हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई कालीन ” यह एक Jadui Story है। अगर आपको Hindi Magical Stories, Jadu Wali Kahani या Jadui Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
धन्नू के परिवार में पत्नी मीना और उनकी दो बेटियां, रीमा और सीमा थीं। लेकिन धन्नू को बेटे की चाह थी, जो उनकी देखभाल कर सके।
हर तरह के उपाय करने के बाद जब वह निराश हो गए, तो एक साधु ने उन्हें सलाह दी।
साधु, “देखो बेटा, तुम्हारी कुंडली में पूर्व जन्म का दोष है, लेकिन यदि तुम जंगल में रहकर जीव-जंतुओं की सेवा करो, तो बेटा जरूर प्राप्त होगा।”
साधु की बात मानकर धन्नू अपने परिवार के साथ गांव से दूर अकेले जंगल में रहने लगा।
एक दिन धन्नू अपनी पत्नी से बोला, “अजी, सुनती हो? जंगल में माता कपालिका का मंदिर है।
सुना है, बड़ी जागृत देवी हैं। आज से मंदिर में रोज़ पूजा-अर्चना करेंगे। शायद माता के आशीर्वाद से तुम्हारी गोद भर जाए।”
इसके बाद दोनों माता कपालिका के मंदिर में सुबह-शाम पूजा-आरती आदि करने लगे और माता से बेटे की दुआ मांगने लगे।
पर कई बरस बीत जाने के बाद भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
एक दिन, मंदिर में एक घायल हिरण आया और बोला, “तुम दोनों ने मेरी बहुत सेवा की।”
धन्नू, “जीवों की सेवा और माँ की पूजा ही मेरा धर्म है।”
हिरण, “जीव सेवा और माँ सेवा से माँ बहुत खुश हैं। मैं माँ का दूत हूँ। मधुबनी में माँ का त्यौहार मनाया जा रहा है।
बहुत बड़ा मेला लगा हुआ हैऔर उस मेले में दूर-दूर से ज्ञानी, विज्ञानी, जोकर, जादूगर और भविष्यवक्ता आए हुए हैं।”
मीना, “अरे भैया! हम वहाँ जाकर क्या करेंगे? वैसे भी अब जिंदगी में क्या रखा है? बेटियों की शादी हो जाएगी। हमें मेलों में जाने का कोई चाव नहीं है।”
हिरण, “अरे बेटी! क्यों हिम्मत हारती हो? मेले में आने वाले जादूगर और भविष्यवक्ता मनोरंजन के साथ ही साथ लोगों की समस्या का समाधान भी कर रहे हैं।
मुझे पूरा विश्वास है कि तुम वहाँ जाकर अपनी समस्या बताओगी, तो तुम्हें उसका समाधान जरूर मिलेगा।”
धन्नू, “अरे मीना! इतने उपाय तो कर चुके। अब जब इसके बारे में पता चला है, तो मेले में जाकर आए हुए ज्ञानियों से भी मिल लेते हैं। शायद वही हमें बताएं कि हमें पुत्र रत्न की प्राप्ति कब होगी?”
पति की बात सुनकर अगले दिन सुबह सभी मेले में भाग लेने के लिए गांव की तरफ चल पड़े।
रास्ते में खाने के लिए धन्नू की पत्नी ने कुछ रोटियां और अचार एक पोटली में बांधकर रख लिया था। कुछ घंटों के बाद ही उन्हें भूख लगने लगी।
रीमा, “माँ, बहुत ज़ोर से भूख लगी है।”
सीमा, “हाँ पिताजी, इस घने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर क्यों न आराम भी कर लें और खाना भी खा लें?”
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वे सब घने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाने लगे।
खाने की पोटली खोलते समय धन्नू की पत्नी बोली, “हम सब तो एक-एक खाएंगे, पर छोटी बेटी को जब भूख लगती है, तो वह कुछ नहीं छोड़ती, सब खा जाती है।”
यह सुनकर सब ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे।
पीपल के उस बड़े पेड़ के नीचे जहां वे बैठकर खाना खा रहे थे, परी रानी के दिए शाप के कारण वहां कुछ परियां रहती थीं।
उन्होंने सोचा, “शायद इन लोगों को हमारे बारे में पता हो गया है और हमें ही खाने की बात कर रहे हैं।”
वो सब बहुत डर गईं और एक परी चिड़िया के रूप में उनके सामने आकर बोली, “क्यों, खाना चाहते हो?”
