हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” अघोरी ” यह एक True Horror Story है। अगर आपको Horror Stories, true Stories या Sachhi Darawani Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
सुमित्रा गुप्त अंधेरे में जंगल में एक पतली सी पगडंडी पर चले जा रही थी। उसके चारों तरफ मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था।
सुमित्रा कीसांसे गर्म थीं और उसके आसपास का इलाका लाश की तरह ठंडा। वो मन ही मन कुछ बड़बड़ा भी रही थी, जो उसके सिवा कोई नहीं सुन रहा था।
कि अचानक ही किसी ने सुमित्रा को पीछे से टोकते हुए कहा, “लगता है, तू अपनी जिद मनवा कर ही मानेगी?
कितनी बार कहा है तुझे, जो तू चाहती है, वो मैं तुझे नहीं दे सकता? फिर हर अमावस को क्यों मेरे पास चली आती है?”
आवाज़ सुन सुमित्रा की साँसें अब शांत हो गईं। शायद वो इस आवाज़ को पहचानती थी
और इस आवाज़ के पीछे छिपे चेहरे को भी। अब सुमित्रा का डर हवा हो चुका था। उसने तुरंत ही पीछे मुड़कर देखा।
तो एक अघोरी बरगद के पेड़ से उल्टा लटका हुआ, अपनी साधना में लीन था और बुदबुदाते हुए किन्हीं मंत्रों का उच्चारण कर रहा था।
सुमित्रा, “आघोरी बाबा, आप भी तो मेरी बात मानने को तैयार नहीं होते। आपके लिए तो कितना छोटा सा काम है ये है?
जिसके लिए मैं पिछले 12 अमावस्या से आपके पास आ रही हूँ और आज तेरहवीं है। कम से कम आज तो मुझे खाली हाथ मत भेजिए।”
सुमित्रा की बात सुन अघोरी बाबा ने अपनी आँखें खोल लीं जिसे देख सुमित्रा कांपने लगी थी क्योंकि अगोरी बाबा की आंखें थी ही नहीं,
बस आँखों की जगह गहरे गड्ढे थे। पर फिर भी अघोरी बाबा को सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता था।
सुमित्रा भी अपनी जिद आगे उड़ चुकी थी। उसे डर तो लग रहा था, पर सुमित्रा ने अपने कदम पीछे नहीं किए। अघोरी भी अब सुमित्रा के सामने खड़ा हुआ था।
अघोरी, “पर क्यों चाहती है तू ये सब? क्या हासिल होगा तुझे हम में से एक बनकर?
मेरी तरह संसार का सुख छोड़कर जंगलों में भटकना होगा। कोई नहीं होगा तेरे आगे-पीछे, तेरे से पूछने वाला, तुझे कुछ बताने वाला।
सब कुछ त्यागना होगा तुझे। यहाँ तक कि शारीरिक सुख भी।”
अघोरी बाबा की बात सुन, सुमित्रा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान छलक आई थी।
उसने तुरंत ही बिना सोचे-समझे अघोरी से कहा, “बाबा, मुझे ऐसा मंजूर है।
बस आप मुझे अपनी दासी बना लो। मुझे अघोरी बनना है और मैं जानती हूँ आप मुझे अघोरी बना सकते हैं।”
सुमित्रा की जिद के आगे अघोरी की एक नहीं चली।
अघोरी ने भी एक लंबी साँस लेते हुए सुमित्रा से कहा, “एक शर्त पर… तुम्हें मुझे वो सब कुछ सच-सच बताना होगा
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कि आखिर ऐसा क्या हुआ था तुम्हारे साथ और किस बदले की आग में दिन-रात जल रही हो?”
अघोरी की शर्त सुन सुमित्रा की आँखें नम हो गईं। जैसे उसे अपने बदतर कल की झलकियां दिखाई देने लगी हों।
सुमित्रा, “बाबा, मैं वैश्य हूँ। अपने जिस्म को बेचकर पैसे कमाती हूँ। ना माँ रही और ना बाप।
ले-देकर एक अधेड़ उम्र के आदमी बलवंत ने मुझसे शादी का वादा किया। सारे सुख भोगे और जब मन भर गया तो कुछ कागज़ के टुकड़ों के लिए मुझे बंगाल के सोना काची में बेचकर भाग गया।
पहले कुछ दिन तो मैंने उनकी बातें मानने से साफ इंकार कर दिया। पर कहते हैं ना… मरना तभी होता है जब मौत आती है।
और मुझे तो हर रात इतना मारा जाता था कि मौत ने भी मुझे अपनाने से इंकार कर दिया था।
फिर हालात और भूख के आगे मुझे झुकना पड़ा। मैंने वो ज़िन्दगी अपना ली। उस रात को चादर की तरह बिछना।
अजीब-अजीब से लोग आते थे और उनकी शक्लों में मुझे उस बलवंत का ही चेहरा दिखाई देता था।
जिन्हें सिर्फ मेरा नंगा जिस्म ही दिखता था, मेरा दिल या मेरा मन नहीं। ऐसे ही ज़िंदगी बिस्तर पर बिछी चादर की तरह गुजर रही थी
कि तभी एक रात को वो आया। मेरी उजाड़ और बर्बाद हुई दुनिया में अपनी खुशबू लेकर।”
ये कहते हुए सुमित्रा की आँखें चमक उठी थीं। उसे कोई अपना याद आया।
अघोरी, “कौन आया था, सुमित्रा? किसकी बात कर रही हो तुम?”
