लालची सेठ और मंत्री | Lalchi Seth Aur Mantri | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची सेठ और मंत्री ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Stories या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लालची सेठ और मंत्री | Lalchi Seth Aur Mantri | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Lalchi Seth Aur Mantri | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

 लालची सेठ और मंत्री 

रायगढ़ में सोमू अपनी पत्नी मालती के साथ रहता है।‌ सोमू और मालती दोनों खेतों में काम करते हैं। लेकिन धनीराम ध्यानचंद के साथ सभी का शोषण करता है।
दोपहर के वक्त सभी लोग अपने अपने खेतों में काम कर रहे थे। तभी अपने नौकर ध्यानचंद के साथ जमींदार धनीराम आया। 
धनीराम,” अरे वाह ! सभी लोग अपना काम अच्छे से कर रहे हैं। अरे ओ सोमू ! इस बार मेरा कर्जा देना मत भूलना वरना अच्छा नहीं होगा। मैं पिछली बार की तरह माफ नहीं करूंगा। “
सोमू,” मालिक साहब, मैं समय से पहले आपके पैसे पहुंचा दूंगा। “
धनीराम,” बाकी लोग भी ध्यान से सुनो… मेरे पैसे समय से पहुंच जाना चाहिए। समझे..? “
धनीराम,” चलो ध्यानचंद। “
ध्यानचंद,” मालिक, सभी को यह बता दीजिए कि आप कौन हैं ? “
धनीराम,” तुम पागल हो ? सब लोग धनीराम को भली-भांति जानते हैं। “
ध्यानचंद,” नहीं मालिक, मैं पागल कैसे हो सकता हूं ? और अगर पागल हूं तो आपके साथ कैसे रह सकता हूं ? 
मालिक, आप किसी पागल को अपने साथ थोड़े ही ना रखोगे। “
धनीराम,” ध्यानचंद, अपना मुंह बंद करो और मेरे साथ चुपचाप चलो। “
ध्यानचंद,” ठीक है मालिक लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई। “
धनीराम,” बोलो कम अक्ल इंसान, क्या समझ नहीं आया ? “
ध्यानचंद,” मालिक, ये लोग आपसे पैसे लिए भी नहीं है फिर भी आपका कर्जा इनके ऊपर कैसे हो गया ? “
धनीराम,” अक्ल के दुश्मन, इन सभी को कभी ना कभी उधार की जरूरत पड़ी थी तब मैंने उधार दिया। पर तब से लेकर अब तक ब्याज चल रहा है और साथ में मेरा हुक्म भी। 
यह नगर हमारा है। मैं यहां का जमींदार हूं। अगर ये यहां रहेंगे तो यह मुझे ब्याज के पैसे देंगे वरना इनको सब कुछ छोड़ कर जाना होगा। सभी पर राज करने के लिए दिमाग की जरूरत होती है, दिमाग की। “
ध्यानचंद,” मान गए मालिक आपको। गरीबों का खून चूसना तो कोई आपसे सीखे। “
धनीराम,” क्या कहा तुमने..? “
ध्यानचंद,” कुछ नहीं मालिक, कुछ नहीं। “
धनीराम,” अपनी अकल का ही इस्तेमाल कर आज मैं मालिक बना हूं। समझे कम अक्ल इंसान..? “
ध्यानचंद,” समझ गया मालिक, बिल्कुल समझ गया। “
तभी धनीराम और ध्यानचंद ने खेत में काम कर रहे नीलू को देखा। नीलू अकेले काम कर रहा था। धनीराम ने नीलू से कहा।

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धनीराम,” नीलू… लाओ भाई अब मुझे इस बार के ब्याज के पैसे दे दो। “
नीलू,” मालिक, अभी मेरे पास पैसे नहीं है। “
धनीराम,” मुझे अभी पैसे चाहिए। “
नीलू,” मेरे पास अभी सच में पैसे नहीं है मालिक। मैं सच बोल रहा हूं। थोड़ा वक्त और दे दीजिए मालिक। “
