चतुर किसान और राजा | Chatur Kisan Aur Raja | Hindi Kahani | Achhi Achhi Kahani | Hindi Moral Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चतुर किसान और राजा ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


चुनारगढ़ राज्य में एक किसान रतन रहता था, उसके दो बेटे थे सुधीर और सुरेश। दोनों भाइयों का व्यवहार एक-दूसरे से एकदम विपरीत था।

सुधीर भोला-भाला और सच बोलने वाला इंसान था, वहीं सुरेश अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता था।

समय और परिस्थिति के अनुसार वह अपनी ही कही बात को झूठा साबित कर देता था। अपनी बात से ऐसे बदलता था कि गिरगिट भी शर्मा जाए।

सुधीर के भोले-भाले और सच बोलने के स्वभाव के कारण हमेशा लोग उसका मजाक उड़ाते रहते थे।

गुरुजी के पास लौटते समय,
सुधीर, “सुरेश, गुरुजी के पास झूठ क्यों बोला कि माँ बीमार थी, इसलिए तुम घर का सारा काम किया हो?”

सुरेश, “मैंने गुरुजी का घर पर दिया गया काम नहीं किया था? अगर मैं सच बोल देता तो गुरुजी से मार भी खाता और सभी बच्चे मजाक उड़ाते, सो अलग।”

सुधीर, “लेकिन इसके लिए माँ को बीमार बताना ठीक नहीं है।”

सुरेश, “अच्छा… तो सच बोलकर मार खाना ठीक है क्या?”

सुधीर, “हम वैसा काम ही नहीं करेंगे कि हमें झूठ बोलना पड़े।”

दोनों भाई अपनी-अपनी बातों को सही ठहराते हुए घर आ जाते हैं।

माँ, “आ गए बेटा, चलो खाना खा लो। उसके बाद खेत पर जाकर पिताजी को खाना और दवा पहुंचा दो।”

सुरेश, “माँ मुझे ठंड लग रही है, सुधीर को भेज दो।”

माँ, “ठीक है, तो तुम घर का सारा साफ-सफाई का काम कर दो। सुधीर खाना और दवाई लेकर चला जाएगा।”

सुधीर, “ठीक है माँ, मैं ही चला जा रहा हूँ पिताजी के पास।”

माँ, “ये ले और खाना खाकर जल्दी जा। वैद्यजी ने कहा है कि समय पर दवा देनी है।”

सुरेश खाना और दवा लेकर खेत की ओर चल देता है। रास्ते में कुछ दोस्त मिल जाते हैं और सुरेश उनके साथ खेलने लग जाता है। इधर खेत में ठंड ज्यादा पड़ रही थी।

रतन को भूख भी लगी थी, लेकिन घर से कोई खाना लेकर अभी पहुंचा नहीं था। रतन बहुत देर तक इंतजार करता है।

उसके बाद पानी पीने के लिए बगल की नदी के पास जाता है। तभी उसके दिमाग में एक झटका लगता है और उसे पैरालिसिस मार देता है।

वह वहीं गिर जाता है। थोड़ी देर बाद वहाँ सुरेश पहुंचता है।

सुरेश, “पिताजी… पिताजी, आप कहाँ हो? आपके लिए खाना और दवा लाया हूँ।”

रतन, “ऊह आ…। “

सुरेश, “पिताजी, किधर हो? बोलते क्यों नहीं? अरे, ये ऊह आ की आवाज किधर से आ रही है? पिताजी, क्या आप ही बोल रहे हैं?”

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सुरेश दौड़कर रतन के पास पहुंचता है।

सुरेश, “अरे पिताजी! आपको क्या हो गया? आपका हाथ-पैर कैसे मुड़ गए हैं? अरे! कोई बचाओ।”

सुरेश, “रामू काका, हरिया भैया दौड़कर यहाँ आओ। देखो ना पिताजी को क्या हो गया?”

