हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई चिराग ” यह एक Jadui Story है। अगर आपको Magical Stories, Jadui Kahani या Jadu Wali Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
गांव के पास बने एक जंगल में दो राक्षस रहा करते थे। उन्हें जब भूख लगती, गांव वालों का शिकार करते
और फिर मारपीट कर खा लेते। जिसके कारण गांव के लकड़हारे उनसे बहुत डरते थे।
एक बार अनजाने में उन्होंने इंसानी वेश में नाग राजकुमार को पकड़ लिया और उनका जादुई दीपक उनसे छीन लिया।
सैनिक, “नाग राजकुमार, ये तो बड़ा अनर्थ हो गया। नाग लोक के जादुई दीपक के कारण ही यहाँ उजाला रहता था।
अगर दीपक नहीं मिला तो हमें अंधेरे में रहना होगा।”
नाग राजकुमार, “सैनिकों, पिताजी को इसकी खबर नहीं होनी चाहिए। मैं उन राक्षसों को ढूंढकर दीपक जरूर ले आऊंगा।”
लेकिन नाग लोक में अंधकार हो जाने के कारण नाग राजकुमार का सर एक बड़े पत्थर से टकरा जाता है और वो बेहोश हो जाते हैं।
दूसरी तरफ गरीब लकड़हारे बाबूलाल के घर में खाने को कुछ भी नहीं था। वो सोचने लगा।
बाबूलाल, “राम जी की कसम मरना तो निश्चित है। या तो भूख से मरें या फिर जंगल जाकर मरें।
जंगल जाकर मरूंगा तो कम से कम मन में यह तो रहेगा कि हमने परिवार के लिए मेहनत करी वरना मरने के बाद भी खुद को माफ़ नहीं कर पाऊंगा।”
बाबूलाल की बीवी ने उसे घर में पड़े चोकर की दो रोटियां और चटनी दे दी।
एक हाथ में कुल्हाड़ी और एक हाथ में खाने पीने की पोटली लेकर बाबूलाल पेड़ काटने जंगल की ओर चल पड़ा।
जब वो जंगल पहुंचा, तो उसे दूर दूर तक कोई नहीं दिखा। वो सोचने लगा,
बाबूलाल, “राम जी की कसम… कितने बड़े बड़े पेड़ लगे हैं और दूर दूर तक पंची भी दिखाई नहीं देता है।
इन राक्षसों के डर से चिड़ियों ने भी जंगल में आना छोड़ दिया है। आगे जाऊं या यहीं से लौट जाऊं?
डर के मारे तो हमारी चुटिया खड़ी हो रही है, राम जी की कसम।”
बेचारे बाबूलाल के सामने बार बार उसके परिवार का भूखा चेहरा आ जाता।
हिम्मत करके वो आगे बढ़ा। उसे सामने एक पेड़ गिरा हुआ दिखाई पड़ा।
बाबूलाल, “रामजी की कसम… बीवी ने जो रोटी बनाई है, खा लेते हैं। कहीं ऐसा ना हो कि भूखे ही मर जाएं?
फिर आगे बढ़ेंगे और पेड़ काटेंगे। देखें हमारी किस्मत में क्या लिखा है राम ने?”
बाबूलाल ने अपनी पोटली खोली। पोटली खोलते ही रोटी, चटनी और प्याज की महक चारों तरफ फैलने लगी।
कुछ ही दूरी पर दोनों राक्षस भी पेड़ पर बैठे हुए थे। काफी दिनों से कुछ न खाने के कारण उन्हें भी बहुत भूख लगी थी।
पहला राक्षस, “भैया, गलती से हमने नागलोक का दीपक छीन लिया है। नागों के डर से यहाँ छुपकर बैठे हैं। लेकिन इस सुगंध ने तो मेरी भूख को और भड़का दिया है।”
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दूसरा राक्षस, “अरे भैया! लगता है कोई मानव खाना खा रहा है। मुझे तो मानव के मांस की भी सुगंध आ रही है।
चल चलते हैं और देखकर आते हैं कि किसकी इतनी हिम्मत है जो जंगल में हमारा खाना बनने आया है?”