धनीराम,” ठीक है, पैसे ना सही अपने दोनों बैल मुझे दे दो। “
नीलू,” मेरे बीवी बच्चे भूखे बैठे हैं मालिक। अगर मेरे बैल भी आप ले गए तो मुझे और मेरे बच्चों को दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होगा। रहम करो मालिक। “
धनीराम,” हा हा हा… मैं तुम पर कोई रहम नहीं करूंगा। ध्यानचंद, इसके दोनों बैल घर ले चलो। जो भी ब्याज के पैसे नहीं देगा, हम उसके साथ ऐसा ही करेंगे। “
गरीब आदमी, नीलू के दोनों बैल लेकर धनीराम और ध्यानचंद दोनों घर चले गए। तभी उन्होंने देखा कि मंत्री उनके घर पर बैठा है।
धनीराम,” आइए, आइए मंत्री जी… यह हमारा सौभाग्य है कि आप हम गरीब लोगों की झोपड़ी में पधारे। “
मंत्री,” धनीराम जी, आप तो भोले भाले गांव वालों को खूब लूट रहे हो इतने के बाद भी आप गरीब कैसे हो सकते हो ? “
धनीराम,” आप भी कुछ कम नहीं हो। “
मंत्री,” हा हा हा… तभी तो हमारी यह दोस्ती है। “
दोनों बैठ कर बातें करने लगे। अगले दिन शाम के वक्त सोनू और मालती दोनों खेत में काम कर रहे थे।
मालती,” कुछ देर में दिन छुप जाएगा। मुझे लगता है कि अब हमें घर चलना चाहिए। “
सोनू,” अभी हम खेत का सारा काम भी नहीं कर पाए हैं। “
मालती,” हां, सुबह आकर कर लेंगे; क्योंकि अभी बहुत देर हो जाएगी। “
सोमू,” खेत में पानी की बहुत जरूरत है। तुम घर चलो मैं आता हूं। “
तभी वहां धनीराम ध्यानचंद के साथ फिर से आ गया। 
धनीराम,” सोमू…। “
सोमू,” जी मालिक।”
धनीराम,” घर जा रहे हो ? अभी यहां रहकर काम शुरू करो। “
सोमू,” नहीं नहीं, मैं काम कर रहा हूं। मैं घर नहीं जा रहा हूं। “
ध्यानचंद हाथ में फावड़ा उठाकर खेत में से मिट्टी हटाने लग गया। धनीराम भी खेत में घूम रहा था लेकिन तभी खेत में फावड़े से कुछ टकराने की आवाज आने लगी।
सोमू,” यह कैसी आवाज है ? “
धनीराम,” ये आवाज कैसी है ? जरूर यहां कुछ ना कुछ है। “
सोमू,” मालिक, यह एक मटका है। “
धनीराम,” क्या सच में यहां मटका है ? “
सोमू,” जी मालिक, अभी निकालता हूं। “
सोमू ने मटका बाहर निकाला। धनीराम ने मटका लिया और खुशी से नाचने लगा। 
धनीराम,” वाह ! बहुत अच्छा… बहुत अच्छा, एक और मटका। अब मैं अमीर हो गया। मेरे पास बहुत सारा धन दौलत हो गया। “
सोमू,” यह मटका मुझे मिला है मालिक तो यह मेरा हुआ ना। “
धनीराम,” इस नगर में हर एक किसान के खेत पर धनीराम का हक है। समझे..? यह मटका मेरा है। “
सोमू,” मेरे खेत में मिला है तो आप ऐसे इसे नहीं ले सकते। “
धनीराम,” यह नगर मेरा है और मंत्री जी मेरे मित्र हैं। इसलिए अपना मुंह बंद रखो नहीं तो मैं मंत्री जी को यह मटका दे दूंगा और तुम्हें कारागार में बंद करवा दूंगा। “
सोमू,” मालिक, यह मटका मुझे दे दो। मैं गरीब आदमी हूं। मेरे परिवार का भला हो जाएगा। “
धनीराम,” नहीं, मैं तुम्हें ये मटका नहीं दूंगा। “
यह सुनकर सोमू और मालती दोनों उदास होकर अपने घर चले जाते हैं। रात के वक्त अपनी झोपड़ी में मालती उदास बैठी थी।

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सोमू,” अब तुम्हें क्या हुआ ? तुम इतनी उदास क्यों हो ? “
