हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ घमंडी अफसर बहू ” यह एक Saas Bahu Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Saas Bahu Ki Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Ghamandi Afsar Bahu | Saas Bahu | Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories
घमंडी अफसर बहू
सीमा के घर पर पार्टी चल रही थी। कई सारे मेहमान आए हुए थे। उसमें शहर के बहुत सारे समृद्ध और प्रभावशाली लोग भी थे। पार्टी बहुत भव्य थी। सभी लोग सीमा की तारीफ कर रहे। थे।
आदमी,” मान गए सीमा मैम, क्या अरएन्जमेंट किया है आपने ? “
औरत,” अरे मेहता जी ! सीमा जी की पार्टी ऐसी ही होती है। “
लोगों की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। अब अपनी तारीफ से घमंड में चूर सीमा सभी का अभिवादन कर रही थी।
तभी उसकी नजर अपनी सास सावित्री पर गई, जो दूर कोने में बैठे उसे देख रही थी। अपनी सास को देखकर सीमा का चेहरा तमतमा गया।
वो गुस्से में उसके पास गई और उसका हाथ खींचते हुए दूसरे कमरे में ले गई और चिल्लाकर बोली।
सीमा,” अरे ! आप क्यों मेरे पीछे पड़ी रहती हैं ? समझ में नहीं आता क्या, इतने बड़े बड़े लोग पार्टी में आए हुए हैं ?
मैंने कहा था ना कि आप बाहर मत आना और बाहर आईं भी तो इस घटिया साड़ी में ? अरे ! आपकी इज्जत दो कौड़ी की है लेकिन मेरी तो नहीं है ना।
देखिये.. ये बेशर्मी छोड़िये नहीं तो कहीं और चले जाईये। मेरी छाती पर मूंग मत दलिये। “
शराब के नशे में सीमा ने सावित्री को खूब खरी खोटी सुनाई। सावित्री चुपचाप अपनी बहू की जहर भरी बातों को सुनती रही और आंसू बहाती रही।
सावित्री,” समय ऐसा भी रंग दिखाएगा, पता नहीं था। घमंड किसी का नहीं रहता। वो तो आता ही है नाश को लेकर। लेकिन फिर भी लोग पता नहीं क्यों घमंड करते हैं ? “
ये सोचते हुए वो पुराने दिनों में खो गयी।
बीते हुए समय में…
घड़ी में रात के 2 बज रहे थे। सड़कों पर मरघट सा सन्नाटा पसरा था। कुत्ते कभी भौंकते, कभी बिल्कुल खामोश हो जाते। घरों की लाइट ऑफ थी और लोग गहरी नींद के आगोश में थे।
लेकिन नारायणपुर के उस छोटी सी झोपड़ी से रौशनी बाहर आ रही थी। 65 साल की सावित्री मशीन पर बैठे कपड़े सीं रही थी।
सावित्री,” अभी भी काफी काम बाकी है। कल दोपहर तक मुझे ये सूट किसी भी हालत में रागिनी मेमसाहब को देना है। “
सावित्री की बूढ़ी आँखों में नींद थी। उसके हाथ थक भी रहे थे लेकिन उसे रुकना कहां था ?
