लालची ब्राह्मण | Lalachi Brahman | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची ब्राह्मण ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Hindi Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लालची ब्राह्मण | Lalachi Brahman | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Lalachi Brahman | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

 लालची ब्राह्मण 

एक नगर में दो भाई, राजू और दीपू नगर के एक गैराज में मैकेनिक का काम करते थे। दोनों बहुत मेहनती थे। 
एक दिन गराज में काम करते हुए…
राजू,” भाई, मैं सोच रहा था अगर हम ऐसे ही काम करते रहे तो एक दिन अपना एक गैराज खोल लेंगे और फिर जल्दी ही दूसरा और फिर तीसरा… और जल्दी ही हर शहर में अपना एक गैराज होगा। “
यह कहने के बाद दोनों राजू और दीपू अपना काम बंद करके मुस्कुराते हुए ऊपर की ओर देखते हुए अपने ख्यालों में खो जाते हैं। सपने में राजू और दीपू अपने नये गैराज के उद्घाटन की रिबन काट रहे हैं। 
तभी पीछे से उसकी पीठ पर कोई धक्का देता है और दोनों घबरा के सपने से बाहर आते हैं। 
राजू के बगल में उसी गैराज का मालिक ग्रे शर्ट, काले पेंट
सिमटे हुए बाल और आँखों पर चश्मा पहने खड़ा था।
मालिक,” तुम दोनों से एक काम सही से नहीं होता। कल एक गाड़ी तुम लोगो ने बना के दी थी। ग्राहक का फ़ोन आया था, उनकी गाड़ी से धुआं निकल रहा है और रास्ते में बंद हो गई है। 
यह एक महीने में तुम्हारी आठवीं शिकायत है। मैं तुम दोनों को अभी काम से निकलता हूँ, निकल जाओ मेरे गैराज से। “
दीपू,” मालिक, पर ये भी तो हो सकता है उसकी गाड़ी खराब हो ? हमने तो ठीक से ही काम किया था। “
मालिक,” खराब गाड़ियों को ठीक करना ही हमारा काम है। निकल जाओ यहाँ से…। “
और मालिक दोनों को धक्के मारकर बाहर निकाल देता है। राजू और दीपू अपने छोटे से कमरे के बिस्तर पर हैं। सामने की दीवार पर विष्णु भगवान की तस्वीर टंगी है। 
दीपू,” भाई, हम हर जगह मन लगा के काम करते हैं, फिर भी हमें हर जगह से निकाल दिया जाता है। किसी को हमारी कद्र ही नहीं। “
राजू,” हाँ भाई, यहाँ किसी को हमारी कद्र नहीं है। चल किसी दूसरी जगह जाते हैं। वहाँ शायद हमारी कीमत हो ? “
दीपू,” भाई, पर हम वहाँ करेंगे क्या ? “
राजू,” याद है, माँ कहती थी कि भगवान का नाम लेने से सब मिल जाता है ? “
दीपू,” हाँ…। “
राजू,” चल सामान बांध, अब हम यही करेंगे। भगवान का नाम लेंगे और पैसे कमाएंगे। “
दीपू,” वो कैसे ? “
राजू,” अरे ! हम बाबा बनके लोगों को ज्ञान देंगे और उनसे पैसे लेंगे। “
दीपू,” वो तो ठीक है, पर हम लोगों को क्या ज्ञान देंगे ? “
राजू,” अरे ! वही जो माँ हमें देती थी। तू ज्यादा सवाल मत कर। सामान बांध, हम राजा सूर्यदेव के चम्पक नगर जा रहे हैं। “
चंपक नगर में राजू और दीपू गेरुई धोती और गेरुई शॉल में, कंधे तक बाल, गले में रुद्राक्ष की माला, पैरों में खड़ाऊं, कंधे पर लटकी मटमैली गठरी, कलाईयों में बंधी रुद्राक्ष की माला, एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरे के सामने पहुंच जाते हैं। 
राजू,” यह राजा सूर्यदेव का चम्पक नगर है। हम यहीं से शुरू करेंगे। दीपु, सुन… आज से तेरा नाम दीपू नहीं दीपेश्वर है। समझा..? और मैं एक सिद्ध योगी हूं। 
मैं यहाँ बैठा हूँ और ध्यान करता हूँ। तू नगर में जाकर ये खबर फैला कि एक सिद्ध योगी आए हैं जो हर समस्या का हल देते हैं। “
दीपू,” ठीक है, अब मैं जाता हूँ। “

