बेवकूफ धोबी | Bewkoof Dhobi | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बेवकूफ धोबी ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Latest Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


रूपापुर गांव में मंगलू नाम का एक धोबी रहा करता था। स्वभाव से वह काफी सीधा-सादा था और इसी का लोग फायदा उठाकर अक्सर उसे बेवकूफ बनाते रहते थे। 

उसके पास तीन गधे थे जिनका नाम उसने वीरू, धन्नो और टन्नू रखा था। टन्नू बड़ा ही शरारती गधा था। वह अक्सर मंगलू धोबी को परेशान किया करता था।

रामदीन,”काहे मंगलू भैया, इतनी ठंड में सवेरे-सवेरे बेचारे इन मासूमों को लेकर कहाँ चल दिए?”

मंगलू,”अरे ! क्या कहें रामदीन भाई, मैं कहाँ जाऊंगा? आज तक तो रूपापुर से बाहर नहीं गया हूँ। 

वहीं, मिया के दौड़ मस्जिद तक, नदी किनारे जा रहा हूँ। आज बहुत कपड़े हैं धोने के लिए।”

रामदीन,” वो तो सब ठीक है, मंगलू भाई। लेकिन ये बताओ आपने तो चार-चार कपड़े और स्वेटर पहने हुए हो, लेकिन इन बेचारे गधों का क्या दोष है? इन्हें तुम इतना सवेरे ठंड में नदी किनारे क्यों ले जा रहे हो, भाई?”

मंगलू,”ये अगर नहीं जाएंगे तो मेरा काम कैसे होगा? उतना कपड़ा मैं कैसे धोकर लाऊंगा? परंतु हाँ, तुमने अच्छा सुझाव दिया है।

मैं कल ही शीला से बोलूंगा कि इन सभी के लिए स्वेटर बुन दे ताकि ये लोग और अच्छे से काम कर सके।”

टन्नू,”अरे मालिक ! ये आपको बेवकूफ बना रहा है। हम गधों को ठंड नहीं लगती। आपको गधा बना रहा है मालिक।”

वीरू,”अरे टन्नू ! तू भी क्या गधे जैसी बातें कर रहा है? अपने आप को बेवकूफ साबित कर रहा है। बोल कि गधा नहीं, मालिक को उल्लू बना रहा है।”

धन्नो,”सही जा रहे हो दोस्त, बिलकुल सही जा रहे हो। एक गधा दूसरे गधे को गधा बना रहा है। 

अरे वीरू ! तुम भी तो अपने आप को गधा साबित करने पर तुले हुए हो। गधे जैसी बात करने की जगह उल्लू जैसी बात कर रहे हो?”

इस तरह तीनों गधे वीरू, धन्नो और टन्नू आपस में बात करते हुए नदी किनारे पहुँच जाते हैं। मंगलू उनके पीठ पर से कपड़े उतारकर एक-एक कर धोने लगता है।

साधू बहुत देर तक देखता हूँ कि मंगलू तन-मन से इतनी ठंडी में मेहनत कर रहा है, उसका काम और लगन देख साधु प्रसन्न हो जाता है। 

साधु,” इतनी सुबह-सुबह जब लोग इस ठंड में घर में कम्बलों में दुबके पड़े हैं, तुम यहाँ नदी किनारे पानी में कपड़े धो रहे हो। क्या तुम्हें ठंड नहीं लगती?”

