हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बदमाश जमींदार ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Badmash Jameendar | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales
बदमाश जमींदार
एक बार की बात है। एक गांव में गायत्री नाम की एक औरत रहा करती थी। कुछ सालों पहले गायत्री के पति का देहांत हुआ था।
तब से गायत्री पूरे घर को अकेले संभालती थी। उसके पति ने मरने से पहले वहाँ के जमींदार से कर्ज ले रखा था जिसकी भरपाई गायत्री खेतों में काम करके करती थी।
एक दिन जब गायत्री खेत में काम कर रही थी।
रेशमा,” चल गायत्री, घर नहीं चलना ? “
गायत्री,” दीदी, बस थोड़ा सा रह गया है। आप जानती हो ज़मींदार के आदमी बाद में जांच करते हैं। मैं नहीं चाहती वो किसी भी चीज़ को लेकर बाद में कुछ बोलें। “
रेशमा,” ठीक है, जैसी तेरी मर्ज़ी। “
इसके बाद रेशमा वहाँ से चली गई। धीरे धीरे सूरज ढलने लगा। गायत्री ने अपना काम खत्म किया और घर चली गई।
बिट्टू,” माँ, आ गई माँ ? दादी ने खाना बना दिया। चलो आ जाओ, खाना खा लो। “
गायत्री,” मैं हाथ मुँह धोकर आई। “
गायत्री,” माँ, आपने खाना क्यों बनाया ? “
गायत्री की सास,” बेटा, मैं बूढ़ी भले ही हो गयी हूँ लेकिन इतनी नहीं कि घर का थोड़ा काम भी ना कर सकूँ। “
गायत्री,” माँ आप जितना भी करती हैं, मेरे लिए उतना काफी है। लेकिन आप ज्यादा मत किया करो। “
सास,” बेटा मेरी चिंता मत कर, तू बाहर का देख लिया कर। घर का मैं देख लिया करूँगी। अब शांति से खाना खा और मुझे कुछ नहीं सुनना। “
अगली सुबह…
गायत्री,” माँ, ये लो आप चाय पी लो। मैंने खाना बना दिया। बिट्टू उठ जाए तो उसे कहना कि समय से विद्यालय चला जाए। “
सास,” ठीक है। “
गायत्री ने घर के एक डिब्बे में पैसे देखे। उसमें पैसे बहुत कम थे।
गायत्री,” आज ज़मींदार जी से पगार की बात कर लूँगी।
खेत में…
रेशमा,” गायत्री खाना खाने आजा, भला कब तक काम करेगी ? “
गायत्री,” दीदी, थोड़ी देर और कर लेती हूँ फिर आती हूँ। “
कुछ समय बाद गायत्री खाना खाने लगी। तभी उसने देखा कि जमींदार जी वहाँ काम देखने आये हैं। वो तुरंत जमींदार जी के पास गई।
गायत्री,” प्रणाम ज़मींदार जी ! “
ज़मींदार,” प्रणाम ! “
गायत्री,” जी वो घर में पैसे खत्म हो गए थे। मेरे घर में केवल मैं ही एक कमाई का जरिया हूँ। आपकी बहुत कृपा होगी अगर आप कुछ पैसे दे देते। “
ज़मींदार,” ऐसा करो शाम को घर आना, वही बात करेंगे। “
गायत्री,” ठीक है जमींदार साहब। “
इसके बाद गायत्री दोबारा अपने काम पर लग गयी। शाम को गायत्री जमींदार के घर पहुँची।
गायत्री,” प्रणाम जमींदार जी ! “
जमींदार,” प्रणाम !
