किसान का बुद्धिमान बेटा | Kisaan Ka Buddhiman Beta | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” किसान का बुद्धिमान बेटा ” यह एक Hindi Moral Story  है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
किसान का बुद्धिमान बेटा | Kisaan Ka Buddhiman Beta | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

Kisaan Ka Buddhiman Beta | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

एक गांव में सरजू नाम का एक किसान रहता था। उसके तीन बेटे थे; विक्रम, विजय और भोला।
विक्रम और विजय काफी समझदार थे। वहीं भोला को सब भोंदू बुलाते थे क्योंकि वो बहुत सीधा और मुर्ख भी था।
सरजू,” बेटा, अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मुझसे काम नहीं होता बेटा। भोंदू बहुत सीधा है। मुझे समझ नहीं आता वो क्या करेगा ? 
साथ ही गांव के ज़मींदार की नजर हमारी जमीन पर है। पता नहीं कैसे सब कुछ सही होगा ? “
विक्रम,” दादाजी की जमीन पर पता नहीं कैसे उस जमींदार ने अपना नाम लिखवा लिया है ? आप चिंता मत कीजिए पिताजी, कोई ना कोई हल जरूर निकल आएगा। 
और इस भोला का क्या ही करूं पिताजी ? इसको तो कुछ भी नहीं आता। अगर कोई काम दो तो सब उल्टा ही करता है। “
विजय,” पता नहीं भोला इतना मूर्ख कैसे हो गया जबकि हम दोनों भाई इतने समझदार है ? “
भोला,” मैं कहाँ से मुर्ख दिखता हूँ तुम लोगों को… हैं ? “
विजय,” कल तुमने हरिया चाचा को क्यों मारा इतना ? “
भोला,” ऐ ! हरिया चाचा ने बोला – मुझे चप्पल दे। मैंने उनकी बात मानी और उन्हें चप्पल दी। “
विजय,” वो चप्पल पहनने के लिए मांग रहे थे। तुमने उन्हें चप्पल से मार ही दिया, मुर्ख। इसे तो ये तक नहीं पता होता कि किसी इंसान से कौन सा काम करवाना है ? 
मैंने इससे कहा… जा खेतों से अनाज काट कर ले आ। मैंने जाकर देखा, ये बैठकर एक एक दाने को चाकू से काट रहा था। “
भोला,” हाँ तो क्या..? तुमने ही तो कहा था…अनाज काटकर लाओ वही तो मैं कर रहा था। “
सरजू,” भोंदू, तुझे बात समझ नहीं आती क्या ? अनाज काटना यानी कि फसल काटकर लेकर आनी थी तुम्हें। “
भोला,” पिताजी, मैं तो वही करता हूँ जो मुझसे कहा जाता है। अब ये लोग ही मुझे गलत चीज़ बताएं तो मैं क्या करूँ ? “
भोला के पिताजी को हमेशा भोला की चिंता लगी रहती थी।
सरजू,” हे भगवान ! पता नहीं भोले का क्या होगा ? आप ही मेरे भोले की रक्षा कीजिये। “
किसान बूढ़ा हो गया था इसलिए उनका निधन हो गया। अब भोला का कोई भी सहारा नहीं था। दोनों भाई भी भोला का मजाक उड़ाते रहते थे।
विजय,” ओ भोंदू ! इधर आ। मेरे लिए पानी लेकर आ। “
भोला,” ठीक है भैया, ले आता हूँ।
भोला बड़ी सी बाल्टी में पानी भरकर ले आता है।
विजय,” अरे मूर्ख ! बाल्टी में पानी भरकर क्यों लाया है ? मैंने तो पीने के लिए पानी मांगा था। गिलास में लाकर दे। एक बार में कोई काम सही से नहीं करता तू। “
विक्रम,” तुम इसे बोलते ही क्यों हो कोई काम ? किसी काम का नहीं है ये। बस मुफ्त की रोटी तोड़ता है और खाली नुकसान कराता है। “
विक्रम,” चल जा यहाँ से। “

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भोला दुखी होकर वहाँ से चला जाता है। अब तो हर रोज़ भोंदू के साथ बहुत बुरा व्यवहार होता था। गांव के लोग भी भोंदू को मूर्ख बनाकर अपना काम निकलवा लेते थे।
बूढ़ा,” भोला बेटा, मेरी कमर में बहुत दर्द है। ज़रा मेरे खेत जोत देगा तू ? “
भोला,” काका, खेत जोत लूँगा तो आपका कमर दर्द कैसे ठीक हो जाएगा ? उसके लिए तो कमर दबानी पड़ेगी ना ? “
बूढ़ा,” अरे भोंदू ! कमर में दर्द है। मैं खेत जोत नहीं सकूंगा इसलिए तुझसे बोल रहा हूं। तू भी ना…। “
भोला,” तो ऐसा बोला ना काका। खुद गलत बोलते हैं सब और फिर मुझे मुर्ख ठहराते हैं। बताइए..? “
