हेलो दोस्तों ! कहानी की इस नई Series में हम लेकर आए हैं आपके लिए एक और नई कहानी। आज की कहानी का नाम है – ” शादी बाय मिस्टेक “। यह इस कहानी का (भाग -2) है। यह एक True Love Story है। कहानी को पूरा जरूर पढ़ें। तो चलिए शुरू करते हैं…
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शादी बाय मिस्टेक – 2
पिछले भाग में आपने पढ़ा :-
पल्लवी को कुछ गुंडे घेर लेते हैं। वे सब पल्लवी के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं। इतने में रितिक वहां पहुंचता है।
रितिक पल्लवी को गुंडों से बचाकर उसे अपनी कार में बैठाता है और पल्लवी की सहेली के घर के लिए निकलता है।
अब आगे :-
थोड़ी देर बाद पल्लवी की सहेली का घर आ गया और उसने रितिक को कार रोकने के लिए बोला। जैसे ही पल्लवी कार से उतरी आरव भागते हुए उनके पास आ गया और उसके पैर पकड़ लिए।
आरव ने पल्लवी को ऐसे पकड़ा हुआ था जैसे मानो वह उसे गले से लगाना चाहता हो। आरव रो रहा था। रितिक भी गाड़ी से उतर गया।
पल्लवी :- क्या हुआ बेबी..?? आप रो क्यों रहे हो ?
आरव :- (रोते-रोते बोला) पहले डैडी छोड़ कर चले गए और अब आप भी।
पल्लवी नीचे झुकी और उसके आंसुओं को पोंछते हुए बोली – पल्लवी मम्मी कहीं नहीं जाएगी… अपने छोटे से राजकुमार, आरव को छोड़कर। पल्लवी ने रितिक की तरफ देखा।
पल्लवी :- और आपको पता है… मम्मी आपके लिए डैडी लेकर आई है।
आरव :- (खुश होकर बोला) डैडी ! कहां है डैडी ?
पल्लवी ने रितिक की तरफ उंगली करके बोला – वो हैं आपके डैडी।
आरव ने रितिक की तरफ देखा जो कि मुस्कुरा रहा था।
आरव :- नहीं ! वो नहीं है मेरे डैडी।
यह सुनकर रितिक के चेहरे से मुस्कान चली गई।
पल्लवी :- आज से आपके यही डैडी है।
आरव :-नहीं ! इतना कहकर चला गया।
पल्लवी :- सॉरी ! वो आयुष के बहुत करीब था। इसलिए शायद उसे भूलने में थोड़ा समय लगेगा।
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रितिक :- हां मैं समझता हूं और सच में मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा। वह बहुत क्यूट और मासूम बच्चा है। उसने अभी-अभी अपने पापा को खोया है।
इसलिए उसे समय लगेगा यह मानने में कि अब से मैं ही उसका डैडी हूं। उसे जितना समय चाहिए वह उतना समय ले सकता है, परंतु मैं अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभाऊंगा।
पल्लवी मुस्कुराई तभी पल्लवी की सहेली, राधा वहां आ गई।
राधा :- पल्लवी… ये आरव को क्या हुआ, वो रोते-रोते अंदर गया ?
राधा की नजर पल्लवी के मंगलसूत्र पर पड़ी और फिर उसके माथे के सिंदूर पर पड़ी और फिर उसने पल्लवी के बगल में खड़े रितिक को देखा। पल्लवी समझ गई कि राधा किसी उलझन में है।
पल्लवी :- अंदर चल कर बात करते हैं।
राधा और रितिक दोनों ही उसकी बात से सहमत हुए। वह सब अंदर गए। घर पर सिर्फ राधा, पल्लवी आरव और रितिक ही थे।
पल्लवी :- अंकल – आंटी कहां गए हैं ?
राधा :- वो सब रामू काका की बेटी की शादी में गए हैं। पहले मुझे तू बता कि यह सब क्या हुआ और तेरे कपड़े..??
