हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ नौकर से प्यार ” यह एक Family Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Pyar Ki Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Naukar Se Pyar | Family Story | Moral Stories | Pyar Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories
नौकर से प्यार
वैसे तो रात ज्यादातर खामोश होती है लेकिन कभी कभी ये रात शोर भी करती है। लेकिन रात के इस शोर को सुनना इतना आसान नहीं है।
रात के 12:00 बज गए थे और रंजीता अपने बिस्तर पर उदासी बैठी थी। कभी वो खिड़की के बाहर जाती है तो कभी बिस्तर पर चुप चाप बैठ जाती।
फिर बाहर बालकनी में जाकर खड़ी हो जाती। उसके हाव भाव बता रहे थे कि वो किसी का इंतज़ार कर रही थी।
रंजीता,” क्या बात हो गयी आज ? इस समय तक तो वो आ जाता था। “
तभी रंजीता की हवेली के पीछे एक आदमी चढ़ता हुआ दिखाई देता है। उसने अपने चेहरे को बड़ी सी तौलिए से ढक रखा था।
धीरे धीरे ऊपर चढ़ता हुआ वो रंजीता की बालकनी तक पहुंचा और दबे पांव रंजीता के कमरे में प्रवेश कर गया। रंजीता बिस्तर पर चुपचाप बैठी हुई थी।
उसने पीछे से उसकी दोनों आँखों को अपने हाथ से ढक लिया और उससे पूछा।
मोहन,” बताओ कौन ? “
रंजीता ने उसके हाथों को पहले तो प्यार से छुआ और फिर उसे झटकते हुए बोली।
रंजीता,” दो दिन हो गए, तुम्हें फुर्सत नहीं है मेरे पास आने की ? तुम्हें पता है तुम्हारे बिना मेरी हालत जल बिन मछली की तरह हो गयी थी ? “
ये कहकर रंजीता ने उस युवक को गले से लगा लिया। रंजीता की बातों को सुनकर उस युवक ने अपने चेहरे से तौलिया हटाया और फिर कहा।
मोहन,” आपको पता नहीं है क्या, मालिक ने मुझे दो दिनों के लिए शहर भेजा था ? ₹2,00,000 की रकम किसी को भिजवानी थी। और फिर वहाँ से कुछ लाना था। “
रंजीता,” क्या लाना था ? “
मोहन,” सोने का नेकलेस। आपका जन्मदिन आने वाला है ना ? “
रंजीता ने जब ये सुना है तो मुस्कुराते हुए मोहन की ओर देखने लगी और फिर उससे पूछा।
रंजीता,” तुम क्या गिफ्ट दे रहे हो जन्मदिन पर मेरे ? “
मोहन,” मैं क्या दे सकता हूँ ? लेकिन मैं तो बचपन से नौकर हूँ यहाँ। “
रंजीता,” तुम फिर शुरू हो गये। कोई नौकर और मालिक नहीं होता यहाँ और जहाँ तक गिफ्ट की बात है, तुमसे महंगा गिफ्ट मुझे कोई नहीं दे सकता। “
ये कहकर रंजीता ने एक बार फिर मोहन को गले से लगा लिया और फिर वे दोनों डूब गए प्रेम के समंदर में जहाँ पर डूबने के बाद बड़ा छोटा कोई नहीं होता। बस वहाँ होता है प्यार, प्यार और प्यार जो दोनों प्रेम में डूबे हुए थे।
अब तो सुबह होने वाली थी। तभी रंजिता के पिता ठाकुर बीरभद्र सिंह की जोरदार आवाज दोनों के कानों में पड़ी।
बीरभद्र,” मोहन… मोहन, अरे ! कहां बढ़ गया रे ? “
ठाकुर साहब की आवाज सुनकर हल्की नींद में चले गए मोहन और रंजीता हड़बड़ाकर उठ बैठे। दोनों के दिल की धड़कन ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगी।
मोहन,” लगता है मालिक साहब जाग गये हैं। ये तो बहुत बड़ी गडबड हो गयी है। हे भगवान ! अब क्या करूँ मैं ? “
रंजीता,” इतना डरोगे तो हो गया। सुनो, मैं नीचे जाती हूँ और बाबूजी को दूसरी बातों में लगाती हूँ।
तुम जिस तरह पाइप के रास्ते से आए थे, वैसे ही निकल जाओ और थोड़ी देर बाद बाबूजी के पास आ जाना। “
रंजीता की बात सुनकर मोहन दबे पांव कमरे से निकल गया। उधर रंजीता सीढ़ियों से उतरकर अपने पिता वीरभद्र सिंह के पास गई।
