बैल चोर | BAIL CHOR | Funny Kahani | Long Funny Story | Majedar Kahaniyan | Funny Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बैल चोर ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Short Funny Stories, Comedy Funny Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में रहने वाला पुट्ठा। थोड़ा मूर्ख इंसान है, लेकिन वो खुद को बहुत समझदार समझता है।

पुट्ठा अपनी पत्नी के साथ रहता है। लेकिन पुट्ठा की पत्नी पुट्ठा की बेवकूफियों और निकम्मेपन से बहुत परेशान रहती है।

शर्मिली, “अजी, सुनते हो? हलवाई की दुकान से ₹10 की रबड़ी ले आना।”

पुट्ठा, “शर्मिली, तुम भी ना कुछ भी उटपटांग मंगवाती हो यार?”

शर्मिली, “आपको नहीं पता कि रबड़ी क्या होती है? हे भगवान! कैसा पति पाया है मैंने?”

पुट्ठा, “तू भी कैसी बाते करती है? अगर मुझे पता होता की रबड़ी क्या होती है, तो मैं तुझसे पूछता ही क्यों? क्या तू मुझे पूरा बुद्धू ही समझती है क्या?”

शर्मिली, “समझना क्या है? वो तो आप ही है। अरे बेवकूफ पति देव! रबड़ी दूध से बनती है, मीठी मीठी होती है और हलवाई की दुकान पर मिलती है।”

पुट्ठा, “ठीक है भाग्यवान, पैसे दे दो। मैं अभी जाकर जो है तुम्हारे लिए हलवाई की दुकान से रबड़ी लाता हूँ।”

पुट्ठा शर्मिली के लिए रबड़ी लेने निकल पड़ता है। लेकिन आधे रास्ते जाकर वो भूल जाता है कि शर्मिली ने उसे क्या लाने को कहा था?

पुट्ठा, “अरे! मैं तो भूल ही गया शर्मिली ने क्या लाने को कहा था? एक काम करता हूँ, वापस जाकर ना शर्मीली से ही पूछ लेता हूँ।

नहीं नहीं, नहीं नहीं अगर बिना सामान लिए घर वापस गया और उस चुड़ैल से कहा कि मैं नाम भूल गया तो पहले वो मुझे बुद्धू कहेगी

और फिर उसके बाद मारेगी अलग से। इससे अच्छा हैं दुकान पर जाता हूँ और हलवाई से ही पूछ लूँगा, हाँ।”

दुकान पर जाकर…

पुट्ठा, “हलवाई जी… हलवाई जी, वो दे दो।”

हलवाई, “क्या दे दू?”

पुट्ठा, “वही जो शर्मीली ने मंगाया है।”

हलवाई, “अरे! तेरी शर्मीली ने क्या मंगाया है, मुझे सपना आएगा क्या?”

पुट्ठा, “वही जो मीठा मीठा होता है और तुम्हारी दुकान पर मिलता है।”

हलवाई, “अबे! ये हलवाई की दुकान है। यहाँ बहुत कुछ मीठा मीठा मिलता है। जो मंगवाया है, उसका नाम बता?”

पुट्ठा, “वो तो तुम्हें ही पता होगा ना?”

हलवाई, “मुझे कैसे पता होगा? तेरी पत्नी ने तुझे बतला कर भेजा है।”

पुट्ठा, “अरे भाई! जो शर्मिली को बहुत पसंद है वही।”

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हलवाई, “तेरी पत्नी को क्या पसंद है, मुझे क्या पता बे? तू मुझे नाम बता।”

पुट्ठा, “कैसा बेवकूफ है?:इसे तो अपनी दुकान में मिलने वाली मिठाई का नाम भी नहीं पता है।”

हलवाई, “अब कुछ बोलेगा या ऐसे ही बुद्ध बना खड़ा रहेगा।”

पुट्ठा, “ये क्या है ये?”

हलवाई, “ये तो लड्डू हैं।”

पुट्ठा, “और ये क्या है?”

हलवाई, “बर्फी है।”

पुट्ठा, “एक काम करो, तुम्हारी दुकान में जितनी मिठाइयां हैं सब दो दो किलो तोल दो।”

हलवाई, ” दो दो किलो..?”

पुट्ठा, “हाँ और इस कढ़ाई में डाल दो।”

हलवाई (मन में), “आज तो एक ही ग्राहक आया और इतनी मिठाईयां ले रहा है। क्या बात है!”

हलवाई, “ठीक है ठीक है, अभी देता हूँ मैं। ये लो, ये लो सब डाल दिया। अब क्या करूँ?”