रीमा, “हम रूखे हैं। भूख लगी है, तो खाना ही पड़ेगा।”
परी, “तो क्या सब खा जाओगी?”
सीमा, “हाँ, मैं तो सब खाऊंगी।”
परी, “फिर तुम सब तो एक-एक खाओगे, पर तुम्हारी बेटी तो सब खा जाएगी। हम सब बहुत भयभीत हैं।”
गरीब धन्नू के परिवार को कुछ समझ नहीं आया कि चिड़िया क्या बोल रही है।
परी, “आखिर तुम्हारी परेशानी क्या है?”
धन्नू, “हमें जल्दी खाकर गांव की तरफ जाना है और जादूगर से मिलना है। रात होने वाली है, अब हम और रुक नहीं सकते।”
मीना, “हां, अब हम खाना शुरू करेंगे। अब हम नहीं रुक सकते।”
परी, “हम चार परियों को हमारे पाप की सजा मिल चुकी है, इसलिए हम इस पेड़ पर रहती हैं।
अगर तुम कुछ भी न खाओ, तो मैं तुम्हें एक जादुई गलीचा दे सकती हूँ। वो तुम्हें जहाँ चाहे ले जाएगा, पर तुम खाओगे तो नहीं?”
धन्नू को कुछ समझ में नहीं आया कि परियां ये सब क्यों कह रही हैं।
फिर भी उसने परियों से कहा, “ठीक है ठीक है, तुम वो जादुई गलीचा हमें दे दो, हम नहीं खाएंगे।”
परियां अपने असली रूप में आईं और सुनहरे रंग का खूबसूरत गलीचा परिवार को दे दिया और गायब हो गईं।
सब ने चुपचाप गलीचे पर बैठकर खाना खाया और गलीचा लेकर चल दिए मधुबन की ओर।
सीमा, “पिताजी, गलीचा होते हुए भी भला हम पैदल क्यों जा रहे हैं?”
धन्नू, “पता नहीं ये गलीचा सच्चा है या झूठा।”
रीमा, “पिताजी, क्यों न इस गलीचे की परीक्षा की जाए?”
सभी गलीचे पर बैठ गए और उन्होंने गलीचे से कहा, “गलीचे, हमें मधुबनी गांव पहुंचा दो।”
यह कहने की देर थी कि गलीचा उड़ चला और कुछ ही मिनटों में गलीचे नेउन लोगों को मधुबनी गांव पहुंचा दिया।
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इतनी जल्दी मधुबनी पहुँचकर वे सब बहुत खुश हुए और उन्हें यह भी विश्वास हो गया कि गलीचा सचमुच ही जादुई है।
मीना, “अजी देखिए तो, गांव में तरह-तरह के लोग अपनी कलाएं दिखा रहे हैं। राजनृत्यिकी भी आई हुई है।”
धन्नू, “अरे भाग्यवान! हमें इन सबसे क्या काम? हमें तो पुत्र रत्न चाहिए।”
तरह तरह के रंग बिरंगी रौशनी झूले और विभिन्न प्रकार के लोगों की दुकानें देखते देखते सबसे आखिर में उन्हें जादूगर सोनकर की डरावनी झोपड़ी दिखी।
ये काले रंग की थी जिस पर तरह तरह के रंग बिरंगे नाग बने हुए थे और छोटे छोटे दिये इसके आसपास जल रहे थे। झोपड़ी दिखने में बहुत ही डरावनी लग रही थी।
धन्नू, “डरो नहीं, यही जादूगर सोनकर है। यही हमारी समस्याओं का समाधान करेगा। हिम्मत से काम लो और झोपड़ी के अंदर चलो।”
जादूगर सोनकर जानवरों की हड्डियों के साथ हवन कर रहा था। उसके माथे पर लाल रंग का बड़ा टीका था, बदन पर लाल धोती और गले में हड्डियों की माला थी।
जादूगर, “बोलो धन्नू, क्या चाहते हो?”
अपना नाम सुनकर धन्नू हैरान रह गया और बोला, “आपकी जय हो! महाराज, आप भला मेरा नाम कैसे जानते हैं?
