बेवकूफ पति | Bewkoof Pati | Funny Story | Majedar Kahaniyan | Bedtime Stories | Comedy Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बेवकूफ पति ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Hindi Laughing Stories, Funny Stories या Comedy Wali Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गाँव में पुट्ठा नाम का एक भुलक्कड़ इंसान रहता था। पुट्ठा को एक अजीब बीमारी थी।

वो अचानक से सब कुछ भूल जाता था। एक दिन की बात है, पुट्ठा गहरी नींद में सो रहा था।

शर्मिली, “अरे! अब उठोगे भी? कब तक खराटे लेकर सोते रहोगे? दोपहर के 11 बज रहे हैं,

मगर तुम्हारी कुंभकरण वाली नींद खुलने का नाम ही नहीं ले रही।”

शर्मिली के चीखने पर अचानक पुट्ठा की आँख खुल गई और वो शर्मिली को क्रोध भरी नजरों से देखने लगा।

शर्मिली, “मुझे इतने गुस्से में क्यों देख रहे हो? मैंने ऐसा क्या कर दिया? सिर्फ तुम्हें सोते से उठाया ही तो है।”

अचानक पुट्ठा ने शर्मीली का गला पकड़ लिया।

पुट्ठा, “ओय… ओय, कौन है तू? और मेरे घर में कैसे घुसा?”

शर्मिली, “ये क्या बकवास कर रहे हो तुम? मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, शर्मिली। छोड़ो मुझे।”

पुट्ठा, “ओ! याद आ गया। तू वही बिरजू चोर है ना, जो मुझे मूर्ख बना कर भाग गया था? आज तो तेरी खैर नहीं, हाँ।

आज मैं तेरी वो मार लगाऊंगा कि तू दोबारा चोरी करके मुझे मूर्ख बनाने की हिम्मत नहीं करेगा, हां।”

शर्मिली, ” सत्यानाश जाए मेरा कि मैंने तुमसे साथ फेरे लेकर विवाह किया था।

पता नहीं कौन सा मनहूस दिन था, जब तुम्हें ये भूलने की बीमारी लगी थी?”

इतना कहकर शर्मिली ने पुट्ठा को धक्का दे दिया।

शर्मिली, “आइन्दा मेरा गला पकड़ने की कोशिश की ना, तो मार मार के तुम्हारी हड्डी पसली एक कर दूंगी।”

पुट्ठा, “ओय बिरजू ओए! तू लड़की की आवाज निकालकर मुझे मूर्ख नहीं बना सकता, हां।”

शर्मिली, “हे भगवान! अब क्या करूँ मैं इसका?”

इतना कहकर शर्मिली ने एक जोरदार हाथ पुट्ठा के सिर पर मार दिया। सिर पर हाथ पड़ते ही पुट्ठा अचानक से शर्मीली की ओर देखकर बोला।

पुट्ठा, “अरे शर्मिली! क्या हुआ? तुम मुझे गुस्से से क्यों देख रही हो?”

शर्मिली, “पता नहीं कौन सा मनहूस दिन था, जब मैंने तुमसे शादी की। आज तो तुमने हद ही कर दी, मेरा गला पकड़ लिया। सच-सच बताओ, तुम्हें ये भूलने की बीमारी कब लगी?”

पुट्ठा, “तुम तो जानती हो शर्मिली, मैं जब 15 साल का था, तब एक लड़की की जान बचाते समय कुछ गुंडों ने मेरे सर पर एक लोहे की रॉड से मार दिया था।”

शर्मिली, “बंद करो अपनी ये घिसी पिटी बकवास। गलती मेरी थी, मुझे तुम्हें कब का तलाक दे देना चाहिए था।

अरे! शादी के 2 दिन बाद जब पिताजी मुझे लेने आए थे, तब तुम ये भी भूल गई थी कि वो तुम्हारे ससुर हैं

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और तुमने उनके गाल पर एक जोरदार चांटा जढ़ा दिया था। उस दिन का दिन है, आज तक पिताजी यहाँ पर नहीं आए।”

पुट्ठा, “मुझे तुम्हारे पिताजी पर उठाए गए हाथ का अफसोस है शर्मिली, लेकिन अब वो यहाँ पर क्यों आएँगे? वो तो कब का स्वर्ग सिधार गए ना?”

