हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची ढाबेवाली ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Lalchi Dhabewali | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales
चंदन नगर गांव में कमला ताई नाम की एक औरत रहती थी जो गांव में ढाबा चलाती थी। उसके ढाबे की दाल मखनी बहुत मशहूर थी।
दूर दूर के गांव के लोग सिर्फ उसकी दाल मखनी ही खाने के लिए आया करते थे। मगर कमला ताई एक बेहद क्रूर स्वभाव की और बेहद लालची किस्म की औरत थी।
आज भी वो बेहद गुस्से में अपने ढाबे के नौकर सतिया को आवाज लगा रही थी।
कमला,” अरे सतिया… ओह सतिया ! कहाँ मर गया ? अरे ! देख बाहर ग्राहकों की भीड़ लगी हुई है और तू है कि गायब है। “
सतिया,” क्या हुआ ताई ? “
कमला,” क्या हुआ..? देख नहीं रहा ग्राहक रोटी रोटी चिल्ला रहे हैं, और तू उनकी आवाज सुनकर भी अनसुना कर रहा है। “
सतिया,” ऐसी बात नहीं है, ताई। दाल में थोड़ा नमक कम था बस वो डाल रहा था। “
कमला,” वो सब तो ठीक है लेकिन ग्राहकों पर भी ध्यान दें। मेरा ढाबा बंद करवायेगा क्या ? “
सतिया तुरंत ग्राहकों को देखने लगा। शाम को कमला ताई पैसे गिन रही थी कि तभी सतिया कमला ताई के पास आकर बोला।
सतिया,” ताई, मैं आपसे पिछले एक महीने से कह रहा हूँ कि मेरी तनख्वाह बढ़ा दीजिये लेकिन आप है कि मेरी बात सुन ही नहीं रही। “
कमला,” तनख्वाह बढ़ाने की बात तो तू ऐसे कर रहा है जैसे कि पैसे पेड़ पर लटकते हैं। बोल तो दिया अगली साल बढ़ा दूंगी। “
सतिया,” ताई, ये सुनते हुए मुझे 3 साल से ज्यादा हो गए। अब तो ढाबा भी बहुत अच्छी तरह से चलने लगा है।
अब तो ग्राहक भी बहुत आने लगे हैं और मैं आपको शिकायत का कोई मौका भी नहीं देता लेकिन आप जो मुझे पैसे देती हैं उससे मेरे परिवार का पेट नहीं भर पाता। “
कमला,” तो क्या मैंने तेरे परिवार का पेट पालने का ठेका ले रखा है ? “
सतिया,” ये मत भूलिए ताई… इस ढाबे की दाल मखनी जो दूर दूर तक मशहूर है, उसे मैं ही बनाता हूँ।
मैं कितनी मेहनत करता हूँ ? और सिर्फ आपसे कुछ ही रुपये बढ़ाने की बात कर रहा हूँ। “
सतिया की बात सुनकर कमला ताई का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
कमला,” तो तू ये कहना चाहता है कि तेरी बनाई हुई दाल मखनी से ही मेरा ढाबा चल रहा है और बाकी खाने का सब खाना बेकार होता है ? “
सतिया,” मेरे कहने का गलत मतलब मत लीजिये। “
कमला,” बेकार की बकवास तो तू मत कर, सतिया। सच तो यह है कि जब से मेरी बहू मेरे घर पर आई है तबसे मेरे दिन और वक्त पलट गए।
मेरी बहू के पैर मेरे ढाबे के लिए बहुत शुभ साबित हुए हैं। तेरे जैसा मनहूस इन बातों को क्या समझेगा ? और रहा सवाल तेरी दाल मखनी का तो खाना बनाने वाले गांव में चंद पैसों के लिए मारे फिरते हैं। “
सतिया,” ताई, मैंने आपका नमक खाया था इसलिए मैं इस ढाबे को छोड़कर नहीं जाना चाहता था लेकिन आप जब मेरी तनखाह नहीं बढ़ाएंगी तो मुझे मजबूरन धर्मा भैया के ढाबे पर जाकर काम करना पड़ेगा।
वो बहुत दिनों से मेरे घर पर चक्कर लगा रहे हैं और वो आपसे दोगुने पैसे देने को तैयार। “
