हेलो दोस्तों ! कहानी की इस नई Series में हम लेकर आए हैं आपके लिए एक और नई कहानी। आज की कहानी का नाम है – ” नफ़रत – ए – इश्क “। यह इस कहानी का (भाग -2) है। यह एक Hindi Kahani है। कहानी को पूरा जरूर पढ़ें। तो चलिए शुरू करते हैं…
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नफ़रत – ए – इश्क : 2
रेशमा एक सभ्य, समझदार और सुलझी हुई लड़की; ना ज्यादा किसी से मतलब रखती और ना ही किसी से उलझने की कोशिश करती। अगर कोई उससे बेमतलब उलझता तो वह उसी वक्त उसको उत्तर देने में पीछे नहीं हटती।
रेशमा अपने परिवार से बहुत ज्यादा प्यार करती है,, खास करके अपनी मौसी और अपने भाई – बहनों से। इसके मौसा एक बैंक में क्लर्क हैं। रेशमा की मम्मी – पापा का एक्सीडेंट में मौत हो गई। तब से यह अपने मौसी के साथ रहती है।
रेशमा M.B.A कर रही है और अपने कॉलेज से दूर चंडीगढ़ गई हुई थी… शिविर के लिए। जब यह बोलती है तो सामने वाले की भी बोलती बंद कर देती है। वो यह नहीं देखती कि सामने वाला कौन है ?
रेशमा की उम्र 25 साल है… देखने में गेहूंआ कलर है, हाइट 5 फीट 4 इंच, कमर तक आते बाल, चमचमाती आंखें और उसके नीचे काला तिल… देखने में एकदम लुटावन। जो एक बार देखे पीछे पलटकर जरूर देखते और ज्यादातर यह सलवार सूट ही पहनती है।
रेशमा ट्रेन में चढती है तो अपने सर से दुपट्टा नहीं निकलती है। वह भगवान से प्रार्थना कर रही है। जल्दी ही ट्रेन चलती है। वह अपना सामान सेट कर कपड़े सही करती है
और ट्रेन से बाहर झांककर देखती है कि कोई आया तो नहीं है लेकिन उसे कोई नहीं दिखता। तब रेशमा पानी की बोतल लेकर पानी पीती है और अपनी तेज सांसो को शांत करती है।
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तभी उसकी बेस्ट फ्रेंड सांची उससे बोलती है कि क्या हुआ रेशमा… तुम इतनी परेशान क्यों हो ?
रेशमा बोलती है कि कुछ नहीं,, मेरे पीछे पागल कुत्ता लग गया था और मैं दौड़ते दौड़ते आई हूं। इसलिए मेरी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी… तुम टेंशन मत लो।
सांची उसकी बात का विश्वास नहीं करत। वह जानती है कि रेशमा झूठ बोल रही ह। लेकिन सही जगह ना होने के कारण वो बात को नहीं बढ़ाती है और चुप रहती है।
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सतपाल राणा से तो आप लोग मिल ही चुके हैं। आइए जानते हैं उसके परिवार वालों के बारे में…
सतपाल राणा एक रूढ़िवादी परिवार की सोच रखता है। वह अपने घर की बहू – बेटियों को घर की चार दीवारों में कैद रखता है। अगर उनकी घर की बहू बेटियां समाज में बाहर घूमने के लिए जाएं तो यह एक बहुत बड़ा अपराध था।
सतपाल राणा के पिता, कर्मवीर राणा एक जमाने में वो भी बाहुबली हुआ करते थे। लेकिन जब से उन्होंने रियल व्हीलचेयर में अपने आपको पाया तो उनकी सारी बाहुबली खत्म हो गई। उसकी जगह उसके बेटे ने ले ली।
लेकिन अपने घर में बहुत चलती है। सतपाल राणा को कोई भी कानूनी कामों में कुछ समझ नहीं आता है। वह तो अपने पिता से मशवरा ले लेते थे। सतपाल राणा के दो बेटे और बेटियां हैं।
सत्यजीत राणा को लोग ‘ सत्या ‘ के नाम से जानते थे। जिस तरह सत्या नाम रखा गया था उसी तरह इसका काम भी था।
