हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बेवकूफ नौकर ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Hindi Stories, Funny Stories या Comedy Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में करोड़ीमल नाम का बड़ा मक्कार जमींदार रहता था। आज सुबह-सुबह जब वो अपने खेतों में कुर्सी बिछाकर बैठा था, गांव का एक किसान उसके पास आकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
जमींदार (अकड़ के साथ), “सुबह-सुबह अपनी मनहूस सूरत दिखाने के लिए क्यों आ गया दीनू? जा यहां से। तुझसे एक बार बोल दिया तो बोल दिया।”
किसान, “मैं बहुत गरीब आदमी हूँ, करोड़ीमल साहब। ये छोटी सी जमीन ही मेरा सहारा है। उसे भी आप ले लोगे तो मैं खत्म ही हो जाऊंगा।”
जमींदार, “तू खत्म हो जाए या मर जाए, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पैसे लेते वक्त नहीं सोचा था तुने? जब पैसे देने का नंबर आया तो रोकर दिखा रहा है।”
किसान, “मैंने तो आपसे बहुत थोड़ी रकम ली थी, जमींदार साहब। मुझे क्या पता था कि आप उस छोटी सी रकम में इतना भारी ब्याज लगाकर मुझसे मेरी पूरी जमीन ही छीन लेंगे?”
जमींदार, “तेरी इस बकवास से कोई फायदा नहीं होने वाला। समझा? तूने सादे कागज पर अंगूठा लगाया है।
तयशुदा वक्त पर तुने पैसे नहीं दिए, तो तेरी जमीन अब मेरी हुई। चल भाग यहां से, सुबह-सुबह सारा मूड खराब कर दिया।”
करोड़ीमल गुस्से में घर आ गया। घर आकर उसकी बीवी ने उसे पनीर और दही मंगवाने का फरमान सुना दिया।
करोड़ीमल के घर में एक नौकर था, जो बड़ा ही बेवकूफ था। उसकी बेवकूफी की वजह से जमींदार करोड़ीमल उसे ‘भोंदू’ कहकर बुलाता था।
करोड़ीमल चीख चीखकर भोंदू को आवाज लगाने लगा।
करोड़ीमल, “भोंदू… अरे भोंदू! अरे! अब कहाँ मर गया तू? चीख-चीख के मेरा हलक सूख गया, लेकिन तेरे कान हैं या कोई चूहे का बिल जो मेरी आवाज सुन नहीं पा रहा?”
जमींदार की बात सुनकर भोंदू दौड़ता हुआ आया।
भोंदू, “जी मालिक, मैं यही तो था।”
जमींदार, “अबे यहाँ के बच्चे, कहाँ था? मैं तुझे कितनी देर से आवाज लगा रहा हूँ?
अगर इससे ज्यादा तेज आवाज लगाता, तो शायद मेरी आवाज ही चली जाती।”
भोंदू, “गलती हो गयी मालिक, मैं दौड़ता हुआ आप ही के पास आ रहा था।”
जमींदार, “अबे तो आवाज नहीं दे सकता था? मैं तुझे कितनी देर से बुला रहा हूँ?”
भोंदू, “मालिक, दूसरे कमरे में सफाई कर रहा था, वहाँ से मुझे थोड़ा ज़ोर से बोलना पड़ता, मतलब ऊंची आवाज में।”
जमींदार, “अरे! तो बोल नहीं सकता था क्या? देख नहीं रहा, चीखते-चीखते मेरी हांफ निकल गयी।”
बेवकूफ नौकर | Bewkoof Naukar | Funny Story | Comedy Story | Majedar Kahaniyan
भोंदू, “मालिक, आप ही ने तो मुझसे कहा था कि आपको ऊंची आवाज पसंद नहीं। तो आप ही बताइए, मैं ऊंची आवाज में कैसे बोल सकता था?”