हालांकि कुछ देर बाद नींद उस पर ज्यादा हावी होने लगी तो वो उठकर गई और अपनी आँखों पर पानी के छींटे मारने लगी। यह देखकर उसकी बहू सीमा जो सावित्री के पास ही बैठी पढ़ाई कर रही थी, उसने कहा।
सीमा,” माँ जी, आप थोड़ी देर आराम कर लेतीं। मैं देख रही हूँ कि आपको नींद आ रही है। “
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सावित्री,” अरे ! नहीं नहीं बहू, मुझे नींद नहीं आ रही है। मुझे यह काम कल तक खत्म करना ही है।
देख तू परेशान मत हो और तू अपनी पढ़ाई कर। तेरी परीक्षा नजदीक है ना ? तेरी तैयारी तो सही से हो रही है ना ? “
सीमा,” हां मां जी, तैयारी तो हो रही है। अब देखिये परीक्षा का रिज़ल्ट कैसा आता है ? वैसे भी मैंने तय कर लिया है। “
सावित्री,” क्या तय कर लिया है ? “
सीमा,” यही कि अगर इस बार मेरा सलेक्शन नहीं हुआ तो मैं आगे परीक्षा नहीं दूंगी। मैं आपके काम में हाथ बटाऊंगी। “
उसकी बातों को सुनकर सावित्री ने उसके मुँह पर अपनी उंगलियाँ रखी और कहा।
सावित्री,” बहू, ऐसा भूलकर भी मत कहना। क्यों नहीं होगा तेरा… क्यों नहीं करेगी तू पास परीक्षा..? जरूर करेगी।
अरे इतनी मेहनत करती है तू। मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। “
सावित्री अपनी बहू सीमा को सगी माँ की तरह प्यार करती थी। एक साल पहले की बात है।
फ्लैश बैक…
सीमा अपने पति राजेश और सावित्री के साथ एक रिश्तेदार की शादी में ट्रेन से जा रही थी।
सीमा,” अगर सही समय पर रिजर्वेशन नहीं मिला होता तो भारी मुसीबत हो जाती। “
सावित्री,” बहू, वो लिट्टी रखी थी ना तूने ? “
सीमा,” हाँ माँ जी, रख ली थी। “
ट्रेन अपनी गति से चले जा रही थी। उनको शादी में संबलपुर जाना था। लेकिन सम्बलपुर पहुंचने के एक घंटे पहले ट्रेन का भयानक ऐक्सिडेंट हो गया।
हर ओर चीख पुकार मच गई। एक्सीडेंट में कई लोग मारे गए। राजेश भी काल के समुन्दर में समा गया। सावित्री और सीमा भी इस ऐक्सिडेंट में घायल हो गए थे।
लेकिन सीमा और सावित्री को इस दुर्घटना ने ऐसा जख्म दिया था जिसका दर्द वो ताउम्र नहीं भुला सकते थे।
सीमा,” अरे ! कई लोग मर गए तो फिर मुझे क्यों जिंदा छोड़ दिया भगवान आपने…क्यों ? राजेश के बिना मैं कैसे जियूंगी ? “
सावित्री,” हिम्मत रख बहू हिम्मत रख। होनी का लिखा कौन मिटा सकता है ? “
अपने इकलौते बेटे की असमय हुई मौत ने सावित्री को तोड़ दिया था। सीमा की भी जीने की इच्छा खत्म हो गई थी। लेकिन इसके बावजूद जीना तो था ही।
सावित्री,” बहू, पता है जीवन का सत्य क्या है ? यह रुकता ही नहीं है। जब तक हम संसार में रहेंगे तो चलना तो पड़ेगा ही। “
सीमा,” लेकिन माँ जी कैसे चलेंगे ? सहारा तो चला गया। अब जीने की इच्छा ही नहीं रही। “
सावित्री,” बहू, राजेश का जाना सच में अंतहीन पीड़ा वाला है लेकिन जीना तो पड़ेगा ही। क्योंकि वो जहां भी है, अगर हमें दुख में देखेगा तो क्या वो खु़श रह पाएगा ? हमें उसके लिए जीना होगा। “
सीमा,” लेकिन माँ जी कैसे सब कुछ होगा ? राजेश की कमाई से ही तो घर चलता था।
अब कहां से आयेंगे पैसे, कैसे चलेगा घर का चूल्हा, कैसे किराया दिया जाएगा और कैसे सारी चीजें संभलेंगी। “
सावित्री,” बहू, शादी के बाद तेरी पढ़ाई अधूरी रह गई थी। तू पढ़… खूब पढ़ और उसके बाद अपनी मंजिल खुद तय कर।
और जहाँ तक बात रही घर को संभालने की तो वो मैं संभाल लूंगी। राजेश के पिता तो जब राजेश 6 साल का था तभी गुजर गए थे। लेकिन मैंने हिम्मत का साथ नहीं छोड़ा।