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नगर में पहुंचकर…
दीपू,” भाई, हमारे सिद्ध बाबा जी के लिए कुछ दान दो। “
आदमी,” ये कौन से बाबा है और कहां है ? “
दीपू,” बड़े सिद्ध बाबा है। उनके पास हर समस्या का हल है। नगर के बाहर जो बड़ा बरगद का पेड़ है ना, वहाँ ठहरे हुए हैं। 
अगर तुम्हें कोई समस्या हो तो उनसे जाके मिल लो। वो तुम्हे हल जरूर बताएंगे। पर हाँ… दान के लिए कुछ लेकर जरूर आना। “
आदमी,” हाँ, मैं… मैं जरूर आऊंगा। “
दीपू,” औरों को भी बता दो, पूरे नगर का भला हो जायेगा। “
आदमी,” जरूर बाबा जी, ज़रुर। “
राजू पेड़ के नीचे ध्यान में बैठा हुआ है और दीपू थैले में सामान लेके उसके पास जाता है।
दीपू,” मैंने नगर में खबर फैला दी है। जल्दी ही लोग यहाँ आते होंगे। तुम तैयार रहो। “
राजू,” मैं तो कब से तैयार हूँ ? देखते हैं क्या होता है ? “
राजू फिर से ध्यान में बैठ जाता है। तभी नगर के लोग वहाँ आने लगते हैं और हाथ जोड़कर नीचे बैठ जाते हैं।
दुकानदार,” बाबा हमारा काम नहीं चल रहा। कृपा करें। “
दीपू,” आप जो भी दान के लिए लाये हैं, बाबा के चरणों में रखें और बाबा से गुरु मंत्र लें। “
दुकानदार राजू के पास पैसे रखता है और हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है। राजू इशारे से दुकानदार को अपने पास बुलाता है।
राजू (दुकानदार के कान में),” श्री राम… हर बिक्री के समय मन में यह नाम का जाप करो, बिक्री बढ़ जाएगी। याद रहे अपना ये मंत्र किसी को नहीं बताना, अपनी पत्नी को भी नहीं। “
दुकानदार,” जैसी आपकी आज्ञा बाबा जी। “
राजा सूर्यदेव के महल में…
मंत्री,” महाराज, आप राजकुमारी के लिए एक योग्य वर तलाश रहे थे। हमारे गांव में एक सिद्ध योगी आये हैं, जो तेजवान हैं और राजकुमारी के लिए एकदम श्रेष्ठ है। “
राजा,” गुरुदेव, मुझे आपके चयन पर पूरा विश्वास है। अगर आपने चुना है तो वो राजकुमारी के लिए अवश्य ही उत्तम होगा।
सोने, जवाहरात और अनेक उपहार लाओ। हम अभी उन महान योगी के पास जाएंगे और उनसे राजकुमारी से विवाह करने का आग्रह करेंगे। “
राजू के पास पहुंचकर…
राजा,” हे तपस्वी ! मैंने आपके बारे में जो सुना था, आप उतने ही तेजस्वी है। मेरा आग्रह स्वीकार करें। “
राजू ध्यान से आंख खोलकर राजा को देखता है।
राजू,” जी महाराज, कहिये क्या परेशानी है आपको ? “
राजा,” मेरी इच्छा है कि आप मेरी पुत्री से विवाह करें और ये उपहार स्वीकार करे। “
राजू काफी देर तक उपहार में लाए सोने, चांदी और अनेक वस्त्र और उपहारों को देखता रहता है। फिर राजा की ओर मुड़ता है।
 
राजू,” महाराज, मैं तो एक सन्यासी हूं। मुझे इन सब से क्या लेना ? मुझे क्षमा करें, मैं आपकी बात नहीं मान सकता। “
दीपू चौंकते हुए राजू को देखता है।
राजा,” मैंने जो सुना था, आप उससे भी महान है। मुझे
क्षमा करें, यदि मैंने आपका अनादर किया हो। आप जब तक यहाँ हैं, मैं कोशिश करूँगा कि आपको कोई दिक्कत ना हो। “
इसके बाद राजा सूर्यदेव तपस्वी को प्रणाम करके वापस चले जाते हैं।
दीपू,” अरे राजू ! ये क्या कर दिया तुमने ? इतना अच्छा मौका हाथ से जाने दिया। अरे ! राज करते हम लोग, राज़। तुम्हें ये क्या हो गया है ? “
राजू,” मैं यही सोच रहा था, लेकिन फिर मैंने सोचा की इतने दिनों से ईश्वर का नाम लेते लेते इतना तो समझ आ गया है कि ईश्वर के नाम अमृत में ऐसा क्या है जो मीरा सारा राजसी ठाठ छोड़कर बैरागन बन गयी ? 
क्यों प्रहलाद ने अपने पिता की इतनी यातनाएं सही ? मुझे भी राम नाम का धन मिल गया है जिसके आगे इस दुनिया का सारा धन फीका है। “

