भूतिया ऑटोरिक्शा | BHUTIYA AUTO RICKSHAW | Bhutiya Kahani | Bhutiya Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया ऑटोरिक्शा ” यह एक Bhutiya Kahani है। अगर आपको Hindi Bhutiya Kahani, Bhutiya Stories या Bhoot Wali Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


सुधीर कई सालों बाद अपने गांव आता है। बस से उतरकर गांव की चौपाल पर पहुँच जाता है। वहाँ पर कुछ लोग बैठकर बातें कर रहे थे।

सुधीर, “अरे राम-राम काका, कैसे हो?”

काका, “अरे भाई! मैं तो बढ़िया हूँ, पर मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।”

सुधीर, “अरे काका! मैं रामनारायण जी का पोता, सुधीर।”

काका, “अरे! अच्छा अच्छा, कितना बड़ा हो गया है? पहचान में ही नहीं आ रहा, भैया।”

फिर सुधीर वहाँ से निकल जाता है। गांव के आदमी आपस में बातें कर रहे थे।

आदमी, “अरे हाँ भैया, मैंने भी उस रहस्यमयी ऑटो रिक्शा के बारे में सुना है। क्या सच में वहाँ वो ऑटो रिक्शा आता है?”

सुधीर अपने बीमार दादा के पास पहुँचता है, जो कि एक घाट पर लेटे हुए थे।

सुधीर, “दादाजी!”

दादाजी, “अरे बेटा! तू आ गया?”

सुधीर, “मुझे माफ़ कर दीजिए दादाजी, मुझे आने में बहुत देर हो गई। अब जल्दी से आप ठीक हो जाइए।

मैंने जैसे ही खबर सुनी कि आप बीमार हैं, मैं पहली गाड़ी लेकर ही यहाँ आ गया।”

दादाजी, “अरे! कोई बात नहीं, बेटा। अब तू आ गया है न, तो मैं बहुत जल्दी ठीक हो जाऊँगा।

तू बहुत थक गया होगा, जाकर हाथ-मुँह धो ले बेटा और खाना खा ले।”

सुधीर हाथ धोने के लिए उठता ही है, तब उसे चौपाल के आदमियों की बात याद आती है, तो वह वहीं रुक जाता है।

सुधीर, “अरे दादाजी! मैं जब यहाँ आया था, तब चौपाल पर कुछ लोग किसी ऑटो रिक्शा के बारे में बात कर रहे थे।”

दादाजी, “हा हा हा… तो ये ऑटो रिक्शा की कहानी अभी भी गांव में चर्चित है?”

सुधीर, “क्या मतलब?”

दादाजी, “हाँ बेटा, ये ऑटो रिक्शा की कहानी तो बहुत सालों से गांव में फेमस है।

लोग कहते हैं कि गांव की काली पहाड़ी पर एक ऑटो रिक्शा है, जो हमें किसी दूसरी दुनिया में लेकर जाता है।

पर अब ये बात कितनी सही है, कितनी गलत, ये तो मुझे भी नहीं पता। और लोग कहते हैं कि काली पहाड़ी पर रात को ऑटो रिक्शा के चलने की आवाज भी आती है।

पर तू इन सब पचड़ों में मत पड़ और हाथ-मुँह धोकर खाना खा ले, जा।”

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फिर सुधीर वहाँ से चला जाता है, लेकिन रात को सोते वक्त उसे नींद नहीं आती और वह ऑटो रिक्शा के बारे में सोचता है।

सुधीर (सोचते हुए), “क्या सच में कोई ऑटो रिक्शा है, जो दूसरी दुनिया में लेकर जाता है?