पुट्ठा, “हलवाई जी, तुम्हारे पास दूध है?”

हलवाई, “हाँ है।”

पुट्ठा, “वो भी चार लीटर इसमें डाल दो और सबको अच्छे से मिलाकर पकाओ।”

हलवाई सारी मिठाइयाँ और दूध को मिलाकर पकाना शुरू कर देता हैं।

पुट्ठा, “अरे! और पकाओ, और अच्छे से चलाओ।”

हलवाई, “अरे! तुम ये क्या कर रहे हो? ये तो तुम रबड़ी बनवा रहे हो।”

पुट्ठा, “क्या कहा… क्या कहा तुमने?”

हलवाई, “रबड़ी बनवा रहे हो, रबड़ी।”

पुट्ठा, “फिर से कहना, क्या कहा?”

हलवाई, “अबे तुझे कम सुनाई देता है क्या? 10 बार बोला रबड़ी बनवा रहा है तू मेरे से। अरे बेवकूफ! रबड़ी…।”

पुट्ठा,”हां… यही तो पत्नी ने मंगवाया था। अब एक काम करो, इसमें से ₹10 की रबड़ी मुझे दे दो हैं।”

हलवाई, “बेवकूफ कहीं के… ₹10 की रबड़ी के लिए तुने मेरी दुकान की सारी मिठाइयां दो दो किलो क्यों तुलवाई रे?”

पुट्ठा, “क्योंकि तुम्हे रबड़ी नहीं पता थी न। जल्दी करो जल्दी करो, मुझे देर हो रही है हाँ।”

हलवाई, “अभी देता हूँ तुझे रबड़ी, रुक जा।”

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हलवाई पुट्ठा की पिटाई करता है और किसी तरह पुट्ठा अपनी जान बचाकर भाग आता है घर पर।

पुट्ठा, “अरे शर्मीली! शर्मीली, तुम ऐसी चीज़ मत खाया करो।”

शर्मीली, “ऐसी चीज़ों से क्या मतलब है आपका?”

पुट्ठा, “अरे… अरे! ऐसी चीज़ जिसको लाने में मेरी कमर टूट गई, ओय।”

शर्मीली, “तो आप कहना क्या चाहते हो और टेढ़े मेढ़े क्यूँ चल रहे हो?”

पुट्ठा, “यही कहना चाहता हूँ कि तुम्हारी रबड़ी के चक्कर में उस हलवाई ने मुझे कितना मारा?”

शर्मीली, “इसका मतलब आप रबड़ी लेकर नहीं आए? आप सच में निकम्मे हो साथ में भोंदू भी।”

पुट्ठा, “मैं क्या…? तुम भी होती तो उसकी मार के आगे बिना कुछ लिए ही घर वापस आ जाती।”

शर्मीली, “आज मेरा इतना मन था रबड़ी खाने का। ठहरो तुम, बताती हूँ तुम्हें। जो काम बोलो, वो भी बिगड़ कर आ जाते हो।”

पत्नी पुट्ठा को चार डंडे लगाती है।

पुट्ठा, “अरे! पागल हो गई हो क्या? अरे अरे अरे! मत मारो मत मारो, अरे लग जाएगी लग जाएगी। अरे! माफ़ करदो, मेरी माँ।”

शर्मीली, “अरे ओ मेरे भुलक्कड़ पतिदेव! ज़रा बाहर देखो, गांव वालों ने अपने आधे काम निपटा लिए हैं

और तुम अभी तक खर्राटे ले रहे हो। कुछ तो काम में हाथ बटाया करो।”

पुट्ठा, “अरे मेरी श्रीदेवी! क्या हर समय मुझे बेवकूफ कहती रहती हो? अगर मुझे मौका मिला तो मैं तुम्हे अपनी समझदारी का नमूना दिखाऊंगा।”

शर्मीली, “ठीक है, तो जाओ आज अपनी समझदारी का नमूना दिखा दो मुझे।

मैं तो इस बैल का इलाज करा कराकर थक गई हूँ। बाजार जाकर थोड़ा इस बैल को बेच आओ।”

पुट्ठा, “ये भी कोई काम है, ये तो मैं चुटकियों में कर दूंगा।”

शर्मीली, “ठीक है ठीक है, देखते हैं कितनी चुटकियों में कर लोगे?”

पुट्ठा, “लेकिन ये तो बता दो कि बैल बेचना कितने में है?”

शर्मीली, “इसके तो ₹100 भी मिल जाए तो बहुत है। जाओ आप इस बैल को ₹100 में ही बेच दो।”

पुट्ठा, “ठीक है, मैं इस बैल को ₹100 में बेच दूंगा, लेकिन कितना बेचना है और किधर से बेचना है?”

