हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चित्रकार ” यह एक Bhoot Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
शक्श, “कौन हो तुम और क्या चाहते हो मुझसे? पैसे चाहिए, बोलो, ड्रग्स चाहिए, लड़की चाहिए?
तुम कुछ बोलते क्यों नहीं हो? मुझे इस तरह से क्यों बांध रखा है?”
एक शख्स को किसी ने हवा में हाथ-पैर बांधकर लटकाया हुआ था और उसके ठीक नीचे एक बड़े से टब में मोम उबल रही थी,
जिसकी भाप से ही ऊपर बंधा वह शख्स धीरे-धीरे झुलस रहा था।
ज़ोर-ज़ोर से चीख रहा था, पर उसके आस-पास कोई भी नहीं था, जो उसकी चीखें सुन उसकी मदद के लिए आ पाता।
इस पर भी उस शख्स के जिस्म पर जगह-जगह काटने के निशान थे, जिनसे टपका खून ठीक उसके नीचे उबल रही मोम को लाल कर रही थी।
लगातार खून का गिरना, उस पर से उबलती मोम की झुलसती भाप से वो शख्स अधमरा हो गया था।
जब उसे अपना दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो बेहोश होने लगा था कि तभी एक नकाबपोश शख्स कमरे में आया
और ऊपर बंधे उस शख्स को देख मुस्कुराते हुए कहा, “तो मिस्टर सिंघानिया, कैसे हैं आप?
मैं उम्मीद करता हूँ मैंने आपको ज़्यादा तकलीफ नहीं दी होगी? भला मौत से अच्छी शांति किसको मिली है आज तक?”
मिस्टर सिंघानिया, “तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि मैं कितना ख़तरनाक आदमी हूँ?
अगर मैं ज़िंदा बच गया न, तो तू सोच भी नहीं सकता मैं तेरा क्या हाल करूँगा?”
नकाबपोश, “मरने से पहले इतना गुस्सा करना ठीक नहीं होता। चुपचाप से हवा में लटके रहो। जल्दी ही तुम ऊपर चले जाओगे।”
ये सुनते ही सिंघानिया और ज़ोर से छटपटाने लगा था और चीख-चीखकर मदद के लिए चिल्ला रहा था।
तभी नकाबपोश ने अपनी जेब से पहले तो एक सिगरेट जलाई और फिर एक मोमबत्ती जला, एक रस्सी के नीचे रख दी जिससे वो सिंघानिया हवा में लटका हुआ था।
जैसे-जैसे वो रस्सी जल रही थी, सिंघानिया इंच इंच कर नीचे आता जा रहा था।
मिस्टर सिंघानिया, “नहीं, ऐसा मत करो। आखिर मेरी गलती क्या है? मैंने तुम्हारा…आ आ आ।”
इससे पहले सिंघानिया अपनी बात पूरी करता, वो एक झटके में खौलती हुई मोमबत्ती में जा गिरा।
उसकी आखिरी चीख भी उसके अलावा और कोई नहीं सुन पाया।
बंशी, “अरे साहब! क्या बताएं, बड़ी मनहूस पेंटिंग है। जो कोई भी इसे खरीदने की सोचता भर है, वो साला कहाँ गायब हो जाता है, कुछ पता नहीं चला?
तीन लोगन की खबर तो हमै सुन लिए। एक दिन आए, बोले पेंटिंग चाहिए, फिर अगले दिन गायब। फिर कभी दिखे ही नहीं, नाईं यां और नाईं यां दुनिया में।”
चित्रकार | CHITRAKAR | Horror Kahani | Bhoot Ki Kahani | Darawani Kahaniyan | Horror Stories in Hindi
अतुल, “अच्छा, ऐसा क्या है इस पेंटिंग में? देखने में तो किसी खूबसूरत लड़की की लगती है?”
इतना कहकर सब-इंस्पेक्टर अतुल दीवार पर लगी एक औरत की पेंटिंग के और करीब चला गया।
फिर राजस्थान से पेंटिंग की बारीकियों को देखते हुए बोला, “वैसे बनाने वाले ने क्या बनाया है?
एक बार देख लो तो नजरें चुराना भी पाप सा लगता है। ऐसा सुकून, वो भी इतने दर्द में… कोई कैसे बर्दाश्त कर पाया होगा?”