बूढ़ा,” हाँ बछवा हाँ… हम ही मुर्ख है। जा खेत जोत। मेरी कमर की चिंता तू ना कर। “
भोंदू मूर्ख जरूर था पर वह बहुत मेहनती था। वो सबकी मदद भी किया करता था। हालांकि लोग उसका सिर्फ इस्तेमाल किया करते थे। 
एक दिन भोंदू गांव के रास्ते से कहीं जा रहा था। अचानक उसका पैर रास्ते पर बैठे कुत्ते की पूंछ पर पड़ गया। सोया हुआ कुत्ता घुर्राते हुए भोंदू को देखता है और भौंकने लगता है।
भोला,” अरे बाप रे बाप ! क्यों भौंक रहा भई ? गलती हो गयी, माफ़ कर दे। “
कुत्ता उसे दौड़ाने भी लगता है। 
भोला,” माई रे माई ! कहां फंस गया ? बचाओ… कोई तो बचाओ रे। “
दौड़ते दौड़ते भोंदू जंगल में आ जाता है। वह जंगल के अंदर जाते जा रहा था। उसे पता ही नहीं था वो कहाँ जा रहा है। 
भोला भोंदू अपने घर का रास्ता भी भटक गया था। उसी जंगल की एक ओर लड़की दिखाई देती है जो सूखी लकड़ियों को जमा कर रही थी।
भोला,” ये कौन सी जगह है ? “
रमा,” ये तो जंगल है। आप यहाँ कैसे आ गए ? यहाँ तो कोई आदमी नहीं आता जाता। “
भोला,” मैं रास्ता भटक गया हूँ। मुझे नहीं पता मेरा घर कहाँ है ? “
उसके बाद भोंदू ने सारी बात उस लड़की को बता दी। भोंदू की बातें सुनकर उस लड़की को पता चल गया कि भोला बहुत भोला है जो अपने घर का पता भूल गया है। 
रमा,” मेरा नाम रमा है। चलो कोई बात नहीं, जब तक तुम्हें तुम्हारे घर का पता नहीं मिल जाता तब तक तुम मेरे साथ मेरे घर चलो। 
मैं लकड़ियों को बेचकर अपना गुज़ारा चलाती हूँ। जो मिलेगा मिल बांटकर खा लेंगे। ठीक है ? “
भोंदू खुश होकर उस रमा के साथ चला जाता है। लकड़ी बेचकर जो मिलता वो लड़की खुशी खुशी मिल बांटकर खा लेती लेकिन भोंदू का भोलापन अभी भी जारी था। वह अपनी हरकतों से सबको हंसाता रहता था। 
वहीं दूसरी ओर…
विक्रम,” पता नहीं ये भोंदू कहाँ चला गया ? मुर्ख कहीं का…। “
विजय,” एक तो खुद जमींदार ने हमारी जमीन ले रखी है। ये परेशानी क्या कम थी जो भोंदू अचानक गायब हो गया ? मैं तो तंग आ गया हूँ। “
विक्रम,” चिंता मत करो। कोई ना कोई रास्ता जरूर निकल आएगा। “
इधर कुछ दिन बाद भोंदू जंगल में लकड़ी का गट्ठर उठा रहा था। लकड़ी का गट्ठर बहुत बड़ा और भारी था। इसे भोंदू ठीक तरह से उठा नहीं पा रहा था।
भोला,” अरे बाप रे बाप ! ये लकड़ी का गट्ठर तो बहुत भारी है, उठ नहीं रहा। पता नहीं कैसे रमा इसे उठाती है ? “
वहीं पास ही भोंदू को एक पेड़ के नीचे एक साधू बाबा नजर आए जो ध्यान लगाए बैठे थे। भाला भोंदू बिना कुछ सोचे समझे उन साधू बाबा को कहता है।
भोला,” ऐ भाई ! ये गठरी बहुत भारी है, थोड़ी मेरी मदद कर दो ना उठाने में। आप तो वैसे भी सो ही रहे हो। “
साधू ध्यान में मग्न था और साधु ने कुछ नहीं सुना।
भोला,” अरे ! अजीब इंसान है। नींद में इतना मग्न है कि किसी की कोई मदद को राजी नहीं है। “
भोला,” उठ जा भाई, उठ जा… मेरी मदद कर दे, भाई। “
साधू,” कौन मुर्ख है जिसने मेरी सालों की तपस्या भंग की ? मैं ध्यान कर रहा था मुर्ख। तूने मेरा ध्यान तोड़ दिया है। 
तू खुद को समझता क्या है ? बहुत बुद्धिमान है तू ? इतना घमंड है तुझे अपनी बुद्धि पर, मूर्ख इंसान ? “
भोला,” लो, अब आप भी मुझे मुर्ख बोल रहे है। आपको नहीं पता मैं कितना समझदार हूँ ? सब बस मुझे मुर्ख बोलते रहते हैं। “
साधू,” तू बहुत समझदार है ना ? तुझे अपनी बुद्धि पर बहुत घमंड है ना ? जा, मैं तुझे श्राप देता हूँ… तेरी बुद्धि पलट जाएगी। 
तू अभी जैसा है उससे ठीक उल्टा हो जाएगा। तू खुद को जितना समझदार समझता है ठीक उसका उल्टा बन जाएगा। “
भोला,” अरे महाराज ! श्राप भी दे दिया। मेरा गट्ठर तो उठवा देते। अजीब बाबा है यार। “
इसके बाद साधू बाबा वहाँ से चले जाते हैं। अचानक भोला ने अपने अंदर एक अजीब सा परिवर्तन महसूस किया। पर उसे समझ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या ?
