दयालु पंडित | Dayalu Pandit | Hindi Kahani | Achhi Achhi Kahaniyan | Hindi Stories | Bedtime Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” दयालु पंडित ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Stories या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


नगर खजुरा गांव में ज्ञानचंद नाम का एक पंडित रहता था। ज्ञानचंद बहुत ही नेक और दयालु पंडित था।

वो गांव का एकमात्र मंदिर गांव जो कि शुरुआत में ही पड़ता था, उसी मंदिर का पुजारी था।

वह अपनी पत्नी विजया, बेटा दीपू, और बेटी किरन के साथ सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था।

वहीं चूरनदास बनारस का एक ठग था। एक दिन बाबा चूरनदास बनारस में नकली ज्योतिष बनकर लोगों का हाथ देख रहा होता है।

चूरनदास, “नारायण-नारायण! जप ले बंदे प्रभु का नाम, प्रभु करेंगे तेरा काम‌… नारायण-नारायण! आओ अपना किस्मत यहाँ दिखाओ।

धन है पर संतान नहीं, संतान है तो मकान नहीं। बाबा सब जानते हैं, कोई भी उसके लिए अनजान नहीं।”

एक औरत, “बाबा जी प्रणाम! हमारा हाथ देख दीजिए।’

चूरनदास, “घर में सब कुछ है, लेकिन पति का प्यार नहीं। उसकी नजर पराई औरतों पर रहती है।”

औरत, “हाँ महाराज, बिल्कुल सत्य वचन।”

चूरनदास (हल्की आवाज में), “मोटी भैंसी, तुझसे प्यार कौन बेवकूफ करेगा?”

औरत, “क्या बोले महाराज?”

चूरनदास, “मैंने बोला कि मोती जैसी सुंदर, शांत, सुशील कन्या से प्यार कौन बेवकूफ नहीं करेगा?

ये लो ताबीज और 10 हजार रूपए मेरी दानपेटी में डाल दो और गंगा में डुबकी लगाकर आओ। नारायण-नारायण!”

गंगा जी में…

औरत, “अरे! मेरे हीरे की अंगूठी कहाँ गई?”

एक आदमी, “अरे! मेरी भी अंगूठी नहीं है! अभी-अभी बाबा के हाथ दिखाने के समय मेरी उंगली में ही थी।

पकड़ो-पकड़ो, कोई इस बाबा को पकड़ो। मेरी अंगूठी…।”

इस बीच बनारस में पुलिस चूरनदास को ढूंढ रही थी। ऐसे में वह भागकर नगर खजुरा आ जाता है।

चूरनदास, “नारायण-नारायण! जप ले बंदे प्रभु का नाम, प्रभु करेंगे तेरा काम… नारायण-नारायण!”

ज्ञानचंद, “अरे पंडित जी! आप बाहर से आए हो लगता है? बहुत गर्मी है, आओ कुछ रस पान ही कर लो, फिर गांव में जाना। क्या नाम है तुम्हारा?”

चूरनदास, “घर है मेरा बनारस के पास, नाम है मेरा बाबा चूरनदास। चाचा, आप तो इस गांव के पंडित हो। कैसा है यह गांव, ये नगर खजुरा?”

ज्ञानचंद, “बहुत ही अच्छा गांव है, पंडित जी। गांव का ये एकमात्र मंदिर है और सारा धान-चढ़ावा इसी मंदिर में चढ़ाया जाता है।

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प्रभु की कृपा से यहाँ कोई कमी नहीं है, सभी लोग अच्छे और धार्मिक हैं।”

चूरनदास, “वाह! जैसा सुना था, वैसा ही आपने बताया।”

ज्ञानचंद, “जैसा आप सोच रहे हैं, उससे भी अधिक अच्छा गांव है। आओ, मैं तुम्हें अपना गांव घुमाता हूँ।”

चूरनदास, “नारायण नारायण! बहुत ही नेक विचार है आपका। आप मेरे गुरु तुल्य हैं, जैसी आपकी इच्छा।

जप ले बंदे प्रभु का नाम, प्रभु करेंगे तेरा काम… नारायण नारायण!”

