जादुई कंबल | Hindi Kahani | Hindi Moral Stories | Hindi Kahaniyan | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई कंबल ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको भी Hindi Kahaniyan, Moral Stories in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
जादुई कंबल | Hindi Kahani | Hindi Moral Stories | Hindi Kahaniyan | Hindi Fairy Tales

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 जादुई कंबल 


 एक छोटे से गांव में एक वृद्ध महात्मा रहते थे। वह एक कंबल लपेटे हुए और अंजनी (वाज्य यंत्र) बजाते हुए पूरे गांव में घूमते रहते थे और लोगों से उनका दुख-दर्द पूछते रहते थे।

लोगों का भी उनके प्रति काफी प्रेम स्वभाव था। उनकी खास आदत यह थी कि जब भी कोई व्यक्ति उन्हें अपना दुख दर्द बताता तो वह उस व्यक्ति का दुख दर्द दूर कर देते थे।

1 दिन किसी पास के गांव से एक विद्वान पुरुष उनके गांव में आता है। उस समय महात्मा गांव के एक व्यक्ति के पास उसके दुख दर्द को पूछ रहे थे। 

उस व्यक्ति ने बताया कि उसके पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है। वह एक कदम भी नहीं चल सकता। इसलिए वह किसी डॉक्टर के पास नहीं गया। कृपया आप ही कुछ कीजिए।

आदमी की दर्द भरी आवाज सुनकर महात्मा जी ने कहा,” यहां लेट जाओ। “

वह आदमी तुरंत वही लेट जाता है। फिर महात्मा जी अपने उस कंबल को उस व्यक्ति के पेट पर डालते हैं और हल्के हल्के से हाथ फेरते हैं और कंबल को उठा लेते हैं। 

कुछ समय बाद वह व्यक्ति खड़ा हो जाता है। और कहता है कि महात्मा जी मेरा पेट दर्द बिल्कुल गायब हो गया है। अब मैं बिल्कुल ठीक हूं। और वह महात्मा जी को धन्यवाद देता है।

उनके इस चमत्कार को देखकर पास ही खड़े दो और व्यक्ति कहते हैं कि महात्मा जी आपने इस व्यक्ति के दर्द को गायब कर दिया। 

कृपया अब इसके घर खाना खाकर ही जाएं। ऐसा सुनकर महात्मा जी कहते हैं कि अगर तुम इतने प्यार से बोल ही रहे हो तो चलो ठीक है।

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महात्मा जी उस व्यक्ति के घर जाते हैं और भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन करने के बाद वह वापस अपनी कुटिया पर आते हैं।

यह सब चमत्कार होते हुए वह विद्वान पेड़ के पीछे खड़े हो कर देख रहा था। कुछ समय के लिए तो वह दंग रह गया कि यह सब कैसे हो सकता है ? उसने महात्मा जी का पीछा करना शुरू किया।

अगली सुबह महात्मा जी फिर कंबल ओढ़कर और अंजनी बजाते हुए गांव की फेरी करने के लिए निकले। वे खेतों पर टहल ही रहे थे कि एक आदमी उनके पास आया और कहने लगा,” महात्मा जी… पिछले 3 सालों से मैं अपने खेतों में अच्छी फसल नहीं उगा पा रहा हूं। काफी मेहनत करता हूं लेकिन फसल अच्छी पैदा नहीं होती। कृपया आप कुछ कीजिए। “

पहले तो महात्मा जी ने कहा,” इसमें मैं क्या कर सकता हूं ? तुम्हें अपनी मेहनत पर भरोसा है या नहीं ? 

फिर महात्मा जी उस निराश व्यक्ति की ओर देखते हैं और कहते हैं,” चलो ठीक है। 

फिर महात्मा अपने उस कंबल को लेते हैं और खेत की मिट्टी पर हल्के से घुमाते हैं। 

और वापस उस व्यक्ति के पास आकर कहते हैं,” अब अपनी अच्छी फसल के लिए खूब मेहनत करना। “

इतने में एक दूसरा व्यक्ति आता है और कहता है,” महात्मा जी… जब से आपने अपने इस जादुई कंबल को मेरे खेत की मिट्टी पर फेरा है तब से मेरी फसल चौगुनी बढ़ चुकी है। 

और अब मैं खुशी-खुशी से अपना और अपने परिवार का गुजारा कर पा रहा हूं। मेरी तरफ से आपके लिए एक छोटी सी भेंट।

 वह व्यक्ति फल और सब्जियों से भरी टोकरी को महात्मा जी को भेंट करता है।

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महात्मा जी उस भेंट को स्वीकार करते हैं और अपनी कुटिया की तरफ निकल जाते हैं।

आज हुई सभी घटनाओं को वह विद्वान फिर से पेड़ के पीछे खड़े होकर देख और सुन रहा था। अब वह समझ गया था कि महात्मा के पास एक जादुई कंबल है।

वह सोचता है कि अगर वह कंबल उसके पास आ जाए तो वह अपने मान सम्मान और संपत्ति में वृद्धि कर सकता है।

वह दुबारा से महात्मा जी का पीछा करता है और उनकी कुटिया तक पहुंच जाता है।

अगली सुबह महात्मा जी नहाने का विचार बनाते हैं। और पास ही जंगल में बह रही नदी में स्नान करने के लिए जाते हैं। वह विद्वान भी उनके पीछे पीछे जाता है। 

