हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ शैतान बाबा ” यह एक Real Crime Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Saas Bahu Ki Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Saitan Baba | Saas Bahu Story| Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Hindi Stories
शैतान बाबा
सुकन्या के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसके कपड़े खून से सने हुए थे, चेहरे पर भी खून ही खून दिखाई दे रहा था।
उसके खुले हुए बाल तेज हवा में लहरा रहे थे। उसके हाथ में एक प्लास्टिक की थैली थी।
उस थैली को लिए वह सड़क पर चली जा रही थी। उस प्लास्टिक की थैली से भी खून की बूंदें टपक रही थी।
उस रास्ते से गुजरते हुए जिसने भी सुकन्या को देखा, उसके हाथ पैर फूल गए। लोगों में एक अनजाना भय दौड़ गया।
औरत,” हे भगवान ! कौन है ये औरत ? इसके शरीर पर खून की बूंदें कैसी ? और ये प्लास्टिक के इस थैली में क्या लिए जा रही है ? “
लोगों के मन में बहुत सारे सवाल थे। लेकिन उन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं था। सुकन्या सड़क पर चले जा रही थी, चली जा रही थी।
कुछ देर के बाद वह शहर के सबसे बड़े पुलिस स्टेशन में प्रवेश कर दी। उस पुलिस स्टेशन का नाम था मायागंज पुलिस स्टेशन। पुलिस स्टेशन में उसके प्रवेश करते ही वहाँ भी हड़कंप मच गया।
हवलदार,” अरे ! कौन है ये औरत ? इसका कहीं एक्सीडेंट हो गया क्या, या कहानी कुछ और है ? “
वे दोनों हवलदार बातें कर ही रहे थे कि सुकन्या उनके पास आई और उनसे बोली।
सुकन्या,” इंस्पेक्टर साहब, कहाँ हैं ? “
हवलदार,” इन्स्पेक्टर साहब क्या काम है उनसे ? “
सुकन्या को लेकर दोनों हवलदार इंस्पेक्टर अर्जुन के पास गए। इन्स्पेक्टर अर्जुन ने भी जब अपने सामने खून से सनी एक महिला को देखा तो वो भी सदमे में आ गए।
इंस्पेक्टर,” कौन हो तुम ? “
सुकन्या,” साहब, मैं सुकन्या हूँ। मुझे गिरफ्तार कर लीजिये। “
इंस्पेक्टर,” गिरफ़्तार कर लूं…पर किस जुर्म में ? “
सुकन्या,” साहब, मैंने एक राक्षस का वध कर दिया है। “
इंस्पेक्टर,” राक्षस… कैसा राक्षस ? “
सुकन्या,” बहुत खूंखार राक्षस, मैंने वध कर दिया उसका। “
इंस्पेक्टर,” तुमने किसी को जान से मार दिया ? “
सुकन्या,” मारा नहीं साहब, वध कर दिया। अगर नहीं करती तो मैं मर जाती। “
उसके बाद सुकन्या ने अपने हाथों में लिए प्लास्टिक की थैली को इंस्पेक्टर अर्जुन की तरफ बढ़ाया।
सुकन्या,” लो राक्षस, उसका वध करके मैंने इसका सिर काटकर इसमें डाल दिया। मैंने जुर्म किया है, मुझे गिरफ्तार कर लीजिए।
लेकिन मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है। मैं बहुत खुश हूँ, बहुत ही ज्यादा। “
इंस्पेक्टर,” सुकन्या, क्या हुआ तुम्हारे साथ ? तुम मुझे खुलकर बताओ। “
फ्लैश बैक…
सुकन्या के पति का नाम था राकेश। उसकी सास का नाम था सुमित्रा। राकेश और सुमित्रा दोनों की आस्था एक साधू में बहुत ही ज्यादा थी।
वे दोनों साधू से बिना पूछे कोई काम नहीं करते थे। यूं कहें कि उस साधू का ही राज़ चलता था सुकन्या के घर में।
सुकन्या को अब भी याद है जब वो पहली बार उस साधु के आश्रम में गयी थी, तो वह उसे कैसे भूखी नजरों से घूर घूरकर देख रहा था।
राकेश,” सुकन्या, ये अधीर आनंद जी बहुत ही पहुंची हुई शख्सियत हैं। ये तुम्हारा भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ एक पल में बता देते हैं। चलो प्रणाम करो इन्हें। “
सुकन्या,” प्रणाम बाबा ! “
बाबा,” खुश रहो और सबको खुश रखो। ये जीवन इसीलिए तो मिला है। “
अधीर आनंद ने जब यह बात सुकन्या को बोल दी तो उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी।
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Saitan Baba | Saas Bahu Story| Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Hindi Stories