सिलाई का काम शुरू किया और उसी से ही तो उसकी पढ़ाई पूरी करवाई। आज एक बार फिर मैं वही करूँगी। इस बार अपनी बहु के लिए। “
उसकी बात को सुनकर सीमा ने कहा।
सीमा,” माँ, क्या ये अच्छा लगेगा कि आप इस उम्र में काम करेंगी ? नहीं नहीं, सिलाई कढ़ाई मैं कर लिया करूँगी। मैं संभाल लूंगी घर। “
सावित्री,” नहीं बहू, अरे ! मैं इतनी भी बूढ़ी नहीं हुई हूँ। अभी मुझमें बहुत दम बाकी है।
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मैं तुम्हारा और अपना दोनों का ध्यान रख सकती हूँ। बस मन लगाकर पढ़, अपनी पढ़ाई पूरी कर और नौकरी की तैयारी कर। “
सावित्री सिलाई का काम करने लगी और सीमा ने अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करना शुरू किया। उसकी कॉलेज की फीस, किताबें, कॉपियां, नोट्स, घर का खर्चा चलाना सब कुछ सावित्री के कंधों पर था।
इसलिए वो खूब मेहनत करती। धीरे धीरे सावित्री की मेहनत और सीमा की लगन के कारण उसने एम.ए. की परीक्षा फ़र्स्ट क्लास में पास की।
सीमा,” ये सब आपका आशीर्वाद है माँ, नहीं तो मैं तो हिम्मत ही हार चुकी थी। “
सावित्री,” अरे ! मेरा आशीर्वाद तो हमेशा तेरे साथ है। लेकिन मेरे आशीर्वाद से ज्यादा तेरे कठिन परिश्रम ने अपना रंग दिखाया है। “
सीमा,” मां जी, कठिन परिश्रम तो आपने किया है मेरे लिए। “
पढ़ाई पूरी करने के बाद सीमा नौकरी के लिए परीक्षा देने लगी। लेकिन हर बार एक या दो नंबर से उसका सलेक्शन छूट जाता।
एक बार तो वो इंटरव्यू तक पहुँच गई थी। लेकिन फाइनल में उसका नहीं हुआ।
इसलिए सीमा थोड़ी परेशान और हताश सी हो गई थी और वो अब और परीक्षा नहीं देना चाहती थी। क्योंकि परीक्षा के फॉर्म भी तो महंगे आते थे।
सावित्री,” जब मैं हूँ तो फिर चिंता किस बात की बहु ? तुझे बस अपनी मंजिल पानी है, हौसला नहीं छोड़ना है।
क्योंकि हौसले को जिसने छोड़ा मंजिल खुद व खुद उसकी नजरों से ओझल हो जाती है। “
आखिरकार सावित्री के विश्वास और सीमा की मेहनत का फल कुछ इंतजार के बाद मिल गया। सीमा का सिलेक्शन सरकारी ऑफिसर के पद पर हो गया।
उस दिन तो सावित्री सीमा को पकड़कर इतना रोयी इतना रोई कि सीमा को कहना पड़ा।
सीमा,” माँ जी, अब तो हमारे दुख के दिन खत्म हो गए। आपकी तपस्या का फल आपको मिल गया। फिर आपकी आँखों में इतनी सारे आंसू क्यों ? “
सावित्री,” ये आंसू जमा थे बहू बहुत दिनों से। ये सब्र के आंसू हैं और जब सब्र में खुशी मिल जाती है ना तो फिर ये आँखों के पोरो का बांध तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं। आज मैं बहुत खुश हूँ बहुत। “
ऐसा लगा कि सावित्री और सीमा की जिंदगी में सबकुछ ठीक हो गया। लेकिन ज़िंदगी एक और अध्याय लेकर सावित्री के सामने खड़ी होने वाली थी।
जिस बहू के लिए उसने दिन और रात की परवाह नहीं की। रात दिन मेहनत की, वो बहू अब बदल गई थी। घमंड उसमें फूट फूटकर भर गया था।
अफसर की नौकरी के आगे वो किसी को कुछ नहीं समझती। ऑफिस में भी लोगों से बदतमीजी से बात करती।
काम के बदले घूस भी मांगती और नहीं देने पर उन पर अपना रौब जताती। एक दिन की बात है। सीमा ऑफिस में बैठी है और वो किसी औरत को डांट रही है।
सीमा,” अरे ! दिमाग खा गयी हो तुम तो मेरा। दूर हटो… दूर हटो मुझसे। कहां कहाँ से चले आते हैं ? “
औरत,” आप गुस्सा क्यों होती हैं मैम, मैं तो अपने हक के पैसे मांग रही हूँ ? वो भी मैं नहीं मांगती… लेकिन क्या करूं ?