पहला राक्षस, “वहाँ देखो भैया, वह मानव जाति का जानवर पेड़ के नीचे कुछ खा रहा है।”
दूसरा राक्षस, “कौन हो तुम? तुम्हें डर नहीं लगता? यहाँ पर बैठकर क्या खा रहे हो?”
बाबूलाल (मन में), “आज तो तू गया बाबूलाल।”
बाबूलाल, “अजी, आपने भी क्या पूछ लिया? मैं गरीब क्या खाऊंगा, सूखी रोटी और चटनी, यही तो हमारी किस्मत है?”
राक्षसों ने मानव गोश्त के सिवा कभी कुछ नहीं खाया था। ये नई चीजों को देखकर उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने बाबूलाल से कहा,
राक्षस, “बाबूलाल भाई, क्या तुम अपनी रोटी हमें दोगे?”
बाबूलाल, “राम जी की कसम, भगवान झूठ न बुलाए। हाथी के जैसा तो शरीर है आपका। भला ई छोटी छोटी दो रोटियों से आपका क्या होगा?”
राक्षस, “अरे भैया! अगर यह रोटी तुम हमें दे दोगे, तो हम तुम्हारी जान भी बक्श देंगे और तुम आराम से लकड़ी काटकर अपने गांव वापस चले जाना।”
बाबूलाल, “हे भगवान! क्या मुँह दिखाऊंगा गांव में जाकर? वैसे भी मेरे घर में तो बिल्कुल अँधेरा होगा और भूखे मर जाएंगे सब लोग, तो फिर कोई दिया जलाने वाला भी नहीं होगा।”
राक्षस, “अरे वाह! क्यों न नागलोक का दीपक हम इसको दे दें? अगर दीपक इसके पास रहेगा, तो खतरा भी इसी को होगा और हमारी मुसीबत टल जाएगी।”
दूसरा राक्षस, “बहुत बढ़िया छोटे, तू कमाल कर दिया। चल ला दीपक इसी को दे देते हैं
और इसके बदले में इसका खाना ले लेते हैं। इस मूर्ख को क्या पता कि ये अपनी मौत ले जा रहा है?”
राक्षस, “तुम्हारे घर में कभी अँधेरा नहीं होगा। मैं तुम्हें ये जादू का दीपक भी दे दूंगा। यह तुम्हारे घर में कभी अँधेरा नहीं होने देगा।”
बाबूलाल ने मन ही मन सोचा,
बाबूलाल, “इन्हें मना करने का मतलब है मौत। राम जी की कसम, अपनी कटी हुई लकड़ियां और जादुई दीपक ही लेकर घर चलता हूँ। इसी में खैर है।”
दीपक और लकड़ियां उठाकर वो घर पहुंचा।
पत्नी, “क्यों जी, आ गए तुम? सीता मैया की जय, बड़ी भूख लगी है।”
बाबूलाल, “भगवान झूठ ना भुलाए, लड़कियां… अरे मेरा मतलब है लकड़ियां तो मिल गई है, लेकिन सुबह बिकेंगी।
अभी तो ये दीपक ले जा, इसी से कलेजा ठंडा कर और हो सके तो मुझे कुछ खिला दे।”
पत्नी, “अरे दैया रे दैया! तुम्हें तो दो रोटियां और चटनी दी थी। सारी सफाचट कर दी?