गायत्री,” ज़मींदार जी, वो घर में पैसे खत्म हो गए थे। मैं घर में केवल एक ही कमाई का जरिया हूँ। आपकी बहुत कृपा होगी अगर आप कुछ पैसे दे देते। “
जमींदार,” तुम्हें तो पता है तुम्हारे पति ने मुझसे कर्ज लिया था। वो तो निकल पड़ा। अब अगर तुम्हें भी देता रहा तो मैं तो रास्ते पर आ जाऊंगा। तुम पहले सारा कर्ज दे दो, फिर ले लेना पैसे। “
गायत्री,” ज़मींदार जी, ऐसा मत करिए। मैं आप के अलावा कहीं काम नहीं करती। अगर यहाँ से भी पैसा आना बंद हो जाएगा तो हम भला कहां जाएंगे ? हमारी मदद करिए ज़मींदार जी। “
जमींदार,” घर पर काम करोगी हमारे, बहुत पैसे दूंगा ? “
गायत्री,” कैसा काम ज़मींदार जी ? “
जमींदार गायत्री के थोड़ा नजदीक आया और उसका हाथ पकड़ते हुए बोला।
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जमींदार,” वो तुम्हें सब समझा दूंगा। “
गायत्री,” ये क्या कह रहे हो आप ? “
गायत्री तुरंत वहां से अपने घर की ओर भागने लगी।
जमींदार,” कहाँ जा रही हो ? “
गायत्री वहाँ से चुपचाप निकल गयी।
जमींदार,” देखो… ये गरीब ऐसे ही होते है। बस, पैसा, पैसा, पैसा चाहिए इन्हें। बड़ी अकड़ है ना इसके अंदर… एक काम करो।
इससे रात तक काम कराओ। जितना हो सके उतना काम कराओ तब जाके अकड़ टूटेगी इसकी। “
गायत्री जंगल से होते हुए घर की ओर जा रही थी अंधेरा काफी हो चुका था तभी वह एक पेड़ के नीचे रख कर हताश होकर कहती है।
गायत्री,” प्रभू ! कृपा करो हम पर। घर पर अनाज भी खत्म होने वाला है। मैं यह सब कैसे करूँगी, समझ नहीं आता ? कहाँ से पैसों का इंतजाम करूँ ?
तंग आ चुकी हूँ मैं अपने इन हालातों से। अगर मैंने अपने जीवन में कभी भी कुछ ऐसा किया हो जिससे आपको खुशी मिली हो तो हमारी ज़िन्दगी सुधार दो। “
इसके बाद गायत्री घर चली गयी। रास्ते में चलते चलते बारिश होने लगी। अचानक गायत्री का पैर एक पत्थर पर पड़ा और गायत्री गिर पड़ी। पत्थर पर एक बिजली गिरी और वो पत्थर चमकने लगा।
गायत्री,” ये पत्थर चमक कैसे रहा है ? ये क्या है ? ऐसा करती हूँ इसे घर ले जाती हूँ और मां जी को दिखाती हूँ। “
गायत्री भीगते भीगते घर पहुंची।
सास,” गायत्री, आज इतनी देर क्यों हो गई बेटा ? सब ठीक तो है ना ? “
गायत्री,” माँ जी, देखिये आज आते समय मैं इस पत्थर से टकराई और अचानक इस पत्थर पर बिजली गिरी और ये अचानक चमकने लगा। मैंने सोचा घर ले जाकर आपको दिखाऊं। “
सास,” ये तो बड़ा सुंदर पत्थर है। मुझे लगता है बेटा इस पत्थर ने तेरे ऊपर आयी बला टाल दी। बेटा, ऐसा कर मंदिर में रख दें। “
गायत्री,” भगवान करे इससे ही घर की सारी बला टल जाए। “
अगले दिन…
सास,” अच्छा सुन… रेशमा आई थी। उसने सब्जी बनाकर हमें भी दी है। कह रही थी… गायत्री को कहना रोटी बनाकर सब खा ले और सब्जी की तारीफ करना मत भूलना। बड़ी प्यारी लड़की है। “
गायत्री मन ही मन खुश हुई।
गायत्री,” मैं अभी रोटी बनाती हूँ माँ। “
सास,” तूने खाना खाया बेटा ? मैं रोटी बना चुकी हूँ। “
गायत्री,” माँ…। “
सास,” मुझे कुछ नहीं सुनना। तू जा और हाथ मुँह धोकर आ जा। “
इसके बाद सब ने खाना खाया और गायत्री मंदिर में जाकर प्रार्थना करने लगी।
गायत्री,” हे प्रभु ! कब तक इसी तरह चलता रहेगा ? हम पर कृपा करो प्रभु… कृपा करो। “