कमला,” अरे ! तो यह क्यों नहीं कहता नाशमिटे कि तू मेरे दुश्मनों से जा मिला है ? लालची धोखेबाज… इससे पहले कि मैं तुझे अब धक्के देकर इस ढाबे से बाहर निकाल दूँ, निकल जा। “
सतिया,” मैं चला जाता हूँ, मेरे बाकी के बचे हुए पैसों का हिसाब कर दीजिये। “
कमला,” ऐसे कैसे पैसे नमक हराम..? चुप चाप चला जा। “
सतिया ज़रा सा मुँह लेकर कमला ताई के ढाबे से निकल गया और सीधे धर्मा के ढाबे पर जाकर पहुँच गया। सतिया को देखकर धर्मा जो कि एक बहुत अच्छा व्यक्ति था, मुस्कुराता हुआ बोला।
धर्मा,” मैं जानता था सतिया, कमला तुझे एक ना 1 दिन धक्के देकर बाहर निकाल ही देगी। अरे ! उसे मैं बरसों से जानता हूँ।
शायद तू नहीं जानता, जब मैं तेरी उम्र का था तब मैं उसी के ढाबे पर काम करता था। वो एक नंबर की लालची औरत है। “
सतिया,” जब मैंने उनसे पैसे बढ़ाने की बात की तो वो मुझ पर बुरी तरह से अकड़ने लगी। “
धर्मा,” ये तो उसकी पुरानी आदत है। सतिया चल तू दिल छोटा मत कर, आज से तुम मेरे ढाबे पर काम कर अपना ढाबा समझकर… ठीक है। “
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सतिया उस दिन से धर्मा के ढाबे पर काम करने लगा। इधर कमला ताई ने अपने ढाबे पर दूसरा नौकर रख लिया लेकिन अब उसके ढाबे का खाना लोगों को पसंद नहीं आ रहा था।
एक दिन मुखिया कुछ लोगों को लेकर कमला ताई के ढाबे पर खाना खाने आये।
मुखिया,” और सुनाओ कमला… कैसी हो ? “
कमला,” ठीक हूं मुखिया जी। आज मेरे ढाबे का रास्ता कैसे भूल गए ? “
मुखिया,” सोचा आज तुम्हें देख लू और तुम्हारे ढाबे की दाल मखनी भी कुछ खा लूँ। कुछ भी कहो कमला, तुम देखने में आज भी बड़ी सुन्दर लगती हो। “
कमला (शर्माते हुए),” आप भी ना मुखिया जी… बुढ़ापे में भी आपकी छेड़ने की आदत नहीं गई। “
मुखिया,” और कभी जाएगी भी नहीं कमला। जब जब तुम्हें देखूंगा, तुम्हें छेड़े बगैर रह नहीं सकूंगा हाँ। “
कमला ,” अरे ! कुछ तो शर्म करो मुखिया जी, अब तो बच्चे भी जवान हो गए हैं। “
मुखिया,” हम भी जवान से कहीं कम थोड़े ही है। “
इतना कहकर मुखिया ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा।
कमला,” आप बैठिए, मैं आपके लिए दाल मखनी लगवाती हूँ। “
मुखिया अपने साथ आये मेहमानों के साथ बैठ गया। मगर जैसे ही मुखिया और उसके साथ आये मेहमानों ने दाल मखनी का एक लुकमा खाया, उनके चेहरे की हँसी गुस्से में बदल गई।
मुखिया,” ये कैसी दाल मखनी बनायी है तुमने भई ? इसमें मक्खन तो कहीं दूर दूर तक नजर ही नहीं आ रहा। सिर्फ और सिर्फ कड़वा तेल नजर आ रहा है। “
कमला,” नहीं नहीं मुखियाजी, दाल मखनी तो वैसी ही बनी है। जैसी हमारे ढाबे पर बनती आ रही है। “
मुखिया और उसके मेहमान गुस्से से उठकर खड़े हो गए।
मुखिया,” कमला ताई, पहले तो तुम्हारे ढाबे की दाल मखनी दूर दूर तक मशहूर थी लेकिन अब ऐसा लगता है की तुम्हारे ढाबे से ज्यादा बेकार दाल मखनी कहीं नहीं बनती। तुमने तो मेरे मेहमानों के सामने मेरी नाक कटा दी। “
इतना कहकर मुखिया गुस्से से वहाँ से चला गया। कमला ताई अपना सिर पकड़कर बैठ गई।
कमला,” बिरजू… अरे ओ बिरजू ! कहाँ मर गया तू ?
