चालक सेठ | Chalak Seth | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चालक सेठ ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
चालक सेठ | Chalak Seth | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Chalak Seth | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

 चालक सेठ 

चमनपुर नाम के एक छोटे से गांव में सोनू नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह रोज सुबह जंगल में लकड़ी काटने के लिए जाया करता था। 
एक दिन… 
सोनू,” अरे भाई ! आज तो जंगल की सारी लकड़ियों को काट ही दूंगा, हां। इन्हें बेचकर जो भी पैसे आएंगे, उर्मिला को उनसे एक ताजा मछली लाकर दूंगा। बेचारी कब से बोल रही है ? खुश हो जाएगी, हां। “
सोनू की इस आस में कि ज्यादा लकड़ी काटकर ज्यादा पैसे कमा लूंगा, लकड़ी काटते काटते शाम हो जाती है। 
तभी सोनू के पास एक सेठ भागते हुए आता है जिसके हाथ में एक धन की पोटली होती है। 
सेठ,” अरे भाई ! मुझे जल्दी से कहीं छुपा दो, मेरे पीछे कुछ लुटेरे डाकू पड़े हैं… जल्दी करो। “
सोनू,” सेठ जी, आप चिंता मत कीजिए। जल्दी से उस बड़े पेड़ के पीछे छुप जाइए। “
सेठ पेड़ के पीछे छुप जाता है। तभी वहां चार लुटेरे डाकू आ जाते हैं। 
डाकुओं का सरदार,” क्यों रे ! क्या तूने यहां किसी सेठ को भागते हुए देखा है ? बता हमें। “
सोनू,” नहीं-नहीं डाकू महाराज, मैंने तो किसी भी सेठ को यहां से भागते हुए नहीं देखा। “
तभी एक डाकू जो तोतला होता है। 
तोतला डाकू,” अले लकड़हारे ! तुम तो थत बोल लए हो ना ? उस थेत के हाथों में एत दन की तोतली भी थी। 
अगर तूने हमें धूत बोला तो तुम्हारी थैर नहीं। समझे तुम..? हम लुतेरे दातू हैं…लुतेरे दातू हैं।
सोनू,” डाकू भाई, जरा धीरे-धीरे बोलोगे तो समझ में आ जाएगा । मुंह से सुपारी थूक दो ना। “
तोतला डाकू,” साले, मेला मदाक बनाता है। ए ! तू लुक, मैं अभी बताता हूं तेले को। जल्दी से उस्ताद को थेत का पता बता। “
सोनू,” नहीं नहीं डाकू महाराज, मैं सच बोल रहा हूं। मैंने यहां से किसी भी सेठ को भागते हुए नहीं देखा है जिनके हाथों में धन की पोटली हो। 
लगता है आप जिस सेठ की बात कर रहे हैं वो किसी और दिशा में चला गया होगा। “
तोतला डाकू,” उत्ताद, लगता है ये लतलहारा ठीक बोल ला है। वो थेत दलूल दूतली दिथा में दया होगा। तलो यहां थे…। “
सरदार,” अच्छा ठीक है, चलो फिर यहां से। वह सेठ बचकर जाना नहीं चाहिए। हमें उसकी धन की पोटली चाहिए। “
जिसके बाद सभी डाकू वहां से चले जाते हैं। तभी सेठ पेड़ के पीछे से निकल कर आता है। 
सेठ,” तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद भाई ! आज तो तुमने मुझे बाल-बाल बचा लिया। “
सोनू,” लेकिन सेठ जी आप उन लुटेरों से इस तरह भाग क्यों रहे थे और वह डाकू आपके ही पीछे क्यों पड़े हैं ? “

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सेठ,” अरे भाई ! मैं दूसरे गांव का एक सुनार हूं। आज मेरी दुकान पर कुछ लुटेरे डाकुओं ने मेरा धन लूटने के लिए हमला कर दिया। 
बड़ी मुश्किल से मैं अपनी जान बचाकर भागा और जितना भी धन मेरे पास था, सब इस पोटली में बांध लिया और भागते भागते जंगल में आ गया। 
लुटेरे डाकू भी मेरा पीछा करते-करते यहां तक आ गए। वो मुझसे मेरे धन की पोटली छीनना चाहते हैं। “
