हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सेठ का मूर्ख बेटा ” यह एक Gaon Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Achhi Achhi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Seth Ka Moorkh Beta | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Gaon Ki Kahani
सेठ का मूर्ख बेटा
रायपुर गांव में एक सेठ सेठानी रहते थे। उनका एक बेटा था रोशन। रोशन बोलता बहुत था लेकिन अक्सर उसकी सुनने की क्षमता कम हो जाती थी।
उसका अधिक बोलना और कम सुनना लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाता था।
एक बार उसके पिता कुछ काम से बाहर चले गए और मां भी उसे सोता हुआ देखकर घर से बाहर चली गई। पीछे से रोशन उठकर आंगन में आ गया।
तभी दूसरे गांव से एक आदमी उसके पिता को ढूंढते हुए उनसे मिलने आ गया।
आदमी,” ओ बेटा ! अपने बापू से कह कि कोई उनसे मिलने आया है। मुझे उनसे बहुत जरूरी बात करनी है। तुम्हारे और हमारे गांव के बीच में जो बाड़ है ना, उससे भूतों की आवाज आती है।
यह भूत आत – जाते लोगों को लूट रहे हैं। बहुत डर का माहौल बन चुका है। कल को किसी की जान चली गई तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी। “
रोशन,” क्या कहा आपने ? थोड़ा तेज बोलो।
आदमी,” अरे ! पूरी राम कहानी सुना दी और अब कह रहा है थोड़ा तेज बोलो। चल अपने बाप से कह चरण सिंह मिलने आया है। “
रोशन,” क्या कहा, मरण ? अरे काका ! सुबह-सुबह किसका मरण हो गया ? कौन परलोक सिधार गया ? आजकल क्या हो रहा है कुछ समझ नहीं आता ? “
चरण सिंह,” अरे ! बेटा सुन… “
रोशन,” अरे काका ! आप सुनिए। वह सामने वाली बुड्ढी काकी है ना, सब लोग उसे बढ़िया-बढ़िया कहते हैं। लेकिन मैं नहीं बोलता। बहुत आदर करता हूं बड़ों का।
उसके बेटा बहू वही पास के गांव में रहते हैं। काकी खूब तंदुरुस्त थी किसी ने ना सोचा कि वह ऐसे…। “
चरण सिंह,” ऐसे क्या ? “
रोशन,” ऐसे मतलब… दोपहर का खाना खाकर काकी आराम से लेटी हुई थी तो बस लेटी ही रह गई। मरते वक्त कोई अपना पास में हो तो कौन गंगा जल डाले। “
चरण सिंह,” ये अच्छा नहीं हुआ, राम – राम – राम। “
रोशन,” काका आपको पता है गंगाजल के बिना मुक्ति नहीं मिलती ? आदमी नरक झेलता है नरक। सुना है नर्क में कौड़े पडते हैं। कुछ हो ना हो आदमी का मरण अच्छा होना चाहिए। “
चरण सिंह,” अरे बेटा स्वर्ग – नरक कुछ नहीं होता, सब इंसान के कर्मों का फल होता है। “
रोशन,” अरे काका आप बहुत धीरे बोलते हो। लगता है बुढ़ापे में आवाज का जोर कम हो गया है। थोड़ा तेज बोलो। “
चरण सिंह,” बेटा मैं कह रहा हूं कर्म। “
रोशन,” क्या कहा काका भ्रम ? मुझे कोई भ्रम नहीं है। पूरा गांव भ्रम में पड़ा हुआ है। कोई भी अपने दम पर कुछ नहीं कर रहा। पर मैं ऐसा ना हूं।
बापू के नाम की लाज रखी है मैंने। मजाल है कोई आदमी मेरे सामने खड़ा हो जाए। सब मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम करें हैं।
चरण सिंह,” अब तू अपने बापू को बुलाएगा कि नहीं ? “
रोशन,” अरे काका ! कुछ भी समझ नहीं आ रहा, थोड़ा तेज बोलो। “
चरण सिंह,” अरे ! अब क्या में लाउड स्पीकर लगवा लूं अपने मुंह में ? “
रोशन,” बहन, किसकी बहन ? “