शर्मिली, “क्या बकवास कर रहे हो तुम? मेरे पिताजी कब स्वर्ग सिधार गए? वो तो जीवित हैं।”

पुट्ठा, “क्या बात कर रही हो तुम भी? परसों ही तो मैं उनकी अर्थी को कंधा देकर आया था।”

शर्मिली, “अरे मूर्ख इंसान! वो तो हमारे पड़ोस की ताई का देहांत हो गया था, जो पूरे 110 साल की थीं।

अब अपना बेकार सा मुँह लेकर यहाँ से निकल जाओ, इससे पहले की मैं अपना आपा खो बैठूं।”

पुट्ठा खामोशी से घर के बाहर निकल गया। वो घर से बाहर निकला ही था कि तभी वो दोबारा सब कुछ भूल गया। वो अपने घर के दरवाजे को गौर से देखते हुए बोला,

पुट्ठा, “कितने मूर्ख लोग हैं? घर का दरवाजा खोलकर ही बाहर चले जाते हैं।

अरे! कोई चोर उचक्का घर में घुसकर चोरी करके ले जाएगा, फिर बाहर यही लोग बवाल काटेंगे कि चोरी हो गई।”

इतना कहकर पुट्ठा अपने ही घर का दरवाजा खटखटाने लगा।

पुट्ठा, “अरे! घर में कोई है क्या?”

पुट्ठा की आवाज सुनकर शर्मिली अपने आप से बोली,

शर्मिली, “अरे! इन्हें क्या हो गया? अभी कुछ सेकंड पहले ही तो बाहर गए थे, कहीं ये फिर से कुछ भूल तो नहीं गए?”

शर्मिली दौड़ती हुई बाहर आ गई और पुट्ठा को क्रोध भरी नजरों से देखने लगी।

पुट्ठा, “माफ़ कीजिएगा बहनजी।”

शर्मिली, “बहनजी..? ये क्या कह रहे हो तुम?”

पुट्ठा, “अरे! आपको बहनजी नहीं कहूँ तो और क्या कहूँ? मैं तो सिर्फ आपको ये बताने के लिए आया था कि आपके घर का दरवाजा खुला हुआ था। मुझे लगा शायद घर में कोई मौजूद नहीं है।”

इतना कहकर पुट्ठा वहाँ से चला गया और शर्मीली अपने दोनों हाथों से अपना सिर पीटने लगी।

पुट्ठा सीधा बाजार गया। अचानक पुट्ठा की नजर गाँव के मुखिया और जग्गी पर पड़ी। पुट्ठा सीधा गाँव के मुखिया के पास चला गया।

पुट्ठा, “क्या हाल है मुखिया जी? मुझे आपसे जरूरी बात करनी है।”

मुखिया, “अरे! लगता है इस भुक्कड़ की याददाश्त इस समय सही है, इसीलिए मुखिया कहकर संबोधित कर रहा है।”

मुखिया, “क्या बात है पुट्ठा? आज तू बड़ा चिंता में नजर आ रहा है।”

पुट्ठा, “बात ये है मुखिया जी, आप तो जानते हैं कि जब से मुझे बिरजू चोर ने मूर्ख बनाया ना, तब से मेरी जिंदगी खराब हो गई है।”

मुखिया, “अरे पुट्ठा! तू ये बात कब समझेगा कि बिरजू ने तुझे मूर्ख नहीं बनाया? बल्कि तेरी भूलने की आदत ने तेरी जिंदगी को हराम कर रखा है रे।

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अरे! बेचारा बिरजू चोर तो पर्स लेकर भाग रहा था, तुझे क्या जरूरत थी बिरजू चोर का पीछा करने की?

ऊपर से जब पुलिस वाले ने तुझे पकड़ कर बिरजू चोर का पता पूछा, तो तू भूल गया और तुने पुलिस वाले के ही गाल पर ये ज़ोर से चांटा जड़ दिया रे।”

तभी मुखिया के बगल में खड़ा हुआ जग्गी मुखिया के कान में धीमे से बोला,

जग्गी, “मुखिया जी, पुट्ठा को समझाने मत बैठिए, कहीं ये फिर से भूल गया तो हम दोनों के लेने के देने पड़ जाएंगे।

आप तो जानते हैं ना पुट्ठा का गुस्सा? उसके गुस्से के आगे कोई नहीं टिक पाता, मुखिया जी।”

मुखिया, “तुम सही कह रहे हो, जग्गी।”

इतना बोलकर मुखिया पुट्ठा से बोला।

मुखिया, “अच्छा… मैं चलता हूँ।”

इतना कहकर मुखिया ने प्यार से पुट्ठा का सर सहला दिया और मुखिया यही भूल कर बैठा।

पुट्ठा दोबारा सब कुछ भूल गया। पुट्ठा मुखिया और जग्गी को गौर से देखने लगा।

मुखिया, “क्या हुआ पुट्ठा? तुम मुझे इतनी गौर से क्यों देख रहे हो?”