जमींदार, “हे भगवान! इसका मैं क्या करूँ? और ज्यादा बात करूँगा, तो मैं पागल हो जाऊंगा।
बेवकूफ, बात को समझा कर। मैंने उस वक्त तुझसे कहा था कि मुझे ऊंची आवाज पसंद नहीं। उस वक्त मेरा कहने का मतलब और था।”
भोंदू, “मालिक, मुझे थोड़ा सा समझा दीजिए। जब तक आप मुझे समझाएंगे नहीं, मेरी समझ में कैसे आएगा?”
जमींदार, “कहीं ऐसा न हो, तुझे समझाते-समझाते किसी दिन मैं ही सब कुछ भूल जाऊँ?”
इतना कहकर जमींदार ने अपने जेब से 50-50 के दो नोट निकालकर भोंदू को दिए।
जमींदार, “अच्छा, ये ले ₹100…₹50 का दही लेकर आ और ₹50 का पनीर लेकर आ। तेरी छोटी मालकिन ने बोला है कि ताजा पनीर और ताज़ा दही ही लेकर आना।”
भोंदू ₹100 लेकर बाजार की ओर निकल गया। कुछ देर बाद वह वापस ₹100 लेकर जमींदार के पास आ गया।
जमींदार, “क्या हुआ? खाली हाथ क्यों आया है? पनीर और दही क्यों नहीं लाया?”
भोंदू, “मालिक, दुकान पर गया था। लेकिन ये पूछना तो मैं आपसे भूल ही गया कि कौन से 50 का दही लाना है और कौन से 50 का पनीर लेकर आना है?”
भोंदू की बात सुनकर जमींदार करोड़ीमल अपना सर पीटने लगा और चीखता हुआ बोला।
जमींदार, “अबे बेवकूफ! तू किसी भी 50 का पनीर ले आता और किसी भी 50 का दही। थे तो ₹100 ही।
पता नहीं कौन सा मनहूस दिन था जब तू मेरे घर आया था? अगर तू मेरी बीवी के दहेज़ में नहीं आता ना, तो तुझे धक्के देकर मैं अपने घर से बाहर निकाल देता।”
करोड़ीमल के चीखने पर उसकी पत्नी मंजूरी वहाँ आ गई। मंजूरी एक अमीर घराने की औरत थी।
मंजूरी, “अजी, क्या हुआ? क्यों सुबह-सुबह इस बिचारे पर चिल्ला रहे हो?”
जमींदार, “इसको 50-50 के दो नोट दिए थे, दही और पनीर लाने के लिए। खाली हाथ लौट कर बोल रहा है कि किस नोट का दही लाऊं और किस नोट का पनीर?”
मंजूरी, “अरे! तो बेचारे को बता देते ना! आपको पता है ना, कितना भोला है ये?”
जमींदार, “अच्छा, वो सब छोड़ो। ये बताओ, कि मेरी तिजोरी से पैसे तुमने निकाले थे?”
मंजूरी, “मैं कोई चोर खानदान की लगती हूँ?”
जमींदार, “तो फिर ये नया हार कहाँ से लाई?”
मंजूरी, “ये तो मेरी बुआ जी ने दिया है।”
जमींदार, “तुम्हारी तो बुआ जी खुद हर महीने मुझसे पैसे मांग कर ले जाती है। उस भिखारिन के पास पैसे कहाँ से आये?”
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करोड़ीमल की बात सुनकर मंजूरी आग बबूला हो गयी।
मंजूरी, “अपनी हद में रहो जी। मैं अपनी बुआ के बारे में एक शब्द नहीं सुन सकती।”
जमींदार, “ये क्यों नहीं कहती कि तुम रोज़-रोज़ मेरी तिजोरी में से पैसे निकालती हो?”