सास,” बेटा, तू चिंता क्यों करती है ? देखना वो हमारी मदद जरूर करेंगे। अब जा तू सोजा जाकर। “
इसके बाद अगले दिन सुबह गायत्री फिर से काम पर चली गयी।
गायत्री,” दीदी, कल आपने सब्जी बहुत अच्छी बनायी थी। “
रेशमा,” मुझे अच्छा लगा तुझे पसंद आयी। “
गायत्री,” दीदी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। “
रेशमा,” कोई नहीं… चल अब काम कर। ज़मींदार के आदमियों ने देख लिया तो परेशान करेंगे। “
फिर इसके बाद ज़मींदार का आदमी गायत्री को जमींदार के पास ले जाने आया।
आदमी,” सुनो गायत्री, जमींदार साहब ने बुलाया है। “
गायत्री चुपचाप जाने लगी।
जमींदार,” कल तो तुम अकड़ में चली गई थी लेकिन कान खोलकर सुन लो। तुम्हारे पति ने जितना कर्ज लिया है, मुझे वो इस महीने के आखिर तक चाहिए।
और अगर नहीं मिला तो तुझे और तेरी उस बुढिया सास को जेल में भिजवा दूंगा मेरे सारे पैसे खाने के इल्ज़ाम में…समझी ? “
गायत्री,” ऐसा मत करिए। मैं इतने सारे पैसे कहाँ से लाऊंगी ? “
जमींदार,” ये तो कल अकड़ में जाने से पहले सोचना चाहिए। अब जाओ काम करो अपना। इसके बाद दोनों काम करने लगे। रात तक काम करने के बाद गायत्री थक गई लेकिन जैसे तैसे गायत्री घर पहुंची।
सास,” जल्दी इधर आ गायत्री। “
गायत्री,” क्या हुआ मां ? “
सास,” सब बताती हूँ इधर तो आप पहले। आज जब मैं पूजा कर रही थी, मैंने देखा ये लोहे का सोना हो गया। “
गायत्री,” ऐसा कैसे हो सकता है ? सोने का पानी चढ़ गया होगा। ऐसे ही रख दिया होगा कभी हमने। “
सास,” इतनी उम्र हो गयी मेरी, सोना देखकर पहचान जाती हूँ। भला मेरी आँखें धोखा कैसे खा सकती हैं ? ऐसा नहीं हो सकता। मैं सुनार के पास जाऊंगी और इसकी जांच कराऊंगी। “
गायत्री,” ठीक है, ठीक है जैसी आपकी इच्छा। “
सास,” जा जल्दी खाना खा ले जाके। “
गायत्री,” माँ आप तो जानती हैं, धीरे धीरे घर का अनाज खत्म हो रहा है और जमींदार एक भी पैसा देने को तैयार नहीं। क्या करे माँ, मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा ? “
सास,” देखते है बेटा क्या होता है ? कुछ ना कुछ तो जरूर ठीक हो ही जाएगा। तू चिंता मत कर। “
गायत्री,” पर मां मैं बिट्टू को समय नहीं दे पाती हूँ। सुबह उसके उठने से पहले ही चली जाती हूँ और रात को उसके सोने के बाद आती हूँ। माँ, अगर आप नहीं होतीं तो मेरे लिए सब झेलना मुश्किल हो जाता। “
सास,” ये तू कैसी बातें कर रही है ? मेरे बेटे ने अपने फायदे के लिए कर्ज लिया और मर गया।
तूने मुझे अपने साथ रखा, मेरी देखभाल भी की और उस नालायक का कर्ज उतारने के लिए दिन रात उन खेतों में काम कर रही है।
हम एक परिवार है बेटा। हम एक साथ रहेंगे। तू चाहती तो बिट्टू को लेकर अपने घर कब की चली जाती ? लेकिन तू यहाँ रुकी। मुझे अकेला नहीं छोड़ा। मेरे लिए तो तू ही मेरी औलाद है। “
दोनों गले मिलते हैं।
सास,” अब जा तू सोजा। “
गायत्री के जाने के बाद…
सास,” हे प्रभु ! रक्षा करो हमारी… और कितना दुख देखना बाकी है ? कृपा करो प्रभु। “
इसके बाद अगले दिन गायत्री काम पर चली गई और माँ जी सुनार के पास गईं। वहाँ जाकर मां जी को सुनार ने बताया कि वो लोटा सोने का है।
सास,” आप इसका कितना दोगे ? “