अगर ऐसा हुआ, तो ये तो मेरी न्यूज एजेंसी के लिए बहुत बड़ी खबर बन सकती है। मुझे पता लगाना ही पड़ेगा।”

फिर सुधीर उठकर काली पहाड़ी की तरफ बढ़ जाता है।

सुधीर, “यहाँ तो मुझे कोई ऑटो रिक्शा नहीं दिख रहा। थोड़ी देर यहीं रुककर इंतजार करता हूँ।”

इंतजार के बाद…
सुधीर, “3 बज गए, अभी तक तो कोई ऑटो रिक्शा नहीं आया। खैर, मुझे लगता है कि ये सच में कोई कहानी है।”

सुधीर घर के लिए आगे बढ़ता है, तभी उसे रिक्शा चलने की आवाज आती है। वो वहीं रुक जाता है।

सुधीर, “अरे! रिक्शा की आवाज।”

फिर वो आसपास देखता है, पर उसे कोई रिक्शा नहीं दिखता। वो आवाज को ध्यान से सुनता है, तो ये आवाज पहाड़ी के अंदर से आती सुनाई देती है।

सुधीर, “अरे! ये आवाज तो पहाड़ी के अंदर से आ रही है। तो क्या वो रिक्शा…?”

फिर वो आवाज का पीछा करते हुए पहाड़ी पर चढ़ने लगता है।

चढ़ते-चढ़ते वो पहाड़ की चोटी पर चढ़ जाता है। पहाड़ी पर चढ़कर उसे बड़ा सा पत्थर दिखता है।

सुधीर, “अरे! ये आवाज तो इस बड़े से पत्थर के पीछे से आ रही है।”

फिर सुधीर उस बड़े से पत्थर को हटाने की कोशिश करता है। बहुत कोशिश के बाद वो पत्थर हटा देता है। उसे वहाँ एक रास्ता दिखाई देता है, जो नीचे की तरफ जाता है।

सुधीर, “बड़ा अजीब सा है… पहाड़ी की चोटी पर रास्ता? खैर जो भी है, अगर रिक्शा के बारे में पता लगाना है तो नीचे तो जाना ही पड़ेगा।”

सुधीर आवाज का पीछा करते हुए नीचे पहुँचता है। तब उसे कुछ दूर पर एक ऑटो रिक्शा दिखाई देता है।

सुधीर, “अरे! शायद यही वो रहस्यमयी ऑटो रिक्शा है। पर अजीब बात है, इस पहाड़ी की चोटी पर ये रिक्शा क्या कर रहा है?

चलो कोई बात नहीं, कोई तो आगे दिखेगा ही। जो भी इस रिक्शा को चलाता होगा, मैं उसी से कुछ बातचीत करके पता लगाने की कोशिश करूँगा।”

ऐसा कहकर सुधीर ऑटो रिक्शा के पास जाता है।

सुधीर, “अरे! यहाँ तो कोई भी नहीं है। ओ भैया! कोई है? कोई है भैया? हेलो…!”

तभी ऑटो रिक्शा अपने आप चालू हो जाता है। सुधीर बहुत डर जाता है।

सुधीर, “अरे! ये क्या हुआ? ये रिक्शा अपने आप कैसे चालू हो गया? कोई है… कोई है?”

और रिक्शा अपने आप चलने लगता है। सुधीर बहुत डर जाता है। वो पसीने से लतपथ हो जाता है।

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सुधीर, “ओह भाई साहब! आप जो भी हो, इस रिक्शा को रोक दीजिए और मुझे यहीं पर उतार दीजिए। मैं कभी भी यहाँ पर नहीं आऊँगा, सच में।”

रिक्शा अपने आप गोल-गोल चक्कर लगाने लगता है। सुधीर और भी ज्यादा डर जाता है।

सुधीर आँखें बंद करके ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगता है। तभी रिक्शा अचानक बंद हो जाता है।

सुधीर जैसे ही अपनी आँखें खोलता है, वैसे ही वह खुद को किसी और ही दुनिया में पाता है।

सुधीर, “अरे! ये क्या? मैं तो अभी उस गुफा में था, मैं यहाँ कैसे पहुँच गया? और… और ये कौन सी जगह है? इसका मतलब है कि गाँव वाले सच कहते थे।”

वो कुछ दूरी पर चलता है तो उसे एक पेड़ दिखता है, जो पूरा सूखा हुआ होता है।

सुधीर, “अरे! ये क्या? इस पूरी जगह पर हरियाली है, पर बीचो-बीच ये पेड़ इतना सूखा और इसके आसपास भी सूखा?”