मंजूरी, “मैं तुम्हारी तिजोरी से पैसे क्यों निकालूंगी? अगर तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं आता, तो तुम भोंदू से पूछ लो।”
मंजूरी की बात सुनकर करोड़ीमल ने गुस्से से भोंदू की ओर देखकर कहा,
जमींदार, “मुझे सब पता है। तू अपनी छोटी मालकिन के साथ हमेशा रहता है। क्या वो पैसे निकालती है या नहीं, मुझे सच बता?”
भोंदू, “मैं क्या बताऊँ, मालिक? सच बोलूंगा तो भी फंस जाऊंगा, झूठ बोलूंगा तो भी फंस जाऊंगा।”
भोंदू की बात सुनकर जमींदार सोच में पड़ गया।
जमींदार, “झूठ बोलेगा तो भी फंस जाएगा, सच बोलेगा तो भी फंस जाएगा..? आखिर कहना क्या चाहता है तू?”
भोंदू, “छोटी मालकिन ने कहा था कि पैसों के बारे में मालिक कोई सवाल करें, तो झूठ बोल देना।
आप कह रहे हैं कि सच बताऊँ, तो मैं तो फंस गया हूँ। मैं क्या करूँ, बताइए?”
जमींदार (मुस्कुराते हुए), “मेरे प्यारे भोंदू, देख, हमेशा मेरे सामने सच बोलना ठीक है, समझा कि नहीं?”
भोंदू, “आपकी बात बिलकुल समझ गया। अगर आप हमारे सामने हों, तो हमेशा सच ही बोलना चाहिए।”
जमींदार, “हाँ, अब तू समझा। अगर तू मालिक के सामने ही झूठ बोलेगा, तो तू भोंदू बेवकूफ नौकर कहलाता ही है, फिर झूठा नौकर भी कहलाएगा।
कोई काम पर नहीं रखेगा तुझे। झूठे नौकर को सब धक्के देकर बाहर निकाल देते हैं, समझा?
इसलिए कभी भी अपनी मालकिन को मेरी तिजोरी से पैसे निकालते देखना, तो हमेशा मुझे सच बताना। क्योंकि आजकल तेरी मालकिन बहुत पैसे निकाल रही है।”
भोंदू, “चिंता मत कीजिए मालिक, जब आप मेरे सामने हों, तो मैं हमेशा सच ही बोलूंगा। छोटी मालकिन ने पैसे निकाले थे।”
जमींदार खुश हो गया और मंजूरी की ओर देखकर गुस्से से बोला,
जमींदार, “मैं जानता था, मेरे तिजोरी से पैसे तुम ही निकालती हो।”
मगर करोड़ीमल की बात सुनकर मंजूरी उल्टी हावी होकर बोली,
मंजूरी, “निकालती हूँ तो कोई जुर्म नहीं करती हूँ। पति और पत्नी का भी कुछ अलग नहीं होता।”
तभी जमींदार करोड़ीमल के मोबाइल की घंटी बजने लगी। फ़ोन पर कुछ बातचीत करने के बाद उसके चेहरे का गुस्सा खुशी में बदल गया। फ़ोन रखने के बाद वह अपनी पत्नी से बोला,
जमींदार, “मंजूरी, ध्यान से सुनो। शहर से कुछ लोग जमीन खरीदने के लिए आ रहे हैं।
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वो अपने गांव से कुछ दूर शहर के डीजीपी के रिश्तेदार हैं और साथ में डीजीपी साहब भी आएँगे।”
मंजूरी, “ये तो ख़ुशी की बात है। उस जमीन का सौदा तो आपने लाखों रुपए में किया है।”
जमींदार, “हां मंजूरी, अगर वो जमीन बिक गई तो फिर हम लोग शहर में एक बहुत अच्छी कोठी बनवाएंगे।”
मंजूरी, “लेकिन कहीं उन्हें ये तो नहीं पता कि वो ज़मीन आपने बेचारे असहाय गरीबों से झूठ बोलकर और धोखा देकर छीनी है?
