जादुई गुफा | Jadui Gufa | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई गुफा ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
जादुई गुफा | Jadui Gufa | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

Jadui Gufa | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

 जादुई गुफा 

एक बार की बात है। उदयपुर गांव में एक ज्ञानचंद नाम का पुजारी रहा करता था। 
वो गांव के एक छोटे से मंदिर में पूजा पाठ किया करता था लेकिन ज्ञानचंद एक कपटी और लालची इंसान था। 
एक दिन गांव का सबसे धनी बनिया कुछ सोने की मुहरें और चांदी के सिक्के लेकर मंदिर आता है और ज्ञानचंद पुजारी से बोला।
बनिया,” ये लीजिये पुजारी जी, आज भगवान के चरणों में देने के लिए कुछ दान लाया हूँ। “
ज्ञानचंद,” अरे ! हाँ, क्यों नहीं ? भगवान के चरणों में जो भी तुम सच्ची भावना से चढ़ाओगे, उसका तुम्हें दुगना ही मिलेगा। “
जिसके बाद वो धनी बनिया सोने की कुछ मुहरें और चांदी के कुछ सिक्के मंदिर की दान पेटी में डाल देता है। ये देखकर ज्ञानचंद पुजारी की आँखों में लालच आ जाता है।
ज्ञानचंद,” अरे बाबा ! इतना सारा धन अगर यह मुझे मिल जाये तो मेरे तो मज़े ही आ जाएंगे, हाँ। 
वाह वाह ! पूरी जिंदगी इस मंदिर का पुजारी बनकर नहीं गुजारनी पड़ेगी, हाँ। “
बनिया,” अच्छा पुजारी जी, अब मैं चलता हूँ। “
जिसके बाद वो वहाँ से चला जाता है। तभी ज्ञानचंद दानपात्र में से धन निकालकर एक पोटली में अपने घर ले जाता है। 
तभी ज्ञानचंद की पत्नी, चांदनी ज्ञानचंद से कहती है।
चांदनी,” अरे ! आप इतनी जल्दी मंदिर से आ गए। ये आप क्या लाये हैं जी ? “
ज्ञानचंद,” अरे रे भाग्यवान ! ये देखो, आज मैं अपने लिए कितना सारा सोना चांदी लेकर आया हूँ ? 
अब देखना भाग्यवान अब मौज से अपना जीवन गुजारेंगे, हाँ। देखो देखो तुम ही देखो, कितना सारा धन है ? 
अच्छा… अब हम यहाँ और नहीं रह सकते। हमें यहाँ से जाना होगा, चलो यहाँ से। “
चांदनी,” अरे ! ये क्या बोल रहे है आप ? आखिर हम जाएंगे कहां ? मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। 
जरूर आप मुझसे कुछ छुपा रहे हैं। ये धन कहाँ से लाये हैं आप ? मुझे कुछ भी ठीक नहीं लग रहा। “
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! जितना कहता हूँ बस उतना करो, चलो यहाँ से। “
थोड़ी दूर चलने पर वो एक जंगल में पहुंचे जहाँ उसे एक घास से बनी झोपड़ी दिखाई दी।
ज्ञानचंद,” अरे ! देखो भाग्यवान वो सामने झोपड़ी है, चलो आज रात हम उस झोपड़ी में काट लेंगे। सुबह होते ही यहाँ से निकल जाएंगे। “
चांदनी,” ठीक है जी, जैसा आप ठीक समझें। “
तभी दोनों उस झोंपड़ी के अंदर जाते हैं। झोपड़ी में एक तरफ आग जल रही होती है और एक जगह कुछ जानवर की हड्डियाँ पड़ी होती है जिसे देखकर ज्ञानचंद की पत्नी थोड़ी डर जाती है। 
चांदनी,” देखिये जी… मुझे ये झोपड़ी सही नहीं लग रही। देखिये ना यहाँ जानवर की हड्डियों में बिखरी पड़ी है। नहीं नहीं, चलिए आप यहाँ से। “
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! अब इतनी रात को हम आखिर कहाँ जाएंगे, भाग्यवान ? 
