लकड़ी का शौचालय | Lakdi Ka Sauchalay | Saas Bahu | Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ लकड़ी का शौचालय ” यह एक Saas Bahu Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Kahani, Saas Bahu Story या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लकड़ी का शौचालय | Lakdi Ka Sauchalay | Saas Bahu | Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

Lakdi Ka Sauchalay | Saas Bahu | Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

 लकड़ी का शौचालय 

ललिता और उमेश मुजफ्फरपुर के पास बसे गांव में एक छोटा सा चाय का खोखा चलाते थे। 
रोजाना की जो भी कमाई होती थी, उसी से ललिता और उमेश अपना और परिवार का गुजर बसर करते थे। परिवार में ललिता की ननद और दो बच्चे थे।
उमेश,” ये लो भैया जी, आपकी चाय। “
दूसरा आदमी,” उमेश भाई, ज़रा एक चाय और मट्ठी देना। “
उमेश,” ये लो, भैया जी। “
पहला आदमी,” अरे रे ! ये बारिश तो बहुत जोरों की शुरू हो गई। पिछले 3 दिन से नहीं रुक रही। “
दूसरा आदमी,” हम तो सोच रहे है कि कल सुबह ही यह गांव छोड़कर शहर चले जाये। भैया, कोई भरोसा नहीं है कि कब क्या मुसीबत आ जाए ? समझ रहे हैं ? “
गांव में सब लोग आपस में ऐसी ही बातें कर रहे थे। ललिता का मन इन सब बातों को सुनकर घबरा रहा था। उसे बाढ़ में होने वाली समस्याओं की बहुत फिक्र हो रही थी। 
इसी कारण ललिता को रात में नींद नहीं आ रही थी। आधी रात के वक्त अचानक गांव वालों ने शोर मचा दिया जिसे सुनकर ललिता घबरा गई। 
तभी पड़ोसी श्याम और उसकी पत्नी सामान सिर पर लादकर जा रहे थे। 
ललिता,” क्या हुआ श्याम भैया ? आप सभी सामान लेकर कहां जा रहे हो ? ये सब गांव वाले कहाँ जा रहे हैं ? “
श्याम,” ललिता भाभी, नदी में पानी का स्तर बढ़ गया है। चेतावनी मिली है कि हमें इस इलाके को जल्द से जल्द खाली करना होगा, हाँ। “
ललिता जल्दी से उमेश को उठाती है पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। नदी का पानी गांव में फैल चुका था। 
पूरा गांव बाढ़ की चपेट में आ चुका था। लोगों के घर उस बाढ़ में डूब रहे थे। कुछ ही देर में सब तबाह हो गया।
ललिता,” हे भगवान ! अब क्या होगा ? हम इस बाढ़ के पानी से कैसे बचेंगे ? बंटी पिंकी जल्दी उठो, हमें यहाँ से जाना होगा। “
माला (ललिता की ननद),” भाभी, ये सब क्या हो रहा है ? बाढ़ में हमारा पूरा घर डूब गया है। “
उमेश,” माला… ललिता, तुम दोनों जल्दी जल्दी सामान उठाओ, हमें यहाँ से दूसरी जगह जाना होगा। “
जिसके हाथ में जो सामान आया, उसने उठा लिया। पानी का स्तर लोगों के सीने तक पहुँच गया। चलते चलते उमेश ललिता दोनों बहुत थक गए। 
उनकी जान पर बनी हुई थी। उमेश ने बेटे को कंधे पर बैठा रखा था। बहुत दूर तक चलने के बाद भी उन सबको कहीं कोई शौचालय नहीं मिल रहा था।
पिंकी (ललिता की बेटी),” माँ, मुझे बहुत जोरों की लगी है। मुझे जाना है। “
ललिता,” सुनो… तुम वहाँ किनारे तक आओ। मैं सामने आढ से शौच करवा देती हूँ। “
ललिता पिंकी को शौच के लिए ले जाती है पर वहाँ सारे शौचालय टूटे हुए थे। 
पिंकी,” माँ, यहाँ पर तो सारे टॉयलेट टूटे हुए हैं, यहाँ नहीं बैठा जाएगा। “
सारे शौचालय टूट चूके थे। ललिता ने बाढ़ के पानी में बड़ी मुश्किल से पिंकी को शौच करवाया। वो तो बच्ची थी। 
वो तो इस बात को मान गयी पर बड़ी महिलाओं का क्या ? वो कहाँ पर शौच करें ? यही परेशानी का सबसे बड़ा कारण था। 
ललिता, उमेश और बच्चे बाढ़ में आई इस समस्या को झेलते रहे। 