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रंजीता,” क्या हो गया बाबूजी ? अभी तो सूरज भी नहीं निकला और आप मोहन… मोहन करने लगे। मोहन के बिना तो आपका काम ही नहीं चलता। “
वीरभद्र,” वो तो है। लेकिन तू आज इतनी जल्दी कैसे जाग गईं ? 9 बजे के पहले तो तेरी आंख नहीं खुलती और आज 4:30 बजे ही। “
तभी वहाँ पर मोहन आ जाता है। उसे देखकर वीरभद्र सिंह उस पर चिल्लाते हुए कहते हैं।
वीरभद्र,” अरे ! कहां मर गया था रे तू ? तुझे आवाज़ दे देकर गला बैठ गया मेरा। “
मोहन,” मालिक, वो भैंसिया चिल्ला रही थी इसलिए उसे चारा देने गया था। “
वीरभद्र,” सुन, तुझे पता है ना आज रंजीता का जन्मदिन है ? शाम को बड़ी पार्टी है।
कई लोग आयेंगे उसमें और हाँ पार्टी में वीरपाल जी भी अपने बेटे (अंगद) के साथ आ रहे हैं। उनका विशेष ध्यान रखना।
मैं चाहता हूँ कि रंजीता की शादी अंगद से हो जाए। और हाँ एक बात और… मालकिन भी राजेश के साथ शहर से आ रही है। तो तू उन्हें लेने दोपहर में स्टेशन चले जाना। “
मोहन रंजीता के यहाँ नौकर का काम करता है। हालांकि उसे ग्रैजुएशन में गोल्ड मेडल मिला था। अगर वो शहर चला जाता है तो उसे अच्छी नौकरी मिल जाती।
लेकिन ठाकुर साहब का कर्ज उसके परिवार पर होने के कारण वो इनके यहाँ काम करता था और बिना उसे चुकाए वो कहीं नहीं जा सकता था।
मोहन,” कैसे चला जाऊं रंजीता तुम्हारे पापा की नौकरी छोड़कर ? तुम्हें पता है ना कितना कर्जा है उनका हमारे ऊपर ? बिना उसे चुकाये गया तो वो मेरे बूढ़े माँ बाप को बहुत परेशान करेंगे। “
रंजीता,” मोहन, तुम बेवकूफ हो। यहाँ पर रहोगे तो इनका कर्ज कभी खत्म नहीं होगा। तुम्हारे दादा ने मात्र ₹75 मेरे दादा से उधार लिए थे। वो 5,00,000 कैसे बन गया, मेरी समझ से बाहर है ? “
मोहन के पिता भी इस घर में नौकर थे और उसके दादा भी। पीढ़ियों से मोहन का परिवार वीरभद्र सिंह के यहाँ नौकर का काम करता रहा था।
लेकिन इस बात की परवाह किए बिना पिछले दो सालों से रंजीता और मोहन के बीच प्यार का सिलसिला चल रहा था।
हालांकि इस बात की ज़रा सी भी खबर ना तो वीरभद्र को है और ना ही उसकी पत्नी सुकन्या और बेटे राजेश को।
बहरहाल… शाम को रंजीता के लिए बड़ी बर्थडे पार्टी का आयोजन वीरभद्र सिंह की हवेली में किया गया था। कई सारे मेहमान वहां आए हुए थे।
पार्टी में…
वीरभद्र,” दोस्तों, आज मेरे लिए बहुत ही खुशी का दिन है। आज मेरी इकलौती बेटी रंजीता का जन्मदिन भी है और आज मैंने इसके भविष्य के लिए एक बहुत बड़ा फैसला किया। “
उसके बाद वीरभद्र सिंह ने रंजीता और अंगद की 15 दिन बाद सगाई की घोषणा कर दी। उस घोषणा को सुनकर रंजीता तुरंत ही वहाँ से चली गई।
सभी ने सोचा कि वो शर्मा गई है। लेकिन वो कहते है ना इश्क को आप कितना ही छुपायें, छुप नहीं सकता।
दो दिन बाद की बात है। रंजीता को लगातार उल्टियां हो रही थी।
सुकन्या,” अरे ! कितनी बार कहा है मुँह पर कंट्रोल रखा कर ? सारा दिन पता नहीं क्या क्या खाती रहती हैं ? अब हो रही है ना उल्टी। “
रंजीता की उल्टियां रोकने के लिए घरेलू दवा उसे दी गई, लेकिन कंट्रोल नहीं हुआ। फिर उसकी माँ उसे लेकर अस्पताल गई।
रंजीता की जांच पड़ताल के बाद डॉक्टर सुनीता ने जो कहा, उसे सुनकर सुकन्या देवी चीख पड़ी।
सुकन्या,” आप पागल पागल हो गई हैं क्या ? किसने बना दिया आपको डॉक्टर ? मेरी बेटी की अभी तक शादी भी नहीं हुई है और आप कह रही हैं कि ये गर्भवती है। “
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डॉक्टर,” मेरी जांच गलत नहीं है। सुकन्या देवी जी आपकी बेटी गर्भवती है। “