खेत पर काम कर रहे सभी लोग वहाँ दौड़कर पहुंचते हैं। किसी तरह रतन को उठाकर घर लाया जाता है।

घर पर सुनीता रोने लगती है। घर में कोहराम मच जाता है। वैद्यजी आते हैं और बताते हैं कि रतन को पैरालिसिस का अटैक आया है। कुछ दवाइयां देकर वो चले जाते हैं।

अगले दिन सुबह,
माँ, “देखो बेटा, पिताजी से अब काम तो होगा नहीं। इसलिए अब खेत पर काम तुम दोनों को ही करना होगा।”

सुरेश, “भैया हमेशा पिताजी के साथ खेत पर जाते थे, इसलिए वही खेती करेंगे। मैं मंडी में अनाज बेचूँगा।”

सुधीर, “सुरेश ठीक कह रहा है माँ, मैं खेत पर चला जाऊँगा। पिताजी की दवा के लिए पैसे चाहिए।”

सुधीर, “सुरेश, कोठरी में जा, अनाज पड़े हैं और उन्हें मंडी में बेच आ।”

सुरेश, “ठीक है भैया, मैं उसको चार गुना कीमत पर बेच आऊंगा।”

सुधीर, “झूठ और बेईमानी मत करना।”

दूसरे दिन सुबह सुरेश मंडी में जाकर लालची सेठ करोड़ीमल से कहता है,
सुरेश, “सेठजी, आपके लिए ऐसा माल लाया हूँ कि आप दंग रह जाओगे।”

सेठ, “ऐसा क्या लाये हो कि इतना गुप्त से बता रहे हो?”

सुरेश, “मेरे पास तीन क्विंटल ऐसी मकई है जिसे खाकर आदमी अमर हो जाएगा। वह जिस उम्र का है, उसी उम्र में रह जाएगा।”

सेठ, “अच्छा? पर मैं विश्वास कैसे कर लूँ कि तुम्हारी मकई खाकर अमर हो जाऊँगा?”

सुरेश, “अच्छा, विश्वास नहीं हो रहा हो तो ठीक है। मैं दूसरे सेठ को इसे बेच देता हूँ। वैसे भी उस सेठ को ज्यादा जरूरत है।

वो कई दिनों से बीमार भी है। उसके रिश्तेदार तो चाहते हैं कि वह जल्दी मरे ताकि उसकी जीवन भर की संपत्ति को हड़प सकें।”

सेठ, “अरे अरे! तुम तो नाराज़ हो गए। आजकल के नौजवानों में यही एक समस्या है, बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हो। तोल-मोल तो मेरा पेशा है। कितने में दोगे ये जादुई मकई?”

सुरेश, “7 हजार मोहरें प्रति क्विंटल के हिसाब से पूरे 21 हजार मोहरे लगेंगी।”

सेठ, “क्या… 30 हजार मोहरें प्रति क्विंटल की कीमत 7 हजार मोहर?”

सुरेश, “धीरे बोलो सेठ, कोई सुन लेगा तो पीछे पड़ जाएगा। ठीक है सेठ, मैं चलता हूँ।

आपकी जान की कीमत 30 मोहर लायक ही है। दूसरे सेठ 30 हजार मोहरें आराम से दे देंगे।”

सेठ, “बेटा, तुम उत्तेजित बहुत जल्दी हो जाते हो। अब मैंने कहा थोड़ा बहुत कम कर दो।”

सुरेश, “अरे सेठ! चलो 20 हजार मोहरें लगेंगी। अगर हाँ हो तो बोलो, नहीं तो मैं अपनी बैलगाड़ी आगे बढ़ाऊँगा।”

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सेठ, “एक पल रुको भाई, मैं अपने साले से पूछ लेता हूँ।”

सुरेश, “अच्छा सेठजी, एक बात बताइए। क्या आपका बेटा आपके बाद आपका व्यापार संभाल लेगा?”

सेठ, “अरे! वही ठीक होता तो साले को बुलाता कारोबार संभालने के लिए?”

सुरेश, “यानी आपके बाद आपका साला आपके जीवन भर की पूंजी के मालिक होगा। अच्छा… तुम्हारा साला मूर्ख है क्या?”

सेठ, “क्या बकते हो? वह व्यापार को दिन-दुनी और रात-चौगुनी बढ़ा सकता है। उसे हर नपा-नुकसान का ज्ञान है।”

सुरेश,”तो वह चाहेगा कि आप अमर हो जाएँ और वह जीवन भर आपके यहाँ नौकरी करे?”