मंगलू,”लगती है ना महाराज, ठंड तो हमें भी लगती है लेकिन क्या करें? इतने कपड़े हैं कि धोते-धोते 12 बज जाएंगे। इसलिए सुबह ही कपड़े धोने निकल लिए।”

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साधु,”तुम्हारी अपने गांव के प्रति मेहनत और लगन देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। तुम कोई भी एक वरदान मांगो, तुम्हारी वो इच्छा मैं पूरी करूंगा।”

मंगलू,”महाराज, मुझे लोग कहते हैं कि मैं बेवकूफ हूँ। अगर मैं आपसे वर मांग लिया तो मेरी पत्नी नाराज हो जाएगी। इसलिए मैं पत्नी से पूछ कर ही वर मांगूंगा।”

साधु,”ठीक है, तुम्हारा ये वरदान मुझ पर उधार रहा। तुम जब चाहो मुझे याद करके मुझसे वरदान मांग सकते हो।”

इतना कहकर साधु वहाँ से चला गया। मंगलू धोबी अपने काम में लग गया। सारे कपड़े धोने के बाद मंगलू अपने तीनों गधों के पीठ पर कपड़ा लादकर अपने घर पहुँच जाता है।

मंगलू,”शीला, अरे ! कहाँ गई हो? मैं सारा कपड़ा धोकर ले आया हूँ। इसे मैदान में फैलाकर सुखा दो।”

शीला,”हाँ हाँ, आई। दिन-रात गधे जैसा खटते रहती हूँ, फिर भी मन लायक खाना तक नसीब नहीं होता। ऊपर से तुम्हारे जैसा बेवकूफ पति भगवान ने दे दिया है।”

धन्नो,”देखा वीरू, मालकिन हम लोगों की बड़ाई कर रही हैं, बोल रही हैं कि गधा जैसा खटती हैं यानी हम लोग बहुत काम करते हैं।”

टन्नू,”हाँ, कभी-कभी भुलाये हुए गधे जैसा मार भी पड़ता हैं।”

मंगलू,”गधे जैसा खटने से याद आया, रामदीन भाई कह रहे थे की इन तीनों को ठंड में स्वेटर बनवा देने के लिए। बेचारे कितने खटते हैं। मैं ऊन ले आया हूँ। तुम इनके लिए स्वेटर बुन दो।”

शीला,”हे भगवान ! मैंने आपका क्या बिगाड़ा था जो इतना बेवकूफ पति मुझे ही दे दिया। आज तक किसी गधे को तुमने स्वेटर पहने देखा है?”

मंगलू,”अरे ! मुझे तो ये ध्यान में ही नहीं आया। दुकानदार मुझे बोल ही रहा था कि ऊन तोले जा रहे हो इन गधों के लिए, लेकिन मैं वापस नहीं करूंगा। सोच-समझ कर लो।”

टन्नू,”मैं तो उसी समय मालिक से बोल रहा था मालकिन कि रामदीन आपको बेवकूफ बना रहा है। लेकिन मालिक हम गधों की भाषा समझ ही नहीं पाते। ऊपर से ढेंचू-ढेंचू करने पर मुझे दो डंडे भी मार दिए।”

वीरू,”अबे टन्नू, ज्यादा मत बोल। हम गधों की भाषा मालकिन भी नहीं समझती। ज्यादा ढेंचू-ढेंचू मत कर, नहीं तो मालकिन अबी सनकी हुई है। सारी कसर तुम्हीं पर उतार देंगी।”

धन्नो,”अरे ! इस पर गुस्सा उतारे तब तो ठीक ही है, लेकिन इसके चलते हम बेकसूर भी मारे जाएंगे।”

शीला,”सब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहे हो? जल्दी जाओ और दुकानदार से ऊन वापस कर पैसे लेकर आओ। अगर तुम आज पैसे लेकर नहीं आए तो तुम्हारी खैर नहीं।”

मंगलू धोबी उल्टे पैर वापस बाजार जाता है।

मंगलू,”भैया, ये ऊन वापस कर दो और मुझे मेरे पैसे लौटा दो। गधों को ठंड थोड़ी लगती है।”

दुकानदार,”देखो भैया, मैं तुमसे पहले ही कह रहा था कि सोच-समझ के लो। ऊन वापस नहीं होगा, लेकिन तुमने माना नहीं और बोले कि हमें ऊन दे दो। इसलिए अब मैं ऐसे नहीं लौटाऊंगा।”

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मंगलू धोबी ऊन लेकर वापस घर पहुंचता है। उसके हाथ में ऊन देखकर शीला का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचता है।

शीला,”तुम्हारी बेवकूफी की कोई हद नहीं है।”

मुखिया,”अरे ! क्या हुआ शीला? क्यों बेचारे मंगलू को भला-बुरा कह रही हो?”

