दयालु बुढ़िया | Dyalu Budhiya | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” दयालु बुढ़िया ” यह एक Moral Story  है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

Dyalu Budhiya | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales



 दयालु बुढ़िया 

उदयपुर गांव में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण गंगाधर रहा करता था। वो गांव में भिक्षा मांगकर अपना गुजर बसर किया करता था। 
एक दिन वो कुछ बासी रोटियां लेकर अपनी झोपड़ी में आता है तभी उसकी पत्नी उन बासी रोटी यों को देखते ही बोलती है। 
पत्नी,” अरे रे ! ये क्या… तुम आज भी ये बासी रोटी लेकर आ गए ? अरे रे ! आज मुझे ये बासी रोटी ही खानी पड़ेगी ? 
आय हाय ! पूरा दिन गांव में भिक्षा मांगकर भी ये बासी रोटियां लेकर आये हो तुम। 
हे भगवान ! ना जाने वो कौन सा दिन होगा जब तुम भिक्षा में मेरे लिए कुछ अच्छा लेकर आओगे ? “
गंगाधर,” अरे भाग्यवान ! अब चुप हो जाओ। गांव वाले भिक्षा में जो भी मुझे देते है वो मैं तुम्हारे लिए ले आता हूँ, भाग्यवान। अब तुम ही बताओ, मैं क्या करूँ ? “
पत्नी,” अरे ! चुप करो तुम। जब भी देखो बस यही बोलते हो। आखिर कब तक खाऊं में ये बासी रोटियां ? 
देखो… अगर तुम कल सुबह भिक्षा में मेरे लिए कुछ अच्छा नहीं लाये तो अच्छा नहीं होगा हाँ, बता देती हूँ। “
बेचारा गंगाधर अपनी पत्नी की ऐसी बातें सुनकर बहुत दुखी हो जाता है। अगली सुबह गंगाधर फिर से गांव में किसी के द्वार पर भिक्षा मांगने जाता है। 
गंगाधर,” अरे ! कोई है ? भिक्षा दे दो, भिक्षा दे दो मुझ गरीब ब्राह्मण को… भिक्षा दो। “
तभी एक बुढ़िया अपनी झोपड़ी से निकलकर उसके सामने आती है। 
बुढ़िया,” अरे ! कौन हो तुम ? देखने से तो भिक्षु नजर आ रहे हो। लेकिन मैं तुम्हें क्या दे सकती हूँ भला ? 
मेरे घर में तो बस कुछ चावल के दाने ही है बेटा, उसमें तो तुम्हारा पेट भी नहीं भरेगा। “
गंगाधर,” अरे ! नहीं नहीं अम्मा, मैं ज्यादा की अपेक्षा तो कभी नहीं करता हूँ। तुम्हारे घर में जो भी थोड़े चावल है वही मुझे दे दीजिये, मैं उन्हीं से अपना पेट भर लूँगा। “
बुढ़िया,” अच्छा ठीक है बेटा, मैं अभी लेकर आती हूँ। “
वो चावल के दाने लेने गई। जिसके बाद चावल के दाने लाकर गंगाधर को देती है। 
गंगाधर,” बहुत बहुत धन्यवाद अम्मा ! अच्छा… अब मैं चलता हूँ। मेरी पत्नी मेरी राह देख रही होगी। “
रास्ते में…
गंगाधर,” आज तो मैं अपनी पत्नी को यह चावल ले जाकर दूंगा। बेचारी बासी रोटी खा खाकर ऊब गयी है। आज तो खुश हो जाएगी। “
गंगाधर इसके बाद अपनी झोपड़ी में जाता है। 
पत्नी,” अरे ! आ गए तुम ? इतनी देर कर दी आज तुमने आने में ,मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी ? आज शिक्षा में क्या लाये हो ? क्या आज भी बासी रोटी उठा लाये हो ? “
गंगाधर,” अरे रे भाग्यवान ! ये देखो, आज भिक्षा में मैं तुम्हारे लिए चावल के दाने लेकर आया हूँ। आज इन्हें ही पकाकर भोजन बना लो। “
पत्नी,” अरे ! सिर्फ ये थोड़े से चावल के दाने… अरे ! इतने में क्या होगा ? तुम्हे तो गांव में भिक्षा भी मांगनी नहीं आती। 
जो कोई भिक्षा में जो भी देता है, उसे ही लेकर आ जाते हो। इस गांव में तुम्हारी तरह और भी भिक्षु है, खूब झोली भर भरकर भिक्षा लाते हैं और एक तुम हो। 

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लेकिन तुम्हें तो कुछ कहना ही बेकार है। अब मुझे ये चावल के दाने ही बनाने पड़ेंगे भोजन में। मेरी तो किस्मत ही फूट गई तुमसे शादी करके। “
जिसके बाद वो चावल बना देती है और उन्हें लेकर गंगाधर के पास आती हैं। 
पत्नी,” ये लो, करलो भोजन। “
गंगाधर देखता है की थाली में सिर्फ थोड़े ही चावल के दाने है। 
गंगाधर,” अरे भाग्यवान ! ये तो मैं तुम्हारे लिए लाया हूँ। मैं भोजन नहीं करूँगा, इन्हें तुम ही खालो। 
मुझे तो भिक्षा मैं आज भोजन मिल गया था तो मैंने वही खा लिया है। इसे तुम ही खालो भाग्यवान। “
पत्नी,” अच्छा… तो तुम भिक्षा से प्राप्त भोजन करके आये हो। वाह वाह ! खुद भोजन करके आए हो और मेरे लिए थोड़े से चावल के दाने लाये हो। 
ना जाने कब वो दिन आएगा जब आप मेरे लिए कुछ अच्छा सा और बहुत सारा भोजन लेकर आयेंगे ? 