उन गरीब लोगों को आपने बहुत कम पैसे देकर और भारी ब्याज वसूल करके वो ज़मीन हड़पी है।”
अपनी पत्नी की बात सुनकर ज़मींदार सिर पीटते हुए बोला,
जमींदार, “बेवकूफ औरत, तुझे कितनी बार बताया है कि दीवारों के भी कान होते हैं। सुनो, तुम्हें उनके लिए अच्छे से नाश्ते-पानी का इंतजाम करना है। कुछ ही देर में वो आते होंगे।”
कुछ ही देर के बाद ज़मींदार के घर दो लोगों ने प्रवेश किया। ज़मींदार उनकी आवभगत में जुट गया।
उसकी पत्नी सज-धजकर उन दोनों के सामने बैठ गई। ज़मींदार ने अपनी पत्नी से उन दोनों का इंट्रोडक्शन करवाया,
जमींदार, “मंजूरी, ये शहर के डीजीपी वीरेंद्र प्रसाद हैं और ये इनके रिश्तेदार मानिकचंद। यही हमारी जमीन खरीदने वाले हैं। भोंदू को बोलो कि वो चाय-नाश्ता ले आए।”
कुछ ही देर में चाय और नाश्ता लेकर भोंदू वहाँ पर आ गया।
डीजीपी ने करोड़ीमल को देखकर कहा, “तुम्हारा नौकर तो बड़ा सीधा साधा मालूम पड़ता है। क्या नाम है इसका?”
किरोड़ीमल के बोलने से पहले ही भोंदू बोल पड़ा।
भोंदू, “वैसे तो हमारा नाम भानू है, लेकिन लोग हमें प्यार से भोंदू कहते हैं।”
भोंदू की बात सुनकर दोनों हंसने लगे।
मानिकचंद ने गंभीर होकर करोड़ीमल से कहा, “करोड़ीमल जी, मैं आपकी जमीन पर एक बहुत बड़ी शुगर फैक्टरी खोलना चाहता हूँ।
सोचता हूँ, शुगर फैक्टरी बनने के बाद इस गांव के बहुत से लोगों को काम भी मिल जाएगा।”
डीजीपी वीरेंद्र प्रसाद, “एक बार फिर से सोच लो, मानिकचंद।”
मानिकचंद, “मैं बहुत सोच-विचार के बाद ही इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि मुझे जमीन खरीदनी चाहिए।”
डीजीपी, “तुम शहर में पले-बढ़े हो और मैं गांव की मिट्टी में पला-बढ़ा हूँ, इसलिए मैं उपजाऊ जमीन की अहमियत जानता हूँ।
एक किसान के लिए उसकी सब कुछ जमीन नहीं होती है, जिसमें वो मेहनत करके खेती करता है।
उसे तुम चाहे जितना भी धन दे दो, लेकिन वो हमेशा अपनी उपजाऊ ज़मीन को ही प्यार करेगा।”
मानिकचंद, “मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझ पाया। आप तो स्वयं मेरे साथ इस जमीन को खरीदने के लिए आए थे।”
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डीजीपी, “मैं एक पुलिस वाला हूँ। यहाँ आने से पहले मैंने जब उस जमीन के बारे में छानबीन की तो मुझे पता लगा कि उस जमीन में कुछ गड़बड़ घोटाला है।”
डीजीपी की बात सुनकर ज़मींदार करोड़ीमल का चेहरा उतर गया। वो हक्का-बक्का अपनी पत्नी की ओर देखने लगा और इस बात को डीजीपी भली भांति समझ रहे थे।
उन्होंने करोड़ीमल की ओर देख कर कहा, “करोड़ीमल साहब, मैं एक पुलिस वाला हूँ। हर बात पर शक करने की मेरी आदत है।
यहाँ आने से पहले तुम्हारे बारे में जितने भी लोगों से मैंने पूछताछ की, उन सब ने बताया कि तुम अच्छे इंसान नहीं हो।”
करोड़ीमल, “ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? मैं इस गांव का बहुत ही शरीफ और ईमानदार आदमी हूँ और मैं ये बात दावे के साथ कहता हूँ कि ये ज़मीन मेरी है।
मेरे पास उसके पूरे पक्के कागजात हैं। और रहा सवाल गांव के लोगों का, वो सब मुझसे जलते हैं।
अगर आपको यकीन न आए तो आप मेरे नौकर से पूछ सकते हैं, ये भी गाँव का है। देखिए, कितना भोला है? ये तो आपसे झूठ नहीं बोलेंगे, ना?”