सोनू,” सेठ जी, वो डाकू आप को ही क्यों ढूंढ रहे हैं ? यहां आपका ज्यादा समय तक रुकना ठीक नहीं होगा। आप मेरे साथ मेरे घर चलिए। “
जिसके बाद वह सेठ सोनू के साथ उसके घर जाता है। तभी सोनू की पत्नी उर्मिला कहती है। 
उर्मिला,” जी, आ गए आप ? मैंने आपसे कहा था ना, मुझे आज मच्छी ही खानी है। और यह क्या..? आप किसे अपने साथ ले आए हैं जी ? “
तभी सोनू अपनी पत्नी को सारी बात बताता है। तभी सोनू की पत्नी सेठ के हाथों में धन की पोटली देती है और उसके मन में सेठ के धन को लेकर लालच आ जाता है। 
उर्मिला,” अरे वाह ! इस सेठ की धन की पोटली में तो बहुत धन लगता है। अगर यह धन मेरे पास आ जाए तो कितना अच्छा होगा ना ? आय हाय ! मेरे तो मजे ही आ जाएंगे। “
उर्मिला,” अरे सेठ जी ! आप चिंता मत कीजिए। आप यहां हमारे घर में रुक सकते हैं। लेकिन यहां अगर लुटेरे डाकू आ गए तो आपके इस धन की पोटली को तो वो लूटकर ले जाएंगे। 
आप अपनी धन की पोटली को मुझे दे दीजिए, मैं इसे संभालकर रख देती हूं। ना जाने कब यहां डाकू आ जाएं ? “
तभी सोनू अपनी पत्नी के मन के लालच को भांप लेता है। 
सोनू,” नहीं नहीं सेठ जी, आप एक काम कीजिए… मेरे घर में ही एक गड्ढा खोदकर उसमें ही यह धन की पोटली छुपा दीजिए। 
वो डाकू कभी नहीं जान पाएंगे, आपने अपने धन की पोटली कहां छुपाई है, हां ? “
सेठ,” ठीक है भाई, अगर तुम कहते हो तो मैं अपनी इस धन की पोटली तुम्हारे घर की जमीन में गड्ढा खोदकर छुपा देता हूं। “
पोटली छुपाने के बाद…
सोनू,” सेठ जी, अब आप आराम कीजिए। “
तभी सेठ की आंख लग जाती है और वह सो जाता है। सोमू जहां सेठ ने अपने धन की पोटली छुपाई थी, वहां खड़ा होकर धन की रखवाली करता है। 
सोनू,” अगर सेठ की धन की पोटली डाकू ले गए तो..? सेठ के धन के साथ-साथ लकड़ी बेचकर साल भर की जमा पहुंची मेरी भी लूट ले जाएंगे। नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दे सकता। “
इसके बाद सोनू एक पोटली में अपना धन वही जंगल में छुपा देता है जहां वह लकड़ियां काटा करता था। 
वहीं जमीन में गड्ढा खोदकर वह धन छुपा देता है और वापस अपने घर आ जाता है। थोड़ी देर बाद सोनू के घर पर चारों लुटेरे डाकू आ जाते हैं। 
डाकुओं का सरदार,” अरे ओ लकड़हारे ! तूने हमें धोखा दिया। वह सेठ तेरे ही घर आया था। अब बता… वह कहां है ? अब हम तुझे नहीं छोड़ेंगे, हां। 
लुटेरे डाकुओं का सरदार नाम है मेरा… अच्छे-अच्छे कि टांय टांय फिस कर देता हूं और तू मुझसे ही होशियारी करने चला था। “
सोनू डाकू की यह बात सुनकर हैरान हो जाता है। अपने आसपास देखता है तो उसे कहीं भी सेठ नजर नहीं आता। 
सोनू (मन में),” सेठ जी कहां चले गए ? लगता है… वो सेठ जी भाग गए। अब ये लुटेरे डाकू मुझे नहीं छोड़ेंगे। “
तोतला डाकू,” थरदार, लगता है ये ऐथे नहीं बताएगा, थेत कहां है ? दांव के लोगों ने थेत को इथके थाथ ही देखा था। चलो थरकार, इथे उथाकर अपने थाथ लिए तलो। “
सोनू,” नहीं-नहीं डाकू महाराज, मुझे नहीं पता कि वो सेठ कहां है ? उसकी धन की पोटली कहां है ? मुझे नहीं पता सरकार। 
वह सेठ थोड़ी देर पहले यहीं तो था लेकिन अब मुझे नहीं पता, वह कहां गया ? डाकू महाराज, माफ कर दीजिए मुझे। “
तभी सोनू की पत्नी (उर्मिला) वहां आती है और डाकुओं के सरदार से कहती हैं।
उर्मिला,” नहीं नहीं, छोड़ दीजिए इन्हें। यह मेरे पति हैं। इन्होंने कुछ नहीं किया। मैं आपको बताती हूं। आपको सेठ के धन की पोटली ही चाहिए ना ? 
