हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – लुका छुपी। यह एक Bhutiya Kahani है। तो अगर आपको भी Darawni Kahaniya, Haunted Kahani या Scary Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Luka Chupi | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi
लुका छुपी
रात के 11 बज चुके हैं और बारिश भी सुबह जैसी हो रही है। मैं भी बारिश रुकने के इंतजार में सुबह से ही शराब पी रहा हूँ और डायरी लिख रहा हूँ।
ना तो आज मैं काम पर गया और ना ही अपने लिए खाना बनाया। बस अपनी बेटी ख़ुशी की तस्वीर सामने रख के उसे याद करता रहा था और खुद को कोसता रहा कि तभी मुझे बेटी ख़ुशी की आवाज सुनाई दी।
आवाज,” पापा पापा, खेलोना मेरे साथ। मैं कब से आपका इंतज़ार कर रही हूँ ? आज तो आप पूरा दिन घर पर ही रहे फिर भी मेरे साथ नहीं खेल रहे हो।
अच्छा बताओ तो, मैं कहाँ छुपी हूँ ? पापा, मुझे ढूंढो ना। “
अपनी बेटी खुशी की आवाज़ सुन मैं डर गया था। दरअसल मेरे काम से आने के बाद मैं और खुशी हम रोज़ रात को हाइट एंड सीक खेलते थे।
पर खुशी के इतना बुलवाने पर भी मैं उसे ढूंढने नहीं गया क्योंकि मुझे पता था कि कोरोना के कारण मेरी बेटी दो हफ्ते पहले इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी है।
तो फिर मुझे किसकी आवाज सुनाई दी थी… मेरी बेटी की या फिर ये मेरा वहम था जो मुझे पापा कह अपने साथ खेलने को कह रही थी ?
जब मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैं इसे बस नशे का धोखा समझ सीधा बिस्तर पर सोने चल दिया था।
बिस्तर पर लेटे अभी कुछ ही पल गुजरे थे कि मुझे महसूस हुआ, खुशी मेरी छाती पर बैठ अपने नाखूनों से मेरी छाती को चीर रही है और रोते हुए मुझसे कह रही है।
खुशी (शैतानी रूप में),” पापा, मुझे ढूंढने क्यों नहीं आए ? मैं कब से आपके साथ खेलने को तैयार थी ?
पर आप चिंता मत करिए, मैं आपको लेने वापस जरूर आऊंगी। फिर हम दोनों साथ मिलकर हाइड एंड से खेलेंगे। “
छाती चीरने के दर्द से जब चटपटाते हुए मैंने अपनी आँखे खोलीं तो मेरे सामने कोई नहीं था। डर के कारण मेरी आँखों की पुतलियां फटने को हो गई और मेरा सहारा नशा उतर गया।
खुशी की बातें अभी भी मुझे अंदर से नोच रही थीं। पर ये कैसे मुमकिन था ?
क्योंकि खुशी को तो मैंने अपने हाथों से दफनाया था। यही सब सोचते सोचते कब मेरी आंख लगी, मुझे पता ही नहीं चला ?
अगली सुबह दरवाज़े की घंटी से मेरी आँख खुली।
हैंगओवर होने का असर जिससे सुबह मेरा सिर फटने को हो रहा था। चिड़चिड़े मन से मैंने दरवाजा खोला तो देखा सामने हरिया खड़ा है। हरिया, मेरा दूध वाला था।
राहुल,” हरिया, आज इतनी सुबह सुबह..? “
हरिया,” क्या भैया जी..? 10 बज चुके हैं। आज संडे है तो क्या सोते ही रहोगे ? “
राहुल,” नहीं हरिया, वो दरअसल बात…। “
मैं हरिया को अपने मन की बात समझाने ही जा रहा था कि अचानक ही मुझे क्या सूझी के मैं चुप हो गया ? मैंने सोचा कहीं इसे कल रात की बात बताई तो ये मुझे पागल ना समझे ?
इसलिए मैंने हरिया से दूध भी नहीं लिया और उसे वापस ही लौटा दिया।
मैं पेशे से एक टीचर हूँ और आज संडे होने की वजह से पूरा दिन घर पे ही रहूंगा। तो सोचा क्यों न आज घर की सफाई कर ली जाए ?