कहीं ऐसा ना हो… कोई हमसे हमारा ये धन छीन ले। नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दे सकता। हमें आज रात यहीं रुकना होगा। “
चांदनी,” अच्छा ठीक है जी, आप मेरी सुनते ही कब है ? जैसा आप ठीक समझे। “
जिसके बाद वो दोनों उसी झोपड़ी में सो गए। तभी वहाँ पर एक भयानक दिखने वाला खूंखार नरभक्षी आता है जिसके हाथ में अलग अलग जानवरों का मांस होता है।
नरभक्षी,” अरे बाबा ! आज तो पेट भरकर भोजन मिला है।आनंदा गया। “
तभी उसे ज्ञानचंद पुजारी के सोने की आवाज़ सुनाई देती है जो खर्राटे मार रहा होता है।
नरभक्षी,” ये किसकी आवाज़ें आ रही है, कौन है यहाँ ? “
तभी वो देखता है पुजारी और उसकी पत्नी उसकी झोपड़ी में जमीन पर सो रहे होते है।
नरभक्षी,” अरे वाह ! आखिरकार मेरे लिए नया भोजन आ ही गया। बहुत दिन हो गए, किसी इंसान का मांस नहीं खाया और अब नर और मादा दोनों इंसानों का मांस खाने को मिलेगा। “
तभी ज्ञानचंद और उसकी पत्नी की नींद खुल जाती है। वो दोनों उस नरभक्षी को देखकर हैरान हो जाते हैं और बुरी तरह डर जाते हैं।
नरभक्षी,” मैं तुम दोनों को खा जाऊंगा। आज मेरे पेट को भरपूर शांति मिलेगी, हाँ। मैं खूंखार नरभक्षी हूँ। मुझे इंसानों का मांस खाने में बहुत मज़ा आता है, हाँ। “
ज्ञानचंद,” अरे रे ! हमें छोड़ दो। जाने दो। हमें नहीं पता था, ये तुम्हारी झोपड़ी है। हमें रुकने के लिए शरण चाहिए थी इसलिए झोपड़ी में आ गये। 
छोड़ दो हमें, जाने दो। मैं एक मंदिर का पुजारी हूँ और पूर्ण रूप से शाकाहारी हूँ। कभी मांस को हाथ नहीं लगाया है। 
ऐसे में तुम्हे हमें खाने में बिल्कुल भी मज़ा नहीं आएगा। छोड़ दो हमें ,जाने दो। “

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नरभक्षी,” क्या कहा, तुम शाकाहारी हो ? तुम दोनों को खाकर मुझे ना स्वाद आएगा और ना मज़ा। 
इसलिए मैं तुम दोनों को नहीं खाऊंगा लेकिन तुम्हें इसके बदले में मेरे लिए जंगल से जानवर का मांस लाना होगा। 
जाओ और जाकर मेरे लिए मांस लेकर आओ। मेरी भूख को शांत करो, जाओ… वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा। “
ज्ञानचंद,” हाँ हाँ, क्यों नहीं ? हम दोनों अभी जंगल जाते हैं और तुम्हारे लिए किसी जानवर का मांस लेकर आते हैं। “
नरभक्षी,” नहीं, तुम दोनों नहीं जाओगे। सिर्फ तुम जाओगे। अगर तुम वापस मेरे लिए मांस लेकर नहीं आए तो तुम्हारी ये पत्नी मेरे पास यही मेरी झोपड़ी में रहेंगी। 
अगर तुम जल्दी से मेरे लिए जानवर का मांस नहीं लेकर आये तो मैं तुम्हारी पत्नी को खा जाऊंगा। समझे..? अब जाओ यहाँ से। “
ज्ञानचंद,” राक्षस महाराज, ये आप क्या बोल रहे है ? नहीं नहीं, आप मेरी पत्नी को नहीं खाइएगा, मैं अभी आपके लिए किसी जानवर का मांस लेकर आता हूँ। “
चांदनी,” मैंने तो पहले ही कहा था, ये झोंपड़ी मुझे सही नहीं लग रही। लेकिन आपके धन पाने के लालच ने हम इतनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया। 
अब इस नरभक्षी के लिए किसी जानवर का मांस लेकर जल्दी आइएगा वरना ये नरभक्षी मुझे खा जायेगा। “
ज्ञानचंद,” नहीं नहीं भाग्यवान, तुम चिंता मत करो। मैं जानवर का मांस लेकर जल्दी ही वापस आ जाऊंगा। “