शीला,” ये इतना बुद्धू है कि कोई भी इसे बेवकूफ बना देता है। रामदीन भैया के कहने पर गधों के लिए इतना सारा ऊन ले आया और स्वेटर बुनने को बोल रहा है।”

मुखिया,”वैसे चार गधों के लिए ऊन थोड़ा कम है।”

शीला, “पर हमारे पास तो तीन ही गधे हैं।”

मुखिया,”अच्छा, गांव के सभी लोग इसको गधा बनाते हैं और तू अभी भी इसे आदमी ही मान रही है। ठीक है, चलता हूँ। वैसे इस गधे से तीनों गधे ज्यादा स्मार्ट हैं।”

गांव के लोग मंगलू धोबी की बेवकूफी पर हंसते हुए चले जाते हैं।”

शीला को बहुत बुरा लगता है और उस रात शीला मंगलू को खाना भी नहीं देती। दूसरे दिन सुबह उठते ही मंगलू धोबी फिर से गधों को लेकर नदी के घाट के लिए निकल जाता है।

रामदीन,”क्यों भाई, गधों को स्वेटर नहीं पहनाया है क्या?”

मंगलू,”क्यों सवेरे-सवेरे मजाक उड़ा रहे हो भैया? वैसे ही कल तुमने ऊन नहीं लौटाया, इस कारण मुझे रात में खाना तक नसीब नहीं हुआ। 

ऐसे ही मेरा मन खराब है। इन गधों के चलते मैं हमेशा सबसे सुनता रहता हूँ।”

वीरू, “देख रहे हो ना टन्नू भैया, मालिक अपना दोष हम गधों पर लाद रहे हैं।”

टन्नू,”क्या करोगे वीरू भैया? हम गधों की किस्मत ही खराब है। हमें तो काम करना ही पड़ेगा।”

रामदीन,”देखो मंगलू भाई, मैं एक सुझाव दे रहा हूँ। अगर ठीक लगे तो कर लो, नहीं तो इन गधों के जैसे ज़िन्दगी भर जीना पड़ेगा। “

मंगलू,” हां हां भाई, बताओ ना। वैसे भी इस गधे जैसी ज़िन्दगी से तंग आ गए हैं। दिन भर काम करो, शाम को जाकर बीवी से डांट सुनो। बस यही ज़िन्दगी रह गयी है।”

रामदीन,”तो सुनो, इन गधों को बेचकर एक बड़ा सा वाशिंग मशीन ले आओ। उसमें तुम्हें कपड़ों को धोने में मेहनत भी नहीं पड़ेगी और ना ही सुखाने में। 

बल्कि जो टाइम मिलेगा उसमें तुम दूसरे काम भी कर सकते हो। कब तक बेवकूफ बने रहोगे? होशियार बनो होशियार, समझे?”

मंगलू,”बात तो पते की कह रहे हो भैया। मैं आज ही गधों को बेचकर शहर से वाशिंग मशीन लेकर आता हूँ। वैसे भी काम करते-करते अब मैं थक चुका हूँ।”

टन्नू,”भैया, कह दो इनसे, हमें बेचने की कोशिश ना करें। मैं दुलत्ती उलत्ती मार दूंगा तो फिर ना कहना।”

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वीरू, “अरे रे गुस्सा नहीं करते टन्नू भाई। अब मालिक जो चाहे वो कर सकता है। हो सकता है हम लोगों को इससे भी अच्छा मालिक मिले। 

अब ये तो उनकी मर्जी है। हम लोग तो गुलाम हैं। यहाँ भी काम करना है और वहाँ भी काम करना है। इतना गुस्सा अच्छा नहीं।”

टन्नू, “बात तो तुम ठीक कह रहे हो वीरू भैया, लेकिन हमें चिंता इस बात की है कि हमारे मालिक बेवकूफ हैं, जल्दी दूसरों की बातों में आ जाते हैं।

आगे-पीछे सोचता नहीं। अगर वाशिंग मशीन लेंगे तो गांव में बिजली है तो नहीं। फिर उसे चलाएंगे कैसे?”

