राजा और जादुई पानी – Bed Time Story | Hindi Kahani | Fairy Tales Story | Hindi Kahaniyan | Majedar Hindi Kahaniyan

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” राजा और जादुई पानी  ” यह एक Bed Time Story है। अगर आपको भी Hindi Kahaniyan, Moral Stories in Hindi या Majedar Hindi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
राजा और जादुई पानी - Bed Time Story | Hindi Kahani | Fairy Tales Story | Hindi Kahaniyan | Majedar Hindi Kahaniyan

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 राजा और जादुई पानी 

प्राचीन समय की बात है। भीषणपुर नाम के राज्य में दुष्यंत नाम के एक राजा रहते थे। वे एक बहुत ही अच्छे और कुशल शासक थे। उनके राज्य में उनकी प्रजा बहुत ही ज्यादा सुखी थी। 
लेकिन पास ही राज्य में एक दूसरा राज्य था जिसका राजा बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था। उसने भीषणपुर की प्रजा को बहकाया और भीषणपुर राज्य पर आक्रमण कर दिया।
राजा दुष्यंत को इस साजिश की भनक भी नहीं थी। इस वजह से वो आक्रमण की तैयारी भी नहीं कर पाए। परिणाम यह हुआ कि उनकी सेना दुश्मन की सेना के आगे टूटने लगी।
राजा दुष्यंत के कई सैनिक मारे गए। उनका रथ भी टूट चुका था जिसकी वजह से उनका घोड़ा और खुद वो भी घायल हो चुके थे।
राजा दुष्यंत को घायल होता हुआ देख उनके सेनापति ने कहा,” महाराज ! हमारी सेना दुश्मन की सेना के आगे कमजोर पड़ रही है। 
मेरा सुझाव माने तो आप कुछ समय के लिए इस राज्य से कहीं दूर चले जाइए। इस बार नहीं तो हम अगली बार अवश्य जीत जाएंगे। “
” नहीं सेनापति… मैं अपने राज्य और अपनी सेना को इस तरह मुसीबत में छोड़कर नहीं जा सकता। “
” मेरी बात समझिए महाराज,, यह समय सोच समझकर विचार करने का है। आप सेना और राज्य की चिंता मत कीजिए। 
जब तक मेरे प्राण हैं तब तक मैं पूरे बल के साथ दुश्मन का मुकाबला करूंगा। आप एक बार स्वस्थ हो जाइए उसके बाद आप इस राज्य में वापस अपना कदम रखना। “
सेनापति के जोर देने पर महाराज दुष्यंत मान जाते हैं और अपने घोड़े को लेकर एक घने हरे-भरे जंगल की ओर निकल जाते हैं।
थोड़ी दूर चलने के बाद उन्हें तेज प्यास लगती है। प्यास बुझाने के लिए वे उसी जंगल में रुक जाते हैं। सामने पहाड़ों से बहता हुआ झरना देख वे अपने घोड़े को वही घास चरने के लिए छोड़ देते हैं और खुद उतरकर उस झरने की तरफ बढ़ते हैं।

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सबसे पहले वे झरने का शीतल जल पीते हैं जिसके बाद उन्हें हल्का विश्राम महसूस होता है। पानी को पी कर जैसे ही वे उठते हैं,, वे देखते हैं कि एक लंगड़ाता हुआ हिरण एक गुफा में घुसता है और बहुत ही कम समय में ठीक होगा और खेलता – कूदता हुआ गुफा से बाहर निकलता है।
यह सब देख राजा दंग रह जाते हैं। वे उसी क्षण उठते हैं और उस गुफा की तरफ बढ़ने लगते हैं। गुफा में प्रवेश करने के बाद राजा देखते हैं कि सामने एक वृद्ध महापुरुष आश्रम लगाए बैठे हुए हैं। ठीक उनके सामने शेर, हिरण, हाथी, लोमड़ी और खरगोश बैठे हुए।
यह देखकर राजा पूरी तरह से हैरान हो जाते हैं कि इतने हिंसक जानवर एक दूसरे के आसपास कितने प्यार से बैठे हुए हैं। वो कुछ कहने वाले होते हैं कि अचानक महापुरुष का ध्यान टूटता है। 
महापुरुष को यह बात पता नहीं होती है कि उनके सामने भीषणपुर राज्य के महाराज खड़े हैं। उन्हें एक साधारण पुरुष की तरह समझकर कहते हैं,” कौन हो तुम ? और तुम्हारे शरीर पर यह चोट के निशान कैसे हैं ? “
महाराज अपना सच छुपाते हुए कहते हैं,” मैं राजा दुष्यंत का एक करीबी सेवक हूं। “
यह सुनकर महापुरुष कहते हैं,” लेकिन श्रीमान ! मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि आप कोई आम इंसान नहीं है। क्योंकि आपके सीने पर राजचक्र प्रतीत हो रहा है मुझे। “
” सही कहा बाबा… मैं ही राजा दुष्यंत हूं। “
” कोई बात नहीं तुम सही जगह पर आ गए हो। मैं तुम्हें एक जड़ी बूटी देता हूं जिसे खाकर तुम पल भर में स्वस्थ हो जाओगे और तुम्हारे घाव भी भर जाएंगे। “
महापुरुष थोड़ी देर के लिए गुफा से बाहर जाते हैं और कटोरे में हल्दी – दूध और शहद लेकर आते हैं।
” लो महाराज ! इसे पी लीजिए। इसे पीते ही आपकी सारे बदन दर्द को आराम मिलेगा और आपके घाव भी पल भर में भर जाएंगे। “
राजा औषधियों को ग्रहण करते हैं और अपने घाव पर भी लगा लेते हैं। देखते ही देखते उनके घाव भर जाते हैं और सारी थकान भी खत्म हो जाती है। 