अचानक पुट्ठा ने एक जोरदार चांटा मुखिया के गाल पर जढ़ दिया।

पुट्ठा, “मुझे मूर्ख समझा है क्या तूने बिरजू? तुझे क्या लगा, तू मेरी आँखों के सामने से दोबारा बच कर भाग जाएगा?

आज तो तेरी खैर नहीं रे। मैं तुझे घसीटता हुआ पुलिस थाने में ले जाऊंगा।”

जग्गी, “अरे! मुखिया जी, ये क्या किया आपने? एक तो इस भुलक्कड़ की याददाश्त कब चली जाती है, कुछ भी पता नहीं रहता?

ऊपर से आपने इसके सर पर हाथ फेर दिया। अरे अरे अरे! एक तो इसका छोटा मगज है। अब तो आपको ईश्वर ही बचा सकता है।”

तभी पुट्ठा जग्गी की ओर देख कर बोला, “थानेदार साहब, यही है वो बिरजू चोर जो पर्स चुरा कर भाग रहा था। इसे गिरफ्तार कर लीजिए।”

जग्गी, “अबे भुलक्कड़ आदमी! मेरी समझ में ये नहीं आता कि तू इस गांव में पैदा ही क्यों हुआ रे?

अबे! जिस बिरजू चोर की तू चोरी की बात कर रहा है ना, उस घटना को तो एक साल हो गया है।

लेकिन तू सब कुछ भूल जाता है, बस यही बात नहीं भूलता। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि तू बस नौटंकी करता है।”

पुट्ठा, “क्या बकवास कर रहे हो तुम? क्या तुम थानेदार नहीं हो?”

जग्गी, “अरे नहीं रे! मैं थानेदार नहीं हूँ।”

पुट्ठा, “तो फिर मुझे थाने तक ले चलो, बता रहा हूँ। नहीं तो मैं तुम्हारा भी ना मार-मार कर बुरा हाल कर दूंगा, बता रहा हूँ।”

जग्गी, “अरे ठीक है महाराज ठीक है, चलिए मेरे साथ। मैं आपको थाने तक छोड़ता हूँ, चलिए।”

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जग्गी की बात पर मुखिया जग्गी से बोला, “अबे मूर्ख खादमी, ये क्या कर रहा है तू? मुझे बचाने की बजाय तू उसे थाने का पता बता रहा है?”

जग्गी, “मुखिया जी, आपकी भलाई के लिए कर रहा हूँ। इस भुलक्कड़ की याददाश्त कभी-कभी तो दो मिनट में वापस आ जाती है

और कभी-कभी दो दिन तक वापस नहीं आती। हो सकता है पुलिस वाले आपको इससे छुड़ा लें।”

मुखिया वहाँ से भागने ही वाला था कि तभी पुट्ठा ने मुखिया को दबोच लिया।

पुट्ठा, “भागता कहाँ है बिरजू? आज तो मैं तुझे स्वयं सलाखों के अंदर बंद कर दूंगा। चलो शर्मिली।”

जग्गी, “शर्मिली…? कौन शर्मिली बे?”

पुट्ठा, “अरे तुम्हारा नाम शर्मिली है। मैं तुमसे बात कर रहा हूँ। क्या तुम शर्मिली नहीं हो?”

जग्गी, “लगता है आज इसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो चुका है। इसे पुरुष और स्त्री में अंतर ही नज़र नहीं आ रहा है। इसे थाने ले जाने में ही भलाई है।”

जग्गी पुठा की ओर देखकर बोला, “श्रीमान पुट्ठा जी, चलिए मैं आपको थाने ले चलता हूँ।”

कुछ ही देर में पुट्ठा मुखिया को लेकर थाने के अंदर थानेदार के सामने खड़ा हुआ था।

मुखिया को देखकर थानेदार कुर्सी से उठकर हाथ जोड़ता हुआ बोला, “नमस्ते मुखिया जी, आपको यहाँ आने की क्या आवश्यकता थी?

