ के मन में लड्डू फूटने लगे। कनुआ यही तो चाहता था। उसने तुरंत हामी भर दी और दूसरे दिन दिव्या और कनुआ का विवाह धूमधाम से हो गया। 
कनुआ रातों रात करोड़पति बन गया। लेकिन गांव वालों से मिले मान सम्मान की वजह से वो खुद को राजा समझने लगा। 
एक रोज़ रात के वक्त कनुआ अपनी पत्नी से बोला।
कनुआ,” देखो… तुम मेरी पत्नी हो तो ये तुम्हारे लिए बहुत बड़ी खुशनसीबी की बात है। तुम्हें मेरी सेवा करनी चाहिए। 
दिव्या,” मैं तो आपकी सेवा ही करती हूँ। देखो, मैंने एक बार तुम्हारे पापा को बर्बाद होने से बचाया था। 
अगर मैं ऐसा नहीं करता तो वो उसी दिन सड़क पर आ जाते। अच्छा… मेरे पैरों में बहुत ज्यादा दर्द है, मेरे पैर दबा दो। “
कनुआ की बात सुनकर उसकी पत्नी उसके पैर दबाने लगी। कनुआ लगातार कई घंटों तक अपनी पत्नी से पैर दबबाता रहा। 
थकान से जैसे ही उसकी पत्नी की आंख झपकी कनुआ तुरंत बोला। 
दिव्या,” जब तक मैं ना कहूं तब तक तुम्हें रुकना नहीं है ? इसके बाद तुम्हें मेरा सर भी दबाना है। “
उस दिन के बाद कनुआ अपनी पत्नी से रोज़ रात भर पैर दबबाता। एक रोज़ दिव्या परेशान होकर अपनी माँ से बोली। 
दिव्या,” इन्होंने तो मेरा जीना हराम कर रखा है। रोज़ रात भर ये मुझसे कभी पैर, कभी सर दबबाते हैं। मैं सो नहीं पाती। “
अनीता,” बेटी, लेकिन तू चिंता मतकर। मैंने सुना है कि यहाँ एक बहुत पहुंचे हुए साधू आए हैं जो सबकी मुसीबतें दूर कर रहे हैं। कल मैं तुझे चुपके से उन्हीं के पास ले चलूँगी। “
अगले दिन दिव्या की माँ अपनी बेटी को उन्हीं पहुंचे हुए साधू के पास ले गयी। 
साधू,” क्या हुआ बेटी ? “
दिव्या,” मेरे पति मुझसे प्यार नहीं करते, मुझसे गुलामों की तरह व्यवहार करते हैं। “
साधू,” तुम्हारा पति क्या करता है ? “
दिव्या ने सारी बात साधू को बता दी। दिव्या की बात सुनकर बाबा रहस्यमयी अंदाज में मुस्कुराते हुए दिव्या से बोले। 
साधू,” जाओ, कल किसी बहाने से अपने पति को मेरे पास भेज देना। “
दिव्या,” क्या वो सुधर जाएंगे ? “
साधू,” हाँ, मैं अपनी तंत्र मंत्र की शक्ति से उसे बिल्कुल सही कर दूंगा। कल के बाद वो तुम्हारी किसी भी बात से इनकार नहीं कर पाएगा। “
दिव्या और उसकी माँ खुश हो गईं। अगले दिन दिव्या अपने पति से बोली। 
दिव्या,” सुनिए जी, सुना है गांव में बहुत पहुंचे हुए ज्ञानी बाबा आये है। आप उनसे मिलकर क्यों नहीं आते ? “
कनुआ,” हाँ, मैंने भी सुना है कि गांव में कोई पहुंचा हुआ ज्ञानी बाबा आया है। गांव वाले तो पागल हो गए और मैं पागल नहीं हूँ। “
दिव्या,” ऐसा नहीं कहते जी… क्यों ना आप उनसे एक बार मिल आते ? “
कनुआ,” तुम्हारा दिमाग तो ठीक है। उस बाबा को कनुआ जमींदार से उल्टा मिलने आना चाहिए। भला मैं वहाँ क्यों जाऊं ? मैं वहाँ पर नहीं जाऊंगा। “
दिव्या मुँह लटकाकर फिर से साधू के पास चली गयी। 