पल्लवी :- राधा… इनसे मिल, ये हैं रितिक (पल्लवी ने रितिक की तरफ इशारा किया)। और रितिक… ये है मेरी दोस्त राधा। राधा और रितिक ने एक दूसरे को देख कर हल्की सी मुस्कान दी। पल्लवी ने फिर राधा को वो सब बताया जो वहां पर हुआ था।
राधा :- हे भगवान ! पल्लवी तू ठीक है ना… मेरा मतलब है कि इतना सब कुछ हो गया तेरी जिंदगी के एक ही सप्ताह में। सच में मुझे तेरी बहुत फिक्र हो रही है। गलती तो मेरी भी है कि मैंने तुझे इतनी रात को अकेले मंदिर जाने दिया।
पल्लवी :- परेशान मत हो। अब सब कुछ ठीक है। अगर रितिक जी नहीं होते तो शायद मेरे साथ कुछ गलत होता। परंतु अब सब ठीक हो चुका है।
राधा ने रितिक की तरह देखा और बोली।
राधा :- धन्यवाद ! आपने आज मेरी दोस्त को बहुत बड़ी मुसीबत से बचा लिया।
रितिक :- अरे ! धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है।
राधा :- पल्लवी… जा तू पैकिंग कर ले और आरव को देख ले कहीं रो ना रहा हो।
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पल्लवी :- हां मैं जाती हूं।
पल्लवी वहां से अंदर कमरे में चली गई।
राधा ने रितिक की तरफ देखा।
राधा :- आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूं… यह देखकर कि शायद अब मेरी सहेली की जिंदगी थोड़ी सी बेहतर हो जाए।
मैंने बचपन से ही उसे दुखी देखा है। क्योंकि अगर उसकी जिंदगी में खुशियां आती भी है तो वह ज्यादा समय नहीं रुकती।
पहले अंकल – आंटी की मृत्यु हुई… मैंने उसका ध्यान भटकाने के लिए उसके दादा जी से बात करी और उसे अपने साथ दिल्ली ले गई पढ़ाई का बहाना बनाकर। उसके दादा जी मान गए थे क्योंकि उस समय पल्लवी के हालत सच में ही अच्छी नहीं थी।
फिर वहां हमारी मुलाकात आयुष जीजू से हुई जो एक बहुत अच्छे इंसान थे। और उनके आने से पल्लवी के जीवन में फिर से खुशियां आ गई थी।
परंतु उनके रिश्ते को लेकर पिताजी और आयुष जी के माता – पिता ने अपनी असहमति जताई। मम्मी – पापा ने उनको खुश नहीं रहने दिया। फिर आगे आने के बाद जैसे उनके जीवन में सब सही हुआ कि कुछ दिनों पहले ही आयुष जीजू छोड़ कर चले गए।
राधा की आंखों में भी आंसू आ गए।
राधा :- पल्लवी एक बहुत अच्छी लड़की है। मैं ऐसा इसलिए नहीं बोल रही हूं क्योंकि मैं उसकी सहेली हूं बल्कि मैं ऐसा इसलिए बोल रही हूं क्योंकि मैंने उसे सब कुछ अकेले और अच्छे से झेलते हुए देखा है।
और मुझे पूरा विश्वास है कि अब आपका परिवार पल्लवी को अपनी बहू के रूप में पाकर बहुत खुश होगा। और हमारी पल्लवी एक बहुत अच्छी मां भी है। इसलिए वह आपकी बेटी का भी बहुत अच्छे से ध्यान रखेगी।
और उसे बिल्कुल सगी मां वाला ही प्यार देगी। मैं सच में बहुत खुश हूं कि चाहे कैसे भी करके… बट ; पल्लवी को प्यार देने वाला तो कोई आया है। मैं अपनी दोस्ती का फर्ज नहीं निभा पाई।
मैं पल्लवी को यहां नहीं रख सकती ज्यादा समय तक। और मैं यही सोच कर परेशान थी कि क्या करूं उसके लिए ? परंतु तभी आप आ गए उसके जीवन में। रितिक यह सुनकर बहुत दुख हुआ।
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रितिक:- परेशान मत हो… अब मैं हूं आरव और पल्लवी का ध्यान रखने के लिए क्योंकि मैंने उससे वादा किया है। मैं नहीं जानता कि हमारा रिश्ता एक आम पति – पत्नी जैसा होगा भी या नहीं… परंतु हां इतना पता है कि मैं एक अच्छा दोस्त बनकर उसका ध्यान रखूंगा।
