हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब की बिरयानी ” यह एक Hindi Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
होशियारपुर गांव में गुड्डू नाम का एक गरीब लड़का रहता था। छह महीने पहले जब वो लोग घोड़ा गाड़ी से दूसरे गांव जा रहे थे, तब एक हादसा हो गया।
उसके पिता की मौत हो गई और उसकी माँ के पैरों में इतनी गहरी चोट लगी कि उनका चलना-फिरना दूभर हो गया।
माँ, “अब तो बस कुछ चिल्लर ही बचे हैं, गुड्डू। सारा पैसा मेरे इलाज में जा रहा है। घर में खाने तक के पैसे नहीं हैं। तू मुझे मार डाल। इस बीमार माँ से छुट्टी पा।”
गुड्डू, “मां, ये आप क्या कह रहे हो? बस आप ही तो मेरा परिवार हो, आपको कुछ हो गया तो मैं कैसे रहूँगा?”
माँ, “फिर हम गुजारा कैसे करेंगे? मैं भी अपाहिज बनकर तुझ पर बोझ बन गई हूँ।”
गुड्डू, “ऐसा कुछ न कहो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। आप ही कोई तरीका सोचिए ना।”
माँ, “बेटा, तू एक काम कर। तू खाना बहुत अच्छा बनाता है। तू गांव में खाने की दुकान शुरू कर ले।”
गुड्डू, “अरे माँ! पर इतना सब कुछ रोज़-रोज़ बहुत महंगा पड़ेगा। और वैसे भी मेरा बनाया खाना आपको ही पसंद है, बाकी लोगों का पता नहीं।”
माँ, “नहीं बेटा, मेरी उम्र निकल गई है। जानती हूँ कि तेरे हाथों में जादू है। तो फिर पीछे जो थोड़ी जगह है, अभी के लिए सब्जियां बेचने का काम शुरू कर दे। कुछ बचत होगी तो काम बढ़ा लेना।”
गुड्डू, “हाँ माँ, ये बहुत अच्छा तरीका है। फिर तो मैं कल से ही काम करना शुरू कर दूंगा।”
गुड्डू (सब्जी बेचते हुए), “सब्जी ले लो भाई सब्जी, बिल्कुल ताज़ी है।”
ग्राहक, “हाँ बेटा गुड्डू, आज तुम मुझे एक किलो सीताफल कर दो, बहुत मन है। आज तो सांभर बनाऊंगी, हाँ?”
गुड्डू, “अरे वाह माँ जी! फिर तो जरूर आऊंगा आपके पास सांभर खाने। ये लीजिए, आपका सीताफल।”
ग्राहक, “ला बेटा। धन्यवाद!”
सब्जी बेचकर गुड्डू के पास जो भी पैसे आते, उन पैसों से गुड्डू के घर का खर्च निकल जाता। एक दिन सुबह-सुबह गुड्डू सब्जी बेचने निकल ही रहा था।
गुड्डू, “माँ, मैं सब्जी बेचने जा रहा हूँ. मैंने आपके लिए खाना बना दिया है और मैं जल्दी ही आ जाऊंगा।”
माँ, “बेटा, आज मेरे पैर और कमर में बहुत जोरों का दर्द हो रहा है। मुझे लगता है कि आज तो बड़े वैद्य जी के पास चलना ही पड़ेगा।”
गुड्डू, “ठीक है माँ, मैं तुम्हें ले चलता हूँ।”
माँ, “पर बेटा, वो इलाज के लिए तो बहुत ज्यादा पैसे मांगेंगे?”
