लालची मिठाईवाला | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची मिठाईवाला ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Achhi Achhi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लालची मिठाईवाला | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Lalachi Mithaiwala | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

 लालची मिठाईवाला 

रामपुर गांव में प्रेमचंद नाम का एक हलवाई रहता था। प्रेमचंद की मिठाइयां गांव भर में प्रसिद्ध थी। वह जितनी भी मिठाइयां दिन भर में बनाता वह सब शाम तक बिक जाती। गांव के अलावा आस पास के गांव के लोग भी प्रेमचंद की मिठाइयों के दीवाने थे।
ग्राहक,” अरे प्रेमचंद भैया ! 2 किलो मिठाई पैक कर दो। वो क्या है ना… मेरा भाई शहर से आया हुआ है। इसीलिए वह जब भी यहां आता है तो तुम्हारी दुकान से मिठाई लिए बगैर नहीं जाता है। “
प्रेमचंद,” हां हां, मैं अभी पैक किए देता हूं। “
प्रेमचंद के हाथों से बनी हुई मिठाई सभी लोगों को बहुत पसंद थी। प्रेमचंद बहुत ही सफाई और ईमानदारी से मिठाई तैयार करता था।
प्रेमचंद का बेटा रहीम भी उसी दुकान पर रहता था और अपने पिता की मदद करता था।
एक दिन प्रेमचंद की दुकान पर पास ही एक शहर से मनोज नाम का व्यक्ति आता है।
मनोज,” अरे वाह भैया ! तुम्हारी दुकान की मिठाई का तो कोई जवाब ही नहीं। शहर में मेरी भी मिठाई की दुकान है परंतु तुम्हारी दुकान की मिठाई तो लाजवाब है। “
प्रेमचंद,” शुक्रिया साहब “
मनोज,” मेरी भी मिठाई की दुकान है परंतु तुम इतना गजब का स्वाद कैसे लाते हो ? “
प्रेमचंद,” साहब मैं सभी मिठाइयां शुद्ध देसी घी में बनाता हूं और देसी घी भी मैं घर पर ही बनाता हूं। मेरे पास मेरी अपनी गाय है। उसी का दूध निकालकर शुद्ध देसी घी और खोया बनाता हूं और उसी से सारी मिठाइयां तैयार करता हूं। “
मनोज,” अच्छा तो क्या अगर मैं तुमसे रोजाना 20 किलो मिठाई खरीदना चाहूं तो क्या तुम बना सकते हो ? “
प्रेमचंद,” मेरे पास तो जितना देसी घी और खोया होता है मैं उसी से सारी मिठाइयां तैयार करता हूं और वह सारी मिठाइयां तो मेरे अपने गांव में ही शाम तक बिक जाती है। इससे ज्यादा मिठाईयां तैयार करना मेरे बस की बात नहीं है साहब। “
प्रेमचंद का बेटा रहीम भी उन दोनों की बातें सुन रहा था। वह थोड़ा लालची किस्म का लड़का था। मनोज के जाने के बाद रहीम अपने पिता से बोला।
रहीम,” पिताजी, वह व्यक्ति हमसे रोजाना 20 किलो मिठाई लेना चाहता है तो आपने उसे मना क्यों कर दिया ? सोचिए… 20 किलो मिठाई अलग से बेचने पर हमें कितना मुनाफा होगा ? “
प्रेमचंद,” बेटा तुम तो जानते हो, मैं शुरू से ही अपने हाथों से और शुद्ध देसी घी से मिठाइयां बनाता हूं। जितना देसी घी मेरे पास होगा मैं उतना ही मिठाइयां तैयार कर पाऊंगा ना। “
रहीम,” परंतु पिताजी हम बाजार से भी तो देसी घी और खोया खरीद सकते हैं और उससे ज्यादा मिठाइयां तैयार कर सकते हैं। इससे हमारी मेहनत भी बचेगी और ज्यादा मुनाफा भी होगा। “
प्रेमचंद एक सीधा साधा और ईमानदार व्यक्ति था उसने कभी भी मिलावट वाली मिठाइयां बनाने के बारे में नहीं सोचा।
प्रेमचंद,” बेटा हमारे हाथों से बनी हुई मिठाइयां गांव भर में मशहूर है; क्योंकि हम उन्हें शुद्ध देसी घी से बनाते हैं। मुझे बाजार वाले घी और खोये पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं। पाता नहीं इसमें कितनी मिलावट हो ? “
रहीम,” परंतु पिताजी जितना समय आप देसी घी और खोया बनाने में लगाते हैं अगर उतना ही समय और ज्यादा मिठाईयां बनाने में लगाओगे तो ज्यादा मुनाफा कमाएंगे। कल से मैं बाजार जाकर देसी घी और खोया ले आऊंगा। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। “