मंगलू धोबी बिना सोचे समझे दुकानदार की बातों में आ गया। अब हम भी मॉडर्न धोबी बन जाएंगे और कम समय में बिना ज्यादा मेहनत किए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाएंगे। 

यही सोचकर मंगलू धोबी अपने गधों को एक धोबी को बेचकर उन पैसों से शहर से बड़ा सा वाशिंग मशीन लेकर सीधा अपने घर चला आता है। 

घर पहुंचते ही उस बड़े से वाशिंग मशीन को देखने के लिए पूरा गांव मंगलू धोबी के घर पर उमड़ पड़ता है। मंगलू धोबी अपने बेटे बबलू को पैसे देकर हलवाई की दुकान से लड्डू मंगवाता है और सारे गांव वालों को बांटता है।

मुखिया, “अरे वाह मंगलू ! तुमने तो कमाल कर दिया भाई। हमारे गांव में पहली वाशिंग मशीन है जिसे तुम खुद खरीद कर लाए हो। 

अब हम लोग भी शान से कहेंगे कि हमारा धोबी हमें मशीन में कपड़े धोकर और सुखा कर देता है। “

आदमी,” मंगलू धोबी ने हमारे गांव का नाम रोशन कर दिया। अगल बगल 200 गांव में किसी के पास वाशिंग मशीन नहीं है। 

ये हमारे गांव की उपलब्धि है। अतः हम सब मुखिया जी से आग्रह करते हैं कि मंगलू धोबी को एक शॉल गिफ्ट कर उसे सम्मानित किया जाए।”

मुखिया जी दुकानदार से एक शॉल मंगवाकर मंगलू धोबी को सम्मानित भी करते हैं। मंगलू धोबी सहित उसके परिवार का सीना चौड़ा हो गया था। 

आज पूरा गांव उसकी जय-जयकार कर रहा था। मंगलू धोबी एक लंबा चौड़ा भाषण दे डालता है।

मंगलू, “आदरणीय मुखिया जी, गांव के सम्मानित लोग और हमारे गांव के साथियों, जैसा कि आप लोग जानते हैं कि जीवन भर मुझे बेवकूफ धोबी के नाम से नवाजा गया। 

लेकिन आज वही लोग मुखिया जी सहित हमारी सोच को सलाम करते हुए हमारी जय-जयकार कर रहे हैं। 

अंत में मैं गांववासियों से यही कहना चाहूंगा कि कोशिश करते रहने से हमारे जैसे बुद्धू बेवकूफ आदमी भी अपनी सोच के बदौलत गांव की शान बन सकते हैं। 

आप लोग भी गांव को आगे बढ़ाने के लिए हमारी जैसी सोच पर अमल कर गांव को तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ाएं। जय रूपापुर की जनता।”

मुखिया,”वाह ! हमें आज तक नहीं मालूम था कि अपना बेवकूफ समझे जाने वाला मंगलू धोबी इतनी सरलता से सटीक भाषण दे सकता है। 

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गांव के युवाओं को मंगलू धोबी से इंस्पायर होने की जरूरत है भाई। एक बार फिर से मंगलू धोबी को गांव के लिए उपलब्धि पर तहे दिल से शुक्रिया। “

आदमी,” भाइयो एवं बहनों, अब मुखिया जी वाशिंग मशीन का स्विच दबाकर उद्घाटन करेंगे। कृपया आप लोग जोरदार तालियों से मंगलू धोबी की इस उपलब्धि का स्वागत करें। “

मुखिया,” लाओ भाई, एक नारियल पहले फोड़ दूँ। उसके बाद स्विच ऑन कर वाशिंग मशीन चलाएंगे।”

आदमी,”एक मिनट रुक जाइए मुखिया जी, हम सब वाशिंग मशीन गांव में आने की ख़ुशी में ये भूल गए कि हमारे गांव में तो बिजली अभी आई ही नहीं है। तो फिर वाशिंग मशीन चलेगी कैसे?”