बंशी, “हमें तो ऐसो कछू नजर नहीं आत है। पता नईं आप समझदार लोगन कों का ऐसी खूबसूरत चीज़ नजर आत है?
एक लड़की है। शायद छह से आठ महीने पेट से है, जिसने अपने एक हाथ में गुलाब और चाकू को एक साथ पकड़ रखा है
और चाकू की वजह से उसके हाथ से गिरता खून एक बच्चे के दूध पीने वाले प्याले में इकट्ठा हो रहा है। और दूसरे हाथ में एक मोमबत्ती पकड़ी हुई है।
अब इसके अलावा इसमें ऐसी कौन-सी खास बात है… हमको नहीं पता?”
अतुल, “इसीलिए तो तू चौकीदार है बंशी और मैं एक सब-इंस्पेक्टर। जल्दी से इसे पैक करवा, मुझे इसके असली मालिक तक भी पहुंचानी है।
साला कभी दलाल, तो कभी चौकीदार, तो कभी पोस्टमैन… मिनिस्टर लोग साले पुलिस वालों को समझते ही नहीं हैं।”
बंशी, “आप चिंता मत करिए, मैंने बोल दिया है। लोग अभी आते ही होंगे इसे पैक करने के लिए। आइए, जब तक मेरे कमरे में एक एक कप चाय पीते हैं।”
चौकीदार बंशी सब-इंस्पेक्टर से कहते हुए उसे अपने कमरे में ले गया। दोनों बैठकर चाय पीने लगे।
फिर कुछ और बातें भी हुईं और आखिर में सब-इंस्पेक्टर अपनी मंज़िल की ओर चल दिया।
पुलिस जीप की सीट पर पेंटिंग पड़ी थी और अतुल हवा से बातें करता हुआ जीप दौड़ाए जा रहा था।
रास्ता सुनसान था। शाम रात की चादर ओढ़ रही थी। जिस रास्ते से अतुल जा रहा था, उसके आस-पास सिर्फ खेत ही खेत थे,
जिसमें कमर तक धान की बालियाँ थीं, जिनके ऊपर जुगनू मंडरा रहे थे। अतुल भी गाना गुनगुनाते हुए जा रहा था।
कि अचानक उसने अपनी कार की ज़ोर की ब्रेक लगाई कि वो खुद शीशा तोड़ बाहर गिरने को हो गया था।
अतुल, “ये रास्ते पर इतना बड़ा पेड़ कैसे गिर गया? न कोई आँधी, न तूफ़ान… कहीं किसी की कोई साजिश तो नहीं है?”
अतुल खुद से कहता हुआ कमर पर बंधी पिस्तौल निकाल जीप से बाहर आ गया और चौकन्ना हो वो धीमे कदमों से आगे बढ़ा जा रहा था
कि अचानक ही पीछे से किसी ने उसके सिर पर हमला किया, जिससे अतुल मौके पर ही बेहोश हो गया।
जब उसकी आंख खुली तो पहले से उसे किसी की चीख सुनाई दे रही थी। पर उसके सिर में अभी भी चोट का दर्द गूंज रहा था।
पर किसी तरह उसने जब अपना होश संभाला, तो देखा उसके सामने एक शख्स हवा में बंधा हुआ है और ठीक उसके नीचे एक बड़ा बर्तन है,
जिसमें मोम उबल रही थी, जिसकी भाप भर से हवा में लटका वो शख्स झुलस रहा था।
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शक्स, “कौन हो तुम और मुझे इस तरह क्यों बाँध रखा है? मैं तुमसे बात कर रहा हूँ। मुझे दर्द हो रहा है। तुम सुन क्यों नहीं रहे हो?”
