हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भैंस चोर ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
हवलदार बहादुर अपनी कुर्सी पर खर्राटे ले रहा था। तभी वहाँ इंस्पेक्टर धाकड़ सिंह भी आ जाता है और उसे देखकर कहता है, “ये देखो, यहाँ कानून के रखवाले अभी तक सो रहे हैं।”
इसके बाद हवलदार बहादुर के गले में टंगी हुई सीटी को लेकर उसके कान में ज़ोर से बजाता है।
सीटी की आवाज सुनकर हवलदार बहादुर चौंककर बोलता है, “हवलदार बहादुर रिपोर्टिंग, सर!”
धाकड़ सिंह कहता है, “ऐसे रिपोर्ट कर रहे हो तुम, खर्राटे ले ले लेकर?”
बहादुर”अरे सर! अब आपको क्या बताऊँ? कल रात को जब मैं घर जा रहा था, तो मेरे पीछे दो कुत्ते पड़ गए।
बस, मैं ही जानता हूँ कि मैं घर कैसे पहुंचा और घर पहुँचने के बाद उस खतरनाक मंजर से मुझे रात भर नींद नहीं आई?”
धाकड़ सिंह, “रे क्या बहादुर! रे तुम हवलदार होकर कुत्तों से डरते हो?”
हवलदार बहादुर, “अब क्या करूँ, सर? दिल तो बच्चा है जी, डर लगता है तो लगता है जी।”
धाकड़ सिंह हंसते हुए कुर्सी पर बैठ जाता है। तभी पुट्ठा पुलिस स्टेशन में आता है और कहता है, “इंस्पेक्टर साहब… इंस्पेक्टर साहब!”
बहादुर, “अरे भाई! क्या हुआ? ऐसे झुमरों की तरह क्यों दौड़ रहे हो?”
पुट्ठा, “वो मेरी गौरी… वो गौरी कल से गायब है, दूध निकालकर। मुझे उसकी गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखवानी है।”
धाकड़ सिंह, “तुम हवलदार बहादुर के पास एफआईआर लिखवा दो, हम जल्द से जल्द तुम्हारी गौरी को ढूंढने की कोशिश करेंगे। लेकिन हर बात के बाद ये ‘दूध निकालना’ जरूरी है क्या?”
पुट्ठा, “वो तो मेरा तकिया कलाम है, साहब, ‘दूध निकालकर’।”
बहादुर, “हाँ तो बताइए, आपकी गौरी कब से गायब है?”
पुट्ठा, “कल तो मैं उसे देखकर ही सोया था, दूध निकालकर। और आज सुबह उठकर देखा तो वो घर पर नहीं थी, दूध निकालकर। मैंने उसे पूरे गांव में छान मारा, पर वो मुझे कहीं नहीं मिली।”
बहादुर, “अच्छा… तो तुम इतनी रात को दूध निकालते हो? बरखुरदार, थोड़ी जल्दी ही निकाल लिया करो।
चलो अच्छा अपनी बीवी की तस्वीर रखकर जाओ, जब मिल जाएगी तब तुम्हें खबर कर दी जाएगी।”
पुट्ठा, “क्यों..? अपनी बीवी की तस्वीर मैं क्यों लेकर घूमूंगा भला? और वैसे भी अगर वो खो जाए तो मैं ₹101 का प्रसाद चढ़ाऊंगा।
पर मनहूस कहीं गायब ही नहीं होती है। मैंने तो कितनी बार उसे कहा है कि मुझे छोड़कर चली जा और वो है कि मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती है।”
बहादुर, “क्या मतलब है तुम्हारा? तो फिर तुम रिपोर्ट किसके गुमशुदा होने की लिखवा रहे हो?”
पुट्ठा, “साहब, मेरी गौरी तो मेरी जान है, मेरी रातों की नींद है, मेरे दिल का सुकून है। ये लीजिए उसकी फोटो, आप बस जल्दी से उसे ढूंढ दीजिए।
उसकी आवाज सुने बिना तो मेरा दिल कहीं लगता ही नहीं और उसके अलावा किसी और की आवाज भी मेरे कानों में जाती ही नहीं।”
बहादुर, “अच्छा बच्चू, मतलब दिल का मामला है।”
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पुट्ठा शर्मा जाता है और हवलदार गौरी की तस्वीर देखकर चौंक जाता है। और कुर्सी से लड़खड़ा कर गिर जाता है।
उठकर अपनी टोपी संभालता है और कहता है, “बेवकूफ, तुझे क्या हम यहाँ नल्ले बैठे हुए दिख रहे हैं?