गुड्डू अपनी माँ बिमला को बड़े वैद्य के पास ले जाता है और वैद्य जी इलाज शुरू करने के लिए ₹2500 मांगते हैं।
गुड्डू, “ठीक है वैद्य जी, मैं पैसों का इंतजाम कर लूँगा। पर आप मेरी माँ का इलाज जल्द से जल्द शुरू कर दीजिएगा।”
गुड्डू गांव के मुखिया के पास जाता है।
गरीब की बिरयानी | Gareeb Ki Biryani | Hindi Kahani | Moral Story | Hindi Story | Bedtime Story
गुड्डू, “मुखिया जी, मेरी माँ के इलाज के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी। अगर आप पैसे उधार दे देते तो अच्छा होता।”
मुखिया, “पुराने कर्जे तो तुमने चुकाए नहीं, अब और पैसे मांगने आ गए। मैं कोई पैसा नहीं दूंगा, और तुमने एक महीने में पुराने कर्जे नहीं चुकाए तो तुम्हें अपना घर देना होगा।”
गुड्डू, “देरी के लिए माफी चाहता हूँमुखिया जी। जल्दी आपके सारे पैसे लौटा दूंगा।”
गुड्डू वहाँ से निकल गया और उसने दूसरे लोगों से भी मदद मांगी। लेकिन सब जानते थे कि गुड्डू कमाता नहीं है, तो पैसे कहाँ से वापस देगा? इसलिए किसी ने उसकी मदद नहीं की।
गुड्डू (रोते हुए), “माँ, मैं किसी काम का नहीं हूँ। मैं तेरे इलाज के लिए पैसे भी चुकता नहीं कर पाया। मुझे जीने का कोई हक नहीं है।”
माँ, “नहीं बेटा, मेरे लिए पैसों से ज्यादा कीमती है तू।”
उस दिन गांव में ढिंढोरा पीटा जाता है।
सैनिक, “सुनो-सुनो, गांव वालों सुनो… राजा ने अपने खास रसोईयों के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है, जो कल से ही आरंभ होगी।
जो कोई भी उस प्रतियोगिता में विजेता होगा, उसे राजा का खास रसोइया बनाया जाएगा और साथ ही ₹5000 इनाम में भी दिए जाएंगे।”
गुड्डू पास में सब्जी बेच रहा था। प्रतियोगिता वाली बात सुनकर वो खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
गुड्डू, “अरे वाह! अगर मैं इस प्रतियोगिता में भाग ले लूँ तो माँ का इलाज करवा सकता हूँ और फिर राजा का रसोई बनना भी कोई छोटी बात नहीं है।”
गुड्डू, “माँ… माँ, एक खुशखबरी है। कल से राज्य में राजा के खास रसोई के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है।
उसमें जीतने वाले को ₹5000 इनाम और राजा का खास रसोई भी बनाया जाएगा। मैं इस प्रतियोगिता में भाग लूँगा और फिर हम अच्छे से आपका पैर का इलाज करा सकेंगे।”
फिर गुड्डू पड़ोसियों को अपनी माँ की देखभाल का बोलकर प्रतियोगिता के लिए निकल जाता है।
अगले दिन प्रतियोगिता शुरू हो जाती है। सारे प्रतियोगी गुड्डू को देखकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगते हैं।
पहला प्रतियोगी, “अरे! वो देखो, अब भिकारी भी राजा के खास रसोईयों के लिए प्रतियोगिता में भाग लेने आए हैं।”
हंसते-हंसते वो आदमी खम्बे से टकराकर धड़ाम से गिर जाता है। फिर सब लोग उस पर हंसने लगते हैं।
तभी वहाँ पर राजा आ जाता है और प्रतियोगिता शुरू हो जाती है। फिर सारे प्रतियोगी खाना बनाना शुरू कर देते हैं।
सभी प्रतियोगी बहुत अच्छा खाना बनाते हैं और खाने की खुशबू सूंघकर राजा फिर से वहाँ पर आ जाता है।
राजा, “आहा… खुशबू! ये खुशबू सूंघकर तो मुझे और भी ज्यादा भूख लगने लगी है। अगर आप सबका खाना बन गया तो जल्दी-जल्दी मेरे सामने पेश करो, मेरी भूख बढ़ती ही जा रही है।”
फिर सब लोग अपना-अपना बनाया हुआ भोजन राजा के सामने पेश करते हैं।
राजा, “अरे वाह! इतना स्वादिष्ट खाना। इस खाने को चखकर तो मुझे मेरी माँ के हाथ के बने हुए खाने की याद आ गई है।”
मंत्री, “पर महाराज, इसमें आपको नमक थोड़ा कम नहीं लग रहा क्या?”