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रहीम धीरे-धीरे प्रेमचंद को अपनी बातों में उलझा लेता है और बाजार से मंगाए देसी घी और खोये से मिठाईयां बनाने के लिए तैयार हो जाता है।
रहीम,” पिताजी आज मैं बाजार से देसी घी और खोया ले आया हूं। आज आप दुगनी मिठाइयां बनाने की तैयारी करें और मनोज को भी 20 किलो मिठाई देने का प्रबंध करें। “
प्रेमचंद भी रहीम की बातों में आकर वैसा ही करता गया। उसने बाजार से लाए हुए देसी घी को अपने घी में मिलाकर दुगनी मिठाइयां तैयार कर दीं। मनोज मिठाइयां लेने के लिए प्रेमचंद की दुकान पर आया।
मनोज,” हां भाई… क्या मेरा ऑर्डर तैयार हो गया ? मैं गाड़ी लेकर आया हूं। उसमें मेरी मिठाइयां रखवा दो। “
रहीम ने जल्दी से मिठाई के डिब्बे मनोज की गाड़ी में रखवा दिये। 
रहीम,” मनोज भैया, अगर आपको रोजाना 20 किलो मिठाई चाहिए हो तो हम बना दिया करेंगे। “
मनोज,” अरे वाह ! यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं रोजाना सुबह आकर यहां से मिठाइयों का आर्डर ले जाया करूंगा। “
इस तरह प्रेमचंद और रहीम रोजाना ज्यादा मिठाईयां बनाने लगे और ज्यादा मुनाफा कमाने लगे। 
रहीम,” पिताजी… देखा हमारी मिठाइयां कितनी सदा मशहूर हो चुकी है ? गांव के साथ शहर से भी आर्डर आने लगे हैं और हमारा मुनाफा भी कितना हो गया है ? 
मगर आप तो ऐसे ही चिंता कर रहे थे। देखा, स्वाद में कोई फर्क नहीं आया। सभी लोगों को आज भी हमारे हाथ की बनाई मिठाइयां उतनी ही पसंद है ? “
प्रेमचंद,” हां, तुम सही कह रहे हो बेटा। मैं बेकार में ही इतनी मेहनत करता रहता हूं घी बनाने में, मिठाई बनाने में। तब मुझे कितनी मेहनत लगती ? अब बाजार से घी और खोया लेकर हम आसानी से मिठाइयां बना रहे हैं और ज्यादा मुनाफा भी कमा रहे हैं। “
प्रेमचंद का काम बहुत ही अच्छा चल रहा। गांव में भी उसकी मिठाइयों बहुत बिकती थीं और शहर से भी आर्डर आते थे। देखते ही देखते प्रेमचंद पैसे वाला बन गया 
और उसने कुछ और लोगों को भी अपनी दुकान पर रख लिया। उसके द्वारा बनाई हुई मिठाइयों की मांग दिन-व-दिन बढ़ने लगी। 
मिठाइयों की बढ़ती हुई मांग को देखकर रहीम प्रेमचंद से कहता है,” पिताजी, हमारी दुकान पर मिठाइयों की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है। लगता है शहर के आर्डर पूरा करने के लिए हमें बाजार से और खोया खरीदना पड़ेगा। “
प्रेमचंद,” ठीक है बेटा, बाजार से बना बनाया हुआ खोया ले आओ और जितनी भी मांग मिठाई की है उसे पूरा करो। “
कुछ दिनों बाद उसकी दुकान के पड़ोस में राघव नाम के हलवाई ने एक मिठाई की दुकान खोल दी। राघव अपनी दुकान पर आने वाले ग्राहकों को शुरू शुरू में डिस्काउंट भी देने लगा।
राघव,” देखो भैया, जो भी हमारी दुकान से मिठाई खरीदेगा, हम उसे डिस्काउंट देंगे। जो जितनी ज्यादा मिठाइयों खरीदेगा उसे उतना ही ज्यादा डिस्काउंट मिलेगा। “
इस तरह राघव ने भी गांव भर में मिठाई की चर्चा करवादी और उसकी दुकान खूब चलने लगी। राघव एक चालाक आदमी था। उसने सोचा – यदि मैं प्रेमचंद की दुकान बंद करवा दूं तो मुझे बहुत ज्यादा मुनाफा होगा।