गांव वाले बाबा चूरनदास का बहुत अच्छा स्वागत करते हैं और उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करते हैं।

भारी मात्रा में दान, धन-संपत्ति पाकर चूरनदास अपने घर चला जाता है। लेकिन लालची चूरनदास सोचता है कि जब वह एक दिन में गांव वालों से इतना धन-संपत्ति एकत्र कर पाया है,

तो पंडित ज्ञानचंद कितना कमा रहा होगा? यह सोचकर वह कुछ दिनों बाद फिर पंडित ज्ञानचंद के पास पहुँचता है।

चूरनदास, “चाचा… ओ मेरे चाचा! देखो, आपका चेला चूरनदास आया है।”

ज्ञानचंद, “अरे बाबा चूरनदास! कैसे हो बंधु?”

चूरनदास, “बस गुरु जी, आपकी कृपा से सब ठीक है। जब से मैं आपसे मिला हूँ, तब से चैन से सो नहीं पाया हूँ।

बार-बार मेरा दिल कहता है कि मैं आपके चरणों में पड़ा रहूँ। मेरे सच्चे गुरु आप ही हो। मुझे अपनी शरण में ले लो महाराज।”

ज्ञानचंद, “अरे चूरनदास! आओ-आओ। तुम्हारे जैसा शिष्य पाकर मैं धन्य हो गया। इतना नेक विचार रखने वाले लोग अभी इस जमाने में कम ही मिलते हैं।

मुझे भी एक सहायक की जरूरत थी। इतने बड़े गांव में एक ही मंदिर होने के कारण मुझे घर-बार के लिए समय ही नहीं मिलता।”

चूरनदास, “गुरु जी, आप महान हो। आप मेरे लिए साक्षात भगवान हो। आपका शिष्य बनकर मैं धन्य हो गया।”

बहुत ही भाग्य से आये हो, चूरनदास। आज गांव के सरपंच हुकुमचंद की बेटी की शादी है।

वहाँ पर गांव के लोग इकट्ठे होंगे। वहाँ सभी से मैं तुम्हारा परिचय करवा दूंगा।

सरपंच हुकुमचंद की बेटी की शादी में ज्ञानचंद बाबा चूरनदास का परिचय अपना शिष्य के रूप में करवातें है।

गांव की सभी लोग ज्ञानचंद पर अटूट विश्वास रखते थे और उनके प्रति काफी श्रद्धा थी,

इसलिए वो ज्ञानचंद के साथ साथ बाबा चूरनदास को भी दान दक्षिणा देकर विदा करते हैं।

जल्द ही बाबा चूरनदास ज्ञानचंद की तरह सारे गांव में फेमस हो जाता है। लोगों का विश्वास जीतने के बाद 1 दिन…

चूरनदास, “गुरु जी, आपको गैस की समस्या है क्या? ये गोली एक सप्ताह तक सेवन कीजिए, हमेशा के लिए गैस दूर हो जाएगी।”

ज्ञानचंद, “अरे बेटा! ये गैस मेरे मरने के बाद ही जाएगा। बहुत सी जड़ी-बूटी और दवा का सेवन करके देख लिया। लाओ, तुम्हारी गोली भी खाकर देख लेता हूँ।”

ज्ञानचंद गोली का सेवन करने लगता है। चूरनदास उसको गोली में नशीली वस्तु मिलाकर देता था, जिसके कारण धीरे धीरे ज्ञानचंद की हालत बिगड़ने लगती है

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और वो पागलों जैसी हरकतें करने लगता है। एक दिन चूरनदास भगवान के मुकुट को जोकि 15 किलो सोने से बना था, उसे गायब कर ज्ञानचंद के घर में रख देता है और ज्ञानचंद को फंसा देता है।

सरपंच, “पुजारी जी, भगवान का मुकुट कहाँ है?”