चरण सिंह,” अरे बेटा ! मुझे समझ नहीं आ रहा तू सच में इतना बावला है कि इतना भोला ? “
रोशन,” गोला, खाने वाला गोला ? अरे वाह काका ! इतनी गर्मी में गोले का ही सहारा है। ठंडी-ठंडी बर्फ में मीठा रंग डालकर मजा ही आ जाता है। क्या बात हो गई, आज गोलेवाला नहीं आया ? “
तभी गोलेवाला सामने से एक ठेली लाता हुआ दिखाई दिया।
रोशन,” हां भाई, फटाफट तू ठंडे-ठंडे दो गोले बना दे। “
गोलेवाला,” अरे भैया ” आप भी ना, सुबह-सुबह मजाक कर रहे हो। गोला तो ठंडा ही होता है। “
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रोशन,” तुम गंदा किसको को कह रहे हो ? तुम होंगे गंदे। मैं तो एकदम पवित्र हूं हां। “
गोलेवाला,” अरे ! मैं तो भूल ही गया था। यह तो बहरा है। जब तक इसकी कनपटी पर पडते नहीं तब तक ढंग से सुनाई नहीं देता।
गोलेवाले ने दो गोले बनाकर एक ₹10 का नोट उठाकर रोशन को ₹10 देने का संकेत किया। “
रोशन,” अरे ! मुंह से ना बोल सकता के, अपनी तरह गूंगा समझा है क्या ? “
रोशन ने उसे ₹10 देकर दोनों को ले ले लिए। एक गोला खुद चाटने लगा और दूसरा गोला चरण सिंह को देने लगा।
चरण सिंह,” अब क्या तू इस उम्र में मेरे दांत गिरवाएगा जो इतना ठंडा बर्फ का गोला खिला रहा है। “
रोशन,” गंदा… काका यह गोलेवाला तो बिल्कुल पागल है पर कम से कम तुम तो मुझे गंदा मत कहो। “
चरण सिंह,” अरे बेटा ! तू गंदा नहीं मैं पागल हूं। “
गोलेवाला,” काका यह बिल्कुल बहरा है। इसे कम सुनाई देता है। तुम बोलोगे कुछ और इसे सुनाई कुछ और देगा। “
चरण सिंह,” अरे ! तो मुझे पहले क्यों नहीं बताया ? इसने तो मेरे सर में दर्द कर दिया। ” यह कहकर चरण सिंह चल देता है।
रोशन,” अरे काका ! कहां चल दिए ? गोला तो खाते जाओ। “
चरण सिंह तेजी से कदम बढ़ाते हुए वहां से भाग जाता है।
तब एक सब्जी वाला वहां आता है,” भैया, अम्मा को बुला लो जो जो सब्जी चाहिए होगी ले लेंगी। “
रोशन,” निकम्मा… यह सुबह-सुबह किसको निकम्मा बोल रहा है ? “
सब्जीवाला,” लगता है आज भैया का सुनने वाला फ्यूज फिर से उड़ गया है। हे भगवान ! सुबह-सुबह किसका मुंह देखा था ? “
रोशन,” अरे ! सांप सूंघ गया क्या, कुछ बोलता क्यों नहीं ? “
सब्जीवाला (मन में),” अब क्या करूं ? अगर बिना सब्जी दिए यूं ही चला गया तो अम्मा बुरा मान जाएंगी। चलो फिर से अपनी बात समझाने की कोशिश करता हूं। “
सब्जीवाला,” निकम्मा नहीं भैया अम्मा, अम्मा। अम्मा को बुला दो। “
रोशन,” नन्ना कौन ? ओ ! सामने वाला नन्ना।
ओ हो अब समझा तुम नन्ना को निकम्मा कह रहे थे। सच बताऊं… मुझे तो वह फूटी आंख नहीं सुहाता।
पूरा दिन वह खाट पर पड़ा रहता है निकम्मा कहीं का। बस दो ही काम है उसके, एक तो बैल की तरह चढ़ना और दूसरा कुंभकरण की तरह खर्राटे भरना।
तुम किसी से कहना नहीं। उसके घर्राटों की आवाज यहां तक आती है। उसके खर्राटों की आवाज सुनकर मेरे कान फट जाते हैं। “
सब्जीवाला,” तुम्हारे कान तो वैसे ही फटे हुए हैं। कोई आवाज ठीक से समझ आती भी है तुम्हें या नहीं। “
रोशन,” देखो अभी तक उसके खर्राटे मेरे कानों में गूंज रहे हैं। मेरे बापू कहते रहे, कुछ सीख नन्ने से। तुम ही बताओ मैं क्या सीखूं उससे खाना और सोना ?