राधा :- बस इससे ज्यादा मैं भी आपसे और कुछ नहीं चाहती। और मुझे पता है कि पल्लवी भी बस यही चाहेगी कि आरव खुश रहे।
रितिक :- वैसे मैं एक चीज चाहता हूं आपसे,,, जैसे आप आयुष को आयुष जीजू बोलती हो वैसे ही मुझे भी जीजू बोलो। क्योंकि चाहे हालात जैसे भी हो पर रिश्ता तो बन ही गया।
राधा :- Ok जीजु ! अब यह बताएं कि आप कॉफी पीना पसंद करेंगे या चाय।
रितिक :- जो आपका मन करे।
तभी रितिक को किसी का फोन आ गया और बात करने के लिए वो बाहर आ गया। राधा सबके लिए कॉफी बनाने के लिए चली गई। रितिक को उसकी मां का फोन आया।
रितिक की मां :- बेटा ! यह ले पिया से बात कर ले। वह तुझे याद कर रही है।
रितिक :- मम्मा… मैं भी उसे काफी याद कर रहा हूं।
रितिक की मां ने पिया से रितिक की बात कराई।
पिया :- डैडी…।
रितिक :- हां बच्चा।
पिया रोने लगी।
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रितिका :- मैं जल्दी आऊंगा आपके पास। आप रो मत। तभी रितिक की नजर आरव पर पड़ी ; जो घर के मुख्य द्वार के पास खड़ा होकर आसमान में तारों को देख रहा था।
रितिक :- मां, पिया को सुला दो। मैं बाद में बात करता हूं और हां पिया के लिए दो तोफे लेकर आऊंगा।
रितिक की मां :- ठीक है बेटा।
रितिक ने फोन रखा और आरव के पास गया। आरव की आंखों में आंसू थे।
आरव क्या हुआ… रो क्यों रहे हो ? आरव ने आसमान की ओर देखते हुए तारे की तरफ इशारा किया। क्या वह मेरे डैडी है ?
ऋतिक ने पहले उस तारे की तरफ देखा और फिर उसने आरव की तरफ देखा जो उस तारीख को ही घूर रहा था।
आरव :- मम्मी बोलती है कि डैडी तारा बन गए। क्योंकि भगवान जी को डैडी बहुत पसंद थे। उन्होंने मेरे डैडी को ताला (तारा) बना दिया और मुझे अकेला छोड़ दिया।
रितिक :- आप अकेले कहां हो… आपकी मम्मी भी तो है ?
आरव :- मम्मी अकेली नहीं है। क्योंकि आप उनके पास डैडी बन कर आ गए हो। मैं अकेला हूं और रोने लगा।
रितिक :- किसने कहा कि मैं मम्मी के पास आया हूं ? मैं तो इस छोटे से प्यारे से आरव के पास आया हूं… उसका डैडी बनकर। मम्मी अकेली है पर आरव के पास में हूं।
आरव ने रितिक की तरफ देखा।
आरव :- नहीं ! आप मेरे डैडी नहीं हो। बताओ आप कौन हो ?
ऋतिक :- मुझे आपके डैडी ने भेजा है। क्योंकि वह चाहते हैं कि मैं उनके प्रिंस आरव का ध्यान रखूं… उनका न्यू डैडी बनकर। मैं आपके डैडी का दोस्त हूं। इसलिए उन्होंने मुझे भेजा है। आरव ने रितिक की तरफ देखा।
आरव :- मुझे न्यू डैडी नहीं चाहिए।
रितिक :- अच्छा तो आपको फ्रेंड चाहिए। मैं आपका डैडी नहीं तो कम से कम फ्रेंड तो बन ही सकता हूं ना।
आरव बिना कुछ बोले अंदर की तरफ भागते हुए चला गया रितिक को कुछ समझ नहीं आया।
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तभी वहां राधा कॉफी लेकर आ गई। रितिक मुस्कुराया और उसने उसके हाथ से कॉफी ले ली। थोड़ी देर बाद पल्लवी ने राधा को अंदर बुलाया। राधा अंदर गई और पल्लवी का सूटकेस लेकर बाहर आई।
पल्लवी भी उसके साथ बाहर आई। परंतु उसकी गोद में आरव था जो कि सो रहा था। रितिक ने आरव की तरफ देखा जो सोते वक्त बहुत ही क्यूट लग रहा था। पल्लवी के हाथ में एक पट्टी बंधी हुई थी। राधा की नजर उस पट्टी पर गई।
राधा :- पल्लवी… यह क्या हुआ तेरे हाथ में ?
