हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” होन्टेड मोटेल ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
जंगल के शांत माहौल में, मोटेल सिलवानिया किसी आलीशान महल की तरह खड़ा हुआ था। इसी मोटेल की एक खिड़की पर एक चोर परेश की चहलकदमी हो रही थी।
परेश, “जय मां काली। बस आज मैं यहां एक लंबा हाथ मारने में कामयाब हो जाऊं, उसके बाद मैं यह चोरी चकारी छोड़ दूंगा।”
यह कहते हुए वह खिड़की के रास्ते मोटेल के अंदर घुस गया। मध्यम कदमों के साथ वह आगे बढ़ रहा था। मोटेल में दूर-दूर तक शांति फैली हुई थी।
इसी मोटल के कमरे में कुर्सी पर बैठी हुई एक खूबसूरत औरत पूर्णिमा कुछ सोच रही थी। तभी दरवाजा खुला और एक आदमी अंदर आया।
औरत, “कैसे आना हुआ जान? कोई गेस्ट आया है क्या?”
आदमी, “गेस्ट नहीं आया, होटल में चोर घुसाया है।”
औरत, “तो इतना डर क्यों रहे हो? तुमको तो पता है ना, हमें वैसे भी आज एक आत्मा की जरूरत है।”
यह सुनकर वो आदमी रहस्यमई तरह से मुस्कुराने लगा। तभी परेश के कंधे पर अचानक से कुछ टपका।
उसने हाथ लगाकर देखा तो टपकने वाली चीज लाल-लाल खून था। उसने चौंकते हुए ऊपर की तरफ देखा तो उसे झूमर पर एक लाश लटकी नजर आई।
अभी वह कुछ समझ पाता, इससे पहले ही वो लाश उस पर आ गिरी और उसने अपनी आंखों को खोलकर भयानक अंदाज में कहा,
लाश, “अब तू मरने वाला है, हा हा हा…।”
यह सुनकर परेश बेहद डर गया। उसने जिंदा हो चुकी उस लाश को एक तरफ धकेल दिया और खिड़की से बाहर कूदने ही वाला था।
तभी उस भूतनी ने परेश के बाल पकड़े और उसे एक कमरे में उड़ा ले गई।
परेश (चीखते हुए), “आह..!”
औरत, “हो गया काम। आज तो कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ी।”
यह कहकर वो दोनों ही शैतानी अंदाज में हंसने लगे। यह रात के तकरीबन 10 बजे का वक्त था।
विवेक अपने परिवार के साथ गाजियाबाद से ऋषिकेश जाने के लिए निकला ही था।
संजना, “विवेक, आगे कोई होटल या रेस्टोरेंट आएगा भी या नहीं? बताओ और कितनी देर तक भूखा मरने वाले हैं हम?”
विवेक, “अरे यार! इतना क्यों परेशान हो रही हो? कोई ना कोई गेस्ट हाउस जरूर मिल जाएगा।”
कुछ देर आगे बढ़ने के बाद उन्हें एक गेट नजर आया।
विवेक, “मोटेल सिलवानिया… अरे वाह! यह तो काफी अच्छा दिख रहा है।”
विवेक ने गाड़ी गेट के अंदर ले ली और यह सभी मोटल के अंदर पहुंचे। रिसेप्शन पर इन्हें वही आदमी रणवीर बैठा नजर आया।
विवेक, “हमें एक कमरा चाहिए। यह रहा मेरा आईडी कार्ड।”
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रणवीर, “इसकी जरूरत नहीं है। बस आप अपना नाम बता दीजिए।”
विवेक, “अजीब बात है। ठीक है, मेरा नाम है विवेक शर्मा।”
रणवीर, “मैं अभी आपको आपके रूम की चाबी दे देता हूं।”
तभी वहां पर वही खूबसूरत औरत पूर्णिमा आ गई।
पूर्णिमा, “आज तो हमारे होटल में स्पेशल गेस्ट आए हैं।”
उसने संजू की तरफ देखते हुए कहा,
विवेक, “स्पेशल गेस्ट मतलब?”