सेठ, “नहीं नहीं, कभी नहीं चाहेगा। वह तो चाहता है कि कब मैं आंख बंद करूँ और वह मेरे बेटे को बेदखल कर राज़ करें।

ऐसा करो, तुम 20 हजार मोहरें लो। मैं अपने आदमी से बोरियां उतरवा लेता हूँ। तुमने बहुत ज्ञान की बात बताई है।”

सुरेश, “अब एक ज्ञान की बात सुन लो, सेठ जी। ये मकई जादुई है, ये किसी को पता नहीं चलनी चाहिए।

नहीं तो कोई भी इसे चुरा लेगा और इसकी जगह साधारण मकई रख देगा। और हाँ, एक-एक दाना रोज़ इसमें से खाना है।”

सेठ करोड़ीमल से 210 मोहरों की मकई के बदले 20 हजार मोहरें ठगकर सुरेश वापस अपने गांव चल देता है।

इधर सुधीर अपने खेत पर हल चला रहा होता है। तभी उधर से जग्गी किसान आता है।

जग्गी, “अरे बेटा सुधीर! मैं ज़रा अपने बेटे को नानी के घर पहुंचाने जा रहा हूँ, तुम मेरा खेत जोत दो।”

सुधीर, “ठीक है काका, आप जाओ। मैं आपका खेत जोत देता हूँ।”

उधर सुरेश मंडी से लौट रहा था, तो देखा कि सुधीर जग्गी काका का खेत जोत रहा है।

सुरेश, “अरे भाई! तू यहाँ क्यों काम कर रहा है? अपने खेत का काम पूरा हो गया क्या?”

सुधीर, “नहीं भाई, वो जग्गी काका अपने बेटे को नानी घर छोड़ने गए हैं। उन्होंने कहा है कि पहले मेरा खेत जोत देना।”

सुरेश, “अरे भाई! वो तो अपना काम करने गया हुआ है और तू यहाँ अपना काम छोड़कर उसका काम कर रहा है। शाम हो गई है‌। चल बैलगाड़ी पर बैठ, घर चलते हैं।”

दोनों बैलगाड़ी पर बैठ कर घर चल देते हैं।

सुधीर, “अरे! ये बैलगाड़ी पर मिठाइयाँ और जलेबियाँ किसकी हैं? इतने सारे नये कपड़े कहाँ से आए?”

सुरेश, “अरे! इसमें मेरे, तुम्हारे, माँ और पिताजी के लिए कपड़े हैं। उस पतीले में मिठाइयाँ हैं।”

सुधीर, “तुमने अनाज बेचकर शौक के सामान खरीद लिए? इन चीजों की कोई जरूरत नहीं थी।

अभी हमारे लिए सबसे जरूरी पिताजी की दवाइयाँ और पौष्टिक खाना है।”

सुरेश, “अरे भैया! मैं दवा भी लाया हूँ। वैद्यजी के घर होते हुए आया हूँ। पूरे महीने की दवा लेकर आ रहा हूँ। 120 मोहरें वैद्यजी को दे कर आ रहा हूँ।”

दोनों बातें करते हुए घर पहुँच जाते हैं। माँ सुनीता बाहर ही खड़ी दोनों का इंतजार कर रही थी।

सुनीता, “अरे सुरेश! तुम तो मंडी गए थे ना? फिर ये सुधीर कहाँ मिल गया?”

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सुरेश, “माँ, मैं मंडी से लौट रहा था तो देखा कि भैया अपना खेत छोड़कर जग्गी काका के खेत जोत रहा था। फिर मैं इसे गाड़ी पर बिठा कर ले आया।”

सुनीता, “क्यों सुधीर… अपना काम छोड़कर दूसरे का काम क्यों कर रहा था?”

सुधीर, “वो माँ, जग्गी काका अपने बेटे को नानी के घर छोड़ने गए हैं। उन्होंने कहा कि थोड़ा मेरा खेत जोत दो।”

सुरेश, “अच्छा… तो मना कर देते। बोल देते कि मुझे अपना काम है, मैं नहीं कर सकता आपका काम।”

सुधीर, “ऐसे कैसे बोल देता? वो हमसे बड़े हैं। उन्हें हम इस तरह नहीं बोल सकते।

देखो माँ, सुरेश अनाज बेचकर सारे पैसे की मिठाइयाँ और दवाई ले आया है। एक भी पैसा घर खर्च के लिए बचा कर नहीं लाया।”

सुनीता , “ये पूरा सामान तो लगभग पांच सौ मोहरों का लग रहा है। सुरेश, सच-सच बता, तूने ये पैसे कहाँ से लिए?”