आप मुझे बता देते, मैं स्वयं आपके घर आ जाता। और आपको इसने पकड़ क्यों रखा है?”

मुखिया, “अरे! वो सब छोड़ो थानेदार साहब, पहले मुझे इस भुलक्कड़ से बचाओ, भाई।”

थानेदार क्रोधित होकर पुट्ठा की ओर देखते हुए बोला, “छोड़ दे मुखिया को। अरे! तुमने मुखिया जी को क्यों पकड़ रखा है?”

पुट्ठा, “थानेदार साहब, ये वही बिरजू है जो पर्स चुरा के भाग रहा था और मैं इसका पीछा कर रहा था।

आपने मुझे पकड़ लिया था। मैं उस वक्त भूल गया था। अब मुझे सब कुछ याद आ गया। इसे गिरफ्तार करके जेल में डाल ही दीजिए।”

थानेदार, “अरे! तेरा दिमाग तो सही है? अरे! तू मुझे कौन सा थानेदार समझ रहा है, भाई?”

मुखिया, “अरे थानेदार साहब! ये आपको पुराना वाला थानेदार समझ रहा है, जिनकी पोस्टिंग आपसे पहले थी।”

थानेदार, “अरे! मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर यहाँ सब कुछ क्या हो रहा है? आखिर ये क्या चल रहा है भाई मेरे थाने में?”

जग्गी, जो काफी देर से चुप था, एक ही सांस में उसने थानेदार को पुट्ठा के भूलने की आदत बता दी।

थानेदार, “अच्छा, तो ये बात है। अरे! तो इसे किसी पागल खाने में भर्ती कराओ। इस तरह की भूलने की बीमारी तो मैंने सिर्फ ‘गजनी’ फिल्म में देखी थी।

वास्तविकता में भी ऐसा ही होता है क्या? अरे! कहीं इसके सर पर किसी ने रॉड तो नहीं मारी थी?”

जग्गी, “थानेदार साहब, पुठा का भी यही कहना है कि जब ये 15 साल का था, तब कुछ लड़के किसी लड़की को छेड़ रहे थे।

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इसने बचाने की कोशिश की, तो एक लड़के ने इसके सर पर रॉड मार दी। तब से इसे ऐसी भूलने की बीमारी हो गई है।”

थानेदार, “क्या..? अरे! क्या तुम सच बोल रहे हो?”

इतना कहकर थानेदार पुट्ठा की ओर देखकर बोला, “अरे! मैं तुम्हें आखिरी चेतावनी देता हूँ, मुखिया जी को छोड़ दे।”

मगर थानेदार की बात का पुठा पर कोई असर नहीं पड़ा। थानेदार ने एक जोरदार चांटा पुट्ठा के सर पर दे मारा।

चांटा पड़ते ही पुट्ठा की याददाश्त दोबारा वापस आ गई, मगर आंधी अधूरी।

पुट्ठा, “शर्मिली, मुझे क्षमा कर दो। मैंने तुम्हारा गला पकड़ा। तुम तो जानती हो कि मुझे भूलने की बीमारी है और मैं स्वयं इस बीमारी से परेशान हूँ।”

थानेदार, “अरे! ये क्या बकवास कर रहे हो तुम? कौन शर्मीली?”

पुट्ठा, “तुम ही तो मेरी शर्मीली हो, मेरी पत्नी।”

पुट्ठा की बात सुनकर थानेदार का खून और खौल उठा। वह तुरंत रिवॉल्वर निकाल कर मुखिया की ओर देखते हुए बोला, “अरे! इसे यहाँ से ले जाओ मुखिया जी

और इससे पहले कि मैं अपनी पिस्तौल की सारी गोलियाँ इसके सीने पे चला दूँ, ले जाओ इसे यहाँ से।”

थानेदार, “अरे अरे! बाहर से मुझे दो डिस्प्रिन की गोली ला कर दो भाई। अरे! मेरा सर दर्द के मारे फटा जा रहा है।

अरे! मेरी समझ में नहीं आता की तुम इस गजनी को झेलते कैसे हो भाई? अरे! इसे किसी पागल खाने में भर्ती कराओ।

अरे अरे! वरना ये किसी दिन अपरिचित बन जाएगा भाई और सबका जीनाहराम कर देगा।”

मुखिया पुठा को लेकर उसके घर पहुँच गया।

शर्मिली, “नमस्ते मुखिया जी, ये आपके साथ क्या कर रहे हैं?”

