हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ मूर्ख पंडित ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Moorkh Pandit | Hindi Kahani| Moral Stories in Hindi | Kahaniya |Bed Time Story | Hindi Stories
मूर्ख पंडित
एक बार की बात है। चंदनपुर गांव में एक गरीब ब्राह्मण बूढ़ी रहती थी। उसके चार पुत्र थे केशव, चंदन, गौतम और आनंद। एक दिन बूढ़ी माँ अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाती है।
बुढ़िया,” मेरे चारों पुत्रो, अब मैं बहुत बूढ़ी हो गयी हूँ। तुम चारों बड़े हो गए हो। मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है।
तुम तो जानते ही हो, बहुत कम आयु में तुम्हारे पिताजी तुम्हें छोड़कर चले गए थे। मैंने बहुत मेहनत करके तुम चारों को बड़ा किया है।
अब जब तुम खुद अपना अच्छा बुरा सोचने के योग्य हो गए हो तो मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे लिए जो आदेश मुझे दिया था, उसे आज मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ, मेरे पुत्रो। “
चारों भाई ये सुनकर खुश हो जाते हैं।
केशव,” ये आप क्या बोल रही हो, माँ ? आखिर कैसा आदेश दिया था पिताजी ने तुम्हें, बताओ हमें ? “
चंदन,” हाँ माँ बताओ, तुम किस आदेश की बात कर रही हो ? ऐसा कौन सा आदेश है जिसे पिताजी हमें देकर गए, माँ ? “
बुढ़िया,” बेटा, तुम्हारे पिताजी ने तुम चारों को ये आदेश दिया था कि जब तुम चारों बड़े हो जाओ तो यहाँ से कोसों दूर एक जंगल है जिसमें योगी भैरव नन्दा रहा करते हैं।
जब तुम चारों बड़े हो जाओ तो तुम्हारी जो भी इच्छा होगी वो तुम उनसे मांग लेना। भैरव नंदा बहुत बड़े ज्ञानी महात्मा है, वो तुम्हें तुम्हारी इच्छा पूर्ति का मार्ग अवश्य बताएंगे। “
केशव,” क्या सच में, माँ ? अगर ऐसा है तो हम अवश्य ही योगी भैरव नंदा के पास जाएंगे और जो भी मार्ग वो हमें हमारी इच्छा पूर्ति के लिए बताएंगे, उसे हम चारों भाई अवश्य अपनाएंगे, माँ। “
चंदन,” हाँ माँ, हम अवश्य ही भैरव नंदा योगी के आश्रम जाएंगे। “
बुढ़िया,” ठीक है मेरे बच्चों, लेकिन तुम तीनो ये अवश्य ही ध्यान रखना कि तुम्हें अपनी इच्छा पूर्ति के लिए अपने मन में लालच को उत्पन्न नहीं होने देना है।
अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारा मार्ग तुम्हारे लिए अभिशाप बन जाएगा और जल्द ही मेरे पास लौट आना, मुझे तुम्हारा इंतज़ार रहेगा। “
चारों भाई,” ठीक है मां, हम आपकी ये शिक्षा अवश्य ही याद रखेंगे। हम अपने मन में लालच को उत्पन्न नहीं होने देंगे। “