शर्मीली, “कितना बेचना है और किधर से बेचना है का क्या मतलब है? तुम बैल को काटकर बेचने वाले हो क्या?”

पुट्ठा, “ऐ पत्नी ऐ! तूने ही तो कहा था, थोड़ा इस बैल को बेच दो। इसलिए पूछा मैंने कि थोड़ा किधर से किधर से बेचना है, थोड़ा आगे से बेचना है या पीछे से बेचना है, किधर से?”

शर्मीली, “अरे! आप बेवकूफ के बेवकूफ ही रहोगे। पूरा बैल बेचकर आओ

और ध्यान से जाना, कहीं कोई तुम्हे बेवकूफ न बना दे। पूरे ₹100 में बेचना बैल।”

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पुट्ठा, “ठीक है, मैं इसे पूरे ₹100 में बेच कर आता हूँ। अब देखो पुट्ठा का कमाल।”

पुट्ठा बैल लेकर उसे बेचने निकल पड़ता है। रास्ते में उसी गांव का एक आदमी मिलता है।

आदमी, “क्या भाई पुट्टा, कहाँ चल दिए बैल को लेकर भैया?”

पुट्ठा, “तुम्हें क्या करना है, मैं कहीं भी जाऊं?”

आदमी, “अरे! मैंने तो इसलिए पूछा कि क्या तुम इसे बेचने जा रहे हो?”

पुट्ठा, “नहीं, फ़िल्म दिखाने ले जा रहा हूँ। तुम भी चलोगे साथ में?”

आदमी, “अरे भाई! नाराज मत हो नाराज मत हो। अगर तुम इसे बेचने ही जा रहे हो तो मैं ही ले लेता हूँ।”

पुट्ठा, “ठीक है, ले लो।”

आदमी, “कितने पैसे में बेच रहे हो?”

पुट्ठा, “ना एक कम ना एक ज्यादा, पूरे ₹100 लूँगा।”

आदमी, “नहीं नहीं, 100 तो ज्यादा बता रहे हो। ये तो कितना कमजोर और बीमार भी दिख रहा है?”

पुट्ठा, “तुम बैल खरीद रहे हो या अपने लिए घरवाली देखने आए हो रे? ₹100 देने हैं तो बात करो, नहीं तो यहाँ से चलते बनो।”

आदमी, “नहीं भाई, मैं तो 90 दूंगा।”

पुट्ठा, “ए कंगाल कही का! जेब में पैसा नहीं और आया है बैल खरीदने। चल निकल यहाँ से।”

पुट्ठा थोड़ा और आगे बढ़ता है। गांव के राधू और झींगा की नजर पुट्ठा पर पड़ती है।

राधू, “चल भाई झींगा, आज इस पुट्ठा को ही बेवकूफ बनाते है क्या?”

झींगा, “अरे! ये पहले से ही बना बनाया है। चल चल मज़े लेते हैं।”

राधू, “क्यूँ भाई पुट्ठा कहाँ चल दिया बैल के साथ एंवे?”

पुट्ठा, “एं तेरी अम्मा की शादी में जा रहा हूँ, चलेगा?”

झींगा, “अरे! नाराज क्यूँ होते हो? बताओ तो, कहाँ जा रहे हो?”

पुट्ठा, “बैल को बेचने बाजार आ जा रहा हूँ।”

झींगा, “भाई, तुम्हारा काम तो यहीं हो गया। राधू को बैल खरीदना है और तुम्हें बैल बेचना है।

तो यहीं सौदा तय कर लो। बाजार तक चलकर जाने की क्या जरूरत है?”

पुट्ठा, “ठीक है ठीक है, पूरे 100 लूँगा 100।”

राधू, “अरे 100 तो बहुत है। ये बैल तो बूढ़ा दिखता है, इसका तो ये देखो मांस भी लटक गया है।”

पुट्ठा, “ऐ! मेरे बैल से ज्यादा तो तेरे चेहरे का मांस लटक गया है। मेरा बैल तो तेरे से चार 5 साल छोटा ही होगा।”

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झींगा, “अरे भाई! नाराज मत हो, पुट्टा। मैं तो 80 दूंगा।”

पुट्ठा, “एऐ चल भाई, यहाँ से। गांव के सारे कंगले यहीं इकट्ठे हो गए।”

तभी बैल बाथरूम करने लगता है।

झींगा, “अरे भाई पुट्टा! तुम्हारे बैल का तो पेट फट गया।”

पुट्ठा, “क्या… पेट फट गया?”