उसी दिन नाश्ते में सुकन्या की सास ने अधीर आनंद को अपने घर पर इनवाइट किया क्योंकि राकेश एक नई दुकान शुरू करने वाला था और बिना अधीर आनंद जी के आशीर्वाद के वो बिज़नेस शुरू नहीं करना चाहता था।
बाबा,” देखो सुमित्रा, तुम्हे तो पता है ना कि हम कितना व्यस्त रहते हैं ? आश्रम में भी लोगों का आना जाना लगा रहता है।
लेकिन तुम हमारी पुरानी भक्त हो, इसलिए तुम्हारे लिए मैं समय जरूर निकालूंगा। “
तय तारीख पर अपनी महंगी कार में बाबा सुमित्रा के बेटे राकेश की दुकान पर पहुंचे। जैसे ही वो वहाँ पहुंचे, सुमित्रा और राकेश उनकी अगुवाई के लिए खड़े हो गए।
लेकिन वो दुकान के अंदर नहीं गए। दुकान को बाहर से ही देखकर उन्होंने कहा।
बाबा,” मुझे ये जगह कुछ जम नहीं रही है। अभी यहाँ पर काम शुरू करना सही नहीं है।
मुझे यहाँ एक तांत्रिक क्रिया करनी होगी, तभी यह जगह पवित्र हो पायेगी। तुम अपना काम शुरू कर सकते हो। “
राकेश,” कितने पैसे खर्च हो जाएंगे बाबा ? “
बाबा,” 1 लाख 25 हजार लगेंगे। उसके बाद इतने पैसे तुम हर दिन कमाओगे। “
सारी तैयारी होने के बावजूद उन लोगों ने दुकान की ओपनिंग नहीं की।
सुकन्या,” राकेश, आप समझते क्यों नहीं हैं ? अरे ! पहले से ही इतना उधार ले रखा है आपने इस बिज़नेस के लिए और अब 1 लाख 25 हजार और उधार उस पूजा के लिए, जो उस बाबा ने बताई है। “
राकेश,” सुकन्या, अँधीरा नन्द जी ने जो कहा है वो तो करना ही होगा ना ? “
सुकन्या,” देखिये राकेश, अपनी दुकान मार्केट के बीचों बीच है। वो तो वैसे भी चलेगी। अब इसके लिए पूजा की क्या जरूरत है ? “
तभी वहाँ पर सुमित्रा आ गई।
सुमित्रा,” क्या बात है ? तुम दोनों किस बात पर बहस कर रहे हो ? “
राकेश ने अपनी माँ को सारी बातें बता दी। उसकी बातों को सुनकर सुमित्रा आग बबूला हो गई।
सुमित्रा,” बहू, तुम्हें पता भी है अधीर आनंद बाबा कौन हैं ? और उन्होंने जो कह दिया, वो पत्थर की लकीर है।
अगर उसके खिलाफ़ कुछ करोगी तो हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे। अरे ! लाखों लोग भक्त हैं उनके। “
अब सुकन्या क्या कहती ? 1 लाख 25 हजार लगाकर राकेश ने पूजा करवाई। दुकान तो पहले से ही सही जगह पर थी तो वो खूब चलती थी।
लेकिन राकेश और सुमित्रा को लगता है कि ये सब बाबा के प्रताप के कारण है। एक दिन की बात है।
सुमित्रा कहीं बाहर गई हुई थी और राकेश दुकान पर था। तभी दरवाजे पर दस्तक सुन सुकन्या ने दरवाजा खोला। सामने अधीर आनंद खड़े थे।
सुकन्या,” अरे बाबा ! आप… आइये, आइये। “
अधीर आनंद घर के अंदर आकर बैठ गया।
सुकन्या,” बाबा, मां और राकेश तो है नहीं। “
बाबा,” मुझे पता है। मैं तुमसे मिलने आया हूँ। “
सुकन्या,” मुझसे..? “
बाबा,” हाँ, क्यों मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकता क्या ? “
सुकन्या,” क्यों नहीं… क्यों नहीं आ सकते ? “
बाबा,” सुनो… ज़रा अपनी नर्म और गोरे गोरे हाथों से शरबत बना दो, मेरा गला सूख रहा है। “
अधीर आनंद के मुँह से ऐसी बात सुनकर सुकन्या का माथा ठनका। वो किचिन में शरबत बनाने चली गयी। जब वो शरबत बना रही थी तभी अधीर आनंद पीछे से आ गए और उससे कहा।
बाबा,” तेरे पति का काम कैसा चल रहा है ? “
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सुकन्या,” जी, अच्छा अच्छा चल रहा है बाबा। बाबा आप यहां रसोई में क्यों आ गए ? आप वहीं बैठिए ना। “
बाबा,” अरे ! हम थोड़ा तुम्हें और भी नज़दीक से देखने और महसूस करने आ गये। “
ये कहकर अधीर आनंद ने सुकन्या का हाथ पकड़ना चाहा।
सुकन्या,” ये क्या कर रहे हैं आप ? दूर हटिये, हटिये दूर नहीं तो मैं शोर मचा दूंगी। “
बाबा,” सुकन्या, पागलपन मत कर। देख तेरी किस्मत अच्छी है कि मैं तुझे भाव दे रहा हूँ। “