सुरेश, “कसम से मां, मैं ये सारा सामान अनाज बेचकर ही लाया हूँ और ये 1500 मोहरें भी मेरे पास बचे हैं।”

सुरेश बताता है कि किस तरह लालची सेठ को उल्लू बनाकर वो 20 हजार मोहरें ऐंठकर लाया है।

सुधीर सुरेश को समझाता है कि ये बहुत बुरी बात है। कल जाकर वो उसकी मोहरे वापस कर आए।

उधर राजा का , सेठ करोड़ीमल के यहाँ राशन लेने जाता है और मकई की वही बोरियाँ गाड़ियों पर लादने को कहता है।

करोड़ीमल, “महाराज जी, ये तीन बोरियाँ छोड़ कर आप कोई भी मकई की बोरियाँ हमारे दुकान में से ले सकते हैं, पर मैं ये आपको नहीं दे सकता।”

करोड़ीमल, “अच्छा तो अच्छी गुणवत्ता वाली मकई अपने लिए और राज्य के मालिक राजा के लिए सामान्य मकई की बोरी।

देखो सेठ, कान खोलकर सुन लो। राजन के लिए यही मकई जाएगी।”

करोड़ीमल, “चाहे जो कुछ हो जाए, मैं ये बोरियाँ नहीं दे सकता।”

राजा , “क्या बात है मंत्री जी, ये शाही रसोइया को क्यों यहाँ लाए हैं?”

मंत्री, “महाराज, शाही रसोइया और सेठ करोड़ीमल दोनों बाजार में झगड़ रहे थे।”

रसोइया, “महाराज, ये सेठ करोड़ीमल अच्छे मकई को अपने खाने के लिए रखता है और खराब मकई को शाही भंडार में भेजता है।”

करोड़ीमल, “महाराज की जय हो! महाराज, मुझे न्याय चाहिए। मकई की इन तीन बोरियों के अलावा दुकान में जितनी भी मकई की बोरिया हैं,

उनमें से कोई भी आप इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन मैं इन तीन बोरीयों को नहीं दे सकता।”

राजा,”अच्छा… ऐसी क्या खास बात हैं इन तीन बोरी मकई में, जो तुम हमें ये नहीं दे सकते?”

करोड़ीमल, “महाराज, ये तीन बोरियाँ जादुई मकई की बोरियाँ हैं। इसको सेवन करने से आदमी अमर हो जाता है।

वह कभी बूढ़ा नहीं होगा। जिस अवस्था में है, उसी अवस्था में रहेगा। इसे हमने एक किसान से 20 हजार मोहरें देकर खरीदे हैं।”

मंत्री, “महाराज, दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं है जो इंसान को अमर बना दे। यह सेठ झूठ बोल कर हमें बहला रहा है।

200 मोहरे की मकई को 20 हजार मोहर में कौन बुद्धू खरीदेगा?”

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राजा, “उस किसान को बुलाओ। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”

सैनिक सेठ करोड़ीमल के बताए हुए हुलिये पर सुरेश को पकड़ कर राजा के पास पेश करते हैं।

राजा के पास सुरेश सच सच बता देता है कि वो करोड़ीमल से पैसा ठगने के लिए ऐसा करके आया था।

राजा, “सुरेश, तुमने बेईमानी और चालाकी से सेठ के मोहरें ऐंठ ली हैं। इस अपराध के लिए हम तुम्हें 3 साल के कारावास की सजा सुनाते हैं।

साथ ही करोड़ीमल को लालच ना करने की चेतावनी दी जाती है।”

सुधीर, “महाराज, मेरा नाम सुधीर है और मैं इसका बड़ा भाई हूँ। महाराज, हमारे गुरुजी ने बताया है कि अपराधी अगर अपनी गलती स्वीकार कर ले तो उसे सुधरने का अवसर अवश्य प्रदान करना चाहिए।”

राजा, “बातें तो बहुत अच्छी और समझदारी वाली करते हो बालक, लेकिन अपराध की सजा तो मिलनी ही चाहिए। क्या कहते हैं मंत्री जी?”