वो उस पेड़ के पास पहुँच जाता है। तभी अचानक बारिश होने लगती है।

सुधीर, “अरे! इस पूरी जगह पर बारिश हो रही है, पर इस पेड़ के पास नहीं? पर यहां नहीं… ये कैसे हो सकता है?”

रहस्यमयी आवाज, “क्योंकि यहाँ पर मैं हूँ।”

सुधीर, “अरे! आवाज तो यहीं से आ रही है, पर यहाँ तो मुझे कोई नहीं दिखाई दे रहा।”

आवाज, “अरे! तुम्हारे पीछे देखो, मैं यहीं तो खड़ा हूँ।”

सुधीर पीछे पलटकर देखता है तो उसे कोई नहीं दिखता।

सुधीर, “कहीं कोई भूत तो नहीं? अरे! भूत… भूत भाई साहब! मैं जाने-अनजाने में यहाँ पर आ गया हूँ, मुझे माफ़ कर दो।

मैं यहाँ से चला जाऊँगा, पर मुझे यहाँ से निकलने का रास्ता बता दो।”

आवाज, “अरे मंदबुद्धि! मैं कोई तेरी अम्मा हूँ, जो डर लगने पर मुझसे लिपट गया?”

सुधीर, “अच्छा… तो तुम थे? पर तुम… मेरा मतलब है कि तुम कैसे बोल सकते हो? तुम तो एक पेड़ हो।”

पेड़ (हँसते हुए), “अरे भाई! मैं कोई पेड़ नहीं हूँ, मैं एक देवदूत हूँ।”

सुधीर, “पर तुम पेड़ कैसे बने?”

पेड़, “मैं एक देवदूत हूँ और मेरे पास एक मणि थी। उस मणि को एक राक्षस ने चुरा लिया, इस वजह से मेरी ये हालत हो गई है।

अगर तुम उस मणि को लाने में मेरी मदद कर दोगे, तो मैं तुम्हारी एक इच्छा पूरी कर सकता हूँ।”

सुधीर, “क्या तुम सच में मेरी एक इच्छा पूरी कर सकते हो? तो क्या तुम मेरे दादा जी की तबीयत ठीक कर सकते हो?”

देवदूत, “हाँ, बिल्कुल। पर तुम्हें उसके लिए मेरी मणि उस राक्षस से लानी होगी।”

सुधीर, “अच्छा ठीक है, पर मुझे वो राक्षस कहाँ मिलेगा?”

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देवदूत, “यहाँ से सीधे कुछ दूर जाने पर तुम्हें एक झरना दिखाई देगा। उस झरने के पार उस राक्षस की गुफा है।

उस गुफा में जाकर तुम्हें उस राक्षस को मारकर वो मणि लानी है।”

सुधीर, “पर मैं उस राक्षस को मारूँगा कैसे?”

देवदूत, “उस राक्षस ने अपने मुकुट में वो मणि धारण कर ली है। जब वो मणि सूर्य की रोशनी में आती है,

तो उसमें से एक दिव्य प्रकाश निकलता है और उस दिव्य शक्ति की वजह से वो राक्षस भस्म हो सकता है।

तुम्हें किसी तरह उस राक्षस को उसकी गुफा से बाहर निकालना होगा, बस।”

सुधीर, “ठीक है, मैं अभी वहाँ के लिए निकलता हूँ।”

ऐसा कहकर सुधीर वहाँ से निकल जाता है। कुछ दूर चलकर सुधीर को अहसास होता है कि झाड़ियों में से कोई उसकी तरफ आ रहा है

और ज़ोर-ज़ोर से चलने की आवाज़ आती है। पर वो उस आवाज़ को नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ता है।

