हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई पत्थर ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Jadui Pathar | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales
सुमेरगढ़ में एक गरीब ब्राह्मण ज्ञानचंद रहता था। उसके परिवार में पत्नी रम्या के साथ दो बच्चे दीपू और किरन रहते थे।
दीपू अभी 9 वर्ष का था और किरन दीपू से 4 साल बड़ी थी।
रम्या,” सुनो जी… किरण और दीपू जैसे जैसे बड़े हो रहे हैं, मुझे इनके भविष्य को लेकर बहुत चिंता हो रही है।
क्या हम लोगों की तरह ये दोनों भी ऐसे ही गरीबी में मर जाएंगे ? यही चिंता हमें भी दिन रात सता रही है। “
ज्ञानचंद,” मैं सोच रहा था कि हम इस गांव को छोड़कर शहर में रहने चलें। शायद वहाँ अपनी किस्मत का ताला खुल जाए। “
राम्या,” ठीक कह रहे हैं आप। शहर में बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी अच्छी तरह से होगी। “
दूसरे दिन ही ज्ञानचंद अपने परिवार को लेकर जंगल की पहाड़ से होते हुए शहर जयनगर की ओर निकल गया। नगर सुमेरगढ़ से वैसे तो 65 किलोमीटर की दूरी पर था, लेकिन जंगल पहाड़ के रास्ते से 27 किलोमीटर पड़ता था।
दीपू,” पिताजी, सुबह से चलते चलते 12 बज गए। अब और चला नहीं जाता। जयनगर अब और कितनी दूर है ? “
ज्ञानचंद,” बस बेटा, हिम्मत रखो बस अब 7 किलोमीटर और बचे हैं। “
राम्या,” थोड़ा रुक जाओ जी, अब तो मुझसे भी नहीं चला जा रहा। गर्मी से हाल बेहाल है।
वो देखो नदी किनारे मंदिर है, वहीं चलते हैं। पेड़ की छांव में बैठकर कुछ खा पी लेंगे। “
वे लोग मंदिर के पास जाकर खाना खाने लगते हैं। वे लोग नदी के किनारे जाकर हाथ मुँह धोकर पानी पी रहे होते हैं।
तभी दीपू का हाथ नदी में पड़ी एक गोल और बहुत ही ठंडे से छोटे पत्थर पे छू जाता है। इतनी गर्मी में इतना ठंडा पत्थर देखकर वह उसे तुरंत उठा लेता है।
दीपू,” दीदी, देखो ये पत्थर कितना ठंडा है मानो बर्फ़ हो ? “
किरन,” अरे ! सचमुच… ये कैसे हो सकता है ? इस भीषण गर्मी में जहाँ सभी पत्थर आग उगल रहे हैं, वही ये पत्थर बर्फ़ से भी ठंडा है। “
ज्ञानचंद,” दीपू… किरन, वहाँ नदी किनारे क्या कर रहे हो ? जल्दी चलो देर हो जाएगी।
अभी वो सामने वाला पहाड़ भी तो पार करना है हमें। 4 घंटे लगेंगे। शाम होने से पहले हमें जयनगर भी पहुंचना है। “
दीपू,” आया पिताजी। “
दीपू,” दीदी, मैं इसे पॉकेट में रख लेता हूँ। अब चलो पिताजी बुला रहे हैं। “
ज्ञानचंद,” चलो जल्दी, तुम लोगों को जहाँ थोड़ा सा समय मिलता है वही खेलने लगते हो। देर हो रही है। पता नहीं कब ये सफर खत्म होगा ? जंगल में जंगली जानवरों से डर भी लगता है। “
दीपू,” चलो अब देखता हूँ कि मुझसे पहले पहाड़ के पास कौन पहुंचता है ? “
राम्या,” अरे ! रुको। आप ही रोकिए उन्हें। इस जंगल में दौड़ लगा रहे हैं, कहीं कुछ हो गया तो यहाँ कोई भी नहीं मिलेगा ? “
ज्ञानचंद,” अरे ! तुम बेकार में डरती हो। अभी उनके खेलने कूदने की उम्र है, थोड़ा सा दौड़ लगाने दो। “
राम्या,” आपने ही इन्हें बिगाड़ रखा है। जी, वो देखिए शेर… बच्चों को बचाइए। “
ज्ञानचंद (आश्चर्य से),” शेर..? किरन… दीपू, निकलो जल्दी वहाँ से। “
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राम्या,” बच्चो, भागो वहाँ से। “
राम्या ,” हे मेरे भगवान… हे प्रभु ! मैंने आज तक जाने अनजाने में कोई भी पाप नहीं किया है। मेरे बच्चों को बचा लो। मैं 16 सोमवार इसी मंदिर में नंगे पैर आकर नारियल फोड़ूँगी। “
किरन ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है। ज्ञानचंद को कुछ भी समझ नहीं आ रहा होता है कि वह क्या करे ?