अब तो मुझे पूरा विश्वास हो गया है कि आप सर्वज्ञाता हैं। आपको तो मेरी समस्या का भी पता ही होगा। दया करके मुझे समाधान दीजिए।”
जादूगर, “अगर तुम मुझे अपनी दोनों बेटियों में से एक बेटी दे दो, तो मैं तुम्हें पुत्र होने का वरदान दे दूंगा।”
धन्नू ये सुनकर बहुत सोच में पड़ गया क्योंकि वो अपनी दोनों बेटियों को बहुत प्यार करता था।
लेकिन उसकी बेटियां ये सब सुन रही थी और उन्हें पता था कि उनके माता पिता बेटे की चाह में बहुत परेशान हैं।
रीमा, “महाराज, मैं आपकी सेवा में आने को तैयार हूँ।”
सीमा, “नहीं महाराज, रीमा दीदी को माँ-बाप की रक्षा के लिए उनके पास रहना ज़रूरी है।
मैं आपके पास आने को तैयार हूँ। आप पिताजी को पुत्र का वरदान दीजिए।”
अपनी बेटियों की बात सुनकर धन्नू को यह समझ में आ गया कि उसकी बेटियां भी बेटों के समान ही उसकी रक्षा करने के लिए तत्पर हैं और उसने बेटा पाने का विचार त्याग दिया।
धन्नू, “महाराज, आप महान हैं, बहुत दयालु हैं। किंतु मैं पिता हूँ और मैं अपनी बेटियों के बदले बेटे का वरदान नहीं लेना चाहता। मैं अपनी बेटियों के साथ ही खुश हूँ।”
पर जादूगर सोनकर एक बहुत ही खतरनाक व्यक्ति था।
उसने कहा, “तुम्हें बेटा चाहिए या नहीं? किंतु तुम्हें अब अपनी बेटियों का दान करके ही जाना होगा।”
धन्नू, “ठीक है महाराज, मैं आपको सिर्फ अपनी बेटियां ही नहीं बल्कि अपने पूरे परिवार का दान करता हूँ और ताउम्र आपकी सेवा करूँगा।
किंतु मुझे कुछ समय दे दीजिए ताकि मैं अपने बच्चों को यह मेला दिखा सकूँ। उसके बाद मैं वापस आकर आपकी झोपड़ी में परिवार के साथ आ जाऊंगा।”
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जादूगर, “ये अकेला और कमजोर व्यक्ति भला कैसे भाग पाएगा और मुझसे कैसे बच पाएगा?”
उसने धन्नू के परिवार को मेला देखने की इजाजत दे दी। सोनकर की झोपड़ी से बाहर आते ही धन्नू का परिवार कुछ दूर जाकर तुरंत जादुई गलीचा निकाला
और उस पर बैठकर सीधे परियों के पास पहुंचा। उन्होंने परियों को अपने साथ हुई पूरी घटना बताई और उनसे प्रार्थना की।
धन्नू, “परियों, अगर आप हमें उस जादूगर से बचा पाईं तो…”
परियों ने धन्नू को एक जादुई फल दिया और बोली।
परियां, “जाओ… जादूगर बहुत शक्तिशाली है। तुम्हें उसके पास तो जाना ही पड़ेगा।
पर यह जादुई फल अगर तुमने उसे खिला दिया, तो वह अपना पूरा जादू भूल जाएगा और यह भी भूल जाएगा कि वह तुम्हें जानता है।
तुम इस जादुई गलीचे पर बैठकर वापस अपने घर चले जाना और यह गलीचा हमेशा अपने पास रखना।”
अगले दिन सुबह ही धन्नू जादुई फल अपने हाथों में ले गलीचे पर बैठकर मधुबनी गांव पहुंचा और सोनकर की झोंपड़ी में जाकर बोला।
धन्नू, “मालिक, मैं आ गया और आपके लिए अपने सबसे अच्छे फल के पेड़ से आपके लिए सबसे मीठा फल लाया हूँ।”
ये सुनकर जादूगर बहुत खुश हुआ और धन्नू से बोला,
जादूगर, “हम्म… बहुत अच्छा। लाओ, यह मुझे दो। खाकर देखता हूँ, कितना मीठा है?”