धन की पोटली यहां मेरे घर में जमीन के नीचे गढ़ी दफन है। आप उसको खोदकर ले जाइए लेकिन मेरे पति को छोड़ दीजिए। “
तोतला डाकू,” अच्छा तो थेत ने धन की पोतली यहां थुपाई है। उत्ताद, मैं बोलता हूं, दल्दी ते दमीन थोदकर निकाल दीजिए धन की पोतली। “
सरदार,” हां, तुम लोग क्या देख रहे हो ? जल्दी से जमीन खोदो। “
तभी वो लुटेरे डाकू सोनू के घर में जमीन खोदना शुरू कर देता है लेकिन काफी देर तक उन्हें कोई भी धन की पोटली नहीं मिलती। 
सरदार,” अरे ! यहां तो कुछ नहीं है। आखिर कहां गई धन की पोटली ? तुम दोनों मेरे साथ मजाक कर रहे हो। 
तुम दोनों उस सेठ का धन अकेले ही हड़पना चाहते हो। हम लुटेरे डाकू हैं। हमारे साथ होशियारी करते हो। “

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तोतला डाकू,” अले थरदार ! ये दोनों पति-पत्नी हमाले साथ मदाक के मूद में नजल आते हैं। इन्हें नहीं पता हम तोई मामूली दाकू नहीं है, हम लुटेले दाकू है। “
तोतला डाकू,” देखो… तुम दोनों थीधे- थीधे बता दो, कहां थुपा लखा है थेत का घन, वलना तुम दोनों अपनी दान से हाथ धो बैथोगे। “
तभी वहां पर सेठ आ जाता है। सेठ को देखकर सोनू और उसकी पत्नी हैरान रह जाते हैं। 
तोतला डाकू,” अच्छा हुआ थेत दो तुम यहां आ गए वलना हमाले उत्ताद तुम्हें तहीं ते भी धूंध नितालते। “
सेठ,” डाकू महाराज, आप इन दोनों मासूम पति पत्नी को छोड़ दीजिए। उन्हें नहीं मालूम कि मैंने अपना धन कहां छुपाया है ? 
जब सोनू की आंख लग गई थी तो मैं खुद ही उठकर अपने धन की रखवाली करने लगा। उसी समय मैंने तुम्हें आता देख लिया इसलिए मैं अपने धन की पोटली उठाकर वहां से भाग गया। 
तुम चलो मेरे साथ डाकू महाराज, मैं आपको अपने धन की पोटली देता हूं लेकिन सोनू और उसकी पत्नी को छोड़ दो। “
इसके बाद सेठ और सोनू उन चारों डाकुओं के साथ उस जंगल में जाते हैं जहां सोनू लकड़ी काटा करता था। 
तोतला डाकू,” थेत थत-थत बता, कहां थुपाया है अपना धन ? दल्दी बता, दिमाग की थोती मत कर बता रहा हूं। “
सेठ,” डाकू महाराज, मैंने अपने धन की पोटली यहां जंगल में जमीन के नीचे छुपा दी थी। तुम मेरे धन की पोटली निकालकर ले जाओ। “
सोनू सेठ की यह बात सुनकर बहुत हैरान रह जाता है; क्योंकि यह तो वही जगह है जहां पर सोनू ने अपना धन छुपाया था।
सरदार,” अच्छा… हमसे होशियारी करता है। हम लुटेरे डाकू है, हां। सेठ, अब देख हम तेरा सारा धन ले जाएंगे, हा हा हा…। “
तभी डाकू जंगल में जमीन खोदकर वह धन की पोटली निकालते हैं। सोनू यह देखकर हैरान रह जाता है; क्योंकि वह तो सोनू की ही धन की पोटली थी। 
सोनू (मन में),” हे भगवान ! यह तो मेरी ही वर्षों की मेहनत से जमा किया हुआ धन था लेकिन सेठ इसे अपना धन क्यों बता रहा है ? 
