हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” नकलची किसान ” यह एक Moral Story in Hindi है। अगर आपको Hindi Kahani, Gaon Ki Kahani या Majedar Hindi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
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नकलची किसान
एक बार की बात है… रतनपुर गांव में रंजीत नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत ही नकलची और लालची स्वभाव का था। वह आसपास के लोगों को देखता और उन्हीं की तरह काम करता।
एक दिन मदन खेत में बाजरा बो रहा था। रंजीत ने उसे फसल बोते हुए देख लिया। उसके बगल में ही रंजीत का भी खेत था। उसने सोचा इस बार बाजरे की फसल में ज्यादा उपज होगी अर्थात मुनाफा भी ज्यादा ही होगा। तो क्यों ना मैं भी बाजरा ही बो दूं ?
वह घर गया और बाजरे का बीज लेकर खेत पर आ गया। मदन ने जब रंजीत को बाजरा बोते हुए देखा तो उसने कहा,” क्यों रंजीत ? क्या तुम भी मुझे देखकर बाजरा ही उगाना चाहते हो ? “
” क्यों ? ऐसा कहां लिखा है कि मैं तुम्हें देखकर बाजरा नहीं बो सकता ? मेरा खेत है, मेरी फसल… मैं जो चाहूं वो करूं तुम्हें इससे क्या ? “
” अच्छा ठीक है। इस साल तुम फसल का दाम गिरा कर ही मानोगे। चलो कोई नहीं… वैसे भी तुम सुनोगे तो किसी की भी नहीं। “
रंजीत बिना कुछ कहे वहां से घर चला आया। घर आकर रंजीत की पत्नी ने रंजीत से कहा,” सुनो… इस साल हरा चारा बच गया है; तुम एक काम करो, इसे गौशाला बेच आओ। और वैसे भी यह यहां पड़ा – पड़ा खराब हो जाएगा। “
रंजीत ने कुछ देर विश्राम किया और उसके बाद वह हरा चारा सिर पर रखकर गौशाला की तरफ चल दिया। रास्ते में उसे धनीराम मिला।
धनीराम ने रंजीत से पूछा,” कहां जा रहे हो भाई ? “
रंजीत ने जवाब दिया,” इस चारे को गौशाला देने जा रहा हूं। चाहो तो तुम भी चलो। ”
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धनीराम और रंजीत दोनों गौशाला की तरफ चल दिए। गौशाला पहुंचकर रंजीत ने गौशाला के कर्मचारी से कहा,” लो यह चारा रख लो और बदले में मुझे ₹10 दे दो। “
” ₹10 लेकिन मैंने तो सोचा था कि तुम इसे दान करने आए हो। “
यह सुनकर धनीराम ने कहा,” अरे ! भाई… देखो कितनी शांति है और कितना प्यारा गौशाला है ? कोई नहीं दे दो। “
” हां ! हां ! फ्री में सब कुछ देकर तुम्हें शांति तो मिलेगी ही ना। “
उसके बाद धनीराम और रंजीत गौशाला से थोड़ा आगे बढ़े तो उन्होंने देखा कि मनीचंद गाय के गोबर को एक बाल्टी में भरकर अपने घर ले जा रहा है। यह देखकर रंजीत ने धनीराम से कहा,” अरे ! भाई यह गोबर का क्या करता होगा ? “
” अरे ! भाई तुम्हें पता नहीं, मनीचंद इस समय काफी अच्छा पैसा कमा रहा है ? वह इस गोबर से उपले और खाद बनाता है और उसे शहर जाकर बेच आता है। बदले में उसे उसके काफी अच्छे दाम मिलते हैं। “
यह सुनकर रंजीत ने कहा,” अच्छा ऐसा है। “
अगली सुबह रंजीत गौशाला जल्दी गया और सारा गोबर एक बाल्टी में भरकर घर ले आया। घर लाकर उसने अपनी पत्नी से कहा,” लो यह गोबर और इससे अब तुम उपले और खाद बनाना जिसे बेचकर हम अच्छा पैसा कमा पाएंगे। “
यह सुनकर रंजीत की पत्नी ने कहा,” सुनो ! मेरे पास वैसे भी घर के बहुत सारे काम रहते हैं। पूरा दिन हो जाता है कामों को करते-करते।
मेरे पास इतना समय नहीं रहता कि मैं तुम्हारे लिए इन गोबर का उपला और खाद बनाऊं। अगर तुम फ्री हो तो तुम ही यह सब कर लो। “
” देखो ! देखो ! मनीचंद की पत्नी कितनी मेहनत करती है ? सामने देखो… कितने उपले और कितनी खाद उन्होंने पहले ही बना रखी है। “
” मुझे नहीं पता… मैं यह सब नहीं करूंगी। “