झींगा, “हाँ हाँ, नीचे देखो। उसका पेट फट गया और पानी गिर रहा है। अब तो ये थोड़ी देर में किसी काम का नहीं रहेगा।”

पुट्ठा, “अरे अरे! ये कैसे हुआ? अब क्या करूँ?”

रानू, “मुझे नहीं चाहिए ये पेड़ फटा हुआ बैल।”

झींगा, “देखो भाई राधू, ये तो गलत बात है। तुम अभी इस बैल को खरीदने की बात कर रहे थे

और अब इसका पेट फट गया, तो तुम इसे खरीदने से मना कर रहे हो। तुमने क्या पुट्ठा को बेवकूफ समझाया क्या?”

पुट्ठा, “हाँ, तुमने मुझे क्या बेवकूफ समझा है क्या? अब तो तुम्हें ये बैल खरीदना ही होगा, हां।”

राधू, “ठीक है ठीक है, लेकिन अब मैं इसके 10 दूंगा हाँ।”

पुट्ठा, “10..? तुम मुझे क्या बेवकूफ समझ रहे हो?”

झींगा, “अरे भाई पुट्ठा! जल्दी सौदा तय करो, इससे पहले की तुम्हारा ये बैल 10 के लायक भी ना रह जाए।”

पुट्ठा, “हाँ हाँ हाँ, तुम ठीक बोले।”

पुट्ठा, “ठीक है राधू, तुम 10 दो और ये बैल ले जाओ।”

पुट्ठा ₹10 में बैल राधू को दे देता है और अपने मन में बड़ा खुश होता हैं।

पुट्ठा, “मुझे बेवकूफ बनाने आए थे। पेट फटा हुआ बैल मैंने इनको पूरे 10 में दिया।

पागल कही के…! और पत्नी मुझे बेवकूफ कहती है। आज तो पत्नी को भी पता चल जाएगा की मैं कितना समझदार हूँ?”

थोड़ी दूर जाने के बाद पुट्टा को पेड़ के नीचे बैठा एक आदमी दिखता है।

आदमी, “अपना भविष्य जानिए। शादी, विवाह, संतान, कोर्ट कचहरी, धन लाभ के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी, अपना भविष्य जानिए।”

पुट्ठा, “अरे! ये तो सब कुछ जानने वाला है। क्यों ना इससे मैं अपना दिन दिखा लेता हूँ?”

आदमी, “बच्चे हमरा नाम मलवा भगत पिता कलवा भगत दादा सकवा भगत परदादा मकवा भगत सात पीड़ियों से यही काम कर रहे हैं।

हमसे अच्छा इंसान का भविष्य तुम्हें कौन बता सकता है? तुम्हारा क्या नाम है बच्चा?”

पुट्ठा, “बाबा जी, मेरा नाम पुट्टा है। क्या आप सच में मुझे मेरा भविष्य बता सकते हैं?”

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आदमी, “इनमेक नीचे दही ऊपर बुरा काली काली महाकाली कली के परमेश्वरी, पापिनी नाशिनी छोड़ दे इस बच्चे को, नहीं तो मैं तुझे अपनी शक्तियों में कैद कर लूँगा। छोड़ दे इस बच्चे को।”

आदमी, “बच्चा, तुम्हारे ऊपर दुष्ट आत्मा का साया है। तेरे घर का सर्वनाश हो जाएगा। तेरी और तेरी पत्नी की मृत्यु निश्चित है।”

पुट्ठा, “नहीं नहीं बाबा जी, आप ऐसा मत कहिए।”

आदमी, “ऐसा दुष्ट आत्मा कह रही है। तेरे ऊपर दुष्टात्मा का साया है।”

पुट्ठा, “बाबा जी, आप मुझे और मेरी पत्नी को बचा लीजिए।”

आदमी, “तू भी मरेगा, तेरी पत्नी भी मरेगी। ये निश्चित है।”

पुट्ठा, “बचा लो बाबा जी, हमें बचा लो।”

आदमी, “कितने पैसे हैं तेरे पास?”

पुट्ठा, “बाबा जी ₹10।”

आदमी, “₹10..? इतने बड़े काम की कीमत ₹10?”

आदमी, “चेला, कितने पैसे लेते हैं हम इस काम के?”

