आदमखोर बूढ़ा | AADAMKHOR BUDHA | Hindi Kahani | Gaon Ki Kahani | Hindi Kahaniyan | Best Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” आदमखोर बूढ़ा ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


आदमी, “पकड़ो… पकड़ो पकड़ो, अरे! बच्चे को लेकर भाग गया, पकड़ो।” 

चंदू, “अरे! क्या हुआ भाई? सुबह सुबह अपने गांव में ये शोर कैसा? अरे किसी के घर में चोरी या डकैती हुई है क्या?”

जग्गी, “नहीं, भाई। ध्यान से सुनो, लोग ढोल नगाड़े पिट रहे हैं, शायद कोई जंगली जानवर हो। पंडित ज्ञान चंद उधर से ही आ रहा है। आओ, उसी से पूछते हैं।”

जग्गी, “पंडित जी, ये कैसा शोर है? कोई जानवर गांव में घुस गया है क्या?”

ज्ञानचंद, “अरे! नहीं भाई, आज गांव से फिर एक बच्चा कोई जानवर पकड़कर जंगल में ले गया।”

जग्गी, “हे भगवान! अब तो हमारे बच्चे अपने गांव में भी सुरक्षित नहीं है। पता नहीं क्या होने वाला है?”

चंदू, “सुन रही हो भाग्यवान? बंकू से कहना घर में ही रहे, इधर उधर खेलने ना जाए। पता नहीं जानवरों का ये आतंक गांव से कब खत्म होगा?”

सरताजपुर गांव में लगभग 6 महीने से जंगली जानवरों का आतंक बना हुआ था। इस कारण शाम होते ही गांव के सभी लोग अपने अपने घरों में दुबककर बैठ जाते थे। 

कोई भी नहीं जानता था कि कौन जानवर ऐसा कर रहा है? कोई भालू का आतंक बताता तो कोई सियार का, 

कोई जंगल के राजा शेर को इसका ज़िम्मेदार ठहराता। इसी कारण सरपंच हुकुमचंद ने चौपाल पर एक सभा बुलाई थी। 

सरपंच, “प्यारे गांव वासियों, जैसा कि आप जानते हैं कि पिछले 6 महीने से रोज़ कोई जानवर हमारे बच्चों को जंगलों में ले जाकर मारकर खा जाता है। 

हम उसी पर चर्चा के लिए आज यहाँ पर एकत्रित हुए हैं।”

चंदू, “सरपंच जी, आए दिन हमारे गांव से बच्चे गायब हो रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो गांव के सारे बच्चे मार डाले जाएंगे। हमें कुछ ना कुछ तो करना ही होगा।”

कल्लू बाबा, “इसके लिए हमें पहले पता लगाना होगा कि कौन जानवर ऐसा कर रहा है? ताकि हम लोग उस जानवर से छुटकारा पा सकें।”

जग्गी, “हां, यही ठीक रहेगा क्योंकि जंगल में तो सैकड़ों जानवर हैं। हम किस किस को अपना निशाना बनाते रहेंगे।”

सरपंच, ” हम्म… लेकिन इसका पता लगाएगा कौन कि किस जानवर की ये करतूत है?”

चंदू, “इसके लिए एक दल बनाना होगा, जो जंगली जानवरों के गांव में प्रवेश पर नजर रखेगा।”

जग्गी, “हाँ, ये ठीक रहेगा। मैं और कल्लू बाबा दोनों मिलकर रात में पहरा देंगे और पता लगाएंगे कि कौन सा जानवर हमारे बच्चों को गायब कर रहा है?”

सरपंच, “तो ठीक है फिर, अगर तुम दोनों पता कर बता देते हो तो तुम्हें गांव की तरफ से 100 स्वर्ण मुद्राएं मिलेंगी, ठीक है?”

भोगा (तांत्रिक), “मरेगा 1 दिन सब मरेगा।”

कल्लू बाबा, “ऐ पगले! चल भाग यहाँ से। जब से हमारे शमशान में रहने आया है तब से ही पूरा गांव समस्याओं से घिरा है।”

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भोगा एक अजीब सा डरावना व्यक्ति था, जो पिछले छह महीने से शमशान में आकर रहने लगा था। 

कई बार शमशान के कुत्तों को मारकर खाते हुए देखा गया था। कुछ लोग इसे औघड़ बताते थे। 

कल्लू बाबा और जग्गी रात में गांव के बाहर पेड़ के मचान पर चढ़कर पहरा दे रहे थे। तभी सुबह करीब 4 बजे जंगल की ओर से कुछ खरखराहट की आवाज आती है। 

जग्गी, “कल्लू बाबा, झाड़ियों के झुरमुट से कुछ आवाज आ रही है। चलो चलकर देखते हैं।”