जब महात्मा जी अपने उस जादुई कंबल को अपने शरीर से उतार के पेड़ की एक छोटी सी टहनी पर डालते हैं और नहाने के लिए जाने लगते हैं तो वह विद्वान तुरंत उस जादुई कंबल के पास आता है और उसे उतारने की कोशिश करता है। 

लेकिन वह जादुई कंबल पत्थर की तरह व्यवहार करता है वह विद्वान उसको खींचने की कोशिश करता है लेकिन कंबल पूरी तरह से जकड़ चुका था।

कुछ समय बाद महात्मा वापस आने लगते है। महात्मा को वापस आते हुए देखकर वह विद्वान बिना कंबल लिए ही चला जाता है। महात्मा जी आते हैं और उस कंबल को उतार कर अपने शरीर पर लपेट लेते हैं।

कुछ समय बाद वो उस कंबल को धूप में सुखाने के लिए डाल देते हैं ताकि दोबारा डालने के बाद थोड़ा शरीर को गर्माहट मिल सके।

यह देखकर विद्वान को फिर से एक मौका मिल गया उस कंबल को लेने के लिए। वह तुरंत कंबल के पास जाता है और उसे उतारने की कोशिश करता है। 

लेकिन तेज हवा के चलने से व कंबल ऊपर की ओर उड़ने लगता है। जिसकी वजह से वह विद्वान के हाथों में नहीं आ पाता है। विद्वान काफी कोशिश करता है लेकिन सब नाकामयाब रहता है।

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इतने में दोबारा महात्मा जी वापस आते हैं। महात्मा जी को वापस आते हुए देखकर वह विद्वान फिर से पेड़ के पीछे छुप जाता है।

इस बार विद्वान पूरी तैयारी करता है, महात्मा जी से उनका जादुई कंबल छीनने के लिए। वह महात्मा जी की कुटिया में जाता है और उन्हें अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करता है।

दरअसल यह उसका एक सोचा समझा प्लान था जिससे वह महात्मा जी के उस कंबल को छीन सके। महात्मा जी उसके आमंत्रण को स्वीकार करते हैं और अगले दिन उसकी कुटिया में प्रवेश करते हैं।

जैसे ही महात्मा जी उसकी कुटिया में घुसते हैं,, वह विद्वान अपने असली रूप में आ जाता है। वह बड़ी ही अभद्रता दिखाते हुए महात्मा से कहता है,” आप अपने इस जादुई कंबल को मुझे दे दो। “

यह सुनकर महात्मा जी आश्चर्यचकित हो जाते हैं और पूछते हैं,” आखिर तुम्हें यह कंबल क्यों चाहिए ? “

इस पर विद्वान कहता है कि यह एक जादुई कंबल है जिससे मैं अपने हर बिगड़े हुए काम को सुधार सकता हूं और ढेर सारा धन कमा सकता हूं।

विद्वान के ऐसे विचार सुनकर महात्मा जी काफी दुखी हुए। लेकिन विद्वान नहीं माना इसलिए महात्मा जी ने अपने उस कंबल को विद्वान को सौंप दिया और वहां से अपनी कुटिया के लिए रवाना हो गए।

अगले दिन विद्वान उसी गांव में उस जादुई कंबल को लपेटे हुए और अंजनी बजाते हुए निकलता है। लोग उसे देखकर हंसते हैं कि यह देखो पागल आ गया,, इतनी गर्मी में भी कंबल लपेटे हुए हैं। 

लोगों की ऐसी बातें सुनकर वह हैरान रह जाता है। लेकिन फिर आगे बढ़ने लगता है। आगे एक व्यक्ति खाली टोकरी लिए हुए आ रहा होता है। 

विद्वान उसे रोकता है और कहता है कि मैं तुम्हारी इस खाली टोकरी को फल और सब्जियों से भर दूंगा। 

ऐसा सुनकर वह व्यक्ति हंसता है। और विद्वान को पागल कहने लगता है। विद्वान अपने उस कंबल को उस टोकरी पर फेरता है लेकिन वो टोकरी फिर भी खाली ही रहती है। 

ऐसा देखकर विद्वान आश्चर्यचकित हो जाता है और सोचने लगता है कि आखिर यह टोकरी फल और फूलों से क्यों नहीं भरी ? क्या यह कंबल जादू नहीं दिखा रहा है ?

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उसके बाद आगे चलकर एक व्यक्ति अपने पैरों के दर्द के मारे चिल्ला रहा था। विद्वान उसके पास जाता है और कहता है मैं तुम्हारे इस दर्द को दूर कर सकता हूं।

वह अपने कंबल को लेता है और उसके पैरों पर फेरने लगता है। लेकिन पैरों का दर्द खत्म नहीं होता है। यह सब देखकर विद्वान समझ जाता है कि यह कोई जादुई कंबल नहीं है।

अगली सुबह विद्वान महात्मा की कुटिया में जाता है। उन्हें उसके कंबल को वापस करता है और कहता है,” महात्मा जी… मुझे आपका यह जादुई कंबल नहीं चाहिए। यह मेरे किसी काम का नहीं है। 

महात्मा जी कहते हैं,” यह कोई जादुई कंबल नहीं है। बल्कि अगर इंसान का मन साफ हो तो उसकी कही हुई बात और उसका हर किया हुआ काम सही ही साबित होता है। 

यह सब सुनकर विद्वान अपनी गलती को मानता है और उनसे इस गलती की क्षमा भी मांगता है।

इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में जरूर बताएं।

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