पल्लवी :- अरे ! यार मैंने पहले ध्यान नहीं दिया था। परंतु उन गुंडों के चक्कर में मेरे हाथ में चोट आ गई थी।
राधा :- तेरे हाथ में लगी हुई है और तूने आरव को गोद में लिया हुआ है। एक काम कर इसे उठा दे।
पल्लवी ने आरव की तरफ देखा और मुस्कराई।
पल्लवी :- तुझे पता है ना आरव की आदत… जब भी वह रोता है तो रोते रोते ही सो जाता है। वैसे भी इस एक हफ्ते में ये ढंग से नहीं सोया है।
और जैसे ही उठता है वैसे ही आयुष को याद करके रोने लगता है। कम से कम सोते वक्त मुस्कुरा रहा है। और तू बोल रही है कि इसकी नींद खराब कर दूं… इसको उठा कर।
राधा :- पर तू…।
राधा कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी रितिक पल्लवी के पास गया और उसने बोला…
रितिक :- लाओ मुझे दे दो।
पल्लवी :- बट…।
रितिक :- क्या हुआ..?? भूल गई क्या कि मैं अब इसका डैडी हूं। मेरा फर्ज बनता है कि मैं ध्यान रखूं इसका। जब ये जाग रहा होता है तब दूर भागता है कम से कम सोते वक्त तो मेरे पास रहेगा।
पल्लवी :- आपको गाड़ी चलाने में परेशानी होगी।
रितिक :- परेशान मत हो। पिया को लेकर बहुत बारी गाड़ी चलाई है। इसलिए इसके साथ भी चला लूंगा।
पल्लवी कुछ बोलती उससे पहले ही रितिक ने अपना हाथ दिखा कर उसे रोक दिया। पल्लवी ने रितिक को आरव दे दिया।
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राधा को यह देखकर काफी खुशी हुई। राधा और पल्लवी मिलकर सारे सूटकेस गाड़ी में रखती हैं। रितिक बहुत आराम से गाड़ी में बैठा जिससे आरव की नींद ना खुले। पल्लवी ने राधा को गले लगाया।
राधा :- भगवान करे अब तेरी जिंदगी में सारी खुशियां आएं। और हां मेरे से संपर्क में रहिए। वैसे मैं भी अगले हफ्ते दिल्ली में अपने ससुराल आ जाऊंगी और तुझसे तब मिल लूंगी।
पल्लवी :- हां जरूर और तू भी अपना ध्यान रखना और हां मेरी तरफ से अंकल – आंटी को शुक्रिया कह देना। जल्दी जल्दी में उनसे मिलकर उनको शुक्रिया भी नहीं कह सकी।
राधा :- तू अब परेशान मत हो और हां मैंने अपना फोन नंबर रितिक जीज को दे दिया है और उनसे उनका ले लिया है। तू जब नया फोन ले ले तो उनसे मेरा नंबर ले लेना और फिर मेरे से आराम से बात करना।
पल्लवी मुस्कुराई और गाड़ी में बैठ गई। रितिक ने गाड़ी चलाना शुरु कर दिया।
रितिक आरव को लेकर भी बिना किसी परेशानी के गाड़ी चला रहा था। यह देखकर पल्लवी की आंखों में आंसू आ गए… जो रितिक ने देख लिए।
रितिक :- क्या हुआ… क्या सोच रही हो ?
पल्लवी :- बस यही सोच रही हूं कि कुछ दिन मैं मेरी जिंदगी कैसे बदल गई है ?
रितिक :- इतना मत सोचो। अब सब अच्छा होगा और आरव की टेंशन बिल्कुल छोड़ दो। यह मेरा भी बेटा है।
पल्लवी मुस्कराई।
रितिक :- वैसे वह तुम्हारी दोस्त तुम्हारे काफी करीब लगती है।
पल्लवी :- वह और आयुष ही तो मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। आयुष ने कभी एक दोस्त की कमी महसूस ही नहीं होने दी। और अगर कभी दोस्त की जरूरत पड़ती तो राधा तो थी ही।
रितिक :- और कोई दोस्त नहीं है तुम्हारा ?