वह लगातार चिल्ला चिल्लाकर शेरों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहा था। तभी एक शेर किरन के ऊपर उछलता है।
लेकिन इसी बीच दीपू शेर के मुँह पर एक मारता है। घूंसा लगते ही शेर वहीं ढेर हो जाता है।
दूसरा शेर दहाड़ते हुए दीपू पर अटैक करता है। लेकिन दीपू उसका पूंछ पकड़कर उसे नचाकर बहुत दूर तक उछाल देता है।
फिर पास में बेहोश शेर का भी पूंछ पकड़कर घूमाकर दूर फेंक देता है। ना जाने उसमें इतनी फुर्ति और शक्ति कहाँ से आई ?
यह सब देखकर ज्ञानचंद भी अचंभित हो जाता है। इस घटना को अपनी आंखों से होता हुआ देख राम्या पहले से ही बेहोश हो चुकी थी।
ज्ञानचंद,” उठो विजय, देखो बच्चे सुरक्षित हैं। “
राम्या,” मेरे बच्चो, सब ठीक है ना ? “
दीपू,” हाँ पिताजी, दोनों शेर को भगा दिया। “
ज्ञानचंद,” हे भगवान ! आपका लाख लाख शुक्र है जो आपने हमारी रक्षा की। “
राम्या और ज्ञानचंद इस घटना को भगवान का चमत्कार मानकर वहां से चल देते हैं। चलते चलते पहाड़ पार करते समय उन्हें डाकू का सामना करना पड़ता है।
शहर के प्रसिद्ध और सबसे धनवान सेठ जौहरी यमुना प्रसाद को डाकुओं ने किडनैप कर पहाड़ के घने जंगलों में एक पेड़ से बांध रखा था।
जैसे ही ज्ञानचंद और उसका परिवार उन डाकुओं के नजदीक पहुंचते हैं, डाकू इन्हें भी पकड़कर पेड़ में बांध देते हैं।
डाकू,” कौन हो तुम लोग और इस जंगल में क्या कर रहे हो ? “
ज्ञानचंद,” हम सुमेरगढ़ के गरीब ब्राह्मण ज्ञानचंद हैं मालिक। गरीबी से तंग आकर गांव से शहर जा रहे हैं।
मेरे पास पैसे तो थे नहीं तो पूरे परिवार के साथ जंगल पहाड़ पार करके जयनगर जा रहे हैं जहाँ अपनी जीविका के लिए कुछ करूँगा ताकि मैं और मेरे बाल बच्चे भूख से ना मरें। “
डाकू,” सुना तुमने जगीरा..? ये गरीब ब्राह्मण शहर में अमीर बनने जा रहा है।
बता इसे कि गरीब आदमी को शहर में और गरीब बना देती है। अमीर बनने के लिए हमारे जैसे कत्लेआम करना होगा। “
जगीरा,” सरदार, बिलकुल सही कह रहे हैं। देखो इस सेठ को। इसने हमें 50 करोड़ रुपए देने से इनकार किया था।
अब जब इसकी जान पर बन आई तो इसके आदमी 50 करोड़ रुपए लेकर आ रहे हैं। तुम लोग भी जब तक इसके आदमी नहीं आ जाते, यहीं रहोगे। “
ज्ञानचंद,” भाई, हमें छोड़ दीजिए। हम गरीब लोग हैं। शहर में कुछ कामकाज करने और किसी तरह जीने खाने जा रहे हैं। दया करो, मालिक। “
डाकू,” दया… रहम… भीख, ये सब अपने डिक्शनरी में नहीं रहे। “
डाकू,” क्या सेठ… पूरे 2 घंटे हो गए, तेरे आदमी अभी तक यहाँ नहीं पहुंचे पैसे लेकर ? अगर आधे घंटे के अंदर वो यहां नहीं पहुंचे तो अगले 2 मिनट के अंदर तुम और ये ब्राह्मण परिवार मौत के घाट उतार दिए जाओगे। “
तभी घोड़े पर एक बड़ा सा बैग लिए सेठ का आदमी आते हुए दिखाई देता है। जगीरा आकर चंपत सिंह को बताता है कि सेठ का आदमी पैसा लेकर आ रहा है।