मालती,” हमें किस्मत से धन मिला था और वह भी हाथ से जाने दिया। “
सोमू,” मैं कर भी क्या सकता था ? वो बहुत ताकतवर लोग हैं। राजा साहब से हमें झूठा फंसवा देंगे। “
मालती,” हां लेकिन उस बुरे इंसान के पास धन क्यों रहे ? मुझे लगता है कि हमें राजा साहब की मदद लेनी चाहिए। उन्हें सब सच सच बताने की हिम्मत करनी होगी। “
सोमू,” मैं भी यही चाहता हूं पर हम यह सब कैसे कर सकते हैं ? “
मालती,” हम कल राजदरबार में चलेंगे। हमारे राजा बहुत दयालु और ईमानदार हैं। मुझे राजा साहब पर पूरा विश्वास है कि वह इस पापी से हमको बचा लेंगे। “
सोनू,” तुम कहती हो तो ठीक वरना जमींदार के खिलाफ बोलने की कोई हिम्मत नहीं करता है। “
मालती,” अब तुम सो जाओ औ सुबह राजा साहब के पास चलेंगे। सब ठीक हो जाएगा। “
अगले दिन…
राजा विक्रम सिंह का दरबार लगा हुआ था। वहां सभी उपस्थित हुए। मंत्री ने सभी से कहा। 
मंत्री,” कहिए, कौन क्या-क्या समस्या लेकर आया है ? “
मालती,” हम भी एक समस्या लेकर आए हैं। गांव का जमींदार, धनीराम ने हमें बहुत परेशान किया हुआ है। “
मंत्री,” अच्छा वो धनीराम, अरे ! तुम पागल तो नहीं हो ? धनीराम जैसे सज्जन व्यक्ति पर तुम आरोप लगा रहे हो। “
राजा,” मंत्री, क्या तुम धनीराम को जानते हो ? “
मंत्री,” हां राजा साहब, वह बहुत ही भले इंसान हैं, सबकी मदद करते हैं। लेकिन न जाने यह लोग धनीराम पर झूठे आरोप क्यों लगा रहे हैं ? “
राजा,” मंत्री, तुमने अभी आरोप सुना भी नहीं और पीड़ित को पहले ही चुप करा दिया। राजा विक्रम सिंह के दरबार में सबको न्याय का अधिकार है। “
मंत्री,” माफी चाहता हूं राजा साहब लेकिन…। “
राजा,” बोलो… क्या कहना है तुम्हें ? “
 सोमू,” राजा साहब, मैं और मेरी पत्नी खेत में काम करते हैं। लेकिन धनीराम आकर आधी फसल ले जाता है। 
हद तो तब हो गई जब मुझे सोने से भरा मटका खेत में मिला और उसे भी धनीराम ले गया। “
इतना सुनकर मंत्री के होश उड़ गए। राजा ने मंत्री की तरफ देखा।
राजा,” मंत्री, शायद चोर मिल गया है। धनीराम को तुरंत पेश करवाओ। “
मंत्री,” राजा साहब, यह गरीब लोग हैं। कुछ भी बोलते हैं। आप इनकी बातों में मत आइए। ये झूठ बोल रहे हैं और अपने फायदे के लिए कुछ भी बोल सकते हैं। “
राजा,” मंत्री… जितना कहा है उतना करो। धनीराम को मेरे सामने पेश करो। “
मंत्री ने दो सिपाही भेजकर धनीराम को दरबार में बुला लिया।
धनीराम,” राजा साहब की सदा ही जय हो। आपने मुझ गरीब को कैसे याद किया ? हुकुम करें महाराज। “
राजा,” सोमू और मालती, ये जो भी कह रहे हैं क्या वह सच है ? तुम्हें कोई मटका मिला था ? “
धनीराम,” नहीं महाराज, आप और सोमू किस मटके की बात कर रहे हैं ? मुझे समझ नहीं आ रहा है। मैंने ऐसा कोई मटका नहीं देखा है। “
सोमू,” जमींदार साहब, सच बोलिए ना कि आपने मटका देखा नहीं बल्कि छीना है। “
धनीराम,” नहीं नहीं राजा साहब, सब झूठ बोल रहे हैं। “
तभी पीछे से ध्यानचंद आया। उसके हाथ में एक बहुत बड़ा बोरा था।
धनीराम,” तुम यहां और इस बोरे को लेकर क्यों घूम रहे हो ? “