भोंदू घर आता है। वहाँ रामा बैठकर लकड़ियों की कीमत का हिसाब लगा रही थी।
रमा,” आ गये आप..? सारी लकड़ियां लेकर आये है ना ? “
फिर रमा लकड़ी के पैसे जोड़ने में लग जाती है।
रमा,” ₹100 होने चाहिए। “
भोला,” रमा, तुम गलत हिसाब लगा रही हो। झोंपड़ी के पीछे जो लकड़ियों का बंडल रखा है, तुमने उसे बेचा ही नहीं है। 
और कल तुमने दो गट्ठरों को आधे दामों पर बेचा था क्योंकि वो गीले थे इसलिए तुम्हारे पास अभी ₹50 ही है। “

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रमा,” हाँ हाँ, मैं तो भूल ही गयी थी। “
रमा चौंक जाती है। 
रमा,” आपने तो बिल्कुल सही हिसाब लगाया है। अचानक से आप इतने समझदार कैसे हो गए ? “
भोंदू ने रमा को साधू महाराज वाली सारी बात बता दी। असल में साधू का श्राप भोंदू के लिए वरदान बन गया था। वो अब समझदार हो गया था। रमा सब सुनकर बहुत खुश हुई। 
रमा,” आप बुरा ना मानें तो एक बात कहूं ? “
भोला,” अरे ! इसका बुरा मानने वाली कौनसी बात है ? कहो ना…। “
रमा,” आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो और हमारा एक दूजे से जान पहचान भी अच्छा हो गया है। क्यों ना हम दोनों शादी कर लें ? “
भोला,” क्या सच में मैं तुम्हे अच्छा लगता हूँ ? मुझे मंजूर है। “
इसके बाद रमा और भोंदू दोनों पास के मंदिर में जाकर शादी रचा लेते हैं।
एक दिन…
भोला,” अब मुझे अपने गांव जाना है, रमा। “
रमा,” ठीक है, आप चले जाइए। “
भोला,” जाऊंगा पर अकेले नहीं, तुम भी मेरे साथ चलोगी। तुम मेरी अर्धांगिनी हो। चलोगी ना ? “
रमा,” अब मेरे सब कुछ आप ही तो हैं। मैं आपके बिना भला कैसे रह सकती हूँ ? “
भोंदू रमा को लेकर अपने गांव पहुंचता है और अपने घर जाता हैं। वहाँ वह देखता है कि उसके दोनों भाई चिंता में बैठे थे।
भोला,” विक्रम भैया, मैं आ गया। प्रणाम..! “
विक्रम,” अरे भोंदू ! तू कहाँ चला गया था रे ? हमने तुझे बहुत ढूंढा। कहां था तू और ये कौन है तुम्हारे साथ ? “
भोला,” भैया, मैं गलती से जंगल चला गया था। वहाँ रमा ने मुझे सहारा दिया। “
विक्रम,” अच्छा हुआ तू आ गया। पर क्या फायदा..? हम तो बहुत बड़ी मुसीबत में फंसे हुए हैं। “
भोला,” मुसीबत…कैसी मुसीबत भैया ? “
विजय,” पिताजी की पूरी जमीन जमींदार ने अपने नाम करवा ली है। अब हमारे पास जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं है जहाँ खेती करके हम अपना गुज़ारा कर सकें। “
भोला,” पिताजी की जमीन जमींदार ने हथिया ली है ? आप चिंता मत कीजिए भैया, मैं वो जमीन छुड़वा लूँगा। “
विक्रम,” तू छुड़वाएगा जमीन ? तेरे जैसा मूर्ख ऐसी बातें कर रहा है, सुनकर हँसी आ रही है। “
भोला,” आप मेरी बात तो मानो भैया, मैं जमीन जरूर छुड़वा लूँगा। मेरे पास एक योजना है। “
भोंदू अपनी योजना बताता है। भोंदू की बात सुनकर दोनों भाई दंग रह गए और सोचने लगे कि भोंदू इतना समझदार कैसे हो गया है ? 