सुनार,” ये बहुत ही उच्च कोटि का सोना है और भारी भी है। इसके बनते हैं 90 हजार रुपये। ये आपको कहाँ से मिला माँ जी ? “
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सास,” मेरे दादा जी ने शादी के वक्त मुझे दिया था। उसके बाद से इसके बारे में भूल गयी थी। कुछ दिनों बाद बक्से में मिला। इसे देखा तो सोचा बेच दूँ, घर में कुछ खाने पीने को आ जायेगा। “
सुनार,” सब प्रभु की कृपा है माँ जी। “
सास,” अब मैं चलती हूँ बेटा। “
इसके बाद माँ जी घर पहुंची। रात को जैसे ही गायत्री घर पहुंची, माँ जी ने उसे सारी बात बता दी और सारे पैसे गायत्री के हाथ में रखे।
सास,” बेटा, कल जाकर पैसे जमींदार को दे देना। उससे कहना अब तू उसके यहाँ काम करने नहीं आएगी। “
गायत्री,” मां, आप ये सब क्या कह रही हो ? वो लोटा हमारे घर कैसे आया ? “
सास,” इधर बैठ। “
वह पत्थर लेकर आयी और साथ ही लोहे के कुछ सिक्के भी और कुछ लोहे के सामान भी।
गायत्री,” ये आप क्या कर रही हो मां जी ? “
सास,” ये देख। “
दादी ने पत्थर से सामान को छुआ और देखते ही देखते वो सोने में बदल गया। “
सास,” मैंने बचपन में सुना था कि एक पत्थर होता है जिसे अगर लोहे की किसी चीज़ से छुआ जाए तो वो सामान सोने का बन जाता है।
ऐसे पत्थर को पारस पत्थर कहते हैं। अब देखना कल तू इन सबको शहर जाकर बेच आ। यहाँ बेचेगी तो सुनार को शक हो जाएगा। “
अगले दिन गायत्री शहर सुनार के पास जाकर सारी चीजें बेच आई। शाम को वो जैसे ही घर पहुंची, उसने देखा उसके घर में जमींदार आया हुआ था।
गायत्री,” आप लोग यहाँ..? “
जमींदार,” ये बताओ तुम आज काम पर क्यों नहीं आई ? “
गायत्री,” अब से मैं आपके यहाँ काम नहीं करूँगी। ये लीजिये आपके पैसे… पूरे 3 लाख हैं और आज के बाद हमारे घर कभी मत आना। “
जमींदार,” ये पैसे कहाँ से आये ? चोरी करी या फिर कुछ और ? “
गायत्री,” तुमसे मतलब..? अपने पैसे पकड़ो और निकलो यहाँ से। “
सास,” कृपा करके जाइए यहाँ से। “
इसके बाद जमींदार वहाँ से चला गया।
घर पहुँचकर…
जमींदार,” पता करो इनके पास इतने पैसे कहाँ से आये ? कल तक मुझे ये जानना है कि इनके पास ये सारा धन कहाँ से आया ? समझ गए ना सारे ? “
आदमी,” जी मालिक, समझ गए। “
इसके बाद सारे आदमी रात को गायत्री के घर पहुंचे। गायत्री की सास को पत्थर से लोहे को सोना बनाते देख वो सब हैरान हो गए।
पहला आदमी,” देखना भाई इनकी तो किस्मत ही खुल गई। मैं कहता हूँ पत्थर हम रख लेते हैं। “
दूसरा आदमी,” पागल, जमींदार को पता चला तो मारे जायेंगे। तू उनका गुस्सा नहीं जानता क्या ? चल ये खबर जमींदार को देकर आते हैं। “
इसके बाद एक आदमी गायत्री के घर के अंदर घुसा और वो पत्थर उठाकर जमींदार साहब के पास ले गया। सारे आदमी जमींदार के घर पहुंचे।
आदमी,” मालिक, आपको पता है… जब हम उसके घर गए तो हमने देखा कि उनके घर में एक ऐसा पत्थर है जो पत्थर चीजों को सोने का बना रहा था। “
जमींदार,” क्या..? तुम सच कह रहे हो ? “
आदमी,” अपने बच्चों की कसम खाता हूँ, सच कह रहा हूँ। “
जमींदार,” पीकर आये हो क्या ? “
आदमी,” नहीं जमींदार साहब, लेकर आए हैं। “
जमींदार,” क्या ? “
आदमी,” हमने जैसे ही देखा कि ये कितनी चमत्कारी चीज़ है, हम इसे उठा ले आये। ये आपके लिए हमारी तरफ से छोटी सी भेंट। “