ज्ञानचंद, “मुझे नहीं मालूम सरपंच जी कि मुकुट कहाँ गया।”

सरपंच, “बाबा चूरनदास, आपको कुछ मालूम है कि मुकुट कैसे गायब हो गया?”

चूरनदास, “कल रात पंडित जी मुकुट की साफ सफाई कर रहे थे। जब मैंने पूछा कि सुबह साफ कर लेते,

तो उन्होंने कहा कि सुबह मंदिर में लोग पूजा करने आ जाते हैं, उससे उन्हें समय नहीं मिलता। फिर मैं सोने चला गया।”

सरपंच, “हमारे गांव में ये पहली बार हुआ है कि मंदिर में कुछ भी चीज़ इधर उधर हुई है। पंच की राह है कि जब तक मुकुट नहीं मिलता,

गांव के बाहर जाने के रास्ते पर तलाशी होगी और एक टीम घर घर में तलाशी लेगी।”

कासगंज गांव के सारे घरों की तलाशी ली जाती है। तीसरे दिन ज्ञानचंद के घर से मुकुट निकलता है।

सरपंच, “ज्ञानचंद, तुम्हारे घर से भगवान का मुकुट मिला है, वो भी तीन दिन बाद।

तीन दिन तक समय था तुम्हें कि अपने से मंदिर में जाकर मुकुट रख देते। इस विषय में तुम्हे कुछ और कहना है?”

ज्ञानचंद, “मुझे इस विषय में कुछ नहीं कहना, मुझे सिर्फ अपने भगवान पर भरोसा है।”

सरपंच, “ठीक है, तो पंच ने फैसला लिया गया है कि ज्ञानचंद को मंदिर के पुजारी पद से हटाया जाता है

और उनकी जगह बाबा चूरनदास को मंदिर का प्रधान पुजारी घोषित किया जाता है।

साथ ही ज्ञानचंद और उसके परिवार पर मंदिर में प्रवेश करने की पाबंदी लगाई जाती है।”

किरन, “मां, क्या अब हम सचमुच मंदिर में पूजा नहीं कर सकेंगे?”

विजया, “नहीं बेटी, ऐसा मत कहो। भगवान हमारे लिए कोई रास्ता जरूर निकालेंगे। हमें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए। भगवान के घर में देर है, अंधेर नहीं।”

दीपू, “माँ, पिताजी की हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। क्यों न हम शहर में जाकर डॉक्टर से इलाज कराएं?”

विजया, “हाँ बेटा, मैं भी यही कहने वाली थी। पिछले 15 दिनों से उनकी हालत ठीक नहीं लग रही। कल ही हम लोग शहर जाकर डॉक्टर से परामर्श लेंगे।”

दूसरे दिन दीपू, विजया और ज्ञानचंद शहर में जाकर डॉक्टर से मिलते हैं।

ज्ञानचंद डॉक्टर को बाबा चूरनदास द्वारा दी गई गोली दिखाता है। डॉक्टर बताता है कि यह एक नशीली दवा है जो आदमी के दिमाग को सुस्त कर देती है। डॉक्टर एक नई दवा लिखता है।

पांच दिन जिसे खाने के बाद ज्ञानचंद पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है।

दीपू, “पिताजी, मंदिर के चढ़ावे से हमारा घर चल रहा था, लेकिन अब वो नहीं रहा। घर में 10 दिन का राशन ही बचा है। हमें कुछ करना चाहिए।”

ज्ञानचंद, “हाँ बेटा, हमें कुछ न कुछ तो करना ही होगा, पर करें तो क्या करें?”