हम दिन भर यहाँ बैठकर मजाक करते हैं क्या? निकल जा, अभी निकल जा इस पुलिस स्टेशन से।”
धाकड़ सिंह, “अरे बहादुर! अरे क्या हुआ? अरे! इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो भाई?”
बहादुर, “गुस्सा… आप पूछ रहे हैं कि मैं गुस्सा क्यों हो रहा हूँ? ये देखिए इसकी गौरी की तस्वीर।”
धाकड़ सिंह, “हा हा हा… अरे! ये गौरी तो कितनी काली निकली भई?”
पुट्ठा, “सर, आप ही मेरी आखरी उम्मीद हो। मेरी गौरी को ढूंढ दीजिए।”
बहादुर, “अरे! भाग, ये पुलिस स्टेशन है कोई तबेला नहीं। बस यही दिन देखना बचा था कि हम एक भैंस को ढूंढने के लिए अपना वक्त बर्बाद करेंगे।”
पुट्ठा, “ऐ हवलदार! गौरी… गौरी नाम है उसका। औरतों की इज्जत भी करनी नहीं आती क्या?”
बहादुर, “औरत? अबे औरत नहीं, भैंस है। कोई भैंस की गुमशुदी की रिपोर्ट लिखवाता है? भाग यहाँ से।”
धाकड़ सिंह, “आजकल के लोग भी भैंस की रिपोर्ट लिखवाने आ जाते हैं, बेवकूफ इंसान…। मुझे तो लगता कि उसकी बीवी का नाम होगा गौरी।
वैसे भैंस से याद आया, आज की चाय नहीं आई। इतनी देर क्यों हो गई आज? बहादुर, एक कप चाय के लिए बोलना।”
बहादुर, “ठीक है सर, मैं ही चाय लेकर आता हूँ।”
बहादुर पास वाली चाय की दुकान पर चाय लेने के लिए चला जाता है।
बहादुर, “अरे नंदू! आज चाय आने में इतनी देर लग गई, क्या बात है?”
नंदू, “अरे! क्या बताऊँ सर, मेरी भैंस चोरी हो गई। उसी को ढूंढने में वक्त लग गया। थोड़ा दूध बचा है, बस उसी की चाय बनाकर दे रहा हूँ आपके लिए।”
बहादुर, “भैंस चोरी हो गई?”
तब तक चायवाला नंदू हवलदार को चाय बनाकर दे देता है और हवलदार स्टेशन की तरफ चला जाता है।
धाकड़ सिंह, “रे आजकल जग्गा बहुत शांत है। लगता है पिछली बार बेइज्जती की वजह से गाँव छोड़कर चला गया है।
चलो अच्छा है, कम से कम गाँव के लोग थोड़ी शांति से तो जी रहे हैं। अरे! ये बहादुर कब आएगा? आज तो सुबह से चाय भी नसीब नहीं हुई।”
तभी हवलदार बहादुर चाय लेकर आता है। दरवाजे के सामने कुत्ते को देखकर डरकर इधर-उधर भागने लगता है।
बहादुर, “सर मुझे बचाइए, इस कुत्ते से बचाइए।”
बहादुर गिरते हुए कप को पकड़ लेता है। तभी पुट्ठा और गाँव के कुछ लोग पुलिस स्टेशन में आ जाते हैं।
पुट्ठा, “अरे ओ हवलदार बहादुर!”
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पुट्ठा की आवाज सुनकर बची हुई चाय भी गिर जाती है।
बहादुर, “अरे! ये पुट्ठा इतने गुस्से में और इतने सारे लोगों को लेकर फिर से क्यों आ गया?”
डर के मारे हवलदार बहादुर धाकड़ सिंह के पीछे छुप जाता है।
धाकड़ सिंह, “अरे! क्या हुआ? आप सब बहुत परेशान लग रहे हैं।”
आदमी, “इंस्पेक्टर साहब, हमारी भैंस चोरी हो गई है।”
धाकड़ सिंह, “क्या… भैंस चोरी हो गई है?”