मुखिया, “शर्मिली, अरे! तुम्हारे पति ने सबसे पहले तो मुझे पीटा और मुझे पकड़ कर थाने ले गया।

और तो और, इसने दो मिनट में थानेदार का पूरी तरह से दिमाग खराब कर दिया।

थानेदार ने तो क्रोधित होकर रिवॉल्वर भी निकाल ली थी, भाई। वो तो अच्छा हुआ कि मैं इसे यहाँ पर ले आया।”

शर्मिली, “अरे! तो यहाँ पर क्यों ले आए? थानेदार से बोल देते कि सारी की सारी गोलियाँ इनके ऊपर चला देते,

तब जाकर मुझे खबर सुनाते कि तुम्हारे पति को थाने में गोलियों से छलनी कर दिया। मुखिया जी, मैं सारी गांव में लड्डू बाँटती।”

मुखिया, “कैसी पत्नी हो तुम? तुम्हें शर्म आनी चाहिए भैया, ऐसी बातें करते हुए। अरे! पुट्ठा जैसा भी है, तुम्हारा पति है, सुहाग है तुम्हारा।

और तुम अपने पति के बारे में ऐसी उल्टी-सीधी बातें कर रही हो, बताओ?”

मुखिया ने इतना कहा ही था कि तभी पुट्ठा ने एक जोरदार चांटा मुखिया के गाल पर जड़ दिया।

पुट्ठा, “तुझे शर्म नहीं आती अपनी पत्नी से इतने बुरे अंदाज में बात करते हुए?”

मुखिया, “ये क्या बकवास कर रहे हो तुम पुट्ठा? अरे! ये तुम्हारी पत्नी है भैया, मेरी नहीं।”

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पुट्ठा ने दोबारा मुखिया के गाल पर चांटा जड़ दिया।

पुट्ठा, “मूर्ख आदमी, तुझे अपनी जुबान से ये अल्फाज़ कहते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आई? अरे! मैं तो एक सन्यासी हूँ, एक साधु हूँ।

मैं आजीवन अविवाहित रहने का प्रण ले चुका हूँ। और तू… तू अपनी पत्नी को मेरी पत्नी बता रहा है, निर्लज्ज।”

पुठा की बात सुनकर शर्मिली का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

शर्मिली, “हे भगवान! आज इन्हें क्या हो गया है? इससे पहले कभी इतना खतरनाक भूलने का दौरा नहीं पड़ा इन्हें।”

इतना कहकर शर्मिली ने पुट्ठा के सर पर कस के घूंसा मारा। घूंसा पड़ते ही पुट्ठा की याददाश्त फिर से वापस आ गई।

पुट्ठा, “शर्मिली, तुम मुझे इतना क्रोध से क्यों देख रही हो?”

पुट्ठा, “अरे मुखिया जी! आप…?”

पुट्ठा, “शर्मिली, क्या तुमने मुखिया जी को चाय पिलाई या नहीं?”

मुखिया, “ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है, भैया कि तुम्हारी याददाश्त वापस आ गई, भैया।”

तभी वहाँ पुट्ठा के चाचा, हुकुम सिंह आ गए। हुकुम सिंह दूसरे गांव के सरपंच थे।

हुकुम सिंह, “कैसी हो बहू? आज बड़े सालों बाद मुझे अपने भतीजे की याद आ गई, सोचा कि इससे मिलने चला आऊँ।”

शर्मिली, “अरे चाचा जी! अपने भतीजे को अपने साथ ही क्यों नहीं ले जाते? आज तो आपको मुझे ये बताना ही पड़ेगा कि इन्हें भूलने की बीमारी कैसे लगी?”

मुखिया, “शर्मिली सही कह रही है। ये पुठा हमेशा यही बताता है कि जब वो पंद्रह बरस का था, तब कुछ लड़के लड़कियों को छेड़ रहे थे और पुट्ठा उन्हें बचा रहा था।

और एक लड़के ने जो है, लोहे की रॉड इसके सर पे दे मारी। तब से इसकी याददाश्त अचानक से चली जाती है।

लेकिन चाचा जी, पुठा के सर पर तो चोट के निशान तक नहीं हैं, बताइए?”