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किरन, “पिताजी, माँ कहती हैं कि जब कुछ समझ में ना आए, तो भगवान पर छोड़ देना चाहिए।

भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं। कल जन्माष्टमी है और हमें पूजा करनी है, लेकिन हमारे लिए मंदिर के द्वार बंद हैं।”

विजया, “मंदिर के दरवाजे बंद हैं, तो क्या? हम घर में ही मंदिर बना लेंगे। तुम्हारे बाबूजी बचपन में बहुत सुंदर मूर्तियां बनाते थे।”

दीपू, “मैं अभी गांव के बाहर से मिट्टी लाता हूँ मूर्ति बनाने के लिए।”

ज्ञानचंद, “बेटा, शाम हो गई है, कल मिट्टी ले आना।”

दीपू, “नहीं पिताजी, कल पूजा है और मूर्ति आज बनेगी तो कल तक सूख जाएगी।”

दीपू उसी समय गांव के बाहर नदी किनारे से मिट्टी लाने चल देता है। प्राचीन काल में एक बहुत बड़े संत वहाँ पर समाधि लिए हुए थे। रात के अंधेरे में दीपू वहीं से मिट्टी खोद कर ले आता है।

ज्ञानचंद रात के 2 बजे तक मेहनत करके उस मिट्टी को एक मूर्ति का रूप दे देता है।

सुबह में…
किरन, “अरे वाह! माँ देखो ना, पिताजी ने कितनी सुंदर मूर्ति बनाई है?”

विजया, “सचमुच, ये मूर्ति लग रही है कि अब बोल पड़ेगी।”

किरन, “लेकिन ये किस भगवान की मूर्ति है? बड़ी ही विचित्र है।”

ज्ञानचंद, “अरे! ये कैसे हो गया? मैंने तो कृष्ण भगवान की मूर्ति बनाई थी, ये क्या बन गया है?”

दीपू, “हाँ पिताजी, मैंने भी देखा था कि आप कृष्ण भगवान की ही मूर्ति बनाए थे। मैंने खुद उसे सूखने के लिए रखा था।”

विजया, “हे भगवान! जाने क्या होने वाला है।”

किरन, “आज मैं पूजा कैसे करूँगी?”

विजया, “एक कृष्ण भगवान का फोटो है जो पिताजी बनारस से लाए थे। इसे ही साफ करके पूजा कर लो।”

किरन, “ठीक है मां, मैं इसे साफ करके पूजा कर लूंगी। लेकिन पिताजी ने इस मूर्ति को कृष्ण भगवान का ही रूप दिया था, इसलिए उसकी भी पूजा करूँगी।”

किरन उस मूर्ति को भी पूजा करते समय सामने रखती है।

किरन, “हे भगवान! जिस किसी ने मेरे पिताजी को फंसाया है, आप उसे सामने लाकर पिताजी की खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से ला दो। यही हमारी विनती है।”

रात साढ़े बारह बजे चूरनदास ज्ञानचंद के घर आता है।

चूरनदास, “गुरूजी… गुरूजी, दरवाजा खोलिए।”

ज्ञानचंद, “कौन है?”

चूरनदास, “मैं चूरनदास हूँ। भगवान का प्रसाद बच्चों के लिए लाया हूँ। देखो, आप लोगों का तो मंदिर में प्रवेश बंद है,

इसलिए मैं खुद प्रसाद लेकर आ गया हूँ। बच्चे भूखे होंगे। आपको भी अभी तक कोई काम नहीं मिला। लो बेटा, इसे खा लो।”

ज्ञानचंद, “धन्यवाद चूरनदास, तुमने हमारे लिए इतना सोचा।”

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चूरनदास, “अरे! ये किस देवता की मूर्ति है?”

ज्ञानचंद, “पता नहीं, चूरनदास। मैंने तो कृष्ण भगवान की मूर्ति बनाई थी, लेकिन सुबह में यह विचित्र मूर्ति बन गई।”

चूरनदास, “ऐसी मूर्ति को घर में नहीं रखना चाहिए, अपशकुन होता है। लाओ बेटा, मैं इस मूर्ति को नदी में विसर्जन कर दूँ।”

जैसे ही चूरनदास मूर्ति लेकर मंदिर की ओर चलता है, मूर्ति भारी होने लगती है। आधे रास्ते में मूर्ति इतनी भारी हो जाती है कि उसके हाथ से छूटकर पैरों पर गिर जाती है, और उसके पैर जमीन में धंसते चले जाते हैं।

वो चिल्लाना चाहता है, लेकिन उसकी आवाज नहीं निकलती।”

तभी मूर्ति से डरावनी आवाज आती है, “बता, तूने ज्ञानचंद के साथ ऐसा क्यों किया?”