दूसरी तरफ से मनीचंद गौशाला से खाली हाथ लौट कर आया तो उसकी पत्नी ने कहा,” क्या हुआ ? आज गोबर नहीं लेकर आए हो। “
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” नहीं ! नहीं ! आज रंजीत गौशाला का सारा गोबर ले गया। बहुत ही नकलची और लालची इंसान है। “
” अरे ! नहीं – नहीं एक काम करो, तुम उनसे जाकर कहो वह तुम्हें गोबर जरूर लौटा देंगे। “
” हां ठीक है… कोशिश करता हूं। “
मनीचंद रंजीत के घर जाता है और उससे कहता है,” रंजीत भाई… अगर यह गोबर आपके किसी काम करना हो तो क्या मैं इसे ले जाऊं ? “
” हां ! हां ! ले जाओ। वैसे भी मेरी पत्नी इसका कुछ नहीं करने वाली और हां बदले में मुझे ₹5 चाहिए। “
” ₹5… लेकिन किसके ? गौशाला में तो यह सब फ्री में रहता है। “
” अरे ! गौशाला से इतना दूर तक मैं इसे लेकर आया हूं उसमें क्या मेहनत नहीं थी ? “
मनीचंद ज्यादा समय बर्बाद ना करते हुए ₹5 देकर अपने घर वापस आता है।
कुछ समय बाद रंजीत और धनीराम एक जंगल से होते हुए गुजर रहे होते हैं। रंजीत को एक बड़े से पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता लगा हुआ दिखाई देता है। वह धनीराम से कहता है,” सुनो भाई… देखो कितना बड़ा मधुमक्खी का छत्ता है ? इसमें काफी शहद होगा ना ? “
” हां ! हां ! सही कह रहे हो, काफी शहद होगा इसमें। लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो ? “
” सुना है शहर में शहद का दाम काफी है। अगर हम इस शहद को शहर जाकर बेचेंगे तो बदले में हमें काफी मुनाफा होगा। “
” हां ! हां ! लेकिन इस काम मैं काफी जोखिम है। हम इस काम को करना नहीं जानते। मधुमक्खियों का शहद लेना खतरे से खाली नहीं है। “
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” अरे ! कुछ नहीं होगा। तुम नीचे जलती हुई मशाल लेकर खड़े रहना बाकी का काम मैं कर लूंगा। “
थोड़ी देर बाद धनीराम और रंजीत हाथ में एक बाल्टी, रस्सी और दो बिना जली मसाले लेकर वापस लौटते हैं। रंजीत रस्सी की सहायता से पेड़ पर चढ़ जाता है। रंजीत के मधुमक्खियों के छत्ते के नजदीक पहुंचते ही मधुमक्खियां भिन भिनाकर उड़ने लगती हैं।
रंजीत उन्हें हाथ से भगाने लगता है। लेकिन वह रंजीत को लगातार परेशान करने लगती हैं। तभी रंजीत अपनी मसाल को जला लेता है और मधुमक्खियों के पास ले जाता है। लेकिन संतुलन बिगड़ने के कारण रंजीत रस्सी से लटक जाता है और मधुमक्खियां उसे काटने लगती है।
यह सब देख धनीराम डर जाता है और भाग जाता है।
कुछ देर बाद रंजीत पेड़ से नीचे गिर जाता है लेकिन मधुमक्खियां अभी भी उसे परेशान करती हैं।
तभी धनीराम कुछ लोगों को लेकर वहां पहुंचता है जो मधुमक्खियों के शहद को तोड़कर शहर बेचने जाते हैं। उन लोगों ने मशाल को जलाया और फिर मधुमक्खियों को वहां से भगाया।
लेकिन इतने में रंजीत पूरी तरह सूज जा चुका था। और उसका बदन टमाटर की तरह लाल हो चुका था।
वो लोग रंजीत को डांटते हुए कहते हैं,” जब तुम्हें यह काम करना नहीं आता तो करते क्यों हो ? दूसरों के काम को दूसरों को ही करने दो, ज्यादा लालजी मत बना करो। “
रंजीत दर्द से कराह रहा था। वो लोग मिलकर रंजीत को हॉस्पिटल लेकर गए।
धनीराम ने रंजीत से कहा,” मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था, इस काम में बहुत जोखिम है। अब देखो क्या हाल कर लिया है ? अगर मैं उन लोगों को समय पर लेकर नहीं पहुंचता तो मधुमक्खियां तुम्हें और भी काट लेती। “
” हां ! हां ! सही कहा दोस्त… लेकिन अब से मैं ऐसी कोई गलती नहीं करूंगा। “
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