हवा में लटके उस शख्स की आवाज़ सुन अतुल ने पहचान गया था—वो मिस्टर कपूर थे, जिनके यहाँ सब-इंस्पेक्टर अतुल पेंटिंग डिलिवर करने जाना था।
पर मिस्टर कपूर की नजरें अतुल पर नहीं, बल्कि कहीं और थीं। और जब अतुल ने मिस्टर कपूर की नजरों का पीछा किया, तो देखा कि वो शख्स कोने में खड़ा पेंटिंग को देख रो रहा है।
सारे मामले को समझते हुए अतुल मौका देख वहाँ से निकलने को हुआ, तो उसे अपने पास कुछ गीला महसूस हुआ।
वो इसे नज़रअंदाज़ कर वापस से उठने को हुआ, कि ज़ोर की चीख के साथ वापस अपनी जगह पर ही बैठ गया।
वो चीख दर्द की थी—किसी ने उसकी किडनी में चाकू धंसा रखा था।
नकाबपोश, “अरे! मुझे तो लगा था कि तुम होश में आते ही बोलोगे। पर तुम तो चीखने लगे।”
एक नकाबपोश आदमी आहिस्ता कदमों से अतुल की ओर चला आ रहा था। वो अतुल के पास आकर उसके ज़ख्म को ध्यान से देखते हुए बोला,
नकाबपोश, “खामखां तुम इसका हिस्सा बन गये। पुलिसवालों की ज़िन्दगी ऐसी होती है—कभी दलाल, कभी चौकीदार, तो कभी पोस्टमैन। बस पुलिस का काम छोड़कर तुम सब करते हो।”
नकाबपोश की बात सुन अतुल का माथा ठनक गया था। उसने सोचते हुए बस इतना कहा, “बंशी… तू है इस नकाब के पीछे?”
बंशी का नाम सुनते ही उस नकाबपोश शख्स ने अतुल की किडनी में धंसे चाकू को आहिस्ते से और अंदर दबाते हुए कहा—
नकाबपोश, “बंसी नहीं, आर्टिस्ट सत्या… महान चित्रकार सत्या।”
सत्या अपने दांत भींचते हुए अतुल की किडनी में चाकू को और अंदर धंसा रहा था, जिससे अतुल को इतना दर्द हो रहा था जिसकी कोई इंतिहान नहीं थी।
वो सत्या के चेहरे पर नाखून मारता हुआ एड़ियां रगड़ रहा था, जिससे सत्या का नकाब हटकर नीचे गिर गया था।
नकाब हटते ही अतुल का चेहरा हैरानी में बदल गया था। नकाब के पीछे बंसी था, जो खुद को सत्या कह रहा था।
मगर अतुल ने अपना दर्द बर्दाश्त करते हुए आखिरकार सत्या से पूछ ही लिया।
अतुल, “तो इससे पहले जितने भी लोग इस पेंटिंग के नाम पर मारे गए, उन सबका क़त्ल तुमने किया था, है ना?
पर क्यों..? ऐसा क्या है इस पेंटिंग में? क्यों तुम इसे किसी और की होने नहीं देते?”
नकाब हटने के बाद अतुल सत्या की आँखों में आँखें डाल गुस्से से उससे कह रहा था
कि तभी मोम के बड़े से बर्तन के ऊपर लटके मिस्टर कपूर ने कहा, “साले, एक चौकीदार होके तेरी इतनी हिम्मत? तेरे तो मैं इतने टुकड़े करूँगा ना कि लोग गिनेंगे नहीं, बल्कि बटोरेंगे।”
मिस्टर कपूर ने जब सत्या को चौकीदार कहा, तो उसका गुस्सा आसमान पर जा चुका था।
वो तुरंत ही खड़ा हुआ और कील से बंधी रस्सी को ढीला करने लगा, जिससे उसके सहारे लटके मिस्टर कपूर सीधे मोम के बर्तन के और करीब आ गए।
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भाप अब इस कदर बढ़ चुकी थी कि मिस्टर कपूर के चेहरे से मांस गलकर नीचे मोम के बर्तन में गिरने लगा था और उनकी चीखें और तड़पड़ाहट साथ में आसमान तक जा पहुँचीं।
सत्या, “मेरा नाम ‘सत्या’ है… महान चित्रकार सत्या। अगर दुबारा ऐसी गलती की तो रस्सी ढीली नहीं, सीधा तोड़ दूंगा, समझे?”