कल्लू बाबा, “हाँ चलो। तुम आगे चलो, मैं पीछे से देखता रहूँगा ताकि पीछे से कोई जानवर तुम पर हमला नहीं कर सके।”

जग्गी, “अरे कल्लू बाबा! तुम तो बाबा हो। भूत पिशाच को तो तुम अपने झोले में रखते हो। तुम आगे चलो ना, मैं तुम्हारे पीछे रहूँगा।”

कल्लू बाबा, “ठीक है, लेकिन तुम पीछे मजबूती से डंडे पकड़े रहना। जैसे ही कोई आहट हो, सतर्क हो जाना। चलो आओ मेरे पीछे।”

कल्लू बाबा (डर से), “भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे…।”

तभी जग्गी के पैरों में कुछ लताएं उलझ जाती हैं जिन्हें निकालने के लिए जग्गी कल्लू बाबा के कंधे पर हाथ रख रोकता है। 

कल्लू बाबा को लगता है कि कोई भूत उसे पकड़ रहा है। वो चिल्लाते हुए भागने लगते हैं। 

कल्लू बाबा, “भूत… भूत बचाओ।”

जग्गी तुरंत पीछे मुड़कर भागना चाहता है। तभी कल्लू बाबा “बचाओ बचाओ करते हुए पीछे मुड़कर जग्गी के गले को पकड़ लेते हैं,

उसकी पीठ पर चढ़ जाता है। जग्गी को लगता है कि सचमुच भूत उसकी पीठ पर चढ़ गया। वो पूरी ताकत से दौड़ पड़ता है 

और लताओं से उलझकर कल्लू बाबा के साथ ही गिर पड़ता हैं। 

जग्गी, “कल्लू बाबा, बचाओ मेरी पीठ पर भूत चढ़ा है। मर गया रे। अरे! मेरे बाल बच्चो का क्या होगा?”

कल्लू बाबा, “अबे चुप, पीछे से कंधे पर हाथ रखकर मुझे खुद डरा दिया और अब चिल्ला कर और डरा रहा है।”

जग्गी, “बड़े बाबा बने फिरते हो। भूत, बैताल, प्रेत, पिशाच सभी को अपनी चोटी में बांध कर रखते हो और कंधे पर हाथ रखते ही डर गए, ठोंगी बाबा कहीं के।”

कल्लू बाबा, “रुको रुको, गौर से ये आवाज सुनो। लगता है सचमुच कोई खूंखार जानवर हमारी तरफ ही आ रहा है। देख क्या रहे हो, भागो।”

दोनों भूत भूत चिल्लाते हुए गांव की ओर भागते हैं। सुबह होने ही वाली थी। कुछ लोग चौपाल पर आग ताप रहे थे। उन्होंने दोनों की आवाजें सुनी तो उनकी ओर लाठी डंडे लेकर दौड़े। 

कल्लू बाबा, “बचाओ बचाओ, भागो भागो पीछे भूत आ रहा है।”

सरपंच, “अरे! कौन सा भूत? अरे कैसा भूत भैया? तुम्हारे पीछे तो कोई नहीं है।”

जग्गी, “अरे… अरे! सुनो आवाज सुनो, वो इधर ही आ रहा है। भागो।”

आवाजें लगातार बढ़ती ही जा रही थीं। सभी डर के मारे अपने अपने घरों में बंद होकर सहमे हुए खिड़की से देखने लगते हैं। 

तभी बंकू अपने घर से एक डंडा लेकर बाहर आता है। 

बंकू की मां, “बेटा, घर के अंदर आजा।”

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बंकू की मां, “देखो ना जी, अपना बंकू बाहर चला गया है।”

चंदू, “अरे बेटा बंकू! अंदर आजा। देख बेटा सभी लोग अपने अपने घर के अंदर हैं।”

बंकू, “नहीं पिताजी, हमारे कई दोस्त गायब हो गए हैं। आज हम भी देखेंगे कि कौन है जो हमारे गांव के बच्चों को गायब कर रहा है?”

भोगा, “मरेगा… सब मरेगा।”

तभी उधर से जुगनू की आवाज आती है। 

जुगनू, “बंकू, अरे! भैंसिया का रस्सी पकड़। अरे आधे घंटे से पूरा गांव दौड़ा रहा है।”

बंकू भैस की रस्सी पकड़ लेता हैं। भैस के पैर के पीछे एक बाल्टी फंसी हुई थी जिसके ईंट पत्थर से टकराने से आवाज़ निकल रही थी। 

जग्गी, “भैस तो मैं द्वार पर बांधकर आया था फिर ये खुली कैसे?”