बिरजू,” क्या हुआ मालकिन ? “
कमला,” अरे ! जबसे तुझे मैंने काम पर रखा है तब से ग्राहक मुझे गालियां देकर जा रहे हैं। आज तो हद हो गई… गांव का मुखिया भी मुझे बुरा बोलकर चला गया; जो मेरी तारीफ करते नहीं थकता था। “
बिरजू,” अब उसमें मेरी क्या गलती है मालकिन ? मुझे जैसे दाल मखनी बनानी आती है, मैंने वैसी ही बनाई है। “
कमला,” अरे ! तो तू सतिया जैसी दाल मखनी नहीं बना सकता क्या ? “
बिरजू,” हर किसी के हाथ का स्वाद अलग होता है। ग्राहकों को सिर्फ और सिर्फ सतिया के हाथ की ही दाल मखनी खाने की आदत पड़ गयी है इसलिए अपने आधे से ज्यादा ग्राहक को धर्मा भाई के ढाबे पर जा रहे हैं। “
कमला,” मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, बिरजू। अगर ऐसे ही रहा तो मुझे तो अपने ढाबे में कुछ ही दिनों में ताले लगते नजर आ रहे हैं। “
कुछ दिन बाद कमला ताई की बहू (अनीता) अपनी सहेली (अंजू) के साथ अपनी सास के ढाबे पर आई। अपनी बहू को देखकर कमला ताई खुश होते हुए बोली।
कमला ,” अरे बहू ! तू आज यहाँ कैसे ? सब कुछ ठीक तो है ना ? “
अनीता,” माँ जी, ये मेरी दोस्त है अंजू। ये शहर से आई है। जब मैंने इसे बताया कि हमारे ढाबे की दाल मखनी बहुत ज्यादा मशहूर है तो ये मुझसे दाल मखनी खाने की जिद करने लगी। “
कमला,” ठीक है बहू, तू इसे अंदर बैठा दे। मैं इसके लिए स्पेशल दाल मखनी तैयार करवाती हूँ। “
अनीता अंजू को लेकर ढाबे के अंदर बैठ गई। कमला ताई ने तुरंत नौकर बिरजू को आवाज लगायी।
कमला ,” बिरजू, अरे ओ बिरजू ? “
बिरजू,” जी मालकिन। “
कमला,” मेरी बहू की सहेली शहर से आयी है सिर्फ दाल मखनी खाने के लिए, उसे हर हाल में हमारे ढाबे की दाल मखनी पसंद आनी चाहिए। नहीं तो मेरी बहू की नाक कट जाएगी। “
बिरजू,” ठीक है मालकिन। “
बिरजू गरमा गर्म दाल मखनी अनीता की सहेली के सामने परोस देता है। मगर जैसे ही अंजू ने एक निवाला खाया तो उसे उबकाई आने लगी। “
अनीता,” क्या हुआ अंजू ? क्या तुम्हें दाल मखनी पसंद नहीं आयी ? “
अंजू,” अरे ! तू तो बोल रही थी कि मेरी सास के ढाबे की दाल मखनी दूर दूर तक मशहूर है। मगर मैंने इतनी खराब दाल मखनी कभी जिंदगी में नहीं खायी। तुने तो मेरा एकदम मूड खराब कर दिया। “
इतना कहकर अंजू गुस्से से वहाँ से चली गई। अनीता का भी बेहद मूड खराब हो चुका था। वो गुस्से से अपनी सास से बोली।
अनीता ,” ये सब क्या है माँ जी ? आपने तो मेरी दोस्त के सामने मेरी बेज्जती करा दी। “
कमला,” अरे ! क्या बताऊँ बहू ? जब से वो नाशमिटा सतिया इस ढाबे से किया गया है, मेरे ढाबे की तो ऐसी तैसी हो गई है। “
इतना कहकर कमला ताई ने अपनी बहू को सारी घटना बता दी।
अनीता,” अगर ऐसी बात थी तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, माँ जी ? आप टेंशन मत लीजिए। मेरे पास इसका एक उपाय है। “
कमला,” कैसा उपाय बहू ? “
अनीता,” एक ऐसा उपाय माँ जी कि सिर्फ इस गांव के ही नहीं बल्कि दूसरे गांव के लोग भी सिर्फ हमारे ढाबे पर ही आकर खाना खाया करेंगे और धर्मा के ढाबे पर कोई झांकेगा भी नहीं। “