चम्पत सिंह पेड़ के पीछे जाकर जगीरा को बोलता है कि इन लोगों को छोड़ना अपनी मौत को दावत देने के बराबर होगी। पैसा लेते ही सभी को मौत के घाट उतार देना।
यह बात दीपू सुन लेता है। जैसे ही सेठ का आदमी जंगीरा को पैसा देता है।
जोगीरा,” सरदार, पूरे 50 करोड़ रुपए हैं। “
डाकू,” ठीक है, अब इन सबको ठिकाने लगा दो। ये हमारे लिए चलता फिरता मानो बॉम हैं।
इन्हें हमारे बारे में बहुत कुछ पता चल चुका है। ये कभी भी पुलिस को इन्फॉर्मेशन दे सकते हैं। “
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सेठ,” मुझे छोड़ दो। बदले में मेरी सारी संपत्ति ले लो। रहम करो। “
चम्पत सिंह,” चम्पत सिंह की डिक्शनरी में दया, रहम, भीख ये सब नहीं है सेठ। तुम सबको अब मरना ही होगा। “
ज्ञानचंद,” नहीं मालिक, हम गरीब ब्राह्मण परिवार ने आपका क्या बिगाड़ा है ? हमें छोड़ दो मालिक। आपको जो रुपए चाहिए थे, वो तो मिल ही गये। “
तभी रुपए साथ में लेकर सेठ का आदमी कुछ हरकत करता है। जगीरा उसी पल उसके सीने में गोली मार देता है।
वह वहीं ढेर हो जाता है। यह सब कुछ देखकर सभी भगवान का नाम लेने लगते हैं।
तभी दीपू अचानक पूरी ताकत से रस्सी को तोड़ते हुए सभी डाकुओं को मारकर बेहोश कर देता है।
ये काम दीपू इतनी फुर्ती से करता है कि किसी को भी एक पल सोचने का मौका भी नहीं मिलता।
यह सब देखकर सेठ और ज्ञानचंद के परिवार को लगता है कि दीपू पर कोई दैवीय शक्ति आ गयी है।
सभी किसी तरह शहर पहुंचते है और पुलिस को जंगल के डाकुओं के बेहोश पड़े होने की जानकारी देते है। पुलिस उन डाकुओं को जाकर पकड़ लेती है।
सेठ,” ज्ञानचन्द, आज तुम्हारे परिवार के कारण हम जिन्दा हैं। मेरे गेस्ट हॉउस में तुम रहोगे और मेरा पूरा बिज़नेस का देखभाल अब तुम करोगे। “
ज्ञानचन्द,” बहुत बहुत धन्यवाद मालिक ! “
राम्या ,” आज हमें सब कुछ मिल गया। अब हमारे बच्चे भी अच्छे स्कूल में पढ़ेंगे। “
ज्ञानचन्द,” हाँ मालिक, आप तो हमारे लिए भगवान से कम नहीं। “
सेठ,” लेकिन हमारे लिए तो साक्षात भगवान दीपू है जिसके चलते हम सब आज जिन्दा हैं। “
लेकिन ज्ञानचंद और उसके परिवार की ये खुशी ज्यादा दिन तक चल नहीं पाती।
सेठ धनीराम का साला षडयंत्रकर उन्हें घर से निकलवा देता है और कुछ दिनों बाद सेठ धनीराम का गाड़ी से अक्सीडेंट करवा उन्हें मरवा देता है।
इधर ज्ञानचंद कुछ बांस और नारियल के पत्तों से एक झोपड़ी बनाता है और उसी में रहने लगता है।
राम्या,” किरन बुखार से तप रही है। ऊपर से ये भीषण गर्मी की रात जान लेने पर उतारू है।
हवा ठहरी हुई है। एक पत्ता भी नहीं हिल रहा है आज। हे भगवान ! और कितने दुःख का दिन दिखाएगा हमें ? “
दीपू,” माँ, मेरे पास एक ठंडा पत्थर है जीसको पकड़ते ही गर्मी से राहत मिलेगी। रुको, अभी देता हूँ। ये लो मां, इसे थोड़ी देर पकड़ो और ठंड लगने लगेगी। “