चेला, “पुट्टा जी, ₹100 वो भी इसलिए क्योंकि यहाँ से दूर तक जब दुष्ट आत्मा किसी को खाने जाती है, तो भक्त कहते हैं… चली जा नहीं तो मलबा भगत आ जाएगा।”

आदमी, “बच्चा, तूने हमारे काम की कीमत ₹10 लगा दी? बहुत गलत है ये। सजा दूंगा, जरूर सजा दूंगा मैं।

इतने पैसे में भी उस दुष्ट आत्मा को जरूर सजा दूंगा। निकाल जल्दी ₹10।”

पुट्ठा, “ये ये लो बाबा जी, ये लो और जल्दी से उन दुष्ट आत्मा को खा जाओ।”

आदमी, “तू बहुत डरता है। मेरे होते डरने की कोई बात नहीं, हम तेरे सारे कष्ट अपने ऊपर ले लेते हैं।”

पुट्ठा, “हाँ हाँ बाबा जी, ये जल्दी से मेरे सारे कष्ट अपने ऊपर ले लीजिए, हाँ ले लीजिए।”

आदमी, “ओ दुष्ट आत्मा! चल अब तेरा समय खत्म हो गया है। जल्दी आ और मेरा भोजन बन।”

आदमी, “बच्चा, अब तू यहाँ से सीधा अपने घर को जा और पीछे मुड़कर मत देखना।”

पुट्ठा, “जी… जी बाबा जी, मैं अभी जाता हूँ।”

पुट्ठा भागता हुआ अपने घर जाता है। वहाँ उसकी पत्नी चारपाई पर सो रही होती है।

पुट्ठा, “पत्नी… अरे शर्मिली! ये क्या हुआ? लगता है पत्नी मर गई है। मुझे अकेला छोड़कर कहां चली गई?

मैंने तुम्हे बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बाबाजी ने जब तक इंतजाम किया उसके पहले ही वो दुष्ट आत्मा तुम्हें खा गई।

भगवान तूने ये क्या कर दिया? तू मुझे भी उठा ले।”

शर्मीली, “क्यूँ जी… तुम रो क्यों रहे हो?”

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पुट्ठा, “शर्मीली तुम जिंदा हो? मुझे लगा तू मर गई।”

शर्मीली, “तू तो मेरे मरने से ही खुश होगा।”

पुट्ठा, “नहीं शर्मीली, ऐसा मत बोलो।”

शर्मीली, “बताओ तो, बैल बेच के आए हो या नहीं?”

पुट्ठा, “हाँ हाँ, बेच दिया।”

शर्मीली, “किसी के ठगने में तो नहीं आ गए?”

पुट्ठा, “मेरा नाम पुट्टा है, मुझे कोई ठग नहीं सकता है।”

शर्मीली, “मेरा शाहिद कपूर कितना समझदार हो गया है?”

पुट्ठा, “शर्मिली, तुम्हें नहीं पता रास्ते में हमारे बैल का पेट फट गया था।”

शर्मीली, “पेट फट गया था बैल का? फिर क्या हुआ?”

पुट्ठा, “कुछ नहीं, मैंने अपना बैल एक बेवकूफ को चिपका दिया।”

शर्मीली, “फ्री में?”

पुट्ठा, “पैसे लेकर दिया है। तुम क्या मुझे कम समझती हो?”

शर्मीली, “कितने में बेचा?”

पुट्ठा, “कुछ कम पैसे में बेच दिया।”

शर्मीली, “ठीक है पैसे दो, मैं बाजार से कुछ सब्जी ले आती हूँ।”

पुट्ठा, “पैसे तो मेरे पास नहीं है।”

शर्मीली, “कहाँ फेंक आये पैसे?”

पुट्ठा, “शर्मीली, मुझे बेवकूफ समझती हो क्या, ऐं? भला मैं पैसे क्यों फेक दूंगा?

आज अगर मेरी जेब में पैसे नहीं होते तो दुष्ट आत्मा तुमको और मुझे दोनों को अभी तक खा चुकी होती हैं।”

शर्मीली, “क्या बोल रहे हो तुम? कहीं से पी के आए हो क्या?”

पुट्ठा, “पीना वीना छोड़ो। वो तो भला हो बाबा जी का जिन्होंने हमारी सारी मुश्किलें अपने ऊपर ले ली।”

शर्मीली, “मुझे आपकी गोल गोल बातें समझ नहीं आ रही। सीधा सीधा बताओ, आपने क्या किया पैसों का?”

पुट्ठा शर्मिली को सारी बातें बताता है।

शर्मीली, “कमबखत मारे, तुझे लूट लिया उस बाबा ने। बेवकूफ बनाके सारे पैसे लूट लिए। आप तो हैं ही निकम्मे और नालायक।”

शर्मीली डंडा उठाती है और पुट्टा की पिटाई कर देती है। शर्मीली पुट्टा की बेवकूफियों से परेशान हैं और पुट्टा अपनी पत्नी की पिटाई से परेशान है।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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