उन लोगों को रमा ने साधू के श्राप के बारे में बता दिया जो श्राप भोला के लिए वरदान बन चुका था।
विक्रम,” भोंदू, जैसी योजना तुमने बनाई है, हम वैसे ही काम करेंगे। मेरे भाई… तू ही हमें इस मुसीबत से बचा सकता है। “
भोला,” भाई, आप फिक्र ना करो। अब देखो जमींदार को सबक कैसे मिलता है ? “
अगले ही दिन गांव में यह खबर फैलती है कि भोला के पिता के खेत में एक चुड़ैल रात को घूमती है। 
आसपास के लोगों में डर का माहौल छा गया। ये खबर जमींदार के पास भी पहुंची।
जमींदार,” ये मैं क्या सुन रहा हूँ ? ये चुड़ैल कहाँ से आ गयी ? “
आदमी,” हाँ मालिक, आज कल सरजू की जमीन पर हर रात एक चुड़ैल घूमती नजर आती है और जैसे ही सामने जाओ वो गायब हो जाती है। गांव के दो चार लोग तो बीमार हो गए हैं चुड़ैल को देखकर। “
जमींदार,” क्या बेकार की बातें करते हो तुम लोग ? आज मैं जाकर देखता हूँ। “
उसी रात जमींदार अपने चार आदमियों के साथ चुड़ैल देखने के लिए सरजू के खेत में जाता है।
जमींदार,” ये गांव वाले सब सठिया गए हैं ससुरे। ना जाने कौन सी चुड़ैल दिखाई देती हैं इन्हें ? मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा। “
तभी जमींदार को पीछे सफेद कपड़ों से लिपटी, बाल खुले हुए कोई आता दिखाई दिया।
जमींदार,” जय हनुमान ! ये चुड़ैल कहाँ से आ गई यहाँ पर ? हे भगवान ! रक्षा कीजिये… रक्षा कीजिये। “
आदमी,” मालिक, चुड़ैल तो गायब हो गई है। “
तभी अचानक चुड़ैल फिर वहाँ आ जाती है और बोलती है।
चुड़ैल,” ये जमीन किसकी है, मुझे बहुत पसंद है ? अब तो मैं यहीं रहूंगी हमेशा। इज़ जमीन पर जिसने अपना हक जताया है वो मारा जाएगा। हाँ… तुम्हें मरना है ? “
और चुड़ैल फिर से गायब हो जाती है।
जमींदार,” हे भगवान ! आज बचा लो। मुझे कोई जमीन नहीं चाहिए। कभी मुड़कर इस जमीन की तरफ भी नहीं देखूंगा। राम राम राम…। “
सब के सब लोग वहाँ से डर कर भाग जाते हैं। दूसरे ही दिन जमींदार ने वह जमीन विक्रम और विजय को वापस लौटा दी।
जमींदार,” अरे विक्रम बेटा ! मुझसे गलती हो गयी। ये जमीन तो सरजू की थी और उसी की रहेगी… हाँ। ये रहे तुम्हारे जमीन के कागज़। “
विक्रम,” हां लाओ। और दूसरी बात… अगर गलती से भी हमारी जमीन पर नजर डाली ना तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा। “
जमींदार बिना कुछ कहे वहां से चला जाता है।

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विजय,” वाह भोंदू ! क्या दिमाग हो गया रे तेरा ? तेरे प्लैन ने तो सच में हमारी जमीन वापस लौटा दी। 
और हाँ… रमा भाभी भी कमाल की कलाकार हैं। चुड़ैल बनकर क्या खूब डराया जमींदार को ? “
भोला,” धन्यवाद रमा ! हमारी इतनी मदद करने के लिए। “
रमा,” धन्यवाद किस लिए जी..? अब मैं भी तो इसी घर की सदस्य हूं ना ? अब तो हम सब लोग मिलकर रहेंगे। “
भोला को पता था कि डर से किसी भी चीज़ को आसानी से हासिल किया जा सकता है। इस तरह भोला की होशियारी और रमा के साथ से उन्हें उनकी जमीन वापस मिल गई।
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