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जय हो सीता मैया की, यहाँ मैं भूखी तुम्हारी राह देख रही हूँ और तुम खाना मांग रहे हो।”
बाबूलाल, “अरे बावली! तुझे क्या बताऊँ मेरे साथ क्या हुआ? तुझे विश्वास नहीं होगा। जा अच्छा जा अपने अंधेरे घर में कम से कम दीपक तो जला दे।”
निर्मला ने बाबूलाल के हाथ से दीपक लिया और जला दिया। दीपक जलाते ही पूरे घर में उजाला फैल गया।
ऐसा लग रहा था जैसे घर में सूरज निकल आया हो। यहाँ तक कि खिड़की से बाहर निकलने वाले उजाले से गांव भी रौशनी से नहा रहा था।
मुखिया, “अरे भाई बाबूलाल! तेरे घर में इतनी रौशनी कहाँ से निकल रही है। ऐसा लग रहा है पूरे गांव में सुबह हो गई।”
बाबूलाल, “अरे बावली! जल्दी से खिड़की बंद कर, मैं किसी को कुछ नहीं बता सकता। मैं बाहर जाकर मुखिया जी से बात करके आता हूँ।”
बाबूलाल बाहर जाता है और राक्षसों के डर से किसी से कुछ भी नहीं कहता।
बाबूलाल, “भगवान झूठ न बुलवाए मुखिया जी, ऐसी तो कोई बात नहीं है।
हम गरीबों के यहाँ भला बहुत दिनों के बाद दिया जलाया है ना इसलिए आपको लग रहा होगा।
मेरे घर में रौशनी है वरना मुझे गरीब के यहाँ दिया जलता ही कहाँ है?”
बाबूलाल रोज़ शाम को अपना दिया जला लेता। धीरे धीरे जिस घर में भी कोई दावत होती या रौशनी की जरूरत होती, लोग बाबूलाल का दिया ले जाते
और उसे उसके बदले में पैसे देते थे। पैसे मिलने से बाबूलाल और निर्मला का पेट भी भरने लगा।
निर्मला, “अजी सीता मैया की जय हो, मैं तो समझती थी तुम बड़े बुड़बक हो, लेकिन तुम्हारे इस दीपक ने तो हमारे घर में भी रौशनी कर दी और हमारे पेट में भी।”
बाबूलाल, “भगवान झूठ ना बुलवाए, पगली कह तो तू सही रही है लेकिन।”
एक दिन शाम को जब बाबूलाल और निर्मला ने दीपक जलाया, तो आकाश में परियां उड़ रही थीं।
उनकी नजर धरती पर गई। उन्हें लगा जैसे धरती पर कोई तारा उतर आया हो।
परी, “अरे लाली! सतरंगी, नारंगी ज़रा धरती की तरफ देख आसमान का तारा जमीन पर कैसे चमक रहा है? आज इसका राज़ पता करके आते हैं।”
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सभी परियां धरती पर पहुंची और ये देखकर हैरान रह गई कि वो दीपक तो नागलोक का दीपक है।
परी, “हे भगवान! अगर नागलोक के नागों को पता चल गया कि ये दीपक यहाँ है, तो इस मानव की तो खैर नहीं। मुझे लगता है हमें जल्दी से जल्दी से बता देना चाहिए।”
परियां ज़ोर ज़ोर से बाबूलाल का दरवाज़ा खटखटाती हैं।
बाबूलाल, “आप लोग कौन हैं? हम लोग तो बहुत गरीब हैं, हमसे क्या चाहती हैं?”