पूर्णिमा, “मतलब आज से पहले यहां आपके जैसा कोई परिवार नहीं ठहरा, जिसका मेंबर इतना प्यारा बच्चा हो।”
यह कहते हुए वह संजू की तरफ अजीब ढंग से देख रही थी।
पूर्णिमा, “मुझे खुशी है कि तुम यहां रुकने वाले पहले बच्चे हो।”
पूर्णिमा की बातें इन सभी को बहुत अजीब लग रही थी। रणवीर ने इनको एक चाबी दी और यह एक बड़े कमरे में आ गए, जिसमें दो बेड लगे हुए थे।
अभी यह लोग बैठे ही थे कि तभी एक ट्रॉली के साथ रणवीर उनके कमरे में आया।
रणवीर, “आपके लिए डिनर, आप लोगों को भूख लगी होगी, है ना?”
संजू, “अरे वाह! डिनर… अच्छा हुआ आप ले आए, अंकल।”
विवेक, “लेकिन हमने तो ऑर्डर किया ही नहीं था।”
रणवीर, “हां, नहीं किया था, लेकिन फिर भी पूर्णिमा ने आपको खाना देने के लिए कहा है। इसीलिए मैं ले आया।”
इन सभी ने साथ में डिनर किया और उसके बाद विवेक संजना के साथ बेड पर चला गया और संजू और अवनी भी एक बेड पर लेट गए।
कुछ देर बाद इन दोनों बच्चों को कोई हलचल सुनाई दी। दोनों ने खड़े होकर खिड़की से बाहर देखा तो लोन में लगे हुए झूले पर उनको एक बच्चा बैठा हुआ नजर आया।
संजू, “अरे, मुझे लगा था यहां हमारे अलावा कोई नहीं है।”
अवनी, “मैंने भी यही सोचा था।”
संजू, “दीदी, नींद तो वैसे भी नहीं आ रही। चलो, हम भी नीचे चलते हैं। इसके साथ खेलते हैं।”
अवनी, “हां, ये ठीक है। चलो।”
ये दोनों अपने कमरे से निकले और अभी कुछ कदम बढ़ाए ही थे कि इन्हें टीवी के चलने की आवाज सुनाई दी।
अवनी, “अरे! यह टीवी कैसे ऑन है? यहां कोई नजर तो नहीं आ रहा।”
तभी अचानक टीवी में इन दोनों को वही झूले पर बैठे हुए बच्चे वाला दृश्य नजर आया।
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अवनी, “यह कैसे हो सकता है?”
वो बच्चा टीवी के अंदर से ही इन दोनों को बड़े ही अजीब ढंग से देख रहा था।
टीवी के अंदर का बच्चा, “तुम दोनों मेरे साथ खेलना पसंद करोगे?”
आवाज इतनी भयानक थी कि सुनते ही इन दोनों का दिल दहल उठा। तभी एक दरवाजा खुला और अवनी अपने आप ही उस दरवाजे के अंदर खींची चली गई।
संजू, “दीदी..!”
संजू दरवाजे पर पहुंचता, उससे पहले ही वो दरवाजा बंद हो गया। उसी मोटल के एक कमरे में एक टीले पर एक 8 साल के बच्चे की लाश पड़ी थी,
जिसके सामने पूर्णिमा खड़ी हुई थी और उसे टकटकी लगाकर देख रही थी।
पूर्णिमा, “मेरे बच्चे, आज की रात मैं तुम्हें जिंदा कर दूंगी। बड़े इंतजार के बाद तुम्हारी उम्र का कोई बच्चा यहां आया है। अब तुमको जिंदा होने से कोई नहीं रोक सकता।”
कुछ साल पहले की बात है। पूर्णिमा इस घर में अपने पति रणवीर और एक 8 साल के बेटे दीपू के साथ रहती थी।
एक रात जब यह दोनों सो रहे थे, तो दीपू खेलने के लिए जंगल में चला गया। जंगल में काफी अंदर जाने के बाद दीपू को अपने सामने एक औरत खड़ी हुई नजर आई जो उसे पास बुलाने का इशारा कर रही थी।
दीपू, “आंटी, आप कौन हैं?”