हाँ… अब आपको कहां आवश्यकता होगी इस भोजन की ? खैर जाने दीजिए, अब मैं ही इन्हें खा लेती हूँ। “
जिसके बाद वो थाली के सारे चावल खा लेती है। गंगाधर चुपचाप खड़ा उसे देखता रहता है। 
थोड़ी देर बाद गंगाधर फिर से गांव की तरफ भिक्षा मांगने निकलता है और फिर से उस बुढ़िया माँ के द्वार पर भिक्षा मांगने जाता है।
गंगाधर,” भिक्षां देहि… भिक्षां देहि। “
बुढ़िया ,” कौन ? अच्छा तू फिर से आ गया। लेकिन बेटा मेरे पास तो आज खुद ही खाने को कुछ नहीं है। मैं तो खुद भूख से मरी जा रही हूँ। मैं तुझे कहाँ से दूंगी, बेटा ? “
गंगाधर,” अरे ! ये तुम क्या बोल रही हो, अम्मा ? क्या आपने कुछ भी नहीं खाया है ? “
गंगाधर अपने झोले में देखता है तो उसमें बासी रोटी पड़ी होती है। गंगाधर वो बासी रोटी उस बुढ़िया को दे देता है। 
गंगाधर,” अरे अम्मा ! मेरे पास तुम्हें देने के लिए और तो कुछ नहीं है सिवाय इस बासी रोटी के, तुम इसे ही खाकर अपने भूख मिटा लो। “
बढ़िया,” अरे ! हाँ… क्यों नहीं बेटा ? मुझे तो बहुत जोरों की भूख लगी है। हां, ला दे यही बासी रोटियां मुझे दे दे। “
जिसके बाद गंगाधर अम्मा को बासी रोटी दे देता है। बूढ़ी अम्मा बड़े चाव से बासी रोटियां खा लेती है। 
बुढ़िया,” अरे ! वाह वाह बेटा, तेरी बासी रोटी खाकर तो मेरी आत्मा को शांति मिल गयी। वाकई तू एक नेकदिल इंसान है। 
आज तूने अपनी बासी रोटी से ही सही, लेकिन मेरी भूख मिटा दी बेटा। मैं तुझे कुछ देना चाहती हूँ। तू रुक, मैं अभी आयी। “
इसके बाद बूढ़ी अम्मा एक छोटा सा संदूक अपने साथ लेकर आती है और उसमें से एक चमकता हुआ मोर पंख गंगाधर को देती है। 
बुढ़िया,” ये ले बेटा, ये जादुई मोरपंख मैं तुझे देना चाहती हूँ। ये कोई साधारण मोर पंख नहीं है बेटा। तू कोई भी एक इच्छा इस मोर पंख से बोलेगा तो वो अवश्य पूरी होगी। 
बेटा, अब मैं तो बहुत बूढ़ी हो चुकी हूँ। अब भला मेरी तो कोई इच्छा ही नहीं रही लेकिन मैं ये तुम्हे देना चाहती हूँ। बेटा, इस जादुई पंख से तुम अपनी एक इच्छा पूरी कर सकते हो। “
गंगाधर ये सुनकर बहुत खुश हो जाता है। 
गंगाधर,” क्या सच में अम्मा ? तुम सच बोल रही हो ? अगर ऐसा है तो मैं ये जादुई पंख अपनी पत्नी को दूंगा। आज तक मैं अपनी पत्नी को कुछ भी नहीं दे पाया हूँ। 
इस जादुई पंख को पाकर वो बहुत खुश हो जाएगी हाँ। अच्छा अम्मा… अब मैं चलता हूँ। “
बुढ़िया,” अच्छा ठीक है बेटा, जैसी तेरी मर्ज़ी। “
जिसके बाद गंगाधर वो जादुई पंख लिए जंगल के रास्ते से अपने घर जा ही रहा होता है कि तभी वो देखता है कि जंगल में एक जगह एक आदमी बहुत बुरी हालत में बैठा रो रहा होता है। उसके रोने की आवाज सुनकर गंगाधर उसके पास जाता है। 
गंगाधर,” अरे भाई ! कौन हो तुम और रो क्यों रहे हो ? आखिर क्या बात है ? क्या कोई परेशानी है ? बताओ मुझे, तुम रो क्यों रहे हो ? “
सेवकराम,” मैं घोर परेशानी में हूँ। मैं मरने वाला हूँ। मुझे नहीं लगता कि अब मैं जिंदा बच सकूंगा, भाई। “
उसकी ये बात सुनकर गंगाधर हैरान हो जाता है। 

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गंगाधर,” ये तुम क्या कह रहे हो ? कौन हो तुम और आखिर तुम क्यों मरने वाले हो ? बताओ मुझे, क्या हुआ है तुम्हारे साथ ? “