केशव,” अच्छा मां, अब हम योगी भैरव नंदा के आश्रम की ओर चलते हैं। “
रास्ते में…
आनंद,” भाइयो, क्या सच में गुरूजी के पास दिव्य शक्तियां हैं या बस सब बातें हवा में ही है ? “
केशव,” आनंद, ऐसी बातें नहीं करते। गुरूजी तपस्वी है और वो हमारे पिताजी के भी गुरु थे। “
आनंद,” हाँ हाँ, ठीक है। देखते है गुरु जी को भी आज। “
थोड़ी दूर चलने पर उन्हें भैरव नंदा का आश्रम दिखाई पड़ा।
केशव,” अरे ! वो देखो… वो रहा योगी भैरव नंदा का आश्रम, चलो उस ओर चलते हैं। “
तभी वो चारो आश्रम में जाते हैं। वहाँ उन्हें योगी भैरव नंदा ईश्वर के ध्यान में मग्न आश्रम के बाहर बैठे दिखते हैं।
केशव,” प्रणाम गुरूजी ! अपनी आँखें खोलिए, हम बहुत दूर से आपसे भेंट करने आए हैं। हमें हमारी माता ने आपके पास भेजा है, आँखें खोलिये गुरूजी। “
भैरव नंदा,” क्या बात है बालको ? आखिर कौन हो तुम और कौन है तुम्हारी माता जिसने तुम्हें हमारे पास भेजा है ? “
केशव,” हम ब्राह्मण विश्वासनाथ के पुत्र हैं, गुरूजी। हमें हमारी माता ने आपके पास अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए भेजा है।
हमारे पिता ने इस संसार को त्याग करने से पहले हमारे लिए एक आदेश दिया था कि जब हम चारों बड़े हो जाएंगे तो अपनी इच्छा पूर्ति के लिए आपके पास चले आये। “
भैरव नंदा,” अच्छा तो तुम विश्वास नाथ के पुत्र हो ? अब मैं सब समझ गया हूँ, तुम्हारा पिता मेरा बहुत ही प्रिय शिष्य था।
एक दिन उसने मुझसे एक वरदान मांगा कि भविष्य में जब मेरे चारों पुत्र तुम्हारे पास आयेंगे तो जो भी उनकी इच्छा होगी वो मैं अवश्य ही पूरी करूँगा।
बताओ विश्वनाथ के पुत्रों, तुम्हारी क्या इच्छा है ? मैं अवश्य ही तुम्हारी इच्छा पूर्ति में सहायता करूँगा। “
केशव,” गुरूजी, वैसे तो हमारी कुछ महत्वपूर्ण इच्छा नहीं है लेकिन हम चाहते हैं जो भी आप हमें अपने आशीर्वाद के रूप में दे देंगे, उसे ही हम अपनी इच्छा और आपका उपहार समझ लेंगे। “
नंदा योगी ये बात सुनकर बहुत खुश हो जाता।
भैरव नंदा,” हे विश्वासनाथ के पुत्रों ! बहुत ही उत्तम विचार हैं तुम्हारे। तुम भी अपने पिता की तरह ज्ञानी और बुद्धिमान हो। मैं तुमसे बहुत खुश हुआ। तुम यहीं रुको, मैं अभी आता हूँ पुत्रों। “
आनंद (मन में),” अरे ! ये क्या बोल दिया भैया ने ? ये भैरव नंदा योगी तो हमें बहुत कुछ दे सकता है लेकिन लगता है भैया की बुद्धि पर तो पत्थर ही पड़ गए हैं ?
अब ना जाने ये योगी हमें क्या ही उपहार में देगा और जो देगा वो हमारे काम का होगा भी या नहीं, भगवान जाने ?