बहादुर,” मतलब आपको चाय नहीं मिलेगी?”
पुट्ठा, “यहां हमारी सब की भैंसें चोरी हो गई हैं और तुम्हें अभी भी चाय की पड़ी है?”
धाकड़ सिंह, “मैं कसम खाता हूँ इस गिरी हुई चाय की, जब तक मैं उन चोरों को नहीं पकड़ लेता तब तक मैं चाय नहीं पीऊंगा। और मैंने कमिटमेंट कर दी तो बस कर दी।”
आदमी, “अरे! जब भैंसिया हैं ही नहीं, तो क्या बकरी के दूध की चाय पियोगे?”
धाकड़ सिंह, “अरे! आप फिक्र मत कीजिए, मैं उस चोर को जल्दी ढूंढकर लाऊंगा।”
बहादुर, “चलो चलो, अब अपने-अपने घर चलो।”
धाकड़ सिंह, “बहादुर, एक काम करो। हमारी पूरी पुलिस फोर्स को गांव के आसपास के इलाके में भेजो और पता लगाओ कि भैंसे कहाँ हैं? और जैसे ही कुछ खबर मिले, हमें तुरंत इन्फॉर्म करना।”
बहादुर, “ठीक है, सर।”
धाकड़ सिंह अपनी कुर्सी पर बैठकर सोचने लगता है।
धाकड़ सिंह, “तुम्हें क्या लगता है, बहादुर? ये कौन हो सकता है, जो इतनी बड़ी चोरी करने की हिम्मत रखता हो?”
बहादुर, “सर, कहीं ये जग्गा तो नहीं?”
तभी एक पत्थर से लपेटा हुआ कागज़ धाकड़ सिंह की टेबल पर आ गिरता है। उसे उठाकर…
बहादुर (पढ़ते हुए), “धाकड़ सिंह, तुम्हें अभी तक तो खबर मिल ही गई होगी कि तुम्हारे गांव की सारी भैंसे चोरी हो गई हैं।
अगर भैंसें चाहते हो, तो गांव के पास वाली पहाड़ी पर जो सबसे ऊंचा पेड़ है, उसके नीचे कल तक ₹50,000 रख देना।
दूसरे दिन तुम्हें तुम्हारी सारी भैंसें मिल जाएंगी। तुम्हारा पुराना दुश्मन, जग्गा।”
धाकड़ सिंह, “रे बहादुर! रे सारे गांव वालों को इकट्ठा करो।”
बहादुर, “ठीक है, सर।”
कुछ देर बाद सभी गांव वाले इकट्ठे हो जाते हैं।
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आदमी, “क्या बात है साहब, आपने अचानक हमें याद किया? कोई बात है क्या?”
धाकड़ सिंह बहादुर की तरफ इशारा करता है।
बहादुर, “आप सभी के भैंसों को जग्गा ने किडनैप कर लिया गया है।”
पुट्ठा, “क्या..? जग्गा ने किडनैप कर लिया? पर वो नासमिटा हमारी भैंसों को किडनैप करके क्या तबेला खोलेगा?”
बहादुर, “अरे! पूरी बात तो सुनो। उसने भैंसों को छोड़ने के लिए ₹50,000 की फिरौती मांगी है।”
आदमी, “क्या… ₹50,000? हम सभी लोग मिलकर भी इतने पैसे इकट्ठे करें तब भी हम ₹50,000 जमा नहीं कर पाएंगे।”
पुट्ठा, “मतलब अब मुझे मेरी गौरी के बिना ही रहना पड़ेगा? नहीं नहीं, ये नहीं हो सकता। मैं अपनी गौरी, अपनी जीवन साथी के बिना नहीं रह सकता।”
बहादुर, “पर अभी सवाल ये है कि उसने हमारी भैंसों को रखा कहाँ होगा।”
धाकड़ सिंह, “उसने कल तक गाँव के पास वाली पहाड़ी पर जो सबसे ऊंचा पेड़ है, वहाँ पर फिरौती की रकम मंगवाई है।
पर अब सोचना यह है कि हम इतने सारे पैसे इकट्ठे कैसे करेंगे और वो भी आज के आज ही?”