सुकन्या,” ऐ डॉक्टर ! तू जानती है ना तू क्या कह रही है ? और तेरी बात गलत साबित हो गई तो उसका क्या अंजाम होगा ? तू जानती है ना ? “
सुकन्या देवी डॉक्टर सुनीता को धमका रही थी। तभी उनकी बातों को काटते हुए रंजीता ने कहा।
रंजीता,” माँ, डॉक्टर सुनीता ठीक कह रही हैं। “
अपनी बेटी की बातों को सुनकर सुकन्या देवी चौक गईं। घर वापस आकर रंजीता ने सारी बातें अपनी माँ को बताईं।
उसने ये भी बताया कि उसने और मोहन दोनों ने छुपकर मंदिर में शादी भी कर ली है।
सुकन्या,” ये क्या नष्ट कर दिया तुने। अरे ! कुछ तो हम लोगों का मान रखा होता। हम लोग ठाकुर हैं और तुने अपने यहाँ के नौकर से प्यार कर लिया और ना सिर्फ प्यार किया बल्कि उसके साथ मुँह भी काला कर लिया। करम जली, तू पैदा होते ही मर क्यों नहीं गयी ? “
शाम तक ये बात वीरभद्र सिंह और उनके बेटे राजेश को पता लग गई । दोनों का खून खौल उठा। राजेश उसी समय राइफल लेकर मोहन को मारने के लिए निकल रहा था।
तभी सामने से मोहन आता हुआ दिख रहा है। राजेश ने आव देखा न ताव, बंदूक उसके ऊपर डाल दी। रंजीता भागी भागी आयी।
रंजीता,” ये क्या कर रहे हैं राजेश भैया ? मोहन को छोड़ दो। मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ। “
रंजीता की बात सुनकर राजेश ने बंदूक के भारी हिस्से से रंजीता के सिर पर मारा। वो बेचारी लहूलुहान हो गई।
रंजीता की हालत देखकर मोहन ने राजेश की राइफल को अपने हाथ में पकड़ लिया और उससे कहा।
मोहन,” अगर आपने एक बार और रंजीता पर हाथ उठाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। “
उसकी बात को सुनकर वीरभद्र सिंह और राजेश ने अपना आपा खो दिया।
राजेश,” दो अकोढ़ी के नौकर, तू हमें धमका रहा है ? “
वीरभद्र,” राजेश, पानी सर के ऊपर जा चुका है। इसलिए इसे छोड़ना मत। इसने बहुत बड़ी गलती की है।
कल को कोई और ऐसी गलती करने की जरूरत न करें, इसलिए इसको इस बात की सजा देना बहुत जरूरी है। “
पिता की बातों को सुनकर राजेश ने एक बार फिर से बंदूक की नाल मोहन की ओर की। एक ज़ोरदार धमाका हुआ और कुछ देर के लिए हर ओर खामोशी छा गई।
लेकिन जब खामोशी टूटी तो राजेश के सामने उसकी तड़पती हुई बहन रंजीता थी।
रंजीता,” मोहन… मोहन, भाग जा तू । भाग यहाँ से, ये लोग तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे। इन लोगों की नजर में प्यार की कोई अहमियत नहीं है। “
वीरभद्र,” ये प्यार है प्यार..? शादी के पहले दूसरे के बच्चे को पेट में लेकर घूम रही हो और उसे प्यार कह रही हो। “
रंजीता,” शादी तो हमने भगवान के सामने कर ली है, पिताजी। ईश्वर गवाह है हमारे प्यार और शादी का। आप लोग इस रिश्ते को स्वीकार कर लें पिताजी। “
वीरभद्र,” हम ठाकुर हैं। हमारे यहां अवैध रिश्ते बनाए जाते हैं, स्वीकार नहीं किये जाते। “
ये कहकर वीरभद्र सिंह ने अपने बेटे के हाथ से राइफल छीन ली और उसे एक गोली और मार दी। उसके बाद मोहन को भी।
मोहन,” रंजीता… रंजीता। “
रंजीता,” मोहन… मोहन। “
एक बार फिर से एक प्यार ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया क्योंकि वो प्यार अमीर और गरीब के बीच था।
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दोस्तों लोग भले ही कहते हैं कि प्यार अमीरी और गरीबी नहीं देखता, लेकिन सच इससे कोसों दूर है। लेकिन वो कहते है ना कि प्यार को जितना रखोगे वो उतना ही वेग से बढ़ेगा।
आज भी कोई ना कोई रंजीता मोहन से प्यार कर रही है और कोई मोहन रंजीता की ख्वाब बिना किसी ऊँच नीच की परवाह किये देख रहा है।
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