इस पर सुमित्रा ने मुस्कराते हुए अघोरी से कहा, “राजीव नाम था उसका। कलकत्ता के किसी कॉलेज में पढ़ता था।
पहली बार जब उसने मुझे अपनी साड़ी उतारते देखा, तो वो काँपने लगा था।
बोला, ‘मेरा फर्स्ट टाइम है। क्या हम सिर्फ बातें कर सकते हैं?’
ये मेरी ज़िंदगी का पहला मर्द था जो मुझसे सिर्फ बात करना चाहता था। वरना इससे पहले जितने मर्द मिले, सब मेरे साथ… खैर छोड़ो।
धंधे का टाइम था और मेरे पास इन सब फालतू चीजों का बिल्कुल टाइम नहीं था, जिससे मैंने उसे अपने कमरे से निकाल फेंका।
वो क्या है ना, जब हमें धंधे के नियम-कानून सिखाए जाते हैं, तो सबसे पहला नियम ये होता है
कि कभी भी हमें धंधे में अपना दिल नहीं लगाना होता, क्योंकि इस धंधे में हमें दिल लगाने के पैसे नहीं मिलते हैं।”
ये कहते हुए सुमित्रा रोने लगी थी। जिसे देख अघोरी भी चौंक गया था।
अघोरी, “क्या हुआ सुमित्रा? तुम ठीक तो हो? क्या वो लड़का फिर आया था तुम्हारे पास, कुछ तो बोलो?”
सुमित्रा, “हाँ बाबा, वो फिर आया था। मगर इस बार उसके शरीर का एक अंग कटा हुआ था। उसका एक हाथ नहीं था, बाबा।”
अघोरी, “क्या मतलब एक हाथ नहीं था? कोई एक्सीडेंट हो गया होगा। पर ये तो बताओ, जब वो दुबारा तुम्हारे पास आया,
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तो क्या इस बार भी तुमसे बात ही करना चाहता था या फिर कुछ और…?”
और अघोरी की इस बात पर सुमित्रा बोली, “हाँ बाबा, आया था। पर इस बार भी वो सिर्फ मुझसे बात ही करना चाहता था।
पर उसका कटा हुआ हाथ देख मैंने इस बार उसे नहीं भगाया, बल्कि उससे खुद कहा, ‘कहो, जो कहना चाहते हो।’
पर हैरानी की बात ये थी कि वो कुछ बोला ही नहीं। मैंने बहुत पूछा फिर भी उसने अपनी जुबान से एक लफ़्ज़ नहीं कहा। बस एकटक प्यार से मुझे देखता रहा।”
सुमित्रा की कहानी में अब अघोरी दिलचस्पी लेने लगा था।
उसने चौंकते हुए सुमित्रा से फिर पूछा, “लगता है कोई पागल ही मिला था तुमको। लेकिन क्या सच में तुम उस पागल के लिए अघोरी बनना चाहती हो?”
सुमित्रा, “हाँ बाबा, मैं उस पागल के लिए ही अघोरी बनना चाहती हूँ। सच कहूँ तो वो कोई पागल नहीं था।
दरअसल, उस रात के बाद वो तीन बार और आया था मुझसे मिलने। और हर बार उसके जिस्म से उसका एक अंग गायब मिलता था।
और हर बार वो मुझसे बात करने का बोलकर चुप हो जाता था। बस मुझे देखता रहता।
सच कहूँ तो उसकी आँखें बहुत कुछ बोलती थीं, जिसे शायद मैंने ही कभी पढ़ने की कोशिश नहीं की।
वो अचानक से मुझे देखकर खुश हो जाता, तो कभी बिलख-बिलखकर रोने लगता। बाबा, राजीव बहुत प्यार करने लगा था मुझसे।”
अघोरी, “तो क्या तुमने उससे अंगों के बारे में पूछा? नहीं? आखिर ऐसा क्या करता था वो? और किस तरह का प्यार था?
ना कुछ बोलना, ना कुछ बताना, बस पत्थर की तरह किसी को घूरते रहना। मेरे समझ से तो ये बिल्कुल परे है।”
अघोरी बाबा भले ही सुमित्रा पर पूरी तरह से यकीन ना कर रहे हों, पर सुमित्रा ने तो ये जिया था। फिर भला वो कैसे इन सबको झुठला सकती थी?