जब तक मेरी पत्नी माया थी, तब वही घर का सारा काम करती थी। फिर एक अक्सीडेंट में वो बेचारी भी चल बसी और ख़ुशी को मेरे पास छोड़ गई।
पर जबसे खुशी की भी मौत हुई, ये घर मुझे काटने को दौड़ता है। पर आज मन मारकर भी मैंने घर की सफाई करने का फैसला किया।
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घर का काम खत्म करते ही मुझे शाम हो गई थी। काम की थकान मुझे इतनी थी कि मैं बिस्तर पर गिरते ही सो गया।
मेरी जब आँख खुली तो आधी रात हो चुकी थी। खाना बनाने का मन नहीं था तो मैंने कुछ हल्का फुल्का खाकर किसी तरह अपना पेट भर लिया।
मैं खाना खाकर बिस्तर पर लेटा ही था, तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक सुनाई थी।
राहुल,” अरे ! कौन है इतनी रात को ? ना चैन से सोते हैं, ना दूसरों को सोने देते हैं। “
खुद में बड़बड़ाता हुआ जब मैं दरवाजा खोलने जा ही रहा था कि तभी मुझे लगा कि किसी ने मेरा पैर पकड़ लिया है। जब मैंने पलट कर देखा तो खुशी मेरे पैर से मांस नोचते हुए मुझसे कह रही थी।
खुशी,” पापा, आप फिर काम पर जा रहे हो ? जल्दी आना, माँ भी नहीं है। मैं घर पर अकेले खेलते खेलते बोर हो जाती हूँ, पापा। “
खुशी की आँखें लाल थीं और उसका आधा चेहरा सड़ा हुआ था। जिस पर कीड़े रेंग रहे थे। उसके नाखून इतने बड़े और खूंखार थे जिन्हें आहिस्ता आहिस्ता वो मेरी हड्डियों में धंसा रही थी कि अचानक ही किसी ने फिर से दरवाजे पर दस्तक थी।
मेरा ध्यान एक पल को हटा ही था और मैंने देखा मेरे आस पास कोई नहीं है और मेरा पैर भी बिलकुल सही सलामत है। एक बार फिर इसे अपना भ्रम समझ मैंने एक लंबी सांस ली और जैसे ही दरवाजा खोला तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी।
खुशी,” पापा, मैं खुशी… आपकी बेटी। आपको लेने आई हूँ, चलो हम साथ में खेलते हैं पापा। “
यह सुनकर जैसे मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मेरा बदन कांप रहा था। डर के मारे मैंने तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया।
पर ना तो डर ने मेरा पीछा छोड़ा और ना ही खुशी ने। मैं अपने स्तर पर जा पाता, इससे पहले ही घर के हर कोने से मुझे खुशी की आवाजें आने लगी।
आवाज,” पापा ढूंढो ना मुझे, मैं कब से यहीं छुपी हूं, पापा ? पापा, इधर देखो इधर हूँ मैं। इधर छुपी हूँ, पापा… पापा, पापा। “
पर ये कैसे मुमकिन हो सकता है ? अभी कुछ देर पहले तो ख़ुशी की आवाज घर के बहार से आ रही थी और फिर अचानक ही उसकी आवाज घर के अंदर से आने लगी।
मैं पागलों की तरह अपनी बेटी खुशी की आवाज का पीछा करने लगा। कभी बैड के नीचे तो कभी अलमारी के अंदर, कभी किचन में तो कभी सोफे के पीछे।
जहाँ जहाँ खुशी छिपा करती थी, मैंने हर उस जगह को छान मारा पर मुझे खुशी कहीं नहीं दिखी। लेकिन खुशी तो अभी भी मुझे अपने साथ खेलने के लिए बुला रही थी।
उसकी आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, जिसे सुन मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था। तभी मैंने देखा अलमारी के अंदर से मेरी बेटी खुशी रेंगते हुए मेरे पास ही आ रही थी।
खुशी,” पापा, चलो ना मेरे साथ खेलने। कितना टाइम हो गया हम दोनों को साथ में खेले हुए ?
जब से मैं बीमार पड़ी हूँ, आपने एक बार भी मेरे साथ हाइड एंड सीक नहीं खेला है। “
खुशी अपनी बाहें फैलाए मुझे गले लगाने को मेरी ओर चल रही थी। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है ?
इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता, मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। जब मेरी आँख खुली तो मेरे सामने हरिया खड़ा था।
सुबह हो गई थी। मैं घर के बाहर ही लोगों को बेहोश पड़ा मिला था।
आदमी,” भैया जी, आप ठीक तो हैं ? आपको इस हाल में देखकर मैं तो डर ही गया था। “
हरिया मुझे सहारे से वापस मेरे घर ले जा रहा था।
राहुल,” हरिया, मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुझे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। “
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हरिया,” पर भैया आपको हुआ क्या था जो आप बाहर ही बेहोश हो गए थे ? “
हरिया के सवाल पर पहले तो कुछ पल मैं चुप रहा, फिर महज इसे एक बुरा सपना समझ मैंने हरिया से कहा।
राहुल,” हरिया, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। शायद से मुझे चक्कर आ गया था। “
हरिया,” अच्छा भैया जी, तो चलिए अब आप आराम करिए। मैंने एक्स्ट्रा दूध रसोई में रख दिया है। आप उसे गर्म करके पी लेना। “
इतना कह के हारिया मुझे घर के अंदर छोड़ कर चला गया। मैं सोच ही रहा था कि मैंने जो कल देखा और जो कल महसूस किया था, वो सब सच था या फिर मेरा कोई बुरा सपना ?