जुगनू, “वो माँ ने कहा कि बाहर भैस को ठंड लग रही होगी, उसे गौशाला में बांध दो। भैस भिदक कर भागने लगी। भागते हुए उसके पैर में बाल्टी फंस गई।”

सरपंच, “झग्गी और कल्लू बाबा, तुम लोगों के डरपोक होने के कारण आज पूरा गांव भयभीत हो गया, भई। वो तो बंकू ने बहादुरी दिखाई।”

चंदू, “लेकिन बात तो यही हैं कि आखिर बच्चो का शिकार कौन कर रहा हैं?”

तभी सेठ मंगतलाल रोते रोते आता है। 

मंगतलाल, “सरपंच जी, मेरा बेटा… मेरा बेटा सुधीर घर पर नहीं है। नौकरों ने बताया कि सुधीर को शेर दबोच कर ले गया है जंगल की ओर। 

हाय मैं लूट गया, हाय बर्बाद हो गया। मेरा इकलौता बेटा…।”

सरपंच, “धैर्य रखो मंगतलाल, धैर्य रखो। हम सभी उसी का उपाय ढूंढने के लिए यहाँ इकट्ठा हुए हैं।”

बंकू, “सुधीर मेरा भी दोस्त था, हमें उसे ढूंढना ही होगा।”

बंकू घर में बिना बताए जंगल की ओर चल देता है। एक नदी किनारे रुककर बंकू पानी पीने लगता है। 

तभी काला नाग उसे डस लेता है। उसी समय तपस्वी देवराज वहाँ से गुजरते समय बंकू को तड़पता देख उसके पास आ जाते हैं। 

सांप को पानी में जाता देख तपस्वी देवराज तुरंत समझ जाते हैं कि बालक को सांप ने काट लिया है। 

वो अपने हाथों से डंसे हुए स्थान पर हाथ फेरते हैं, बंकू तुरंत उठकर बैठ जाता है। 

तपस्वी, “तुम कौन हो बालक? इस घने जंगल में कैसे आ गए?”

बंकू, “प्रणाम महाराज, मैं बंकू हूँ। मेरे गांव से प्रतिदिन एक बच्चे को इस जंगल का शेर लाकर मारकर खा जाता है। मैं उसे ही खोजने आया हूँ।”

तपस्वी, “तुम्हारे इस नेक कार्य से मैं प्रसन्न हुआ। जाओ मेरा आशीर्वाद है कि कोई भी तुम्हें मार नहीं सकता। जानवर के सामने तुममें उससे 10 गुना शक्ति आ जाएगी।”

बंकू वहाँ से चलकर शेर की गुफा के सामने उसके गांव के बच्चों का बहुत सा कपड़ा पड़ा दिखाई देता है। वो ज़ोर से चिल्लाता है।

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बंकू, “बच्चों का शिकार कर खाने वाले कायर शेर, बाहर निकल। दम है तो मुझसे मुकाबला करके दिखा।”

शेर, “अबे भिद्धि बालक! भाग जा यहाँ से, शायद तू मुझे नहीं जानता, मैं कायर नहीं, मैं जंगल का राजा शेर हूँ।

जा इस गलती के लिए मैं तुझे माफ़ करता हूँ। जा अपने गांव लौट जा।”

बंकू, “अच्छा तो अभी भी बड़ी बड़ी बातें निकल रही है। क्या राजा का यही काम है कि बीवी-बच्चों को चुपके से उठाकर ले आए और उसे खा जाए?”

शेर, “एक बार कह दिया ना कि मैं ऐसे कायरों वाले काम नहीं करता। शायद तुझे तुम्हारी मौत यहाँ खींचकर लाई है।”

बंकू, “क्यों? एक बालक के सामने अपने कुकर्मों को बताते हुए शर्म आ रही है?”

शेर, “बस बहुत हो गया, अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

शेर छलांग मारकर बंकू को दबोच लेता है। दोनों में गुत्थम गुत्थ हो जाती है, लेकिन कुछ ही पलों में बाजी पलट जाती है। 

देवराज के दिए हुए वरदान की वजह से बंकू शेर से जीत जाता है। 

शेर, “कौन हो तुम बहादुर बालक और बालक और मुझ पर ऐसा इलज़ाम क्यों लगा रहे हो?”

बंकू, “मैं सरताजपुर में रहता हूँ जहाँ से तुम कल भी मेरे दोस्त सुधीर को दबोच कर ले आए हो जिसका प्रमाण तुम्हारी गुफा के सामने पड़े कपड़े हैं।”

शेर, “हाँ, इसको तो मैंने भी देखा है पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।”

शेर तुरंत अपने गुप्तचर सियार को बुलाता है। 

शेर, “गुप्तचर सियार, पता करो कि कौन मेरी गुफा के आगे ऐसी घटिया काम करके कपड़े फेंकता है?”