अगर वो पैसे नहीं मिले तो हमारा परिवार बिखर जाएगा। मेरा इकलौता बेटा रेल दुर्घटना में मारा गया। वो अकेला कमाने वाला था मेरे परिवार में।
सोचा मुआवज़े से जो पैसे मिलेंगे, उससे एक सिलाई मशीन खरीदूंगी और अपने परिवार का पेट पाल लूंगी। मेरे मुआवज़े के पैसे के लिए भी आपको पैसे चाहिए।
मैं कहाँ से दूंगी पैसे ? मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है। “
ये कहकर वो औरत रोने लगी। उसकी गर्भवती बहू जो वहाँ खड़ी थी, वो अपनी सास को चुप कराने लगी।
अपने सामने ये दृश्य देखकर सीमा अपने पिछले दिनों में पहुँच गई। सावित्री का चेहरा उसकी आँखों के आगे घूमने लगा।
उसे उसकी तपस्या याद आने लगी। ना चाहते हुए भी उसकी आँखों से आंसू का सैलाब बाहर निकल आया।
सीमा,” आज मैं जो कुछ भी हूं, सब मां जी के कारण हूं और जब मुझे सब मिल गया तो देखो कैसे घमंड ने मुझे अपने दलदल में फंसा लिया ?
माँ जी को नीचा दिखाया, जरूरतमंदों को नीचा दिखाने लगी। ये सब क्यों करने लगी मैं… क्यों ? मुझसे गलती हुई है भारी गलती, मुझे ये गलती सुधारनी है। “
सीमा ने उसके मुआवज़े की फाइल तुरंत पास की और ऑफिस से अपने घर को निकल गई। घर पहुँचकर वो सीधा अपनी सास के कमरे में गयी।
उसकी सास लेटी हुई थी। उसने उसके पांव पकड़ लिये और उनसे माफी मांगने लगी।
सीमा,” मां जी… मां जी, मुझे माफ़ कर दीजिये। पता नहीं मुझे किस बात का घमंड हो गया था ?
अरे ! सब कुछ तो आपका दिया है। आप के चलते लोग मुझे जानते हैं। लेकिन मैं ये भूलकर खुद को ही सब कुछ समझने लगी। मुझे माफ़ कर दीजिए मां जी, प्लीज़ माफ़ कर दीजिये। “
सीमा अपनी सास के पांव पकड़कर रोये जा रही थी। लेकिन सावित्री तो अचेत सी पड़ी थी और वो घमंड की दुनिया को छोड़कर कहीं दूर जा चुकी थी।
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सीमा को जब अपनी सास के गुज़रने का पता लगा तो रो रोकर उसका हाल बेहाल हो गया। वो बार बार खुद को कोसने लगी।
लेकिन अब क्या होता ? हालांकि अब उसे जीवन की सबसे बड़ी सीख मिल गई है। घमंड से दूर रहने की सीख।
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