राहुल (मन में),” नहीं सपना नहीं हो सकता, वो मुझे दिखी थी। इतना तो मुझे याद है वो मेरी बेटी खुशी ही थी। खुशी के लिए मेरी नजरें कभी धोखा नहीं खा सकतीं।
मैं अकेला इस सुनसान घर में खुद से बातें कर रहा था। सपने और हकीकत के बीच में, मैं एक ऐसी जगह हूं जहाँ मैं एक पल चैन की सांस लेना चाहता हूं।
मैं खुद में ही बड़बड़ा रहा था की तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी। मैंने देखा कोई नया नंबर था।
मैंने जब फ़ोन अपने कान से लगाया तो किसी की आवाज नहीं आ रही थी। मैंने दो तीन बार हैलो बोला पर किसी का कोई रिप्लाय नहीं आया।
जैसे ही मैं फ़ोन रखने वाला था तभी किसी के बोलने की आवाज़ आई। वो किसी और की आवाज नहीं बल्कि मेरी बेटी खुशी की आवाज थी।
खुशी,” पापा, अब आप मुझे भूल गए ना ? मैंने आपसे कितनी बार कहा मेरे साथ खेलने चलो पर आप हमेशा अपने काम में बीज़ी रहते थे।
मुझे कोई टाइम नहीं देते थे। मैं आपसे कट्टी हूँ पापा। आपने अपनी बेटी ख़ुशी को भुला दिया ना, पापा ?
हाँ पापा आपने अपनी खुशी को भुला दिया। पापा पर अब और नहीं, मैं आपको अपने साथ लेकर ही जाऊंगी। एक बार पीछे मुड़कर देखा तो पापा। “
राहुल जैसे ही पीछे मुड़ा, उसे अपने सामने खुशी दिखाई दी… आधा चेहरा सड़ा हुआ, बेहद खूंखार और डरावना।
इंस्पेक्टर विजय एक डायरी को पढ़ता हुआ…
इंस्पेक्टर,” पांडे (कॉन्स्टेबल), राहुल की इस डायरी में इसके आगे कुछ लिखा ही नहीं है। “
ये सुन कॉन्स्टेबल पांडे बोला।
पांडे,” साहब, लिखता भी कैसे ? उसके बाद राहुल मर जो चुका था और सर राहुल की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ये साफ साफ लिखा है कि राहुल हार्ट अटैक से मरा था।
डॉक्टर का कहना है कि राहुल ने कुछ डरावनी चीज़ देखी थी… शायद अपनी बेटी खुशी को। राहुल ने भी अपनी डायरी में यही लिखा है।
क्योंकि मरने के बाद भी उसकी लाश की आँखें खुली हुई थी। इसी वजह से राहुल को हार्ट अटैक भी आया था। “
पर इंस्पेक्टर विजय को कॉन्स्टेबल पांडे की बातें कुछ जम नहीं रही थीं। उसने पांडे से तुरंत कहा।
इंस्पेक्टर,” पर राहुल की बेटी तो कब का कोरोना से मर चुकी थी फिर वो वापस कैसे आ सकती है ? “
इस पर पांडे बोला।
पांडे,” पर सच तो यही है, सर। राहुल हार्ट अटैक से मरा है। मैंने आज पड़ोस में भी पता किया था। सबका यही कहना था।
राहुल की पत्नी माया के जाने का गम तो किसी तरह राहुल ने बर्दाश्त कर लिया लेकिन जब उसकी बेटी खुशी भी इस दुनिया को छोड़कर चली गई, तो वो बहुत डिस्टर्ब रहने लगा था।
अकेले हंसता था, तो कभी खाली दीवार को देख के रोने लगता। कितनी बार तो राहुल के घर के बार वो बेहोश पड़ा मिला था ? रामजाने किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा था वो ? “
इतना कहकर पाण्डे इंस्पेक्टर विजय को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देकर वहाँ से चला जाता है। अब पुलिस को कुछ भी लगे पर सच नहीं बदल सकता।
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उस रात राहुल अपनी डायरी में लिख रहा था, तब उसे अपनी मरी हुई बेटी खुशी की आत्मा अलमारी से निकलती हुई दिखी। जब वह बाहें फैलाए राहुल को अपने साथ हाइड एंड सीक खेलने के लिए बुला रही थी।
राहुल भी अपनी बेटी के साथ उस अलमारी के अंदर जाकर बंद हो गया। पहले तो उसकी सांस घुटने लगी। फिर अचानक ही दिल का दौरा पड़ने से राहुल की मौत हो गई।
खुशी ने कहा था कि वो अपने पापा को साथ लेकर जाएगी और शायद खुशी ने अपना कहा सच कर दिखाया।
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