हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” मूर्ख मंत्री ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या New Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Fool Minister | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Stories
मूर्ख मंत्री
एक राज्य था रामगढ़। रामगढ़ का मंत्री चतुर था। किंतु उसकी एक आदत थी कि वह कई बातों को भूल जाता था। भुलक्कड़ मंत्री के कारण कई बार राज्य में बातों का बखेड़ा बन जाता था।
एक बार रानी का कीमती हार खो गया। रानी ने मंत्री से राजा को सूचित करने को कहा परंतु वह भूल गया।
मंत्री,” जाओ तोताराम व्यापारी को बुला लाओ, उसका हिसाब बाकी है। “
सैनिक,” मंत्री जी… कल तो बुलाया था। “
मंत्री,” कब कल ? “
सैनिक,” मंत्री जी शायद आप भूल गए हैं। आपने उससे कल बहुत देर तक बात भी की थी। कल चाय भी पी थी आपने उसके साथ। “
मंत्री,” अच्छा, अच्छा ठीक है। मुझे तो कुछ याद नहीं, मैंने उससे क्या बात की थी ? चलो कोई बात नहीं बाद में देखता हूं। अभी महाराज बुला रहे हैं। “
महाराज,” आओ, आओ मंत्री। “
मंत्री,” जी महाराज ! “
महाराज,” मंत्री तुमने आज सुनार को बुलाया ? “
मंत्री,” सुनार ? कौन सुनार महाराज ? “
महाराज,” ताराचंद सुनार। मैंने तुम्हें आज उसे बुलाने को कहा था। महारानी को कुछ आभूषण लेने हैं। यदि आज वह नहीं आया तो प्रलय आ जायेगा। “
मंत्री,” जी महाराज ! पर वह आज नहीं आ सकता। “
महाराज,” यह क्या बोल रहे हो। उसका इतना दुस्साहस कि वह हमें ऐसा कहे। “
मंत्री,” नहीं, नहीं महाराज… आप क्रोधित मत होइए। वह कल हर हाल में आएगा। “
महाराज,” कल क्यों ? आज क्यों नहीं ? कहीं तुम उसे बुलाना…। “
मंत्री (हाथ जोड़ते हुए),” महाराज ! आप तो बहुत दयावान हैं। आप तो सब कुछ कर सकते हैं। बस आज सब कुछ संभाल लीजिए। कल सुनार हर हालत में हाजिर होगा। “
तभी रानी आ जाती है।
रानी,” महाराज… आज मेरा कीमती हार खोये 4 दिन बीत चुके हैं। आपने कुछ किया या नहीं ? “
महाराज,” क्या कहा ? आपका हार गुम हुए पूरे 4 दिन हो चुके हैं। आपने मुझे अभी तक बताया क्यों नहीं ? अगर किसी ने चुराया होगा तो अब ढूंढने में कठिनाई हो जाएगी। “
महाराज,” आप ये कैसी बातें कर रहे हैं, हार जिस दिन से गायब है मैंने उसी दिन मंत्री जी से आपको सूचित करने से कहा था। “
महाराज,” इस मंत्री को कोई भी बात बताने को कहो तो 10 दिन बाद बताएगा। क्षमा महारानी… लेकिन मंत्री ने मुझसे इस बारे में कोई बात नहीं की। “
रानी,” क्या इसने अब तक आपको यह बात नहीं बताई। मेरा इतना निरादर… इतना अपमान तो मैं नहीं सह सकती।
महाराज,” शांत महारानी… इतना क्रोध आपके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं। “
रानी,” मंत्री… मैंने तुम्हें खोये हुए हार के बारे में महाराज को सूचित करने के बारे में कहा था, तुमने वह बात अब तक नहीं बताई। “
मंत्री,” नहीं, नहीं महारानी… आपने मुझसे इस बारे में कोई भी बात नहीं की। “
रानी,” तो क्या मैं झूठ बोल रही हूं ? कोई भी छोटा काम तुम ठीक से नहीं कर सकते। “
मंत्री,” सच महारानी… अपने ऐसी कोई भी बात महाराज को सूचित करने के बारे में नहीं कहा था। “