कमला,” अरे बहू ! भला ऐसे कैसे हो सकता है ? क्या तेरे पास कोई चमत्कारी जड़ी बूटी है क्या ? “
अनीता ,” ऐसा ही समझिये मां जी। कल से आपके ढाबे पर मैं खाना बनाउंगी। मगर ध्यान रखियेगा जब मैं खाना बनाऊं तो कुछ देर के लिए अपने नौकर बिरजू को रसोई से दूर हटा देना और फिर आप कमाल देखिएगा। “
अगले दिन कमला ताई ने बिरजू को रसोई से दूर रखा। कमला ताई ने देखा कि अनीता ने खाना तैयार करने के बाद अपने पर्स से शीशी निकालकर उसमें से दो चार बूंदें दाल मखनी में डाल दीं।
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कमला,” बहू, ये क्या कर रही है तू ? कहीं तू इसमें जहर तो नहीं मिला रही ? “
अनीता,” नहीं माजी, ये एक नशीला केमिकल पाउडर है जिसे मैंने स्पेसिअली विदेश से मंगवाया है। “
कमला,” अरे कहीं तू भांग की बात तो नहीं कर रही है ? “
अनीता,” भांग के जमाने बहुत पुराने हो गए, माँ जी। ये भांग से भी कहीं ज्यादा आगे है। इसे खाने के बाद ग्राहक 24 घंटे हमारी दाल मखनी के बारे में ही सोचेंगे।
अब आप बिरजू को बुलाकर ग्राहकों को खाना लगवा दीजिये। मगर हाँ… याद रखियेगा मां जी इस बात का जिक्र भूले से भी किसी के सामने मत करना; क्योंकि ये कानून की नजर में अवैध है। “
कमला,” अरे ! भाड़ में गया कानून। मुझे भला कानून से क्या मतलब। मुझे तो बस पैसो से मतलब है लेकिन हाँ मैं तेरी बात याद रखूंगी। मैं इस बात का जिक्र आईने में कभी अपने आप से भी नहीं करूँगी। “
उस दिन के बाद कमला ताई के ढाबे में भीड़ दिन व दिन बढ़ने लगी। अब तो लोग अपने घर का खाना छोड़कर कमला ताई के ढाबे का खाना खाने के लिए आने लगे।
उधर धर्मा के ढाबे पर सिर्फ एक ग्राहक खाना खाने के लिए आया।
ग्राहक ,” अरे ! सुना है तुम्हारे यहाँ दाल मखनी बहुत अच्छी बनती है। “
धर्मा,” आपने बिल्कुल सही सुना है । “
ग्राहक,” तो फिर देखते क्या हो भाई ? बहुत ज़ोर से भूक लगी है जल्दी से दाल मखनी लगाओ। वैसे मैं कमला ताई का ग्राहक हूँ लेकिन वहाँ बहुत भीड़ है और मुझे भूख बहुत ज़ोर से लगी है। “
सतिया उस ग्राहक को दाल मखनी लगा देता है। मगर दाल मखनी का एक निवाला खाने के बाद ग्राहक गुस्सा होकर बोला।
ग्राहक,” ये दाल मखनी है या कचरा है ? “
धर्मा ,” कैसी बात कर रहे हैं आप ? “
ग्राहक,” बिलकुल सही बात कर रहा हूँ। अब मेरी समझ में आया कि तुम्हारे ढाबे पर कुत्ते क्यों लोट रहे हैं ?
अरे ! इतनी बेकार दाल मखनी तो कोई कुत्ता भी नहीं खायेगा। मेरी ही गलती थी जो मैं यहाँ पर खाना खाने के लिए आ गया। “
इतना कहकर वो ग्राहक वहाँ से चला गया।
सतिया,” समझ में नहीं आता धर्मा भाई आखिर ये चल क्या रहा है ? मेरे हाथ की दाल मखनी तो लोग बहुत पसंद करते थे। अचानक उन्हें इतनी नफरत क्यों होने लगी ? कुछ समझ में नहीं आया। “
तभी वहाँ पर एक साधू आ गया।
साधू,” अलख निरंजन ! बच्चा… बाबा को भूख लगी है। क्या कुछ बाबा को खिलाओगे ?