ऐसे तो मैं थोड़े दिनों बाद मोटा पेट लेकर घूमूंगा। ना भाई ना… मैंने तो बापू से साफ कह दिया, इस नन्ने जैसा तो मैं सात जन्म तक ना बनूं। “
सब्जीवाला बेचारा उसे देखता रहा।
रोशन,” अरे माफ करना भाई, मैं अपनी लेकर बैठ गया। तुम क्या कह रहे थे भाई ? “
सब्जीवाला,” भैया अम्मा है घर पर या नहीं ? “
रोशन,” देख फिर नन्ना… मैंने कहा ना उसे तू मेरे ऊपर छोड़ दे। उसने सब की नाक में दम कर रखा है। मैं समझता हूं तुम्हारी परेशानी। देखो तुम्हारे पास तो अभी काम है, तुम अपने काम को संभालो। नन्ना को मैं देख लूंगा। “
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तभी नन्ना की मां बाहर आकर पौधों को पानी देने लगी।
सब्जीवाला मन में),” लगता है इसकी अम्मा घर पर नहीं है। जो नुकसान होगा भोग लूंगा पर यहां अब और खड़ा रहा तो पागल हो जाऊंगा। ”
सब्जी वाले ने हां में सर हिलाया और दोनों हाथ जोड़कर अपनी ठेली लेकर वहां से चला गया।
रोशन,” अरे ! कहां जा रहा है सब्जी तो देता जा ? “
सब्जीवाले ने पीछे मुड़कर देखा तक नहीं।
रोशन,” अरे तू चिंता ना कर, इस नन्ने के बच्चे को तो मैं देख लूंगा। यहीं से पत्थर फेंककर मारूंगा। ”
तभी नन्ने की मां वहां आ गई।
नन्ने की मां,” क्या कह रहा था तू मेरे नन्हें के बारे में ? उसे पत्थर फेंक कर मारेगा। “
रोशन,” गन्ने… अरे काकी ! हमारे खेतों में गन्ने की फसल तो कब से होती है। आपको तो पता ही है। “
नन्हे की मां,” अरे ! तेरे कानपुर मैं आज फिर से हड़ताल हो गई। इसका मतलब जब तक तू ठीक नहीं होगा, सबके बारे में उल्टा सीधा बोलेगा। “
रोशन,” क्या बड़बड़ा रही होगा काकी ? थोड़ा तेज बोलो। और हां हमारी खेती को नजर मत लगाना, बता दे रहा हूं हां।
नन्हे की मां,” यह तेरी अम्मा भी ना, जब भी किसी को तंग करना होता है तो तेरे कान का फ्यूज उड़ा देती है और फिर कर लो तेरा सामना। “
तभी रोशन की मां, सरला वहां आ गई।
नन्हे की मां,” अरी सारला ! आ गई तू। देख तेरा लाल बोल बोलकर सब को पागल कर देता है। इसे ठीक करके क्यों नहीं गई ? “
सरला,” इसे तो मैं सोते हुए छोड़ गई थी दीदी। इसके पापा तो बाहर गए हुए हैं और मैं तो बस आ ही रही थी। ”
सरला (रोशन से),” तू बाहर क्यों आया रे ? “
नन्ने की मां,” तेरे आने तक तो इसने आधी दुनिया को पागल कर दिया। हिम्मत तो देखो इसकी सब्जीवाले से मेरे नन्हें को पत्थर मारकर कहने की बात कर रहा था। मैं ही ना इसके कान पर तो बजा दूं। “
सरला,” ना ना दीदी, आपको तो इसके बारे में सब कुछ पता ही है। बच्चा है माफ कर दो। “
नन्ने की मां,” बच्चा नहीं है परमाणु बम है बम जो सामने वाले को एक ही बार में खत्म कर देता है। मेरे सिवा पता नहीं यह बम किस किस पर गिरा है ? “
सरला,” नहीं नहीं दीदी, आपको तो इसके कानों का पता ही है। सोकर उठने के बाद जब तक कानों पर दो जोर के झटके नहीं पड़ते तब तक इसको कम सुनाई देता है। “
नन्ने की मां,” कम नहीं इसको पता नहीं क्या क्या सुनाई देता है ? “
सरला,” दीदी आप रुको। ”
सरला रोशन के दोनों गालों पर जोर से तमाचा मारती है और वह चक्कर खाकर लड़खड़ा जाता है।
रोशन,” अरे मां ! तुम सुबह-सुबह क्यों मार रही हो मुझे ? “
सरला,” मार नहीं रही हूं तेरा इलाज कर रही हूं। “
रोशन,” अरे ! यह कौन सा इलाज है जो रोज सुबह तुम मुझे थप्पड़ मारती रहती हो ? “
नन्हे की मां,” लो आ गए इसके कान वापस। “
रोशन,” अरे काकी कान थोड़े ही ना चलते हैं जो वापस आ जाएंगे। “
नन्हे की मां,” सरला तू इसकी जुबान का भी इलाज कर दे। देख तो कैसे कैंची की तरह चलती है ? “
सरला,” इतनी जुबान क्यों चलाता है ? जल्दी काकी से माफी मांग। “
रोशन,” माफी ? मैंने क्या कर दिया ? “