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राजा, “नहीं मंत्री जी, मुझे तो सब सही लग रहा है। हो सकता है कि आपको नमक ज्यादा चाहिए।”
राजा, “एक काम करो, मंत्री जी की सब्जी में थोड़ा नमक और मिला दो।”
गुड्डू मंत्री की सब्जी में और नमक डाल देता है और खाना बहुत बेस्वाद हो जाता है।
राजा, “अरे मंत्री जी! आप इतना धीरे-धीरे क्यों खा रहे हो? और ये पूरा खाना खत्म करना।
क्योंकि आपको तो पता ही है मुझे अन्न का अपमान करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है।”
मंत्री को फिर जबरदस्ती पूरा खाना खत्म करना पड़ता है। फिर राजा भोजन चखकर जिसने अच्छा भोजन बनाया होता है,
सिर्फ उसे ही प्रतियोगिता में आगे बढ़ने के लिए कहता है और बाकियों को वहाँ से निकाल देता है।
राजा, “मंत्री जी, मैं बाकी सबसे तो निपट लूँगा, लेकिन ये जो भिखारी है इसे कैसे निपटाऊँ?”
मंत्री, “तुम फिक्र मत करो, इसको तो हम डरा-धमकाकर यहाँ से भगा देंगे।”
मंत्री, “ऐ भिखारी!”
गुड्डू, “जी, मंत्री जी।”
मंत्री, “चल, निकल जा यहाँ से और वापस दिखाई भी मत देना। और इस प्रतियोगिता से अपना नाम भी वापस ले ले।”
गुड्डू, “नहीं सरकार, मैं अपना नाम वापस नहीं ले सकता। मुझे प्रतियोगिता के पैसे से अपनी माँ का इलाज करवाना है।”
मंत्री, “तू मुझे बता, तुझे कितने पैसे चाहिए? मैं तुझे मालामाल कर दूंगा, पर इस प्रतियोगिता से अपना नाम वापस ले ले।”
गुड्डू, “नहीं सरकार, मैं अपनी माँ से वादा करके आया हूँ और मुझे मुफ्त के पैसे नहीं चाहिए। अब तो चाहे जो हो जाए, मैं अपना नाम वापस नहीं लूँगा।”
मंत्री ये बात जाकर हरिया को बताता है।
हरिया, “ठीक है, आप बस किसी तरह मुझे सुबह-सुबह रसोई के अंदर ले चलना, बाकी सब मैं कर लूँगा।”
मंत्री सुबह रसोई के पहरेदार से बातचीत करता है और इतने में हरिया चुपके से अंदर जाकर गुड्डू का पूरा सामान तहस-नहस कर देता है।
तभी उसके हाथ से एक मसाले का डिब्बा गिर जाता है। आवाज़ सुनकर कोई अंदर न आ जाए, वो तुरंत डिब्बा बंद करके छिप जाता है और फिर मंत्री की मदद से बाहर आ जाता है।
राजा, “प्रतियोगियो! आज मुझे कुछ अच्छा और कुछ अलग खाना खाने का मन कर रहा है। देखते हैं, आप सभी में से कौन मेरी भूख को शांत कर पाएगा?”
हरिया, “महाराज आप देखना, मैं ही आपकी भूख को शांत करके आपका खास रसोइया बनूँगा।”
राजा, “वह तो खाना चखने के बाद ही पता लगेगा।”
गुड्डू, “अरे! मेरी सारी सब्जियां और मेरा सारा मसाला कहाँ गया? अब मैं क्या करूँगा? अब मैं खाना कैसे बनाऊंगा?
ये कौन हो सकता है जिसने मेरे पास से सब्जियां और मसाला चुरा लिया? अगर मैं हार गया तो माँ को क्या जवाब दूंगा?
उनका इलाज कैसे कराऊंगा? अरे! महाराज भी आने वाले हैं, मैं क्या करूँ?”
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गुड्डू बाकी लोगों से थोड़ा-थोड़ा सामान मांगता है, लेकिन कोई उसे कुछ नहीं देता।
आखिर में गुड्डू अपनी बिखरी हुई सब्जी देखता है और उसे याद आता है कि उसकी माँ ने एक ऐसी ही कम सब्जी से एक बढ़िया बिरयानी बनानी सिखाई थी।
कुछ देर में गुड्डू बची हुई सब्जी और माँ के दिए खास मसाले से बिरयानी बनाकर तैयार कर लेता है। दूसरी तरफ, हरिया गुड्डू के मसाले का इस्तेमाल करके बहुत अच्छा भोजन तैयार कर लेता है।
राजा खाना खाने के लिए आता है।
राजा, “हाँ तो बताइए, आपने क्या बनाया है?”