लेकिन खिलाने से पहले मैं एक बात बता दूँ, बाबा के पास पैसे नहीं है लेकिन हाँ… पेट भरने के बाद बाबा तुम्हें दुआएं बहुत देगा। “
धर्मा,” बाबा, आपकी दुआओं की ही जरूरत है; क्योंकि हमारे ढाबे पर ताला लगने की नौबत आ गई है। “
साधू,” चिंता मत कर, मैं आ गया हूँ ना। जल्दी से गरमागरम अपने ढाबे का सबसे पसंदीदा व्यंजन लगा दे। “
सतिया ने साधू के सामने अपनी बनाई हुई दाल मखनी रख दी।
देखते ही देखते वह साधू सारी दाल मखनी रोटियों के साथ खाकर बोला।
साधू,” वाकई तेरी दाल मखनी बहुत स्वादिष्ट है रे ! चिंता मत कर… बहुत जल्द तू तरक्की करेगा। “
धर्मा,” अरे बाबा ! कहाँ से तरक्की करूँगा ? तरक्की तो इस वक्त कमला ताई कर रही है।
उसके यहाँ की दाल मखनी हमारे यहाँ की दाल मखनी से कहीं ज्यादा बेहतर है। “
धर्मा की बात पर साधू मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया और सीधा कमला ताई के ढाबे पर पहुंचा और कमला ताई की तरफ देखकर बोला।
साधू,” अलख निरंजन ! बाबा को कुछ खाने को दे दे। लेकिन खाना देने से पहले एक बात ध्यान रखना, बाबा के पास पैसे नहीं है लेकिन हाँ… दुआएँ बहुत हैं। “
साधू की बात सुनकर कमला ताई का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
कमला,” पैसे नहीं है तो फिर यहाँ पर क्यों ठूंसने के लिए आ गया ? चला जा यहाँ से… जेब में पैसे हों तब यहाँ पर आकर खाना। यहाँ पर खाना खाने के लिए लाइन लगानी पड़ती है। “
कमला ताई की बात सुनकर साधू के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कुराहट आ गयी और उसने नोटों की गड्डी कमला को दिखाई।
कमला,” अरे ! आप तो बहुत पहुंचे हुए साधू बाबा है। आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आपके पास इतना ढेर सारा पैसा है ? अगर मुझे पहले पता होता तो सबसे पहले आपका ही नंबर आता। “
साधू,” कोई बात नहीं, हम पहले ही नाप तोलकर बोलते हैं।
अब समय खराब मत कर… जल्दी से मेरे लिए अपने ढाबे की सबसे पसंदीदा मशहूर व्यंजन लगवा दे। “
कमला,” मेरे ढाबे का तो सबसे मनपसंद मशहूर व्यंजन दाल मखनी ही है। “
साधू,” तो फिर देर किस बात की है ? जल्दी ला। “
कमला ताई ने जल्दी से साधू के लिए दाल मखनी लगवा दी। साधू ने मुश्किल से एक ही निवाला चबाया होगा और उसने बड़ी तेज़ी से वो थूक दिया।
उसका चेहरा क्रोध से लाल हो उठा और वो गुस्से से उठकर खड़ा हो गया। साधु को गुस्से में देखकर कमला ताई बोली।
कमला,” क्या हुआ साधु बाबा ? आपके चेहरे पर इतना क्रोध कैसे झलकने लगा ? “
साधू,” क्योंकि तेरी दाल मखनी में बिल्कुल भी स्वाद नहीं है। हाँ, अगर इसमें कुछ है तो वो है एक नशीला पदार्थ जो भारत में बैन है। “
साधू की बात सुनकर कमला ताई और उसकी बहू के होश उड़ गए।
अनीता,” आपको कैसे पता ? “
अनीता ने इतना कहा ही था कि साधू ने अपनी दाढ़ी और मूँछ निकाल कर फेंक दीं और तुरंत पिस्तौल निकाल ली। देखते ही देखते ढाबे के कुछ व्यक्ति उठ उसके साथ खड़े हो गए।
साधू,” मेरा नाम है आर्यन (सीबीआई नारकोटिक्स विभाग)। हमें लगातार सूचना मिल रही थी कि इस गांव में ड्रग सप्लाई की जा रही है।
जब मैंने तुम्हारी दाल मखनी चखी, मैं उसी वक्त समझ गया कि इसमें नशीला पदार्थ मिलाया गया है। “
कमला ताई और आरती तुरंत सीबीआई इन्स्पेक्टर आर्यन के पैरों में गिर गई।
कमला,” मुझे माफ़ कर दो। मैं लालच में आ गई थी। “
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आर्यन,” लेकिन तुम्हें इस लालच की सजा भुगतनी पड़ेगी। अब तुम दोनों की सारी जिंदगी जेल में कटेगी। “
आर्यन और वहाँ मौजूद पुलिसवालों ने कमला ताई और अनीता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और उसके बाद से धर्मा का ढाबा चलने लगा।
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