मंत्री, “जी महाराज, आप सही बोल रहे हैं।”

राजा, “ठीक है। कल सुबह जो भी पहले तीन लोग मदद के लिए आएँगे, उनकी मदद तुम्हें करनी होगी।

तुम्हारे पास 20 हजार मोहरों में से पांच सौ मोहरे अपने पास रखकर शेष मोहरों को मदद में लगाने की इजाजत है।”

दूसरे दिन सुबह पहला फरियादी एक बूढ़ी औरत आती है।

बूढ़ी औरत, “महाराज की जय हो। कल रात आंधी में मेरा घर गिर गया, मेरी बकरी भी दब कर मर गई।

मेरा कोई नहीं है। अब मैं क्या करूँ? कैसे जीवन यापन करूँ?”

मंत्री, “महाराज, इसे 5 हजार मोहरें दे देते हैं।”

राजा, “सुधीर, तुम क्या कहना चाहते हो?”

सुधीर, “महाराज, मुझे लगता है कि दो और फरियादी को पहले सुन लेते हैं। हो सकता है कि उन्हें इनसे ज्यादा की जरूरत हो?”

राजा, ” ठीक है, बहुत अच्छे। और फरियादी बुलाये जाएं।”

राजमिस्त्री, “महाराज की जय हो। मैं एक राजमिस्त्री हूं। मुझे काम 10 दिन बाद मिला है।

3 दिन से बैठा हूँ। 10 दिनों के घर खर्च के लिए कुछ मदद मिल जाती तो बहुत कृपा होती।”

राजा, “ठीक है, अभी बाहर प्रतीक्षा करो। तीसरा फरियादी को बुलाया जाए।”

तीसरा फरियादी एक पुजारी आता है।

पुजारी, “महाराज की जय हो। मैं एक पुजारी हूँ। मेरे मंदिर की कुटिया में अनाथ बच्चे रहते हैं, लेकिन जंगली जानवरों के आतंक से परेशान हूं।”

राज्य, “आप कार्य तो बहुत ही अच्छा कर रहे हैं, पुजारी जी। बताइए, हम कैसे सहायता करें आपकी?”

पुजारी, “कृपया मेरे मंदिर के प्रांगण को पक्की चार दीवारी घिरवाने की व्यवस्था की जाए और बच्चों की देखभाल करने के लिए एक आदमी की व्यवस्था की जाए।”

राजा, “अब बताओ, इनकी मदद कैसे की जाए?”

मंत्री, “महाराज, इन सभी को बचे हुए 19,500 मोहरे में से मोहरे बाँट कर दे देते हैं। सभी की जरूरत पूरी हो जाएगी।”

राजा ,” सुधीर, तुम्हारा क्या विचार है?”

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राजा, “महाराज, पुजारी जी को बच्चों की देखभाल और खाना पकाने के लिए एक आया की जरूरत है।

राजमिस्त्री को काम की जरूरत है और बूढ़ी माँ को एक सहारे की जरूरत है।”

मंत्री, “हां हां, यह तो तीनों फरियादी ने बताया अभी। अब क्या करना है, ये बताओ?”

सुधीर, “हमें लगता है कि पुजारी जी के अनाथ बच्चों के खाने और देखभाल के लिए बूढ़ी माँ उपयुक्त हैं। इनका कोई भी नहीं है तो एक दूसरे को सहारा हो जाएगा।”

राजा, “बहुत अच्छे बालक, लेकिन राज़मिस्त्री के लिए क्या किया जाए?”

सुधीर, “महाराज, पुजारी के मंदिर के प्रांगण के चारों ओर चार दीवारी बहुत जरूरी है ताकि बच्चे जानवरों से सुरक्षित रहें। राजमिस्त्री को उसी काम में लगा दिया जाए।”

राजा, “बहुत अच्छा।”

सुधीर, सेठ करोड़ीमल के बचे हुए मोहरों को मंदिर में दान कर दिया जाए ताकि उससे बच्चों का भला हो सके और चार दिवारी के लिए काम आए। “

राजा, “वाह! मैं तुम्हारे न्याय से बहुत प्रसन्न हुआ। तुम्हारे भाई की सजा माफ की जाती है और तुम्हें मंत्री जी का सहायक नियुक्त किया जाता है। हमें ऐसे ही नेक दिल और ईमानदार आदमी की जरूरत है।”


दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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