महाराज,” मंत्री… कहीं तुम मुझे यह बात बताना भूल तो नहीं गए। “
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मंत्री,” नहीं महाराज, मुझे शत-प्रतिशत याद है। महारानी ने मुझे कोई सूचना देने को नहीं कहा था। “
रानी,” तुम कैसे मंत्री हो ? महाराज के सामने तुम मुझे झूठा कहने की कोशिश कर रहे हो ? महाराज मैं इतना निरादर नहीं सहन कर सकती। आप इसे अभी राज्य से बाहर निकलवा दीजिए। “
महाराज,” शांत महारानी, आप बात को समझिए। मैंने अगर इसे अभी राज्य से निकाल दिया तो ये हमें बदनाम कर देगा कि राजा ने निर्दोष होते हुए भी इसे राज्य से निकाल दिया। आप अपनी बात को प्रमाणित करें फिर मैं इसे देखता हूं। “
रानी,” प्रमाण चाहिए। मेरी दासी नकुड़ी, नकुड़ी, ओ नकुडी… अरे कहां मर गई ? आज तेरी महारानी के मान का सवाल है। “
रानी,” तू अपने मुंह से बता, मैंने इस भुलक्कड़ मंत्री को अपने खोए हुए हार के बारे में महाराज को सूचित करने के लिए कहा था या नहीं। तू थी ना वहां। “
नकुड़ी,” महाराज… महारानी जी सब सच कह रही है। महारानी जी ने इस भुलक्कड़ मंत्री को तुरंत अपने खोए हार के बारे में आपको सूचित करने के लिए कहा था। “
मंत्री,” महाराज ! आप इस दासी का यकीन मत कीजिए। यह मुझसे बदला लेना चाहती है। तभी यह ऐसा कह रही है। आपने सुना ना मुझे भुलक्कड़ कह रही है। “
नकुड़ी,” वह तो रानी जी ने भी कहा है। “
मंत्री,” वह तो महारानी है जो चाहे वह कह सकती हैं। पर तुम्हें मुझे भुलक्कड कहने का कोई अधिकार नहीं है… समझी। “
महाराज,” शांत हो। मंत्री… तुम बताओ, मैं इस दासी का विश्वास क्यों ना करूं ? कोई तो कारण होगा ? “
मंत्री,” महाराज ! यह दासी रोजाना वाटिका से फूल तोड़कर बाजार में बेच आती है और खरीदने वालों से कहती है – यह राजमहल की वाटिका के फूल है इसलिए महंगे हैं। “
महारानी,” ऐ नकुड़ी ! तू ऐसा करती है। और रोज मुझसे भी कोई ना कोई भेंट लेकर जाती है। “
मंत्री,” जी महारानी ! यह रोज ऐसा करती है। मैंने इसे वाटिका से फूल तोड़ने को मना भी किया था। इसीलिए यह मुझसे बदला लेना चाहती है।
महाराज,” महारानी अब आप ही बताइए क्या किया जाए ? कहीं आप यह बात मंत्री को बताना भूल तो नहीं गई ? “
रानी,” महाराज… भुलक्कड़ मैं नहीं यह मंत्री है। मुझे अभी भी याद है। मैंने इससे कहा था। यह झूठ बोल रहा है। “
मंत्री,” महाराज ! मै झूठ नहीं बोल रहा हूं। “
महाराज,” पवित्र भगवत गीता पर आप दोनों हाथ रखकर सत्य बोलने का वचन लेकर अपनी बात फिर से कहो। “
रानी (भगवत गीता पर हाथ रखते हुए),” महाराज… मैं जो कहूंगी सच कहूंगी। मैंने आपसे जो कुछ भी कहा है वह सत्य है। “
मंत्री (भगवत गीता पर हाथ रखते हुए),” महाराज ! मुझे ठीक से याद नहीं कि महारानी ने मुझे इस बारे में आपसे सूचित करने के लिए कहा भी था या नहीं। “
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रानी,” देखा महाराज, इस भुलक्कड़ मंत्री को मेरी कही हुई बात ही याद नहीं। ये राज कार्य कैसे करता होगा ? “
महाराज,” हम इसे दंड अवश्य देंगे। आप थक गई होंगी महारानी, आप विश्राम कीजिए। “
रानी,” और मेरा हार… उसका क्या होगा ? “
महाराज,” चिंता मत कीजिए, वह भी मिल जाएगा। “