मुझे मौका मिलता तो मैं इतना धन दौलत मांगता की सात पुश्तें आराम से खाती, हाँ। “
जिसके बाद भैरव नंदा अपने आश्रम की कुटिया में जाता है और चार जमीन खोदने वाली कुदाल लेकर आता है और चारों को एक एक कुदाल दे देता है। ये देखकर चारों बहुत हैरान हो जाते हैं।
केशव,” गुरूजी इस कुदाल का भला हम क्या करेंगे ? क्या ये हमारे किसी कार्य में उपयोग में लाई जा सकती है, गुरु जी ? “
आनंद,” हाँ गुरूजी, भला ये कुदाल हमारे किस काम की ? इस कुदाल का भला हम क्या करेंगे ? “
भैरव नंदा,” ये कुदाल ही मेरा तुम्हारे लिए उपहार है, पुत्रों। इसके द्वारा ही तुम्हें मेरे द्वारा दिए गए उपहार प्राप्त होंगे।
तुम आगे जंगल में जाकर जिस भी स्थान में इस कुदाल को जिस भी जमीन पर चलाओगे, वहीं तुम्हें तुम्हारा उपहार मिल जाएगा।
लेकिन पुत्रों ये ध्यान रखना… ज़्यादा अधिक उपहार की अपेक्षा मत करना वरना तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। “
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केशव,” ठीक है, गुरु जी। हम आपकी ये बात अवश्य ही ध्यान में रखेंगे। हम किसी भी लालचवश अधिक उपहार की अपेक्षा नहीं करेंगे। “
जिसके बाद वह चारों अपनी अपनी कुदाल लेकर जंगल की ओर निकल पड़ते हैं।
केशव,” मुझे लगता है हमें इस कुदाल से यहीं खोदना शुरू कर देना चाहिए। शायद गुरु जी के दिए उपहार हमें यही इसी जमीन के अंदर मिलेंगे। “
गौतम,” हाँ भैया, आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं। हमें यहीं गुरु जी की दी कुदाल से खुदाई शुरू कर देनी चाहिए।
मेरा मन तो अंदर ही अंदर प्रसन्न हुए जा रहा है, उपहार पाने के लिए। चलो चलो, जल्दी करो। “
तभी वो चारों अपनी अपनी कुदाल से जमीन को खोदना शुरू कर देते हैं। जब केशव कुदाल से जमीन खोदता है तो उसे अचानक से बहुत सारे तांबे के कुछ सुंदर बर्तन दिखाई पड़ते हैं।
केशव,” अरे वाह वाह ! ये तो बहुत ही सुंदर तांबे के बर्तन है। इन्हें तो मैं माँ को जाकर दूंगा।
बेचारी मिट्टी के बर्तन में खाना बनाती हैं जो कि अब पूरी तरह से टूट चूके हैं। मुझे मेरा उपहार मिल गया है भाइयो, देखो। “
चंदन,” हाँ केशव भैया, ये तांबे के बर्तन तो कितने सुंदर और चमकदार है ? वाह वाह वाह… बहुत सुन्दर। वाकई तुम्हारा उपहार तो बहुत सुन्दर है। “
आनंद,” अरे ! भला ये भी कोई उपहार हुआ, ये मामूली से तांबे के बर्तन है ? “
तभी गौतम अपनी कुदाल से जमीन खोद ही रहा होता है कि उसे चमकता हुआ एक सोने का हार दिखता है।
गौतम,” अरे ! ये देखिये भैया, देखिये देखिये… मुझे भी अपना उपहार मिल गया है। देखिये, ये कितना सुंदर सोने का हार है ?
मैं इसे माँ को दूंगा। मां कितनी खुश हो जाएगी ना इस सुंदर हाल को देखकर ? “
केशव,” अरे ! हाँ, ये तो सच में बहुत सुन्दर हार है। सच में… माँ इसे देखकर बहुत खुश होगी। “
फिर चंदन अपने कुदाल से जमीन खोदने लगता है। तभी उसे एक पोटली दिखती है।
चंदन,” अरे ! ये कैसी पोटली है ? अरे भाइयो, देखो देखो, मुझे अपना उपहार मिल गया है। ये देखिये, इस पोटली में कितने सारे सोने चांदी के सिक्के हैं ?
वाह ! इन सिक्कों की मदद से मैं माँ के लिए एक सुंदर सी पक्की ईंट वाली झोपड़ी बनाऊंगा, हाँ जिसमें बरसात में पानी भी नहीं टपकेगा, हाँ। मुझे मेरा उपहार मिल गया। भगवान तेरा शुक्र है। “
केशव,” अरे वाह चंदन ! सच में ये तो बहुत सारे सोने चांदी के सिक्के हैं। इसमें जो तुम चाहते हो वो अवश्य ही हो जाएगा, हाँ। “
आनंद (मन में),” अरे ! इन तीनों को तो इतना कुछ मिल गया। ना जाने उस योगी भैरव नंदा ने उपहार में मेरे लिए क्या सोचा होगा ?