हे भगवान ! अब मैं क्या करूंगा ? इस सेठ ने तो मेरे साथ धोखा किया है। हाय हाय ! अब तो मेरे पास कुछ भी नहीं बचेगा। “
तोतला डाकू,” अरे ! वाह वाह… हमें तो माल मिल दया। देखो थरकार, ये लहा थेत का धन। “
सरदार,” हां, अब चलो यहां से। यह धन तो हमारे लिए काफी पर्याप्त है। आखिरकार हमने सेठ का धन लूट लिया, हा हा हा…। “
इसके बाद वो डाकू वहां से सेठ की धन की पोटली लेकर वहां से चले जाते हैं। 
सोनू,” सेठ जी, आपने ऐसा क्यों किया ? आपने अपना धन ना देकर उन लुटेरे डाकुओं को मेरी मेहनत से जमा की हुई पोटली को ले जाने दिया और अपना काफी धन ना जाने कहां छुपा दिया ? यह आपने अच्छा नहीं किया सेठ जी। अब मैं क्या करूंगा ? “
सेठ,” अरे अरे सोनू ! तुम दुखी मत हो। मैंने तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं किया है। जब तुम यहां इस जंगल में अपना धन छुपाने आए थे, उसी वक्त मेरी आंख खुल गई और मैं तुम्हारा पीछा करता करता यहां आ गया था। 
मैंने सब देख लिया था। लेकिन जैसे ही मैं तुम्हारे घर वापस जा रहा था तो मैंने देखा कि वही लुटेरे डाकू गांव के कुछ लोगों से तुम्हारे घर का पता पूछ रहे थे। 
मैं जान गया था कि अब यह मुझे ढूंढते ढूंढते तुम्हारे घर ही आएंगे इसलिए डाकुओं के तुम्हारे घर पहुंचने से पहले अपना छुपाया हुआ धन तुम्हारे घर से निकालकर ले गया था। 
लेकिन मुझे मालूम था, बिना धन लिए लुटेरे डाकू वापस नहीं जाएंगे इसलिए मैंने अपने घन की बजाय तुम्हारे धन का रास्ता उन्हें बता दिया; क्योंकि मेरा धन तुम्हारे जमा किए गए धन से कई गुना अधिक था। 
तभी सेठ अपने कुर्ते की जेब से धन की पोटली निकालता है और पोटली में से काफी सारे सोने – चांदी के जेवर सोनू को देता है। 
सेठ,” यह लो सोनू, तुम्हारा जो धन लुटेरे डाकू लेकर गए हैं, यह उनसे कई गुना ज्यादा है। अब तुम अच्छे से अपनी जिंदगी बिता सकते हो। “
यह देखकर सोनू बहुत खुश हो जाता है। 

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सोनू,” सेठ जी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपके बारे में कितना गलत सोचा ? 
मुझे लगा आपने उन लुटेरे डाकुओं को अपना धन ना देकर मेरे धन का रास्ता उन्हें बता दिया, तो आपने मेरे साथ अन्याय किया लेकिन आपने तो मुझे यह सोने चांदी के जेवर देखकर मेरी नैया ही पार लगा दी है, हां। 
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सेठ जी ! आपने अपनी सूझबूझ से उन लुटेरे डाकुओं को अच्छा बेवकूफ बनाया है। “
इसके बाद सेठ अपने गांव लौट जाता है और सोनू अपनी पत्नी के साथ खुशी-खुशी रहने लगता है।
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