परी, “हम परियां हैं। तुम्हें सावधान करने आई हैं। तुम्हें ये दीपक कहाँ से मिला? ये पृथ्वीलोक का दीपक नहीं है।
ये नागलोक का दीपक है। जल्दी से जल्दी इस दीपक को जहाँ से लाए हो, वहीं रख दो वरना तुम्हारे ऊपर बहुत बड़ा संकट आ जाएगा।”
बाबूलाल, “भगवान झूठ न बुलवाए, ये आप क्या कह रही हैं? परी रानी ये दीपक तो मुझे जंगल में राक्षसों ने दिया है। ये तो मेरा उपहार है। मैं इसे किसी को नहीं दूंगा।”
निर्मला, “सीता मैया की जय हो, इस दीपक की वजह से तो मेरे घर में खाना बनता है, मैं इसे किसी को नहीं दूंगी।”
परी, “तुम बड़े भोले हो मानव। राक्षसों ने नागराज को बंदी बनाकर इस दीपक को चुरा लिया था। ये दीपक नागलोक का सूरज है।
इस समय पूरे नागलोक में अँधेरा है और सभी नाग इस दीपक को ढूंढ रहे हैं।
अगर उन्हें पता चल गया कि ये दीपक तुमने चुराया है, तो वो सब तुम्हारे ऊपर आक्रमण कर देंगे और ये गांव खत्म हो जाएगा।”
बाबूलाल, “ये आप क्या कह रही हैं? अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा? आप ही बताइए, मैं उन्हें ये दीपक कैसे वापस करूँ?
मेरे अंदर तो ना ताकत है, ना हिम्मत है और ना ही कोई जादुई शक्ति।”
परी, “तुम चुपचाप ये दीपक ले जाकर गांव के बाहर बनी सांपों की बांमी के पास रख दो, वो इससे खुद ही ले लेंगे।
लेकिन अब इस दीपक में तुम्हारी गंध आ गई है, वो तुम्हें छोड़ेंगे नहीं। वो तुम्हे सजा जरूर देंगे।”
निर्मला, “अरे सीता मैया की जय हो! परी रानी, मेरे पति को बचाने का कोई उपाय बता दीजिए।”
परी, “ये लो, ये जादुई मोती है। इसे मुँह में रखने से तुम गायब हो जाओगे।
तुम अपनी बात नागराज को कैसे समझाओगे, ये मैं नहीं जानती? पर मैं तुम्हारी इससे ज्यादा कोई भी मदद नहीं कर सकती।
तुम्हें खुद ही अपनी बुद्धि से काम लेना होगा।”
बाबूलाल, “अरे! ये क्या हो गया? घोर कलयुग है।
मैं तो राक्षसों को खाना दे कर आया और उन्होंने मुझे ये मृत्यु को बुलाने वाला दीपक दे दिया।”
निर्मला, “सुनिए जी, घबराइए नहीं। हमें हिम्मत से रहना पड़ेगा।
आपको पता है ना, नागपंचमी आने वाली है? चलिए हम गांव का सारा दूध खरीद लेते हैं।”
बाबूलाल और निर्मला ने दीपक को गांव के बाहर नाग के बिल के पास रख दिया और गांव का सारा दूध खरीदकर घर के अंदर छुप गए। कुछ ही देर में दीपक नागलोक के सांपों को मिल गया।
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नागराजा, “हमारे दीपक को जरूर किसी मनुष्य ने छुआ है। उसके अंदर से मनुष्य की गंध आ रही है।
जिसने हमारे दीपक को चुराकर नागलोक में अंधेरा करने की कोशिश करी है, उसे हम कभी नहीं छोड़ेंगे। उसे इस घनघोर अपराध की सजा जरूर मिलेगी।”
सभी नाग बाबूलाल की खुशबू को सूंघते हुए उसके घर की तरफ चल पड़े। दूर से ही सांपों की फुंफकार की आवाज आने लगी।
बाबूलाल, “सभी गांव वालों, आप सभी एक एक कटोरा दूध मेरे घर के चारों तरफ रख दीजिए और सभी अपने अपने घरों के दरवाजे बंद करके अंदर छुप जाए।
जब तक मैं ना कहूं, कोई बाहर नहीं आए। गांव पर एक भयानक संकट आया है, लेकिन मैं आप सब को इस संकट से बचा लूँगा।”