सेवकराम,” मैं पड़ोसी राज्य का मंत्री सेवकराम हूँ। कल सुबह मेरे जीवन की आखिरी सुबह होगी। मुझे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। 
मेरा जीवन समाप्त होने को है। अगर मैंने जल्द से जल्द राजा की इच्छा पूरी नहीं की तो वो मुझे मृत्युदंड दे देंगे। “
गंगाधर,” मृत्युदंड… लेकिन क्यों ? क्या इच्छा है राजा की, बताइए मुझे ? “
सेवकराम,” राजा की पत्नी और हमारी महारानी को एक बिमारी हो गयी है। महारानी राजा की प्रिय रानी है और पूरे राज्य में सबसे सुंदर स्त्री भी। 
लेकिन कुछ दिनों से उन्हें एक ऐसी बिमारी ने घेर लिया है जिसकी वजह से उनके पूरे शरीर पर बहुत ही भद्दे और खराब दिखने वाले निशान हो गए हैं जिसकी वजह से अब वो बहुत क्रूर नजर आती है।
दरबार में कई वैद्यों को बुलाया गया लेकिन किसी के भी पास रानी की इस बिमारी का इलाज नहीं मिला जिसकी वजह से राजा ने मुझे आदेश दिया है कि अगर जल्द से जल्द मैंने उस वैद्य को नहीं ढूंढा जिसके पास रानी की इस बिमारी का इलाज हो, तो वो मुझे मृत्युदंड दे देंगे। “
गंगाधर,” अरे रे ! आप चुप हो जाइए। आपकी समस्या का इलाज है मेरे पास। तुम मुझे अपने राजा के महल ले चलो। “
सेवकराम,” क्या तुम सच बोल रहे हो ? तो चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें राजा के महल लेकर चलता हूँ। लेकिन तुम्हें वैद्य के भेश में ही राजा के पास चलना होगा। 
अगर राजा को पता चला कि तुम कोई वैध नहीं बल्कि एक साधारण भिक्षु हो तो राजा को बिल्कुल भी उचित नहीं लगेगा। “
इसके बाद गंगाधर एक भिक्षु से वैद्य के वस्त्र धारण कर लेता है और मंत्री सेवकराम के साथ राजा के महल पहुंचता है जहाँ राजा का दरबार लगा होता है। 
सेवकराम,” महाराज की जय हो ! महाराज, मैं महारानी के उपचार के लिए वैद्यजी को ले आया हूँ महाराज। 
ये देखिये महाराज, ये बहुत ही प्रसिद्ध वैद्यजी हैं जिन्हें मैं दूसरे राज्य में से अपने साथ लेकर आया हूँ महाराज। “
राजा ये सुनकर खुश हो जाता है। 
राजा,” अरे वाह मंत्री ! हम तुमसे यही सुनना चाहते थे। “
राजा ,” आपका स्वागत है, वैद्यजी। अब जल्दी चलिए और हमारी प्रिय रानी की बिमारी को ठीक कर दीजिये। “
गंगाधर,” जो आज्ञा महाराज ! “
इसके बाद सभी रानी के पास जाते हैं जहाँ रानी विश्राम कर रहीं होती है और कुछ दसिया रानी के पास बैठी सेवा कर रही होती है। 
राजा,” उठिये हमारी प्रिय रानी, देखिए आपकी बीमारी ठीक करने के लिए दूसरे राज्य से प्रसिद्ध वैद्यजी आए हैं। “
तभी रानी अपनी आंखें खोलती है। रानी के पूरे चेहरे और हाथ पर बहुत ही अजीब और खराब दिखने वाले भद्दे निशान होते हैं। जिसकी वजह से रानी बहुत डरावनी दिख रही होती है। 
रानी,” नहीं नहीं महाराज, मैं किसी को अपना चेहरा नहीं दिखाउंगी। देखिये तो कितनी कुरूप दिख रही हूँ मैं ? नहीं नहीं, मैं नहीं दिखाउंगी अपना चेहरा। “
राजा,” रानी, तुम मेरी प्रिय रानी हो। यह तुम क्या बोल रही हो ? देखो… वैद्यजी आए हैं। यह अवश्य ही तुम्हारी बिमारी को ठीक कर देंगे। “
गंगाधर रानी के शरीर के सारे अजीब और भद्दे निशान देखता है और थोड़ा हैरान हो जाता है। इसके बाद गंगाधर बूढ़ी अम्मा का दिया हुआ जादुई पंख अपने हाथ में लेता है। 