फिर थोड़ी ही देर में उसके सामने एक मदमस्त हाथी दौड़ता हुआ आता है। सभी थपेड़ों को नष्ट करते हुए वह उसकी तरफ बढ़ रहा होता है।

सुधीर, “अरे बाप रे! यह हाथी तो मेरी तरफ ही आ रहा है और वह भी इतने गुस्से में।”

फिर सुधीर उसे देखकर भागने लगता है। हाथी उसके पीछे-पीछे आने लगता है। डर के मारे सुधीर एक पेड़ के पीछे छुप जाता है।

सुधीर, “अब इस हाथी से कैसे बचूं? अगर मैं इसके सामने गया तो यह एक ही बार में मेरा कचूमर बना देगा।”

सुधीर, “अरे! अचानक ये हाथी कैसे गिर गया? अरे बाप रे! इसको तो बहुत चोट लगी है और खून भी बह रहा है।

अच्छा… तो यह इसलिए इतने गुस्से में था।”

फिर सुधीर हाथी के पास जाता है और अपने कपड़ों से उसका खून साफ करता है और उस पर प्यार से हाथ फेरता है

और आसपास से कुछ पत्ते लेकर जख्मों पर पट्टी कर देता है।

सुधीर, “मेरे हाथी महाराज, आपको पट्टी तो लगा दी है। अब इतना दर्द नहीं होगा।”

ऐसा कहकर सुधीर वहाँ से चला जाता है।

कुछ समय बाद…

सुधीर, “इतनी देर हो गई, पर अभी तक कोई भी झरना नहीं मिला।”

वो थोड़ी और दूर तक चलता है। कुछ दूर चलने के बाद उसे एक पहाड़ दिखता है।

सुधीर, “झरना तो पहाड़ में से ही निकलेगा, तो इसका मतलब है कि मुझे यहीं कहीं आसपास झरना मिलेगा।”

सुधीर, “अरे! यहाँ पानी तो नहीं है, पर मेरे पैर कैसे गीले हो रहे हैं?”

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फिर वो ज़मीन को छूकर देखता है तो उसे पानी का सा अहसास होता है।

सुधीर, “अच्छा… इसका मतलब है कि ये झरना अदृश्य है। और इसका मतलब यह भी है कि उस राक्षस की गुफा यहीं कहीं आसपास है। अब मुझे वो गुफा ढूंढनी होगी।”

वो गुफा को ढूंढने के लिए चारों ओर देखता है, पर उसे गुफा नज़र नहीं आती।

सुधीर, “यह सब क्या हो रहा है?”

वो यह सब सोच ही रहा था कि उसके कपड़ों में जो हाथी का खून लगा था, वहां उसकी एक बूंद गिर जाती है। तभी अचानक झरना और पानी दिखाई देने लगते हैं।

सुधीर, “अरे, यह क्या..? अभी तो यहाँ कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था और अब अचानक…।”

तभी सुधीर देखता है कि झरने के अंदर से एक लंबी-सी ज़ुबान बाहर निकलकर एक पक्षी को निगल लेती है और वापस झरने में चली जाती है।

सुधीर, “इसका मतलब है कि झरने के अंदर ही गुफा है।”

फिर सुधीर झरने की तरफ बढ़ता है और झरना पार करके उस गुफा में चला जाता है।

गुफा में जाकर सुधीर चुपके से उस राक्षस को देखता है।

सुधीर, “अरे बाप रे! इतना खतरनाक राक्षस! इससे मैं मणि कैसे हासिल करूंगा?

लगता है ये सर पर जो मणि है, वो उस देवदूत की ही मणि होगी। पर वो मणि मैं हासिल कैसे करूँगा?”