महारानी के जाने के बाद महाराज मंत्री से कहते हैं,” मंत्री तुम दंड के पात्र हो। “
मंत्री,” क्षमा महाराज, मुझे इस बारे में ठीक से याद नहीं था। “
महाराज,” 24 घंटों के भीतर महारानी के हार का पता लगाओ अन्यथा दंड के भागी बनोगे। “
मंत्री,” जी महाराज ! “
मंत्री,” आकर सेवकों को बुलाता है,” किसी भी तरह महारानी का हार ढूंढो। राज्य का कोना-कोना छान मारो। “
सेवकों के जाने पर एक व्यापारी, तोताराम मंत्री के पास आता है।
तोताराम,” मंत्री जी… कैसे हो ? “
मंत्री,” ठीक नहीं हूं। अच्छा हुआ लाला जो तुम आ गए। “
तोताराम,” कितनी बार कहा है मुझे लाला मत कहा करो।। मैं व्यापारी हूं लाला नहीं। “
मंत्री,” यह किसने कहा था कि लाला व्यापारी नहीं हो सकता ? “
तोताराम,” तुमसे तो कुछ कहना ही व्यर्थ है। यह बताओ कि महाराज कहां पर है ? मुझे उनसे मिलना है। फिर पास आकर मंत्री के कान में धीरे से कहा- तुम्हें कल की बात याद है ना ? “
मंत्री,” कौन सी बात ? “
तोताराम,” तुम ना बहुत उपहास करते हो। इस बार मेरा व्यापार बहुत अच्छा हुआ। पर मुझे अधिक कर नहीं देना है। “
मंत्री,” तुम सोचते हो कि महाराज तुम्हें बिना कर दिए ही छोड़ देंगे। “
तोताराम,” यह बात मत करो। महाराज बहुत ही लालची और कंजूस आदमी है। ऊपर से बिल्कुल मूर्ख। अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं महाराज को बड़ी ही आसानी से मूर्ख बना सकता हूं। “
मंत्री,” यह क्या कह रहे हो ? “
तोताराम,” बस तुम अपना वहीखाता मेरे अनुसार बैठा लो। मैंने सब प्रबंध कर रखा है। तुम मेरे लिए आंकड़े ही महाराज को दिखाना। इसके बदले में मैं तुम्हें स्वर्ण आभूषण देता हूं। यह रखो… एकदम खरे सोने का है। आजकल ऐसा माल कहीं नहीं मिलता, हां। “
मंत्री,” अरे ! यह तो महारानी का खोया हुआ हार है। यह तुम्हारे पास कैसे आया ? “
तोताराम,” अरे ! यह तो कल एक औरत मेरी दुकान पर बेचकर गई थी। मैं सच कह रहा हूं वरना यह हार मेरे पास कैसे आता ? “
मंत्री,” यह कैसे संभव है ? “
तोताराम,” मंत्री जी मैं सच कह रहा हूं। तुम्हें इस आभूषण का जो करना है करो, कृपया मुझे बचा लो। इस मूर्ख राजा का कोई भरोसा नहीं, पता नहीं क्या दंड देदे। “
मंत्री,” अच्छा, मैं कुछ करता हूं। तुम यहां से जाओ। “
मंत्री जाकर रानी को हार दे देता है।
महाराज,” वाह मंत्री ! दंड के भय से तुम्हें हार इतनी जल्दी मिल गया। “
रानी,” हाय, हाय ! मेरा कीमती हार। अच्छा हुआ तुम्हें यह कीमती हार मिल गया। “
महाराज,” लेकिन मंत्री… तुम्हें यह हार इतनी शीघ्र कैसे मिल गया। क्या तुम जानते थे कि हार कहां है ? “
मंत्री (मैंने तो सदा सत्य बोलने का वचन लिया है.। यदि सत्य बता दिया तो बेचारा लाला मारा जाएगा। हे प्रभु ! में किस धर्म संकट में फंस गया।)
महाराज,” मंत्री… चुप क्यों हो ? बताते क्यों नहीं ? “
मंत्री चुपचाप खड़ा रहा।
रानी,” महाराज मुझे लगता है यह हार इसी के पास था। तभी कुछ बोल नहीं रहा। अब दंड के भय से इसने यह हार वापस कर दिया। भुलक्कड़ चोर कहीं का…। “
मंत्री,” महारानी ना मैं भुलक्कड़ हूं और ना ही चोर। “
महाराज,” यदि तुम चोर नहीं हो तो सच बताओ कि हार तुम्हें कहां से मिला ? “
मंत्री,” मुझे यह हार तोताराम व्यापारी से मिला है। “