पुट्ठा, “अगर हमारी सारी जमीन भी बेच दें तब भी इतने पैसे आज के आज जमा नहीं कर सकेंगे।”
बहादुर, “सर, हमने जब पहाड़ी के आसपास छानबीन की तो वहाँ हमें बहुत सी भैसों की आवाज आ रही थी। तो हो ना हो, जग्गा ने इन्हें वहीं किडनैप करके रखी हुई हैं।
सर, आप कहें तो मैं सारी पुलिस फोर्स बुलाकर उस पर हमला करवा दूं?”
धाकड़ सिंह, “अरे! अगर हमने हमला किया तो भैंसों को भी चोट लग सकती है। हमें कुछ और सोचना होगा।”
बहादुर, “मेरे पास एक तरकीब है।”
फिर वह सभी को अपनी तरकीब बताता है और सब खुश हो जाते हैं।
जंगल में गांव के दो आदमी लोटे के साथ बैठकर बातें कर रहे थे।
पहला आदमी, “अरे! तुझे पता है? कल मेरे घर यमराज आए थे।”
दूसरा आदमी, “क्या, यमराज? क्या बात कर रहा है?”
पहला आदमी, “अरे हाँ, सच में। और वह पूछ रहे थे कि तुम्हारे गांव की सभी भैंसें कहाँ हैं?”
दूसरा आदमी, “क्या..?”
पहला आदमी, “अरे हाँ। तुम्हें नहीं पता, हमारे गांव की भैंसों का दूध यमराज खुद लेने आते हैं और तो और, हमारे गांव की भैंसों की सवारी भी करते हैं।”
दूसरा आदमी, “क्या सच में? पर भाई, मुझे नहीं पता। क्योंकि मैं तो नया नया आया हूँ ना।”
जग्गा का आदमी उन दोनों की बातें सुन लेता है। दूसरी तरफ पहाड़ी पर…
जग्गा, “अरे! इन भैंसों ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है और ऊपर से ये गोबर की बदबू, मैं तो इससे परेशानी में हो गया हूँ। पता नहीं ये गांव वाले मेरी फिरौती की रकम कब देंगे?”
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तभी जग्गा का एक आदमी दौड़कर आता है।
आदमी, “जग्गा दादा, एक खबर लेकर आया हूँ। आपको पता है मैंने जंगल में दो आदमियों को बातें करते सुना कि इन भैंसों का दूध यमराज के दूत लेने आते हैं और तो और यमराज खुद इन भैंसों की सवारी करते हैं।”
जग्गा, “क्या..? हा हा हा… तुम तो जितने दिखते हो, उससे भी ज्यादा बेवकूफ निकले। यमराज पूरी दुनिया की भैंसों को छोड़कर जमुनापुरी की भैंसों पर सवारी करेंगे?”
दूसरी तरफ…
धाकड़ सिंह, “रे पुट्ठा! तुम तैयार हो?”
पुट्ठा, “अरे साहब! आप किसी और को भेज दो वहाँ पर। मैं ही क्यूं..? वो डाकू बहुत खतरनाक हैं।”
धाकड़ सिंह, “अरे नहीं, तुम्हारे अलावा ये काम और कोई नहीं कर सकता।”
बहादुर, “पुट्ठा, तुम्हें तुम्हारी गौरी की कसम है।”
पुट्ठा, “क्या… गौरी की कसम? तुमने मुझे गौरी की कसम दे दी? अब तो मुझे जाना ही होगा, मेरी गौरी के लिए। गौरी, मैं आ रहा हूँ तुम्हें लेने। साहब, आप सारी तैयारी करके रखना।”
रात को सभी गांव वाले जग्गा के अड्डे पर छुप-छुपकर पहुँच जाते हैं।
बहादुर, “पुट्ठा, तुम इन सभी भैसों में से अपनी गौरी को कैसे पहचानोगे?”
पुट्ठा, “अरे साहब! पहचानना क्या है? वो देखो, वो रही सामने मेरी गौरी।”
बहादुर, “अरे वाह! बहुत पुराना याराना लगता है।”
पुट्ठा, “गौरी… अरे ओ गौरी!”
पुट्ठा को देखकर गौरी उसके पास आ जाती है। पुट्ठा यमराज के भेष में गौरी के ऊपर बैठ जाता है।
पुट्ठा, “आप सब तैयार हैं ना?”