लोगों के सामने प्यार और मोहब्बत से पेश आता था क्योंकि इसके बाद उसे M.L.A के चुनाव भी लड़ने थे।
वह बिल्कुल अपने बाप की तरह था। यह कह सकते हैं कि वह अपने बाप से दो कदम आगे की सोचता था। सत्या एक नंबर का सनकी आदमी था।
जो चीज उसे प्यार से हासिल नहीं होती,, वह उसे सनक से हासिल कर लेता था। लेकिन सत्या दिल का नेक बंदा था। यह बात सब कोई जानता था
क्योंकि उसने गांव वालों के लिए कोई गलत काम नहीं किया। बल्कि गांव वालों के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर देता था, जो गांव के हित के लिए लाभकारी हो। गांव वाले उसे डर के साथ नहीं बल्कि प्यार के साथ ही अपनाते हैं।
सत्यपाल राणा के दूसरे बेटे का नाम ‘ सिद्धार्थ राणा ‘ है जो इंडिया के बाहर रहकर डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है।
सत्यपाल राणा की पहली बेटी, ज्योति की शादी हो चुकी है और दूसरी बेटी निधि है।
निधि अपनी B.A. (2nd year) में पढ़ती है। वह एक सुशील और शांत किस्म की लड़की है जो अपने भाई और पापा से बहुत डरती है।
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सत्यपाल की बीवी, लाजो सफल गृहिणी है जो परिवार को एक धागे में बांधकर रखती है। वह अपने पति के सामने नहीं बोलती है। पति की जरूरत का सामान उसके बोलने से पहले उसके सामने हाजिर कर देती है। अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है और बच्चे भी इनसे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं।
सत्यपाल राणा के सामने अगर उसकी बीवी कुछ बोल देती है तो समझो उसकी शामत आ गई। वो सबके सामने उसे कुछ नहीं बोलते बल्कि कमरे में जाकर उसे टॉर्चर करते हैं जिसके कारण रोती है। लेकिन सत्यपाल राणा अपनी बीवी को सभी के सामने मान देते हैं।
रेशमा ट्रेन में अपने आप को शांत कर आंख बंद किए हुए थी और अपनी मौसी, भाई – बहनों और मौसा जी के बारे में सोच रही थी। तभी सांची आकर उसे खाने का सामान ऑफर करती है। वो उसे ले लेती है। तभी उसकी मासी के द्वारा कही हुई बात उसे याद आती है कि उसे अपनी असली पहचान किसी को नहीं बतानी है।
तो वह अपनी फ्रेंड से कहती है – हेलो गाइस,, मैं तुम लोगों से एक बात कहना चाहती हूं।
सभी लोग रेशमा की बात सुनने को तैयार हो जाते हैं। तब रेशमा कहती है कि हम लोग वहां जाएंगे तो तुम लोग मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि रिशू के ही नाम से पुकारना।
मुझे अच्छा लगेगा क्योंकि मैं वहां तो किसी को जानती नहीं हूं और तुम लोग रहोगे तो मुझे अपनापन भी लगेगा।
सब लोग उसकी बात मान लेते हैं और फिर उसे उसके रियल नाम से नहीं बुलाते।
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दो रात और 1 दिन के बाद ट्रेन चंडीगढ़ पहुंच जाती है। सुबह के 10:00 बज रहे होते हैं। सभी ट्रेन से उतर गए थे। रेशमा प्लेटफॉर्म में आकर अपने शरीर को पूरी तरह अंगड़ाई लेते हुए कहती है – “आखिर हम लोग पहुंच ही गए।”
इस कहानी का यह भाग यहीं समाप्त होता है। कहानी बहुत ही दिलचस्प है। कहानी में आगे क्या हुआ..?? जाने के लिए इस कहानी का अगला भाग जरूर पढ़ें।