उसने फल खा लिया और सोनकर बेहोश हो गया। धन्नू परियों के कहे अनुसार गलीचे पर बैठकर वापस अपने घर चला गया। घर पहुँचकर उसने देखा कि रीमा तो वहीं रह गई थी।
कुछ समय बाद जादूगर होश में आ गया। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कर सकता है?
जादूगर, “काश, धन्नू की बेटी मेरे साथ रहती तो बहुत अच्छा होता।”
जादूगर, “अरे! तुम वहां? तुम मुझे उदास लग रही हो।”
रीमा, “हाँ, देखो ना… मैं तुम्हारे पास भी आ गई। लेकिन फिर भी तुमने मेरे माता-पिता को पुत्र होने का आशीर्वाद नहीं दिया।”
जादूगर, “तुम चिंता मत करो, जल्दी ही तुम्हारे माता-पिता को एक अच्छा सा बेटा पैदा होगा। लेकिन तुम मेरा साथ मत छोड़ना।”
रीमा, “मैं यहाँ क्या करूँ? मुझे कोई काम नहीं। माँ-पिताजी भी चले गए। मुझे तो ऐसा लगता है कि कोई मुझे अपने साथ नहीं रख सकता।”
जादूगर, “लेकिन तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। मैं तुम्हें एक जादूगरनी बनाऊँगा और मेरे बुढ़ापे में तुम ही मेरी देखभाल करोगी, समझी?”
रीमा, “हाँ, क्यों नहीं? मैं बिल्कुल तैयार हूँ। मेरे माता-पिता ने मुझे यहाँ छोड़ दिया, लेकिन आपने मुझे सहारा दिया है। अब आप ही मेरे मालिक हैं।”
रीमा की बात सुनकर जादूगर बहुत खुश हुआ और रीमा को लेकर वहाँ से चला गया।
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रीमा को बहुत ढूँढने के बाद भी वो जब नहीं मिली, तो कुछ दिन बाद धन्नू के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ। लेकिन रीमा के गम में धन्नू और उसकी पत्नी ने दम तोड़ दिया।
सीमा ने अपने भाई दिवाकर को पाल-पोसकर बड़ा किया।
सीमा, “अब तुम बहुत बड़े हो गए हो। हमें जादूगर सोनकर को ढूँढकर अपनी बहन को वापस लाना है।”
दिवाकर, “लेकिन दीदी, हमें रीमा बहन का पता कैसे चलेगा? इतने सालों से मैंने महर्षि महुवा की रात-दिन सेवा की है
और उनकी समाधि टूटने पर वह हमें अपनी दिव्य दृष्टि से रीमा का पता बताएंगे।”
कुछ दिनों बाद महर्षि महुवा की तपस्या टूटी और वह सीमा की सेवा से खुश होकर बोले।
महर्षि, “बोलो बेटी, तुम्हें क्या चाहिए?”
सीमा, “गुरुजी, मैं सिर्फ अपनी बहन रीमा का पता लगाना चाहती हूँ।”
महर्षि, “तुम्हारी बहन रीमा तुम सबको भूल चुकी है और जादूगर सोनकर ने उसे एक बहुत बड़ी जादूगरनी बना दिया है।
इस समय वह बहुत बूढ़ा हो गया है, लेकिन रीमा सारी मानव जाति पर अपने जादू से जुल्म कर रही है।”
दिवाकर, “महर्षि, हमारी बहन हमें कैसे पहचानेगी?”
महर्षि, “बच्चो, परी के दिए हुए जादुई गलीचे को देखकर ही उसे सब कुछ वापस याद आ जाएगा।
तुम तीनों को मिलकर उस जादूगर को मृत्यु के घाट उतारना होगा, वरना वो मानव जाति को खत्म कर देगा।”
ऋषि के बताए हुए पते पर जब वो पहुंचे, तो देखते हैं कि जादूगरनी रीमा का महल जंगल के बीचों-बीच हवा में बना हुआ था। उसने सारे पेड़-पौधों को मिट्टी का बना दिया था।
जैसे ही सीमा और दिवाकर जंगल में पहुंचे, रीमा को पता चल गया।
रीमा, “पिताजी, दो मानव हमारी जादू नगरी में आए हैं। अभी इनको मज़ा चखाती हूँ।”
दिवाकर जैसे ही महल के पास पहुंचता है, रीमा उसे भी मिट्टी का बना देती है।
सीमा, “हे भगवान! रीमा को जब तक पता चलेगा कि हम उसकी तलाश में आए हैं, तब तक कहीं देर ना हो जाए?