अभी तक जो मुखिया जी और गांव वाले मंगलू धोबी को जो सराखों पर उठाए हुए थे, अब उसे महा बेवकूफ, बुद्धू, ना जाने क्या-क्या उपाधि देकर उसे भला बुरा भी कहने लगे। 

शीला खटिया पर बैठी सर को पकड़े अपनी पति की बेवकूफी पर खुद को कोस रही थी।

रामदीन,”भाई, गधा जब घोड़ा बनने की कोशिश करता है तब ऐसे ही सब लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं। समझे मंगलू भाई? एक सुझाव और मान लो, गांव में बिजली ला दो।”

मंगलू, “क्या हुआ शीला? तुम सर पकड़ कर क्यों बैठी हो?”

आदमी, “जिस घर में चार-चार गधे हों, उस घर की मालकिन की स्थिति समझी जा सकती है। “

रामदीन,” चार नहीं, पांच गधे, क्योंकि गधे की बीवी भी गधी ही होती है।”

सभी गांव वाले हंसने लगते हैं। गांव वालों के ताने से बचने के लिए मंगलू पूरे परिवार के साथ नदी किनारे जाकर उदास बैठा रहता है। 

तभी वहाँ पर वही साधु आता है जिसने कहा हुआ था कि तुम्हारा एक वरदान मेरे पास बाकी है।

साधु,”क्या बात है? इस तरह एकांत में सपरिवार उदास बैठने का कारण जान सकता हूँ क्या?”

मंगलू, “महात्मा साधु जी, कृपया हमें वर दें कि किसी तरह से मेरा वाशिंग मशीन चलने लगे।”

साधु, “ये लो बच्चा त्रिशूल, इसे मशीन में लगा देना। ये सूर्य, तारों और ग्रहों से एनर्जी लेकर वाशिंग मशीन चलाएगा। जा बच्चा, कल्याण हो जाएगा।”

साधु मंगलू धोबी की इच्छा के अनुसार वर देकर चला जाता है। गांव लौटकर मंगलू वाशिंग मशीन में त्रिशूल फिट कर देता है और स्विच ऑन करता है। 

वाशिंग मशीन चलने लगती है। उसकी आवाज़ सुनकर गांव के लोग इकट्ठे हो जाते हैं।

आदमी, “भाई मंगलू, मुझे माफ़ कर दो। तुमने वाशिंग मशीन चलाकर सचमुच साबित कर दिया कि गधे तो हम मजाक उड़ाने वाले रह गए, तुम तो घोड़ा बन हमसे कहीं आगे निकल गए भैया।

मंगलू, हम आज सचमुच शर्मिंदा हैं। तुम हम लोगों से कहीं अधिक होशियार हो। “

रामदीन,” आज मंगलू और उसके परिवार ने साबित कर दिया कि ये हमारे गांव के रत्न हैं। मैं तो यूं ही नेता हूँ, गांव के असली नेतृत्व करने वाला नेता तो हमारा मंगलू है।”

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मंगलू धोबी का अब गांव में रॉब हो जाता है। वह जहाँ जाता है, सेलिब्रिटी की तरह उसका स्वागत होता है। अगल-बगल के गांव में उसकी स्पीच सुनने के लिए हजारों की भीड़ लग जाती है। 

अब गांव के साथ-साथ नजदीक के कई रईस परिवार उसके ग्राहक हो जाते हैं और मशीन से धुले कपड़े पहनने में शान महसूस करने लगते हैं। धीरे-धीरे मंगलू धोबी अमीर हो जाता है।