दिव्या,” बाबा वो तो आने को तैयार ही नहीं। वो तो उल्टा मुझसे ये कह रहे हैं कि आपको उनसे मिलने जाना चाहिए। “
दिव्या की बात सुनकर साधू फिर से मुस्कुराता हुआ बोला। 
साधू,” किसी बहाने से अपनी माँ के साथ कुछ देर के लिए दोपहर के वक्त यहाँ पर आ जाना। तुम्हारी गैरमौजूदगी में मैं तुम्हारे घर पर जाकर तुम्हारे पति का तंत्र मंत्र से सही से इलाज कर दूंगा। “
दोपहर के वक्त…
कनुआ,” दिव्या, दिव्या कहां हो तुम ? “
तभी कोई ज़ोर ज़ोर से दरवाजा पीटने लगा। 
कनुआ,” अब ये दरवाजा भी मुझे खुद ही खोलना पड़ेगा। बताओ कैसे दिन आ गए हैं, अब दरवाजा खोलने भी मैं स्वयं ही जाऊं ? “
इतना बोलकर कनुआ ने दरवाजा खोल दिया। मगर सामने का नजारा देखकर तो वो बुरे तरीके से डर गया। उसके सामने उसके पुराने गांव का मुखिया खड़ा था, जो तुरंत अंदर आ गया। 
कनुआ,” मुखिया जी, आप यहाँ कैसे ? “
मुखिया,” अच्छा… तो तू नाईगीरी छोड़कर यहाँ जमीनदार बना बैठा है। अगर मैं तेरी पत्नी और गांव वालों को बता दूं कि तूने कभी विदेश की शक्ल नक्शे में भी नहीं देखी बल्कि तू एक नाई है। 
तो कभी सोचा है, ये गांव वाले तेरे साथ क्या करेंगे ? तेरी मार मारकर हालत खराब कर देंगे और तुझे इन लोगों के साथ फ्रॉड करने के जुर्म में जेल हो जाएगी। 
सोच तेरी पत्नी की नजरों में तेरी क्या इज्जत रह जाएगी ? “
कनुआ,” मुखिया जी, मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ? आप भला ये किसी को क्यों बताएंगे ? “
मुखिया,” तेरी पत्नी दिव्या मेरी दूर की रिश्तेदार है। “
कनुआ,” क्या..? “
मुखिया,” और सुन कनुआ… तेरी पत्नी को मैंने सब बता दिया है। वो बेचारी तेरे आतंक से बेहद परेशान हो चुकी थी। मुझसे उसका दुख देखा नहीं गया। “
कनुआ,” ये आपने क्या किया मुखिया जी ? वो गांव में अब सबको बता देगी। मैं बर्बाद हो जाऊंगा। “
मुखिया,” नहीं, मैंने उसे मना कर दिया है कि ये राज़ वह किसी को नहीं बतायेगी। लेकिन उसने एक शर्त रखी है। “
कनुआ,” कैसी शर्त..? “
मुखिया,” यही कि आज के बाद तू उसका हर काम करेगा। यहाँ तक कि तो उसके पैर भी दबाएगा। 
एक जिम्मेदार पति की तरह उसे पत्नी का दर्जा देगा ना कि उसके साथ गुलामों की तरह व्यवहार करेगा। “
कनुआ,” मुझे मंजूर है। “
मुखिया,” ठीक है। “

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इतना बोलकर मुखिया वहाँ से चला गया। मगर बाहर आते ही मुखिया साधू में परिवर्तित हो गया और सीधा दिव्या के पास जाकर बोला। 
साधू,” जाओ, मैंने तुम्हारे पति को सुधार दिया है। “
दिव्या खुश होती हुई वहाँ से चली गई। उसने घर जाकर देखा कि कनुआ डरा हुआ दिव्या की ओर देख रहा था। 
कनुआ,” अरे ! तुम आ गई प्रिये ? तुम थक गयी होगी ? लाओ मैं तुम्हारे पैर दबा दूं। लाओ… लाओ। “
उस दिन के बाद से कनुआ नाई की सारी की सारी चतुराई धरी की धरी रह गई।
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