सत्या मिस्टर कपूर को वापस कील में बांधता हुआ कह रहा था। वह रस्सी को बांधकर वापस सब-इंस्पेक्टर से बात करने आ ही रहा था
कि उसने देखा—सब-इंस्पेक्टर ठीक उसके सामने हाथ में वही चाकू लिए खड़ा है जो कुछ पल पहले उसकी किडनी में धंसा था।
अतुल, “सत्या, अब खुद को सरेंडर कर दे वरना तेरा अंजाम अच्छा नहीं होगा।”
सत्या, “फिर से वही घिसी-पिटी लाइन? अरे! कुछ तो नया बोल।”
सत्या मुँह बनाता हुआ अतुल से कह रहा था कि उसने देखा कि अतुल उसके सामने हाथ में चाकू लिए खड़ा है।
पर इससे पहले सत्या अपनी बात पूरी करता, अतुल ने वो चाकू सत्या की पसली में घुसा दिया और आहिस्ता-आहिस्ता उसे घुमाते हुए बोला,
अतुल, “जब डायलॉग इतना फेमस है, तो इसे फिर बदलना क्यों? चल अब तेरा पंचनामा लिखता हूँ। बता सब शुरू से वरना चाकू में अभी भी बहुत धार बची है।”
सत्या को भी अंदाज़ा हो गया था कि वो अपने ही जाल में फँस चुका था और अगर जल्दी उसने कुछ नहीं किया, तो वो ज़िंदा भी नहीं बचेगा।
सत्या, “तू सही था, इंस्पेक्टर। इस पेंटिंग में जो औरत है, वो मेरी माँ है और उसके पेट में जो बच्चा है, वो मैं हूँ।
ये पेंटिंग मेरे बाबा ने मेरी माँ के लिए बनाई थी, जो मेरे पैदा होते ही चल बसी थी।
जिसका इल्ज़ाम मेरे बाबा ने मुझ पर डाल दिया था। वो मुझसे नफरत करते थे।
बचपन से ही मुझे मारते थे। मेरे चेहरे में उन्हें अपनी मरी हुई पत्नी दिखाई देती थी।
इसीलिए फिर एक दिन मैंने उनको मार दिया… ठीक मिस्टर सिंघानिया की तरह उबलती मोम में डुबाकर।
और मेरे पास मेरी माँ की बस यही एक निशानी थी, ये पेंटिंग… जिसे बाबा ने कौड़ियों के भाव भंगार में बेच दिया था।
इसीलिए जब कोई दूसरा पैसे के दम पर मेरी माँ को खरीदना चाहता है, तो मैं उससे उसकी जान खरीद लेता हूँ… वो भी कौड़ियों के भाव… वो भी कौड़ियों के भाव।”
अतुल, “इसलिए तू ये पेंटिंग खरीदने वालों को पहले ही मार देता है, ताकि तू अपनी माँ से अलग न हो पाए…? तू सच में एक दरिंदा है, जिसे सराखों के पीछे होना चाहिए।”
सत्या और अतुल दोनों ही बहस कर रहे थे,श कि तभी मिस्टर कपूर ने तड़पते हुए कहा, “हेल्प मी प्लीज!”
मिस्टर कपूर की बात सुन अतुल तुरंत ही उसे मोम के बर्तन से ऊपर हटा अपने पास ले आता है।
पर जब उसने दोबारा सत्या को देखना चाहा, तो वह गायब था और उसकी माँ की पेंटिंग भी गायब थी।
वह तुरंत समझ गया था कि सत्या एक बार फिर से फरार हो चुका है।
वो मिस्टर कपूर को सहारा देकर बाहर जाने को ही हुआ, तभी सत्या ने अपने हाथ में मशाल और दूसरे हाथ में वो पैंटिंग लिए पीछे से कहा, “इतनी जल्दी कहां चली दिये, इंस्पेक्टर अतुल?
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अभी तो खेल शुरू हुआ है। भागो जहाँ तक भाग सकते हो। अब मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाला।”
इतना कहकर सत्या ने पूरे घर में आग लगा दी। सारा घर मोम का बना हुआ था इसीलिए देखते ही देखते पूरा घर आग की चपेट में आ गया।
अतुल भी होश से काम ले तुरंत मिस्टर कपूर के साथ बाहर आ गया। उनके बाहर आते ही पूरा घर ढह चुका था,
लेकिन जब पंचनामा हुआ तो उसी घर के तहखाने में बहुत सी लाशें मिली जिन पर मोम लगा हुआ था।
उन सभी की पहचान तो हो गई थी पर सब इंस्पेक्टर अतुल को सत्या की लाश नहीं मिली थी, जिसका मतलब साफ़ था की सत्या अभी भी फरार है।
आज 10 साल बाद सब इंस्पेक्टर अतुल डीजीपी बन गया है लेकिन उसके मन से ये सत्या नाम की टीस आज तक नहीं मिटी
और साथ ही पैंटिंग में उस लड़की का चेहरा, जो आज भी अतुल के ख्यालों में जिंदा है।
दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!