लेकिन सुमित्रा के पास अघोरी के सवालों में सारे जवाब थे।
सुमित्रा, “बाबा, मैंने बताया तो आपको, वो पहली मुलाकात के बाद तीन बार और मुझसे मिलने आया था।
साथ में खूब सारे पैसे भी लेकर आया था। लेकिन उससे हुई आख़री मुलाकात में उसने मुझे सब कुछ बताया था।
कह रहा था कि उसने किसी अघोरी से अपने शरीर का समझौता किया है, जो हर अमावस को उसके जिस्म से एक हिस्सा काटकर खाता है।
उसने मुझे ये भी बताया था कि मरने के बाद भी उसकी आत्मा उसी के कब्जे में रहेगी।
इसलिए मैं अघोरी बनना चाहती हूँ, ताकि मैं उस अघोरी से राजीव की आत्मा को मुक्ति दिला सकूँ।”
सुमित्रा की सारी बात सुनने के बाद अघोरी ने बस इतना कहा, “कल से अगले 13 महीनों तक मेरे साथ शमशान चलना होगा।
वहाँ मैं तुझे सारी विद्या, सारे तंत्र-मंत्र सिखाऊँगा — अघोरी की क्या साधना होती है, अघोरी का क्या महत्त्व होता है, सब कुछ।”
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बाबा की मंजूरी मिलने के बाद सुमित्रा ने तुरंत ही बाबा के पैर छुए और अगले दिन से अघोरी के साथ सुमित्रा शमशान जाकर साधना करने लगी।
आधी जली लाश का मांस खाना, तो कभी कच्चा मांस कौओं को खिलाना, तो कभी-कभी घंटों किसी जानवर की लाश पर बैठकर मंत्र-उच्चारण करना।
पर आखिर वो दिन आ ही गया जब सुमित्रा को अघोरी की सिद्धियाँ प्राप्त हो गईं। पहले तो उसने अपने गुरु के पैर छुए और फिर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ ही रही थी
कि बाबा ने सुमित्रा से पूछा, “सुमित्रा, तुमने बताया नहीं वो अघोरी कौन था जिसके पास तुम्हारे राजीव की आत्मा कैद है?”
ये सुनते ही सुमित्रा की आँखों में खून उतर आया था। उसने अपने दाँतों को पीसते हुए कहा, “बाबा, उस जल्लाद का नाम — अघोरी नंदा है।”
अघोरी, “अघोरी नंदा..? क्या तुम पागल तो नहीं हो गई हो? वो अघोरी जिन्न को अपने काबू में करता है और मेरी शक्तियाँ सिर्फ
और सिर्फ इंसानों और जानवरों की आत्माओं को ही काबू कर सकती हैं। हम लोग जिन्न के आगे एक पल भी नहीं टिक पाएँगे।”
अघोरी बनने के बाद भले ही सुमित्रा की आदतें और रहन-सहन बदल गई हों, लेकिन उसकी जिद और उसका गुस्सा अभी भी पहले जैसी ही था।
सुमित्रा, “बाबा, मर तो मैं पहले ही चुकी थी। अब तो बस किसी को मुक्ति दिलाने के लिए कुछ साँसें बची हैं। बस उसी से किसी का भला करना चाहती हूँ।”
ये कहकर सुमित्रा सीधा अघोरी नंदा के पास जाने को चलती है कि सुमित्रा के गुरु ने कहा, “रुको सुमित्रा, इस लड़ाई में तुम अकेली नहीं हो।
और तुम ये लड़ाई अकेले जीत भी नहीं सकती हो। तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़ेगी।”
इतना कहकर अघोरी और सुमित्रा दोनों सीधा अघोरी नंदा के पास पहुँचे, जो पहले से ही एक इंसान की लाश पर बैठ तपस्या कर रहा था।
सुमित्रा, “अघोरी नंदा, देख आ गई मैं। पिछली बार तुमने मुझे ये कहकर छोड़ दिया था कि मैं सिर्फ एक इंसान हूँ।
तो ले, आज मैं भी तेरी तरह एक अघोरी हूँ। और अगर तू अपनी जान की सलामती चाहता है, तो अभी के अभी मेरे राजीव की आत्मा को मुक्ति दे दे। वरना…”
सुमित्रा की बात सुन, अघोरी नंदा की आँखें खुल गईं। उसकी तपस्या सुमित्रा की वजह से भंग हो गई थी।
अघोरी नंदा, “कोई नहीं… तुझे तब नहीं मरी, तो तुझे आज मार दूँगा।”
ये कहते हुए अघोरी नंदा लाश पर से उठ गया और कुछ मंत्र पढ़ता हुआ लाश की तरफ देखते ही लाश की आँखें खुल गईं और वह सीधा सुमित्रा और अघोरी को मारने चल दिया।