जिसके बाद वो जंगल जाता है। जंगल में थोड़ी दूर चलने पर वो देखता है कि एक भालू का छोटा बच्चा मरा हुआ पड़ा है जिसे कुछ चील कौए नोच रहे थे।
ज्ञानचंद,” अरे ! ये भालू का बच्चा तो मरा पड़ा है। मैं इसे ही उस नरभक्षी के पास ले जाता हूँ। “
इसके बाद वो उस भालू के बच्चे को अपने हाथों में उठाकर उस नरभक्षी की झोपड़ी में आता है।
तभी ज्ञानचंद देखता है कि उसकी पत्नी नीचे जमीन पर पड़ी हुई है और नरभक्षी बड़े मज़े से उसके शरीर का मांस नोच नोचकर खा रहा है। ये देखकर ज्ञानचंद हैरान रह जाता है और ज़ोर ज़ोर से रोने लगता है।
ज्ञानचंद,” अरे रे कपटी नरभक्षी ! ये तुने क्या किया ? तू मेरी पत्नी को ही खा गया। 
अरे मैं तो तेरे लिए जानवर का मांस लेकर आया हूँ लेकिन तुझे ज़रा भी सब्र नहीं हुआ। मेरी पत्नी को ही मार डाला। “
नरभक्षी,” तुम्हें आने में इतनी देर कैसे हो गई ? मुझसे अपनी भूख सहन नहीं हुई इसलिए मैंने तुम्हारी पत्नी को ही खा लिया। “
ज्ञानचंद,” ये मैंने क्या कर दिया ? मुझे माफ़ कर देना, भाग्यवान। मैं तुम्हें नहीं बचा पाया, माफ़ कर देना। 
ना मैं मंदिर से धन चुराता और ना हम यहाँ इस जंगल में आते। मेरे लालच ने मुझसे ये क्या करवा दिया ? “
नरभक्षी,” आज के लिए इतना भोजन ठीक है। चलो अब थोड़ा विश्राम कर लेता हूँ, हाँ। “
उसके बाद वो अपनी झोपड़ी में सो जाता है। तभी ज्ञानचंद रोते हुए अपनी पत्नी की हड्डियों को उठाता है और जंगल की ओर चल देता है। 
वो अपनी पत्नी की हड्डियों को लेकर जंगल में जाता है और एक विशाल पेड़ के नीचे बैठ जाता है और रोने लगता है।
ज्ञानचंद,” मुझे माफ़ कर देना भाग्यवान, मेरे लालच ने तुम्हारी यह दशा कर दी है। मुझे बहुत पछतावा है, भगवान। मुझे माफ़ कर देना। “
कभी उसे रोते देख पेड़ पर से एक गिद्ध की आवाज़ आती है।
गिद्ध,” क्या हुआ है तुम्हें ? तुम क्यों रो रहे हो ? ये मेरे सोने का वक्त है लेकिन तुम मेरी नींद में बाधा डाल रहे हो। “
ज्ञानचंद उसे देखकर थोड़ा डर जाता है। 
ज्ञानचंद,” उस खूंखार नरभक्षी ने मेरी पत्नी को मार डाला। अब मैं क्या करूँगा ? मेरी प्रिय पत्नी मुझे छोड़ कर चली गयी है। 
अब भला मैं जीवित रह कर क्या करूँगा ? अब मैं भी मर जाना चाहता हूँ। मैं खुद ही उस खूंखार नरभक्षी को अपने आपको समर्पित कर दूंगा। अब मैं जीना नहीं चाहता। “
गिद्ध,” उस खूंखार नरभक्षी ने तुम्हारी पत्नी को भी मार डाला है ? इस खूंखार नरभक्षी का आतंक तो इस जंगल में बढ़ता ही जा रहा है जिसकी वजह से अब इस जंगल के जानवर पूरी तरह से खत्म होने को है।
वो एक खूंखार नरभक्षी है लेकिन मैं इसमें तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ। तुम्हारी पत्नी फिर से जीवित हो जाएगी। “
ज्ञानचंद ये सुनकर थोड़ा खुश हो जाता है।
ज्ञानचंद,” क्या सचमुच, तुम सच बोल रहे हो ? क्या मेरी पत्नी फिर से जीवित हो सकती है ? तुम कौन हो ? आखिर मेरी पत्नी कैसे जीवित हो सकती है ? बताओ मुझे। “
मेरा नाम गरुड़राज़ है। मेरे पास दैविक शक्तियां हैं इसलिए वो खूंखार नरभक्षी मुझे कुछ नहीं कर सकता। 
अब तुम्हारी पत्नी का जीवित होने का सिर्फ एक ही रास्ता है जिसपर चलकर ही तुम अपनी पत्नी को जीवित कर पाओगे। लेकिन वो रास्ता बहुत कठिन होगा। “