हरिया, “महाराज, मैंने आपके लिए रसमलाई बनाई है। आप पहले इसे चखिए।”
राजा बारी-बारी करके सभी के पकवान चखता है।
राजा, “हां तो मैंने सबका भोजन चख लिया है, अब तुम्हारी बारी है। हाँ, तो तुमने क्या बनाया है?”
गुड्डू, “महाराज, मैंने आपके लिए बिरयानी बनाई है।”
गुड्डू राजा के सामने बिरयानी पेश कर देता है।
राजा, “इसकी तो खुशबू ने ही मेरा दिल खुश कर दिया है। मैं जल्दी से चखकर देखता हूँ कि बिरयानी कैसी बनी है?”
कुछ समय बाद…
राजा, “हाँ, तो अब मैं विजेता घोषित कर सकता हूँ। मुझे इन सब में से हरिया के हाथ का बनाया भोजन बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट लगा है।”
अचानक राजा के पेट में बहुत जोर का दर्द होने लगता है।
राजा, “अरे! ये मेरे पेट में दर्द क्यों हो रहा है? अरे राम जी! बचाओ! ये कैसा दर्द है?”
मंत्री, “अरे महाराज! ये क्या हुआ आपको?”
राजा, “पता नहीं महामंत्री, अचानक मेरे पेट में बहुत जोर से दर्द होने लग गया है।”
मंत्री, “आप इतना खाना खाओगे तो पेट में तो दर्द होगा ही।”
राजा, “क्या..? कह रहा है, नमकहराम! मैं रोज़ इतना ही खाना खाता हूँ।”
मंत्री, “मेरा मतलब है, हो सकता है कि आपके खाने में कुछ ऐसा मिलाया गया हो जिससे आपके पेट में दर्द हो रहा है।”
राजा, “हो सकता है, पर पता कैसे लगाया जाए कि किसने भोजन में मिलावट की है?”
गुड्डू, “महाराज, मैं पता लगा सकता हूँ।”
राजा, “पर कैसे?”
गुड्डू, “मुझे मेरी माँ ने बहुत सारे मसालों की ऐसी विद्या बताई है जिसमें सूंघ कर किसी भी मसाले के बारे में मैं पता लगा सकता हूँ। मुझे बस इसके लिए सभी के हाथों को सूंघना पड़ेगा।”
राजा, “ठीक है, सभी प्रतियोगियो अपने-अपने हाथ आगे करो।”
गुड्डू सूंघकर बताता है,
गुड्डू, “महाराज, हरिया के खाने में ही कुछ मिला हुआ था।”
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हरिया, “कक… क्या बकवास कर रहे हो? ऐसा हो ही नहीं सकता।”
गुड्डू, “अरे! पर ऐसा ही हुआ है। तुम्हारे भोजन में ही कुछ मिलावट थी।”
हरिया, “अरे! पर मैंने तो तुम्हारे मसाले अपने भोजन में डाले थे। इसका मतलब है कि तुम महाराज को नुकसान पहुंचाना चाहते थे?”
गुड्डू, “अच्छा, तो तुम ही हो वो चोर जिसने मेरे सारे मसाले और सब्जियां चुरा ली थीं। अरे भाई! वो जो तुमने मेरे सारे मसाले चुराए थे ना, वो मेरी माँ ने मुझे बनाना सिखाया था।
और अगर उसमें से थोड़ा सा भी ज्यादा डाल दो तो पेट में दिक्कत होने लगती है।”
राजा, “अरे! तुम क्या कह रहे हो? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।”
गुड्डू, “महाराज, मैं आपको सब बताता हूँ। दरअसल, प्रतियोगिता से पहले मेरे सारे मसाले चोरी हो गए थे और सब्जियां खराब हो गई थीं।
इसलिए जो भी मेरे पास था, उनसे आपके लिए बिरयानी बना दी। पर अब पता चल गया कि वो मसाला चोर और कोई नहीं, हरिया था।”
राजा, “क्या हरिया, तुम? तुमने चोरी की? मैं तुम्हें इस प्रतियोगिता से बाहर निकालता हूँ और गुड्डू को अपना खास रसोइया घोषित करता हूँ।”
राजा, “लेकिन जल्दी से वैद्य को बुलाओ, मेरे पेट में दर्द तो कम हो।”
जल्दी से राजवैद्य को बुलाया जाता है और राजा का इलाज करवाया जाता है। फिर गुड्डू राजा का खास रसोइया बन जाता है और इनाम के पैसों से अपनी माँ का इलाज करवाता है।
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