राम्या,” अरे ! सचमुच ये तो जादू हो गया। “
राम्या,” ले बेटी… तुम्हारा शरीर तप रहा है, इसे पकड़ लो। तुरंत राहत मिल जाएगी। “
किरन,” पिताजी, मेरी तबियत ठीक हो गई। मेरी ताकत वापस आ गई। “
राम्या,” वाह ! सचमुच ये जादुई पत्थर लगता है। “
किरन उस पत्थर को ज्ञानचंद को देती है। ज्ञानचंद जैसे ही वह पत्थर हाथ में लेता है, उसकी सारी गर्मी उसी पल गायब हो जाती है और वह ठंडक महसूस करने लगता है।
ज्ञानचंद,” वाकई कमाल हो गया। ये कोई मामूली पत्थर नहीं है। कहाँ से मिला ये ? “
दीपू,” जंगल में मंदिर के पास जब मैं नदी में पानी में हाथ धो रहा था तभी ये पत्थर मेरे हाथ से टॅच हुआ। पर ठंडा पत्थर होने के कारण मैंने इसे अपनी जेब में रख लिया था। “
ज्ञानचंद,” इसमें जरूर कोई शक्ति है। ये लो बेटा, इसे अच्छे से रख दो। बड़ा कीमती पत्थर है ये।”
राम्या,” जंगल वाले मंदिर से याद आया कि जब बच्चों को शेर ने घेर लिया था तभी मैंने 16 सोमवार को नारियल फोड़ने का व्रत लिया था।
कल संयोग से सोमवार है। कल सुबह ही हम वहीं जंगल वाले मंदिर में चलेंगे। “
ज्ञानचंद,” हां भाग्यवान, शायद हमारी दरिद्रता भी दूर हो जाये। “
अगले दिन सुबह सुबह ही ज्ञानचंद अपने परिवार के साथ जंगल वाली मंदिर जाने के लिए निकल पड़ता है। अभी वह पहाड़ ही पार कर रहे थे, तभी दीपू के हाथ से वह पत्थर फिसलकर गिर जाता है।
जैसे ही दीपू उस पत्थर वो उठाने के लिए झुका, वह फिसल गया और एक छोटा सा पेड़ पकड़ लिया।
लेकिन दीपू के वजन से वह पेड़ जड़ से उखड़ गया। तुरंत ज्ञानचंद ने दौड़कर दीपू का हाथ पकड़ लिया।
राम्या,” अरे ! ये पेड़ की जड़ के नीचे क्या चमक रहा है ? “
किरन,” अरे माँ ! ये तो सोने के गहने और रुपए हैं। बाप रे ! इतना सारा रुपया और इतनी सारे गहने। “
ज्ञानचंद,” अच्छा… तो वो डाकू अपना सारा खजाना यहाँ छुपाता था। बच्चो, अब हमारी जिंदगी अच्छे से बीतेगी। चलो, घर चलते हैं। “
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सभी लोग जाकर नदी में स्नान करते हैं। स्नान करते समय ही ौदीपू की पॉकेट से वह पत्थर गिरकर धारा के साथ ना जाने कहाँ बहकर चला जाता है।
दीपों बहुत रोता है। लेकिन राम्या और ज्ञानचंद समझाते हैं कि वो कीमती पत्थर अब किसी दूसरे जरूरतमंद की मदद करने के लिए चला गया है।
फिर वे लोग मंदिर में जाकर नारियल फोड़ते हैं। उसके बाद लौटते समय बोरों में भरकर सारे गहने और रुपए लेकर जयनगर पहुंचते हैं।
ज्ञानचंद उन पैसों से एक घर खरीदता है और एक होटल खोल देता है और हर उस गरीब की मदद करता है जिनका कोई नहीं है।
वे गरीबों को खाना खिलाते हुए बहुत से पुण्य का काम करते हैं और इसी तरह हँसी खुशी वह अपना जीवन बिताने लगते हैं।
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