सभी गांव वाले बाबू लाल के घर के चारों तरफ दूध ही दूध रख देते हैं। निर्मला पूजा की सामग्री लेकर बाहर बैठ जाती है।
जैसे ही सांप घर की तरफ आते हैं वो कुमकुम, रोली, चंदन से उनका टीका करने लगती है और दूध का प्रसाद देती है।
नागराजा, “हम जानते हैं तुम हमारे अपराधी की पत्नी हो और उसे बचाना चाहती हो।
देखो बेटी, हम तुम्हें कुछ भी नहीं करेंगे बस तुम हमारे अपराधी को हमारे हवाले कर दो।”
निर्मला घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लेती है।
नागराज, “इंसानों की पत्नियां इतनी आसानी से अपने पति को हमारे हवाले नहीं कर सकती। सैनिकों, आप सभी अपने फन से इस दरवाजे को तोड़ दीजिये।”
नागराज के हुकुम से सभी नाग अपने फनों को बाबूलाल के दरवाजे पर मारने लगते हैं और उनके विश से बाबूलाल का दरवाजा नीला पड़ जाता है।
तभी बाबूलाल मुँह में परी का दिया हुआ मोती रखकर अदृश्य हो जाता है और बाहर निकलता है।
बाबूलाल, “नागराज आपकी जय हो, आप अपनी पूरी सेवा के साथ हमारे घर में आए हैं। मैं तो धन्य हो गया कि मुझ जैसे साधारण इंसान को आपके दर्शन हुए।”
नागराज, “मानव, तुमने हमारे दीपक को छूकर बहुत बड़ा अपराध किया है। तुम्हें इसका दंड जरूर मिलेगा।”
बाबूलाल, “महाराज, मैं एक गरीब और कमजोर लकड़हारा हूँ। लकड़ियां काटकर पेट पालता हूँ।
भला मुझमें इतनी हिम्मत कहां कि आपका दीपक चुरा सकूँ?
मैं तो लकड़ियां काटने जंगल में गया था। दो राक्षसों के पास मैंने यह दीपक रखा हुआ देखा।”
नाग, “ये सच कह रहा है महाराज, दो राक्षसों से ही इसने दीपक छीना था।”
नागराज, “अगर यह सच है तो भला तुम इतने कमजोर इंसान राक्षसों से दीपक कैसे ले आए?”
बाबूलाल, “महाराज, जैसे ही मुझे पता चला ये दीपक नागलोक का है, मैंने अपने प्राणों की बाजी लगा दी और दीपक लेकर घर आ गया।
क्योंकि मुझे पता था कि आप दीपक को ढूंढ़ते हुए जरूर आएँगे और मुझे दर्शन देंगे। मैं आपका बहुत बड़ा भक्त हूँ।”
नागराज, “अगर तुम इतने ही सच्चे हो, तो हमारे सामने आकर बात क्यों नहीं करते?”
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बाबूलाल, “महाराज, पहले आप दूध ग्रहण कीजिए। मैं आपके सामने ही हूँ।
परियां भी मेरी सच्चाई जानती थीं। उन्होंने मुझे जादुई मोती दिया ताकि आपके सामने आने का साहस जुटा सकूँ।”
बाबूलाल ने अपने मुँह से परी का दिया हुआ जादुई मोती बाहर निकाल दिया और नागराज के सामने नजर आने लगा।
नागराज, “तुम तो सचमुच बड़े ही निर्बल दिखाई देते हो, फिर भी तुमने राक्षसों से युद्ध करके हमारा दीपक वापस ले आए।
हम तुमसे बहुत खुश हैं। आज के बाद हमारे गांव के नाग इस गांव की रक्षा करेंगे।”
मुखिया, “अपनी चतुराई से पूरे गांव की रक्षा की है और आज से नागलोक भी हमारा दोस्त बन गया है। इसलिए हम बाबूलाल को इस गांव का मुखिया बनाते हैं।”
इस तरह बाबूलाल ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके पूरे गांव की रक्षा की
और बदले में नागराज से हीरे, मोती, जवाहरात का उपहार भी पाया और गांव का मुखिया भी बन गया।
दोस्तो ये Jadui Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!