जमींदार,” चलो दिखाओ, यह कैसे काम करता है। “
पहला आदमी,” मालिक, मैं दिखाता हूँ। ये देखिये… इसे ऐसे लोहे के पास ले जाना है और लोहा सोने में बदल जाएगा। “
उसने जैसे ही लोहा पत्थर के पास ले जाकर जमींदार को दिखाया लेकिन फिर भी लोहा सोने में नहीं बदला।
पहला आदमी,” रुकिए मालिक, मैं दोबारा करता हूँ। लगता है मैंने सही से नहीं किया।
दूसरा आदमी,” रहने दे, मैं करता हूँ। देखिये मालिक, इसे ऐसे पकड़ना है और ऐसे लोहे के पास ले जाना है और ये बन गया हमारा लोहा सोना। “
दूसरे आदमी ने भी अपना करतब दिखाया लेकिन लोहा सोने में नहीं बदला।
जमींदार,” मुझे तो लगता है तुम दोनों के दोनों पागल हो गए हो। “
दूसरा आदमी,” मालिक, हमारा भरोसा करिए। हम आपसे झूठ क्यों बोलेंगे ? ऐसा करता हूँ दुबारा से इसको उसकी जगह पर रख देता हूँ।
कल हम रात को दोबारा जाएंगे और जब वो बुढ़िया सोना बनाएगी तो आप खुद ही देख लीजियेगा। “
जमींदार,” देख लो… अगर मेरा कल का दिन बर्बाद हुआ तो तुम दोनों की खैर नहीं। “
इसके बाद दोनों के दोनों गायत्री के घर पहुंचे और उस पत्थर को मंदिर में रख दिया। इसके बाद वो दोनों वहाँ से वापस चले गए। ज़मींदार अगले दिन रात होने का इंतजार करने लगा।
रात होते ही वो कुछ लोगों के साथ मिलकर गायत्री के घर गया। वहाँ उसने मंदिर में रखा अंधेरे में चमकता हुआ पत्थर देखा।
पहला आदमी,” मालिक, आपके लिए वो पत्थर लेकर आता हूँ। “
जैसे ही उसने वो पत्थर छूने की कोशिश की, उस पत्थर से एक भूत बाहर निकला।
भूत,” यह केवल गायत्री के लिए है, समझा ? “
इसके बाद पत्थर ने उन सब को पकड़कर बहुत मारा। घर पर शोर होने की वजह से सभी जाग गए।
जमींदार,” ये क्या हो रहा है ? तुम कौन हो ? “
भूत,” मैं इस पत्थर का रक्षक। ये पत्थर किसी गलत के हाथों में ना लगे इसलिए मैं इस पत्थर की रक्षा करता हूँ। “
इसके बाद वहां अचानक पुलिस आ गई।
सास,” आइये आइये साहब, ये देखिये जमींदार हमें कैसे परेशान कर रहा है ? “
इंस्पेक्टर,” रे सब चिंता मत करो। अब हम आ गए हैं, इस जमींदार को तो मैं बताऊँगा। लोगों की नाक में दम करके रखा है साले ने। “
जमींदार,” हाँ इंस्पेक्टर साहब, हमें ले चलिए वरना हम जिंदा नहीं बचेंगे। “
इंस्पेक्टर,” अरे ! तू तो वैसे भी नहीं बचेगा। चल अब सबकी अक्ल थाने में खुलेगी। “
इसके बाद पुलिस ने उन सभी लोगों को अपने साथ ले लिया।
गायत्री,” ये सब क्या था माँ जी ? “
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सास,” मैंने इस पत्थर को छुपा दिया था और इसकी जगह नकली पत्थर रख दिया था। मुझे पता नहीं क्यों लग रहा था कि कोई है जो इसे चुराना चाहता है ? और देखो वैसा ही हुआ।
और आज जब ये सब हमारे घर आये तो मैंने चुपके से पुलिस को फ़ोन करके सब कुछ बता दिया था और उन्हें बुला लिया था ताकि कोई बड़ा हंगामा होने पर हम बच जायें। “
गायत्री,” वाह मां जी ! आप तो बड़ी समझदार निकलीं। “
दोनों के दोनों हंसने लगे। इसके बाद गायत्री ने सारा कर्ज उतार दिया और अपनी छोटी सी भली जिंदगी जीने लगे। इसके बाद गायत्री और उसका परिवार खुशी से रहने लगा।
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