दूसरे गांव के शातिर चोर खिरजू और बिरजू एक दिन मंगलू की वाशिंग मशीन चोरी कर लेते हैं। दूसरे दिन गांव में हाहाकार मच जाता है। 

गांव की शान वाशिंग मशीन की चोरी हो गई थी। कुछ महीनों में फिर से मंगलू के परिवार की स्थिति पहले जैसी हो जाती है।

बिरजू, “आखिर, हमने मशीन तो चोरी कर ली, पर ये चलेगा कैसे? साला, हम लोग तीन महीने से इसे चलाने की कोशिश कर रहे हैं। “

खिरजू,” लगता है त्रिशूल को घुमाना पड़ेगा। रुको, आज मशीन हम चलाकर रहेंगे।”

जैसे ही खिरजू त्रिशूल घुमाता है, वाशिंग मशीन का ढक्कन ओपन हो जाता है और खिरजू एवं बिरजू दोनों को अंदर खींच लेता है और उन्हें गोल-गोल घुमाना शुरू कर देता है।

खिरजू, “अरे बाप रे, कोई बचाओ। अरे, उल्टी हो रही है। चक्कर आ रहा है। कोई तो रोको इस मशीन को। अब हम चोरी कभी नहीं करेंगे।”

बिरजू,”बचाओ हमें। अरे खिरजू ! तू मुझे दुलत्ती क्यों मार रहा है बे?”

खिरजू,”अरे, मैं क्यों मारूंगा? हमें तो उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम सब एक लग रहा है। बस करो, मशीन देवता। मैं तुम्हें मंगलू धोबी के यहाँ खुद लेकर जाकर रख दूंगा।”

बिरजू, “हाँ-हाँ मशीन देवता, हम दोनों मंगलू धोबी से नाक रगड़कर माफी मांगेंगे। अब कभी चोरी नहीं करेंगे।”

तभी वाशिंग मशीन रुक जाती है। खिरजू और बिरजू इलाज कराने के बाद तुरंत मंगलू के घर वाशिंग मशीन लेकर पहुंचते हैं और उनसे माफी मांगते हैं। 

पुलिस दोनों को ले जाती है। गांव में फिर से बहार आ जाती है। मंगलू धोबी की स्थिति फिर से अच्छी हो जाती है, लेकिन अन्य धोबियों की हालत खराब हो जाती है। मंगलू को ये अच्छा नहीं लग रहा था।

एक दिन फिर वह नदी किनारे से गुजर रहा था कि वही साधु फिर से उसे मिलता है।

साधु,”कैसे हो बच्चा?”

मंगलू, “आपकी कृपा से सब अच्छा है, बाबा। लेकिन अगर हमारी तरह सबका अच्छा होता तो बहुत अच्छा होता।”

साधु, “तुम कहना क्या चाहते हो?”

मंगलू,”हमारे गांव में भी बिजली आ जाती तो अच्छा रहता।”

साधु,”मैं जानता हूँ बच्चा, तुम्हारे जैसा सबके बारे में अच्छा सोचने वाले की ही संसार को जरूरत है। जाओ बच्चा, कल्याण हो।”

गांव पहुंचने पर उसी समय राजधानी से कुछ इंजीनियर मुखिया जी के पास आते हैं और बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने इस गांव को एक सप्ताह के अंदर बिजली पहुंचाने का आदेश दिया है। 

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एक सप्ताह के अंदर पूरे गांव में बिजली के खम्बे लग जाते हैं और मुख्यमंत्री खुद उस गांव में आकर बिजली का उद्घाटन मंगलू धोबी की वाशिंग मशीन को चलाकर करते हैं। 

अब बेवकूफ मंगलू धोबी पूरे गांव की शान बन जाता है। और सभी गांव वालों के साथ खुशहाल जिंदगी व्यतीत करने लगता है।


दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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