महाराज,” उसने तो इस साल कर भी अदा नहीं किया है। तोताराम को बुलवाया जाए।
तुकाराम,” महाराज की जय हो। “
महाराज,” तुम्हारे पास महारानी का हार कैसे आया ? दुष्ट बता नहीं तो तुझे कारावास में डाला जाएगा। “
तोताराम,” महाराज ! मेरा कोई दोष नहीं है। यह हार कल मेरी दुकान पर एक मोटी स्त्री बेच गई थी। “
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नकुडी,” नहीं, नहीं महाराज… यह तोताराम झूठ बोल रहा है। यह तो उस समय दुकान पर था ही नहीं। “
तोताराम,” तुम्हें कैसे पता यह सब कि मैं दुकान पर नहीं था ? कहीं तुमने ही तो यह हार नहीं चुराया और अफवाह फैला दी कि हार गुम हो गया है। “
नकुड़ी,” चुप मुंह जले, तेरा सत्यानाश हो। “
तोताराम,” देखो महाराज… यह दासी मुझे उल्टा सीधा बोल रही है। “
रानी” क्यों नकुड़ी… तूने मेरा हार चुराया ? वैसे भी हार मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। तू मांग लेती तो मैं तुझे यह यूं ही दे देती। चल आगे से कभी चोरी मत करना। “
लकड़ी,” रानी जी ! इस पूरे संसार में केवल आप ही मुझे समझ सकती हैं। “
रानी,” महाराज… आप चिंता मत कीजिए, इसे मैं अपने तरीके से दंड दूंगी। मच्छरों के बीच सोना पड़ेगा तो इसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी। “
रानी,” ए नकुड़ी चल यहां से। “
नकुड़ी और रानी दोनों वहां से चले गए।
महाराज,” दासी को तो महारानी बचा कर ले गई। तोताराम… तुम्हारा क्या होगा ? तुम्हारा अपराध ये है कि मेरे राज्य में चोरी की वस्तुओं का व्यापार करते हो। बोलो तुम्हें क्या दंड दिया जाए ? “
तोताराम,” क्षमा महाराज… मैं नहीं जानता था कि वह आभूषण चोरी का है। ना ही मुझे मेरे कर्मचारियों ने बताया था। “
महाराज,” मंत्री… तुम्हें कैसे पता चला कि हार इसके पास है ? “
मंत्री,” इसने खुद मुझे दिया। “
महाराज,” मंत्री… यह तुम्हें हार क्यों देगा ? पूरी बात बताओ। “
मंत्री,” महाराज ! यह पूरा कर नहीं देना चाहता था। इसने कहा कि आप लालची और मूर्ख हैं और मैं इसके साथ मिलकर इसके व्यापारी आंकड़े बदल दूं। “
महाराज,” मैं लालची हूं, मूर्ख हूं और क्या कहा इसने मेरे बारे में ? “
मंत्री,” कंजूस… बेवकूफ…। “
तोताराम,” क्षमा महाराज क्षमा, इस संसार में आप से योग्य व्यक्ति और कहीं नहीं है। मैं आज से पूरा कर अदा करूंगा। आपको शिकायत का कोई अवसर नहीं दूंगा। “
महाराज,” तुम इस बार 4 वर्षों का कर अदा करोगे और 1 महीने के लिए तुम्हारी दुकान पर राज्य का अधिकार रहेगा। “
तोताराम,” जी महाराज ! जी… जी। “
मंत्री,” महाराज ! आपसे एक विनती है, कृपया यह सत्य बोलने वाला वचन वापस ले लें। “
महाराज (हंसते हुए),” ठीक है मंत्री पर दंड के पात्र तो तुम हो। ऐसा करो महारानी को आभूषण दिलवाने की जिम्मेदारी तुम ले लो। “
मंत्री,” क्षमा महाराज ! यह दंड मृत्युदंड से भी अधिक जानलेवा है। “
महाराज जोर से हंसता है।
मंत्री,” महाराज ! महारानी तो महारानी है। जहां वह होगी वहां उनकी दासी नकुड़ी भी रहेगी, मुझ पर दया कीजिए। “
महाराज,” तुम्हारा दंड यही है कि तुम सदा सत्य बोलोगे।
मंत्री,” जैसी आपकी आज्ञा। “
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