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राघव ने एक आदमी को अपने पास बुलाया और कहा,” सुनो भैया, सुनो मैं तुम्हें एक कनस्तर मिलावटी घी दूंगा ठीक है। जो तुम्हें सस्ते दामों पर प्रेमचंद को बेचकर आना है। इस काम के लिए मैं तुम्हें अलग से पैसे भी दूंगा। क्या समझे..?? “
मिलावटी घी से भरा कनस्तर आदमी प्रेमचंद की दुकान पर लेकर जाता है और उसे अपनी बातों में उलझा कर कनस्तर बेच आता है। उस नकली घी से बनी हुई मिठाइयां खाकर काफी गांव वाले बीमार पड़ जाता है और प्रेमचंद की दुकान बंद हो जाती है। 
राघव,” राघव से कंपटीशन करोगे, अब आई अक्ल ठिकाने बाप – बेटे की। हा हा हा। “
रहीम को एक दिन वही आदमी मिलता है जिसने उसे घी बेचा था। 
रहीम,” तुम वही आदमी होना जिसने मुझे नकली घी बेचा था। तुम्हारे उस नकली घी से बनी हुई मिठाइयों की वजह से मेरी दुकान बंद हो गई। सच बताओ वह मिलावटी घी तुम कहां से लेकर आए थे। सच बताओ वरना मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा। “
आदमी,” अरे ! नहीं भैया, मुझे पुलिस के पास नहीं जाना। वह तो मुझे राघव मिठाई वाले ने लाकर दिया था और मुझे इस काम के पैसे भी दिए थे। “
रहीम को सारा माजरा समझ में आ जाता है और वो उसेे सबक सिखाने की सोचता है। एक दिन रहीम भेष बदलकर राघव की दुकान पर जाता है और उससे कहता है। 
रहीम,” अरे भैया ! लगता है तुम्हारी दुकान बहुत अच्छी चलती है। सारा दिन तुम्हारी दुकान पर भीड़ लगी रहती है। “
राघव,” अरे ! सब कुछ भगवान की कृपा है। दुकान बहुत अच्छी चलती है भैया। “
रहीम,” तुम चाहो तो यह मुनाफा और बढ़ सकता है। मेरा घी का व्यापार है। आस पास के लोग शुद्ध देशी घी मुझसे ही लेते हैं। मेरा माल बहुत ही अच्छा होता है और दाम भी काफी कम है। अगर तुम कहो तो तुम्हारी दुकान पर भी मैं घी पहुंचा सकता हूं। “
राघव कुछ देर सोचता है और लालच में आकर रहीम की बात मान लेता है।
रहीम नकली घी के कनस्तर के साथ राघव की दुकान पर पहुंचता है। 
रहीम,” लो भैया तुम्हारा आर्डर आ गया है। “
राघव,” हां भाई, तुम तो बहुत जल्दी मेरा सामान ले आए। हां रुको रुको, मैं तुम्हें पैसे देता हूं ठीक है। “
रहीम जैसे ही राघव के हाथ से पैसे पकड़ता है तभी फूड इंस्पेक्टर राघव की दुकान पर आ जाता है और उसे नकली घी के साथ पकड़ लेता है। राघव को जेल हो जाती है और उसकी दुकान बंद हो जाती है। 

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रहीम,” पिताजी मुझे माफ कर दीजिए; क्योंकि मैं पहले गलत राह पर चल रहा था लेकिन अब मुझे समझ आ गया है कि थोड़ा कमाओ लेकिन इज्जत के साथ कमाओ। 
आज के बाद हम दोनों पहले की तरह ही अपनी शुद्ध मिठाइयां ही बनाया करेंगे। इसके बाद वे दोनों अपनी दुकान पर साफ सुथरा और शुद्ध सामान ही रखते थे और उनकी दुकान दोबारा से चलने लगती है।
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