ज्ञानचंद,” गरुड़राज़ आखिर क्या है वो कठिन रास्ता ? मुझे बताओ, मैं अपनी पत्नी को फिर से जीवित करने के लिए किसी भी कठिन रास्ते पर जाऊंगा। “
गरुड़राज़,” इस जंगल के उस पार एक गुफा है जिसमें एक बहुत ही महान तपस्वी, देवराज रहा करते हैं। तुम्हें उनसे मिलना होगा। 
वही तुम्हारी पत्नी को फिर से जीवित करने की राह दिखाएगा। लेकिन देवराज तपस्वी किसी भी इंसान को अपनी गुफा में इतनी आसानी से आने नहीं देता। 
तुम्हें उससे मिलने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। 
ज्ञानचंद,” गरुड़राज़ मैं जरूर उस गुफा में उस महान तपस्वी के पास जाऊंगा चाहे फिर मुझे कितनी ही मुश्किलों का सामना क्यों ना करना पड़े ? “
तभी गरुड़राज उसे से अपना एक पंख देता है।
गरुड़राज़,” ये लो, मेरा ये जादुई पंख ले जाओ। जब तुम उस गुफा में मुश्किल में आओगे तब ये मेरा जादुई पंख तुम्हारी सहायता करेगा। “
ज्ञानचन्द वो पंख लेकर जंगल के पार वाली गुफा में जाता है।
थोड़ी दूर गुफा में चलते ही एक विचित्र सा दिखने वाला लंगूर जानवर जिसकी आँखें एकदम सुर्ख लाल होती है, उस पर झपट पड़ता है।
ज्ञानचंद,” कौन हो, कौन हो तुम ? मुझे छोड़ दो, छोड़ दो मुझे। “
लंगूर,” तपस्वी देवराज की इस गुफा में आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा। क्या तुम्हें नहीं पता, यहाँ कोई इंसान नहीं आ सकता ? “
ज्ञानचंद,” नहीं नहीं, मुझे छोड़ दो। मैं बहुत मुश्किल में हूँ। मुझे यहाँ गरुड़राज़ ने भेजा है। 
मुझे देवराज तपस्वी से मिलना ही होगा। मुझे आगे गुफा में जाने दो। “
यह सुनकर वो डरावना लंगूर उसे छोड़ देता है।
लंगूर,” ठीक है, मैं आगे देवराज तपस्वी से मिलने दूंगा लेकिन इसके लिए तुम्हें एक चुनौती से गुजरना होगा। इस गुफा में आगे जाने के दो रास्ते बताऊँगा। 
तुम्हें अपनी बुद्धि से सही रास्ता चुनना होगा लेकिन याद रखना… अगर तुमने गलत रास्ता चुना तो तुम देवराज तपस्वी से कभी नहीं मिल पाओगे। “
ज्ञानचंद,” ठीक है, मुझे आपकी चुनौती मंजूर है।
जिसके बाद डरावना लंगूर अपनी आँखों की शक्ति से वहाँ दो रास्ते बना देता है। एक रास्ते पर बहुत रौशनी होती है और दूसरे रास्ते पर बहुत अंधेरा। 
उसमें सिर्फ आग की मशालें जल रही होती है। ये देखकर ज्ञानचंद सोच में पड़ जाता है। 
कुछ देर सोचने के बाद…
ज्ञानचंद,” मैं अंधेरे का रास्ता ही चुनूंगा क्योंकि अंधेरे के बाद ही जीवन में उजाला होता है और मुझे अपने जीवन में उजाला करने के लिए अपनी पत्नी को जीवित करना है। मुझे देवराज तपस्वी इसी अंधेरी राह पर मिलेंगे। “
डरावना लंगूर ये सुनकर थोड़ा खुश हो जाता है।
लंगूर,” बहुत अच्छा जवाब दिया तुमने, तुम्हारी राह इसी अंधेरे रास्ते से होती हुई उजाले की ओर जाती है। 
तुम्हें ऐसे ही अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करना होगा। अब तुम जाओ। “
ज्ञानचंद अंधेरे रास्ते की ओर बढ़ता है। तभी थोड़ी दूर पर वो देखता है कि एक बहुत बड़ी शिला दिख रही है। 
ज्ञानचंद,” ये क्या..? गुफा में आगे जाने का तो कोई रास्ता ही नहीं दिखाई दे रहा। “
वो उस शिला के पास जाता है। 