डीजीपी ने भोंदू की ओर देख कर कहा, “क्या कहते हो भोंदू? क्या तुम्हारे मालिक सच बोल रहे हैं?”
भोंदू वास्तव में एक बेवकूफ किस्म का आदमी था। उसके दिमाग में ये बात घर करगई कि मालिक के सामने उसे हमेशा सच ही बोलना चाहिए।
उसने सीना चौड़ा करके कहा, “मेरे मालिक ने मुझे ये आदेश दिया है कि जब कभी भी वो मेरे सामने हो तो मुझे कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
हाँ, मैं आपको बताता हूँ जोकि मैंने अपनी छोटी मालकिन के मुँह से कुछ देर पहले सुना था।
ये जमीन मेरे मालिक की नहीं है, बल्कि उन गरीब लोगों की है, जिन्हें मेरे मालिक ने बहुत कम कर्जा देकर भारी ब्याज वसूल कर उनसे जबरदस्ती छीना है। वो असहाय लोग थे, वो कुछ नहीं कर सकते।”
भोंदू की बात सुनकर ज़मींदार करोड़ीमल ने अपना सिर पीट लिया और गुस्से से भोंदू की ओर देखकर बोले,
जमींदार, “अरे बेवकूफ! जानता भी है तू क्या बोल रहा है?”
भोंदू, “आपने ही तो कहा था कि आपके सामने मुझे झूठ नहीं बोलना चाहिए, पर आप मुझे ही डांट रहे हो। जब मैंने छोटी मालकिन की चोरी की बात आपको बताई, तब भी आपने मुझे डांटा।”
जमींदार, “अरे रे! आप लोग इस बेवकूफ नौकर की बातों पर विश्वास मत करिए, ये तो पागल है।”
भोंदू, “क्या सेठ जी, अब मुझे पागल भी बोलना शुरू कर दिया? आप तो बोल रहे थे कि अगर मैं सच कहूंगा तो मुझे सब अच्छा बोलेंगे।”
जमींदार, “अबे चुप कर बेवकूफ!”
भोंदू की बात सुनकर मानिकचंद गुस्से से उठकर खड़ा हो गया।
माणिक, “करोड़ीमल साहब, मुझे नहीं पता था कि आप इतने गिरे हुए इंसान होंगे। मैं गरीबों की छीनी हुई जमीन पर कोई फैक्टरी नहीं खोल सकता।”
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डीजीपी, “जी तो चाहता है कि तुम्हें इसी वक्त गिरफ्तार करके सलाखों के अंदर डाल दूं, लेकिन कानून के हाथ मजबूर हैं।
क्योंकि तुम्हारे पास जमीन के पक्के कागजात हैं। ये जानते हुए भी कि जमीन तो तुमने उन बेचारे गरीब लोगों से छीना है, मैं कुछ नहीं कर सकता। बस इतना कह सकता हूँ कि शर्म करो और सुधर जाओ।”
इतना कहकर मानिकचंद और डीजीपी वहाँ से गुस्से से चले गए और ज़मींदार करोड़ीमल अपना सिर पकड़ कर बैठ गया।
उसे अपने नौकर की बेवकूफ़ी पर बहुत ज्यादा गुस्सा आया, लेकिन साथ ही साथ उसे एक सीख भी मिली कि दूसरों की जमीन हड़पने से सिवाए बेइज्जती के कुछ नहीं मिलता।
दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!