काफी देर से कुदाल से ये जमीन खोद रहा हूँ, अभी तक तो कुछ भी हाथ नहीं लगा है। “
तभी कुदाल चलाते हुए जमीन के अंदर से बहुत तेज रौशनी आती दिखती है। वो देखता है कि बहुत सारे हीरे चमक रहे हैं। ये देखकर वो हैरान रह जाता है। “
आनंद,” अरे भाइयो ! ये देखो, मुझे भी मेरा उपहार मिल गया है। देखो देखो, ये हीरे कितने चमकदार है ? “
केशव,” अरे वाह आनंद ! सच में तुम्हारा उपहार तो हम तीनों में से सबसे उत्तम है और अनमोल है।
माँ ये सब उपहार देखकर बहुत खुश हो जाएगी, हाँ। अच्छा चलो अब हमें घर चलना चाहिए। “
आनंद,” अरे ! नहीं नहीं भैया, मुझे अपनी इस कुदाल से जमीन खोदनी चाहिए। क्या पता इन हीरो से भी अधिक अनमोल वस्तु मुझे मिल जाये ?
नहीं नहीं, इन हीरों से मेरा क्या होगा ? ये तो बहुत ही कम है। आप लोग जाएं, मैं और अधिक अनमोल वस्तु लेकर घर आ जाऊंगा, हाँ। “
आनंद की बात सुनकर तीनों भाई बहुत हैरान हो जाते हैं।
केशव,” अरे आनंद ! ये तुम क्या बोल रहे हो ? ये बिलकुल भी उत्तम नहीं है। याद नहीं, गुरु जी ने क्या कहा था ? हमें जो भी उपहार मिला है उसमें ही संतुष्ट होना चाहिए।
अधिक की चाह नहीं करनी चाहिए। अगर हममें से कोई भी ऐसा करेगा तो परिणाम अच्छा नहीं होगा। “
चंदन,” हाँ आनंद, भैया सत्य ही बोल रहे है। चलो अब हमें घर की ओर लौट जाना चाहिए। मां हमारा इंतजार कर रही होगी। “
आनंद,” नहीं भैया, मैं बस इन हीरों को लेकर माँ के पास नहीं जाऊंगा। मुझे और अधिक और अनमोल उपहार की तलाश है।
मुझे विश्वास है वो मुझे इसी जमीन के अंदर मिलेगा। इतने कम धन से मेरा कुछ नहीं होने वाला। मुझे तो बहुत सारा धन चाहिए जोकि यहाँ जमीन के अंदर जरूर दफन है।
तुम लोग जाओ माँ के पास। मैं अपना कीमती और बहुमूल्य उपहार लेकर रहूंगा, हाँ। “
वह खोदने लगता है। काफी देर तक जमीन खोदने के बाद उसे जमीन में एक बहुत बड़ी सुरंग दिखाई देती है और अचानक से आनंद के हाथों से कुदाल छूटकर उस सुरंग में गिर जाती है, जिसकी वजह से आनंद का पैर फिसल जाता है और आनंद चिल्लाता हुआ उस सुरंग के अंदर गिर जाता है।
आनंद (चिल्लाते हुए),” अरे बाबा ! बचाओ मुझे। ये क्या हो गया ? मेरा अनमोल उपहार…. बचाओ बचाओ। “
तभी यह दृश्य देखकर उसके तीनों भाई हैरान हो जाते हैं।
केशव,” ये तुमने क्या कर दिया, आनंद ? अपने लालच के कारण तुम अपनी ही बनाई सुरंग में गिर गए। इसीलिए ही भैरव नंदा गुरूजी ने ये कहा था कि तुम्हारा लालच ही तुम्हारे सर्वनाश की ओर ले जाएगा।
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ये तुमने क्या कर दिया, आनंद ? अरे मेरे भाई ! तुम्हें तुम्हारा लालच ले डूबा। “
चंदन,” अब हम क्या करेंगे ? वापस आ जाओ भाई, भाई बाहर आ जाओ… मेरा प्यारा भाई। “
और तीनों भाई फूट फूटकर रोने लगते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि हमें धैर्य और सब्र से काम लेना चाहिए।
लालच विनाश का कारण है। यहाँ अगर आनंद कम धन में संतुष्टि कर लेता तो उसे मौत के मुँह में जाना नहीं पड़ता।
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