सुधीर गुफा को देखता है। तभी वो राक्षस सुधीर को देख लेता है और उसके पास आ जाता है।

राक्षस, “तुझे क्या लगा कि तू मेरे इलाके में छुप जाएगा, तो मुझे पता नहीं चलेगा? आज तो मैं बड़े दिनों बाद इंसान का खून पिऊंगा।”

राक्षस सुधीर को पकड़कर ज़मीन पर पटक देता है।

सुधीर, “ऐ राक्षस! मुझे ये मणि दे दे।”

राक्षस, “ये मणि तेरी मौसी ने दी थी क्या, जो तू वापस लेने आया है?”

सुधीर, “तो क्या तेरी मौसी ने तुझे जन्मदिन पर गिफ्ट में दी थी? मुझे सब पता है, तूने यह मणि उस देवदूत से चुरा ली थी।”

राक्षस, “अच्छा… तो उस देवदूत ने तुझे मेरी सिफारिश लेकर मेरे पास भेजा है? पर तू ये नहीं जानता कि तू यहाँ से ज़िंदा नहीं बच पाएगा।”

सुधीर, “ये तेरी गलतफहमी है, राक्षस। ये मणि तो मैं तुझसे लेकर ही रहूंगा।”

राक्षस सुधीर को खाने के लिए आगे बढ़ता है, पर सुधीर उससे बचने के लिए इधर-उधर भागने लगता है।

तभी राक्षस सुधीर को पकड़ लेता है और दोनों हाथों से उसे ऊपर उठाकर ज़मीन पर गिरा देता है।

वह उसे खाने के लिए आगे बढ़ता है। सुधीर जैसे-तैसे खड़ा होकर फिर से भागने लगता है।

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सुधीर, “इस राक्षस को मैं इस गुफा से बाहर कैसे निकालूं? अगर मैं गुफा से बाहर निकलूंगा, तो ये राक्षस भी मेरे पीछे बाहर निकलेगा।”

सुधीर, “राक्षस, तू मुझे खाना चाहता है ना? ये ले, मैं तेरे सामने ही खड़ा हूँ।”

राक्षस, “आज तो मैं तुझे खा कर ही रहूंगा।”

सुधीर भागते-भागते उस गुफा के पार हो जाता है। राक्षस भी उसके पीछे-पीछे गुफा से बाहर निकल जाता है।

गुफा के बाहर निकलते ही मणि से बहुत तेज़ रोशनी निकलती है, जो राक्षस सहन नहीं कर पाता।

राक्षस दर्द से चिल्लाने लगता है और भस्म हो जाता है।

फिर सुधीर मणि को लेकर उस पेड़ के पास पहुँच जाता है।

देवदूत, “अरे! तुम मणि ले आए? अब इसे मेरे बीचो-बीच लगा दो।”

सुधीर उस मणि को पेड़ के बीचो-बीच लगा देता है और वो पेड़ फिर से देवदूत के भेष में आ जाता है और चारों ओर फिर से हरियाली हो जाती है।

देवदूत, “अब बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है? मेरे वादे के मुताबिक मैं तुम्हारी एक इच्छा पूरी कर दूंगा।”

सुधीर, “क्या तुम मेरे दादाजी की तबीयत ठीक कर सकते हो?”

वो देवदूत अपनी शक्तियों से सुधीर को एक जादुई जड़ी-बूटी देता है।

देवदूत, “ये लो ये जड़ी-बूटी, जैसे ही तुम अपने दादाजी को पिलाओगे, उनकी तबीयत ठीक हो जाएगी।”

सुधीर, “पर मैं यहाँ से वापस कैसे जाऊंगा?”

तभी वो ऑटो-रिक्शा फिर से सुधीर के सामने आकर खड़ा हो जाता है।

देवदूत, “तुम इस ऑटो-रिक्शा में बैठकर वहीं पहुँच जाओगे, जहाँ से तुम आए थे।”

सुधीर ऑटो-रिक्शा में बैठकर अपने गाँव पहुँच जाता है और अपने दादा को सारी बातें बताता है और उन्हें जड़ी-बूटी खिला देता है।

धीरे-धीरे उसके दादा की तबीयत ठीक होने लगती है।


दोस्तो ये Bhutiya Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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