तभी उसे याद आता है कि अम्मा ने कहा था… इस जादुई पंख से कोई एक इच्छा पूरी की जा सकती है। 
गंगाधर,” हे जादुई पंख ! मेरी इच्छा है कि तुम रानी के ये भद्दे निशान दिखने वाली बिमारी ठीक कर दो। 
अगर रानी की बिमारी ठीक नहीं हुई तो बेचारे मंत्री सेवकराम को मृत्युदंड दे दिया जायेगा। “
तभी गंगाधर जैसे ही जादुई पंख को रानी के मुख पर रखता है, अचानक देखते ही देखते काफी तेज रौशनी होती है और रानी के सारे भद्दे और खराब दिखने वाले निशान गायब हो जाते हैं। ये देखकर सभी बहुत खुश हो जाते हैं। 
रानी,” महाराज देखिये, देखिये ना मैं एकदम ठीक हो गयी हूँ। देखिये, मेरा रूप पहले की तरह चमक रहा है। 
देखिये ना महाराज। हाय हाय… वाह वाह ! मैं फिर से सुंदर हो गयी हूँ। मैं सुन्दर हो गयी हूँ। “
राजा ,” हाँ हमारी प्रिय रानी, हम देख सकते हैं तुम्हारा रूप पहले की ही तरह चमक रहा है। वाकई ये हमारे लिए बहुत खुशी की बात है। “
राजा,” वाह हमारे प्रिय मंत्री ! हम तुमसे बहुत प्रसन्न हुए। अब तुम्हें मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। “
राजा,” वैद्यजी तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद जो तुमने हमारी प्रिय रानी की बिमारी को ठीक कर दिया। हम आपको भेंट स्वरूप 100 सोने की मोहरें देते हैं। “
इतना सुनते ही गंगाधर खुश हो जाता है। 
गंगाधर,” आपका धन्यवाद महाराज ! लेकिन आप एक सच नहीं जानते हैं। मैं कोई वैद्य नहीं हूँ बल्कि एक साधारण भिक्षु हूँ जो आपके ही राज्य से दूर एक छोटे से गांव में भिक्षा मांगा करता है। 
आपके मंत्री ने मुझे रानी की दशा के बारे में बताया तो मैं मंत्री को मृत्युदंड से बचाने यहाँ आपके महल में आ गया। “
राजा उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरान हो जाता है। 
मंत्री,” जी महाराज, मैंने आपसे ये झूठ बोला। ये कोई वैद्य नहीं बल्कि एक साधारण भिक्षु है। मुझे माफ़ कर दीजिए महाराज। “
राजा,” हमने तुम्हें माफ़ कर दिया है। तुम्हारे इस झूठ से हमें आज ये सीख मिली है कि एक साधारण सा भिक्षु भी अपने ज्ञान से बहुत बड़ा हो सकता है। व्यक्ति का कर्म ही उसे बड़ा बनाता है। “
सभी दरबार में राजा की ये बात सुनकर खुश हो जाते हैं। तभी गंगाधर को सोने की 100 मोहरें दी जाती है जिसको लेकर वो अपने घर जाता है। 
पत्नी,” अरे ! कहाँ चले गए थे आप ? मैंने आपको कहा कहा नहीं ढूंडा ? बताऐं मुझे ? “
तभी गंगाधर उसे सारी बात बताता है। 
पत्नी,” अरे ! क्या आप सच बोल रहे है ? मुझे माफ़ कर दीजिए जी, मैंने आपको कितना कुछ भला बुरा कहा और आपने पलटकर मुझे कभी एक शब्द नहीं कहा।
आप सच में बहुत नेकदिल और ज्ञानी इंसान है। मुझे माफ़ कर दीजिये। “

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गंगाधर,” मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है भाग्यवान, मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई बुरी भावना नहीं है। 
जो हुआ सो हुआ। तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, मेरे लिए इतना ही काफी है भाग्यवान। “
इसके बाद गंगाधर और उसकी पत्नी हँसी खुशी रहने लगते हैं।
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