चूरनदास, “मैंने कुछ नहीं किया।”

मूर्ति, “तुम्हारे पास 12 घंटे हैं अपना अपराध कबूल करने के लिए। कल 1 बजे तक अगर तुमने अपना अपराध कबूल नहीं किया,

तो तुम पत्थर के हो जाओगे। हर घंटे तुम्हारा शरीर पत्थर में बदलता जाएगा।”

चूरनदास, “नहीं, मैं नहीं जानता कि तुम देव हो, दानव हो या गुरुदेव हो। कृपा करके मुझे छोड़ दो।

कुछ भी करके मुझे यहां से निकालो। मेरा पैर पत्थर का होता जा रहा है।”

मूर्ति उसी समय मिट्टी में धंसकर विलीन हो जाती है। सुबह में वहाँ भीड़ इकट्ठा हो जाती है।

चूरनदास का कमर से नीचे का शरीर पत्थर का बन चुका होता है। एक दो घंटों में सभी लोग वहाँ पहुँच जाते हैं।

चूरनदास के सिर और छाती के ऊपर का शरीर में ही जान होती है, बाकी शरीर पत्थर में बदल चुका होता है।

भीड़ में से एक आदमी, “ये कैसे हो गया बाबा? आपका शरीर पत्थर का कैसे बन गया?”

चूरनदास, “भाई लोग, आप पहले शांत हो जाइए, मेरे पास समय नहीं है। हो सकता है कि बोलते-बोलते मेरा मुँह भी पत्थर का हो जाए। उससे पहले मुझे कुछ कबूल करना है।”

सरपंच, “क्या कबूल करना है, पुजारी जी? कुछ समझ नहीं आ रहा, साफ-साफ बताइए।”

चूरनदास, “मैं कोई पुजारी नहीं हूँ, बनारस का एक ठग हूँ। मैं जब से यहाँ आया हूँ, तब से यहाँ के लोगों का दान-दक्षिणा देखकर मुझे लालच आ गया।”

ज्ञानचंद, “लेकिन तुमने तो बताया था कि तुम पंडित हो और घूम-घूमकर दक्षिणा मांग कर घर चलाते हो।”

चूरनदास, “गुरुजी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने ही आपके घर में मुकुट रखकर आपको फंसाया था, ताकि मैं मंदिर का मुख्य पुजारी बन आराम से रह सकूँ।”

सरपंच, “पंच ये फैसला सुनाती है कि इस व्यक्ति चूरनदास को मंदिर के प्रधान पुजारी के पद से हटाया जाता है

और पुजारी ज्ञानचंद को फिर से मंदिर का प्रधान पुजारी नियुक्त किया जाता है। कोतवाल जी, इस बनारसी ठग को पकड़ कर ले जाइए।”

तभी चूरनदास के शरीर में एक विस्फोट होता है और उसका शरीर जो पत्थर का बन चुका था, फिर से वापस सामान्य हो जाता है।

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कोतवाल चूरनदास को पकड़े ले जाता है। ज्ञानचंद और उसका परिवार फिर से वही प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है।

ज्ञानचंद, “आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया!”

सरपंच, “अरे पंडित जी! आपका भगवान पर विश्वास और वो अद्भुत मूर्ति जिसके कारण इस ढोंगी का पर्दाफाश हुआ,

उनका शुक्रिया पहले करिए। और एक सबक मिला है कि किसी पर भी विश्वास करने से पहले जांच-पड़ताल आवश्यक है।”


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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