पल्लवी :- नहीं ! पर हां आयुष के एक भाई है जो मेरे लिए बिल्कुल मेरे छोटे भाई जैसे हैं। और हां आयुष के कुछ दोस्त भी थे तो बस उनके साथ ही हम पार्टी वगैरह कर लेते थे। बाकी और कोई नहीं है।
रितिक :- आरव बहुत प्यारा बच्चा है।
पल्लवी :- बिल्कुल अपने डैड की कॉपी है।
यह बोलकर फिर से पल्लवी की आंखों में आंसू आ गए रितिक ने बात बदल दी।
रितिक :जे तुम्हारी दोस्त ने अपना फोन नंबर दिया है मुझे।
पल्लवी :- हां… वह बता रही थी मुझे। इन सब चीजों में पता नहीं मेरा फोन कहां खो गया ?
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थोड़ी देर ररुककर पल्लवी फिर से शांत हो गई। पल्लवी शांति से बैठ कर खिड़की के बाहर देख रही थी।
रितिक :- इतनी शांत रहोगी तो मुझे भी नींद आ जाएगी। वैसे भी आरव तो सो ही रहा है।
पल्लवी ने उसकी तरफ देखा।
पल्लवी :- आरव आज बहुत समय बाद सुकून से सो रहा है। वरना बस आयुष को याद करते-करते रोता रहता है।
रितिक :- समझ सकता हूं। बट… तुम शांत मत बैठो वरना मैं बोर हो जाऊंगा और मुझे नींद आ जाएगी। मैं गाने चला देता परंतु आरव की नींद खराब हो सकती है। इसलिए तुम ही कुछ बोलो।
पल्लवी :- वैसे आप गाने चला सकते हैं। क्योंकि आरव काफी गहरी नींद में है। इसलिए यह आपसे चिपककर सो रहा है। वरना यह मेरे और आयुष के अलावा किसी के पास नहीं सो पाता। और अगर गलती से कोई इसे अपने पास ले ले तब भी सोते हुए भी जाग जाता है और रोने लगता है।
रितिक :- चलो अच्छा ही है कि इसे आदत हो रही है मेरे पास रहने की। क्योंकि अब मेरे साथ ही तो रहना है। पर फिर भी गाने रहने ही दो… तुम कुछ बोलो।
पल्लवी :- आप बताएं पिया के बारे में।
रितिक :- पिया थोड़ी सी जिद्दी है। परंतु मुझे पूरा विश्वास है – ” यू विल लव हर ” वो नये लोगों को बहुत जल्दी अपना लेती है।
पल्लवी मुस्कुराई।
रितिक :- तो तुम पहले जॉब करती थी ?
पल्लवी :- शादी से पहले दादाजी की वजह से नहीं करी। और जब शादी हुई तो आयुष ने बोला करने के लिए परंतु उनके पेरेंट्स और उनके बीच के इश्यूज की वजह से मैंने 1 महीने जॉब करके छोड़ दी।
फिर आरव के आने के बाद कभी सोचा ही नहीं करने का। पर हां,,, आयुष ने अभी 1 महीने पहले बोला मुझे जॉब के लिए। उन्होंने बोला कि जो उनके कजन भाई की वाइफ है वह आरव का ध्यान रख लेगी दिन में। और मैं उस समय जॉब कर लूं। परंतु जॉब शुरू करने से पहले ही यह सब हो गया।
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रितिक :- चलो अब मैं तुम्हें अपनी फैमिली के बारे में कुछ बता दूं। मेरी फैमिली में मेरी मॉम, मेरे डैड हैं। और मेरी एक बड़ी बहन है जिसकी शादी हो गई है। एक दादी है और वह दिल्ली में नहीं रहती।
और हां मैं अपने परिवार के साथ नहीं रहता हूं। मेरा अलग घर है। और मैं पिया के साथ रहता हूं। दिन में मैं पिया को मॉम – डैड के पास छोड़ देता हूं और रात को ऑफिस से आते वक्त उसे अपने घर साथ ले आता हूं।
पल्लवी :- ठीक है।
ऐसे ही बातें करते करते वे दोनों दिल्ली पहुंच गए।
इस कहानी का यह भाग यहीं समाप्त होता है। अगर आप इस कहानी के बारे में आगे भी जानना चाहते हैं तो इस कहानी का अगला भाग जरूर पढ़ें।