सियार, “महाराज, ये काम किसी आदमी का है। देखिए कोई कपड़ा फटा हुआ नहीं है।

सभी कपड़े सही सलामत खोले गए हैं जबकि अगर जानवर करता तो कपड़ों के चीथड़े होते।”

शेर, “देख लिया? कोई हम जानवरों को फंसाने के लिए ऐसा काम कर रहा है।”

बंकू, “ठीक है लेकिन आखिर ऐसी खिनौनी हरकत कौन कर रहा है? मैं सामने पेड़ पर से आज रात नजर रखूँगा।”

रात भर बंकू मचान पर जगा रहता है। लेकिन वहाँ कोई नहीं आता। 

करीब 4 बजे उसे नींद लग जाती है और वो सो जाता है। तभी चिड़िया की आवाज सुनकर बंकू जग जाता है। 

वो देखता है कि कंबल ओढे हुए एक आदमी सुधीर के कपड़ों को शेर की गुफा के आगे फेंक रहा है। बंकू मचान से उतरकर उस आदमी को पकड़ लेता है। 

बंकू, “भागता कहाँ है? ज़रा अपना चेहरा तो दिखा। भोगा… तुम? तो गांव के सारे बच्चे तुम ही गायब कर रहे हो?”

भोगा, “मरेगा… सब मरेगा।”

बंकू, “अब कोई नहीं मरेगा, अब बस तू ही मरेगा।”

इतना कहकर बंकू ज़ोर से भोगा के पेट में मुक्का मारता है। लेकिन भोगा को कुछ नहीं होता। 

अलबत्ता भोगा के एक मुक्के से वो बेहोश हो जाता है। समय पर शेर के आ जाने से भोगा वहाँ से भाग जाता है। 

शेर, “उठो बालक।”

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बंकू, “वो कहाँ गया?”

शेर, “वो तो भाग गया।”

बंकू तपस्वी देवराज की कुटिया पर जाकर,

बंकू, “प्रणाम महाराज!”

तपस्वी, “आदमखोर शेर को मार डाला तुमने?”

बंकू, “नहीं महाराज, आदमखोर शेर नहीं आदमखोर शमशान में रहने वाला है। लेकिन आपके वरदान ने उस पर क्यों काम नहीं किया?”

तपस्वी, “मैंने वरदान दिया था कि जानवर के सामने तुम में उसे 10 गुना शक्ति आ जाएगी। ये आदमी पर लागू नहीं होता।”

बंकू, “उस भोगा में तो बहुत शक्ति है। उसे परास्त करना मुश्किल है।”

तपस्वी, “भोगा ने एक ऋषि को खाने में मांस दे दिया था, तब ऋषि ने उसे शमशान का मांस खाने का श्राप दे दिया था।”

बंकू, “उसको मारने का क्या उपाय है महाराज?”

तपस्वी, “वो सिर्फ बेल के पेड़ के लकड़ी से बने औज़ार से ही मर सकता है, लेकिन उसे मारने के तुरंत बाद 200 गज उसकी परिधि से बाहर निकलना होगा, नहीं तो सामने वाला भी मर जाएगा।”

बंकू बेल के पेड़ की लकड़ी को नुकीला करके भाला बना लेता है और चीते पर बैठ शमशान पहुँच जाता है। 

भोगा, “हा हा हा… आ गई। आज तेरी मौत तुझे यहाँ खींच लाई है। अभी तुम्हारे दोस्त सुधीर को ही खाने जा रहा था, लेकिन अब पहले तुझे खाऊंगा।”

भोगा, “चीते तू भाग जा, नहीं तो तू भी मारा जाएगा।”

बंकू, “पहले तू बचकर दिखा। ये ले।”

बंकू भाले से कई बार वार करता है, लेकिन भोगा को कुछ नहीं होता।”

भोगा, “बालक, हो गई हसरत पूरी? अब तू मेरा शिकार बनेगा।”

तभी अचानक तपस्वी देवराज वहाँ प्रकट होते हैं। 

तपस्वी, “बंकू, भाले को उसकी नाभि में मारो।”

बंकू जैसे ही भोगा की नाभि में भाला मारता है, एक विस्फोट होता है। बंकू तुरंत चीते पर बैठकर 200 गज दूर हट जाता है। 

भोगा का शरीर वहीं भस्म हो जाता है। बंकू को सुधीर के साथ आते हुए देखकर गांव वाले खुशी से उछल पड़ते हैं।

सेठ मंगतलाल और सरपंच हुकुम सिंह बंकू को इस कार्य के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं देते हैं।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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