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ध्यानचंद,” राजा साहब, मैं ध्यानचंद हूं और हमेशा जमींदार के साथ रहता हूं। मैं कुछ सच आपको बताना चाहता हूं। “
राजा,” हां, बोलो। “
ध्यानचंद,” महाराज, इस बोरे में धन से भरे मटके हैं जो इस राज महल से चोरी किए गए। सोमू के खेत से जो मटका मिला, वह भी इसी में है। “
धनीराम,” देखा राजा साहब, मैं कहता था ना मैंने कुछ नहीं किया है। मेरा नौकर चोरी कर रहा था, इसका मुझे दुख है। आप इस चोर को फांसी पर चढ़ा दीजिए। “
ध्यानचंद,” रुकिए जरा, सब्र कीजिए धनीराम जी। “
राजा,” ध्यानचंद, तुम अपनी पूरी बात रखो पहले। “
ध्यानचंद,” महाराज, धनीराम आपका बहुत दिनों से धन चुरा रहा था इसलिए मैंने यह मटका सोमू के खेत में छुपा दिया जिसको धनीराम ने वापस छीन लिया। मालती को मैंने पहले ही बता दिया था। “
राजा,” लेकिन तुम तो धनीराम के साथ वर्षों से काम कर रहे हो, अचानक उसके खिलाफ कैसे ? “
ध्यानचंद,” लंबी कहानी है महाराज। इस कपटी धनीराम से मैंने कुछ रुपए उधार मांगे थे। 
आज से 15 साल पहले जब मेरी बीवी (रज्जू) पेट से थी। उससे दर्द सहन नहीं हो रहा था। मैंने धनीराम से बहुत मिन्नतें की।
ध्यानचंद,” मालिक, मेरे बीवी और बच्चे को बचा लीजिए। अगर मैं अभी उसे नगर की आया कि पास नहीं ले गया तो उसकी मौत हो जाएगी। “
धनीराम,” मुझे उससे क्या फायदा होगा ? कल मरे सो आज मर। मेरे पास कोई पैसे नहीं है। “
ध्यानचंद,” रहम करें मालिक, रहम करें। “
धनीराम,” हट पिल्ले। “
ध्यानचंद,” तब मेरी आंखों के सामने मेरा परिवार उजड़ गया था। मैंने उस दिन से इंतजार किया आज का और आज सब आपके सामने है। महाराज, इस कपटी को इसके किए की सजा मिलनी चाहिए। “
राजा,” पिछले कुछ महीनों से राज महल का खजाना लुटता रहा है। हमें उस चोर की तलाश थी। आप तीनों का धन्यवाद जो आपने इस दुष्ट चोर को पकड़वाने में हमारी मदद की। “
धनीराम,” नहीं नहीं, मुझे माफ कर दीजिए महाराज। “
राजा,” सिपाहियो… धनीराम से सारा धन वापस लेकर इसे उम्र भर के लिए कारावास में डाल दो। “
सिपाही धनीराम को लेकर जाने लगे। लेकिन तभी धनीराम ने रोककर कहा। 
धनीराम,” महाराज, मैंने गलती की है और मुझे सजा स्वीकार है। लेकिन मैंने यह अपराध अकेले नहीं किया है इसलिए मेरे साथी को भी साथ भेज दीजिए। “
राजा,” कौन है तुम्हारा साथी ? “
धनीराम,” आपका कपटी मंत्री; जो चोरी करके राज महल का धन मुझे देता था और इसमें से हिस्सा भी लेता था। “
राजा,” क्या..? मंत्री जी आप भी, आप पर तो मैंने समस्त राज्य का कार्यभार सौंप रखा था और आप भी इस कुकृत्य में शामिल हैं। “
राजा,” सिपाहियो… इस राज्य को ऐसे कपटी मंत्री की कोई जरूरत नहीं है जिसने ना सिर्फ धन लूटा बल्कि गरीब किसानों को भी दुखी किया। कपटी मंत्री को अभी फांसी लगा दी जाए। “

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मंत्री,” नहीं नहीं, मुझे माफ कर दीजिए महाराज। माफ कर दीजिए। “
सिपाही मंत्री और धनीराम को ले गए। राजा ने सोमू, मालती और ध्यानचंद को इनाम दिया और राजदरबार में नौकरी भी दे दी।
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