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यह देखकर राजा बहुत ही आश्चर्यचकित हो जाते हैं और खड़े होकर कहते हैं,” बाबा,, यह क्या था ? मेरा घाव तो इतनी जल्दी भर गया। मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने 
 पल भर में कोई जादू – सा कर दिया है ? “
” नहीं महाराज ! मैं भी आपकी तरह एक आम इंसान ही हूं। यह सब तो इन औषधियों का कमाल है। “
” हे बाबा ! आपने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। मांगिए… आप इसके बदले में क्या चाहते हैं ? आप कहे तो 100 गांव में आपको दान कर सकता हूं। “
” महाराज ! मैं 100 गांव लेकर क्या करूंगा ? वैसे भी मेरा समय बहुत ही कम है। मैं तो इस शांत वातावरण में खुल कर जीना चाहता हूं। 
ये हरे-भरे जंगल, पेड़ – पौधे, पशु – पक्षी… इन सब के बीच रहकर मुझे बहुत खुशी और शांति मिलती है। मैं आपसे केवल यही मांगना चाहता हूं कि जंगल में रहने वाले पशु – पक्षियों का शिकार न किया जाए। “
” जैसी आपकी इच्छा बाबा, आज से मैं अपने राज्य में जाकर ये ऐलान कर दूंगा कि जंगल के पशु पक्षियों को कोई भी नुकसान ना पहुंचाया जाए। “
महापुरुष को वचन देकर राजा अपने राज्य की ओर प्रस्थान करते हैं। लेकिन काफी समय हो जाता है तो बीच में वो एक छोटे से गांव में रुकने का विचार करते हैं। 
इस समय वह एक साधारण व्यक्ति का रूप रखते हैं और गांव में जाकर अपने ठहराव के लिए पूछते हैं। उनमें से एक व्यक्ति राजा के सामने आता है और अपने घर चलने के लिए कहता है।
घर चल कर वह राजा को खाने के लिए भोजन देता है। राजा भोजन खाते हुए कहते हैं,” वाह ! क्या स्वादिष्ट भोजन है। ऐसा भोजन तो मैंने कभी अपने जीवन में चखा ही नहीं। “
” सही कहा महाराज ! मेरी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बनाती है। उसके हाथों में तो मानो जादू सा ही है। “
इसके बाद राजा उस व्यक्ति का नाम पूछते हैं। वह कहता है,” मेरा नाम ऋषिराम है। “

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खाना खाकर राजा विश्राम करते हैं और ऋषिराम राजा के घोड़े को घास डालने के लिए निकल जाता है।
सुबह होते ही राजा अपने राज्य के लिए निकल जाते हैं। राज्य पहुंचकर वह सबसे पहले ऋषिराम को अपने राज्य में बुलाने के लिए अपने सेनापति को भेजते हैं।
ऋषिराम को अभी तक भी ज्ञात नहीं था कि कल जो व्यक्ति उनके यहां ठहरा था, वह भीषणपुर राज्य के महाराज हैं।
वह सेनापति के साथ जाता है। जैसे ही वह उस व्यक्ति को जो कल रात उनके घर पर रुका था, सिहांसन पर बैठा हुआ देखता है तो वह हैरान हो जाता है। 
हैरान होते हुए कहता है,” महाराज की जय हो। महाराज ! अगर मुझसे कोई भूल हुई तो क्षमा कीजिए। “
महाराज कहते हैं,” कल रात जो हमने मिठाई खाई थी, क्या वह आप यहां लेकर आए हो ? “
” नहीं महाराज ! मिठाई तो मैं लेकर नहीं आया हूं। “
” मिठाई नहीं लाए हो तो सजा तो मिलेगी। “
” सेनापति… हमारे परम मित्र ऋषिराम को 50 गांव भेंट में दिए जाएं। साथ ही हमारे राज्य में इन्हें एक अच्छा पद भी दिया जाए। “
” और ऋषिराम आपके लिए सजा यह है कि आपक माह के अंत में राज्यसभा के सभी लोगों को अपनी वह मिठाई जरूर खिलाएंगे। “
यह सुनकर ऋषि राम हंसते हुए कहता है,” जी महाराज,, जरूर। “
अब ऋषिराम 50 गांव का मालिक ही नहीं बल्कि महाराज दुष्यंत का परम मित्र भी बन चुका था।
इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।

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