मुखिया की बात सुनकर सरपंच ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए बोले, “अरे मुखिया जी! झूठ बोलता है ये, मेरा भतीजा जो है।

बात असल में ये है कि जब ये पंद्रह साल का था, तब ये एक लड़की को पसंद करता था।

मगर ये नहीं जानता था कि वो लड़की पहले से शादीशुदा थी और एक पांच वर्षीय पुत्री की माँ भी थी।

ये मूर्ख अपने प्यार का इज़हार करने उस स्त्री के पास पहुँच गया। उस समय वो स्त्री अपनी बच्ची के लिए एक गुब्बारा खरीद रही थी।

इसकी बात सुनते ही वो गुस्से से आग-बबूला हो गई और उसने क्रोधित होकर वो गुब्बारा इसके सर पर मार दिया जोर से।

तब से ये बेचारा ऐसा हो गया। और हाँ, आज पहली जनवरी है। सर्दी ज्यादा है।

आज के दिन इसे भूलने के दौरे ज्यादा पड़ते हैं। आगे से ध्यान रखना बहू, 1 जनवरी को इसे घर पर बंद करके ही रखना।”

शर्मिली, “अच्छा, तो असली बात ये है। इनकी ये हालत किसी लोहे की रॉड ने नहीं बल्कि गुब्बारे ने की है। और जनाब इश्क फरमाने गए थे।”

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मुखिया, “शर्मिली, ज्यादा बातें मत करो। इसे रस्सी से बाँध दो, नहीं तो ये फिर भूल जाएगा।

और आगे से याद रखना भैया, पहली जनवरी को इसे बाँध कर ही रखना है, अच्छा?”

हुकुम सिंह, “नहीं शर्मिली, उसकी कोई आवश्यकता नहीं। मैं नींद की गोलियाँ लेकर आया हूँ।

दूध में इसे नींद की गोली खिला दो, सुबह तक ये ठीक हो जाएगा।”

सरपंच के कहने पर शर्मिली ने ऐसा ही किया और पुट्ठा गहरी नींद में सो गया।

सुबह सरपंच ने शर्मिली से कहा, “बहू, जाकर पुट्ठा को उठाओ। मेरा विश्वास है कि वो अब तक सही हो चुका होगा।”

सरपंच के कहने पर शर्मिली पुट्ठा को जगाने लगी।

शर्मिली, “अजी सुनते हो? सुबह हो चुकी है, उठना नहीं है क्या?”

शर्मिली की आवाज़ सुनकर पुट्ठा उठकर शर्मिली और सरपंच को गौर से देखने लगा।

शर्मिली, “अजी, ऐसे क्या देख रहे हो?”

पुट्ठा, “कैसी हो, नंदिनी? मैं तुम्हें कब से ये बोलने के लिए तड़प रहा हूँ कि मैं तुमसे सच्चा प्रेम करता हूँ, नंदिनी?”

शर्मिली, “क्या बकवास कर रहे हो तुम?”

हुकुम सिंह, “अरे! लगता है ये उस नंदिनी की बात कर रहा है जिसने इसके सर पर गुब्बारा मारा था।”

पुट्ठा सरपंच की ओर देख कर बोला, “अरे! तुम तो नंदिनी के पति हो? तुम्हारी वजह से नंदिनी ने मेरे सर पर गुब्बारा मारा था, याद आ गया मुझे।”

इतना कहकर पुट्ठा उठकर खड़ा हो गया और अपने चाचा पर मुक्कों की बौछार कर दी। शर्मिली ने पुट्ठा का हाथ पकड़ लिया।

शर्मिली, “ये क्या कर रहे हो आप? आपको शर्म नहीं आती अपने चाचा को मारते हुए?”

पुट्ठा, “मुझे छोड़ दो, मुखिया जी। ये नंदिनी का पति है। इसी की वजह से नंदिनी ने मेरे सर पर गुब्बारा मारा था।”

शर्मिली, “अरे! मैं मुखिया नहीं, तुम्हारी पत्नी हूँ।”

हुकुम सिंह, “अरे-अरे-अरे! इसे कुछ दिनों के लिए बांध दो बहू, मैं जा रहा हूँ और अब कुछ साल बाद ही आऊँगा। तुम ही झेलो।”

सरपंच वहाँ से बोरिया-बिस्तर उठाकर भाग गया और शर्मिली अपना सिर पकड़कर बैठ गई।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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