धाकड़ सिंह, “हाँ हाँ, तैयार हैं। अब तुम जाओ।”
जग्गा और उसके आदमी बैठकर शराब पी रहे थे।
जग्गा का आदमी, “यमराज..?”
जग्गा, “हा हा हा… लगता है तूने आज कुछ ज्यादा ही पी ली है भैया।”
आदमी, “देख बेवकूफ, वो रहा यमराज। मैं तुम्हें नहीं कह रहा था कि वो लोग सच कह रहे हैं।”
यमराज, “तुम सब में से जग्गा कौन है?”
जग्गा, “अरे यमराज जी! आप मुझे कैसे जानते हैं? यमपुरी के न्यूज़पेपर में भी मेरा फोटो छपा है क्या?”
यमराज, “मैं सबको बिना फोटो के भी पहचानता हूँ। मेरे असिस्टेंट चित्रगुप्त के पास सबकी फोटो और कर्म लिखे हुए हैं।
आज वो ज़रा छुट्टी पर है, इसलिए ही मुझे अकेले ही आना पड़ा। जग्गा, मैं तुमसे बहुत ही क्रोधित हूँ।”
जग्गा, “क्यों यमराज जी?”
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यमराज, “तुम्हें पता भी है, तुमने जमना पार की सभी भैंसों को चोरी करके कितनी बड़ी गलती कर दी है?”
जग्गा, “कितनी बड़ी गलती, यमराज जी?”
यमराज, “तुम्हें पता भी है, यमपुरी में किसी ने भी दो दिनों से दूध नहीं पिया है? मुझे पृथ्वी पर आने के लिए भी कितनी प्रॉब्लम होती है? सजा मिलेगी, तुम्हें इस सबकी सजा मिलेगी।”
जग्गा, “माफ कर दो यमराज जी, माफ कर दो। आपको जितना दूध चाहिए, आप यहाँ से निकाल कर ले जा सकते हैं। आप यमदूतों को कह दीजिए, जितना दूध चाहिए उतना ले जा सकते हैं।”
यमराज, “और मेरा क्या? मैं यमपुरी की इन्हीं भैंसों पर सवारी करता हूँ। तुम्हें सजा मिलेगी, बहुत ही कड़ी सजा मिलेगी।
तुम्हें तो मैं यमपुरी में ले जाकर एक हफ्ते तक भोजन नहीं दूंगा, गर्म तेल में डालूंगा।”
जग्गा, “अई… सोचकर ही अजीब हो रहा है।”
यमराज, “अबब… मतलब गर्म तेल में तुम्हारे पकौड़े तलकर समस्त यमपुरी निवासियों को खिलाऊंगा।”
जग्गा, “नहीं नहीं यमराज जी, मुझे माफ कर दीजिए। चाहे तो सारी भैंसें ले जाइए, पर मुझे छोड़ दीजिए। और इस राजू को भी ले जाओ अपने साथ।
और चाहो तो इन आदमियों को भी ले जाओ अपने साथ, पर मुझे छोड़ दो। मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ।”
यमराज, “ठीक है, इस बार तुम्हें माफ करता हूँ। पर वादा करो कि आगे कोई गलत काम नहीं करोगे और अपने आप को पुलिस के हवाले कर दोगे।”
जग्गा, “ठीक है यमराज जी, मैं आपसे वादा करता हूँ। मैं आगे से कभी किसी को परेशान नहीं करूँगा और खुद को पुलिस के हवाले भी कर दूंगा।”
पुट्ठा सभी भैंसों को अपने साथ ले जाता है।
धाकड़ सिंह, “वाह पुट्ठा! क्या एक्टिंग की है। तुम्हारे आगे तो असली यमराज भी नहीं टिक पाएंगे। रे चलो अब, जग्गा और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लें।”
धाकड़ सिंह, “जग्गा, अब तुम हमारे हाथों से नहीं बच सकते।”
इसके बाद वहाँ इंस्पेक्टर धाकड़ सिंह और हवलदार बहादुर के साथ पूरी पुलिस फोर्स आ जाती है और जग्गा और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लेती है।
बहादुर, “भैंसे चुराएगा..? ₹50,000 चाहिए? ये ले ₹50,000, ये ले।”
और सबको डंडे से मार मार कर स्टेशन ले जाते हैं।
दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!