सरला,” तुझे तो पता भी नहीं कि तू क्या कर चुका है ? “
रोशन,” अरे काकी तुम बड़ी हो इसलिए माफी मांग रहा हूं। मुझे माफ कर दो। “
नन्ने की मां,” हे प्रभु ! इस लड़के से तो भगवान बचाए। ” यह कहकर वो वहां से चली जाती है।
सरला,” सुन अपने बापू को जाकर देख अभी तक क्यों नहीं आए ? “
रोशन,” ठीक है। “
रोशन खेतों से होते हुए जाता है। तभी एक आदमी रोशन को पीछे से आवाज देता है,” रोशन कहां जा रहा है ? ”
रोशन उस आदमी को देखने के चक्कर में आगे पत्थर से टकरा जाता है और जमीन पर गिर जाता है।
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आदमी,” अरे, अरे संभल कर भाई। “
रोशन अपने कानों को मसलते हुए खड़ा हो जाता है।
आदमी,” अरे रोशन ! कोई चोट तो नहीं लगी। “
रोशन,” मुर्गी… अरे ! यहां तो कोई मुर्गी नहीं है। “
आदमी,” अरे ! तू मुर्गी छोड़। सुन… आगे वाली पहाड़ी पर मत जाना, सुना है वहां पिछले हफ्ते से भूत का साया है। “
रोशन को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। वह मुंह बनाकर आगे की ओर चल दिया।
आदमी,” मेरी बात को याद रखना ठीक है। “
रोशन चलते हुए पहाड़ी की ओर बढ़ गया। पहाड़ी से कई भूतों की रोने की आवाज आने लगी। रोशन को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।
भूतों की रोने की आवाज धीरे धीरे बढ़ने लगी। रोशन को कोई फर्क नहीं पड़ा।
भूत की आवाज,” रुक जाओ नहीं तो मारे जाओगे। तुम्हारे पास जो भी रुपए, पैसे हैं यही निकाल कर रख दो नहीं तो हम तुम्हें मार कर आपस में बांट लेंगे और खा जाएंगे। “
फिर से भूतों के रोने की आवाज आने लगी। लेकिन रोशन को कुछ सुनाई नहीं दिया।
बदमाश,” यह क्या ? यह तो बिल्कुल डर ही नहीं रहा। अगर यह यहां से बिना डरे वापस लौट गया तो मेरा धंधा तो चौपट हो जाएगा। नहीं, नहीं मुझे इसे रोकना होगा। “
बदमाश तुरंत जाकर रोशन का रास्ता रोकता है।
बदमाश,” रुक बे, साला हीरो बन रहा है। मुझसे डर नहीं लगता, चल जल्दी जल्दी सब निकाल। “
रोशन,” हल्दी की दुकान… यहां से सीधा जाकर उल्टे हाथ पर है। “
बदमाश,” हल्दी ? अरे जल्दी-जल्दी तू माल निकाल। “
रोशन,” अभी चिल्ला क्यों रहा है ? कहा ना हल्दी की दुकान आगे है। “
बदमाश,” अरे ! बहरा है क्या सुनाई नहीं देता ? ”
बदमाश ने जोर से रोशन के गालों पर दोनों तरफ थप्पड़ दे दिए और रोशन सुनने लगा।
रोशन,” अरे ! मुझे मारा कैसे तूने ? “
बदमाश,” अरे तुझे तो सब कुछ सुनाई देता है। भूत से नहीं डरता, मार से नहीं डरता चल अब जो भी है तेरे पास जल्दी से निकाल। “
जैसे ही बदमाश रोशन को मारने बढा रोशन ने उसे जोर से धक्का दे दिया और बदमाश नीचे जमीन पर गिर गया।
तभी वह आदमी जो रोशन को खेतों पर मिला था, कुछ गांव के आदमियों को लेकर वहां आ गया। सभी ने मिलकर उस बदमाश को खूब पीटा।
रोशन,” अब चल बता सबको अपने खेतों के भूत की कहानी। “
बदमाश ने रोते हुए बता दिया,” हम लोग ही इस रास्ते पर भूत बनकर लोगों को लूटा करते हैं। यहां कोई भूत वूत नहीं है। “
उनमें से एक आदमी कहता है,” वाह रोशन ! तूने तो आज झूठ से पर्दा उठा दिया। जाने कब से यह हमें लूटता आ रहा है ? अगर हमें सच्चाई का पता नहीं चलता तो यह आगे भी इसी तरह लूटता रहता। “
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दूसरा आदमी,” हां भाई रोशन, तूने हम सबको इससे बचाया है। “
फिर सब मिलकर उस बदमाश को पुलिस स्टेशन ले गए।
आदमी,” माननीय दरोगा जी… इस बदमाश को भूत के दर्शन कराओ। “
दरोगा,” आप सब चिंता मत करो। इसे तबीयत से ठीक करेंगे। “
और इस तरह रोशन की बुराई गांव वालों के लिए अच्छाई साबित हुई। सारे गांव वालों की नजर में रोशन हीरो बन गया।
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