ज्ञानचंद,” इतनी बड़ी शिला… आखिर इसका क्या मतलब हो सकता है ? लगता है शिला के उस पार ही मुझे देवराज तपस्वी से मिलने का रास्ता मिलेगा। “

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ज्ञान चंद उस शिला को हटाने की बहुत कोशिश करता है लेकिन वो अपनी जगह से टस से मस नहीं होती। तभी उसे शिला के उस पार एक आवाज़ सुनाई देती है।
आवाज,” कौन हो तुम और क्यों इस शिला को हटाने की कोशिश कर रहे हो ? क्या तुम जानते नहीं, ये गुफा देवराज तपस्वी की है ? यहाँ किसी भी इंसान का आना मना है फिर तुम क्यों आये हो ? “
ज्ञानचंद,” मैं बहुत ही मुसीबत में हूँ। मुझे यहाँ गरुडराज ने भेजा है। मुझे देवराज महान तपस्वी से मिलना है। उनसे मिले बिना मैं यहाँ से नहीं जाऊंगा। “
आवाज,” तुम्हें गरुड़राज़ ने भेजा है, इसका तुम्हें प्रमाण देना होगा। तुम्हें एक चुनौती का सामना करना होगा तभी तुम इस शिला के बाहर आ सकते हो।
ज्ञानचंद,” मुझे आपकी चुनौती मंजूर है। क्या करना होगा मुझे, बताओ ? “
आवाज,” इस शिला को खोलने की चाबी का पता तुम्हें अपनी बुद्धि से लगाना होगा तभी तुम शिला के अंदर आप आओगे। “
ज्ञानचन्द यह सुनकर सोच में पड़ जाता है। कुछ देर सोचने के बाद वो देखता है कि शिला पर अचानक से एक निशान दिखने लगता है जो बिल्कुल गरुड़राज़ के दिए पंख की तरह होता है जो कि ज्ञानचंद के पास होता है। वो उस पंख को अपने हाथ में लेता है। “
ज्ञानचंद,” अच्छा… तो शिला की चाबी ये पंख ही है क्योंकि शिला पर दिखाई दे रहा है ये निशान गरुड़राज़ के पंख की तरह है। “
जैसे ही ज्ञानचंद उस पंख को शिला पर रखता है वो पंख उस शिला में समा जाता है और शिला का दरवाजा खुल जाता है। 
ज्ञानचंद उस शिला की गुफा के अंदर जाता है और देखता है कि देवराज तपस्वी एक स्थान पर अपनी ध्यान मुद्रा में बैठे हुए हैं और ‘ओउम’ का उच्चारण कर रहे हैं।
तभी ज्ञानचंद उसके पास जाता है।
ज्ञानचंद,” हे महान तपस्वी देवराज ! आँखें खोलिये। मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है। आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं। आँखें खोलिये अपनी…।
तभी देवराज तपस्वी अपनी आंखें खोलता है।
देवराज,” कौन हो तुम और क्यों आये हो हमारी गुफा में ? यहाँ हम अपनी ध्यान मुद्रा में रहते हैं इसलिए किसी भी इंसान का यहाँ आना वर्जित है। 
लेकिन तुम यहाँ इतनी चुनौतियों का सामना करके आये हो तो हम तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे। बताओ हमें, हम तुम्हारी क्या सहायता कर सकते हैं ? “
ज्ञानचंद,” मैं एक मंदिर का पुजारी था लेकिन अपने लालच के कारण एक दिन उस मंदिर से कुछ सोना चांदी चुराकर अपनी पत्नी के साथ इस गुफा के पार वाले जंगल में आ गया। 
लेकिन वहाँ हमारा सामना खूंखार नरभक्षी से हुआ और उसने मेरी पत्नी को ही अपना शिकार बना लिया। 
वह खूंखार नरभक्षी एक एक करके सभी जंगल के जानवरों को अपना शिकार बना रहा है। मैं अपनी पत्नी को दोबारा से जीवित करना चाहता हूँ। 
मेरी पत्नी की जान मेरे ही लालच के कारण गयी है इसलिए मैं अपनी पत्नी को फिर से जीवित करना चाहता हूँ। अब आप ही मेरी सहायता कीजिए, देवराज। “