सुकन्या,” आप अभी के अभी यहाँ से निकल जाइए, नहीं तो बहुत बुरा होगा। “
ये कहकर उसने किचन में पड़ा चाकू उठा लिया और उसे अधीर आनंद की ओर दिखाते हुए कहा।
सुकन्या,” हटिये, नहीं तो चाकू पेट में उतार दूंगी। “
बाबा,” तू सही नहीं कर रही है। तुझे मेरी बाहों में आना ही होगा।और देखना तेरा पति और तेरी सास ही तुझे मेरे पास भेजेगी। “
अधीर आनंद की गंदी हरकत के बारे में जब सुकन्या ने उस रात अपने पति और सास को बताया तो दोनों उस पर बरस पड़े।
राकेश,” अरे ! क्या दिक्कत है तुम्हें अधीर आनन्द जी से ? जब देखो उनके पीछे पड़ी रहती हो, उनकी बुराई करती हो। तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना ? “
सुकन्या,” ये तुम कैसी बातें कर रहे हो ? उसने तुम्हारी पत्नी के साथ बदतमीजी करने की कोशिश की और तुम हो कि तुम उसी का पक्ष ले रहे हो। “
सुमित्रा,” वो इसलिए बहू क्योंकि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। पता है अधीर आनंद जी की कितनी महिलाएं भक्त हैं ?
वो महिलाओं का कितना सम्मान करते हैं, तुम्हें पता है ? देखो आज के बाद इस घर में मैं उनके खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं सुनूंगी। “
बात आई गई हो गयी। इस बीच अधीर आनन्द कई बार फिर से राकेश और सुमित्रा के अनुपस्थिति में सुकन्या के घर आता और उससे बदतमीजी की कोशिश करता।
सुकन्या जब इसकी शिकायत अपने पति और सास से करती तो वह उसका मुँह बंद करा देते।
सुकन्या,” ये लोग तो मेरी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं। अपनी पत्नी और बहू की बात इन्हें झूठ लगती है और उस ढोंगी की बात सच। “
समय बीतता गया। सुकन्या की शादी को दो साल हो गए। लेकिन उसकी गोद नहीं भर रही थी।
अधीर आनंद ने राकेश और सुमित्रा के दिमाग में यह बात डाल दी कि सुकन्या कभी माँ नहीं बन सकती। तुम्हारी बहू के ऊपर कोई दोष है इसलिए वो कभी माँ नहीं बन सकती।
सुमित्रा,” इसका उपाय क्या है पापा ? “
बाबा,” उपाय ये है कि उस दोष के निवारण के लिए एक पूजा करनी होगी और वो भी अमावस्या की रात को।
और उस रात सुकन्या को अकेले ही आश्रम में रहना होगा। मैंने इस पूजा के द्वारा कइयों की गोद भरी है। “
राकेश और सुमित्रा सुकन्या के लाख मना करने के बावजूद उसे आश्रम में छोड़कर वापस आ गए। अधीर आनंद तो यही चाहता ही था। उस रात उसने सुकन्या से बदतमीजी शुरू कर दी।
सुकन्या,” दूर मुझसे, नहीं तो आज तुम्हारी वो हालत करूँगी कि तू किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगा। “
बाबा,” अरे ! मुझमें कांटे लगे हैं क्या ? देख, खुश रहो और सबको खुश रखो।
और मैं तो तेरा भला करने वाला हूँ। तेरी गोद में कुछ दिनों बाद एक बच्चा खेलने लगेगा। “
ये कहकर अधीर आनंद ने सुकन्या को अपनी बांहों में भरना चाहा। लेकिन सुकन्या तो आज पूरी तैयारी करके आई थी।
उसने अपनी साड़ी में छिपा खंजर निकाला और उस खंजर के एक ही वार से अधीर आनंद का सिर काट दिया।
सुकन्या (गुस्से में),” तूने हद कर दी थी अधीर आनंद आज। मैंने बहुत सहा है।
मेरा किसी ने साथ नहीं दिया इसलिए आज मुझे तेरा वध करना पड़ा। तू औरत को समझता क्या है ? औरत शक्ति है शक्ति, उसे कमजोर मत समझ। “
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इंस्पेक्टर अर्जुन और थाने के सभी लोगों की आँखों में अधीर आनंद को लेकर बहुत गुस्सा था। सभी के जहन में एक ही बात चल रही थी कि सच में सुकन्या ने कोई हत्या नहीं की, वध किया है।
सुकन्या ने जज के सामने सारी सच्चाई रखी और अधीर आनंद की हत्या का कारण बताया।
सुकन्या को 5 साल की सजा तो हुई लेकिन उसे संतोष था कि उसने एक राक्षस के बोझ से समाज को मुक्त कर दिया।
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