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उमेश,” अरे ! गांव में परेशानियाँ बढ़ती ही जा रही हैं। आधी रात हो गई है। आज रात इसी टूटे छप्पर के ऊपर बैठकर गुज़ारा करना पड़ेगा। “
ललिता,” आसपास हर तरफ गंदा पानी भरा हुआ है। कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा है। देख देखकर मन छलनी हो रहा है। “
गंदे पानी से खेत और मैदान भरे पड़े थे जिन पर मच्छर और मक्खी मंडरा रहे थे। गंदे पानी में सांप, बिच्छू, कीड़े मकोड़े के काटने का लगातार डर बना रहता है। 
फिर भी बेचारे गांव वाले इन सब मुसीबतों के बीच सोने की कोशिश कर रहे थे। रात के वक्त बंटी को शौच जाना था। वो शोर मचाने लगा।
बंटी,” मां, मुझे जाना है। मुझे बहुत तेज लगी है। मेरी टॉयलेट यही निकल जाएगी। “
उमेश,” तुम बैठी रहो ललिता, मैं बंटी को यहीं पास में कोई साफ जगह देखकर करवा देता हूं। “
उमेश बंटी को शौच कराने ले जा रहा था। अंधेरे में उसे दिखाई नहीं दिया। बाढ़ के गंदे पानी के कारण जमीन बहुत कीचड़ और फिसलन से भरी हुई थी। 
अचानक उमेश का पैर फिसल जाता है और उसको बहुत चोट आती है।
ललिता,” हे भगवान ! बाढ़ में ये क्या अनर्थ हो गया ? कितनी चोट आ गयी ? “
उमेश,” क्या करूँ ललिता, अंधेरे में दिखाई नहीं दिया ? “
माला,” भाभी, अगर शौचालय खराब नहीं होते तो भैया को ये चोट न लगती। बाढ़ का पानी उतर भी जाता है तो उसके बाद भी शौचालय तो हमें मिलने से रहे। 
गांव के सारे शौचालय टूट चुके हैं। वो देखो… सड़कों पर, नदी किनारे, खेतों में जिसको जहाँ जगह मिल रही है वहाँ वो शौच के लिए जा रहा है। 
ऐसे तो बिमारी और संक्रमण बढ़ जाएगा। हमें कुछ तो करना ही होगा, भाभी। हम औरतों के लिए तो ये बहुत परेशानी का कारण है। “
ललिता,” तू चिंता मत कर माला, सुबह होने दे। हम इस समस्या से निकलने का कोई ना कोई उपाय सोच ही लेंगे। “
ललिता,” सामान में मैंने थोड़ी हल्दी रख ली थी, लाओ मैं तुम्हारी चोट पर हल्दी भरकर पट्टी बांध देती हूँ। “
बेचारे उमेश और ललिता अपने परिवार के साथ इस बाढ़ मैं बहुत दुख झेल रहे थे। पर ललिता हिम्मत नहीं हार रही थी। 
उसे शौचालय की समस्या के लिए कुछ ना कुछ उपाय तो सोचना ही था। अगले दिन ललिता सुबह उठी और बाढ़ में टूटे हुए पेड़ों की लकड़ियों को काटने लगी। 
गांव की औरत ,” ललिता, तुम क्या कर रही हो ? “
ललिता,” भाभी, तुम्हे तो पता ही है, बाढ़ में हमारे गांव के सारे शौचालय टूट चूके हैं ? बंटी के बापू के पैर में चोट लग गई। 
हम महिलाओं को भी खुले में शौच करने में कितनी दिक्कत आ रही है। मैं सोच रही थी खुद से ही क्यों ना एक लकड़ी का शौचालय तैयार करें ताकि वो हम गांव वालों के कुछ तो काम आ जाए ? “
औरत,” हाँ ललिता, ये बात हमारे दिमाग में क्यों नहीं आई ? मेरी बहू गर्भवती है, उसे तो बार बार शौच जाने की जरूरत होती है। 
वो इस बाढ़ से बहुत परेशान हो रही है। अगर ये लकड़ी का शौचालय बन जाये तो हमारे दिन कितने आराम से निकल जाएंगे ? “
दूसरी औरत,” ललिता, हम औरतों की और भी बहुत सी परेशानियां होती हैं जिस कारण हमें शौच की जरूरत होती है। 
गंदगी में शौच करने से हम औरतों को कोई बिमारी ना लगे, इससे बचने के लिए हम सब तुम्हारे साथ लकड़ी का शौचालय बनाने में मदद करेंगे। चलो बहनों, हम भी ललिता का साथ देते है। “
गांव की बाकी औरतें भी ललिता का साथ देने के लिए आ गई। सबने टूटे हुए पेड़ों की लकड़ियों को तोड़कर काटकर इकट्ठा किया।
धीरे धीरे सब के प्रयासों से लकड़ी की दीवारें खड़ी हो गई और कड़ी मेहनत और लगन से ललिता ने लकड़ी, कील और खपच्चियों की मदद से शौचालय का निर्माण कर दिया। लकड़ी का शौचालय बनने से गांव की औरतों को बहुत आराम मिल गया था।
सरपंच,” ललिता, तुम्हारे प्रयास को देखकर हमने सोचा है कि हम और भी लकड़ी का शौचालय निर्मित करवाएं जिसकी सारी जिम्मेदारी मैं तुम्हें और उमेश को देता हूँ। 
अगले कुछ ही दिनों में हम इस गांव में लकड़ी के और भी शौचालय बनवा दें। “

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धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाता है और गांव में अब लकड़ी के शौचालय बन चुके थे जिसकी पहल ललिता ने की थी। 
अगर ललिता जैसी हिम्मत हर व्यक्ति में आ जाये तो वो किसी भी परेशानी का सामना आसानी से कर सकता है। यह बात ललिता ने साबित कर दी थी।
आज की ये ख़ास और मज़ेदार कहानी आपको कैसी लगी ? नीचे Cooment में जरूर बताएं।

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