देवराज,” दुष्ट व्यक्ति, तुमने अपने लालच के कारण अपनी पत्नी को गंवा दिया है। मैं तुम्हारी सहायता नहीं करूँगा, जाओ यहाँ से…। “
ज्ञानचंद ये सुनकर तपस्वी के पैरों में गिर पड़ता है।
ज्ञानचंद,” नहीं नहीं देवराज, ऐसा मत बोलिये। आप एक महान तपस्वी है। मैं जानता हूँ,मुझे लालच नहीं करना चाहिए था लेकिन अब मैं अपनी पत्नी को फिर से जीवित करना चाहता हूँ। मेरी सहायता कीजिए। “
ज्ञानचन्द की ये बातें सुनकर…
देवराज,” अच्छा तो ठीक है, मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूँगा लेकिन इससे पहले तुम्हें मेरे दो सवालों का उत्तर देना होगा। 
तुम्हारे दूसरे उत्तर में ही तुम्हे वो वस्तु मिलेंगी जिससे तुम अपनी पत्नी को दोबारा जीवित कर सकते हो और उस खूंखार नरभक्षी का विनाश भी उसी से होगा। 
इसलिए तुम्हें अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करके ही दोनों उत्तर देने होंगे। अगर कोई भी उत्तर गलत हुआ तो हम तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे। तुम्हें यहाँ से खाली हाथ ही जाना होगा। “
ज्ञानचंद,” नहीं नहीं तपस्वी देव, मैं यहाँ से खाली हाथ नहीं जाना चाहता। मैं आपके दोनों सवालों का सही उत्तर देने की जरूर कोशिश करूँगा। “
देवराज,” तो बताओ, तुम्हारा पहला प्रश्न है… इस संसार में मनुष्य के जीवन में भाग्य बड़ा है या बुद्धि ? “
ज्ञानचंद ये सुनकर थोड़ा सोच में पड़ जाता है।
ज्ञानचंद,” आपके इस प्रश्न का उत्तर बुद्धि है, देवराज तपस्वी क्योंकि मनुष्य के जीवन में बुद्धि ही वो मार्ग है जिसपर चलकर भाग्य को बदला जा सकता है। 
भाग्य कभी भी बुद्धि को नहीं बदल सकता है लेकिन बुद्धि में वो गुण होते हैं कि वो भाग्य को बना और बिगाड़ सके। इसलिए भाग्य और बुद्धि में बुद्धि ही बड़ी है। “
देवराज,” बहुत ही उत्तम, तुमने बिल्कुल सही उत्तर दिया है। मनुष्य अपनी बुद्धि से ही कुछ भी हासिल कर सकता है। भाग्य का मार्ग बुद्धि के मार्ग के आगे छोटा होता है। 
अब तुम्हें अपने दूसरे प्रश्न का उत्तर देना होगा। ये प्रश्न तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है और कठिन भी। अगर तुमने इसका सही उत्तर नहीं दिया तो तुम्हें यहाँ से खाली हाथ ही लौटना होगा। 
तो बताओ, इस संसार में मनुष्य के जीवन में भूख, प्यास, नींद और आशा इन चारों में से सर्वश्रेष्ठ क्या है ? “
ज्ञानचन्द सोच में पड़ जाता है।
ज्ञानचंद,” आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर आशा है, देवराज क्योंकि आशा अर्थात उम्मीद पर ही ये संसार टिका हुआ है। 
क्योंकि मनुष्य के जीवन में एक आशा ही होती है जो मनुष्य के जीवन में कठिन से कठिन कार्य को भी करने की ताकत देती है। 
मनुष्य जीवन में आशा घने अंधेरे में उस रौशनी की किरण की तरह है जो मनुष्य को घनघोर कष्ट में भी जीने की प्रेरणा देती है। “
देवराज,” वाह ! बहुत ही उत्तम उत्तर, तुम्हारा ये उत्तर भी बिलकुल सही है। मैं तुमसे बहुत खुश हुआ। तुम्हारी बुद्धि ने मुझे प्रभावित किया इसलिए मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूँगा। “
तभी तपस्वी उसे एक जल से भरा अपना लौटा देते हैं।