उस औरत के हाथ में एक गोल सा मोती था, जो बहुत चमक रहा था। दीपू उस औरत के पीछे-पीछे हो लिया और वो उसे एक झोपड़े के अंदर ले गई।
वहां जाने के बाद अचानक से उस औरत ने अपने चेहरे से घूंघट हटा दिया, जिससे दीपू ने उसका भयानक चेहरा देखा।
उसने अपने तेज दांत दीपू की गर्दन पर गड़ा दिए। सुबह जब पूर्णिमा और रणवीर जागे तो उनको दीपू घर में नहीं दिखा।
फिर काफी ढूंढने पर उनको जंगल में उनके बेटे की लाश मिली, जिसके शरीर में नाम मात्र भी खून नहीं था।
ये दोनों उसकी लाश को घर ले आए और फिर यह एक तांत्रिक से मिले।
तांत्रिक, “अगर तुमको अपने बच्चे को जिंदा करना है तो शैतानों के देवता की उपासना करनी होगी। मैं एक विधि तुमको बताता हूं।
वो करने के बाद शैतान कुछ बुरी आत्माओं समेत तुम्हारे घर के अंदर पास कर लेगा और फिर हर सातवें दिन उसे एक इंसान की आत्मा चाहिए होगी।
मतलब, वो हर सप्ताह एक इंसान की जान लेगा और जिस दिन तुम्हारे बच्चे की उम्र का कोई बच्चा तुम्हारे घर में आएगा तो वो उसे मारकर तुम्हारे बच्चे को जिंदा कर देगा।”
पूर्णिमा, “मैं ऐसा करूंगी। अपने बेटे को मैं वापस लाकर ही रहूंगी।”
तांत्रिक, “लेकिन ध्यान रहे, जिंदा होने के बाद तुम्हारा बच्चा पहले जैसा मासूम नहीं रहेगा। उसमें कुछ भी बदलाव आ सकते हैं।”
यह सुनकर भी पूर्णिमा बस चुप ही रही। पूर्णिमा ने जो विधि कर ली थी और शैतान को अपने घर में बुला लिया था।
फिर उसके बाद उसने इस घर को एक मोटेल बना दिया और जो भी गेस्ट यहां रुकता, शैतान और उसके साथ रहने वाली आत्माएं उसे खत्म कर देतीं।
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संजू बाहर खड़ा हुआ अभी भी दरवाजा ही पीट रहा था कि तभी उसने देखा कि दरवाजे से खून बहता हुआ नजर आ रहा है। उसे देखकर वो डर गया और भागकर अपने पेरेंट्स के पास पहुंचा।
संजू, “मम्मी मम्मी, जल्दी मेरे साथ चलो। दीदी एक कमरे में बंद हो गई है।”
विवेक, “क्या..?”
यह तीनों अब भागकर उसी दरवाजे पर पहुंचे तो वह धड़ाम से अपने आप खुल गया। उन्होंने ऐसा मंजर देखा, जिसने उनके दिलों को दहला दिया।
एक भयानक शैतान उसकी लाश के पास बैठा था और उसने कंधे से मांस नोच-नोच कर खाना शुरू कर दिया था।
संजना, “अवनी..!”
तभी वो शैतान तेजी से इनकी तरफ भागा और उसने विवेक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
संजना, “विवेक..!”
संजना और संजू एक पल को सुन्न रह गए, जैसे इन दोनों की जिंदगी ही खत्म हो गई हो।
तभी एक भयानक आत्मा ने संजना के बाल पकड़े और उसे घसीट कर एक कमरे में ले गई। संजू अब खुद को अकेला पाकर कुछ समझ नहीं पाया कि उसे क्या करना चाहिए।
इसलिए वह भी एक कमरे में भाग गया। संजना जिस कमरे में आई थी, वहां चारों तरफ अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था।
वो भयानक आत्मा संजना के सामने खड़ी थी।
संजना, “मुझे छोड़ दो। कौन हो तुम? मैं यहां से चली जाऊंगी।”
आत्मा, “तुम यहां से कहीं नहीं जाओगी। तुम यहीं मेरे साथ रहोगी, मेरी तरह एक आत्मा बनकर।”
संजना, “नहीं।”
वो आत्मा संजना के करीब पहुंची और संजना की तेज चीख पूरे मोटेल में गूंज गई।
संजना, “आह..!”