मैं महर्षि के कहे अनुसार जादुई गलीचे पर बैठ जाती हूँ, शायद वो मुझे पहचान जाए।”
सीमा को जादुई गलीचे पर बैठे देख, रीमा को सब याद आ जाता है।
रीमा, “सीमा, ये तुम हो? मैं तुम लोगों को बचाने के लिए यहाँ रुक गई थी। माँ-पिताजी कैसे हैं?”
सीमा, “बहन, पिताजी ने तुम्हें बहुत ढूंढा, तुम नहीं मिली। अब हमारा एक भाई है। लेकिन तुम्हारे गम में माँ और पिताजी स्वर्गवासी हो गए।”
रीमा, “भाई? वो हमारा भाई है? लेकिन जादूगर उसकी बलि देने जा रहा है कल, क्योंकि कल उसका जन्मदिन है और यह आखिरी बलि देते ही वो अमर हो जाएगा!”
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सीमा, “नहीं नहीं, उसे बचा लो बहन, दिवाकर को बचा लो।”
रीमा, “तुम मेरी जादुई छड़ी लेकर सुमेरु पर्वत पर चली जाओ। वहाँ एक मोर तुम्हें नाचता हुआ मिलेगा।
उसका एक पंख तोड़कर जला देना, ऐसा करते ही जादूगर के जादू से सब मुक्त हो जाएंगे। वो साधारण आदमी बन जाएगा। तब तक मैं भाई की रक्षा करूँगी।”
सीमा छड़ी लेकर उड़ती हुई पर्वत पर पहुंचती है। उसे नाचता हुआ मोर दिखता है।
रीमा, “पिताजी, आज मैं आपको यह शरबत पिलाना चाहती हूँ।”
जादूगर, “पहले बली चढ़ा के मानव का खून पीऊंगा, फिर शरबत।हा हा हा… तू मुझे मूर्ख नहीं बना सकती, पगली।
वो तेरा भाई है। तू मुझसे बदला लेना चाहती है? ये देख, तेरी बहन मेरे पास है।”
तभी अचानक महल की सभी चीजों से जादू उतरने लगता है। जवान जादूगर भी बूढ़ा नजर आने लगता है।
रीमा, “मैंने तो आपको मूर्ख बना दिया, पिताजी। आप क्या समझते हैं? मुझे पता था कि आप यह जान जाएंगे कि मुझे सब याद आ गया है।
आप जिसे मेरी बहन समझ कर पकड़कर यहाँ ले आए हैं, वो मेरी जादुई शक्ति है। मेरी बहन ने तो अपना काम कर दिया है। ये देखिए, आप अपने असली रूप में आ गये।
अब मरने के लिए तैयार हो जाइए। अब आपके अंदर कोई भी जादुई शक्ति बाकी नहीं है।”
दिवाकर, “बहन! मेरे होते हुए तुम्हें यह करने की कोई जरूरत नहीं है। माता और पिताजी का बदला इस जादूगर से मैं लूँगा।”
रीमा दिवाकर को गले से लगा लेती है और उसके हाथों में एक जादुई तलवार दे देती है।
तभी जादुई गलीचे पर बैठकर सीमा भी वहाँ आ जाती है और जादुई गलीचा दिवाकर को दे देती है।
जादूगर जादू की शक्ति से उड़ने लगता है।
रीमा, “दिवाकर, जादुई गलीचे पर बैठकर इस पापी का अंत कर दो।”
और दिवाकर जादुई गलीचे पर बैठकर जादूगर का पीछा करता है।
दिवाकर, “अब मुझसे नहीं बच पाओगे तुम दुष्ट। मरने के लिए तैयार हो जाओ।”
जादूगर, “नहीं… आआआआह।”
और अंत में जादुई तलवार से उसका सिर काट देता है।
जादूगर का अंत होते ही सभी मुक्त हो जाते हैं। रीमा- सीमा अपने भाई दिवाकर के साथ खुशी-खुशी अपना जीवन बिताने लगते हैं और जादुई गलीचे को हमेशा अपने साथ रखते हैं।
दोस्तो ये Jadui Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!