देवराज,” ये लो, ये अमृत ही तुम्हारी सहायता करेगा। इसे उस नरभक्षी की आँखों में डाल देना और इसकी कुछ बूंदें अपनी पत्नी की हड्डियों पर डाल देना जिससे तुम्हारी पत्नी जीवित हो जाएगी। “
वो अमृत अपने हाथों में ले लेता है।
ज्ञानचंद,” आपका बहुत बहुत धन्यवाद तपस्वी देवराज ! अब मैं इस अमृत से अपनी पत्नी को दोबारा जीवित कर पाऊंगा और उस नरभक्षी का अंत भी। “
देवराज,” जाओ… तुम्हारा कल्याण होगा। “
इसके बाद ज्ञानचंद अमृत लेकर उसी जंगल में जाता है। तभी उसे वो नरभक्षी मिलता है। नरभक्षी ज्ञानचंद के हाथ में वो अमृत का लोटा देख लेता है।
नरभक्षी,” तो तू उस तपस्वी देवराज के पास गया था ? उसने ही तुझे मेरे अंत का रास्ता बताया होगा ? लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। 
मैं तेरे सामने ही नहीं आऊंगा तो तू मेरी आँखों पर ये अमृत भी नहीं डाल पाएगा। लेकिन मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, हाँ… मैं तुझे भी खा जाऊंगा। “
नरभक्षी ज्ञानचंद को अपने दांतों से उसकी गर्दन से पकड़ लेता है। तभी वहाँ गुरुराज पेड़ से खूंखार नरभक्षी के ऊपर छलांग मारता है और नरभक्षी ज्ञानचंद की गर्दन को छोड़ देता है।
नरभक्षी,” ये तुने अच्छा नहीं किया, गरुड़। मैं तुझे भी जिंदा नहीं छोडूंगा। आज तुम दोनों को खाकर ही मैं अपनी भूख मिटा दूंगा, हाँ। “
तभी अचानक से ज्ञानचंद अपने हाथ में उपस्थित अमृत खूंखार नरभक्षी की आँखों में डाल देता है। अमृत डालते ही नरभक्षी ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता है।
नरभक्षी (चीखते हुए),” आ… आ… आ। “
देखते ही देखते नरभक्षी जलकर भस्म हो जाता है। इसके बाद ज्ञानचंद और गरुड़ की आँखों में थोड़ी खुशी दिखाई देती है।
गरुड़राज,” नरभक्षी का तुमने अंत कर दिया है। वाकई में तुम बहुत बहादुर निकले। अब जाओ और अपनी पत्नी की हड्डियों पर इस अमृत की बूंदें डाल दो। “
जिसके बाद ज्ञानचंद अपनी पत्नी की हड्डियों पर उस अमृत को डाल देता है। उसकी पत्नी दोबारा जीवित हो जाती है जिसे देखकर ज्ञानचंद खुश हो जाता है। 
ज्ञानचंद,” आखिर तुम फिर से जीवित हो ही गई भाग्यवान ? तुम मेरे पास दोबारा लौट आई हो, मेरे लिए इससे बढ़कर कुछ और नही। “
चांदनी,” लेकिन यह सब कैसे ? मुझे तो उस नरभक्षी ने मार डाला था फिर यह सब कैसे हुआ ? “
जिसके बाद ज्ञानचंद अपनी पत्नी को सारी बात बताता है। 
चांदनी,” आप तो सचमुच एक बहादुर इंसान निकले, जी। आपने लालच में जो पाप किया था उसकी सजा आपको इस ग्रुप में मिली है, जी। 
आपके लालच ने मुझे सदैव के लिए आपसे दूर कर दिया था लेकिन आपके पश्चाताप और मुझे दोबारा जीवित करने की इच्छा ने मुझे फिर से आपके पास वापस ला दिया है, जी। अब आप कभी भी लालच के झांसे में मत आइएगा। “

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ज्ञानचंद,” नहीं भाग्यवान। अब मुझे समझ आ गया है, मनुष्य को लालच सिर्फ विनाश की ओर ले जाता है। “
गरुड़राज,” दोनों खुश रहो। आज तुम्हारी वजह से इस जंगल को इस नरभक्षी से मुक्ति मिली। धन्यवाद ! “
ज्ञानचंद,” आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद गरुड़राज ! आपकी सहायता के बिना यह संभव नहीं था। “
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