रणवीर खुश होता हुआ पूर्णिमा के पास आया।
रणवीर, “अब सिर्फ वही बच्चा बचा है, जिसकी जान जाते ही हमारा बच्चा जिंदा हो जाएगा।”
पूर्णिमा, “तो ठीक है, उस काम में अब हमें और देरी नहीं करनी चाहिए।”
अब ये दोनों ही उस कमरे में पहुंचे जहां पर संजू छिपा हुआ था। इन दोनों को देखते ही संजू पूर्णिमा से लिपट गया।
संजू, “आंटी आंटी! यहां पर एक बहुत भयानक आत्मा और शैतान है। उसने मम्मी, पापा और दीदी, सबको मार दिया।”
यह कहकर संजू जोर-जोर से रोने लगा।
पूर्णिमा, “डरो मत बेटा, अब तुम्हारी सारी परेशानियां खत्म होने जा रही है।”
यह सुनकर संजू रोते-रोते पूर्णिमा को गौर से देखने लगा। कुछ देर बाद संजू के हाथ और पैरों को बांधकर रणवीर उसको अपनी गोद में उठाए हुए एक कमरे में ले गया।
उस कमरे में एक टीले पर दीपू की लाश पड़ी थी। वहीं एक और टीला बना हुआ था जो खाली था।
तभी वह शैतान भी वहां प्रकट हुआ और उसे देखकर संजू और ज्यादा डर गया।
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शैतान, “इसे यहां लिटा दो।”
यह सुनते ही रणवीर ने संजू को टीले पर लिटा दिया। उस शैतान ने अपने हाथ को हवा में उठाया तो उसके हाथ में एक खंजर आ गया।
उसने वो खंजर संजू की गर्दन पर रखा और खत से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। संजू के खून के छींटे पूर्णिमा के चेहरे पर आकर गिरे।
फिर उसने संजू की कटी गर्दन को बालों के बल पकड़ कर उठाया और उसको ठीक दीपू की लाश के ऊपर पकड़ा।
दीपू के मुंह पर खून टपकने लगा और शैतान मुंह ही मुंह मंत्र जाप करता रहा। जैसे ही उस खोपड़ी से आखिरी खून की बूंद दीपू के शरीर पर पड़ी, उसने आंखें खोल ली और खड़ा हो गया।
पूर्णिमा, “मेरा बच्चा, मेरा दीपू!”
पूर्णिमा ने दीपू को गले से लगा लिया। वो शैतान और आत्माएं गायब हो गई और चारों तरफ सन्नाटा छा गया।
अगली सुबह पूर्णिमा ने सबके लिए नाश्ता बनाया और सर्व किया। लेकिन दीपू ने उसे खाने से मना कर दिया।
पूर्णिमा, “यह तो तुम्हारा फेवरेट फूड है, दीपू। तुम खाते क्यों नहीं हो?”
दीपू, “नहीं, यह मेरा फेवरेट नहीं है।”
यह कहकर दीपू वहां से अपने कमरे में चला गया और उसने अंदर से कुंडी लगा दी। वो पूरे दिन अपने कमरे में ही बंद रहा और इसी तरह रात के 8:00 बज गए थे।
पूर्णिमा, “दीपू इतना कैसे बदल सकता है? वो तो ऐसा था ही नहीं। ऐसा लग रहा है जैसे वो हमारा दीपू है ही नहीं।”
तभी सामने से उनको दीपू आता हुआ नजर आया।
पूर्णिमा, “दीपू, तुम पूरे दिन कमरे में बंद क्यों थे बेटा? बताओ, बताओ मुझे तुम्हें क्या हो गया है?”
इस पर दीपू की आंखें लाल-लाल चमक उठी और वो भयंकर आवाज में बोला,
दीपू, “क्योंकि दिन के उजाले में मैं कोई शिकार नहीं कर सकता।”
यह आवाज सुनकर यह दोनों ही डर गए। दीपू ने रणवीर पर हमला बोल दिया और उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा।
यह मंजर देखकर पूर्णिमा की धड़कनें मानो रुक सी गई। तभी शैतान और वो आत्मा फिर से वहां प्रकट हुए।
शैतान, “शाबाश मेरे बच्चे, शाबाश।”
दीपू, “मां आप मेरी मां हो, लेकिन अब से मेरे असली पिता यही है। मैं शैतान और आपका बेटा हूं।
अब आपकी जिम्मेदारी है कि हर दूसरे दिन आप मेरे लिए एक इंसान का प्रबंध करें, वरना मैं आपको भी खत्म कर दूंगा।”
पूर्णिमा, “नहीं।”
दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!