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दीपू,” मुझे ये सब नहीं पता। हम यहाँ पैसे कमाने आये थे नाकि साधु बनने। मैं चला। मैं अकेले ही सब संभाल लूँगा। “
राजू,” तुम्हे जो ठीक लगे, करो। पर अगर किसी मुसीबत में फंस जाओ, पूरी श्रद्धा से ईश्वर का नाम लेना, तुम्हारी मुसीबत दूर हो जाएगी। “
दीपू,” तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ? इतनी आसानी से मुसीबत दूर होती तो सभी खुश होते। “
राजू बस उसे देखकर मुस्कुराता है और ध्यान में बैठ जाता है। दीपू अपनी पोटली उठाकर गांव में चल देता है।
दीपू,” क्यों भाई… कैसा चल रहा है ? “
दुकानदार,” हाँ भाई, सब बढ़िया है और अब घर में सुख शांति भी है। “
दीपू (मन में),” ये भी बेवकूफ बन गया। राजू है तो चालक… उसने ऐसी युक्ति की कि कोई उस पर सवाल नहीं उठा सकता। “
दीपू,” कुछ राशन दान करो। “
दुकानदार,” जरूर। “
दुकानदार राजू के थैले में चावल डालने जाता है।
दीपु,” ये क्या दे रहे हो ? इतनी मिठाईयां और मेवे हैं तुम्हारी दुकान में और तुम ये कच्चे चावल दे रहे हो। इनमें से कुछ दो। “
दुकानदार,” पर बाबा तो ये सब नहीं कहते। “
दीपू,” तुम्हें क्या करना है ? जितना कह रहा हूँ वो करो। “
दीपु आगे जाता है और जौहरी की दुकान पर जाकर रुकता है। 
दीपू,” और भाई जौहरी, कैसी चल रही है दुकानदारी ? “
जौहरी,” बाबा की कृपा से सब बढ़िया चल रहा है। कहिए क्या सेवा करूँ ? “
दीपू,” बाबा के लिए कुछ दान दो। “
दीपू (मन में),” इससे पहले कि इन्हें मेरी असलियत पता चले, इनसे तगड़ा दान लेकर गांव से गायब हो जाऊंगा। फिर ये लोग राजू के पीछे पड़ेंगे तो उसे समझ आएगा। “
दीपू (फिर से),” बाबा के लिए कुछ दान दो। “
जौहरी पैसे निकालकर देने लगता है।
दीपू,” अरे ! ये क्या भीख दे रहे हो ? बाबा की कृपा से तुम्हारी दुकान चल रही है। इतने सारे जवाहरात हैं, इनमें से दो कुछ कीमती सा। जितना दोगे, उससे ज्यादा मिलेगा। “
जौहरी (मन में),” ये बाबा को क्या हो गया है ? कोई नहीं… बाबा को देने से मेरा क्या घट जाएगा ? “
जौहरी एक सोने का हार दीपू को दे देता है।
जौहरी,” ये लीजिये, बाबा। “
दीपू,” अच्छा धन बटोर लिया है मैंने। इससे काफी दिनों तक काम चल जायेगा। बड़ी भूख लग गयी है, कुछ मिठाइयां खा लूं। “
दीपू एक पेड़ के नीचे बैठकर मिठाइयां खाने लगता है। तभी वहाँ चार डाकू चेहरे पर नकाब, काले कपड़े और हाथ में छुरी लेकर आ जाते हैं। 
डाकू (सरदार),” जो कुछ भी है वो हमें दे दो, नहीं तो हम तुम्हें मार डालेंगे। “
दीपू डर से अपनी पोटली उन्हें दे देता है। तभी डाकुओं के सरदार का नकाब खुल जाता है। दीपू उसे देख लेता है। 
डाकू,” अब तुझे मरना होगा; क्योंकि तूने मेरा चेहरा देख लिया है। “
दीपू,” हे भगवान ! ये क्या हो रहा है ? कैसे बचूं इन से ? भागने की कोशिश की तो ये लोग पकड़ लेंगे। अब क्या करूँ ? “
तभी उसे राजू की बात याद आती है – ” अगर किसी मुसीबत में फंस जाओ, पूरी श्रद्धा से ईश्वर का नाम लेना, तुम्हारी मुसीबत दूर हो जाएगी। ” 
आंखें बंद कर घुटने पर बैठकर…
दीपू,” नारायण ! मेरी रक्षा करो, नारायण मेरी रक्षा करो। “
डाकू का सरदार,” सुन… राजा के सिपाही हमारी और आ रहे हैं, इसलिए तुझे छोड़ रहे हैं। अगर तूने किसी को हमारे बारे में बताने की कोशिश की तो तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। ये ले अपनी पोटली। “
इसके बाद डाकू भाग जाते हैं। 

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दीपू (मन में),” हे नारायण ! मुझसे भूल हुई, जो मैं राजू की बात को समझ नहीं पाया। मैं राजू के पास वापस जा रहा हूँ और उसके साथ रहकर आपके ध्यान में अपना जीवन बिताऊंगा। “
दीपू (राजू से),” मुझे माफ़ कर दो राजू, मैं ईश्वर के नाम की महिमा को नहीं समझ पाया। पर अब मैं समझ गया हूँ और तुम्हारे साथ ईश्वर के नाम का धन कमाना चाहता हूँ। “
यह सुनकर राजू दीपू को गले से लगाता है।

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