अघोरी, “सुमित्रा, इस लाश में अघोरी नंदा ने किसी जिन्न की आत्मा फूंकी है। इस लाश को हराना इतना भी आसान नहीं होगा।”
इतना कहकर सुमित्रा और बाबा दोनों एक साथ मंत्र पढ़ने लगे और देखते ही देखते उस लाश के टुकड़े-टुकड़े हो गए।
पर अगले ही पल वो लाश वापस पहले जैसी हो गई और इस बार पहले से और ज़्यादा शक्तिशाली भी।
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पर सुमित्रा ने अभी हार नहीं मानी थी। वो दोनों अभी भी मंत्र पढ़ रहे थे कि तभी उस लाश ने सुमित्रा के अघोरी गुरु की गर्दन को पकड़ लिया
और सुमित्रा की आँखों के सामने उसके दो टुकड़े कर दिए। पर सुमित्रा हार मानने को तैयार नहीं थी।
उसने कुछ ऐसा मंत्र फूंका कि देखते ही देखते वो लाश जलने लगी। लाश को जलता देख अघोरी नंदा भी बेचैन हो उठा था।
उसने चीखते हुए सुमित्रा से पूछा, “ये कैसे कर सकती हो तुम? भला एक जिन्न की आत्मा को कोई एक पल में कैसे खत्म कर सकता है? कौन हो तुम और क्या विद्या सीखकर आई हो?”
अघोरी नंदा को अब अपनी मौत साफ दिखने लगी थी, लेकिन सुमित्रा ने ऐसा मंत्र पढ़ा कि अघोरी नंदा हवा में उड़ गया।
उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे कोई अघोरी नंदा के हाथ-पैरों को खींचते हुए उसके जिस्म से अलग कर देना चाहता हो।
सुमित्रा, “बोल, तू राजीव की आत्मा को रिहा करता है कि नहीं?”
इससे पहले कि अघोरी नंदा कोई जवाब देता, सुमित्रा इतनी ज़ोर से चीखी कि अघोरी नंदा के जिस्म से उसका एक हाथ उखड़ गया। अघोरी नंदा हवा में ही तड़प रहा था।
सुमित्रा, “बोल, तूने राजीव के साथ ऐसा क्यों किया था? बोल, वरना मैं…”
एक बार फिर सुमित्रा चीखी और अघोरी नंदा के जिस्म से उसका दूसरा हाथ भी उखड़ गया। सुमित्रा भी अघोरी नंदा को ऐसी ही मौत दे रही थी जैसी उसने राजीव को दी थी।
अघोरी नंदा के दर्द की कोई इंतिहा नहीं थी। वो दर्द में तड़पते हुए सुमित्रा से कहने लगा, “मुझे इस दुनिया का सबसे बड़ा अघोरी बनना था,
जिसके लिए मुझे एक ज़िंदा शरीर चाहिए था, जो अपना एक अंग मुझे दे, लेकिन उसका शरीर भी ज़िंदा रहे।
तब मेरे पास राजीव आया। उसे एड्स था। वो वैसे भी मरने वाला था। बदले में मैंने उसके घरवालों को करोड़ों रुपए दिए और राजीव ने मुझे अपना शरीर।
सुमित्रा, मैं तेरी बात मानने के लिए तैयार हूँ। ले, मैं भी तेरे राजीव की आत्मा को मुक्ति देता हूँ, बस तू मुझे ज़िंदा छोड़ दे।”
इतना कहकर अघोरी नंदा कुछ मंत्र पढ़ता है, जिससे अगले ही पल राजीव की आत्मा अघोरी नंदा के अंदर से निकलकर सुमित्रा के सामने आ खड़ी हुई।
राजीव को देखकर सुमित्रा की आँखों में आँसू आ गए थे। सुमित्रा ने भी राजीव की आत्मा को तुरंत गले से लगा लिया।
सुमित्रा ने राजीव की आत्मा से बस इतना कहा, “राजीव, तुम मेरा सच्चा प्यार हो।”
और फिर कुछ मंत्र पढ़े, जिससे राजीव की आत्मा सुमित्रा में ही समा गई। अब सुमित्रा का आधा चेहरा राजीव का हो गया था।
बहुत दिनों बाद सुमित्रा के चेहरे पर हँसी थी। वो खुशी-खुशी शमशान घाट से निकल गई और अघोरी अकेला ही शमशान में चीखता रह गया।
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और अगले ही पल अघोरी नंदा का शरीर एकदम से फट पड़ा। सुमित्रा ने अपना बदला ले लिया था। आखिरकार एक वैश्या को भी अपना प्यार मिल गया था।
दोस्तो ये True Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!